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इन्द्रका वचन सुनकर अचिरा देवीने, राजभबनके ऊपर चढकर चारों तरफ देखकर, भावपूर्वक इस स्तोत्रको पढा । इस स्तोत्रके मात्र एकवार पढनेसे आधि, व्याधि, उपाधि मिट कर सर्वत्र पूर्ण शान्ति हो गयी, सभी लोग ऋद्धि, सिद्धि और सम्पत्ति से युक्त हो गये ॥ ३३,३४ ॥
यदापुनर्जिनेन्द्रस्य जन्मकालः समागतः । तदा समस्तलोके च
स्वयं शान्तिरुपागता ॥३५॥ (3५) ते पछी शथी ल्यारे प्रभु શાંતિનાથ જન્મકાળ આવે, ત્યારે સમસ્ત લેકમાં ચારે તરફે શાંતિ જ શાંતિ