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भगवानकी ऐसी लोकोत्तर ऋद्धिका विधिपूर्वक विशुद्ध भाव से पाठ करने से मनुष्य स्वल्पकाल में ही द्रव्य और भाव ऋद्धि से युक्त हो जाता है ॥ २६-२७॥
॥ इति ऋद्धिस्मरण संपूर्ण ॥
अथ षष्ठं सिद्धिस्मरणम् सिद्धीसरणमेत्तेणं, सव्वसिद्धी पजायए । तमहं संपवाच्छिस्सं, भव्वाणं सिद्धिहेयवे ॥१॥
૦૬ સિદ્ધિસ્મરણ (१) सिद्धिस्म२९॥ मात्रथी-पटते