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અજર અમર એક્ષપદને પ્રાપ્ત કરે છે.
हे नाथ ! इस लोक में मनुष्य यदि अमृतरसका पान करता है तो वह उसके प्रभावसे निश्चय दीर्घजीविताको प्राप्त करता है, जिसका कोई महत्त्व नहीं ! परंतु जो भव्य
आपकी अमृतमयी स्याद्वाद वाणीके रसका पान करता है वह तो सहज में ही अजर, अमर मोक्षपद को प्राप्त करता है ॥ २० ॥ चक्री यथा विपुल-चक्र-बला-दखंडं,
भूमंडलं प्रभुतया समलं-करोति । रत्न-त्रयेण मुनिनाथ ! तथा पृथिव्यां, जैनेन्द्र-शासन-परान् भविनो विधत्से
॥२१॥