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छह जीवनिकाय - (1) पृथ्वीकाय, (2) अप्काय, (3) तेउकाय, (4) वायुकाय, (5) वनस्पतिकाय एवं, (6) त्रसकाय ।
सात पिण्डैषणा - (1) असंसृष्टा, (2) संसृष्टा, (3) उद्धृता, (4) अल्पलेपा, (5) अवगृहीता, (6) प्रगृहीता, एवं (7) उज्झित धर्मा |
(विशेष जानकारी के लिए देखिए आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध का पिण्डैषणा अध्ययन । )
आठ प्रवचन माता -पांच समिति और तीन गुप्ति के संयुक्त स्वरूप को आठ प्रवचन माता कहा जाता है। पांच समिति - (1) ईर्या समिति, (2) भाषा समिति, (3) एषणा समिति, (4) आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति, एवं (5) उच्चार - प्रस्रवण - खेल - जल्ल-सिंघाण परिष्ठापनिका समिति। तीन गुप्तियों का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है।
ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियां - (1) विविक्त वसति सेवन, (2) स्त्रीकथा परिहार, (3) निषद्यानुपवेशन (4) स्त्री अंगोपांगदर्शन वर्जन ( 5 ) कुड्यान्तर शब्द श्रवण - वर्जन, (6) पूर्वभोगाऽस्मरण, (7) प्रणीतभोजन त्याग, (8) अतिमात्रा भोजन त्याग, एवं (9) विभूषा वर्जन। (विशेष अध्ययन के लिए देखिए उत्तराध्ययन सूत्र का 16वां अध्ययन | )
दस प्रकार का श्रमण - धर्म - (1) क्षमा, (2) मुक्ति (संतोष), (3) आर्जव (सरलता), (4) मार्दव (अभिमान त्याग), (5) लाघव (लघुता - हल्कापन), (6) सत्य, (7) संयम, (8) तप, (9) त्याग, एवं (10) ब्रह्मचर्य ।
Elaboration: In this aphorism, there is the gist of entire pratikraman. The entire life of a Jain monk is based on principle and limitations laid down in the ascetic code. But due to any slackness there is possibility of incurring digressions and faults in their practice. A monk again and agam practices the state of non-slackness. By recollecting possible foults and repenting for the same he cleans his self through pratikraman.
With the present aphorism the practitioner looks into his conduct. He recollects whether he has incurred any fault in practice of right knowledge, right vision and right conduct. He studies if he might have done anything not in line with scripture or the path enunciated by the omniscient. He recollects whether he had passed through evil thoughts or influence of passions in his mind. He observes if he had incurred any slackness in practice of guptis, five major vows and in protection to six types of living beings. He looks into whether he has committed any faults in practice of seven principles, relating to collection of alms, in practice of eight pravachan maatas nine
Ist Chp. : Samayik
आवश्यक सूत्र
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