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(1) One-sensed beings: The earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, airbodied and plant-bodied living beings are called one-sensed living beings. (2) Two-sensed beings: Counch-shell, lice and the like are two-sensed beings.
(3) Three-sensed beings: Ants, and the like are three-sensed beings.
(4) Four-sensed beings: Flies, mosquito, bumble-bee and the like are four sensed beings.'
(5) Five - sensed beings: Human beings, acquatic animals, quadrupeds, birds and the like are five-sensed beings.
Procedure: After self-criticism of movement for the purification of detachment from physical body ( Kayotsarg), the Sutra (Aphosism) mentioned below is recited.
उत्तरीकरण सूत्र
तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहिकरणेणं, विसल्ली - करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए, ठामि काउसग्गं । अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए, सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं, एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो, अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो । जाव अरिहंताणं भगवंताणं णमोक्कारेणं न पारेमि, ताव कायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ।
भावार्थ : दोषों से दूषित अपनी आत्मा की विशेष उत्कृष्टता के लिए, प्रायश्चित्त के लिए, विशुद्धि के लिए, शल्य रहित होने के लिए, पाप कर्मों के पूर्णतया विनाश के लिए कायोत्सर्ग की आराधना करता हूं।
( आगे कहे जाने वाले आगारों के अतिरिक्त शरीर संबंधी शेष व्यापारों का त्याग करता हूं। वे आगार इस प्रकार हैं -)
उच्छ्वास-निच्छ्वास से, खांसी, छींक, जंभाई, डकार तथा अपानवायु से, चक्कर आने से, पित्त के प्रकोप से, मूर्च्छा आने से, सूक्ष्म अंग संचालन से, सूक्ष्म रूप से कफ के संचालन से, सूक्ष्म दृष्टि संचालन से तथा इसी प्रकार की अन्य शरीर संबंधी स्वाभाविक क्रियाओं से मेरा कायोत्सर्ग भंग तथा विराधित न हो ।
आवश्यक सूत्र
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Ist Chp. : Samayik
Kul.hd.hot.k