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ચંદ્ર, વીજળી અને મણિરત્નમાં નથી.
जिनेश्वर की प्रभाके कोटि अंश के कोटि अंश ( करोड वे अंश के करोड वे अंश) कि भी तुलना न सूर्य कर सकते हैं, न चन्द्रमा कर सकते हैं न करोडों विद्युत कर सकती हैं, मणियाँ नहीं कर सकती हैं ॥२५॥ लोकोत्तराऽऽहती
ऋद्धिद्रव्यतो भावतस्तथा । मण्डलान्तःस्थवस्तूनां
दिव्यदीप्तिविधायिनी ॥२६॥ तस्या विशुद्धभावेन
पाठेन विधिना जनः । भवेत् स्वल्पेन कालेन
द्रव्यभावर्द्धिसंयुतः ॥ २७ ॥