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હૃદયમાં આપના નામનું ઉચ્ચારણ, આપના અપૂર્વ મહિમાવાન ગુણની ભક્તિનો ભાવરસ उत्पन्न ३ छ. ___हे प्रमु ! जैसे दूर पडा हुआ भी नींबू मात्र स्मरण करने से मुँह में पानी लाता है
और अपने रसका स्वाद कराता है, उसी प्रकार आपके कल्याणकारी नामका जप करने वालेके हृदय में, आपके नामका उच्चारण आपके अपूर्व महिमायुक्त गुणों के प्रति भक्तिभाव का रस उत्पन्न करता है ॥११॥ नाना-मणि-प्रचुर–कांचन-रत्न-रम्यं,
स्वीयं प्रयच्छति पदं जनकः सुताय ! . त्वद्-ध्यान-मेव जिनदेव ! पदं त्वदीयं,
भव्याय नित्य-सुखदं प्रकटी-करोति ॥१२॥