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भक्ति के उत्कृष्ट भावसे नमस्कार करने के लिये झुके हुए देवोंके मस्तकोंके मुकुटोमें जडे हुए मणियोंके समूहरूपी सरोवर हैं, उन मणिरूपी सरोवरोंमें मणियोंकी ज्योतिरूप जल भरा हुआ है। उनमें प्रभुके चरण पञ्चवर्ण कमलवनके समान शोभित होरहे हैं और वे भव्य जीवोंके मनरूपी भ्रमरोंको आकृष्ट कर रहे हैं, ऐसे श्री महावीर स्वामीके चरणोंका शरण लेता हूँ॥१॥ आनन्द-नन्दन-वनं सवनं सुखानां,
सद् भावनं शिव पदस्य परं निदानम् । संसार पार-करणं करणं गुणानां,
नाथ ! त्वदीय चरणं शरणं प्रपद्ये ॥२॥