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ઘણે દૂર છે છતાં આપનું ધ્યાન ધરવા માત્રથી જીવ આપ સમાન બને છે તે ખરેખર साश्चय छे.
पारसमणि तो अपने स्पर्श से लोहेको सोना बनाता है परन्तु उस लोहेको पारसमणि नहीं बना सकता, परन्तु, हे प्रभु ! आप तो बहुत दूर (मोक्षमें ) होते हुए भी आपके ध्यानमात्र से जीव आपके समान हो जाता है यह अवश्य आश्चर्य है ॥५॥ कुन्देन्दु-हार रमणीय-गुणान् जिनेन्द्र !,
वक्तुं न पारयति कोपि कदापि लोके कः स्यात् समस्त-भुवन-स्थित जीव-राशे,
रेकैक-जीवगणनाकरणे समर्थः ? ॥६॥