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हे जिनेन्द्र ! सिंह, सर्प, अत्यन्त तीखे दातवाले शूकर तथा अन्य हिंसक प्राणियों के निवासस्थान होनेसे विकराल, चोर, डाकू आदिका निवासस्थान होनेसे भयानक, और तीक्ष्ण काटोंसे व्याप्त होनेके कारण अत्यन्त दुर्गम जो अटवी है वह भी, आपके स्मरण मात्रसे सभी ऋतुओंके पत्र, पुष्प और फलोंसे संपन्न होकर नन्दनवनके समान आनन्ददायक हो जाती है ॥४९॥ घोरा-तिधोर-विकटे सुभटेऽतिकण्टे,
भ्रष्टे वले विविध-दुःख-शत-विशिष्टे । शस्त्र। हति-प्रविचल-द्रुधिरप्रवृद्धे, युद्धे तनोति तव नाम विशुद्ध-शान्तिम् ॥ ...