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११० __ श्री वर्धमान प्रभुके शुभ नामरूपी सूतमे उनके शुद्ध, निर्मल गुणरूपी फूलोंको गूंथकर कीर्तिरूपी सुगन्धिसे परिपूर्ण पूज्यश्री घासीलालजी महाराज द्वारा रचित इस स्तुतिरूपी सुन्दर मालाको जो भव्य जीव अपने कण्ठमें धारण करेगा उसको त्रिभुवनकी द्रव्य और भावलक्ष्मी स्वयं उपस्थित होकर वरेगी ॥५२॥ ॥ इति श्रीजैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य
श्री-धासीलालजी-महाराज-विरचितश्री वर्धमानभक्तामरस्तोत्रका हिन्दी
भाषानुवाद सम्पूर्ण ॥
(३) अथ–सुखस्मरण सुखमूलं गणधर, वर्धमानानुयायिनम् । द्वादशानधरं नित्यं, वन्दे तं गौतमप्रभुम् ॥१॥