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________________ विषय [४] पृष्ठाङ्क अतिक्रमण न करे । मोक्षाभिलाषी वीर मुनि संयमका स्वरूपको जान कर उसका आचरण करता हुआ विचरे । हे शिष्य ! तुम सर्वदा वीतरागोपदेश और आचार्योपदेशका अवलम्बन करके संयमाचरणमें पराक्रम करो। २१६-२२० ८ चतुर्थ सूत्रका अवतरण, चतुर्थ सूत्र और छाया। २२० ९ ऊर्चलोक अधोलोक और तिर्यग्लोक, इन सभी स्थानोंमें मिथ्यात्व, अविरति आदि स्रोत, अर्थात्-आस्रवद्वार हैं । ये आस्रवद्वार नदीके स्रोत समान कहे गये हैं। इन्हीं आस्रवोंसे जीव कौंको बांधते हैं। २२०-२२३ १० पञ्चम सूत्रका अवतरण, पञ्चम सूत्र और छाया। २२४ ११ वीतरागोपदिष्ट आगमके परिज्ञाता मुनि, आवत्तको पर्यालो चना करके आस्रवद्वारोंसे विरत होता । कर्मों के आस्रवोंको दूर करने के लिये प्रबजित ये महापुरुष मुनि अकर्मा होता है, और ज्ञान-दर्शनसे युक्त होता है। परमार्थ जाननेवाला ये मुनि, अच्छी तरह विचार कर किसी भी वस्तुकी अभिलाषा नहीं करता । मोक्षप्राप्तिके लिये उद्युक्त ये मुनि मनुष्यलोकमें रहता हुआ भी जीवोंकी आगति और गतिको जानकर जन्म मरणके मार्गका उल्लङ्घन कर जाता है, अर्थात् मुक्त हो जाता है। २२४-२२८ छठे सूत्रका अवतरण, छठा मूत्र और छाया। २२८-२२९ १३ सिद्धावस्थाका वर्णन । २२९-२३८ १४ सप्तम सूत्रका अवतरण, सप्तम मूत्र और छाया। २३९ १५ मुक्तात्मा जीवोंका वर्णन । २३९-२४१ ॥ इति षष्ठ उद्देश ॥ ॥ इति पञ्चम अध्ययन सम्पूर्ण ।। ५ ।। १२ ७० श्री. मायाग सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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