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हे प्रभु! सभी लोको में उत्तम तथा सभी प्रकार से मङ्गलकारी और आनन्ददायक ऐसा आपका मुखरूपी चन्द्र मण्डल कि जिसमें से आनंद मङ्गलके धाम समवरण में देशना रूपी अमृतरसका झरना झरता है । देवलोक और मोक्ष सुखको देनेवाले ऐसे आपके मुखचंद्रको देखकर चकोर पक्षीरूपी भव्य जीव सर्वदा आनन्दमम होते है ॥ १६ ॥ भ्रान्त्यापि भद्र - मुदितं भवदीय - नाम, सिद्धे - विधायि भगवन् ! सुकृतानि सूते । अज्ञानतोऽपि पतितं सितखंड-खंडम्,
मुखे मधुराण - खंड - मेव ॥१७॥ (१७) नेम सभाएगयो पशु भोढाभां