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(२०) या स्तोत्रनी आराधनाथी भनવાંચ્છિત ફળ પ્રાપ્ત થશે. જેને ધનની અભિલાષા હશે તેનેધનસંપત્તિ મળશે, આ લોક તેમજ પરલોકમાં પણ સુખની જ પ્રાપ્તિ થશે.
इस स्तोत्रको पढनेवाला अपने सभी अष्टों [ अभीमिलषित वस्तुओं ] को प्राप्त करता है । धनार्थी धन पाता है । अधिक क्या कहा जाय, इसके प्रभावसे मनुष्य इस लोक और परलेाकमें सुख पाता है ॥ २० ॥ यद् गृहे लिखितं स्तोत्रं,
भयं तस्य न जायते ।
तत्रैव सफला संपत्,
स्थिरा भवति सर्वदा ॥ २१ ॥