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जगत में चन्द्र और सूर्य से होता है, जैसे पक्षियोंका आकाशमे गमन दोनों पाखो से होता है, उसी प्रकार हे भगवान् ! आपने इस संसार से जीवोंकी मुक्तिका उपाय, ज्ञान और क्रिया इन दोनोंको कहा है ॥ २२ ॥ आनादिकं हृदि-गतं विषमं विषाक्तम् ,
संसार-कानन- परिभ्रमणैक-हेतुम् । मिथ्यात्व-दोष-मखिलं मलिनस्वरूपं, क्षिप्र प्रणाशयति ते विमलः प्रभावः ॥ २३
(૨૩) હે પરમાત્મા ! અનાદિ કાળથી સંસારી જીવ મિથ્યાત્વરૂપી અંધકારને કારણે ભવભ્રમણ કરે છે, અને મિથ્યાત્વરૂપી ઝેરને કફથી જન્મ—મરણનાં દુઃખ ભેગવે છે.