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हे राजन् ! जिसके पास चिन्तामणि, कल्पवृक्ष और कामधेनु है, ऐसे आप ब्यर्थ ही क्यों खिन्न होते हैं ? क्योंकी हे राजन् । आपके भवनके अंदर अचिरारानी के कुक्षि में सर्वशक्तिसम्पन्न, सभीको शान्ति देनेवाले प्रभु विराज रहे हैं ॥ २२-२३-२४॥ इत्युक्त्वा तत्र देवेन्द्रो मातृगर्भ गतं जिनम् ।। भावेन स्तोतुमारेभे, सर्वशान्ति प्रकाम्यया ॥२५॥
(२५) वापिन्द्र 20 प्रमाणे કહીને પછી સર્વત્ર શાંતિ સ્થપાય તે સારુ માતાના ગર્ભમાં રહેલા જીનેશ્વર શાંતિનાથ ભગવાનની સ્તુતિ કરવા લાગ્યા.