Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विषय
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पृष्ठाङ्क अतिक्रमण न करे । मोक्षाभिलाषी वीर मुनि संयमका स्वरूपको जान कर उसका आचरण करता हुआ विचरे । हे शिष्य ! तुम सर्वदा वीतरागोपदेश और आचार्योपदेशका
अवलम्बन करके संयमाचरणमें पराक्रम करो। २१६-२२० ८ चतुर्थ सूत्रका अवतरण, चतुर्थ सूत्र और छाया।
२२० ९ ऊर्चलोक अधोलोक और तिर्यग्लोक, इन सभी स्थानोंमें मिथ्यात्व, अविरति आदि स्रोत, अर्थात्-आस्रवद्वार हैं । ये
आस्रवद्वार नदीके स्रोत समान कहे गये हैं। इन्हीं आस्रवोंसे जीव कौंको बांधते हैं।
२२०-२२३ १० पञ्चम सूत्रका अवतरण, पञ्चम सूत्र और छाया।
२२४ ११ वीतरागोपदिष्ट आगमके परिज्ञाता मुनि, आवत्तको पर्यालो
चना करके आस्रवद्वारोंसे विरत होता । कर्मों के आस्रवोंको दूर करने के लिये प्रबजित ये महापुरुष मुनि अकर्मा होता है, और ज्ञान-दर्शनसे युक्त होता है। परमार्थ जाननेवाला ये मुनि, अच्छी तरह विचार कर किसी भी वस्तुकी अभिलाषा नहीं करता । मोक्षप्राप्तिके लिये उद्युक्त ये मुनि मनुष्यलोकमें रहता हुआ भी जीवोंकी आगति और गतिको जानकर जन्म मरणके मार्गका उल्लङ्घन कर जाता है, अर्थात् मुक्त हो जाता है।
२२४-२२८ छठे सूत्रका अवतरण, छठा मूत्र और छाया। २२८-२२९ १३ सिद्धावस्थाका वर्णन ।
२२९-२३८ १४ सप्तम सूत्रका अवतरण, सप्तम मूत्र और छाया।
२३९ १५ मुक्तात्मा जीवोंका वर्णन ।
२३९-२४१ ॥ इति षष्ठ उद्देश ॥ ॥ इति पञ्चम अध्ययन सम्पूर्ण ।। ५ ।।
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श्री. मायाग सूत्र : 3