SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृष्ठाङ्क २४७ [५] ॥अथ षष्ठ अध्ययन॥ विषय १ पञ्चम अध्ययनके साथ षष्ठ अध्ययनका सम्बन्धकथन । धृत शब्दका अर्थ और भेद । इस अध्ययनके पाचों उद्देशोंमें प्रतिपाद्य विषयोंका क्रमिक वर्णन । प्रथम सूत्रका अवतरण, प्रथम सूत्र और छाया। २४२-२४४ इन मनुष्योंमें जो मनुष्य सम्यग्ज्ञानवान् है, वे ही अन्य मनुष्यों के लिये सम्यग्ज्ञानका उपदेश देते हैं। वे सम्यग्ज्ञानी केवली और श्रुतकेवली होते हैं। वे एकेन्द्रियादि जीवोंको यथार्थरूपसे जानते हैं। वे ही इस अनुपम सम्यग्ज्ञानके उपदेशक होते हैं। २४४-२४७ ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण, द्वितीय सूत्र और छाया। ४ तीर्थंकर गणधर आदि, हिंसानिवृत्त, धर्माचरणके लिये उद्यत और हेयोपादेयबुद्धियुक्त मनुष्योंके लिये मुक्तिमार्गका उपदेश देते हैं । इन उपदेश प्राप्त लोगों में कितनेक महावीर कर्मशत्रुओं के नाशार्थ पराक्रम करते हैं । इनसे भिन्न मोहविवश प्राणी कि जिनकी बुद्धि अन्यत्र लगी हुई है, वे विषादयुक्त रहते है। २४७-२४९ ५ तृतीय सूत्र का अवतरण, तृतीय सूत्र और छाया। २४९ ६ शैवाल आदिसे युक्त पुराने ह्रदमें रहनेवाला कच्छप, जैसा उसीमें निविष्ट चित्त होनेसे उससे बाहर नहीं हो सकता, उसी प्रकार हेयोपादेय वुद्धिरहित मनुष्य, कभी भी इस संसाररूपी महारुदसे बाहर नहीं निकल सकता। २४९-२५२ ७ चतुर्थ मूत्रका अवतरण, चतुर्थ सूत्र और छाया। २५२ ८ जैसे वृक्ष शाखाछेदनादि दुःखों सहते हुए अपने ही स्थान पर रहते हैं, वहांसे हट नहीं सकते, उसी प्रकार कितनेक શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy