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मानव जीवन का महत्त्व मतो महीभृत्सु सुवर्ण शैलो, भवेषु मानुष्यभवः प्रधानम् ।।
। -(श्रावकाचार १ । १२) महाभारत मे व्यास भी कहते हैं कि 'आओ, मै तुम्हें एक रहस्य की बात बताऊँ! यह अच्छी तरह मन में दृढ़ कर लो कि संसार में मनुष्य से बढकर और कोई श्रेष्ठ नहीं है।'
गुह्य ब्रह्म तदिदं ब्रवीमि, नहि मानुषात् श्रष्ठतरं हि किचित् ।
-~-महाभारत वैदिक धर्म ईश्वर को कर्ता मानने वाला संप्रदाय है। शुकदेव ने इसी भावना मे, देखिए, कितना सुन्दर वर्णन किया है, मनुष्य की सर्वश्रेष्ठता का। वे कहते हैं कि "ईश्वर ने अपनी आत्म शक्ति से नाना प्रकार की सृष्टि वृक्ष, पशु, सरकने वाले जीव, पक्षी, दंश और मछली को बनाया । किन्तु इनसे वह तृप्त न हो सका, सन्तुष्ट न हो सका। आखिर मनुष्य को बनाया, और उसे देख आनन्द में मन हो गया ! ईश्वर ने इस बात से सन्तोप माना कि मेरा और मेरी सृष्टि का रहस्य समझने वाला मनुष्य अब तैयार हो गया है।"
भारतीसृष्ट्वा परारिण, विविधान्यजयाऽऽत्मशक्त्या, rr वृक्षान सरीसृपै-पशून् खग-दश-मत्स्यान् । कमाक बोलताहृदयो मनुजं विधाय, ब्रह्मावबोधधिषण मुदमाप देपः ।।
---भागवत जयपर
महाभारत में एक स्थान पर इन्द्र कह रहा है कि भाग्यशाली है वे, जो दो हाय वाले मनुष्य है । मुझे दो हाथ वाले मनुष्य के प्रति स्पृहा है।'
Mauni
SAPNA