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चित्र - परिचय - 2
Illustration No. 2
आलोचना सूत्र
अहिंसा महाव्रत की शुद्धि के लिए साधक आत्म आलोचना करता है । भूलवश या प्रमादवश यदि उससे किसी जीव की हिंसा हुई है तो उसके लिए वह आत्म-साक्षी से प्रायश्चित्त करता है । सर्वप्रथम वह गुरुदेव से गमन और आगमन यानि आने-जाने आदि क्रियाओं को करते हुए जो जीवादि की हिंसा हुई है, उसकी निवृत्तिहेतु, किए जाने वाले प्रतिक्रमण की आज्ञा प्राप्त करता है। उसके बाद वह गमनागमन करते हुए एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों की सम्भावित हिंसा को स्मरण करता है। आते-जाते हुए स्वयं द्वारा हुई भूलों का पश्चात्ताप करता है। अंत में उससे जो भी दुष्कृत (पाप) हुआ है, उससे पीछे लौटने की प्रतिज्ञा करता है।
प्रथम चित्र में शिष्य गुरु से प्रतिक्रमण की आज्ञा प्राप्त कर रहा है।
दूसरे चित्र में गमन करते हुए सूक्ष्म जीवों की सम्भावित हिंसा को स्मरण करता । आगे के चित्रों में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों को चित्रित किया गया है । तत्पश्चात् हिंसा के प्रकारों का चित्रण है। अंतिम चित्र में साधक भविष्य में हिंसा से पीछे हटने का संकल्प लेते हुए दिखाया गया है।
Alochana Sutra
The practiser assesses his self for the purification of the great vow of Ahimsa, Obliviously or in laxity if he has killed any living being then he expiates with the witness of soul. Firstly he gets the permission to repent over the killing of any living beings by the activities of his coming and going or arrival and departure with the permission of guruji for his final beatitude. After that he recollects the potential killing of one senses to five senses beings through coming and going. He expiates of the errors committed while coming and going. In the end he pledges to derate back from the sins that he has committed.
In the first picture the disciple asks for this permission of his holy teacher for repentance
In the second picture he recalls the potential killing of subtle beings by going and coming from one sense to five senses have been illustrated. Subsequently the types of violence are illustrated. In the last illustration the practiser has been illustrated resolving to withdraw himself from the violence in future.
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