________________
२३२
ॐ ह्रीँ श्रीँ जो पार्श्वनाथ प्रभुका
स्मरण करता हैं ॥१३॥
ह्रीँ श्रीँ क्लीँ पहवइ
न कयावि कोवितस्स ॥ १४ ॥ (१४) ॐ ॐीँ श्रीँ इसीँ नेनाथी ચાર અને શત્રના ભય નાશ પામે છે, તેમાં જરા પણ સંદેહ રાખશે નહિ.
ॐ ही श्रीँ क्लीँ कभीं भी कोई भी उसके उपर प्रमुत्व नहीं कर पाता ॥ १४ ॥
ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीँ श्रीँ श्रीँ सव्वसुहं पावर इह लोगट्ठी पर लोगट्ठी ॥१५॥
લી श्रीँ
(१4) ॐ ह्रीँ श्रीँ इसीँ