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आओ संस्कृत सीखें
21733 5. जन्म का दुःख, जरा का दुःख और मरण का दुःख बार बार आता है। 6. कर्म की गति विचित्र है । 7. जैसा राजा वैसी प्रजा। 8. जो खुद को पसंद नहीं है, उस मधुर भोजन से भी क्या ? 9. सचमुच पशु भी अपने प्राणों की तरह खुद के पुत्र को संभालते हैं | 10. लंबे समय बाद भी कर्म सभी को अवश्य फल देता है । 11. भविष्य का कार्य हुआ। 12. सेवाधर्म कठिन है, योगियों को भी अगम्य है । 13. सचमुच, स्त्रियाँ मायावी होती हैं । 14. जैसे नेत्र ब्लिाना मुख, स्तंभ बिना घर शोभा नहीं देता, उसी प्रकार मंत्री के बिना राज्य
शोभा नहीं देता है। 15. धीर पुरुषों का भूषण विद्या है, मंत्रियों का भूषण राजा है, राजाओं का भूषण न्याय है, शील. सब का भूषण है।
पाठ-37
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. वणिक् स्वग्रामात् सर्पिर्पत्तनं नयति । 2. कवीनां वाक्षु माधुर्यमस्ति । 3. सर्पिषःभक्षणेनायुर्वर्धते । 4. क्षुधा समा न वेदना । 5. हरिणाः ककुभो लङ्घन्ते । 6. दुर्योधनः पाण्डवानां द्विडासीत् । 7. स्वर्गेऽप्सरोभिः सह देवाः क्रीडन्ति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. सर्यों के लिए दूध का पान जहर के लिए होता है । 2. कुलवान की वाणी झूठी नहीं होती । 3. दूसरों को पीड़ा देनेवाला सत्य वचन भी बोलना नहीं चाहिए |