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मनुष्य भक्तिभावपूर्वक पढेगा उसकी प्रसन्नता के निमित्त, चिन्तामणिरत्न, कल्पवृक्ष और अनेक प्रकारकी सिद्धियां उसकी सेवामें सर्वदा उपस्थित रहेगी, अर्थात् इस स्तोत्रके पढनेसे इह लोक संबंधी सभी सिद्धियी प्राप्त होती हैं और परम्परासे वह मोक्षका भागी वनता है ॥५१॥
श्री-बर्द्धमान-शुभनाम-गुणा-नुबद्धां, शुद्धां विशुद्ध-गुण-पुष्प-सुकिर्ति-गन्धाम् यो घासिलाल-रचितां स्तुति मंजु-मालां, कठे बिभर्ति खलु तं समुपैति लक्ष्मीः॥ ॥ इतिश्री जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकरपूज्यश्री-घासीलालजीमहाराजविरचितं श्रीवर्द्धमानभक्तामरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥