Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 29
________________ जीवाभिगमसूत्र प्रकरणमविज्ञातार्थकमिति । अन्येतु एवं कथयन्ति यत् तीर्थकरो हि भगवान् न प्रवचनार्थ प्रयासं करोति किन्तु तीर्थकृतां पुण्यप्रभावादेव श्रोतृणां प्रतिभासो जायते यथा-भगवतेदं तत्त्वमित्थं प्रतिपादितमिति । तदुक्तम् तदाधिपत्यादाभासः, सत्वानामुपजायते स्वयं तु यत्नरहित श्चिन्तामणिरिव स्थितः ॥१॥ एतन्मतनिरासार्थमाह-'जिणक्खाय' जिनाख्यातम् -जिनेन भगवता वर्द्धमानस्वामिना प्रकृष्टतरपुण्यविपाकोदयत स्तथा व्यापारयोगेनाख्यातं कथितमिति जिनाख्यातम् । ततः सफलमेव इदं जिनाख्यातमित्यावेदयन्नाह 'जिणाणुचिण्णं' जिनानुचीर्णम् अत्र जिनाः हिताप्रतिपातियोगसिद्धाः 'तओ जिणा पण्णत्ता, तं जहा-ओहिनाणजिणा-मणपज्जवनाण जिणा, केवलनाणजिणा' इति स्थानाङ्गसूत्रवचनात् जिनशब्देनात्र गणधरा गृहीताः । तदय ज्ञात अर्थवाला नहीं है। कोई २ इस विषय में ऐसा कहते हैं-कि तीर्थकर भगवान् प्रवचन के लिये प्रयास नहीं करते हैं, किन्तु तीर्थंकरों के पुण्यप्रभाव से ही श्रोताजनों को प्रतिभास होता है । तदुक्तम्-'तदाधिपत्यादाभासः' इत्यादि । सो ऐसा कहना भी ठीक नहीं है क्यों कि "जिणक्खायं" पद यह प्रकट करता हैं कि भगवान् वर्द्धमानस्वामी ने ही प्रकृष्टतर पुण्य विपाक के उदय से-तीर्थंकर नामकर्म की प्रकृति के उदय से-ही यह प्रकरण स्वयं अर्थतः कहा है । इस 'जिनाख्यात' विशेषणको सफल प्रकट करनेके लिये सूत्रकारने 'जिणाणुचिण्णं' यह विशेषण कहा है । जिन तीन प्रकार के कहे गये हैं जैसे-'तओ जिणा पण्णत्ता तं जहा-ओहि नाणजिणा, मणपज्जवनाणजिणा, केवलनाणजिणा' ऐसा स्थानांगसूत्र में कहा है। एक अवधिज्ञानीजिन, दूसरे मनः पर्ययज्ञानीजिन, और तीसरे केवलज्ञानीजिन, यहां जिन शब्द से केवल પ્રકરણ અવિજ્ઞાત અર્થવાળું નથી, કઈ કઈ શાસ્ત્રકારો આ વિષયમાં એવું પણ કહે છે કે -તીર્થંકર ભગવાન પ્રવચનને માટે પ્રયાસ કરતા નથી, પરંતુ તીર્થકરોના પુણ્યપ્રભાવથી જ શ્રોતાઓને એ પ્રતિભાસ થાય છે. કહ્યું. પણ છે કે – "तदाधिपत्यादाभासः" त्याहि-५२तु से मान्यता ५९ लयित नथी, १२९५ - "जिणक्खायं" ॥ ५४ से वात प्रट रे छे भगवान भान स्वामी प्रष्टतर પુણ્યવિપાકના ઉદયથી-તીર્થકર નામકર્મની પ્રકૃતિના ઉદયથી–જ આ પ્રકરણના અર્થનું જાતે જ પ્રતિપાદન કર્યું છે. ___मा "निध्यात" विशेषानी साथ भाटे सूत्र॥२ “जिणाणुचिणं" विशेष प्रयास ४ छ. नि प्रा२ना ह्या छे. स्थानांगसूत्रमा ५९ ४धुंछ है-"तओ जिणा पण्णत्ता-तंजहा-ओहिनाणजिणा, मणपज्जवनाणजिणा केवलनाणजिणा' જિન ત્રણ પ્રકારના છે (१) अवधिज्ञानी आन, (२) मान; पयज्ञान न मने (3) अवज्ञान महानि પદ દ્વારા માત્ર ગણધરને જ ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે, કારણ કે ગણધરોમાં મન પર્યાય જીવાભિગમસૂત્ર

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