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इनकम
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9. To avoid decoration of the body (For special study see 16th chapter of Uttaradhyayan Sutra)
Ten types of shraman (Ascetic) dharma-Pardon, 2. Satisfaction, 3. Straight-forwardness, 4. To avoid ego. 5. To remain light in collection, 6. Truth, 7. Self-restraint, 8. Detachment, 9. Celebacy.
विधि : तत्पश्चात् 'उत्तरीकरण' सूत्र (पृष्ठ 15) को एक बार पढ़कर कायोत्सर्ग अवस्था में अतिचार के निम्नोक्त पाठों का क्रमशः मनन किया जाता है।
Procedure: Thereafter the Uttarikaran Sutra is recited once and then in the posture of meditation (Kayotsarg) the following sutra relating to digression, in vows is mentally meditated.
. ज्ञान के अतिचारों का पाठ आगमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुत्तागमे, अत्थागमे, तदुभयागमे- एहवा श्रुत ज्ञान के विषय जे कोई अतिचार लगा होय ते मैं आलोउं-1. जंवाइद्धं, 2. वच्चामेलियं, 3. हीणक्खरं, 4. अच्चक्खरं, 5. पयहीणं, 6. विणयहीणं, 7. जोगहीणं, 8. घोसहीणं, 9. सुठुदिण्णं, 10. दुठ्ठपडिच्छियं, 11. अकाले कओ सज्झाओ, 12. काले न कओ सज्झाओ, 13. असज्झाइए सज्झायं, 14. सज्झाइए न सज्झाय। जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
भावार्थ : आगम तीन प्रकार का कहा गया है, जैसे कि-(1) सूत्रागम, (2) अर्थागम, और (3) तदुभयागम। इस तीन प्रकार के ज्ञान के विषय में यदि कोई दोष लगा हो तो मैं उसकी आलोचना करता हूं। (पाठ में कहे गए ज्ञान के चौदह अतिचारों का स्वरूप इस प्रकार है-) • (1) जंवाइद्धं-सूत्र के अक्षरों को आगे-पीछे पढ़ा हो।
(2) वच्चामेलियं-एक सूत्र का पाठ दूसरे सूत्र के पाठ के साथ मिलाकर पढ़ा हो। (3) हीणक्खरं-सूत्र के पद को अक्षर कम करके पढ़ा हो। (4) अच्चक्खरं-अधिक अक्षर युक्त पठन किया हो। (5) पयहीणं-पदहीन अर्थात् पद छोड़कर पढ़ा हो। (6) विणयहीणं-विनयहीन होकर पढ़ा हो। (7) जोगहीणं-मन, वचन, काय की एकाग्रता से रहित होकर पढ़ा हो।
आवश्यक सूत्र
// 31 ।।
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