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आओ संस्कृत सीखें
928 1. प्रथमा, द्वितीया और संबोधन को छोड़कर अकारांत नपुंसक नामों के प्रत्यय और रूप
अकारांत पुंलिंग नाम के समान ही होते हैं | 2. भ्याम् प्रत्यय लगने पर पहले के अ का आ होता है ।
बाल + भ्याम् = बालाभ्याम् । बाल + ऐस् = बालैः ।
तृतीया विभक्ति करण को होती हैं। 4. जिसके द्वारा क्रिया की जाती है, उसे करण कहते हैं ।
उदा. पादाभ्यां गच्छति - दो पाँवों से चलता है । चलने की क्रिया में पाँव
साधन होने से उसे करण कहते हैं । 5. ‘साथ में' यह अर्थ दिखाई देता हो तब उसके संबंधवाले नाम को तृतीया
विभक्ति होती है । उदा. पुत्रो जनकेन सह गच्छति ।
पुत्रो जनकेन गच्छति ।
सह अव्यय के बिना भी तृतीया होती है । 6. चतुर्थी विभक्ति का 'य' प्रत्यय लगने पर पूर्व के अ का आ होता है ।
उदा. बाल + य = बाला + य = बालाय । 7. 'भ' से प्रारंभ होनेवाले बहुवचन के प्रत्यय लगने पर पूर्व के अ का ए
होता है | बालेभ्यः । धिक्, अन्तरेण आदि अव्यय के साथ जुडे नाम को द्वितीया विभक्ति होती है, उदा. धिग् जाल्मम् । लुच्चे को धिक्कार हो । अन्तरेण धर्मं सुखं न भवति । धर्म बिना सुख
नहीं होता है । 9. अंग-स्वभाव आदि के विशेषण, अंग-स्वभाववाले व्यक्ति की प्रसिद्धि के
लिए हों तो अंग स्वभाव आदि को तृतीया विभक्ति होती है । उदा. 1. देवदत्तस्य पादः खञ्जः । देवदत्तः पादेन खञ्जः ।
2. नृपतेः स्वभाव उदारः । नृपतिः स्वभावेन उदारः । 10. संप्रदान अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है । 11. जिसे प्रदान किया जाता है, उसे संप्रदान कहते हैं