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आओ ! संस्कृत सीखें !
भाग 1
लेखकः पं. शिवलालभाई नेमचंद शाह
भावानुवाद-संपादकः आचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरिजी म.
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शति
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મીતળ નહી ડાયા
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आता और पानी
(समरादित्य
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दिव्य संदेश
दिव्य संदेश
न
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सामादिदेवना
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शीत गुणस
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युवा संदेश
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शत्रुंजय-यात्रा
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मिच्छामि दुखकडम्
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चैयवन्दन] सूत्र विवेचना
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रिमझिम ★★ रिमझिम
अमृत बेरसे
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सवाल आपके जवाब हमारे
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कोज शर्म
हिन्दी साहित्यकार पू. पन्यासप्रवर श्री रत्नसेन विजयजी म.सा. का अनमोल साहित्य वैभव
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PANCH PRATIKRAMAN SOOTRA
Panyas St Rasen Vijay Gan
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धना सूत्र विवेचना
श्री
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मनोस कहानियाँ
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आवक प्रतिक्रमण सूत्र
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जीवन को बा
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शुक्र संस्कृति का अमर संदेश
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दिव्य संदेश
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मुत्रा महोत्सव
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माओ
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कर्मन की गत न्यारी
महाभारत
मुनि श्री रत्नसेन विजयजी म.
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HOW TO LIVE TRUE LIFE
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CHAITYA-VANDAN SOOTES
The Bate The
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आगरा की वृदि
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आनंदघन चावीसी
मानवता -तबमहक उठा
युवानीजानी
वीरत विजयी
मुनिश्रीरत्वसेन विजयाजीम |
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महाभारत
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उनी युवा पीढ़ी
दिव्य संदेश
THE USHT OF
बवा आसुधी मोती पद जावेद
प्रभु बर्थन की प्यासी
HUMANITY
Handidase
मुनि श्री रत्नसेन विजय जी म.
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आवक जीवन दर्शन
THE MESSAGE
THE YOUTH
दिव्य संदेश
आनन्दीप
आतापानी
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भक्ति
प्रिय
आमो! प्रतिक्रमण करें
अध्यात्मयोगी पूज्य गुरुदेव
आओ श्रावक बने ।
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मस्यामा
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नपद प्रानचन
कि कहानियाँ
शिश
पटन तपमान
जीस
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समाधान
प्रववनयाला
Uniantravina रारती तीरणारी
समावना
शका-सन
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आओ ! संस्कृत सीखें ।
(हैम संस्कृत प्रवेशिका भाग - 1)
-: लेखक :पंडितवर्य श्री शिवलाल नेमचंद शाह (पाटण निवासी)
हिन्दी अनुवादक - संपादक जैन शासन के महान् ज्योतिर्धर, परम शासनप्रभावक, व्याख्यान वाचस्पति पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के तेजस्वी शिष्यरत्न अध्यात्मयोगी, नि:स्पृहशिरोमणि, प्रशांतमूर्ति, पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर्य के कृपापात्र, प्रवचन प्रभावक मरुधर रत्न पूज्यपाद ____पंन्यास प्रवर श्री रत्नसेनविजयजी गणिवर्य
144
प्रकाशक दिव्य संदेश प्रकाशन
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47, कोलभाट लेन, ऑफिस नं. 5, एम.बी. वेलकर स्ट्रीट, ग्राउंड फ्लोर, मुंबइ-400 002.
फोन : 22034529, मो.: 9892069330
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आवृत्ति-प्रथम • मूल्य : 55/- रुपये विमोचन : 20-1-2011,गुरुवार थाणा आचार्य पद प्रदान दिन
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आजीवन सदस्ययोजना
प्राप्ति स्थान आजीवन सदस्यता शुल्क - 2500/-रु. 1. चंदन एजेंसी M. 9820303451 आप जैन धर्म के रहस्य - जैन
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नाकोड़ा हॉस्पिटल के पास, प्रभावक पू. पंन्यासश्री रत्नसेन
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4. राहुल बैद दिव्य संदेश एवं भविष्य में प्रकाशित
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प्रकाशक की कलम से.....
जैन शासन के महान ज्योतिर्धर परम शासन प्रभावक सुविशाल गच्छ नायक दीक्षा के दानवीर स्व. पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के तेजस्वी शिष्यरत्न अध्यात्मयोगी, नि:स्पृह शिरोमणि, बीसवीं सदी के महान योगी, नवकार साधक पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर्य के चरम शिष्यरत्न, प्रवचन-प्रभावक, मरुधररत्न पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री रत्नसेन विजयजी म.सा. के आचार्य पद प्रदान महोत्सव के पावन प्रसंग पर पंडितवर्य श्री शिवलालभाई द्वारा आलेखित एवं पूज्य पंन्यासजी म.सा. द्वारा हिन्दी भाषा में अनुदित एवं संपादित 'आओ! संस्कृत सीखें' भाग-I एवं भाग-II का प्रकाशन करते हुए हमें अत्यंत ही हर्ष हो रहा है।
पूज्य श्री हिन्दी भाषा के प्रभावक प्रवचनकार एवं हिन्दी साहित्यकार है। आज तक उनके द्वारा आलेखित 143 पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है।
प्रस्तुत पुस्तक का भी सरल-सुंदर हिन्दीकरण एवं संपादन पूज्यश्री ने अथक श्रम से किया है।
स्व. पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.के वर्तमान में विद्यमान ज्येष्ठ पूज्यों के निर्णयानुसार एवं नि:स्पृहमूर्ति पूज्य पंन्यासप्रवर श्री वज्रसेनविजयजी म.सा. के शुभाशीर्वाद से शासन प्रभावक, खिवांदीरत्न पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय कनकशेखरसूरीश्वरजी म.सा. के वरद हस्तों से पूज्य पंन्यासजी म. को पोष कृष्णा एकम् संवत् 2067 दिनांक 20 जनवरी 2011 गुरुवार के शुभ दिन गुरुपुष्यामृत सिद्धियोग की मंगल बेला में वर्तमान में जैन शासन सर्वोच्च पद अर्थात् आचार्यपद पर प्रतिष्ठित किया जा रहा हैं, यह हमारे लिए खूब गर्व और गौरव की बात है।
मुंबई की धन्यधरा, कोंकण शत्रुजय - ‘थाणा' नगर में 58 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद में आचार्य पद प्रदान महोत्सव का सुअवसर हाथ में आया है।
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इस महामंगलकारी महोत्सव प्रसंग में पूजा, पूजन, गौतमस्वामी संवेदना, नवकार जाप अनुष्ठान, श्रुतवंदना तथा जिन मंदिर शणगार, महापूजा के साथ में ही पूज्यश्री द्वारा आलेखित संपादित एक साथ में पांच पुस्तकों का भव्य विमोचन भी होने जा रहा है। ऐसे पावन-प्रसंग दुर्लभता से ही प्राप्त होते है। वे कुशल प्रवचनकार
और अवतरणकार भी हैं। सामायिक सूत्र, चैत्यवंदन सूत्र, आलोचना सूत्र, श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र, आनंदघन चौबीसी, आनंदघनजी के पद, पू. यशोविजयजी म. की चौबीसी आदि के ऊपर उन्होंने खूब सुंदर व सरलशैली में विवेचन भी किया है।
वे कुशल प्रवचनकार और अवतरणकार भी हैं। जैन रामायण और महाभारत पर दिए गए उनके जाहिर प्रवचनों का उन्होंने स्वयं ने आलेखन भी किया है।
वे कुशल भावानुवादक हैं-शांत सुधारस, श्राद्धविधि, गुणस्थानक क्रमारोह, प्रथम कर्मग्रंथ जैसे प्राचीन ग्रंथों का उन्होंने सरस भावानुवाद व विवेचन भी किया है।
वे प्रभावक कथा-आलेखक भी हैं-कर्मन् की गत न्यारी (महाबलमलयासुंदरी चरित्र) आग और पानी (समरादित्य चरित्र) कर्म को नहीं शर्म (भीमसेन चरित्र) तब आँसू भी मोती बन जाते हैं। (सागरदत्त चरित्र) कर्म नचाए नाच (तरंगवती चरित्र) जैसे अनेक चरित्र ग्रंथों का धारावाहिक कहानी का उपन्यास शैली में आलेखन भी किया है।
वे प्रसिद्ध चिंतक भी हैं। प्रवचन मोती, प्रवचन रत्न, चिंतन मोती, प्रवचन के बिखरे फूल, अमृत की बूंदें, युवा चेतना जैसे प्रकाशनों में उनके हृदयस्पर्शी चिंतन भी प्रस्तुत हुए हैं।
वे कुशल प्रवचनकार भी हैं-सफलता की सीढ़ियाँ, श्रावक कर्तव्य, नवपद प्रवचन, प्रवचन-धारा, आनंद की शोध में, उनके प्रवचनों के सुंदर संकलन हैं।
वे प्रसिद्ध कहानीकार भी हैं, प्रिय कहानियाँ, मनोहर कहानियाँ, ऐतिहासिक कहानियाँ, मधुर-कहानियाँ, प्रेरक कहानियाँ आदि में उन्होंने अत्यंत ही सुंदर हृदयस्पर्शी कहानियों का आलेखन किया है।
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जैन शासन के ज्योतिर्धर, महान् ज्योतिर्धर, तेजस्वी सितारे, गौतमस्वामीजंबुस्वामी आदि में उन्होंने जैन शासन के महान् प्रभावक पुरुषों के जीवन चरित्रों का सुंदर आलेखन भी किया है।
वे कुशल संपादक भी है-युवाचेतना विशेषांक, जीवन निर्माण विशेषांक, आहार विज्ञान विशेषांक, श्रावकाचार विशेषांक, श्रमणाचार विशेषांक, सन्नारी विशेषांक, राजस्थान तीर्थ विशेषांक जैसे अनेक विशेषांकों का सफल संपादन भी किया है।
पूज्य श्री द्वारा आलेखित हिन्दी साहित्य अनेकों को सन्मार्ग की राह बता रहा है।
संस्कृत तो हमारी मातृभाषा थी। जैनो का अधिकांश साहित्य संस्कृत भाषा में ही है। 5 कलिकाल का प्रभाव समझो या हमारा पापोदय समझो, जिस संस्कृति में माता और मातृभाषा की खूब खूब महिमा थी, आज उसी देश में उनकी ही घोर उपेक्षा हो रही है।
पूज्यश्री के दिल में यह वेदना है। इसीलिए वे प्रवचन और लेखनी के माध्यम से माँ और मातृभाषा की महिमा समझाते है।
प्रस्तुत पुस्तक उन लोगों के लिए वरदान स्वरुप सिद्ध होगी, जिनके अन्तर्मन में जैन धर्म के गहन रहस्यों को जानने की तीव्र जिज्ञासा है।
संस्कृत भाषा को जानने-समझने वाला व्यक्ति जैन साहित्य का सरलता से बोध प्राप्त कर सकता है।
बस, प्रस्तुत पुस्तक का सदुपयोग कर सभी संस्कृत भाषाविद् बने और उस भाषा में उपलब्ध जैन साहित्य का गहन अध्ययन कर जैन धर्म के मर्म को अपने जीवन में उतारकर अपना आत्म कल्याण करें, इसी शुभ कामनाओं के साथ !
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लेखक की कलम से...
भारतवर्ष की और अपेक्षा से संपूर्ण जगत् की देश-भाषा भिन्न-भिन्न स्वरूपवाली प्राकृत भाषा रही है। शास्त्रीय रीति से विविध विज्ञानों को प्रस्तुत करने की भाषा, संपूर्ण देश में संस्कृत भाषा रही है, इस कारण वह भाषा भी विश्व की विशिष्ट भाषा है ।
भारत देश की महान् आर्य प्रजा के आध्यात्मिक महा संस्कृति के आदर्श पर विरचित मानव जीवन के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग संबंधी गंभीर परिभाषाएँ प्राकृत और संस्कृत भाषा के शब्दकोश में संगृहीत हैं ।
जिस प्रकार संस्कृत भाषा का साहित्य विपुल प्रमाण में है, उसी प्रकार मानव-हृदय पर उसका प्रभाव भी अत्यंत तेजस्वी है । मानव हृदय की भक्ति का प्रवाह भी उस ओर सदैव बहता रहा है ।
मानव बुद्धि को ग्राह्य ऐसा कोई विषय नहीं है, जिससे संबंधित वाङ्मय उस भाषा में न हो ।
शिल्प, ज्योतिष, संगीत, वैद्यक, निमित्त, इतिहास, नीति, धर्म, अर्थ, तत्त्वज्ञान, व्यवहार और अध्यात्म आदि संबंधी विविध कर्तृक अनेक ग्रंथ इस भाषा में हैं और आज भी विपुल प्रमाण में उपलब्ध हैं ।
दैनिक जीवन से संबंध रखनेवाले विषय, प्राचीन साहित्य संशोधन, प्राचीन शोध, भाषा, विज्ञान, तुलनात्मक भाषा शास्त्र आदि के अभ्यास के लिए इस भाषा के अभ्यास की आवश्यकता आज भी रही है ।
प्राकृत और संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का प्राण ही हैं, इतना ही नहीं, गहनता से विचार करें तो 'विश्व के सभी मनुष्य जीवन का भी यह प्राण हैं' - यह कहना अधिक उचित और सत्य है ।
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उत्तर और पूर्व भारत, मध्य भारत और मालव देश में संस्कृत भाषा का प्रभुत्व फैलने के बाद पिछले हजार वर्ष में गुजरात प्रदेश ने भी उसमें खूब समृद्धि को बढ़ाया हैं।
कलिकाल सर्वज्ञ महान् जैनाचार्य श्री हेमचंद्राचार्यजी के समय से तो सागर में आनेवाले ज्वार की तरह संस्कृत के शिष्ट साहित्य की रचना में भी ज्वार आया है, उस समय सोलंकी का राज्यकाल था।
सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासनम् नाम से प्रसिद्ध व्याकरण ग्रन्थ की रचना भी उसी काल में गुजरेश्वर सिद्धराज जयसिंह की विनंति से गुजरात के प्राचीन पाटनगर पाटण में हुई थी।
संस्कृत, प्राकृत, शोरसेनी, मागधी, पिशाची, अपभ्रंश इन छह भाषाओं के नियमों से भरपूर अष्टाध्यायीमय तत्त्व प्रकाशिका प्रकाश महार्णव न्यास के साथ एक ही वर्ष में अकेले कलिकालसर्वज्ञ प्रभु ने वह महा व्याकरण तैयार किया था ।
विश्व वाङ्मय के अलंकारतुल्य उस महा व्याकरण को सिद्धराज जयसिंह महाराजा ने अपने पाटनगर पाटण (अणहिलपुर) में राज्य के ज्ञान-कोशागार में बहुमानपूर्वक स्थापित किया था।
चालू अभ्यासक्रम में उस महाव्याकरण को प्रवेश कराने के लिए उसकी अनेक नकलें तैयार कराई थीं और अन्य भी अनेक योजनाएँ उसके प्रचार में रखी थीं । काकल और कायस्थ अध्यापक ने उसका अभ्यास कराने में अथक परिश्रम कीया था । उस व्याकरण के अभ्यास से गुजरात और दूर दूर की भूमि गर्जना कर रही थी।
काल के प्रवाह के साथ गुजरात पर अनेक आक्रमण हुए और उसके अभ्यास में मंदता आने पर भी उसका प्रभाव प्रबल रहा । उसका वही
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आकर्षण था ।
धीरे धीरे उसके पठन-पाठन में पुनः वेग आया । वर्तमान में अनेक त्यागी व अनेक गृहस्थी अभ्यासी उसका अभ्यास कर रहे हैं
- संस्कृत भाषा के अभ्यासी विद्यार्थी उस महाव्याकरण में सरलता से प्रवेश कर सकें और अल्प समय में ही संस्कृत भाषा का अच्छा अभ्यास कर सकें, इसके लिए व्याकरण को लक्ष्य में रखकर सरल व रसमय प्रवेशिकाएँ लिखने का विचार मन में आया करता था ।
मैंने अनेक अभ्यासी जैन मुनि और अन्य विद्वानों के आगे मेरी भावना व्यक्त की, उनकी हार्दिक प्रेरणा और मेरे उत्साह के फलस्वरूप जो फल प्राप्त हुआ है, इसे आप सभी के हाथों में रखते हुए आनंद अनुभव करता हूँ।
परम पूज्य परम तपस्वी शांत महात्मा पंन्यासप्रवर श्री श्री 1008 श्री कांतिविजयजी म.सा. की असाधारण कृपादृष्टि, पंडितश्री प्रभुदास बेचरदास पारेख का सांस्कारिक मार्गदर्शन, पंडितजी श्री वर्षानंद धर्मदत्तजी मिश्र की व्याकरण संबंधी स्खलनाओं के आगे लालबत्ती धरने की तत्परता आदि तत्त्वों का मैं ऋणी हूँ।
विद्यार्थी, अध्यापक और विद्वानों की नजर में जहाँ कहीं स्खलनाएँ नजर में आएँ, उस संबंधी सूचनाएँ, सहृदय भाव से अवश्य सूचित करेंगे, इसी आशा के साथ विराम लेता हूँ। पाटण (अणहिलपुर)
शिवलाल नेमचंद शाह (उत्तर गुजरात)
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गुरुवंदना
जिनशासन के महान ज्योतिर्धर स्व पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजीम.
अध्यात्मयोगी पूज्यपाद पन्यासप्रवर श्री भद्रकरविजयजीगणिवर्य म.
प्रभावक प्रवचनकार आचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरिजीम.
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पंडित शिवलाल नेमचंद शाह
पाटण ( उ.गु.)
प्रकाशन - सहयोगी - माणेकचंदजी सरेमलजी कोठारी - भिनमाल - एन.बी. शाह जवेरचंदजी नथमलजी - कोसेलाव (भायखला) - श्रीमती धाकुबाई मिश्रीमलजी सुंदेशा मुथा-रोहा (बिजोवा निवासी) - स्व. पारसमलजी जीवराजजी खीचा - थाणा (आउवा-देवली निवासी) - अ.सौ. निशाबेन राजेशभाई शाह - वालकेश्वर
(सोनम-सेल, कुणाल) - शा.रतनचंदजी केसरीमलजी-भायखला (तखतगढ निवासी)
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शुभ कामना
लेखक : पूर्वदेश कल्याणकतीर्थोद्धारक पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजय मुक्तिप्रभसूरीश्वरजी म.सा.
कलिकाल सर्वज्ञ आचार्यप्रवर श्री हेमचन्द्रसूरिजी महाराजा ने श्री सिद्धहेम व्याकरण का निर्माण किया। जो महाग्रंथ ६ हजार गाथा प्रमाण है। टीका के साथ अठारह हजार गाथा प्रमाण भी होता है।
कहा जाता है कि चौलुक्य चूडामणि महाराजा कुमारपाल ने छ हजार श्लोक प्रमाण सिद्धहेम व्याकरण को कण्ठस्थ किया था एवं व्याकरण संशुद्ध संस्कृतभाषामय साधारण जिन स्तवन की इतनी सुंदर रचना की थी कि जो रचना आज जैनशासन के बड़े बड़े विद्वान आचार्य के श्रीमुख से भी सुनने को मिलती है।
व्याकरण सीखे बिना संस्कृत भाषा पर प्रभुत्व पाना मुश्किल है लेकिन सभी की यह ताकत नहीं होती है कि वे व्याकरण कण्ठस्थ कर संस्कृत भाषा में निष्णात बन सके। संस्कृतप्रेमी विद्यार्थियों के लिये अणहिलपुर (पाटण) निवासी विद्वान पंडित श्री शिवलाल नेमचंद शाह ने व्याकरण के अति उपयोगी नियमों को गुजराती भाषा में परावर्तित कर हैम संस्कृत प्रवेशिका नामक अध्ययन बुक बनायी जिस के तीन भाग है प्रथमा, मध्यमा एवं उत्तमा ।
संस्कृत भाषा के अध्ययन के लिये पहले भांडारकर की टेक्सबुकों का उपयोग होता । था, आज पूरे जैन समाज में साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका एवं मुमुक्षुगण पं. शिवलाल
की बुक का उपयोग करते है। _____ लेकिन जो साधु-साध्वी या मुमुक्षु हिन्दीभाषी होते है उनको गुजराती बुक को पढ़ना बहुत ही मुश्किल होता था । इस बात का अनुभव आज तक बहुत से विद्यार्थियों को बहुत बार हो चुका था फिर भी इस दिशा में निर्णयात्मक कदम उठाने की पहल आज तक किसी
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ने नहीं की थी जो पहल पंन्यासजी श्री रत्नसेन विजयजी ने की है।
बाते करना आसान है, कार्य करना आसान नही है । परंतु संकल्पित कार्य के प्रति उत्साह उत्स्फूर्त चेतना व अप्रमादभाव पंन्यासजी म. का दूसरा पर्याय है। अत: वे कोई भी कार्य उठाने के बाद पूर्ण कर के ही रहते है।
अपने पास पढ़ने के लिये आये हुए एक हिन्दीभाषी जिज्ञासु की वेदना को अपनी संवेदना का स्वरुप देकर पंन्यासजी म. ने हैम संस्कृत प्रवेशिका को हिन्दी में रुपान्तरित करने का जो प्रयत्न किया है, वह अत्यन्त सराहनीय एवं सहज अनुमोदनीय है।
संस्कृत अध्ययन का अभिलाषी अगर हिन्दीभाषी है तो उसके लिये ये हिन्दी हैम संस्कृत प्रवेशिकाएँ नितान्त आशीर्वाद रुप बन पाएगी।
संस्कृत भाषा ही एक सर्वांगसुंदर भाषा है। या सरस्वती जिस के उपर प्रसन्न हो, वही यह भाषा सीखने में समर्थ बन पाता है ।
साधु-साध्वी एवं मुमुक्षु आत्माएं इस पुस्तक के माध्यम से संस्कृतज्ञ बनकर अपनी अपनी योग्यता के अनुसार शास्त्र ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त कर आत्मविकास की दिशा में आगे बढ़ें यही शुभकामना ।
- विजयमुक्तिप्रभसूरि मनमोहन पार्श्वनाथ जैन मंदिर टिंबर मार्केट, पूना-४२ दि. १५-१०-२०१०
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संपादक की कलम से.... संस्कृत भाषा ज्ञान की आवश्यकता
- पूज्य पंन्यास श्री रत्नसेनविजयजी म. तारक तीर्थंकर परमात्मा जगत् के जीवों के कल्याण के लिए धर्मोपदेश देते हैं। वास्तविक मोक्षमार्ग दिखलाकर परमात्मा जगत् के जीवों पर जो महान् उपकार करते हैं, उसकी तुलना अन्य किसी से नहीं की जा सकती है।
भूखे को भोजन देने से, प्यासे को पानी पिलाने से, वस्त्र रहित को वस्त्र देने से उपकार अवश्य होता है, परंतु वह उपकार क्षणिक और अस्थायी है। क्योंकि भूखे को भोजन देने से उसकी भूख अवश्य शांत होती है, परंतु कुछ देर के लिए । १०-१२ घंटे का समय बीतने पर भूख की पीड़ा पुनः जागृत हो जाती है। परंतु तारक परमात्मा जो मोक्षमार्ग बताते हैं, उसकी विशेषता यह है कि वहाँ सभी समस्याओं का सदा के लिए अंत हो जाता है। वहाँ सदा के लिए भूख की पीड़ा शांत हो जाती है।
जहाँ समस्याओं का पार नहीं, उसी का नाम संसार है और जहाँ समस्याओं का नामोनिशान नहीं, उसी का नाम मोक्ष है।
अरिहंत परमात्मा ने जो मोक्षमार्ग बताया उसी मार्ग को गणधर भगवंत सूत्र के रूप में गूंथते हैं, जिसे द्वादशांगी भी कहते हैं ।
इन द्वादशांगी रूप आगमों की मुख्य भाषा अर्धमागधी अर्थात् प्राकृत है और उनके ऊपर जो टीकाएँ-विवेचन लिखे गए, उनकी भाषा मुख्यतया संस्कृत है।
सारांश यह है कि यदि आपको वीतराग परमात्मा कथित मोक्षमार्ग को जाननासमझना है तो आपको संस्कृत-प्राकृत भाषा का ज्ञात होना अनिवार्य है।
विक्रम की 17वीं - 18वीं सदी तक हुए अनेक अनेक महापुरुषों ने मोक्ष-मार्ग की आराधना-साधना हेतु जो भी ग्रंथ रचे, उनकी मुख्य भाषा संस्कृत या प्राकृत ही थी। उसके
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बाद के महापुरुषों ने गुजराती-हिन्दी आदि प्रांतीय भाषाओं में भी काव्य-ग्रंथ आदि रचे
एक मात्र कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी ने संस्कृत-प्राकृत में साढे तीन करोड श्लोक प्रमाण साहित्य का नवसर्जन किया था ।
वाचकवर्य उमास्वातिजी ने 500 ग्रंथ एवं सूरिपुरंदर श्री हरिभद्रसूरिजी म. ने 1444 धर्मग्रंथों का सर्जन किया था ।
हमारे-अपने दुर्भाग्य से उनमें से अधिकांश ग्रंथ काल-कवलित हो चुके हैं, फिर भी जो भी बचे हैं, वे भी खूब महत्त्वपूर्ण हैं - परंतु दुर्भाग्य है कि आज जैनों में से ही संस्कृत भाषा लुप्त प्राय: हो चुकी है।
मात्र जैन दर्शन ही नहीं, बौद्ध, न्याय, वेदांत, सांख्य आदि दर्शनों का भी बोध प्राप्त करना हो तो उसके लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान बहुत जरूरी है परंतु आज संस्कृत भाषा का ज्ञान धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।
महापुरुषों का अमूल्य खजाना हमें विरासत में मिला है, परंतु हम उसके लाभ से सर्वथा वंचित हैं।
भोजन पास में होकर भी भूखे मर जाय या पानी पास में होने पर भी प्यासे मर जायें, ऐसी हमारी हालत है।
महापुरुषों ने कठोर श्रम करके, रात के उजागरे करके हमारे हित के लिए उन ग्रंथों का सर्जन किया, परंतु भाषा ज्ञान के अभाव के कारण वे सब ग्रंथ हमारे लिए 'काला अक्षर भैंस बराबर' ही हैं। आज जैन संघ में संस्कृत भाषा का अभ्यास मात्र साधु संस्था तक सीमित रह गया है और उसमें भी धीरे धीरे कटौती होती जा रही है। श्रावक संघ का तो उस भाषाज्ञान की ओर किसी प्रकार का लक्ष्य ही नहीं हैं।
जरा भूतकाल के इतिहास की ओर नजर करें - कुमारपाल महाराजा ने 70 वर्ष की उम्र में भी संस्कृत व्याकरण सीखा था और संस्कृत भाषा में प्रभु-स्तुतियाँ रची थी।
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मंत्रीश्वर वस्तुपाल-तेजपाल ने भी संस्कृत भाषा सीखकर आदिनाथ आदि के चरित्र संस्कृत भाषा में रचे थे।
अपना दुर्भाग्य है कि पूर्वाचार्यों के द्वारा विरचित ग्रंथ हमारे लिए दुर्बोध होते जा रहे
हैं
वि.सं. 2064 में मेरा चातुर्मास कल्याण में था। जोधपुर (राज.) से 16 वर्षीय जिज्ञासु अक्षय वंदनार्थ आया।
बात ही बात में मैंने उसे कहा, “जैन दर्शन के मर्म को अच्छी तरह से जाननासमझना हो तो महापुरुषों के द्वारा रचे गए संस्कृत-प्राकृत ग्रंथों का अभ्यास जरूरी है।" __उसने कहा, “मुझे संस्कृत नहीं आती है।” मैंने कहा- “तुम्हें संस्कृत भाषा सीखनी चाहिए। संस्कृत भाषा सीख लोगे तो उन ग्रंथों का रसास्वाद न कर सकोगे।"
उसने कहा- “संस्कृत भाषा कैसे सीखू?"
मैंने कहा- संस्कृत सीखने के लिए सिद्धहेमचन्द्र शब्दानुशासनम् पर आधारित हेम संस्कृत प्रवेशिका भाग-१-२ का अभ्यास करना चाहिए, जो गुजराती में है। उसने कहा, “मुझे गुजराती आती नहीं है, आप हिन्दी में तैयार करें।"
मैंने कहा- “तुम्हारी भावना ध्यान में रखूगा।” उसकी भावना को ध्यान में रखकर उन संस्कृत पुस्तकों के हिन्दी अनुवाद का कार्य प्रारंभ किया, जो आज पूर्ण हो रहा है। _ वि.सं. 1193 में गुजरात के महाराजा सिद्धराज जयसिंह ने कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्यजी भगवंत को संस्कृत-व्याकरण रचने के लिए विनंती की थी । बुद्धिनिधान हेमचंद्रसूरिजी म. ने एक वर्ष की अल्पावधि में लघुवृत्ति, बृहद्वृत्ति और बृहन्न्यास युक्त 'सिद्धहेम शब्दानुशासनम्' व्याकरण की रचना की थी।
18 देशों के अधिपति सम्राट् कुमारपाल महाराजा ने भी इस व्याकरण का अभ्यास कर संस्कृत भाषा पर प्रभुत्व प्राप्त किया था।
इसी व्याकरण को सरलता से समझने के लिए उपाध्याय श्री मेघविजयजी म. ने
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चंद्रप्रभा हैमकौमुदी की रचना की और पू. उपाध्याय श्री विनयविजयजी म. ने 'हैमलघुप्रक्रिया' की रचना की थी।
गुजराती भाषा समझनेवाला भी धीरे-धीरे प्रयत्न कर संस्कृत भाषा सीख सके, इसी ध्येय को नजर समक्ष रखकर पाटण (गुज.) निवासी पंडितवर्य श्री शिवलालभाई ने हैम संस्कृत प्रवेशिका भाग 1-2 व 3 की रचना की थी।
मैंने अपनी मुमुक्षु अवस्था में प.पू. विद्वद्वर्य मुनिराजश्री धुरंधरविजयजी म.सा. एवं सौजन्यमूर्ति पू.मु.श्री वज्रसेन विजयजी म.सा. के पास सिद्धहैम संस्कृत प्रवेशिका भागI व II का अभ्यास किया था। फिर दीक्षा के बाद वि.सं. 2033-34 में पाटण स्थिरता दरम्यान पंडितजी शिवलालभाई के पास सिद्धहैम शब्दानुशासनम् - लघुवृत्ति का अभ्यास किया था।
हिन्दीभाषी प्रजा के हित को ध्यान में रखकर उन्हीं दो भागों का हिन्दी अनुवाद संपादन करने का मैंने यह प्रयास किया है। देव-गुरु की असीम कृपा के बल से तैयार हुए इन दो भागों का व्यवस्थित अभ्यास कर हिन्दी भाषी वर्ग भी संस्कृत भाषा को जाने-समझे और उसके फलस्वरूप पूर्वाचार्य विरचित महान् ग्रंथों का स्वाध्याय कर सभी अपना आत्मकल्याण साधे, इसी शुभ-कामना के साथ।
श्रावण पूर्णिमा, 2066 दि. 24-8-2010
ओसवाल भवन, रोहा (रायगढ़), महाराष्ट्र
भवोदधितारक
अध्यात्मयोगी पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर्य
कृपाकांक्षी रत्नसेन विजय
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SN
प्रवचन प्रभावक मरुधररत्न-हिन्दी साहित्यकार पूज्य पंन्यासप्रवर श्री रत्नसेनविजयजी म.सा. का बहुरंगी-वैविध्यपूर्ण साहित्य तत्त्वज्ञान विषयक S.No. 23 सुखी जीवन की चाबियाँ 137 | जैन विज्ञान 38 | 24, पाँच प्रवचन
138 चौदह गुणस्थानक | 25,गुणानुवाद
141 | आओ ! तत्त्वज्ञान सीखें
धारावाहिक कहानी
S.No. कर्म विज्ञान
102
1. कर्मन् की गत न्यारी 5. नवतत्त्व विवेचन
122
2. | जिंदगी जिंदादिली का नाम है 6. जीव विचार विवेचन 7.| तीन भाष्य
| 3. आग और पानी भाग-1 | आध्यात्मिक पत्र
146
4. आग और पानी भाग-2 प्रवचन साहित्य
5. मनोहर कहानियाँ मानवता तब महक उठेगी
6. ऐतिहासिक कहानियाँ मानवता के दीप जलाएँ
7. तेजस्वी सितारे | महाभारत और हमारी
8. |जिनशासन के ज्योतिर्धर संस्कृति-भाग-1
9. | प्रेरक कहानियाँ महाभारत और हमारी
10 मधुर कहानियाँ संस्कृति-भाग-2
11 महासतियों का जीवन संदेश 5.| रामायण में संस्कृति का
12 आदिनाथ शांतिनाथ चरित्र अमर संदेश-भाग 1
13/ सरस कहानियाँ रामायण में संस्कृति का
14, पारस प्यारो लागे अमर संदेश-भाग 2
15 शीतल नहीं छाया रे | सफलता की सीढ़ियाँ
16 आवो वार्ता कहुं 8. नवपद प्रवचन
17 महान् चरित्र
129 9. श्रावक कर्तव्य-भाग-1
18. सरस कहानियाँ 10. श्रावक कर्तव्य-भाग-2
युवा-युवति प्रेरक S.No. 11. प्रवचन रत्न 12. प्रवचन मोती
1. युवानो जागो 13. प्रवचन के बिखरे फूल
2. जीवन की मंगल यात्रा
3. तब चमक उठेगी युवा पीढी 14. प्रवचन धारा 15. आनंद की शोध
4. युवा चेतना 16. भाव श्रावक
5. युवा संदेश 17. पर्युषण अष्टाह्निका प्रवचन
जीवन निर्माण विशेषांक 18. कल्पसूत्र के हिन्दी प्रवचन 104 7. |The Message for the youth 19. संतोषी नर सदा सुखी
18. How to Live true life 20. जैन पर्व प्रवचन
| 9. यौवन सुरक्षा विशेषांक 21. गुणवान् बनो
126 | 10/सन्नारी विशेषांक 22. विखुरलेले प्रवचन मोती
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11. माता-पिता 12. आहार क्यों और कैसे ? 13. आहार विज्ञान 14. ब्रह्मचर्य 15. Duties Towards Parents 16. क्रोध आबाद तो
जीवन बरबाद 17. राग म्हणजे आग 18. आई वडिलांचे उपकार 19. अमृत की बूंदें 20. The Light of Humanity 21. Youth Will shine then
अनुवाद-विवेचनात्मक |सामायिक सूत्र विवेचना | चैत्यवंदन सूत्र विवेचना |आलोचना सूत्र विवेचना | श्रावक प्रतिक्रमण
सूत्र विवेचना 5. चेतन ! मोहनींद अब त्यागो
आनंदघन चौबीसी विवेचन 7. अँखियाँ प्रभुदर्शन की प्यासी 8. श्रावक जीवन दर्शन 9. भाव सामायिक 10. आनंदघनजी पद विवेचन
भाव चैत्यवंदन 12. विविध पूजाएँ 13. भाव प्रतिक्रमण भाग-1 14. भाव प्रतिक्रमण भाग-2 15. श्रीपाल-रास और जीवन-चरित्र 16. दंडक-विवेचन
विधि-विधान उपयोगी | भक्ति से मुक्ति आओ ! प्रतिक्रमण करें आओ! श्रावक बनें हंस श्राद्धव्रत दीपिका
Chaitya Vandan Sootra |विविध देववंदन
आओ ! पौषध करें | प्रभु दर्शन सुख संपदा
9. आओ ! पूजा पढाएँ 10. Panch Pratikraman Sootra 11. शत्रुजय यात्रा 12. प्रतिक्रमण उपयोगी संग्रह 13. आओ ! उपधान पौषध करें 14. विविध तप माला 15. आओ ! भावयात्रा करें 16. आओ ! पर्युषण प्रतिक्रमण करें| 17. सज्झायों का स्वाध्याय
अन्य प्रेरक साहित्य 1. वात्सल्य के महासागर
रिमझिम रिमझिम अमृत बरसे अध्यात्मयोगी पूज्य गुरुदेव | बीसवीं सदी के महान योगी महान ज्योतिर्धर मिच्छा मि दुक्कडम् क्षमापना सवाल आपके जवाब हमारे शंका-समाधान-I
जैनाचार विशेषांक 11. जीवन ने जीवी तुं जाण 12. धरती तीरथरी 13. चिंतन रत्न 14. अमरवाणी 15. महावीरवाणी 16. शंका-समाधान-II 16. सुख की खोज 17. आओ संस्कृत सीखें । भाग-I 18. आओ संस्कृत सीखें । भाग-II 19. आध्यात्मिक का पत्र 20. शंका समाधान । भाग-III
वैराग्यपोषक साहित्य
मृत्यु महोत्सव 2. श्रमणाचार विशेषांक 3. सद्गुरु उपासना 4. चिंतन मोती
मृत्यु की मंगल यात्रा
प्रभो ! मन मंदिर पधारो 7. शांत सुधारस भाग-1 8. शांत सुधारस भाग-1 9. भव आलोचना 10. वैराग्य शतक
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143 144 145 146 147 S.No.
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S.No.
N
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हर
प्रवचन प्रभावक पूज्य पंन्यासप्रवर श्री रत्नसेनविजयजी म.सा. द्वारा आलेखित
145 पुस्तकों में से प्राप्य पुस्तकों की सूची
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शत्रुजय यात्रा आओ प्रतिक्रमण करें विविध-देववंदन पर्युषण-अष्टाह्निक-प्रवचन बीसवीं सदी के महान् योगी कल्पसूत्र के हिन्दी प्रवचन प्रभु दर्शन सुख संपदा विखुरलेले प्रवचन मोती (मराठी) श्रमणशिल्पी प्रेमसूरिजी दादा Youth will Shine then तीन-भाष्य विविध-तपमाला मंगल स्मरण भाव प्रतिक्रमण (भाग-1) भाव प्रतिक्रमण (भाग-2) दंडक विवेचन आओ ! पर्युषण-प्रतिक्रमण करें सुखी जीवन की चाबियाँ पाँच प्रवचन वैराग्य शतक । गुणानुवाद सरल कहानियाँ सुख की खोज आओ ! संस्कृत सीखें! भाग-१ आओ ! संस्कृत सीखें! भाग-२
40/30/30/60/
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अनुक्रमणिका
विषय
७ळज
12
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पृष्ठ क्रमांक वर्ण-परिचय पाठ-1 वर्तमान काल पाठ-2 परस्मैपदी धातु पाठ-3 सर्वनाम पाठ-4 पहला गण (उपांत्य-अंत्य का गुण) पाठ-5 चौथा व छठा गण पाठ-6 दसवाँ गण पाठ-7 परस्मैपदी दसवें गण के धातु पाठ-8 धातुओं के आदेश पाठ-9 वर्तमाना विभक्ति आत्मनेपद के प्रत्यय 16 पाठ-10 नाम पद विभक्ति के प्रत्यय पाठ-11 सन्धि नियम पाठ-12 अव्यय पाठ-13 द्वितीया विभक्ति पाठ-14 अकारांत नपुंसक नाम प्रथमा द्वितीया विभक्ति पाठ-15 विशेषण और सर्वनाम पाठ-16 तृतीया-चतुर्थी विभक्त्ति प्रत्यय पाठ-17 सर्वनाम की विभक्ति पाठ-18 पंचमी-षष्ठी-सप्तमी
17
19
201
22
25
27
30
FONILLA
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35
40
43
46
51
पाठ-19 संबोधन-प्रत्यय पाठ-20 आकारान्त (आप् प्रत्ययान्त) स्त्री लिंग नाम प्रत्यय पाठ-21 उपसर्ग पाठ-22 कर्तरि-कर्मणि और भावे प्रयोग पाठ-23 ह्यस्तन भूतकाल पाठ-24 कृदन्त पाठ-25 व्यंजनांत नाम : पुंलिंग-प्रत्यय पाठ-26 सर्वनाम पाठ-27 इकारांत-उकारांत पुंलिंग नाम प्रत्यय पाठ-28 इकारांत-उकारांत तथा ङी प्रत्ययांत दीर्घ ईकारांत पाठ-29 वर्तमान कृदन्त पाठ-30 विध्यर्थ पाठ-31 आज्ञार्थ पंचमी पाठ-32 समास पाठ-33 समास पाठ-34 कृदन्त पाठ-35 तद्धित पाठ-36 अन् अंतवाले नाम पाठ-37 अस् अंतवाले नाम पाठ-38 ऋकारांत नाम पाठ-39 संख्यावाचक नाम पाठ-40 वाक्य परिशिष्ट
99
101
104
109
114
119
123
127
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138
KIN
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आओ संस्कृत सीखें
वर्ण-परिचय 14 स्वर : अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लु, लु, ए, ऐ, ओ, औ अनुस्वार : अं विसर्ग : अः 33 व्यंजन :
क् ख् ग् घ् ङ् च छ ज झ ञ
___ F
E
व
त् थ् द् ध् न् प फ ब भ म् य र ल व् श् ष स ह
ह्रस्व दीर्घ अ वर्ण अ आ इ वर्ण इ ई उ वर्ण उ ऊ । ऋ वर्ण ऋ ऋ लु वर्ण ल ल संध्यक्षर (दीर्घ) : ए, ऐ, ओ, औ 5 वर्ग (स्पर्श व्यंजन - 25)
क् ख् ग् घ् च छ ज झ ट् ठ् ड् द् त् थ् द् ध् प फ ब भ
अ
२
क वर्ग :च वर्ग :ट वर्ग :त वर्ग :प वर्ग :अंतस्था :उष्माक्षर :अनुनासिक :
! ! ! ! !
15 ho to to
ङ् ञ ण न म्
to to o le rbh
to
य श्
E F 5
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आओ संस्कृत सीखें
+
ल ल
उच्चार स्थान वर्ण के उच्चार स्थान आठ हैं - छाती, कंठ, शिर, जिह्वामूल, दाँत, नासिका, ओष्ठ और तालु । कंट्य :- अ वर्ण, क वर्ग, ह्, विसर्ग (:) तालव्य :- इ वर्ण, च वर्ग, यश, ए ऐ
ओष्ठ्य :- उ वर्ण, पवर्ग, ओ, औ, उपध्मानीय मूर्धन्य :- ऋ वर्ण, ट वर्ग, र्ष दंत्य :- लु वर्ण, तवर्ग, लस . दंत्यौष्ट्य :- व् नासिक्य :- अनुस्वार जिह्वय :-- जिह्वामूलीय
व्यंजन तथा स्वरों का संयोजन = क
क् + लृ = क्लू क् + आ = का
क् + ल = क्लू क् + इ = कि
क् + ए = के क् + ई =
क् + ऐ = कै क् + उ = कु
क् + ओ = को क् + ऊ = कू
क् + औ = कौ ___ = कृ
क् + अ + = कं क् + ऋ = कृ
क् + अ + : = कः इसी प्रकार सभी व्यंजन और स्वरों के मिलने से बारहखड़ी तैयार होती है।
कतिपय संयुक्ताक्षर क् + ष = क्ष
द् +ध = द्ध ज् + ञ = ज्ञ
क् + त = क्त प् + र = प्र
द् + ग = द्ग र् + ष = र्ष
श् + च = श्व त् + र = त्र द् + द = ६
ह + व = ह्व
tor OS
+
+
+
+
Phe
+
+ + by CF 70
+
+
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आओ संस्कृत सीखें
संज्ञाएँ 1. नामी:- अ वर्ण को छोडकर इ से औ तक के 12 स्वर नामी कहलाते हैं |
इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लु, लू, ए, ऐ, ओ, औ समान:- अ से दीर्घ ल तक के 10 स्वर समान कहलाते हैं । अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लु, लू धुट:- वर्ग के 5 वें अक्षर और अंतस्था को छोड़कर शेष 24 व्यंजन धुट् कहलाते हैंक् ख् ग् घ, च छ ज झ, ट् ठ् ड् द, त् थ् द्ध, प फ ब भ, श ष स ह. अघोष:- प्रत्येक वर्ग का पहला और दूसरा अक्षर तथा श् ष स ये 13 व्यंजन अघोष कहलाते हैं
क ख, च् छ, ट् , त् थ्, प् फ, श् ष् स् 5. घोषवान :- अघोष सिवाय के सभी 20 व्यंजन घोषवान कहलाते हैं
ग् घ् ङ्, ज झ ञ, ड् द ण, द् ध् न, ब् भ् म्, य र ल व्, ह्. 6. शिट:- अनुस्वार, विसर्ग, श् ष स्, जिह्वामूलीय तथा उपध्मानीय आदि
शिट् कहलाते हैं । 7. ह्रस्व:- जो स्वर जल्दी बोला जाता है, उसे ह्रस्व कहते हैं, जैसे अ,
इ आदि । 8. दीर्घ:- जो स्वर लंबा करके बोला जाता है, उसे दीर्घ कहते हैं
जैसे-आ, ई आदि 9. प्लुत:- जो स्वर दीर्घ से भी ज्यादा लंबाकर बोला जाता है, उसे प्लुत
कहते हैं - अरे, आ 10. अनुनासिक:- स्वर जब नासिका की मदद से बोला जाता है, तब उसे
अनुनासिक कहते हैं। स्वर के ऊपर अर्धचंद्राकार और बिंदु रखा जाता है। जैसे- अँ, अँ, आँ, आँ आदि व्यंजनों में भी य, ल और व् नासिका की मदद से बोले जाते हैं और उन्हें इस तरह लिखा जाता है ।
यँ, लँ, ,
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आओ संस्कृत सीखें
जिह्वामूलीय क् या ख के पहले तथा उपध्मानीय प या फ के पहले विसर्ग के बदले क्वचित् लिखते हैं। उदा. दु - खम्, दुःखम् । अन्त )( पातः, अन्त पातः ।
शब्दों के भेद वर्गों के संयोग से शब्द बनते हैं, वे चार प्रकार के हैं 1. जाति वाचक :- मनुष्यः- मनुष्य 2. गुण वाचक :- पीतम् - पीला 3. क्रिया वाचक :- गम - जाना 4. द्रव्य वाचक :- राकेशः राकेश
धातु :- हर प्राणी के जाने, आने, खाने, पीने आदि व्यवहार को क्रिया कहा जाता
• संस्कृत में क्रिया के वाचक शब्द को 'धातु' कहा जाता है | • संस्कृत व्याकरण में धातुओं के 10 गण हैं | • धातु सिवाय के शब्दों को नाम कहा जाता है ।
स्व संज्ञा जिन वर्गों को परस्पर समान गिना गया है वे परस्पर 'स्व' कहलाते हैं। जैसे-अ वर्ण के अ, आ, अँ, आँ, अ, आ, अँ, आँ आदि सभी भेद परस्पर स्व हैं।
अ वर्ण - परस्पर स्व क वर्ण - परस्पर स्व इ वर्ण - ,, ,,
च वर्ण - ,, ,, उ वर्ण
ट वर्ण - ,, ,, ऋ वर्ण
त वर्ण - ,, ,, ल वर्ण - ,, ,,
प वर्ण - ,, ,, ए कार
य् यं वर्ण - ऐ कार
ल लँ वर्ण - ,, ओ कार -
व , वर्ण - ,, औ कार -
र् श ष स् और ह का कोई स्व नहीं है।
:: :: :: : :
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आओ संस्कृत सीखें
पाठ-1
वर्तमान काल 1. जो क्रियाएँ अभी चल रही हों, उसे बतानेवाले काल को वर्तमान काल
कहते हैं
जैसे-मैं चलता हूँ, मैं खाता हूँ, इत्यादि 2. वर्तमानकाल का निर्देश करने के लिए धातु के साथ वर्तमाना विभक्ति के
प्रत्यय लगते हैं। 3. धातु तीन प्रकार के होते है-परस्मैपदी, आत्मनेपदी तथा उभयपदी । 4. परस्मैपदी धातुओं के साथ परस्मैपदी के प्रत्यय लगते हैं । पठ् + ति 1. वर्तमान काल-परस्मैपद के प्रत्यय
पुरुष एक वचन द्विवचन बहुवचन पहला मि
वस्
मस् दूसरा
थस् तीसरा
तस्
अन्ति 5. ति आदि प्रत्यय लगने पर धातु को 'अ'विकरण प्रत्यय लगता है |
जैसे पठ् + अ + ति = पठति 6. म् और व् से प्रारंभ होनेवाले प्रत्ययों के पहले अहो तो उसका आ हो जाता है पठ् +
अ + मि = पठ् + आ + मि = पठामि । 7. 'ति' आदि प्रत्यय जिसे लगे हो उसे 'पद' कहते हैं, जैसे-पठति । 8. पद के अंत में 'स्' हो तो उसका 'र्' हो जाता है जैसे पठतस् का
पठतर्. 9. पद के अंत में रहे 'र' के बाद विराम हो अथवा अघोष व्यंजन हो तो उसका विसर्ग
हो जाता है
जैसे-पठतस् = पठतः, नमतः पठतः । 10. अ के बाद अ या ए आए तो पूर्व के अ का लोप होता है, परंतु पद के
प्रारंभ में अ या ए आए तो पहले के अ का लोप नहीं होता है ।
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आओ संस्कृत सीखें
जैसे - पठ् + अ + अन्ति पठ् + अन्ति = पठन्ति
नम्
= पढ़ना
पट् पत् गिरना
=
रक्ष = रक्षण करना, वद् = बोलना
वस् = रहना
भण् = कहना, पढ़ना खाद्
= खाना
पठामि
पठसि
पठति
= नमस्कार करना
1.
नमामि
2. पठसि
3. पतसि
4. पठामि
5. नमति
6. पततः
7. रक्षसि
8. भणतः
वर्तमाना विभक्ति के रूप
पठावः
पठामः
पठथः पठथ
पठतः
पठन्ति
पाठ-2
परस्मैपदी धातु
संभालना
(2) निम्न लिखित संस्कृत वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद करो
25. खादामि
26. चरति
27. पतसि
28. वसामि
29. अटथः
9. वदति
10. नमतः
11. पठावः
12. चलन्ति
13. अटथ
दह = जलना, जलाना
अट् = भटकना, घूमना
अर्च् = पूजा करना, अर्चा करना चल्
= चलना
चर् = चरना, फिरना, आचरना, करना जीव् आजीविका चलाना, जीना
=
त्यज् = त्याग करना, छोड़ देना क्षर् = झरना, गिरना, टपकना
14. चरामः
15. नमन्ति
16. वसामः
17. रक्षामः
18. जीवावः
19. त्यजसि
20. क्षरन्ति
21. वदथ
22. अर्चतः
23. पठामः
24. त्यजामि
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आओ संस्कृत सीखें
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
15.
तुम नमस्कार करते हो ।
मैं गिरता हूँ ।
वह पढता है ।
तुम गिरते हो ।
मैं पढता हूँ ।
वे दोनों रहते हैं ।
तुम बोलते हो ।
हम दो बोलते हैं ।
वह रक्षण करता है
तुम दोनों गिरते हो ।
मैं खाता हूँ ।
वे
पूजा करते हैं ।
संस्कृत में अनुवाद करो :
16.
17.
18.
19.
20.
21.
22.
23.
24.
25.
26.
27.
28.
29.
वे बोलते हैं ।
हम चलते हैं ।
तुम घूमते हो ।
7
हम पढते हैं ।
तुम गिरते हो ।
वह चलता हैं ।
हम दोनो खाते हैं
हम दोनों गिरते हैं ।
तुम सब खाते हो ।
वे त्याग करते हैं |
तुम दोनों भटकते हो ।
वे दोनों पढते हैं ।
मैं
पूजा करता हूँ ।
वह जीता है ।
मैं रक्षण करता हूँ ।
तुम कहते हो ।
हम रहते हैं ।
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आओ संस्कृत सीखें
पाठ-3
सर्वनाम 1. सर्वनाम अर्थात् जो नाम सभी के लिए लागू पड़ते हैं ।
जैसे- कोई भी व्यक्ति स्वयं के लिए 'मैं' शब्द का प्रयोग कर सकता है । राकेश कहता है :- 'मैं' जाता हूँ | तो रमेश भी स्वयं के लिए कह सकता है - 'मैं' जाता हूँ । 'मैं' शब्द का प्रयोग हरेक व्यक्ति अपने लिए कर
सकता है अतः 'मैं' सर्वनाम है । 2. सर्वनाम पद
प्रथम पुरुष अहम् (मैं) आवाम् (हम दोनों) वयम् (हम सब) द्वितीय पुरुष त्वम् (तुम) युवाम् (तुम दोनों) यूयम् (तुम सब) तृतीय पुरुष सस् (सः) (वह) तौ (वे दोनों) ते (वे सब)
संधि नियम (1) स्वर और व्यंजन पास-पास में आए तो उनकी संधि होती है । जैसे
अहम् अटामि-अहमटामि । (2) पद के अंत में रहे 'म्' के बाद कोई व्यंजन आए तो 'म्' के बदले
पहले के अक्षर पर अनुस्वार हो जाता है । अथवा 'म्' के बदले बाद
रहे व्यंजन का स्व अनुनासिक हो जाता है । उदा. (1) त्वम् रक्षसि - त्वं रक्षसि ।
(2) त्वम् चरसि - त्वञ्चरसि । (3) पदान्त 'म्' के बाद कोई स्वर आए तो वह 'म्' बाद के स्वर में मिल
जाएगा- जैसे त्वम् अर्चसि-त्वमर्चसि । (4) पदान्त 'म्' के बाद विराम हो तो 'म्' ही रहता है जैसे पठसि त्वम्। (5) सस् के बाद विराम हो तो स् का र् और र् का विसर्ग हो जाता है।
उदा. स:। और सस् के बाद व्यंजन आए तो स् का लोप हो जाता है। उदा. स पठति ।
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आओ संस्कृत सीखें
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद करो 1. मैं नमस्कार करता हूँ | 2. हम बोलते हैं । 3. तुम पढ़ते हो ।
4. तू पूजा करता है । 5. तुम दोनों जीते हो।
6. हम दोनों त्याग करते हैं । निम्नलिखित वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद करो 1. स नमति । 2. ते रक्षन्ति । 3. तौ पठतः । 4. त्वम्पतसि । 5. जीवामः। 6. अहञ्चलामि |
पाठ-4| पहला गण (उपांत्य - अंत्य का गुण) 1. विकरण प्रत्यय 'अ' के पहले धातु के उपांत्य ह्रस्व नामि स्वर का गुण होता है | 2. क्र वर्ण का गुण अर्, इ वर्ण का गुण 'ए' तथा उ वर्ण का गुण 'ओ' होता
उदा. 1. वृष् + अ + ति
गुण होने पर - व् + अर् + ष् + अ + ति = वर्षति 2. जिम् + अ + ति
जेम् + अ + ति = जेमति 3. शुच् + अ + ति
शोच् + अ + ति = शोचति 3. विकरण प्रत्यय अ के पहले धातु के अंतिम ह्रस्व या दीर्घ नामि स्वर का गुण
होता है । उदा. जि + अ + ति
ज् + ए + अ + ति 4. ए ऐ ओ औ के बाद कोई भी स्वर आए तो उसके स्थान पर अय्, आय,
अव् तथा आव् होता है1. ज + ए + अ + ति
ज + अय् + अ + ति = जयति
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आओ संस्कृत सीखें
2.
भू + अ + ति
भ् + ओ + अ + ति
भ् + अव् + अ + ति = भवति
1. वृष् धातु के रूप
वर्षामि
वर्षसि
वर्षति
2. तृ धातु के रूप
तरामि
तरसि
तरति
क्रीड् क्रीडा करना,
खेलना
=
जप् = जाप करना, जपना जिम्
= खाना
निन्द् = निंदा करना
वृष्
शुच् = शोक करना = जय पाना, जीतना
जि
= बरसना
10
1. वे बरसते हैं ।
2. हम दोनों जाप करते हैं ।
3. हम खेलते हैं ।
4. तुम घूमते हो ।
5. हम चलते हैं ।
वर्षावः
वर्षथः
वर्षतः
तराव:
तरथः
तरतः
परस्मैपदी धातु
= तैरना
संस्कृत में अनुवाद करें
वर्षामः
वर्षथ
वर्षन्ति
=
धाव् भू = होना
सृ = जाना, हटना
स्मृ = स्मरण करना, याद करना क्षि = क्षय पाना, क्षीण होना
दौड़ना, भागना
8.
तरामः
तरथ
तरन्ति
6. तुम दोनों शोक करते हों ।
7. हम दोनों हैं ।
वे क्षय पाते हैं ।
9. तुम दूर हटते हो ।
10. वे दोनों खाना खाते हैं ।
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आओ संस्कृत सीखें
1. स वर्षति । 2. ते जेमन्ति । 3. क्रीडन्ति ।
4. युवां निन्दथः ।
5. अहं रक्षामि ।
चौथा गण
कुप् = कोप करना
= नाश होना
e
हिन्दी में अनुवाद करें
पाठ-5
चौथा व छठा गण
1. चौथे गण के धातुओं को य विकरण प्रत्यय लगता है ।
2. य विकरण प्रत्यय लगने पर चौथे गण के धातुओं को गुण नहीं होता है ।
उदा. नृत्
नृत्यामि
नृत्यसि
नृत्यति
नश्
नृत्
पुष् = पोषण करना,
नृत्यामः
नृत्यथ
नृत्यन्ति
3. छठे गण के धातुओं को अ विकरण प्रत्यय लगता है ।
4. छठे गण के धातुओं को अ विकरण प्रत्यय लगने पर गुण नहीं होता है ।
उदा. स्फुरामि
स्फुरसि
स्फुरति
=
क्रोध करना, गुस्से होना
क्रुध् तुष् = खुश होना, संतोष पाना
11
स्फुरावः
स्फुरथः
स्फुरतः
= नृत्य करना, नाचना
पोषना
6. त्वमसि ।
7. अहं जयामि ।
8. आवां स्मरावः ।
9. वयन्तरामः ।
10. त्वं धावसि ।
नृत्यावः
नृत्यथः
नृत्यतः
स्फुरामः
स्फुरथ
स्फुरन्ति
परस्मैपदी धातु
मिल् = मिलना
लिख्
सृज् = सृजन करना, बनाना
स्पृश् स्पर्श करना, छूना
स्फुट्
स्फुर् =
छठा गण
= लिखना
=
=
खिलना,
कंपित होना,
तूटना
फरकना
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आओ संस्कृत सीखें
112 मुह = मोहित होना
लुम् = लोभ करना लुट् = आलोटना
क्षुभ, = घबराना, क्षोभ पाना
संस्कृत में अनुवाद करें 1. वे लोभ करते हैं ।
8. मैं जीता हूँ। 2. हम दो मोहित होते हैं।
9. तुम लिखते हो । 3. तुम दोनों त्याग करते हो । 10. हम छूते हैं । 4. तुम क्रोध करते हो ।
11. हम खाते हैं । 5. वे दोनों भाग जाते हैं |
12. वे घबराते हैं । 6. हम नृत्य करते हैं ।
13. वह कँपता है । 7. वे दोनों मिलते हैं ।
14. तुम निंदा करते हो ।
हिन्दी में अनुवाद करें 1. तौ पुष्यतः ।
8. आवां नृत्यावः । 2. ते लुट्यन्ति ।
9. यूयं पठथ । 3. स वदति ।
10. युवां तरथः । 4. अहं तुष्यामि ।
11. ते स्फुटन्ति । 5. यूयं क्षुभ्यथ ।
12. स सृजति । 6. युवां कुप्यथः।
13. वयं लुट्यामः । 7. ते मिलन्ति ।
14. जयसि त्वम् । | पाठ-6
दसवाँ गण 1. दसवें गण के धातुओं को पहले अपना 'इ' प्रत्यय लगता है, फिर पहले
गण की तरह 'अ' विकरण प्रत्यय लगता है और गुण होता है | उदा. चिन्त् + इ = चिन्ति
चिन्ति + अ + ति गुण होने पर चिन्ते + अ + ति
चिन्तय् + अ + ति = चिन्तयति
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आओ संस्कृत सीखें
e
चिन्त् धातु के रूप
13
चिन्तयामि
चिन्तयावः
चिन्तयसि चिन्तयथः
चिन्तयति चिन्तयतः
-
2. दसवें गण का इ प्रत्यय लगने पर धातु के उपांत्य ह्रस्व नामि स्वर का गुण
होता है ।
चुर् + इ =
चोरि
चोरि + अ + ति
चोरे + अ + ति
चोरय् + अ + ति = चोरयति
वृद्धि ताडि + अ + ति ताडे + अ + ति
चोरयामि
चोरयावः
चोरयामः
चोरयसि
चोरयथः
चोरयथ
चोरयति
चोरयतः
चोरयन्ति
3. दसवें गण का 'इ' प्रत्यय लगने पर धातु के उपान्त्य अ तथा अन्त्य ह्रस्व या दीर्घ नामि स्वर की वृद्धि होती है ।
4. अ की वृद्धि आ, ॠवर्ण की वृद्धि आर्, इ वर्ण की वृद्धि ऐ तथा उ वर्ण
की वृद्धि औ होती है ।
5. उदा. तड् + इ + ति
चिन्तयामः
चिन्तयथ
चिन्तयन्ति
ताडय् + अ + ति = ताडयति
6. कथ्, गण्, रच्, स्पृह और मृग् तथा अन्य कुछ धातुओं को 'इ' प्रत्यय
लगने पर गुण तथा वृद्धि नहीं होती है ।
उदा. कथ् + इ + अ + ति = कथयति
गण् + इ + अ + ति = गणयति रच् + इ + अ + ति रचयति स्पृह् + इ + अ + ति = स्पृहयति
=
मृग् + इ + अ + ति
मृगयति
=
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आओ संस्कृत सीखें
चिन्त् = चिंतन करना, चिंता करना
दण्ड = दंड देना
पीड् = दुःख देना, पीड़ना पूज् = पूजा करना, पूजना वर्ण वर्णन करना, सान्त्व् = शांत करना, खुश करना चुर् = चोरी करना
रंगना
पाठ-7
परस्मैपदी दसवें गण के धातु
भूष् = शोभा करना
तड् = ताड़न करना, मारना पृ
= पार करना, पूर्ण करना
पल् = पालन करना, रक्षण करना भक्ष् खाना
= भक्षण करना,
कथ्
गण्
घुष् = घोषणा करना, आवाज करना रच् = रचना करना, तुल् = तोलना
=
1. तुम दोनों शोक करते हो ।
2. वे दोनों सांत्वना देते हैं ।
संस्कृत
3. मैं नाच करता हूँ । 4. तुम दोनों पूजा करते हो ।
5. हम वर्णन करते हैं । 6. तुम दोनों लिखते हो ।
7. तुम चोरी करते हो । 8. तुम दोनों शणगार करते हो ।
1. वयं चिन्तयामः ।
2. आवां स्पृशाव: T: 1 3. त्वं दण्डयसि ।
4. लुभ्यन्ति । 5. वर्षन्ति ।
6. युवां पीडयथः ।
7. ते चोरयन्ति ।
8. अहं घोषयामि ।
14
७
= कथा करना, कहना
= गणना करना,
स्पृह = स्पृहा करना
में अनुवाद करो
· गिनती करना,
चाहना
9. तुम तोलते हो ।
10. मैं तोलता हूँ ।
11. वे चोरी करते हैं ।
12. हम दोनों घोषणा करते हैं ।
13. तुम पोषण करते हो ।
14. हम रचना करते हैं । 15. तुम हटते हो ।
हिन्दी में अनुवाद करो
9. आवां तोलयावः ।
10. त्वं भूषयसि । 11. युवां चोरयथः ।
12. यूयं घोषयथ ।
13. वयं सान्त्वयामः |
14. अहं जयामि ।
15. ते पूजयन्ति ।
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आओ संस्कृत सीखें
15
पाठ-8
धातुओं के आदेश 1. विकरण प्रत्यय लगने पर कुछ धातुओं के आदेश होते हैं। धातुओं के आदेश ( ) में दिए गए हैं।
पहला गण (परस्मैपदी) गम् (गच्छ) = जाना, गमन करना दृश् (पश्य) = देखना स्था (तिष्ठ) = खड़ा रहना, स्थिर रहना दा (यच्छ) = देना, दान करना पा (पिब्) = पीना
चौथा गण परस्मैपदी मद् (माद्) = मस्त होना, प्रमाद करना, भूल करना शम् (शाम्) = शांत होना
श्रम् (श्राम) = थक जाना
छठा गण परस्मैपदी इष् (इच्छ) = इच्छा करना, इच्छाला छाटा र FIL
दूसरा गण - (अस् = होना) के रूप अस्मि स्वः
स्मः
स्थ अस्ति स्तः
सन्ति संस्कृत में अनुवाद करो 1. तुम भक्षण करते हो । 7. वह शांत होता है । 2. तुम सब मारते हो । 8. हम खडे है । 3. मैं पूरा करता हूँ। 9. वे दोनों भूल करते हैं । 4. हम पालन करते हैं । 10. वे देखते हैं । 5. हम दो स्पृहा करते हैं । 11. तुम सब पीते हो । 6. मैं तैरता हूँ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. यूयं भक्षयथ ।
7. अहं गच्छामि । 2. त्वं कथयसि ।
8. त्वं श्राम्यसि ।
असि
स्थ
:
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16
आओ संस्कृत सीखें 3. ते गणयन्ति । 4. युवां रचयथः । 5. अहं स्पृहयामि । 6. वयं लुट्यामः ।
9. युवामिच्छथः । 10. आवां पृच्छावः । 11. त्वय्यच्छसि ।
पुरुष
एक वचन
|
पाठ-9 वर्तमाना विभक्ति आत्मनेपद के प्रत्यय
| द्विवचन । बहुवचन प्रथम पुरुष
महे द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष
अन्ते 1. आत्मनेपदी धातुओं को आत्मनेपद के प्रत्यय लगते हैं । वन्द्+अ+ए-वन्दे 2. उभय पदी धातुओं को परस्मैपदी और आत्मनेपदी के प्रत्यय लगते है । 3. अ वर्ण के बाद इ वर्ण, उ वर्ण, ऋ वर्ण और लु वर्ण हो तो क्रमशः वे दोनों मिलकर ए, ओ, अर् और अल् हो जाता है ।
उदा. वन्द् + अ + इते = वन्देते
वन्दे वन्दसे
वन्दते आत्मनेपदी धातु वन्द् = वंदन करना (गण-1)
वृध् = बढना (गण-1) संस्कृत में अनुवाद करो 1. हम बढते हैं । 2. तुम दोनों पकाते हो । 3. हम दोनों वंदन करते हैं । 4. वे खडे रहते हैं ।
वन्दावहे वन्दामहे वन्देथे वन्दध्वे वन्देते वन्दन्ते
उभयपदी धातु . पच् = पकाना (गण-1)
ह्र = हरण करना, ले लेना (गण-1) हिन्दी में अनुवाद करो 1. त्वं हरसि । 2. वयं हरामहे । 3. आवां पचावहे । 4. अहं पचामि ।
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आओ संस्कृत सीखें
पाठ-10
ओस् ओस्
चार
|
सु
नाम पद
विभक्ति के प्रत्यय विभक्ति एक वचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा
| औ
अस् द्वितीया अम् (म्)
अस् तृतीया" आ (इन) भ्याम्
भिस् (ऐस) चतुर्थी ए (य) भ्याम्
भ्यस् पंचमी अस् (आत्) भ्याम्
भ्यस् षष्ठी अस् (स्य)
आम् (नाम्) सप्तमी 1. विभक्ति के प्रत्यय यहाँ मूल स्वरूप में दिए गए हैं, परंतु कई नामों के
साथ उन प्रत्ययों का आदेश अथवा लोप भी होता है | उसका निर्देश उन
उन स्थानों में किया जाएगा । 2. 'स्' आदि विभक्ति के प्रत्यय जिसे लगे हों उसे पद कहते हैं
उदा. बाल + स् = बालः यहां स् का र् और र् का विसर्ग हुआ है ।
अकारांत पंलिंग नाम
प्रथमा विभक्ति स् । औ । अस्
बालः | बालौ । बाला: 3. अ वर्ण के बाद ए तथा ऐ आए तो वे दोनों मिलकर 'ऐ' तथा ओ व औ
आए तो वे दोनों मिलकर 'औ' होता है ।
उदा. बाल + औ = बालौ । 4. प्रथमा विभक्ति का अस् प्रत्यय लगने पर पूर्व के अ का आ होता है ।
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18
:
आओ संस्कृत सीखें उदा. बाल + अस्
बाला + अस् = बालास् 5. समान स्वर के बाद स्व समान स्वर आए तो वे दोनों मिलकर स्व
दीर्घस्वर होता है ।
उदा. बालाः । 6. वाक्य में जो नाम क्रियापद के साथ सीधा संबंध रखता है, वह मुख्य नाम
कहलाता है. और शेष गौण नाम कहलाते हैं । 7. मुख्य नाम को प्रथमा विभक्ति होती है । जैसे-बालः पठति । बालौ पठतः । बालाः पठन्ति ।
___ अकारांत पुंलिंग नाम आचार्य = धर्मगुरु, आचार्य बाल = बालक कूर्म = कछुआ
रतिलाल = उस नाम का व्यक्ति नृप = राजा
मोदक = लड्डू चन्द्र = चंद्रमा
मयूर = मोर __संस्कृत में अनुवाद करो 1. तुम सब कहाँ जाते हो ? 9. दो कछुए चलते हैं। 2. हम यहाँ खड़े हैं ।
10. चंद्र क्षीण होता है । 3. तुम चोरी करते हो ।
11. मैं यहाँ हूँ | 4. मैं चोरी नहीं करता हूँ । 12. बालक थक जाते हैं । 5. तुम कब जाते हो ?
13. दो आचार्य कहाँ जाते हैं ? 6. मैं अभी जाता हूँ।
14. राजा पालन करते हैं । 7. वे सुबह पढते हैं ।
15. तुम सब कहाँ रहते हो? 8. सुरेन्द्र पूजा करता है ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. क्व गच्छसि ?
8. रतिलालः पृच्छति । 2. इह तिष्ठामि ।
9. आचार्यः कथयति । 3. अहं प्रातः पठामि ।
10. मोदकाः सन्ति । 4. स प्रातर्न पठति ।
11. आवामिह तिष्ठावः ।
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219
आओ संस्कृत सीखें 5. त्वं बहुशः खादसि । 6. स कदा गच्छति ? 7. इदानीं गच्छति ।
12. तौ बालौन पठतः । 13. बालाः पठन्ति | 14. मयूरौ नृत्यतः । 15. युवां क्व गच्छथः ?
पाठ-11
सन्धि-नियम 1. स् के र् के पहले अहो और फिर 'अ' आए तो र् का उ हो जाता है । उदा. बालस् = बालर् + अटति
बालउ + अटति = बालो अटति 2. पदांत में रहे ए या ओ के बाद अ आए तो अ का लोप हो जाता है और
उसके स्थान पर ऽ अवग्रह चिह्न रखा जाता है । जैसे बालो अटति
बालोऽटति 3. स् के र् के पहले अ हो और उसके बाद घोषवान् व्यंजन आए तो र् का
उ हो जाता है । उदा. बालउ + जयति = बालो जयति परंतु-प्रातरटति, प्रातर्गच्छति-यहाँ र् का उ नहीं होगा, क्योंकि प्रातर् अव्यय में स् का र् नहीं है । पदान्त र् के बाद श् ष् या स् आए तो र् के स्थान पर क्रमशः श् ष् या स् विकल्प से होता है । उदा. बालश्शाम्यति = बालः शाम्यति
बालस्सरति = बालः सरति
___प्रातस्स्मरति = प्रातः स्मरति 6. पदान्त र् के बाद च् छ, टु, ट् और त् थ् आए तो र् के स्थान पर क्रमशः
श् ष् और स् नित्य होता है । उदा. बालश्चरति बालस्तिष्ठति प्रातश्चलति
5.
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आओ संस्कृत सीखें।
220 7. वाक्य बोलते समय वक्ता जहाँ विराम लेता है, वहाँ संधि नहीं होती है, और जहां विराम
नहीं लेता है वहाँ दो शब्दों के बीच संधि होती है। उदा. बालः, अटति - बालोऽटति ।
बालः, जयति = बालोजयति । संधि अलग करने पर 'बाल: अटति' ही बोला जाएगा, क्योंकि संधि
अलग करने पर विराम लेकर ही बोला जाता है । 8. स् के र् के पहले आ हो और उसके बाद घोषवान् व्यंजन आए तो 'र्'
का लोप हो जाता है ।
उदा. बाला गच्छन्ति । 9. स् के र के पहले अ वर्ण हो और उसके बाद स्वर आए तो 'र' का लोप
हो जाता है और उसके बाद पास में आए स्वरों की संधि नहीं होती है । उदा. बाल इच्छामि ।
बाला इच्छन्ति ।
बाला अटन्ति 10. पदान्त 'व्' और 'य' के पहले अ वर्ण हो और उसके बाद कोई स्वर
आए तो व् और य् का विकल्प से लोप होता है और उसके बाद पास में रहे स्वरों की संधि नहीं होती है । उदा. 1. बालौ इच्छतः = बालाव् इच्छतः ।
बाला इच्छतः । लोप न हो तो - बालाविच्छतः । 2. बालौ अटतः । बाला अटतः, बालावटतः ।
पाठ-12
अव्यय 1. अव्यय नाम को लगे हुए विभक्ति के प्रत्ययों का लोप हो जाता है ।
उदा. बहुशस् + स् = बहुशस् 2. विभक्ति के प्रत्ययों का लोप होने के बाद भी वह पद कहलाता है ।
उदा. बहुशस् - बहुशर् - बहुशः । 3. जिसके रूप में कभी परिवर्तन नहीं होता है, उसे अव्यय कहते हैं ।
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आओ संस्कृत सीखें
जन = : मनुष्य हिरण
=
मृग
श्रमण = साधु
समुद्र
= समुद्र
इदानीम् = अभी यहाँ
इह =
कदा = कब
कहाँ
क्व = इति यत्र = जहाँ
झटिति = जल्दी, शीघ्र
= इस प्रकार
संस्कृत
1. राजा रक्षण करता है । 2. वसंतलाल सोचता है । 3. कछुआ आगे बढ़ता 4. धर्म रक्षण करता है । 5. इस प्रकार आचार्य कहते हैं ।
6. बालक थकता है ।
7. राजा खुश होता है । 8. चंद्र बढ़ता है ।
9. मनुष्य तैरते हैं । 10. रतिलाल यहाँ है । 11. तू सुबह भटकता है
।
1. धर्मो जयति ।
2. बालो धावति ।
3. श्रमणौ गच्छतः।
4. क्व गच्छतः ? 5. यत्राचार्यस्तिष्ठति ।
6. तत्र गच्छतः ।
21
अकारांत पुंलिंग नाम जीव = जीव, आत्मा
देव = देवता,
धार्मिक
प्रधान
अव्यय
=
न =
=
महाराजा
धर्म करनेवाला
मुख्य
नहीं
प्रातर् = प्रातःकाल
बहुशस् = बहुत बार
अत्र = यहाँ
तत्र = वहाँ ओम् = हाँ
में अनुवाद करो
12. हिरण दौडते हैं ।
13. मनुष्य चाहता है । 14. जीव जीते हैं ।
15. बालक मोहित होते हैं । 16. देवदत्त पकाता है ।
17. राजा रक्षण करते हैं । 18. वे दो लोग कहाँ जाते हैं ?
19. महाराजा वंदन करते हैं ।
20. बालक बहुतबार खाते हैं ।
21.
यहाँ
लड्डू नहीं है ?
हिन्दी में अनुवाद करो
7. प्रातरहं स्मरामि ।
8. मोदकोsस्ति ।
9. नृपाश्शाम्यन्ति । 10. मृगाश्चरन्ति । 11. प्रातर्बालाः पठन्ति ।
12. समुद्रः क्षुभ्यति ।
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आओ संस्कृत सीखें 13. धार्मिका जयन्ति । 14. श्रमणा गच्छन्ति । 15. धार्मिका वर्धन्ते । 16. मयूरा नृत्यन्ति । 17. भोगिलालो हरते । 18. बालाः स्पृहयन्ति ।
1 22 19. त्वं नृपोऽसि ?
ओम्, अहं नृपोऽस्मि । 20. प्रधानाश्चिन्तयन्ति ।
अत्र कान्तिलालोऽस्ति ? 21. नात्र कान्तिलालः । 22. देवो झटिति गच्छति ।
पाठ-13 द्वितीया विभक्ति औ
अस् बालम्
बालौ । बालान् 1. द्वितीया विभक्ति के अस् प्रत्यय के अ सहित पहले का समान स्वर दीर्घ
होता है, उस समय पुंलिंग नाम के अस् प्रत्यय के 'स्' का 'न्' होता है |
बाल + अस् = बालास् - बालान् । 2. द्वितीया विभक्ति कर्म को होती है । 3. कर्ता क्रिया द्वारा जिसे प्राप्त करने की इच्छा करे, उसे कर्म कहते हैंउदा. रामो ग्रामं गच्छति ।
जाने की क्रिया द्वारा राम क्या चाहता हैं ?
गाँव ! अतः गाँव-ग्राम यह कर्म कहलाता है । 4. जो सर्जन किया जाता है, वह कर्म कहलाता है । उदा. स हारं रचयति ।
वह क्या बनाता है ?
हार ! अतः हार कर्म है । 5. क्रिया का फल जिसमें हो, उसे कर्म कहते हैंउदा. स चौरं ताडयति - वह चोर को मारता है ।
ताडन क्रिया का फल किसमें है ? चोर में, अतः चोर कर्म है ।
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आओ संस्कृत सीखें
236. क्रिया को करनेवाला कर्ता कहलाता है, उदा. आचार्यो धर्म कथयति ।
धर्म कहने की क्रिया कौन करते हैं ?
आचार्य ! अतः आचार्य कर्ता हैं । 7. पदान्त 'न्' के बाद च् या छ, ट् या ट् तथा त् या थ् हो और उसके बाद
अधुट् वर्ण हो तो न् के स्थान पर क्रमशः श्, ष और स् होता है और उसके पहले के स्वर पर अनुस्वार रखा जाता है । जैसे- स बिडालान् ताडयति । : स बिडालांस्ताडयति । बिडालाँस्ताडयति। यहां पदांत न के बाद में त है और त के बाद में स्वर है, वह धुट नहीं है, अतः न् का स् हो गया और पूर्व के स्वर पर अनुस्वार लगा ।
पाठ-14 अकारांत नपुंसक नाम
प्रथमा द्वितीया विभक्ति प्रथमा । द्वितीया
कमलम् । कमले । कमलानि कमलम्
कमले कमलानि 1. नपुंसक नाम में प्रथमा-द्वितीया विभक्ति एक समान होती है । 2. प्रथमा-द्वितीया बहुवचन का 'इ' प्रत्यय लगने पर स्वरांत नपुंसक नाम के
बाद न् जोडा जाता है । 3. नपुंसक लिंग में प्रथमा-द्वितीया बहुवचन का 'इ' प्रत्यय घुट् कहलाता है | 4. घुट् प्रत्यय पर 'न् ' के पहले का स्वर दीर्घ होता है ।
कमल + न + इ - कमलानि 5. एक ही पद में र् ष् और ऋ वर्ण के बाद रहे न् का ण् हो जाता है
उदा. पूर्णः
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आओ संस्कृत सीखें
124 6. एक ही पद में या ऋ वर्ण और न् के बीच में ल्, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, श्तथा स्को छोड अन्य कोई वर्ण हो तो भी न् का ण् हो जाता है उदा. मित्राणि, पुष्पाणि ।
परंतु काष्ठानि में न का ण नहीं होगा । 7. द्वि वचन के अंत में ई, ऊ और ए के बाद स्वर आए तो संधि नहीं
होती है । उदा. फले इच्छति ।
फले अत्र । पचेते अन्नम् ।
अकारांत पुंलिंग नाम । ग्राम = गाँव
पुत्र = पुत्र चौर = चोर
बिडाल = बिलाव, बिल्ला जनक = पिता
ब्राह्मण = ब्राह्मण धर्म = धर्म, स्वभाव
वीर = वीर, महावीर, शूरवीर
अङ्ग = अंग अन्न = अन्न उदर = पेट उद्यान = बगीचा कमल = कमल काष्ठ = लकडा गृह = घर जल = पानी
अकारांत नपंसक नाम
धन = धन नगर = शहर पुस्तक = पुस्तक, किताब फल = फल मित्र = मित्र मुख = मुंह वन = जंगल शरीर = देह
संस्कृत में अनुवाद करो : 1. बालक चंद्र को देखता है । 4. सुरेशचंद्र रमेशचंद्र को चाहता है । 2. मनुष्य देवों को पूजता है । 5. पिता पुत्र की चिंता करते हैं । 3. राजा दो गाँव संभालता है | 6. वह ब्राह्मण दो लड्डु खाता है ।
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आओ संस्कृत सीखें 7. तुम धन चाहते हो।
-13. हम अन्न खाते हैं। 8. तुम मुँह देखते हो । 14. यहाँ दो पुस्तकें हैं । 9. वन जलता है ।
15. राजा नगर का रक्षण करता है । 10. फल गिरते हैं ।
16. मैं मित्रों को चाहता हूँ । 11. पानी झरता है ।
17. बालक घर जाते हैं । 12. मित्र धन देता है । 18. रतिलाल मित्रों को पूछता है ।
हिन्दी अनुवाद करो 1. जना धर्ममिच्छन्ति ।
2. बालो मोदकं जेमति । 3. नमामि वीरम् ।
4. आचार्य शिष्या वन्दन्ते । 5. जनकः पुत्रान्सान्त्वयति । 6. स बिडालांस्ताडयति । 7. अङ्गं स्फुरति ।
8. अत्र जलमस्ति । 9. काष्ठं दहति ।
10. फले पततः । 11. कमलानि स्फुटन्ति ।
12. शरीरं नश्यति । 13. श्रमणा उद्यानं गच्छन्ति । 14. जना धनमिच्छन्ति । 15. देवदत्तः पुस्तकं लिखति । 16. वयं धनं रक्षामः । 17. स उदरं स्पृशति ।
18. मित्राणि न त्यजामः ।
पाठ-15
विशेषण और सर्वनाम 1. नाम के अर्थ में विशेषता पैदा करे उसे विशेषण कहते हैं । 2. विशेषण जिसके अर्थ में विशेषता करता है, उसे विशेष्य कहते हैं । 3. विशेषण को लिंग, वचन और विभक्ति के प्रत्यय विशेष्य के अनुसार होते हैं जैसे
शोभनः पुरुषः । शोभन विशेषण व पुरुष विशेष्य है ।
शोभनं कमलम् । शोभनं पुरुष स्पृहयति । शोभनं कमलं स्पृहयति । 4. शोभन और पुरुष एक ही हैं, अतः पुरुष विशेष्य के अनुसार शोभन को
लिंग, विभक्ति व प्रत्यय आदि लगते हैं ।
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आओ संस्कृत सीखें
नाम के बदले में जिसका प्रयोग किया जाता है उसे सर्वनाम कहते हैं
जैसे 'अहं गच्छामि' |
हर व्यक्ति अपने लिए 'अहं' का प्रयोग कर सकता है अतः अहं सर्वनाम
है ।
सर्वनाम का प्रयोग विशेषण के रूप में भी हो सकता है |
उदा. स बालो न पठति ।
5.
6.
प्रथमा
द्वितीया
प्रथमा
द्वितीया
प्रथमा
त्वम्
द्वितीया त्वाम्
प्रथमा
द्वितीया
अहम्
माम्
अस्मद् = मैं
युष्मद् = तुम
तद् = वह
सर्वनाम की दो विभक्तियाँ
अस्मद्
आवाम्
आवाम्
सः
तम्
सर्वनाम
26
युष्मद्
युवाम्
युवाम्
तद् (पुंलिंग)
तौ
तौ
तद् (नपुंसक लिंग)
तद्, तत् ते
तद्, तत्
वयम्
अस्मान्
यूयम्
युष्मान्
तान्
तानि
तानि
विशेषण
=
कुशल कृष्ण = काला
पूज्य = पूजनीय, पूजने योग्य
होशियार
प्रभूत = ज्यादा
शोभन = सुंदर
श्वेत = सफेद
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आओ संस्कृत सीखें
संस्कृत में अनुवाद करो 1. श्रमण वन जाते हैं ।
8. मैं अभी पुस्तक लिखता हूँ | 2. मनुष्य अनाज खाते हैं । 9. हम दोनों पानी पीते हैं । 3. राजा चोरों को मारता है । 10. चोर धन का हरण करते हैं । 4. शिष्य आचार्य को वंदन करता है | 11. मैं उन मित्रों को याद करता हूँ | 5. ब्राह्मण पकाते हैं ।
12. वे हमें गिनते नहीं हैं । 6. यहाँ वे पुस्तकें नहीं हैं । 13. रतिलाल आचार्य को पूछता है । 7. आचार्य पूज्य है ।
14. कुशल मनुष्य को मैं चाहता हूँ |
हिन्दी में अनुवाद करो 1. श्वेतोऽश्चो धावति ।
2. सोऽर्चति देवम् । 3. तानहं नेच्छामि ।
4. स तं कथयति । 5. तद्वनं दहति ।
6. स मां भणति । 7. कमले इह स्तः ।
8. मृगाश्चरन्ति । 9. कूर्मस्सरति ।
10. स धर्मं चरति । 11. प्रभूतं जलमस्ति ।
12. इदानीं वयं युष्माँस्त्यजामः। 13. नृपोऽस्मांस्त्यजति ।
14. आवामत्र न वसावः । 15. यूयं ता इच्छथावां न ।
16. फले अहं पश्यामि । 17. महिषः कृष्णो भवति ।
18. स इह न तिष्ठति । 19. तत्र न गच्छति सः ।
20. अहं धर्मं न त्यजामि | 21. तौ गृहे पश्यामि ।
पाठ-16 तृतीया-चतुर्थी विभक्ति प्रत्यय
भ्याम्
इन
तृतीया : चतुर्थी : पुंलिंग :
य
भ्याम्
बालेन
बालाय
बालाभ्याम् बालाभ्याम् कमलाभ्याम् कमलाभ्याम्
भ्यस् बालैः बालेभ्यः कमलैः कमलेभ्यः
नपुंसक लिंग :
कमलेन
कमलाय
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आओ संस्कृत सीखें
928 1. प्रथमा, द्वितीया और संबोधन को छोड़कर अकारांत नपुंसक नामों के प्रत्यय और रूप
अकारांत पुंलिंग नाम के समान ही होते हैं | 2. भ्याम् प्रत्यय लगने पर पहले के अ का आ होता है ।
बाल + भ्याम् = बालाभ्याम् । बाल + ऐस् = बालैः ।
तृतीया विभक्ति करण को होती हैं। 4. जिसके द्वारा क्रिया की जाती है, उसे करण कहते हैं ।
उदा. पादाभ्यां गच्छति - दो पाँवों से चलता है । चलने की क्रिया में पाँव
साधन होने से उसे करण कहते हैं । 5. ‘साथ में' यह अर्थ दिखाई देता हो तब उसके संबंधवाले नाम को तृतीया
विभक्ति होती है । उदा. पुत्रो जनकेन सह गच्छति ।
पुत्रो जनकेन गच्छति ।
सह अव्यय के बिना भी तृतीया होती है । 6. चतुर्थी विभक्ति का 'य' प्रत्यय लगने पर पूर्व के अ का आ होता है ।
उदा. बाल + य = बाला + य = बालाय । 7. 'भ' से प्रारंभ होनेवाले बहुवचन के प्रत्यय लगने पर पूर्व के अ का ए
होता है | बालेभ्यः । धिक्, अन्तरेण आदि अव्यय के साथ जुडे नाम को द्वितीया विभक्ति होती है, उदा. धिग् जाल्मम् । लुच्चे को धिक्कार हो । अन्तरेण धर्मं सुखं न भवति । धर्म बिना सुख
नहीं होता है । 9. अंग-स्वभाव आदि के विशेषण, अंग-स्वभाववाले व्यक्ति की प्रसिद्धि के
लिए हों तो अंग स्वभाव आदि को तृतीया विभक्ति होती है । उदा. 1. देवदत्तस्य पादः खञ्जः । देवदत्तः पादेन खञ्जः ।
2. नृपतेः स्वभाव उदारः । नृपतिः स्वभावेन उदारः । 10. संप्रदान अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है । 11. जिसे प्रदान किया जाता है, उसे संप्रदान कहते हैं
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आओ संस्कृत सीखें उदा. याचकेभ्यो धनं यच्छति |---
याचकों को धन देता है, अतः याचकों के लिए
संप्रदान अर्थ में चतुर्थी विभक्ति हुई । 12. कर्म या क्रिया द्वारा जिसके साथ श्रद्धा, उपकार, कीर्ति, दुःख नाश आदि इच्छाओं से जो विशेष संबंध किया जाता है, उसे संप्रदान कहते हैं ।
शिष्याय धर्मं कथयति । देवेभ्यो नमति । 13. 'के लिए' अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है .
उदा. कुण्डलाय हिरण्यम् । कुंडल के लिए सोना ।। 14. नमस् और स्वस्ति अव्यय के साथ जुड़े नाम को चतुर्थी विभक्ति होती है |
नमो देवेभ्यः । स्वस्ति सङ्घाय ।
तृतीया चतुर्थी
तृतीया
चतुर्थी
पाठ-17 सर्वनाम की विभक्ति
अस्मद् मया आवाभ्याम् अस्माभिः मह्यम् आवाभ्याम् अस्मभ्यम्
युष्मद् त्वया युवाभ्याम् युष्माभिः तुभ्यम् युवाभ्याम् युष्मभ्यम् तद् (पुं + नपुं लिंग) तेन ताभ्याम् तस्मै ताभ्याम् तेभ्यः पुंलिंग नाम
छात्र = विद्यार्थी मद = अहंकार याचक = भिखारी, भिक्षुक सङ्घ = समुदाय
तृतीया चतुर्थी
अलङ्कार = अलंकार दण्ड = लकडी पाद = पैर रथ = रथ
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आओ संस्कृत सीखें
दान = दान हिरण्य = सोना
चक्र = चक्र
1. स्पृह धातु का कर्म विकल्प से
उदा. पुष्पाणि स्पृहयति । पुष्पेभ्यः स्पृहयति ।
2.
नपुंसक नाम सुवर्ण = सोना
सुख = सुख
दुःख = दुःख संप्रदान होता है ।
30
क्रोध, द्रोह, ईर्ष्या-असूया अर्थवाले धातु के योग में जिसके प्रति क्रोध होता हो, उसे संप्रदान-चतुर्थी विभक्ति होती है ।
उदा. मैत्राय क्रुध्यति । मैत्राय कुप्यति । मैत्राय दुह्यति ।
3. उपसर्ग पूर्वक क्रुध् -द्रुह धातु हो तो जिसके प्रति क्रोध हो उसे संप्रदानचतुर्थी विभक्ति न होकर कर्म - द्वितीया विभक्ति होती है । उदा. मैत्रमभिक्रुध्यति ।
4. रुचि अर्थ वाले धातु के योग में जिसे रुचि हो उसे चतुर्थी विभक्ति होती है । उदा. जिनदत्ताय रोचते धर्मः ।
संस्कृत में अनुवाद करो
1. मनुष्य आभूषण द्वारा शरीर सजाते हैं ।
2.
धर्म से धन बढ़ता है ।
3.
रथ दो पहियों से चलता है ।
4.
जीव पानी द्वारा जीते हैं ।
5. मैं तुम दोनों के साथ तैरता हूँ ।
6.
7.
8.
हम दो, दो विद्यार्थियों को दो पुस्तकें देते हैं ।
मैं दो पुत्रों के साथ तुमको बार बार नमस्कार करता हूँ ।
धर्म सुख के लिए होता है, दुःख के लिए नहीं ।
हिन्दी में अनुवाद करो
1. जना दुःखेन मुह्यन्ति ।
2. वृद्धो दण्डेन चलति । 3. मित्रेण सह रतिलालो वसति । 4. अहं ताभ्यां सह नगरं गच्छामि ।
5. बाला मोदकैस्तुष्यन्ति ।
6. आवाभ्यां सह वीरं पूजयथ । 7. स त्वया सह पठति मया सह न । 8. श्रीचन्द्रो युष्माभिः सह जेमति ।
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आओ संस्कृत सीखें 9. नृपा ब्राह्मणेभ्यः सुवर्णं यच्छन्ति - 12. धनं दानाय न मदाय | 10. ताभ्यां शिष्याभ्यां धर्मं कथयति । 13. स्वस्ति श्रमणेभ्यः । 11. वयं बालेभ्यो मोदकान्यच्छामः । 14. तुभ्यं नमः ।
पाठ-18 पंचमी-षष्ठी-सप्तमी
प्रत्यय
| पंचमी | आत् | षष्ठी | स्य | सप्तमी | इ
। भ्याम्
ओस् | ओस्
। भ्यस् । | नाम् । सु।
पुंलिंग
| पंचमी | बालात् । बालाभ्याम् | बालेभ्यः । | षष्ठी | बालस्य । बालयोः । बालानाम | सप्तमी | बाले । बालयो: । बालेषु ।
नपुंसक लिंग | पंचमी | कमलात । कमलाभ्याम् | कमलेभ्यः | षष्ठी - कमलस्य | कमलयोः | कमलानाम्
सप्तमी | कमले कमलयोः | कमलेषु 1. पद के अंत में रहे धुट व्यंजन के स्थान पर उसके स्थान के वर्ग का
तीसरा व्यंजन होता है उदा. बालात्-बालाद् । 2. शिट् सिवाय के धुट व्यंजन के बाद अघोष व्यंजन हो तो उस धुट्
व्यंजन का उसी के वर्ग का पहला व्यंजन होता है ।
उदा. रथाद् पतति । रथात् पतति । 3. शिट् सिवाय का धुट् व्यंजन विराम में हो तो उसके वर्ग का पहला व्यंजन
विकल्प से होता है । उदा. पतति रथात् । पतति रथाद् ।
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आओ संस्कृत सीखें -
वर्ग के पाँचवें अक्षर पर आनेवाले, पदान्त में रहे वर्ग के तीसरे व्यंजन का, , उसके वर्ग
का अनुनासिक व्यंजन विकल्प से होता है । उदा. चौरो ग्रामान्नश्यति ।
चौरो ग्रामाद् नश्यति ।
5.
पाँचवीं विभक्ति अपादान को होती है ।
6. जिससे अलग होना हो, उसे अपादान कहते हैं ।
उदा. वृक्षात् पर्णं पतति ।
4.
7.
8.
9.
पत्ता वृक्ष से अलग होता है ।
'विना' अव्यय से जुड़े नाम से द्वितीया, तृतीया और पंचमी विभक्ति होती है ।
धर्मं विना, धर्मेण विना, धर्माद् विना सुखं न भवति ।
'नाम्' प्रत्यय पर पूर्व का समान स्वर दीर्घ होता है ।
बाल + नाम्
बालानाम् ।
=
32
'ओस्' प्रत्यय तथा 'स्' से प्रारंभ होनेवाले बहु वचन के प्रत्यय पर पूर्व
के 'अ' का 'ए' होता है ।
उदा. बाल + ओस्
बाले + ओस् - बालयोः ।
बाल + सु = बाले + सु
10. तुल्य अर्थवाले नाम के साथ जुड़े नाम को तृतीया या षष्ठी विभक्ति होती है।
उदा. अयं नृपो दाने कर्णेन तुल्यः कर्णेन समः ।
अयं नृपो दाने कर्णस्य तुल्यः कर्णस्य समः ।।
11. नामी, अंतस्था और क वर्ग के किसी भी व्यंजन के बाद रहे 'स्' का 'ष्' होता है, परंतु वह स् पद के अंदर होना चाहिए (प्रारंभ में व अंत में नहीं) तथा किसी भी नियम से बना होना चाहिए ।
बाले + सु बाले + षु = बालेषु
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आओ संस्कृत सीखें
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12. एक नाम का दूसरे नाम के साथ संबंध हो तो गौण नाम को षष्ठी विभक्ति होती है ।
वृक्षस्य पर्णम् ।
13. अधिकरण अर्थ में 'सप्तमी' विभक्ति लगती है । वस्तु के आधार अर्थात् रहने के स्थान को अधिकरण कहते हैं ।
उदा. घटे जलम् । जल का आधार घट है ।
गृहे तिष्ठति । रहने का आधार घर है ।
तिलेषु तैलम् । तैल का आधार तिल है ।
१४. अस्व (स्व सिवाय) के स्वर पर पूर्व के इ वर्ण, उ वर्ण, ऋ वर्ण और लृ वर्ण का क्रमशः य्, व्, र्, ल् होता है ।
उदा. अस्ति-अत्र = अस्त्यत्र, ग्रामेषु अटन्ति = ग्रामेष्वन्ति ।
सर्वनाम - अस्मद्
पंचमी मद्
षष्ठी
मम
सप्तमी मयि
पंचमी.
षष्टी
सप्तमी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
प्रासाद = महल
बंदर
वानर =
. वृक्ष = झाड़
त्वद
तव
त्वयि
तस्मात्
तस्य
तस्मिन्
आवाभ्याम्
आवयोः
आवयोः
युष्मद्
युवाभ्याम्
युवयोः
युवयोः
तद्
ताभ्याम्
तयोः
तयोः
पुंलिंग नाम
मानव = : मनुष्य मार्ग = रास्ता
तिल = तिल
अस्मद्
अस्माकम्
अस्मासु
युष्मद
युष्माकम्
युष्मासु
तेभ्यः
तेषाम्
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आओ संस्कृत सीखें -
देह = शरीर
पर्वत
= पहाड़
पर्ण = पत्ता
पाप = पाप
पुण्य = पुण्य
कंकण = कड़ चंदन चंदन, ज्ञान = बोध
=
सुखड़
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हस्त = हाथ सर्प = साँप
नपुंसक नाम
तृण : = घास नयन = आँख नेत्र = आँख, चक्षु
भूषण = अलंकार शिखर शिखर
शील = सदाचार
1. बालः प्रासादात्पतति । 2. धर्मं विना सुखं नास्ति । 3. वृक्षेभ्यः पर्णानि क्षरन्ति । 4. चौरास्त्वद् धनं हरन्ते ।
संस्कृत में अनुवाद करो
1. श्री महावीर अंगों पर से अलंकारों को छोड़ते हैं ।
2. अब वह घर से कहाँ जाता है ?
3. धन बिना मनुष्य मोहित होता हैं ।
4. वह तुम्हारे पास से धन चाहता है ।
5. राजा चोरों से हमारा रक्षण करता है ।
=
6. तुम्हारे बगीचे के उन दो वृक्षों पर बंदर फल खाते हैं ।
7. मैं अपनी आँखों द्वारा देखता हूँ, उसकी आँखों द्वारा नहीं ।
8. उन पर्वतों के शिखरों पर घास जलती है ।
9. उस घर में हमारे पिता का धन है ।
10. तुम्हारे गाँवों में बहुतसा अनाज है । 11. उस मार्ग में साँप जाता है ।
हिन्दी में अनुवाद करो
5. सङ्घो नगरान्नगरं गच्छति । 6. स वानरस्तस्मादुद्यानाद्धावति । 7. आवाभ्यां पापानि नश्यन्ति । 8. पुण्याद्विना सुखं न भवति ।
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आओ संस्कृत सीखें
35 ५७
9. धर्मस्य फलमिच्छन्ति धर्मं नेच्छन्ति मानवाः ।
10. हस्तस्य भूषणं दानं न कङ्कणम् ।
11. देहस्य भूषणं शीलं नालङ्काराः 12. श्रमणा मम गृहे वसन्ति ।
पुंलिंग
नपुंसक लिंग
4.
पाठ-19
संबोधन-प्रत्यय
0
0
हे बाल !
पुंलिंग नपुंसक हे कमल !
13. त्वयि ज्ञानं वर्धते मयि न ।
14. पापान्यस्मासु न सन्ति ।
15. चन्दनं न वने वने ।
औ
ई
उदा. पर्णं च फलं च पततः ।
पर्णं पुष्पं फलं च पतन्ति ।
पर्णं वा फलं वा पतति । पर्णं फलं वा पततिं ।
हे बालौ !
हे कमले !
1. संबोधन अर्थात् किसी को अपने अभिमुख करना, बुलाना ।
2.
उदा. हे बाल ! त्वं क्व गच्छसि ? संबोधन अर्थ में प्रथमा विभक्ति होती है ।
अस्
इ
हे बालाः ।
हे कमलानि !
3. दो आदि पदों को जोड़ते समय 'च' अव्यय और अलग करते समय 'वा' अव्यय का प्रयोग करते हैं । 'च' और 'वा' का प्रयोग हर बार अथवा अंतिम पद के बाद एक बार कर सकते है ।
दो वाक्यों को जोड़ते समय 'च' और अलग करते समय 'वा' अंतिम वाक्य के पहले पद के बाद रखा जाता है ।
उदा. शान्तिलालो गच्छति रतिलालश्च तिष्ठति ।
शांतिलालो गच्छति रतिलालो वा गच्छति ।
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36
आओ संस्कृत सीखें
अस्मद् अर्थात् मैं पहला पुरुष है | युष्मद् अर्थात् तुम दूसरा पुरुष है | इन दो शब्दों को छोड़कर अन्य कोई भी शब्द या व्यक्ति, तृतीय पुरुष
कहलाता है । 6. वाक्य में तीनों पुरुषों का एक साथ में प्रयोग हुआ हो तो प्रथम पुरुष की
प्रधानता रहती है और वह न हो तो दूसरे पुरुष की प्रधानता रहती है और उसी के अनुसार क्रियापद का प्रयोग होता है । उदा. त्वं चाहं च पचावः ।
स चाहं च पचावः । स च त्वं च पचथः ।
अकारांत पुंलिंग नाम के प्रत्यय प्रथमा । स्
अस् द्वितीया
औ
अस् तृतीया
भ्याम् ऐस् चतुर्थी य
भ्याम
भ्यस ___ पंचमी । आत् । भ्याम् भ्यस् षष्ठी | स्य
नाम् सप्तमी
ओस् संबोधन 0
अस् अकारांत 'बाल' के रूप बाल: बालौ
बाला: बालम बालौ,
बालान् बालेन बालाभ्याम् । बालैः बालाय बालाभ्याम् बालेभ्यः बालात् बालाभ्याम् बालेभ्यः बालस्य बालयोः ।
बालानाम् बाले बालयो: बालेषु | संबोधन | बाल ! | बालौ ! | बाला:!
इन
ओस
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आओ संस्कृत सीखें
अकारांत नपुंसक 'कमल' के रूप | 1. कमलम् कमले कमलानि ।
कमलम् कमले कमलानि
कमलेन कमलाभ्याम् कमलैः ___4. कमलाय कमलाभ्याम् कमलेभ्यः कमलात्
कमलाभ्याम् कमलेभ्यः कमलस्य कमलयोः कमलानाम्
कमले कमलयोः कमलेषु संबोधन
हे कमल! | कमले ! कमलानि !
सर्वनाम के रूप अस्मद्
1.
अहम
आवाम
2.
माम्
आवाम्
मया
मह्यम् | मद | मम
मयि
5.
वयम् अस्मान् अस्माभिः
अस्मभ्यम् । अस्मद
अस्माकम् अस्मासु
आवाभ्याम्
आवाभ्याम् | आवाभ्याम | आवयोः
आवयोः
6.
7.
।
।
| त्वम्
त्वाम् .
त्वया .
युष्मद् | युवाम्
युवाम् युवाभ्याम् युवाभ्याम् युवाभ्याम् युवयोः युवयोः
तुभ्यम् त्वद्
| यूयम्
युष्मान् युष्माभिः युष्मभ्यम् युष्मद् युष्माकम् युष्मासु
5.
6.
तव
| 7.
| त्वयि
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...
. 38
|
|
तेभ्यः
आओ संस्कृत सीखें
तद् (पुंलिंग) | 1. | सः । तौ ते. | 2. तम् । तौ
तान् | 3. ... तेन
ताभ्याम् । तैः तस्मै
ताभ्याम् तस्मात् ताभ्याम तेभ्यः तस्य
तयोः । तेषाम् तस्मिन् । तयोः तेषु .
तद् (नपुंसक) 1. । तद, तत् | ते । तानि । तद्, तत् | ते
तानि (शेष रूप पुंलिंग की तरह)
पुंलिंग नाम कासार = तालाब
बाण = बाण किंकर = नौकर
भार = वजन कृषीवल = किसान
योध = योद्धा देवालय = मंदिर
विहग = पक्षी बलीवर्द = बैल
समर = युद्ध भिक्षुक = भिखारी
नपुंसक नाम आकाश = आकाश
सत्य = सच पद्म = कमल
संस्कृत = संस्कृत पुष्प = फूल
क्षेत्र = खेत युद्ध = युद्ध
अव्यय एव = अवश्य
तथा = उस प्रकार कथम् = कैसे
. यथा = जैसे कुतस् = कहाँ से
सुष्टु = अच्छा चिरम् = दीर्घकाल तक
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आओ संस्कृत सीखें
डी = उडना रम् = खेलना
वृत् = होना
सेव् = सेवा करना
नी = ले जाना याच् = मांगना
आत्मनेपदी धातु (गण 1 )
भाष् = बोलना
लभ्
शुभ्
स्वाद्
मुच् (मुञ्च) = छोड़ना, रखना
39
= प्राप्त करना, पाना
शोभना
= चखना, स्वाद लेना
=
उभयपदी (1 गण)
जन् (जा) = जन्म लेना, पैदा होना
राज् = शोभना, राज्य करना
वह = वहन करना, बहना
छठा गण (उभयपदी)
सिच् (सिञ्च) = सिंचन करना
चौथा गण - आत्मनेपदी
युध् = युद्ध करना
संस्कृत में अनुवाद करो
1. युद्ध में योद्धा लड़ते हैं और बाणों को छोड़ते हैं
2. हे राजा ! देवालयों के बिना तुम्हारे गाँव शोभा नहीं देते हैं ।
3. मैं पुष्पों द्वारा श्री महावीर की पूजा करता हूँ ।
4. हे विनोद ! तेरे बगीचे में पुष्प हैं या नहीं ?
5. नौकर भार वहन करते हैं और अन्न प्राप्त करते हैं ।
6. रमेश ! तुम और रतिलाल कहाँ जाते हो ?
7. प्रातः काल में पक्षी आकाश में उड़ते हैं ।
8. रतिलाल अथवा शांतिलाल बोलता है । 9. राजा भिखारी को धान्य देते हैं ।
10. तालाब में कमल हैं ।
11. याचक धन मांगते हैं ।
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आओ संस्कृत सीखें
हिन्दी में अनुवाद करो
1. हे विनोद ! त्वमेव संस्कृतं सुष्ठु भाषसे । 2. भोगिलाल ! वयमुद्याने चिरं रमामहे ! 3. रमेश ! त्वं दिनेशश्च सत्यं न भाषेथे । 4. अहं च रमेशश्च ग्रामं गच्छावः ।
40
5. रे रे जना ! यूयं कथं धर्मं न सेवध्वे ।
6. अत्र पर्वतस्य शिखरे जलं कुतः ?
7. अरे मित्र ! कथं त्वं मम गृहात्तव धनं न नयसि ?
8. लालचन्द्र ! मोहनलालश्च कान्तिलालश्च क्व वसतः ?
9. “अरे किङ्कराः ! कदा यूयं वृक्षान्सिञ्चध्वे ? सिञ्चथ न वा” इति नृपः
पृच्छति ।
10. यथाकाशं चन्द्रं विना न शोभते तथा कमलेन विना न कासारः । 11. ब्राह्मणा मोदकान्खादन्ते ।
12. आकाशे चन्द्रो राजते !
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
संबोधन
पाठ - 20
आकारान्त (आप् प्रत्ययान्त) स्त्री लिंग नाम
प्रत्यय
0
म्
आ
यै
यास्
यास्
याम्
स्
औ
औ
भ्याम्
भ्याम्
भ्याम्
ओस्
ओस्
औ
अस्
अस्
भिस्
भ्यस्
भ्यस्
नाम्
सु
अस्
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आओ संस्कृत सीखें
441
1.
माला के रूप माला । माले | मालाम् । माले
| मालाः | मालाः मालाभिः
मालया
मालाभ्याम
मालायै
मालाभ्याम
मालाभ्यः
मालायाः
मालाभ्याम्
मालाभ्यः
मालायाः मालयोः मालानाम् 7. | मालायाम | मालयोः | मालास
संबोधन | माले! माले! माला:! 1. आकारांत स्त्रीलिंग नाम के 'आ' का 'औ' प्रत्यय के साथ ए होता है ।
माला + औ = माले 2. आ तथा ओस् प्रत्यय पर आकारांत स्त्रीलिंग नाम के आ का ए होता है। उदा. 1. माला + आ
माले + आ
मालय + आ = मालया 2. माला + ओस्
माले + ओस्
मालय् + ओस् = मालयोः 3. संबोधन में आकारांत स्त्रीलिंग के आ का स् प्रत्यय के साथ ए होता है ।
उदा. हे माले ! 4. अकारांत विशेषण नामों को स्त्रीलिंग में आ (आप) प्रत्यय लगता है । शोभन + आ (आप) = शोभना माला
तद् के स्त्रीलिंग रूप | 1. सा ते . ताः | 2. ताम् । ते
ता: | 3. तया । ताभ्याम् । ताभिः
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आओ संस्कृत सीखें
d
तस्यै
तस्याः
| ताभ्याम् - ताभ्याम्
__ तयोः । तयोः
। ताभ्यः । ताभ्यः । तासाम् तासु
तस्याः
तस्याम्
आकारांत (आप् प्रत्ययांत) स्त्रीलिंग अयोध्या = उस नाम की नगरी बाला = कन्या कन्या = पुत्री
मथुरा = नगरी का नाम कला = कला
महिला = स्त्री क्रीडा = खेल
माला = माला गंगा = गंगा नदी
यमुना = नदी का नाम जिह्वा = जीभ
लता = बेल दया = दया
सरला = सरला नाम की लड़की . पाठशाला = पाठशाला
क्षमा = माफी
संस्कृत में अनुवाद करो 1. वीर का भूषण क्षमा है और धर्म का भूषण दया है | 2. मेरी दो कन्याएँ खेलकूद और सभी कलाओं में होशियार हैं । 3. सीता फूलों की अच्छी माला बनाती है । 4. यहाँ गंगा के साथ यमुना मिलती है । 5. मैं माला द्वारा दो देवों को पूजता हूँ । 6. राम अयोध्या के राजा हैं । 7. सर्प को दो जीभ होती हैं । 8. उस पाठशाला में बहुतसी कन्याएँ पढ़ती हैं ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. तव कन्ये अयोध्याया मार्गं पृच्छतः । 2. यमुनाया जलं कृष्णं, गङ्गायाः श्वेतम् । 3. पूज्येभ्य आचार्येभ्यस्ता बाला नमन्ति । 4. मथुरायां शोभने पाठशाले वर्तेते ।
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.
43
आओ संस्कृत सीखें 5. तयोः पाठशालयोश्छात्राः पठन्ति । 6. यथा लतया वृक्षस्तथा क्षमया श्रमणः शोभते । 7. ता बाला मालायै पुष्पाणि नयन्ति । 8. गङ्गायां सरला मञ्जुला सीता च क्रीडन्ति । 9. हे सीते ! तव कन्ये देवमर्चतः । 10. हे महिलाः ! यूयं कथं गृहं न रक्षथ ? 11. चिन्ता शरीरं दहति, क्षमा च पुष्यति । 12. सा बाला यमुनां गच्छति । 13. क्षमा वीरस्य भूषणम् ।
पाठ-21
उपसर्ग
प्र आदि अव्यय प्र, अनु, दुस् नि अधि अति परा अव दुर् प्रति अपि अभि अप निस् वि परि सु
सम् निर् आ उप उद् 1. प्र आदि अव्यय धातु के पहले जुड़कर धातु का अलग-अलग अर्थ पैदा
करते हैं, तब वे उपसर्ग कहलाते हैं । 2. कोई उपसर्ग धातु के मूल अर्थ से अलग ही अर्थ बताता है । जैसे :- स गच्छति - वह जाता है ।
स आगच्छति - वह आता है । स विशति - वह प्रवेश करता है ।
स उपविशति - वह बैठता है । 3. कोई उपसर्ग धातु के अर्थ का ही अनुसरण करता है और धातु के साथ
अवश्य जुड़ रहता है । स अनुरुध्यते - वह चाहता है | 4. कोई उपसर्ग धातु के अर्थ में बढ़ोतरी करता है ।
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आओ संस्कृत सीखें
उदा. स ईक्षते - वह देखता है ।
44
स निरीक्षते - वह सूक्ष्मता से देखता है ।
5. कोई उपसर्ग धातु के साथ सिर्फ जुड़ा रहता है परंतु धातु के अर्थ में कुछ भी परिवर्तन नहीं करता है ।
9.
उदा. स विशति - वह प्रवेश करता है ।
स प्रविशति - वह प्रवेश करता है ।
6. कुछ उपसर्ग धातु के पद में परिवर्तन लाते हैं ।
उदा. जयति = जय पाता है । पराजयते = पराजय पाता है तिष्ठति = ठहरता है । प्रतिष्ठते = प्रस्थान करता है ।
रमते = क्रीड़ा करता है । विरमति = विराम पाता है ।
7. हेतु नाम को तृतीया विभक्ति होती है ।
8. हेतु अर्थात् कार्य करने में प्रयोजन रूप ।
उदा. धनेन कुलम् - कुल की ख्याति में धन सहायक होने से धन को तृतीया विभक्ति लगती है ।
अन्नेन वसति तृतीया विभक्ति होगी ।
स्त्रीलिंग नाम सिवाय के गुणवाचक हेतु नाम को तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है ।
अन्न प्राप्ति के प्रयोजन से रहता है, अतः अन्न को
उदा. धर्मात् सुखं । धर्मेण सुखम् । ज्ञानाद् मुक्तः । ज्ञानेन मुक्तः ।
10. अमुक वस्तु लेकर उसके बदले में दूसरी वस्तु देनी हो तो, जो वस्तु लेनी हो तो प्रति-बदले अव्यय के योग में उसे पंचमी विभक्ति होती है ।
उदा. तिलेभ्यः प्रति माषान् प्रयच्छति ।
तिल के बदले में उड़द देता है ।
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आओ संस्कृत सीखें
अनु + भू = अनुभव करना,
आ + गम् = आना ( गण 1,
ई
अद्य = आज (अव्यय) अध्ययन = पढ़ना (नपुं)
उद्यम = प्रयत्न (पुं.)
कारण = हेतु (नपुं.)
कार्य = काम (नपुं.)
= देखना ( गण 1 परस्मैपदी)
निर् + ईक्ष् = सूक्ष्मता से देखना, निरीक्षण करना (गण 1, आत्मनेपदी) परा + जि = हार जाना, पराजित होना ( गण 1, आत्मनेपदी) परि + ह्र = त्याग करना (गण 1, उभयपदी ) प्र + भू = उत्पन्न होना, समर्थ होना ( गण 1, प्र + दा (यच्छ ) = देना ( गण 1, परस्मैपदी )
परस्मैपदी)
प्र + स्था ( तिष्ठ) = प्रयाण करना, जाना (गण 1, आत्मनेपदी ) वि + रम् = विराम पाना, रुक जाना ( गण 1, परस्मैपदी)
आत्मनेपदी)
वि + ह = विहार करना, जाना ( गण 1, उभयपदी) वि + जि = विजय पाना, जीतना ( गण 1, सिध् = सिद्ध होना (गण 4, परस्मैपदी) प्र + अर्थ = प्रार्थना करना ( गण 10, आत्मनेपदी)
अनु + रुध् = इच्छा करना, मानना ( गण 4, आत्मनेपदी ) प्र + जन् (जा) = उत्पन्न होना ( गण 4, आत्मनेपदी )
शब्दार्थ
कुल = कुल (नपुं.)
गोधूम = गेंहू (पुं.)
45
डु = चावल (पुं)
७
धातु एवं उपसर्ग
जानना ( गण - 1, परस्मैपदी) परस्मैपदी)
धनिक:
मनोरथ
= धनवान् (विशेषण)
= इच्छा (पुं)
माष = उड़द (पुं.)
विद्या = विद्या (स्त्री)
सिंह = सिंह (पुं)
सुप्त = सोया हुआ (विशेषण)
सौराष्ट्र = सौराष्ट्र देश (पुं.) हि = निश्चित रूप से
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1463
संस्कृत में अनुवाद करो 1. याचक धनवान की प्रार्थना करते हैं। 2. मोहनलाल पढ़ने से कंटालता है । 3. चिमनलाल गेहूँ के बदले चावल देता है । 4. रतिलाल पाप से रुकता है । 5. आज राजा प्रयाण करता है | 6. शिष्य आचार्य को मानते हैं । 7. कारण बिना कार्य नहीं होता है । 8. देव विजय पाता है ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ।। 2. लोभात्क्रोधः प्रभवति, लोभात्कामः प्रजायते ।
लोभान्मोहश्च नाशश्च, लोभः पापस्य कारणम् ।। 3. आचार्याः सौराष्ट्रेषु विहरन्ति । 6. भोगिलालो ग्रामादागच्छति । 4. सुखं धर्माद् दुःखं पापात् । 7. सज्जनाः पापं परिहरन्ति । 5. देवदत्तो दुःखमनुभवति । 8. विद्या विनयेन शोभते ।
पाठ-22
कर्तरि-कर्मणि और भावे प्रयोग 1. जिस धातु को कर्म न हो उसे अकर्मक और जिस धातु के कर्म हो उस धातु को
सकर्मक कहते हैं । उदा. चैत्रस्तिष्ठति । (अकर्मक)
देवदत्तस्तण्डुलान् पचति । (सकर्मक) 2. क्रिया का फल और क्रिया एक में हो तो उस धातु को अकर्मक कहते हैं
और अलग अलग हो तो उस धातु को सकर्मक कहते हैं । उदा. 1. चैत्रस्तिष्ठति - चैत्र खड़ा है । यहाँ खड़े रहने की क्रिया और उसका
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आओ संस्कृत सीखें
3. जिस धातु के दो कर्म होते हैं, वह धातु द्विकर्मक कहलाता है । जिसे लक्ष्य में रखकर क्रिया की जाय उसे मुख्य कर्म और मुख्य कर्म को छोड़ क्रिया का प्रभाव जिस पर पड़ता हो, वह गौण कर्म कहलाता है ।
47
e
फल (नहीं जाना) दोनों चैत्र में हैं, अतः धातु अकर्मक है ।
2. देवदत्तस्तण्डुलान् पचति देवदत्त चावल पकाता है यहाँ पकाने की क्रिया देवदत्त में है और पकने की क्रिया चावल में है, अतः धातु सकर्मक है ।
6.
9.
उदा.
1. याचका नृपं धनं याचन्तेः याचक राजा के पास धन मांगते हैं । 2. गोपो अजां ग्रामं नयतिः गोवाल बकरी को गाँव ले जाता है ।
4. अर्थ बदलने पर कभी सकर्मक धातु भी अकर्मक हो जाता है और अकर्मक धातु भी सकर्मक बन जाता है ।
उदा. किंकरो भारं वहति नौकर भार को वहन करता है । (सकर्मक धातु) नदी वहति नदी बहती है (अकर्मक धातु)
5. कर्म न रखा जाय तो सकर्मक धातु भी अकर्मक हो जाता है ।
उदा.
चैत्रोऽन्नं पचति (सकर्मक) । चैत्रः पचति (अकर्मक) ।
इन दो वाक्यों में धन और अजा मुख्य कर्म हैं और नृप और ग्राम गौण कर्म हैं ।
धातु सकर्मक हो तो कर्मणि प्रयोग होता है और अकर्मक हो तो भावे प्रयोग होता है ।
7. कर्मणि एवं भावे प्रयोग में धातु को आत्मनेपदी के प्रत्यय लगते हैं ।
8.
कर्मणि एवं भावे प्रयोग में आत्मनेपदी के प्रत्यय लगाते समय 'य' प्रत्यय लगाया जाता है ।
ते खाद्यते ।
=
खाद् + य + क्षुभ् + य + ते = क्षुभ्यते ।
कर्मणि एवं भावे प्रयोग में य प्रत्यय लगाते समय दसवें गण के इ प्रत्यय का लोप होता है, परंतु धातु में हुई गुण या वृद्धि कायम रहती है ।
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आओ संस्कृत सीखें
उदा. चोर्यते, ताड्यते। 10. कर्ता को तृतीया विभक्ति होती है |
उदा. बालेन मोदकः खाद्यते । .. . समुद्रेण क्षुभ्यते ।
लभ के कर्मणि रूप लभ्ये
लभ्यावहे लभ्यसे
लभ्येथे लभ्यते
लभ्येते
लभ्यामहे लभ्यध्वे लभ्यन्ते
दृश् दृश्यावहे
दृश्ये
दृश्येथे
दृश्यसे दृश्यते
दृश्यामहे दृश्यध्वे दृश्यन्ते
दृश्येते
|
11. कर्तरि प्रयोग में कर्ता मुख्य होता है । कर्ता जिस पुरुष और वचन में होता
है, उसके अनुसार धातु को प्रत्यय लगते हैं अर्थात् प्रत्यय से कर्ता का ख्याल आ जाता है, अतः कर्ता को नाम के अर्थ में प्रथमा होती है और कर्म को द्वितीया विभक्ति होती है । उदा. 1. बालो मोदको खादति ।
2. अहं मोदकान्खादामि ।
3. समुद्रः क्षुभ्यति । 12. कर्मणि प्रयोग में कर्म मुख्य होता है, अतः कर्म जिस पुरुष या वचन में
होता है, उस पुरुष या वचन का प्रत्यय धातु को लगता है । अतः कर्म को द्वितीया विभक्ति न होकर नाम के अर्थ में प्रथमा होती है और कर्ता को तृतीया विभक्ति होती है । उदा. त्वया मौदको खाद्यते ।
तेनाऽहं दृश्ये । 13. भावे प्रयोग में क्रिया मुख्य होती है अतः क्रिया के अनुसार तृतीय पुरुष एक
वचन का ही प्रत्यय धातु को लगता है, अतः प्रत्यय द्वारा कर्ता अभिहित
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आओ संस्कृत सीखें
नहीं होता है, अतः कर्ता को तृतीया विभक्ति होती है । उदा. समुद्रैः क्षुभ्यते । मया गम्यते ।
शब्दार्थ अलभ्य = प्राप्त न हो ऐसा (विशेषण) निशा = रात्रि (स्त्री) क्वचित् = कहीं, कभी (अव्यय) मैत्र = उस नाम का पुरुष तृष्णा = आशा (स्त्रीलिंग)
रण = युद्ध (न.) श्रावक = श्रावक (पुं.)
श्रद्धा = विश्वास (स्त्री)
धातुएँ काश् = प्रकाशित होना (गण 1, आत्मनेपदी) दिश् = बताना, दान देना (गण 6, उभयपदी) उप + दिश् = उपदेश देना आ + दिश् = आदेश देना अभि + भू = तिरस्कार करना (गण-1, परस्मैपदी)
कर्तरि प्रयोग के कर्मणि प्रयोग कर्तरि
कर्मणि स मां पश्यति ।
तेनाऽहं दृश्ये । स आवां पश्यति ।
तेनाऽऽवां दृश्यावहे । अहं युवां पश्यामि ।
मया युवां दृश्येथे । | अहं त्वां पश्यामि ।
मया त्वं दृश्यसे । कर्तरि
भावे प्रयोग समुद्राः क्षुभ्यन्ति ।
समुद्रेण क्षुभ्यते । अहं गच्छामि ।
मया गम्यते । युवां गच्छथः ।
युवाभ्यां गम्यते । Note : भावे प्रयोग में कर्ता बदलता है, परंतु क्रियापद तीसरा पुरुष एक वचन
में ही रहता है ।
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आओ संस्कृत सीखें
संस्कृत में अनुवाद करो
1. श्रावकों द्वारा पुष्पों द्वारा श्रद्धा से श्री महावीर पूजे जाते हैं ।
2. ब्राह्मण द्वारा लड्डू खाए जाते हैं । ..
3. राजा के पुरुषों द्वारा चोर मारे जाते हैं ।
4. तुम्हारे द्वारा मैं कहा जाता हूँ ।
5. मेरे द्वारा पुस्तक लिखी जाती है ।
6. रसिक द्वारा पाप से रुका जाता है ।
50
7. मेरे द्वारा आप पूजे जाते हैं ।
8. शिष्यों द्वारा आचार्य वंदन किए जाते है ।
9. रसोइए द्वारा चावल पकाए जाते हैं ।
10. तुम्हारे द्वारा पाप में नहीं गिरा जाता है ।
11. हम दो द्वारा तुम दो दिखाई देते हो । 12. रतिलाल घर से वन में जाता है ।
हिन्दी में अनुवाद करो
1. रणे वीरैर्युध्यते बाणाश्च मुच्यन्ते । 2. सरलया पुष्पाणां माला सृज्यते ।
3. निशायां चन्द्रेण प्रकाश्यते ।
4. आचार्यै धर्म उपदिश्यते ।
5. जनास्तृष्णाभिरभिभूयन्ते ।
6. देवदत्तेन सुखमनुभूयते ।
7. नालभ्यं लभ्यते क्वचित् ।
8. नृपेण वयमादिश्यामहे ।
9. मयाद्य ग्रामो गम्यते ।
10. मित्रैर्यूयं त्यज्यध्वे ।
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आओ संस्कृत सीखें
51
पाठ-23
पुरुष
महि
'थास्
ध्वम्
ह्यस्तन भूत काल
परस्मैपदी प्रत्यय पुरुष
| एकवचन | द्विवचन | बहुवचन । प्रथम पुरुष अम् । व
म | द्वितीय पुरुष स्त म् त । तृतीय पुरुष । त्
ताम् । अन् । . आत्मनेपदी के प्रत्यय
एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष
वहि द्वितीय पुरुष
इथाम् । तृतीय पुरुष ।
त
इताम् । अन्त । 1. आज सिवाय के भूतकाल को बताने के लिए धातु को शस्तनी विभक्ति के
प्रत्यय लगते हैं । 2. ह्यस्तनी विभक्ति के प्रत्यय लगाते समय धातु के पहले 'अ' लगाया
जाता है। उदा. जि + त्
अ + जि + अ + त् अ+ जे + अ + त
अ + जय + अ + त् = अजयत् उपसर्ग सहित धातु हो तो उपसर्ग के बाद और धातु के पहले 'अ' लगाया जाता है । उदा. प्र + विश् + अ + त्.
प्र + अ + विश् + अ + त् = प्राविशत् 3. जिस धातु के प्रारंभ में स्वर हो तो धातु के पहले 'अ' न रखकर धातु के
पहले स्वर की वृद्धि की जाती है |
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आओ संस्कृत सीखें उदा. इष (इच्छ)
इच्छ + अ + त् . ऐच्छ + अ + त् = ऐच्छत् 4. सम्मान देने के अर्थ में एक वचन हो तो भी बहुवचन का प्रयोग होता है । उदा. आचार्यः कथयति के बदले आचार्याः कथयन्ति प्रयोग करते हैं ।
संधि-नियम 5. ह्रस्व स्वर के बाद पद के अंत में रहा ङ्, ण् और न् स्वर पर हो तो द्वित्व
Double हो जाता है । तस्मिन् + उद्याने बालाः क्रीडन्ति ।
तस्मिन्नुद्याने बालाः क्रीडन्ति । 6. त वर्ग जब श् या च वर्ग के साथ जुडता हो तब उस त वर्ग के स्थान पर
च वर्ग रखा जाता है । अर्थात् त् थ् द् ध् न् के स्थान पर
च छ ज झ ञ् रखा जाता है । उदा. अरक्षत् शीलम् = अरक्षच्शीलम् ।
नृपान् जयति = नृपाञ्जयति ।
आगच्छद् जनः = आगच्छज्जनः । 7. त वर्ग जब ए या ट वर्ग के साथ जुडता है तब उस त वर्ग के स्थान पर
ट वर्ग रखा जाता है । उदा. उद् डयते = उड्डयते ।
अपश्यन् डिम्भम् = अपश्यण्डिम्भम् । 8. पद के अंत में रहे त वर्ग के बाद ल आए तो त वर्ग का ल हो जाता है
और न् का अनुनासिक लॅ हो जाता है | उदा. 1. वृक्षाद् लता पतति वृक्षाल्लता पतति ।
2. वृक्षान् लता आरोहन्ति वृक्षाल्लँता आरोहन्ति । 9. पद के अंत में रहे प्रथम अक्षर के बाद श् आए और 'श्' के बाद में धुट्
सिवाय का वर्ण हो तो श का छ हो जाता है ।
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आओ संस्कृत सीखें
5453 उदा. अरक्षत् शीलम् ।
अरक्षच्छीलम् । अरक्षच्शीलम् ।
परस्मैपदी रूप
जि = जय पाना (गण - 1) अजयम 'अजयाव
अजयाम अजयः अजयतम्
अजयत अजयत् अजयताम्
अजयन् नृत् = नाच करना (गण - 4) | अनृत्यम् । अनृत्याव । अनृत्याम | अनृत्यः
अनृत्यतम् । अनृत्यत अनृत्यत् अनृत्यताम्
अनृत्यन् सम् + ऋ = समृद्धहोना (गण-4) समाय॑म् । समााव । समााम समायः समाय॑तम् । समाऱ्यात समाय॑त् समाय॑ताम् समाऱ्यान्
इष् (इच्छ) इच्छा करना (गण-6) | ऐच्छम् ऐच्छाव
ऐच्छाम ऐच्छ: | ऐच्छतम्
ऐच्छत ऐच्छत् | ऐच्छताम् ऐच्छन्
चुर् = चोरी करना (गण - 10 परस्मैपदी) अचोरयम् । अचोरयाव । अचोरयाम अचोरयः । अचोरयतम् । अचोरयत अचोरयत् । अचोरयताम् अचोरयन्
अस् = होना (गण-2) आसम् आस्व
आस्म आसी: आस्तम्
आस्त आसीत् आस्ताम्
आसन्
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आओ संस्कृत सीखें
अभाषे
अभाषथाः
अभाषत
अभाष्ये
अभाष्यथाः
अभाष्यत
आ + रुह्
भाष् = बोलना (गण 1 आत्मनेपदी)
अभाषावहि
अभाषेथाम्
अभाषेताम्
54
अभाष्यावहि
अभाष्येथाम्
अभाष्येताम्
धातु-अर्थ
ऋध् : . = बढना (गण 4, परस्मैपदी) सम् + ऋध् = आबाद होना,
समृद्ध होना ( गण 4, परस्मैपदी)
कर्मणि प्रयोग
कुमारपाल = कुमारपाल - राजा (पुं.) दिवस दिन (पुं.) धनपाल = धनपाल कवि
=
मुद् = खुश होना (गण 1, आत्मनेपदी) वि + रच् = रचना करना, बनाना (गण 10 परस्मैपदी)
= चढ़ना ( गण 1, परस्मैपदी) नि + पत् = नीचे गिरना, बनाना
( गण 1 परस्मैपदी)
आ + रुह् = चढ़ना
आ + नी = लाना (गण 1, उभयपदी ) उद् + डी
= उड़ना (गण 1, आत्मनेपदी)
नरक = नरक (पुं.)
= राजा (पुं.)
पंडित = पंडित (पुं.) भूपाल भोज = भोजराजा (पुं.) युधिष्ठिर = युधिष्ठिर (पुं.) शत्रुंजय = शत्रुंजय महातीर्थ (पुं.) सिद्धराज = सिद्धराज (पुं.)
स्तेन = चोर (पुं.)
स्वर्ग = देवलोक (पुं.)
शब्दार्थ
अभाषामहि
अभाषध्वम्
अभाषन्त
अभाष्यामहि
अभाष्यध्वम्
अभाष्यन्त
डिम्भ: = बालक (पुं.) दुर्योधन = दुर्योधन (पुं.) पांडव = पांडव (पुं.)
माकंद = आम (पुं.)
= कुआ (पुं.)
कूप : जिन = जिनेश्वर देव (पुं.)
लक्ष्मण = लक्ष्मण (पुं.)
व्यापार = व्यापार (पुं.) धारा = धारा नगरी (स्त्री)
सभा = सभा (स्त्री)
आर्या = साध्वी (स्त्री)
आज्ञा = आज्ञा (स्त्री)
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ॐ
आओ संस्कृत सीखें चंदना = चंदनबाला (स्त्री)
द्यूत = जुआ (नपुं.) .. . लज्जा = मर्यादा (स्त्री) . राज्य = राज्य (नपुं) ललना = युवा स्त्री (स्त्री)
अपि = भी (अव्यय) वनमाला = वनमाला (स्त्री) तदा = तभी (अव्यय) अज्ञान = ज्ञान का अभाव (नपुं.) पुरा = पहले (अव्यय) कारागृह = कैदखाना (नपुं.) असंख्येय = संख्या रहित (विशे.) व्याकरण = व्याकरण (नपुं.) ह्यस = गत दिन (अव्यय)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. कल विद्यार्थी पाठशाला में आए थे। 2. भोजराजा पंडितों को बहुतसा धन देता था । 3. उसकी सभा में बहुत से पंडित थे । 4. धनपाल कवि धारा में रहा था । 5. मैं अज्ञान से धन के लोभ में गिरा । 6. उन दिनों में मैं सुख का अनुभव करता था । 7. वह राजा धन द्वारा समृद्ध हुआ .। 8. पहले यहाँ नगर था । 9. राम के दो पुत्र थे । 10. देवदत्त ! तुम गाँव गये थे ? 11. आचार्य द्वारा धर्म का उपदेश दिया गया । 12. उसने मुझे देखा नहीं । 13. कल आकाश में चंद्र प्रकाशित नहीं हुआ था । 14. फलों के भार से वृक्ष झुके | 15. मैंने शत्रुजय के मंदिर देखे हैं । 16. प्रातः काल में आकाश में पक्षी उड़ते हैं । 17. भिखारी राजा के पास अन्न मांगते थे । 18. देवदत्त ने व्यापार से धन प्राप्त किया । 19. उसके द्वारा गंगा का पानी लाया गया ।
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आओ संस्कृत सीखें
1563 20. राम द्वारा पिता की आज्ञा मानी गई। 21. किसान बैलों को घर ले जाते हैं ।
___ हिन्दी में अनुवाद करो 1. अकथयदाचार्यः शिष्येभ्यो धर्मम् । 2. अजयत्सिद्धराजः सौराष्ट्रान् । 3. अवसन्निह पुरा छात्राः । 4. कारागृहात्स्तेना अनश्यन् । 5. ह्योऽत्र व्याघ्रमपश्यम् । 6. अयोध्यायां चिरमवसाम | 7. प्राविशद्युधिष्ठिरो नगरम् । 8. नृपो ब्राह्मणेभ्यः प्रभूतं धनमयच्छत् । 9. प्रभूता ब्राह्मणा आसन् । 10. रतिलालो मया सह शत्रुञ्जयमारोहत् । 11. हे अनिलकुमार ! निशायां चौरास्तव धनमचोरयन् ! 12. हे देवदत्त ! त्वं क्वागच्छः ? अहमयोध्यायामगच्छम् । 13. हे मञ्जले ! सरला अयोध्याया आगच्छत् ? 14. कुमारपालो भूपालोऽपि सिद्धहेमचन्द्रव्याकरणमपठत् । 15. तदाहं स्वर्गस्य सुखमन्वभवं स चान्वभवन्नरकस्य दुःखम् । 16. श्रीहेमचन्द्राचार्यः सिद्धहेमचन्द्रव्याकरणं व्यरच्यत । 17. दुर्योधनो द्यूतेन पाण्डवानां राज्यमलभत । 18. अदृश्यन्त वानरा वने वनमालया । 19. निरैक्ष्यन्त जिनेन जलेऽसंख्येया जीवाः । 20. मयूरोऽमोदत माकन्दे । 21. तेन मार्गेणागच्छंश्चौराः । 22. मोदकानखादण्डिम्भाः । 23. न पर्यहरलँललना लज्जाम् । 24. आर्यां चन्दनामवन्दन्त बालाः ।
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आओ संस्कृत सीखें 25. आगच्छज्झटिति देवदत्तः । 26. अतुष्यत बलीवर्देन तृणैः । 27. अपतल्लक्ष्मणो बाणेन । 28. कूपेऽपतड्डिम्भः । 29. अरक्षच्छीलं सीता।
पाठ-24
कृदन्त 1. धातु को प्रत्यय लगने के बाद धातु पर से जो शब्द बनते हैं, वे प्रत्यय कृत्
कहलाते हैं | जिन शब्दों के अंत में कृत् प्रत्यय हो वे शब्द कृदन्त
कहलाते हैं | 2. धातु को 'तुम्' प्रत्यय लगने से हेत्वर्थ कृदन्त बनता है ।
पा + तुम् = पातुम्
जलं पातुं गच्छति पानी पीने के लिए जाता है । 3. धातु को त्वा (क्त्वा) प्रत्यय लगने से संबंधक भूतकृदन्त बनता है ।
हृ + त्वा = हृत्वा रावण: सीतां हत्वा लडां गच्छति ।
रावण सीता को लेकर लंका में जाता है । 4. धातु के पहले उपसर्ग आदि अव्यय हो तो क्त्वा के बदले य होता है |
आ + नी + य = आनीय 5. धातु के अंत में ह्रस्व स्वर हो तो 'य' के पहले 'त्' आता है
उदा. वि + जि + त् + य = विजित्य एक क्रिया करके दूसरी क्रिया की जाती है तो उसे संबंधक भूत कृदंत कहते हैंउदा. वह भोजन करके घर जाता है ।
स भोजनं कृत्वा गृहं गच्छति । यहाँ जाने की क्रिया के पहले भोजन की क्रिया समाप्त हो गई है, अतः
6.
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58
7.
आओ संस्कृत सीखें
उस क्रिया को संबंधक भूत कृदंत का प्रत्यय लगता है । ___ त्वा और तुम् प्रत्ययवाले कृदन्त अव्यय कहलाते हैं | 5. सकर्मक धातु को भूतकाल में कर्मणि प्रयोग में त (क्त) प्रत्यय लगकर
कर्मणि भूत कृदन्त होता है और वह कर्म का विशेषण बनता है । जि + त = जित रामेण रावणो जितः। राम द्वारा रावण जीता गया । अकर्मक धातु को भूतकाल में भावे प्रयोग में त (क्त) प्रत्यय लगकर भावे भूत कृदन्त होता है और उसका नपुंसक लिंग एक वचन में ही प्रयोग होता है | भू + त = भूत दिवसेन भूतम् दिवस हुआ । रामेण जितम् = राम द्वारा जीता गया । गति अर्थवाले धातु और अकर्मक धातुओं को भूतकाल में कर्तरि प्रयोग में त (क्त) प्रत्यय लगकर कर्तरि भूत कृदन्त भी होता है और वह कर्ता का विशेषण बनता है । उदा. सृ + त = सृत
कूर्मः समुद्रं सृतः- कछुआ समुद्र की ओर गया । दिवसो भूतः- दिवस हुआ | रामो जित:- राम जीता गया |
शब्दार्थ कोषाध्यक्ष = भंडार का अधिकारी बीज = बीज (नपुं.) गज = हाथी (पुं.)
सत्यपुर = सांचोर (नपुं.) निष्क = सोना मोहर (पुं.) हस्तिनापुर = हस्तिनापुर (नपुं) पान्थ = मुसाफिर (पुं.) लंका = लंका नगरी (स्त्री) प्रवास = यात्रा (पुं.)
व्याधित = रोगी (विशेषण) औषध = दवाई (नपुं.) मृत = मरा हुआ (भूत कृदंत) दुग्ध = दूध (नपुं.)
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आओ संस्कृत सीखें
1259
- धातुएँ अभि + क्रुध् = क्रोध करना कम्प् = कंपना, धूजना (गण 1 आत्मनेपदी) नि + वस् = रहना, निवास करना (गण 1) परि + त्यज् = त्याग करना, छोड़ देना वप् = बोना (गण 1, उभयपदी) वि + श्रम् = विश्राम करना (गण 4 परस्मैपदी)
कृदन्त आदिष्ट = आदेश किया हुआ (आ + दिश् + त) गत = गया हुआ (गम् + त) जात = जन्मा हुआ (जन् (जा) + त) प्रदत्त = दिया हुआ (प्र + दा + त) प्रविष्ट = प्रवेश किया हुआ (प्र + विश् + त) विश्रान्त = थका हुआ (वि + श्रम् + त) स्थित = रहा हुआ (स्था + त) पतित = गिरा हुआ (पत् + त) पीत्वा = पीकर (पा + त्वा) रन्तुम् = खेलने के लिए (रम् + तुम्)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. दुर्योधन ने जुए द्वारा पांडवों को जीता था । 2. पांडव हस्तिनापुर छोड़कर वन में गए । 3. आज रात्रि में यहाँ सिंह आया हुआ है । 4. उसने दूध लाकर हमको दिया । 5. वह पानी पीकर खेलने गया । 6. वजन (भार) घर ले जाकर उसने विश्राम किया । 7. वह देव होकर स्वर्ग में पैदा हुआ | 8. मेरे द्वारा आज वहाँ नहीं जाया गया । 9. वन में रही सीता को रावण लंका में ले गया । 10. किसान खेत में बीज बोने गए |
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आओ संस्कृत सीखें
1. रामेण सह सीता वनं गताऽऽसीत् ।
2. बलीवर्दा गजा अश्वाश्च जलं पातुं कासारं गताः । 3. पान्था देवालये स्थातुं प्रार्थयन्ते ।
4. धनपालो धारां परित्यज्य सत्यपुरे न्यवसत् । 5. स चौरो देवालयं प्रविष्टोऽस्ति ।
6. रामो रावणं विजित्याऽयोध्यां प्रातिष्ठत ।
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
हिन्दी में अनुवाद करो
7. दुर्योधनमभिक्रुध्य भीमसेनोऽकम्पत ।
8. ब्राह्मणेभ्यो निष्कान्दातुं नृपेणाऽऽदिष्टः कोषाध्यक्षः । 9. धनं हृत्वा तेन चौरेण वने स्थितम् ।
10. विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च । व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च ।।
मरुत्, द्
मरुतम्
मरुता
मरुते
मरुतः
मरुतः
मरुति
60
पाठ-25
व्यंजनांत नाम : पुंलिंग-प्रत्यय
औ
औ
0
अम्
आ
ए
अस्
अस्
इ
भ्याम्
भ्याम्
भ्याम्
ओस्
ओस्
मरुत् के रूप
मरुतौ
मरुतौ
मरुद्भ्याम्
मरुद्भ्याम्
मरुद्भ्याम्
मरुतो:
मरुतो :
अस्
अस्
भिस्
भ्यस्
भ्यस्
आम्
सु
मरुतः
मरुतः
मरुद्भिः
मरुद्भ्यः
मरुद्भ्यः
मरुताम्
मरुत्सु
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आओ संस्कृत सीखें
युध्-स्त्रीलिंग के रूप | प्रथमा । युत, द् | युधौ | युधः | द्वितीया । युधम् युधौ | युधः ।
तृतीया युधा युद्भ्याम् युद्भिः चतुर्थी
युद्भ्याम् युद्भ्यः | पंचमी | युधः युद्भ्याम् । युद्भ्यः | षष्ठी | युधः । युधोः । युधाम् । सप्तमी | युधि
युत्सु संबोधन | युत्, द् युधौ युधः
युधोः
r]
|
इ
नपुंसक लिंग (प्रत्यय) | प्रथमा । ई इ | द्वितीया | 0
ई
इ संबोधन | 0 |
जगत् द् जगती जगन्ति
शेष व्यंजनांत पुंलिंग की तरह 1. य से प्रारंभ होनेवाले प्रत्यय को छोड़कर अन्य व्यंजनों से प्रारंभ होनेवाले
प्रत्ययों पर पहले का नाम पद कहलाता है | मरुत् + भ्याम् मरुद्भ्याम् (पद होने से त् का द हुआ) युध् + भ्याम् युद्भ्याम् (पद के कारण वर्ग का तीसरा व्यंजन हुआ ।) युध् + सु = युत्सु प्रथमा-द्वितीया व संबोधन के बहुवचन के इ प्रत्यय पर नपुंसक नाम के अंतिम स्वर पर रहे धुट् व्यंजन के पहले 'न' जोड़ा जाता है | उदा. जगत् + इ
जगन्त् + इ = जगन्ति
संस्कृत में अनुवाद करो 1. धूप से थके हुए लोग वृक्ष की छाया में आश्रय लेते थे । 2. लज्जा स्त्रियों का भूषण है । 3. धर्म जगत् का शरण है ।
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.
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आओ संस्कृत सीखें 4. बालकों को लड्डु पसंद हैं। . 5. बालक लड्डू चाहता है | 6. युद्ध में योद्धा लड़ते हैं। 7. राजा प्रधानों पर क्रोध करता है |
हिन्दी में अनुवाद करों 1. धर्मः शरणमापदि ।
2. वियति विद्योतते विद्युत् । 3. मरुता समुद्रः क्षुभ्यति । 4. वीराणां हि रणं मुदे । 5. कुम्भकारेण मृदो भाण्डानि व्यरच्यन्त | 6. कारणस्याऽनुरूपं कार्यं जगति दृश्यते । 7. शरदि न वर्षति गर्जति, वर्षति वर्षास नि:स्वनो मेघः । 8. उदारस्य तृणं वित्तं, शूरस्य मरणं तृणम् । विरक्तस्य तृणं भार्या, निःस्पृहस्य तृणं जगत् ।।
धातु
ग = गर्जना करना (गण 1,10 परस्मै) रुच् = पसंद पडना द्युत् = प्रकाशित होना (गण 1,परस्मै) (गण 1, आत्मनेपदी) वि + = चमकना
दुह् = सेवा करना (गण 1, उभयपदी) दुह् = द्रोह करना (गण 4,परस्मैपदी) आ + = द्रा आश्रय लेना अभि + = द्रोह करना
व्यंजनांत नाम आपद् = आपत्ति (स्त्री लिंग) युध = युद्ध (स्त्री.) जगत् = जगत् (नपुं.)
योषित् = स्त्री (स्त्री.) मरु = पवन, देव (पुं.)
विद्युत = बिजली (स्त्री.) मुद = हर्ष (स्त्री.)
नियत् = आकाश (नपुं.) मृद = मिट्टी (स्त्री.)
शरद = शरद ऋतु (स्त्री.)
शब्द अनुरूप = समान (विशे.) निःस्वन = आवाज रहित (वि.) आतप = धूप (पुं.)
भाण्ड = बर्तन (नपुं.) उदार = उदार (वि.)
मरण = मृत्यु (नं.) कुम्भकार = कुम्हार (पु.) वर्षा = वर्षाऋतु (स्त्री) क्लान्त = थका हुआ (भूत कृदंत) वित्त = धन (नपुं.) छाया = छाया (स्त्री.)
विरक्त = राग रहित (वि.) निःस्पृह = स्पृहा रहित (वि.) शूर = शूरवीर (पुं.)
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आओ संस्कृत सीखें
263
पाठ-26
सर्वनाम (पुंलिंग-प्रत्यय)
औ | औ
1
स् | म्
इन
भ्याम्
सम
भ्याम् । भ्याम् | ओस्
अस् | ऐस्
भ्यस् । भ्यस् । साम्
। ।
| स्मात् | स्य
स्मिन् । संबोधन | 0
7
ओस
अ
सर्वम्
सर्वो
सर्व के रूप सर्वः सर्वो
सर्वे
सर्वान सर्वेण सर्वाभ्याम्
सर्वैः सर्वस्मै सर्वाभ्याम्
सर्वेभ्यः सर्वस्मात् सर्वाभ्याम्
सर्वेभ्यः सर्वस्य सर्वयोः
सर्वेषाम् सर्वस्मिन् । . सर्वयोः
सर्वेषु हे सर्व ! | हे सर्वौ !
हे सर्वे ! विभक्ति के प्रत्यय लगने पर किम् का क, तद् का त, यद् का य, एतद् का एत और द्वि का द्व होता है ।
उदा. कः, यः 2. 'स्' प्रत्यय पर तद् और एतद् के त् का स् होता है ।
सः, एषः
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64
आओ संस्कृत सीखें 3. एतद् और तद् के बाद में रहे 'स्' प्रत्यय का व्यंजन पर लोप होता है
एष गच्छति । स पठति । 4. द्वि शब्द का प्रयोग द्वि वचन में होता है और एक शब्द का प्रयोग द्वि वचन
में नहीं होता है । उदा. द्वौ, एकः, एके ।
किम् के रूप (पुंलिंग)
कः
| कम्
को
कान केन
काभ्याम् कस्मै काभ्याम्
केभ्यः कस्मात् काभ्याम्
केभ्यः कस्य
कयोः कस्मिन्
केषु इस प्रकार तद्, यद्, एतद् और द्वि के रूप करने चाहिए ।
केषाम्
कयोः
अमी
। 2. |
अमून
__अदस् के रूप (पुंलिंग) असौ अमुम् । अमू अमुना अमूभ्याम् अमुष्मै अमूभ्याम् अमुष्मात् अमूभ्याम् ।
अमुयोः अमुष्मिन् । अमुयोः
अमीभिः अमीभ्यः अमीभ्यः अमीषाम् अमीषु
अमुष्य
अदस् का अम करे और 'सर्व' के अनुसार रूप करना चाहिए उसके बाद 'म्' के बाद के ह्रस्व स्वर का ह्रस्व उ और दीर्घस्वर का दीर्घ 'ऊ' करना
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आओ संस्कृत सीखें
165 चाहिए । बहुवचन में म के बाद ए हो तो दीर्घ 'ई' करना चाहिए । प्रथमा व तृतीया एक वचन में क्रमशः ‘असौ' और 'अमुना' रूप बनता है। अदस् और इदम् के रूप में तृतीया बहुवचन में भिस् का ऐस् आदेश नहीं होता है ।
'इदम्' के रूप इदम् का इम करे 'तृतीया विभक्ति से इदम् का अ करे ।' तृतीया एक वचन और षष्ठी-सप्तमी द्विवचन में अन करे । उसके बाद 'सर्व' के अनुसार रुप करे | प्रथमा एकवचन में 'अयम्' रूप होता है ।
अयम् | इमौ . इमम् इमौ
इमान् अनेन आभ्याम्
एभिः अस्मै
आभ्याम् अस्मात् आभ्याम्
एभ्यः अनयोः
एषाम् अस्मिन्
अनयोः नपुंसक लिंग के प्रत्यय
इमे
एभ्यः
अस्य
प्रथमा
ty
द्वितीया
to
सर्वम् सर्वे सर्वाणि शेष पुंलिंग के अनुसार होते हैं ।
व्यंजनांत सर्वनाम प्रत्यय प्रथमा-द्वितीया 0 ई
इ
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आओ संस्कृत सीखें।
प्रथमा - द्वितीया संबोधन
किम्
किम
यत्, द
एतत्, द
अदः
यद्
एतद्
अदस्
द्वि
इदम्
1
2
3
4
शेष पुंलिंग के अनुसार रूप
5.
6.
7.
संबोधन
66
इदम्
ds 4
एते
अमू
10
इमे
शेष पुंलिंग के अनुसार
किम् सर्वनाम को चित्, चन और अपि अव्यय जुड़ा हो तो प्रश्नार्थ के बदले अनिश्चित अर्थ होता है ।
कः अर्थात् कौन
कश्चित्, कश्चन, कोपि = कोई
किंचित्, किंचन, किमपि = कोई किञ्चिदपि = कुछ भी
सर्वनाम स्त्रीलिंग के प्रत्यय
औ
औ
0
म्
आ
अस्यै (डस्यै)
अस्यास् (डस्यास्)
अस्यास् (डस्यास्)
अस्याम् (डस्याम्)
स्
भ्याम्
भ्याम्
भ्याम्
ओस्
ओस्
कानि
यानि
एतानि
अमूनि
औ
इमानि
अस्
अस्
भिस्
भ्यस्
भ्यस्
साम्
सु
अस्
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9 67
आओ संस्कृत सीखें
.. सर्वा के रूप | 1 | सर्वा । सर्वे .
सर्वाम् सर्वे सर्वया सर्वाभ्याम्
सर्वस्यै | सर्वाभ्याम् | 5 | सर्वस्याः | सर्वाभ्याम् | 6 | सर्वस्याः । सर्वयोः । | 7 | सर्वस्याम् | सर्वयोः | संबोधन | हे सर्वे ! हे सर्वे !
सर्वाः सर्वाः सर्वाभिः सर्वाभ्यः सर्वाभ्यः सर्वासाम् । । सर्वास हे सर्वाः ! |
1.
किसी प्रयोजन से प्रत्ययों के साथ निशानी के रूप में जुड़े होने पर भी जो वर्ण प्रयोग में नहीं आते है, वे 'इत्' कहलाते है । कोष्ठक में प्रत्यय इत् वर्ण सहित दिए गए हैं उदा. अस्यै (डस्यै) यहाँ ड् वर्ण इत् है । ड् इत्वाले प्रत्यय पर अन्त्य स्वर और उसके बाद रहे व्यंजनों का लोप होता है | उदा. सर्वा + अस्यै (डस्यै) = सर्वस्यै यहाँ अंत्यस्वर 'आ' का लोप होता है । अंत्य स्वर आदि का लोप करना, यही ड् इत् का प्रयोजन है । इत् वर्ण प्रयोग में नहीं रखा जाता है, सर्वस्यै के रूप में ड् नहीं है । किम्, तद, यद, एतद, द्वि के स्त्रीलिंग रूप क्रमशः का, ता, या, एता, द्वा शब्द बनाकर सर्वा के अनुसार रूप करने चाहिए । प्रथमा एक वचन में तद् और एतद् के त् का स् करे-सा, एषा |
, अदस् के स्त्रीलिंग रूप । | 1 | असौ | अमू | अमूः
__ अमूम् । अमू । अमू:
अमुया अमूभ्याम् | अमूभिः
2
|
अमूम्
।
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आओ संस्कृत सीखें
इमे इमे
आभ्याम
___ अमुष्यै । अमूभ्याम् । अमूभ्यः ..
अमुष्याः - अमूभ्याम् अमूभ्यः अमुष्याः । अमुयोः |- अमूषाम् अमुष्याम् | अमुयोः । अमूषु । ।
__ इदम् के स्त्रीलिंग रूप इयम्
इमाः इमाम
इमा: अनया
आभ्याम्
आभिः अस्यै
आभ्यः अस्याः आभ्याम्
आभ्यः अस्याः अनयोः
आसाम् अस्याम् । अनयोः । आसु 4. क्रिया के विशेषण नपुंसक लिंग एकवचन में होते हैं और उन्हें द्वितीया
विभक्ति लगती है । उदा. भृशं प्रयतते खूब प्रयत्न करता है |
धातु परि + ईक्ष = परीक्षा करना (गण 1, आत्मनेपदी) यत् = यत्न करना (गण 1, आत्मनेपदी) प्र + यत् = प्रयत्न करना
सर्वनाम अदस् = यह किम् = कौन, क्या ? यद् = जो इदम् = यह तद् = वह
सर्व = सभी, सब एतद् = यह द्वि = दो
स्व = अपना, खुद
शब्दार्थ आम्र = आम (पुं.)
निम्ब = नीम (पुं.) उपाय = इलाज (पुं.)
नराधम = अधम पुरुष (पुं.) गुण = फायदा (पुं.)
पराक्रम = बल (पुं.) नर = मनुष्य (पुं.)
बांधव = भाई (पुं)
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आओ संस्कृत सीखें
मान = अहंकार (पुं) बड़वृक्ष (पुं.)
वट =
श्वशुर = श्वसुर (पुं.) नियोग
=
स्वभाव = स्वभाव (पुं.)
काक = कौआ (पुं.)
अधिकार, फर्ज (पुं.)
कापुरुष = खराब व्यक्ति (पुं.)
मेष = भेड (पुं.)
-मदन = कामदेव (पुं.) महिष = पाडा (पुं.) मार्जार =
=
=
हृदय अभिधान
गल = गला (नपुं.)
रत्न = रत्न (नपुं.)
हृदय (नपुं)
बिल्ला (पुं.)
रामलक्ष्मण = राम और लक्ष्मण (पुं) शरण = शरण (विशे.) विश्वास श्रद्धा (पुं.) तृष्णा = इच्छा (स्त्री) अंगना = स्त्री (स्त्री)
उचित = योग्य (विशे.) परम = श्रेष्ठ (विशे.) प्रवीण = होशियार (विशे.)
अबला = स्त्री (स्त्री)
पुष्पमाला = फूलमाला (स्त्री) रत्नमाला = रत्नो की माला (स्त्री) मिथिला = नगरी का नाम (स्त्री) काञ्चन = सोना (नपुं.)
कुसुम = फूल (नपुं. )
व्यसन = आदत, संकट (नपुं.) स्वहित = अपना हित (नपुं.)
69
= नाम (नपुं.)
पारितोषिक = इनाम (नपुं.)
= अपना (विशेषण)
वस्त्र = कपड़ा (नपुं. ) आत्मीय कुलीन = कुलवान् (विशे.) जैन जैन (विशे.) दरिद्र = गरीब (विशे.)
=
प्रिय
पक्च = पका हुआ (विशे.) = प्यारा (विशे.) विफल = निष्फल (विशे.)
विशाल
= बड़ (विशे.)
शक्य हो सके ऐसा (विशे.)
=
भृश = अत्यंत (विशे.) मनोहर = सुंदर (विशे.) सतत निरंतर (विशे.) तु = और (अव्यय) एवं = इस प्रकार (अव्यय) तत्र = वहाँ (अव्यय)
=
पुनर् = वापस (अव्यय) ततस् = वहाँसे इसलिए (अव्यय) प्रणम्य = प्रणाम करके (सं. भूतकृदंत) परिणीत = विवाहित (भूतकृदंत) गिरा हुआ
भ्रष्ट =
युक्त = जुड़ा हुआ (भूतकृदंत)
1. ये मेरे पिता आते हैं ।
2. उन दुःखों को मैं याद नहीं करता हूँ ।
संस्कृत अनुवाद करो
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आओ संस्कृत सीखें 3. वह सुंदर महल राजा का है । 4. रतिलाल ! यह पुस्तक किसकी है ? 5. कुमुदचंद्र ! यह पुस्तक मेरी है । .6. जो दिखाई देते हैं, वे घर हमारे हैं । 7. यहाँ ये दो पुस्तके हैं, वे हम दोनों की हैं | 8. मुझे धर्म पसंद है, तुझे धन पसंद है । 9. ये दो लोग किस गांव से आए हुए हैं | 10. इस गांव में पहले बहुत से जैन रहते थे । 11. मेरे अकेले द्वारा इन सभी गाँवों का रक्षण किया जाता है । 12. जिनका स्वभाव उदार होता है, वे सबको पसंद पड़ते हैं । 13. जो कन्याएँ पढ़ती हैं, उन्हें मैं इनाम देता हूँ । 14. यह रतिलाल सभी कलाओं में प्रवीण है । 15. इन दो बालाओं ने कौनसी दो फूलों की मालाएँ बनाई हैं ? 16. यह सरला अपनी ये दो पुस्तकें ले जाती है । 17. उस कुंभकार की स्त्रियाँ मिट्टी के घड़े बनाती हैं । 18. जिस मथुरा में कृष्ण जन्मे थे, उसे छोड़कर इस द्वारिका में वे रहे थे ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. कः किं वदति ? 2. कस्याहं, कस्य बान्धवाः ? 3. यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः । 4. सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते । 5. नियोगाद् भ्रष्टस्य सर्वमपि विफलम् । 6. नात्मीयाः कस्यचिन्नृपाः । 7. धर्म: सर्वस्य भूषणम् । 8. यो व्यसने तिष्ठति, स बान्धवः । 9. एकोऽहं, नास्ति मम कोऽपि । 10. इमौ द्वौ भोगिलालस्य पुत्रौ स्तः । अनयोर्ज्ञानं शोभनम् । 11. वनमिदं रमणीयम्, इमे आम्राः, आम्रस्यैतानि पक्वानि फलानि मह्यं
रोचन्ते। 12. असौ वटः, एष निम्बः, वृक्षेभ्यः पतितानीमानि कुसुमानि सन्ति ।
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आओ संस्कृत सीखें
171313. अयं कासारः, कासारेऽमूनि कमलानि दृश्यन्ते, अमी मृगा धावन्ति। 14. कोऽयं जन आगच्छति ? . 15. सर्वस्य जायते मानः स्वहिताच्च प्रमाद्यति । .. 16. स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला । 17. यो यस्य प्रियः स तस्य हृदये वसति । 18. पश्याम्यहं जगत्सर्वं न मां पश्यति कश्चन | 19. उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः । 20. श्वशुर: शरणं येषां नराणां ते नराधमाः । 21. सर्वासामङ्गनानां शीलं परमं भूषणम् ।। 22. कस्यै कन्यायै एता मनोहरा रत्नमालाः प्रायच्छन्नृपः ? एतस्यै मम
कन्यायै । 23. अस्यामयोध्यायां चिरमवसम् । .. 24. काः का बालाः पर्यैक्ष्यन्त त्वयैतस्यां पाठशालायाम् । 25. एताभ्यां द्वाभ्यां कन्याभ्यां एतयोद्धयोः कलयो शं प्रायत्यत । 26. एकैषा पुष्पमाला, एका चैषा, एवं द्वे पुष्पमाले मम गले स्तः । 27. विनयेन देवं प्रणम्य प्राविश्यत सर्वाभिरार्याभिः ।. . 28. यदेतत्तत्र पतितं वस्त्रं दृश्यते तत्कस्याश्चिदपि बालाया वर्तते, ततस्त... यस्या भवति तस्यै दातुं प्रयत्यतेऽस्माभिः । .. 29. एतस्यां मिथिलायां या रामेण या च लक्ष्मणेन कन्या परिणीता, तयो• रेकस्या अभिधानं सीता एकस्याश्चोर्मिला ताभ्यां द्वाभ्यां युक्ताभ्यां राम
लक्ष्मणाभ्यां यस्यामयोध्यायां प्राविश्यत सैषा । 30. इयं रत्नमाला मम, एषा तव । . 31. अमू कन्ये यमुनां गच्छतः । 32. यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता ।
धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च ।। 33. असौ काचिदबला वनेऽटति । 34. इमा बाला मया पुराऽदृश्यन्त | 35. मार्जारो महिषो मेषः, काकः कापुरुषस्तथा ।
विश्वासात्प्रभवन्त्येते, विश्वासस्तत्र नोचितः ।।
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अस्
आओ संस्कृत सीखें
4725
पाठ-27 इकारांत-उकारांत पुंलिंग नाम प्रत्यय
अस 2. ..
औ
अस् 3:..
भ्याम् भिस् | ए | भ्याम्भ्य
स् 5.
भ्याम् | भ्यस् 6. अस् 'ओस्
नाम 7.
औ (डौ) ओस् | संबोधन | स्
| औ । अस - मुनि (पुंलिंग) रूप | 1. मुनिः । मुनी मुनयः | 2. | मुनिम्मु
नी मुनीन् । 3. | मुनिना मुनिभ्याम् । मुनिभिः । 4. मुनये | मुनिभ्याम् मुनिभ्यः 5 | मुनेः मुनिभ्याम | मुनिभ्यः । | 6. मुनेः मुन्यो: मुनीनाम् 7.
| मुन्योः । मुनिषु | संबोधन | हे मुने! हे मुनी ! | हे मुनयः!!
भानु के रूप | 1 | भानुः भानू | भानवः | 2
भानू | भानून 3
भानुना भानुभ्याम् भानुभिः | 4 | भानवे . भानुभ्याम् भानुभ्यः
भानोः भानुभ्याम् भानुभ्यः भानोः भान्वोः
भानूनाम् भानौ
भान्वोः भानुषु | संबोधन | हे भानो ! | भानू ! | भानवः !
भानुम्
5
.
7
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आओ संस्कृत सीखें
733 1. इकारांत और उकारांत नामों के अंत्य इ और उ का प्रथमा द्वितीया के औ
प्रत्यय सहित दीर्घ ई तथा दीर्घ ऊ होता है । उदा. मुनि + औ = मुनी
भानु + औ = भानू 2. प्रथमा के अस् प्रत्यय पर इकारांत व उकारांत नामों के इ तथा उ का
क्रमशः ए तथा ओ होता है | उदा. मुनि + अस्
मुने + अस् = मुनयः भानु + अस्
भानो + अस् = भानवः 3. चतुर्थी का ए तथा पंचमी-षष्ठी के अस् प्रत्यय पर इकारांत व उकारांत
नामों के अंत्य इ तथा उ का ए तथा ओ होता है । उदा. मुनि + ए
मुने + ए = मुनये भानु + ए भानो + ए = भानवे मुनि + अस् = मुने + अस्
भानु + अस् = भानो + अस् 4. ए और ओ के बाद पंचमी षष्ठी के अस् का र होता है ।
मुने + र् = मुनेः
भानो + २ = भानोः 5. संबोधन में ह्रस्व स्वरांत नामों के अंत्य स्वर का स् प्रत्यय सहित गुण होता है ।
मुनि + स् = हे मुने !
भानो + स् = हे भानो ! 6. षष्ठी बहुवचन में त्रि का त्रय होता है ।
त्रि के रूप प्रथमा
त्रयः | द्वितीया । त्रीन ।
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आओ संस्कृत सीखें
974
चतुर्थी
तृतीया त्रिभिः
त्रिभ्यः पंचमी त्रिभ्यः षष्ठी
त्रयाणाम् । सप्तमी । त्रिषु 7. र् के बाद र् आए तो पूर्व के र् का लोप होता है, उसके पहले रहे अ, इ
तथा उ स्वर दीर्घ होते हैं । उदा. 1. पुनर् + रिपुः
पुना रिपुः 2. इन्दुर् + राजते = इन्दू राजते इकारांत-उकारांत नपुंसक नाम
प्रत्यय | 0 | ई द्वितीया | 0 | ई । इ ।
शेष पुंलिंग अनुसार नाम्यंत नपुंसक नामों के स्वरादि प्रत्ययों के पहले 'न' जोड़ जाता है । तथा आम् का नाम् आदेश होता है | वारि + ई वारि + न + ई = वारिणी मधु + ई
मधु + न + ई = मधुनी 9. संबोधन एक वचन में नाम्यंत नपुंसक नामों के अंत्य स्वर का विकल्प से गुण होता है ।
वारि ! वारे ! मधु ! मधो !
प्रथमा
to
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शुचि
आओ संस्कृत सीखें
--75 :
शब्दार्थ
इकारांत-पुंलिंग नाम असि = तलवार
कपि = बंदर कवि = कवि
गिरि = पर्वत नृपति = राजा
पाणि = हाथ मुनि = मुनि
शान्ति = शांतिनाथ भगवान
इकारांत नपुंसक नाम वारि = पानी
शुचि = पवित्र (विशेषण) त्रि = तीन (संख्या-बहुवचन) सुरभि = सुगंधी (विशेषण)
उकारांत पुंलिंग नाम इन्दु = चंद्र
पशु = पशु तरु = वृक्ष
मृत्यु = मृत्यु भानु = सूर्य
वायु = पवन रिपु = शत्रु
शत्रु = शत्रु विष्णु = कृष्ण
शिशु = छोटा बच्चा गुरु = गुरु
साधु = साधु
उकारांत नपुंसक नाम अश्रु = आँसू
- तालु = तालु मधु = शहद
वसु = धन
उकारांत विशेषण नाम साधु = श्रेष्ठ, अच्छा
स्वादु = मधुर, मीठश बहु = बहुत
मृदु = कोमल, नरम
अन्य शब्दों के अर्थ उदय = उदय (पुंलिंग) पर्जन्य = बादल (पुं.) गंध = गंध (पुं.)
पादप = वृक्ष (पुं.) दुर्जन = खराब व्यक्ति (पुं.) वज्र = इंद्र का हथियार (पुं.) न्याय = न्याय (पुं.)
वात = पवन (पुं)
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आओ संस्कृत सीखें वैष्णव = विष्णु को माननेवाला (पं.) जिह्वाग्र = जीभ का अग्र भाग (नपुं.) शिशिर = शिशिर ऋतु (पुं.)... वचन = वचन (नपुं.) शैल = पर्वत (पुं.)
तत्त्व = सारभूत वस्तु (नपुं.) .. तडाग = तालाब (पु.)
त्रैलोक्य = तीन लोक (नपुं.) दीपक = दीपक (पुं.)
प्रभात = प्रातःकाल (नपुं.) धर्मसंग्रह = धर्म का संग्रह (पुं.) माधुर्य = मधुरता (नपुं.) प्रदोष = संध्या (पुं.)
हलाहल = जहर (नपुं.) भ्रमर = भौंरा (पुं.)
एकत्र = एक जगह (अव्यय) रवि = सूर्य (पुं.)
सर्वत्र = सब जगह (अव्यय) विभव = धन (पुं)
प्रणत = नमा हुआ (प्र+नम्+त) (भू.कृ.) सुपुत्र = अच्छा पुत्र (पुं.)
शीत = ठंडा (विशेषण) स्पर्श = स्पर्श (पुं.)
स्थिर = स्थिर (विशेषण) हरि = विष्णु (पुं.)
अनित्य = नाशवंत (विशेषण) माया = कपट (स्त्री)
कर्तव्य = करनेयोग्य (विशेषण) वार्ता = बात (स्त्री)
खज = लंगडा (विशेषण) रमा = लक्ष्मी (स्त्री)
नित्य = हमेशा (विशेषण) जिह्वा = जीभ (स्त्री)
शाश्वत = स्थायी (विशेषण) कुकुम = कुंकुम (न.)
संनिहित = निकट रहा हुआ (विशेषण) चित्त = मन (नपुं.)
सम = समान (विशेषण) पद्म = कमल (नपुं.)
समान = समान (विशेषण) माणिक्य = माणक (नपुं.) हीन = कम (विशेषण) मौक्तिक = मोती (नपुं.)
धातु अव + गम् = जानना
क्षल् = धोना (गण 10, परस्मैपदी) भज् = भजना (गण 1 उभयपदी) शुष् = सूखना (गण 4, परस्मैपदी)
इकारांत नपुं-वारि के रूप वारि वारिणी | वारीणि वारि | वारिणी | वारीणि
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|
5.
आओ संस्कृत सीखें
1772 | 3 | वारिणा वारिभ्याम् वारिभिः । | 4 वारिणे । वारिभ्याम् | वारिभ्यः | 5 | वारिणः । वारिभ्याम् वारिभ्यः । 6 | वारिणः । वारिणोः | वारीणाम
वारिणि । वारिणो: वारिषु | संबोधन | वारे ! वारि! | वारिणी | वारीणि
मधु के रूप | 1. मधु | मधुनी । मधूनि | 2. मधु | मधुनी । मधूनि ।
मधुना । मधुभ्याम् | मधुभिः । | 4. | मधुने । मधुभ्याम् | मधुभ्यः ।
मधुनः | मधुभ्याम् | मधुभ्यः । | 6. मधुनः । मधुनोः । मधूनाम्
7. | मधुनि । मधुनोः । मधुषु | संबोधन | मधो ! मधु !| मधुनी | मधूनि
संस्कृत में अनुवाद करो 1. यह सुगंधित पवन कहाँ से आता है ? 2. इस कैदखाने में तीन चोर हैं । 3. इन तीन योद्धाओं द्वारा राजा ने नगर का रक्षण किया । 4. उद्यान का ठंडा वायु हमारे चित्त का हरण करता है । 5. जैन जिनेश्वर को और वैष्णव विष्णु को भजते हैं । 6. इस वायु द्वारा वृक्ष ऊपर से सभी पुष्प गिर पड़े । 7. मनुष्य में मान और पशुओं में माया होती है । 8. राजा भी गुरु के वचन मानते हैं | 9. गुरु राजाओं को धर्म का उपदेश देते हैं । 10. इन छोटे बच्चों को कोई कुछ भी नहीं देता है ।
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आओ संस्कृत सीखें। 11. इन बंदरों ने वे फल खाए । 12. मेरे हाथ में एक तलवार है । 13. मनुष्य धन चाहता है । 14. भ्रमर कमल में से मधु पीता है । 15. मैं जीभ द्वारा तालु को छूता हूँ । 16. इस तालाब का पानी पवित्र है । 17. इस घड़े में से पानी टपकता है । 18. पानी द्वारा मैंने अपने हाथ-पैर धोए । 19. इस बगीचे के इन तीन वृक्षों पर बहुत से फल दिखाई देते हैं । 20. सूर्य के ताप द्वारा तालाब का यह पानी सूखता है । 21. इस गाँव में मेरे तीन मित्र थे । 22. इस तालाब में बहुत से कमल हैं । 23. इस बालक की दोनों आँखों में से आँसू बहते हैं ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. नमो नमः शान्तये तस्मै । 2. लोभः कस्य न मृत्यवे ।
गिरौ वर्षति पर्जन्यः । 4. भानोरुदयेन जना मोदन्ते ।
नैकत्र मुनयः स्थिराः । 6. न्यायेन नृपतिः शोभते । 7. वायुरयं हरति गन्धं पुष्पाणाम् । . 8. अयं शिशु रमतेऽतो मह्यं रोचते । 9. नृपतिर्भोजः कविभ्यो धनमयच्छत् । 10. न रोचतेऽध्ययनमस्मै बालाय । 11. इमे बहवो जना अमुष्माद् ग्रामादागताः सन्ति । 12. एभ्यस्ता वार्तामवगच्छामि । 13. अमीषां त्रयाणामप्याचार्याणां पादानह प्रणतोऽस्मि ।
3.
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आओ संस्कृत सीखें
14. चन्दनस्य गन्धः सुरभिः ।
15. कुङ्कुमस्य स्पर्शो मृदुः ।
16. शैले- शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे-गजे । साधवो नहि सर्वत्र, चन्दनं न वने वने ॥ 17. पादपानां भयं वातात्, पद्मानां शिशिराद्भयम् । पर्वतानां भयं वज्रात्, साधूनां दुर्जनाद् भयम् ।। 18. न कश्चित्कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित्कस्यचिद्रिपुः । कारणेन हि जायन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ।। 19. मधुभिर्भ्रमरा माद्यन्ति ।
20. वारिणः स्पर्शः शीतः ।
21. मेघो वारि वर्षति ।
22. हरी रमां पश्यति ।
23. मधुनि माधुर्यमस्ति । 24. वारिभिर्जीवा जीवन्ति ।
79 ७
25. शुचिने कुलाय स्वस्ति । 26. ज्ञानेन हीनाः पशुभिः समानाः ।
27. अमुष्मिन्नगरे पुराऽहं न्यवसम् । 28. एभिः कविभिः काव्यानि स्वादूनि विरच्यन्ते । 29. मधु तिष्ठति जिह्वाग्रे हृदये तु हलाहलम् । 30. जगति त्रीणि तत्त्वानि देवो गुरुर्धर्मश्च । 31. प्रदोषे दीपकश्चन्द्रः, प्रभाते दीपको रविः ।
त्रैलोक्ये दीपको धर्मः, सुपुत्रः कुलदीपकः ।। 32. अनित्यानि शरीराणि, विभवो नैव शाश्वतः । नित्यं संनिहितो मृत्युः, कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः ।
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आओ संस्कृत सीखें
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पाठ-28 इकारांत-उकारांत तथा ङी प्रत्ययांत दीर्घ ईकारांत एवं ऊकारांत स्त्रीलिंग नाम
प्रत्यय । 1 । स्
औ
अस् 2 । म्
औ
अस् 3
आ । भ्याम् । भिस् ।
भ्याम
भ्यस्
भ्यस्
आस् । भ्याम्
आस् ओस् नाम् 7 | आम् । ओस् । सु 1. ह्रस्व इकारांत-उकारांत स्त्रीलिंग नाम के चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी और सप्तमी
एक वचन के प्रत्यय विकल्प से ह्रस्व इकारांत-उकारांत पुंलिंग की तरह भी
होते हैं । 2. ह्रस्व इकारांत-उकारांत स्त्रीलिंग नामों को ह्रस्व इकारांत-उकारांत पुंलिंग के नियम लागू पडते हैं ।
मति-स्त्रीलिंग के रूप | 1 | मतिः । मती
मतयः । मती
मती: | 3 | मत्या
मतिभ्याम् मतिभिः मत्यै, मतये मतिभ्याम्
मतिभ्यः मत्याः , मते: मतिभ्याम् मतिभ्यः मत्याः, मतेः मत्योः
मतीनाम् मत्याम्, मतौ मत्योः मतिषु संबोधन हे मते ! हे मती ! हे मतयः!
| मतिम्
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धेनू
आओ संस्कृत सीखें
181
धेनु के रूप धेनुः
धेनवः धेनुम्
धेनूः धेन्वा
धेनुभ्याम् धेनुभिः धेन्वै, धेनवे .
धेनुभ्याम् धेनुभ्यः धेन्वाः धेनोः धेनुभ्याम् धेनुभ्यः
धेन्वाः धेनोः धेन्वोः धेनूनाम् | 7 | धेन्वाम, धेनौ । धेन्वोः | धेनुषु | संबोधन हे धेनो!
हे धेन ! हे धेनवः ! | 3. दीर्घ ईकारांत (ङी प्रत्ययांत) स्त्री लिंग नामों में प्रथमा एक वचन का प्रत्यय 0 है
नदी के रूप नदी नद्यौ
नद्यः | नदीम् | नद्यौ
| नदी: नद्या
नदीभ्याम् नदीभिः नद्यै
नदीभ्याम् नदीभ्यः नद्याः नदीभ्याम्
नदीभ्यः नद्याः नद्योः
नदीनाम् नद्याम् नद्योः संबोधन | हे नदि! हे नद्यौ! हे नद्यः !
नदीषु
1.
वध्वः
2. |
वधूः वधूम् वध्वा वध्वै
वधू के रूप
वध्वौ वध्वौ वधूभ्याम् वधूभ्याम्
वधूः। वधूभिः वधूभ्यः
4.
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आओ संस्कृत सीखें
82
7.
5. वध्वाः |वधूभ्याम्
वधूभ्यः वध्वाः वध्वोः
वधूनाम् वध्वाम् वध्वोः
वधूषु संबोधन | हे वधु! | हे वध्वौ!
हे वध्वः ! 4. संबोधन में दीर्घ ईकारांत और ऊकारांत स्त्रीलिंग नामों के अन्त्य स्वर स्
प्रत्यय सहित ह्रस्व होता है । नदी + स् = नदि
वधू + स् = वधु 5. स्वर के बाद तुरंत उकारांत वर्ण हो ऐसे (स्वरु को छोड़कर) उकारांत
गुणवाचक विशेषणों को स्त्रीलिंग में ई (डी) प्रत्यय विकल्प से होता है | साध्वी; साधुः चन्दना । बह्वी; बहुः मृद् । पाण्डुः भूमिः, यहां ई नहीं होगी ।
इकारांत-उकारांत नाम (स्त्रीलिंग) ऋद्धि = वैभव
मुक्ति = मोक्ष औषधि = दवाई
रात्रि = रात कीर्ति = प्रसिद्धि
रीति = रिवाज दुर्गति = खराब गति
वृष्टि = वर्षा भूमि = पृथ्वी
शक्ति = बल मति = बुद्धि
धेनु = गाय
दासी = दासी देवी = देवी नदी = नदी नारी = नारी भगिनी = बहन
ईकारांत-ऊकारांत स्त्री लिंग नाम
महिषी = पटरानी वापी = बावड़ी श्वश्रु = सास सरयू = नदी का नाम वधू = बहू
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आओ संस्कृत सीखें
= बाण (पुं.)
इषु:
ऋषभ = ऋषभदेव (पुं.) गोप
= ग्वाला (पुं.)
जलनिधि = समुद्र (पुं.)
नल = नलराजा (पुं.)
निधि = भंडार (पुं.)
मेरु = मेरु पर्वत (पुं.) लोक = लोग, जगत् (पुं.) विवाद शत्रु = दुश्मन (पुं.)
खेद (पुं.) झगडा
कृपण = लोभी (विशेषण)
=
खरु = कठिन (विशेषण) खल = दुर्जन (विशेषण)
क्रिया = क्रिया (स्त्री) देवता = देवता (स्त्री)
रथ्या =
मोहल्ला (स्त्री)
83
शब्दार्थ
शांता = स्त्री का नाम (स्त्री)
अंबु = पानी (नपुंसक)
तीर = किनारा ( नपुं.) परिपीडन = दुःख (नपुं.) प्रवहण = जहाज (नपुं.)
अधुना = अभी (अव्यय) अन्यत्र = दूसरी जगह (अव्यय) किम् = क्या (अव्यय)
दिवा = दिन में (अव्यय) वृथा = व्यर्थ (अव्यय)
पाण्डु = पीला (विशेषण)
जात = जन्मा हुआ (जन् + त) भूत कृदंत विपरीत = उल्टा (विशेषण)
पर = दूसरा (सर्वनाम). गृहीत्वा = ग्रहण करके (भूत कृदंत)
धातुएं तृप् = खुश होना - ( गण 4 परस्मैपदी)
ध्यै (ध्याय) = ध्यान करना (गण 1 परस्मैपदी)
प्र + सृ = फैलना (गण 1 परस्मैपदी ) संस्कृत में अनुवाद करो
1. कवियों के काव्य उनकी कीर्ति के लिए होते हैं । 2. ज्ञान और क्रिया द्वारा मुनि मुक्ति प्राप्त करते हैं । 3. मुनि रात्रि में श्री महावीर का ध्यान करते हैं । 4. धर्म मनुष्य को दुर्गति से बचाता है । 5. सरला ऋषभदेव को वंदन करती है ।
6. इस नदी का पानी बहुत मीठा है । 7. बहुएँ सास को विनय से नमन करती हैं ।
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आओ संस्कृत सीखें
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8. सोई हुई दमयंती को छोड़कर नलराजा अन्यत्र चला गया । 9. बहुत से देव-देवी के साथ इन्द्र मेरुपर्वत पर आए । 10. हे दासी ! पटरानी महल में है या नहीं ? 11. इस नदी में से यह वाहन समुद्र में जाता है । 12. समुद्र बहुतसी नदियों के पानी का भंडार है । 13. इस धारा नगरी में पहले बहुत से कवि थे । 14. इन फूलों की मालाएँ पटरानी के लिए ले जाती हूँ । 15. सज्जनों की कीर्ति तीनों लोक में फैलती है ।
हिन्दी में अनुवाद करो
1. गोपो धेनूग्रमं नयति ।
2. वाप्या गृहीत्वाम्बु नयन्ति वध्वः । 3. अमूषामौषधीनां लताः किं पश्यसि ?
4. कृपणस्यर्द्धया परे सुखमनभुवन्ति ।
5. रामः स्वस्यै भगिन्यै शान्तायै बहु धनमयच्छत् ।
6. अमूभी रथ्याभी रथो नृपतेर्गतः ।
7. अमुष्यै साध्व्यै चन्दनाया आर्यायै नमो नमः
8. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
9. अनया रीत्याऽहमिषुभिः शत्रुमजयम् । 10. अयोध्या नगरी सरखास्तीरे भवति ।
"
11. “यूयं वयं” “वयं यूयं”, इत्यासीन्मतिरावयोः । किं जातमधुना येन, “यूयं यूयं" "वयं वयम्” ।। 12. वृथा वृष्टिः समुद्रेषु, वृथा तृप्तस्य भोजनम् । वृथा दानं समर्थस्य, वृथा दीपो दिवाऽपि च ।।
13. विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेषां परिपीडनाय । खलस्य साधोर्विपरीतमेतज्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ।।
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आओ संस्कृत सीखें
* 85
3.
पाठ-29
वर्तमान कृदन्त 1. एक क्रिया के साथ दूसरी क्रिया होती हो तो गौण क्रिया को बतानेवाले धातु को वर्तमान
कृदन्त के प्रत्यय लगते हैं। 2. वर्तमान काल में परस्मैपदी धातु को अत् (शतृ) और आत्मनेपदी धातु को आन (आनश्) प्रत्यय लगकर वर्तमान कृदन्त बनता है |
कर्तरि वर्तमान कृदन्त गम् + अत् गम् + अ + अत् गच्छ + अ + अत् = गच्छत् नृत्यत्, विशत्, चोरयत् आत्मनेपदी के आन प्रत्यय के पहले अ हो तो उस 'अ' के बाद में 'म्' जोड़ा जाता है । उदा. 1. ईक्ष + अ + आन
ईक्ष + अ + म् + आन = ईक्षमाणः ____2. वृत् का वर्तमानः चन्द्रमीक्षमाणाचकोरा मोदन्ते । चंद्र को देखते हुए चकोर पक्षी खुश होते हैं ।
कर्मणि वर्तमान कृदन्त गम् + य + म् + आन = गम्यमान
नृत्यमान, विश्यमान सङ्घन गम्यमानं नगरं दूरमस्ति । संघ द्वारा जाया जाता हुआ नगर दूर है ।
भावे वर्तमान कृदन्त प्र + काश् + य + म् + आन = प्रकाश्यमान उदा. चन्द्रेण प्रकाश्यमानमस्ति ।
चंद्र द्वारा प्रकाशित है ।
भाले
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आओ संस्कृत सीखें
वर्तमान कृदन्त के रूप 4. अत् (शतृ) प्रत्ययान्त वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय व्यंजनांत नामों के अनुसार
5. वर्तमान कृदन्त का अत् (शतृ) प्रत्यय, कर्तरि भूतकृदन्त का तवत् (क्तवतु)
प्रत्यय, तद्धित का मत् (मतु) प्रत्यय, ईयस् (ईयसु) प्रत्यय, महत् (महत)
विशेषण और भवत् (भवतु) सर्वनाम ये सभी नाम ऋ और उ ईत्वाले हैं। 6. पुंलिंग और स्त्रीलिंग में विभक्ति के पहले पाँच प्रत्यय घुट् कहलाते है । 7. नपुंसक लिंग प्रथमा-द्वितीया बहुवचन का इ प्रत्यय घुट् कहलाता है |
घुट् प्रत्यय आने पर ऋ और उ इत् वाले नाम के अंतिम व्यंजन के पहले न लगता है । उदा. गच्छत् + 0
गच्छन्त् 9. पद के अंत में व्यंजन का संयोग हो तो संयोग के अंत्य व्यंजन का लोप होता है । उदा. गच्छन्त-गच्छन् ।
पुंलिंग के रूप | प्रथमा/सं. गच्छन् । गच्छन्तौ । गच्छन्तः | द्वितीया | गच्छन्तम् । गच्छन्तौ । गच्छतः | तृतीया । गच्छता गच्छद्भ्याम् | गच्छद्भिः
चतुर्थी | गच्छते । गच्छद्भ्याम् | गच्छदभ्यः पंचमी | गच्छतः गच्छद्भ्याम् | गच्छद्भ्यः षष्ठी | गच्छतः ।
गच्छतोः गच्छताम् सप्तमी | गच्छति | गच्छतोः गच्छत्सु 10. ऋ और उ ईत्वाले नामों को स्त्रीलिंग में ई (ङी) प्रत्यय लगता है
गच्छत् + ई 11. स्त्रीलिंग का ई प्रत्यय और नपुंसक लिंग द्विवचन का ई प्रत्यय लगने पर
अ और य विकरण प्रत्यय के बाद रहे अत् प्रत्यय का अन्त होता है ।
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आओ संस्कृत सीखें
187उदा. गच्छन्ती, चोरयन्ती, नृत्यन्ती छठे गण के अ विकरण प्रत्यय के बाद में रहे अत् प्रत्यय का विकल्प से अन्त् होता है।
स्त्रीलिंग के रूप गच्छन्ती
गच्छन्त्यौ गच्छन्त्यः शेष रूप नदी के अनुसार होंगे ।
नपुंसक लिंग के रूप गच्छत्, द् गच्छन्ती गच्छन्ति (प्र.द्वि.सं.)
___ शेष रूप पुंलिंग के अनुसार 12. अस् गण 2 का कर्तरि वर्तमान कृदन्त सत् होता है |
सत् अर्थात् होता हुआ । सत् अर्थात् अच्छा, पूज्य पुलिंग रूप- सन् सन्तौ सन्तः (गच्छत् की तरह) स्त्रीलिंग रूप सती सत्यौ सत्यः (नदी की तरह)
नपुंसक लिंग सत्, द् सती सन्ति (शेष पुंलिंग की तरह) 13. जो क्रिया अन्य क्रिया को बताती हो उस नाम को सप्तमी विभक्ति होती
है उसी विभक्ति को सति सप्तमी कहते हैंउदा. वर्षति मेघे चौराः आगताः ।
जब मेघ बरसता था, तब चौर आए थे । बरसात के बरसने की क्रिया, चौरों के आगमन को बताती है अतः मेघ शब्द को सप्तमी विभक्ति हुई है । उसी प्रकार वर्षन् कृदन्त भी मेघ का
विशेषण होने से उसे भी सप्तमी विभक्ति हुई है । 14. सति सप्तमी विभक्ति के प्रसंग में यदि वाक्य में अनादर दिखता हो तो
षष्ठी विभक्ति भी होती है । उदा. नन्दाः पशव इव हताः पश्यतो राक्षसस्य । राक्षस नाम के मंत्री के देखने पर भी नंदों को पशुओं की तरह मारा गया ।
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आओ संस्कृत सीखें
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शब्दार्थ अग्नि = आग (पुंलिंग)
चित्तरंजन = चित्त का रंजन (नपुं.) आनंद = आनंद (पुं.)
दूर = दूर (नपुं.) काल = समय (पुं.)
फल = फल (नपुं.) केतकी गंध = केतकी की गंध (पुं.) पुंडरीक = कमल (नपुं.) चंद्रकांत = चंद्रकांत मणि (पुं.) भद्र = कल्याण (नपुं.) दिन = दिवस (पुं.)
मूल = जड़ (नपुं.) दीप = दीपक (पुं.)
अशुभ = अशुभ (विशेषण) दुष्पुत्र = खराब पुत्र (पुं.) उद्गत = उगा हुआ (विशेषण) नाथ = स्वामी (पुं.)
नीच = हल्का (विशेषण) पतंग = सूर्य (पुं.)
फल = कार्य (विशेषण) वह्नि = आग (पुं.)
इव = तरह (अव्यय) शुष्कवृक्ष = सूखा वृक्ष (पुं.) स्वयम् = खुद (अव्यय) षट्पद = भ्रमर (पुं.)
आघ्रातुम् = सूंघने के लिए (हेत्वर्थ कृदन्त) सङ्ग = संगति (पुं.)
चेत् = यदि (अव्यय) हिमरश्मि = चंद्र (पुं.)
दृष्ट = देखा हुआ (भूतकृदंत) जननी = माता (स्त्रीलिंग) नष्ट = नाश हुआ (भूतकृदंत) पताका = ध्वजा (स्त्रीलिंग) हत = मारा हुआ (भूतकृदंत) प्रजा = प्रजा (स्त्रीलिंग)
पूजित = पूजा हुआ (भूतकृदंत) कानन = जंगल (नपुं.)
' धातुओं के अर्थ अप + ईक्ष् = अपेक्षा रखना (गण 1 आत्मनेपदी) उद् + गम् = उगना, ऊँचे जाना (गण 1 परस्मैपदी) वि + कस् = विकसना, विकस्वर होना कस् = खिलना (गण 1 परस्मैपदी) गै (गाय) = गाना (गण 1 परस्मैपदी) दु = झरना, भीगना (गण 1 परस्मैपदी) रट् = रोना, पढना (गण 1 परस्मैपदी) वि + सम् + वद् = विपरीत बोलना, निष्फल होना (गण 1 परस्मैपदी) उप + विश् = बैठना (गण 6 परस्मैपदी)
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आओ संस्कृत सीखें
संस्कृत में अनुवाद करो 1. मेघ के बरसते मोर नाचते हैं । 2. दीपक होने पर अग्नि की अपेक्षा कौन रखता है ? 3. महल में प्रवेश करती हुई रानियों को देखते हुए राजा खडा है । 4. समय बीतने पर उसका शोक शांत हुआ | 5. दिन बीतने पर रतिलाल पंडित हुआ । 6. बेल का मूल नष्ट होने पर पत्ते सूखते हैं । 7. गुरु के खड़े रहने पर भी शिष्य बैठते हैं । 8. जीवित मनुष्य कल्याण देखता है । 9. सज्जन का सज्जन के साथ संग पुण्य से ही होता है | 10. गाँव जाती हुई माता को देख बाला रोती है । 11. तुम्हारे घर आने पर मुझे आनंद होता है । 12. वन में चरती हुई गायों ने तालाब में पानी पीते हुए बाघ को देखा । 13. चोर इस मार्ग से जानेवाले लोगों का धन नहीं चुराते हैं । 14. दौड़ते हुए घोड़े के ऊपर से वह गिर गया । 15. चौरों के द्वारा चुराए हुए, आभूषण हमें मिले । 16. लोगों को पीड़ा देनेवाले मनुष्यों को राजा दंड देता है और मारता है ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. नगरं प्रविशती मित्रे युष्माकं मुदे कथं न भूते? । 2. सतीं सीतां रामो वनेऽत्यजत् । 3. उपाये सति कर्तव्यं सर्वेषां चित्तरञ्जनम् । 4. पताकाभि भूष्यमाणे जिनप्रासादे गायन्त्यो रममाणाश्च बाला जनकेन
दृष्टाः । 5. देवेनानुभूयमानाय सुखाय नृपो नित्यं स्पृहयति । 6. अस्मिन्कासारे प्रभूतैः कमलै भूयमानमस्ति । 7. नाथे कुतस्त्वय्यशुभं प्रजानाम् । . 8. यस्मिञ्जीवति जीवन्ति बहवः, सोऽत्र जीवति ।
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आओ संस्कृत सीखें
1903 9. पूजितैः पूज्यमानो हि केन केन न पूज्यते ? 10. विकसति हि पतङ्गस्योदये पुण्डरीकम् ।
द्रवति च हिमरश्मावुद्गते चन्द्रकान्तः ।। 11. न भवति, भवति च न चिरं, भवति चिरं चेत्, फले विसंवदति ।
कोपः सत्पुरुषाणां, तुल्यः स्नेहेन नीचानाम् ।। 12. गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते, दूरेऽपि वसतां सताम् ।
केतकीगन्धमाघ्रातुं, स्वयं गच्छन्ति षट्पदाः ।। 13. एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना ।
दह्यते काननं सर्वं, दुष्पुत्रेण कुलं यथा ।।
इस्
पाठ-30
विध्यर्थ
परस्मैपदी प्रत्यय प्रथम पुरुष । इयम् । इव । इम । | द्वितीय पुरुष
इतम् । इत | तृतीय पुरुष | इत् । इताम् । इयुस्
आत्मनेपदी प्रत्यय प्रथम पुरुष | ईय | ईवहि । ईमहि | द्वितीय पुरुष । ईथास् | ईयाथाम् ईध्वम् | तृतीय पुरुष । ईत | ईयाताम् | ईरन्
कर्तरि रूप नम् = नमस्कार करना - परस्मैपदी नमेयम्
नमेव
नमेम नमेः
नमेतम् । नमेत नमेत्
नमेताम्
नमेयुः
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०८
नम्येय
आओ संस्कृत सीखें
91 भाष = बोलना - आत्मनेपदी | भाषेय .
भाषेवहि । भाषेमहि । भाषेथाः
भाषेयाथाम् भाषेध्वम् भाषेत
भाषेयाताम् भाषेरन् कर्मणि रूप - नम् नम्येवहि
नम्येमहि नम्येथाः
नम्येयाथाम् । नम्येध्वम् नम्येत
नम्येयाताम् नम्येरन्
भाष भाष्येय
भाष्येवहि
भाष्येमहि भाष्येथाः
भाष्येयाथाम् भाष्येध्वम् भाष्येत
भाष्येयाताम् । भाष्येरन् । अस् = होना (गण 2) | स्याव
स्याम स्यातम्
स्याताम् 1. किसी भी कार्य का विधान करना हो, उपदेश देना हो या सूचना करनी हो
तो ऐसे प्रसंगों में विध्यर्थ अर्थात् सप्तमी विभक्ति के प्रत्यय लगते है । उदा. जना धर्म आचरेयुः ।
मनुष्य को धर्म का आचरण करना चाहिए ।
किसी वस्तु का निर्णय करने के लिए प्रश्न करना हो। उदा. किं भो व्याकरणं शिक्षेय उत सिद्धान्तम् ?
मैं व्याकरण सीखू या सिद्धांत ? प्रार्थना अर्थ में उदा. हे गुरो ! व्याकरणं पठेयम् ।
हे गुरुदेव ! मैं व्याकरण पढूंगा ।
स्याम्
स्याः
स्यात
स्यात्
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आओ संस्कृत सीखें 2. एक वाक्य कारण बताता हो और दूसरा वाक्य फल बताता हो तो भविष्यकाल में धातु
को सप्तमी विभक्ति के प्रत्यय विकल्प से लगते हैं । उदा. यदि धर्म आचरे, तर्हि स्वर्गं गच्छेः ।
यदि तू धर्म करेगा तो स्वर्ग में जाएगा । 3. अपनी शक्ति के विषय में संभावना बताते हो तो धातु को सप्तमी विभक्ति के प्रत्यय
लगते हैं। अपि लालचन्द्रो व्याकरणं पठेत् । लालचंद्र व्याकरण पढ़ भी सकता है । अपि समुद्रं बाहुभ्यां तरेत् ।
कदाचित् वह दो भुजाओं के द्वारा समुद्र को तैर सकता है । 4. पदांत में रहे वर्ग के तीसरे व्यंजन के बाद ह आए तो ह के स्थान पर, पूर्व __ के व्यंजन के वर्ग का चौथा व्यंजन विकल्प से होता है । उद् + हरति = उद्धरति - उदहरति
धातुएँ आ + चर् = आचरण करना मूल् = बोना, मूल डालना उद् + ह् = उद्धार करना
(गण 10 परस्मै.) तप = तपना (गण 1 परस्मैपदी) शिक्ष = सीखना (गण 1 आत्मनेपदी) मन् = मानना (गण 4 आत्मनेपदी) सम् + = अच्छी तरह से देखना वर्ज = छोडना (गण 10 परस्मैपदी)
शब्दार्थ कण्टक = कांटा (पुं.लिंग)
आयतन = स्थान (नपुं. लिंग) अत्यय = नाश (पुं.)
अर्थकृच्छ्र = पैसे का दुःक (नपुं. लिंग) देश = देश (पुं.लिंग)
प्रहरण = हथियार (नपुं. लिंग) प्राज्ञ = होशियार (पुं.लिंग) जीवनीय = पानी (नपुं. लिंग) बाहु = हाथ (पुं.लिंग)
अथ = अब (अव्यय) विद्यागम = विद्या की प्राप्ति (पु.लिंग) अपि = भी (अव्यय) व्याधि = रोग (पुं.लिंग)
अति = ज्यादा (अव्यय) सुखार्थ = सुख के लिए (पुं.लिंग) उत = अथवा, या (अव्यय) वसति = रहने का स्थान (स्त्रीलिंग) तर्हि = तो (अव्यय) वृत्ति = आजीविका (स्त्रीलिंग) भोस् = हे (अव्यय)
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आओ संस्कृत सीखें
यदि = यदि (अव्यय) पूर्व = पहेला (सर्वनाम) कृत = किया हुआ (विशेषण) . तीक्ष्ण = बारीक (विशेषण) पथ्य = हितकारक (विशेषण) प्रसन्न = खुश (विशेषण) व्यथाकर = पीड़ा करनेवाला (विशे.) सकल = समस्त (विशेषण)
93
मनुष्य सत्य बोले ।
राजा प्रजा का रक्षण करे ।
सार = श्रेष्ठ (विशेषण) सुंदर = मनपसंद (विशेषण) फलदायक फलदेनेवाला (विशेषण) असार = खराब, बुरा (विशेषण) असमीक्ष्य (न+सम्+ईक्ष्+य) = अच्छी तरह से देखे बिना (सं. भू. कृ.) तप्त = तपा हुआ (भूतकृदंत)
संस्कृत अनुवाद करे
=
1.
2.
3.
शिष्य गुरु को वंदन करे ।
4. हे विद्यार्थियों ! तुम सुबह पढ़ो ।
5. यदि तुम सुख छोड़ोगे तो विद्या प्राप्त होगी ।
6. यदि राजा प्रजा का पालन करे तो प्रजा राजा की आज्ञा माने ।
7. यदि मनुष्य धर्म करेगा तो सुख प्राप्त करेगा ।
8.
हम यहाँ उद्यान में बैठें ।
9.
अरे ! मैं राजा की सेवा करूँ या ईश्वर का भजन करूँ ?
10. हे लोगो ! सदाचार का पालन करना चाहिए और लोभ का त्याग करना
चाहिए |
11. यहाँ झाड़ के नीचे बैठकर हम विश्राम लें ।
12. आज रात्रि में बरसात हो भी सकती है ।
13. यदि मैं सत्य बोलूँ तो राजा द्वारा कैदखाने में से मुक्त बनूँ ।
14. 'अब मैं अधर्म नहीं करूंगा' इस प्रकार उस राजा ने धर्माचार्य को कहा ।
15. अब तुम्हे धन का लोभ छोड़ना चाहिए ।
16. राजा ब्राह्मणों को गायें देता है ।
17. चंद्र आकाश में प्रकाश दे ।
18. कदाचित् राम रावण के साथ युद्ध करे ।
19. अग्नि द्वारा तपा हुआ सोना पिघल जाता है । (दु)
20. मिट्टी के घड़े बनते हैं और सोने के अलंकार बनते हैं ।
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1943
हिन्दी में अनुवाद करो 1. असारात्सारमुद्धरेत् । 2. अति सर्वत्र वर्जयेत् । 3. अहं पापं नाचरेयम् । 4. भो देवदत्त ! आवां द्वौ शत्रुञ्जयं गच्छेव । 5. प्राणानामत्ययेऽपि धर्मो न त्यज्येत । 6. देवदत्तस्य व्याधिनश्येद्यदि स पथ्यं सेवेत । 7. जनाः सुखमनुभवेयुर्यद्यधर्मं नाचरेयुः । 8. अत्र मुनीनां वसतिं गच्छेम । 9. अपि देवदत्तो व्यापारेण बहू धनं लभेत । 10. कृतो हि संग्रहो लोके काले स्यात्फलदायकः । 11. प्रहरेद् बाहुना को हि तीक्ष्णे प्रहरणे सति ! 12. एकाऽपि हि हरेच्चित्तं किं पुनः सकलाः कलाः ? 13. विनाऽप्यन्नेन जीव्येत, जीवनीयं विना न तु । 14. यस्य प्रसन्नो नृपतिः तस्य कः स्यान्न सेवकः । 15. न मुह्येदर्थ-कृच्छ्रेषु न च धर्म परित्यजेत् । 16. किमप्यस्ति स्वभावेन सुन्दरं वाप्यसुन्दरम् ।
यदेव रोचते यस्मै भवेत्तत्तस्य सुन्दरम् ।। 17. यस्मिन्देशे न संम्मानो, न वृत्ति न च बान्धवः ।
न च विद्यागमः कश्चित्, तं देशं परिवर्जयेत् ।। 18. शत्रुमुन्मूलयेत्प्राज्ञस्तीक्ष्णं तीक्ष्णेन शत्रुणा ।
व्यथाकरं सुखाय, कण्टकेनेव कण्टकम् ।। 19. गच्छत्येकेन पादेन, तिष्ठत्येकेन पण्डितः ।
ना-ऽ-समीक्ष्य परं स्थानं, पूर्वमायतनं त्यजेत् ।।
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आओ संस्कृत सीखें
495
पाठ-31 आज्ञार्थ-पंचमी परस्मैपदी-प्रत्यय
आनि
आव
आम
तम्
।
त
ताम्
आत्मनेपदी-प्रत्यय आवहै । इथाम् . | इताम्
कर्तरि रूप गम् (गच्छ) = जाना
आमहै। ध्वम् अन्ताम्
ताम्
|
गच्छानि
गच्छाव
गच्छ
गच्छाम गच्छत गच्छन्तु
गच्छतु
गच्छतम् गच्छताम् भाष = बोलना भाषावहै भाषेथाम् । भाषेताम्
भाषै
भाषस्व
भाषामहै भाषध्वम् भाषन्ताम्
भाषताम्
गम्यै
कर्मणि रूप
गम् गम्यावहै गम्येथाम् गम्येताम्
गम्यामहै
गम्यस्व
गम्यध्वम् गम्यन्ताम्
गम्यताम्
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आओ संस्कृत सीखें
196
भाष्यै
अस्तु
सन्तु
भाष भाष्यावहै
भाष्यामहै भाष्यस्व
भाष्येथाम् भाष्यध्वम् भाष्यताम्
भाष्येताम् भाष्यन्ताम्
अस् के रूप असानि असाव
असाम एधि
स्तम्
स्ताम् 1. आज्ञा, अनुमति, सम्मति आदि प्रदान करनी हो तो धातु को पंचमी
विभक्ति-आज्ञार्थ के प्रत्यय लगते हैं । उदा. ग्रामं गच्छ - गाँव जाओ ।
___ अथ नगरं प्रविश - नगर में प्रवेश करो | 2. आशीर्वाद प्रदान करना हो तो धातु को पंचमी विभक्ति के प्रत्यय लगते हैं ।
चिरं जीव (दीर्घ काल तक जीओ)
चिरं जीवतु (दीर्घ काल तक जीओ) 3. विधि, संप्रश्न और प्रार्थना अर्थ में पंचमी विभक्ति के भी प्रत्यय लगते हैं ।
विधिः देवदत्तो ग्रामं गच्छतु - देवदत्त गाँव जाए । संप्रश्नः किं भो व्याकरणं शिक्षै उत सिद्धान्तम्?
मैं व्याकरण सी या सिद्धांत? प्रार्थनाः अहं व्याकरणं पठानि ।
मैं व्याकरण सीखू ? ___4. आशीर्वाद अर्थ में द्वितीय पुरुष एक वचन के 'तु' और 'हि' प्रत्यय का
तात् आदेश होता है . उदा. जीव-जीवतात्
जीवतु-जीवतात् । अस्तु-स्तात् । 5. कृतम्, भवतु, अलं, किम् आदि निषेधार्थक अव्यय के साथ जुड़े नाम को
तृतीया विभक्ति होती है।
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आओ संस्कृत सीखें उदा. कृतं तेन । उसके बिना चलेगा।
शब्दार्थ अपराध = गुनाह (पुंलिंग) यद् = जो (अव्यय) कौन्तेय = कुंती का पुत्र (पुंलिंग) पराङ्मुख = विपरीत मुखवाला (विशे.) गोप = ग्वाला (पुंलिंग)
तृषित = प्यासा (विशेषण) जिनेन्द्र = जिनेश्वर देव (पुंलिंग) दीन = गरीब (विशेषण) वर्धमान = महावीर स्वामी (पुंलिंग) दुःखित = दुःखी (विशेषण) अंबा = माता (स्त्री लिंग) नीरुज = रोग रहित (विशेषण) आङ्ग्ल भाषा=अंग्रेजी भाषा(स्त्रीलिंग) रूप = वर्ण (नपुं.) शांति = शांति (स्त्री लिंग) शिव = कल्याण (नपुं.) अतस् = यहाँ से (अव्यय) समीप = पास में (नपुं.) पुरस् = आगे, सामने (अव्यय) सर्वजगत् = संपूर्ण जगत् (नपुं.) मा = नहीं (अव्यय)
धातुएँ भृ = पोषण करना (गण 1 उभयपदी) क्षम् (क्षाम) = क्षमा करना, माफ करना (गण 4, परस्मैपदी) अप् = प्रदान करना (गण 10 परस्मैपदी) मृग = शोध करना (गण 10 आत्मनेपदी)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. देवदत्त ! यहाँ से जा, खड़ा मत रह । 2. मनुष्यो ! सत्य बोलो, लोभ छोड़ो । 3. भूखे को भोजन दो और प्यासे को पानी दो । 4. यदि कीर्ति चाहते हो तो गरीबों की आपत्ति दूर करो । 5. छात्रों द्वारा विद्या प्राप्त की जाए । 6. मैं देवालय में जाऊँ और देव की पूजा करूँ । 7. सभी जगह लोग शांति प्राप्त करें | 8. हमारे द्वारा शत्रुओं के अपराध माफ किए जाँय ।
ST
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आओ संस्कृत सीखें 9. तुम्हें धर्म का लाभ हो । 10. वे मनुष्य सत्य शोधे । 11. तुम धर्म करो, पाप मत करो | 12. तुम्हारे द्वारा विद्यार्थियों को पुस्तकें दी जाँय | 13. मैं संसार की कैद में से मुक्त बनूँ। 14. अरे नौकरो ! तुम इन वृक्षों को पानी द्वारा सींचो । 15. हे पुत्र ! तू साधु बन और बहुतसी विद्याएँ प्राप्त कर | 16. अरे ! तू राजा के पास जा और जाकर राजा को कह कि 'इस पिंजरे में से पक्षियों को
छोड़ दो ।' 17. पैसे के लोभ से भी मेरे द्वारा असत्य न कहा जाय | 18. इन मिट्टी के घड़े को घर ले जाओ | 19. ग्वाला गायों को गाँव में ले जाए | 20. आओ ! हम यहाँ उद्यान में बैठे । 21. दिनेश ! अब तू पढ़ खेल मत |
हिन्दी में अनुवाद करो 1. नमोऽस्तु वर्धमानाय । 2. शिवमस्तु सर्वजगतः । 3. भोः छात्रा: व्याकरणं पठत । 4. बाला देवस्य पुरो नृत्यन्तु । 5. रतिलाल ! त्वमसत्यं न वद | 6. शत्रवः पराङ्मुखा भवन्तु । 7. तृष्णेऽधुना मुञ्च माम् । 8. त्वं मम मित्रमेधि । 9. पापानि शाम्यन्तु ।
10. जयन्तु ते जिनेन्द्राः । 11. रे रे जनाः ! विनयं न परित्यजत । 12. भो देवदत्त ! आसने उपविश, जलं च पिब | 13. देवदत्त ! चिरं जीवतात्, विद्यां च लभस्व । 14. हे अम्ब ! पुनरपि वयं शत्रुञ्जयं गच्छाम । 15. किङ्करा भारं वहत, झटिति चलत । 16. किं भो: सस्कृतां भाषां शिक्षामहै उताङ्ग्लभाषाम् ?
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आओ संस्कृत सीखें
17. युष्माभि र्देवः पूज्यतां तस्य चाज्ञानुरुध्यताम् ।
18. गुणं पृच्छ, न रूपम्, शीलं कुलं च पृच्छ, न धनम् । 19. काले वर्षतु पर्जन्य: सुप्रभूतेन वारिणा ।
20. दरिद्रान्भर कौन्तेय ! मा यच्छ प्रभवे धनम् । व्याधितस्यौषधं पथ्यं, नीरुजस्य किमौषधैः ।।
पाठ-32
समास
1.
एक नाम (पद) अपने साथ संबंध रखनेवाले दूसरे नाम (पद) के साथ जुड़कर संक्षेप में जो एक पद बनता है, उसे समास कहते हैं ।
2.
समास के मुख्य चार भेद हैं.
बहुव्रीहि, अव्ययीभाव, तत्पुरुष और द्वन्द्व ।
99
3. एक साथ में बोलते समय 'च' अव्यय से जुड़े हुए नामों के समास को
द्वंद्व समास कहते हैं
उदा.
विग्रह
रामश्च लक्ष्मणश्च =
समास
रामलक्ष्मणौ
4. अनेक पद जब एक पद बनता है तब प्रत्येक पद से जुड़े हुए विभक्ति के प्रत्ययों का लोप हो जाता है और उसके बाद समास हुए पद के साथ विभक्ति के प्रत्यय लगते हैं ।
उदा. रामश्च लक्ष्मणश्च रामलक्ष्मण + औ
रामलक्ष्मणौ
5. बहुव्रीहि और अव्ययीभाव से भिन्न प्रकार का तत्पुरुष समास होता है, उसके अनेक भेद हैं ।
=
6. कई षष्ठ्यन्त नाम अपने साथ संबंध रखनेवाले नाम के साथ समास के रूप में जुड़ते हैं, उसे षष्ठी तत्पुरुष समास कहते है ।
गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम् गंगा का पानी = गंगाजल
7. न (नञ्) अव्यय दूसरे नाम के साथ समास पाता है, उसे नञ् तत्पुरुष समास कहते
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2100
आओ संस्कृत सीखें
हैं। 8. व्यंजनादि उत्तर पद पर न (नञ्) का अ हो जाता है |
न धर्मः - अधर्मः 9. स्वरादि उत्तर पद पर न (न) का अन् हो जाता है । न अर्थः - अनर्थः 10. एक समान विभक्ति में रहा विशेषण नाम, अपने विशेष्य नाम के साथ
समास पाता है, उसे कर्मधारय-तत्पुरुष समास कहते हैं | उदा. श्वेतश्च असौ पटश्च = श्वेतपटः ।
शब्दार्थ अभ्यास = आदत (पुंलिंग) मैत्री = मित्रता (स्त्रीलिंग) प्लवङ्ग = बंदर (पुंलिंग) विभूति = वैभव (स्त्रीलिंग) भुजङ्ग = सर्प (पुंलिंग) शाखा = डाल (स्त्रीलिंग) भृङ्ग = भौरा (पुंलिंग)
द्वार = दरवाजा (नपुं. लिंग) भेद = अलग (पुंलिंग)
मौन = मौन (नपुं. लिंग) मध्य = बीच में (पुंलिंग)
वर = अच्छा (नपुं. लिंग) विभाग = अलग करना (पुंलिंग) स्वप्न = स्वप्न (नपुं. लिंग) विहङ्ग = पक्षी (पुंलिंग)
क्षीर = दूध (नपुं. लिंग) तरुणी = युवास्त्री (स्त्रीलिंग) जीर्ण = क्षीणहुआ (विशेषण)
धातु ह्वे (वय) = बुलाना (गण 1 उभयपदी) वाञ्छ् = इच्छाकरना (गण 1 परस्मैपदी)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. उत्तम मनुष्य धर्म नहीं छोड़ते हैं । 2. नदी के किनारे वृक्ष होते हैं । 3. घर के द्वार पर वह खड़ा है । 4. देव और गुरु पूज्य हैं । 5. हाथी, घोड़े और बैल पानी पीकर गए । 6. पंडितों की सभा में जो पंडित न हो, उसे मौन रहना चाहिए । 7. सुख और दुःख आते हैं और चले जाते है ।
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1014
आओ संस्कृत सीखें
हिन्दी में अनुवाद करो 1. विनये शिष्य-परीक्षा । 2. अ-मोघं देव-दर्शनम् । 3. परोपकारः पुण्याय पापाय पर-पीडनम् । 4. क्रोधो मूलमनर्थानां क्रोधः संसार-बन्धनम् । 5. स्वप्नेऽपिन स्व-देहस्य, सुखं वाञ्छन्ति साधवः । 6. हंसःशुक्लो बकःशुक्लः, को भेदो बक-हंसयोः ।
नीर-क्षीर-विभागे तु हंसो हंसो बको बकः ।। 7. विदेशेषु धनं विद्या, व्यसनेषु धनं मतिः ।
पर-लोके धनं धर्मः, शीलं सर्वत्र वै धनम् ।। 8. काक आह्वयते काकान्, याचको न तु याचकान् ।
काक-याचकयोर्मध्ये, वरं काको न याचकः ।। 9. ययोरेव समं वित्तं, ययोरेव समं कुलम् ।
तयोमैत्री विवाहश्च, नोत्तमाधमयोः पुनः ।। 10. अनभ्यासे विषं विद्या, अ-जीर्णे भोजनं विषम् ।
विषं सभा दरिद्रस्य, वृद्धस्य तरुणी विषम् ।। 11. मूलं भुजङ्गैः शिखरं प्लवङ्गैः शाखा विहङ्गैः कुसुमं च भृङ्गैः । श्रितं सदा चन्दन-पादपस्य, परोपकाराय सतां विभूतयः ।।
पाठ-33
समास 1. एक समान विभक्ति में रहा नाम, दूसरे नाम के साथ समास होकर अन्य
पद का विशेषण बनता है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं । बहुव्रीहि समास के विग्रह में अन्यपद यत् सर्वनाम को उस उस अर्थ में द्वितीया से लेकर सभी विभक्तियाँ लगती हैं - उदा. श्वेतम् अम्बरं यस्य स श्वेताम्बरो मुनिः ।
सफेद कपड़ेजिसके हैं, ऐसे श्वेतांबर मुनि । श्वेतं अम्बरं येषां ते श्वेताम्बरा मुनयः ।
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102
आओ संस्कृत सीखें
21025 श्वेत कपड़ेवाले मुनि। लम्बौ कौँ यस्य स लम्बको रासभः । बहु ज्ञानं यस्याः सा बहुज्ञाना चन्दना । नञ् बहुव्रीहि न विद्यन्ते चौराः यस्मिन् स अचौरो ग्रामः । जहाँ चौर नहीं हैं, ऐसा चौर विना का गाँव | नास्ति अन्तः यस्य तद् अनन्तं ज्ञानम् ।
जिसका कोई अंत नहीं है, ऐसा अनंतज्ञान | 2. तृतीयांत नाम के साथ में सह अव्यय समास पाता है, उसे सहार्थ बहुव्रीहि समास
कहते हैं। 3. बहुव्रीहि समास में सह अव्यय का विकल्प से 'स' होता है ।
पुत्रेण सह गतः सपुत्रः / सह पुत्रः गतः ।
शोकेन सह वर्तते- सशोक:- सहशोकः वर्तते ।। 4. भिन्न भिन्न अर्थ में रहे हुए अव्यय, दूसरे नाम के साथ में पूर्व पद की मुख्यता से नित्य
समास पाते हैं-उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं । उदा. वनस्य समीपम् = उपवनम् - वन के पास
रथस्य पश्चात् = अनुरथम् - रथ के पीछे 5. अकारांत अव्ययी भाव समास की विभक्ति का पंचमी सिवाय के प्रत्ययों का अम् आदेश होता है- उपवनम् ।
शब्दार्थ अन्त = किनारा (पुंलिंग) कुटुम्बक = कुटुंब (नपुं.लिंग) प्रसाद = महेरबानी (पुंलिं.) चरित = वर्तन (नपुं. लिंग) रासभ = गधा (पुंलिंग)
पत्तन = पाटण (नपुं. लिंग) वह्नि = आग (पुंलिंग)
इव = तरह (अव्यय) विघ्न = अंतराय (पुंलिंग)
एकदा = एक बार (अव्यय) वसुधा = पृथ्वी (स्त्री लिंग) क्षम = समर्थ (विशेषण) वसुन्धरा = पृथ्वी (स्त्री लिंग) वीत = गया हुआ (विशेषण) अंबर = आकाश (नपुं.लिंग) रुष्ट = रोषायमान (भूतद्वंदत) द्रष्टुम = देखने के लिए (हे.कृ.) तुष्ट = खुश हुआ (भूतकृदंत) मत्त = उन्मत्त (भू.कृ.)
लुप्त = नष्ट हुआ (भू.कृ.)
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आओ संस्कृत सीखें
2103 -
धातुएं रुष = गुस्सा करना (गण 4, परस्मैपदी) लुप् = लुप्त होना (गण 4, परस्मैपदी) विद् = विद्यमान होना (गण 4, आत्मनेपदी)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. पर्वत के पास में नदी बहती है । 2. वह नदी मीठे जलवाली है । 3. जिसमें भय नहीं, ऐसे ये मार्ग हैं । 4. प्रियदर्शन पुत्र के साथ पाटण आया है । 5. जिसमें से राग चला गया, ऐसे श्री महावीर हमारे नाथ हैं | 6. राम के पीछे सीता जाती है । 7. यह मनुष्य ज्ञान रहित है | 8. नल-दमयंती वन में भटके | 9. प्रभु महावीर का ज्ञान अनंत था । 10. मत्त है हाथी जिसमें, ऐसा यह वन है । 11. जिसमें भय नहीं, ऐसे इस राज्य में लोग सुख से रहते हैं |
हिन्दी में अनुवाद करो 1. बहुरत्ना वसुन्धरा । 2. वैराग्यमेवाभयम् । 3. राम-रावणयोर्युद्धं राम-रावणयोरिव । 4. अशोकोऽहं सशोकां त्वां द्रष्टुं न क्षमः । 5. उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् । 6. बहुविघ्नो मुहूर्तोऽयं । 7. एकदाऽपि सती लुप्त-शीला स्यादसती सदा । 8. क्षणे रुष्टः क्षणे तुष्टः, रुष्टः तुष्टः क्षणे क्षणे ।
अ-व्यवस्थित-चित्तानां, प्रसादोऽपि भयङ्करः ।। 9. वृक्ष-शाखा तत्पुरुषः, श्वेताश्वः कर्मधारयः ।
रक्त-वस्त्रो बहुव्रीहि, ईन्द्वश्चन्द्र-दिवाकरौ ।।
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आओ संस्कृत सीखें
21104
पाठ-34
1.
3.
कृदन्त धातु को भूतकाल में कर्तरि प्रयोग में तवत् (क्तवतु) प्रत्यय लगकर कर्तरि भूतकृदन्त बनता है। उदा. नी + तवत् = नीतवत्
गम् + तवत् = गतवत् गमन अर्थवाले धातुओं को और अकर्मक धातुओं को क्त प्रत्यय लगने से कर्तरि भूतकृदन्त बनता है । उदा. कूर्मः समुद्रं सृतः ।
दिवसो भूतः । 2. कर्तरि भूतकृदन्त का तवत् (क्तवतु) प्रत्यय, तद्धित का मत् (मतु) प्रत्यय और
भवत् (भवतु) सर्वनाम ये सभी नाम अत् (अतु) अंतवाले हैं। नाम के अंत में रहा अत् (अतु) का अस्वर पुंलिंग प्रथमा एकवचन में दीर्घ होता है, परंतु संबोधन में दीर्घ नहीं होता है । उदा. नीतवत् + 0 = नीतवात् = नीतवान्, उसी तरह भवत् का भवान् होगा।
पुंलिंग के रूप
नीतवन्तौ नीतवन्तः द्वितीया नीतवन्तम् नीतवन्तौ तृतीया
नीतवता नीतवद्भ्याम् | नीतवद्भिः
नीतवते नीतवद्भ्याम् | नीतवद्भ्यः | पंचमी नीतवतः
नीतवद्भ्याम् नीतवद्भ्यः षष्ठी नीतवतः | नीतवतोः
नीतवताम् सप्तमी
नीतवति | नीतवतोः | नीतवत्सु | संबोधन् । नीतवन् नीतवन्तौ
प्रथमा
नीतवान्
नीतवतः
चतुर्थी
नीतवन्तः
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8105
आओ संस्कृत सीखें
भवत् सर्वनाम के रूप भवान् भवन्तौ
भवन्तः भवन्तम् भवन्तौ
भवतः भवता
भवद्भ्याम् भवद्भिः भवते भवद्भ्याम्
भवद्भ्यः भवतः
भवद्भ्याम् भवद्भ्यः भवतः भवतोः
भवताम भवति भवतोः
भवत्सु संबोधन | भवन् भवन्तौ
भवन्तः नपुंसक के रूप नीतवद्, त् । नीतवती नीतवन्ति । नीतवद्, त् । नीतवती नीतवन्ति
नीतवता नीतवद्भ्याम् नीतवदभिः | नीतवते । नीतवद्भ्याम् | नीतवद्भ्यः
नीतवतः नीतवद्भ्याम् नीतवद्भ्यः
नीतवतः नीतवतोः नीतवताम् |
| नीतवति । नीतवतो: नीतवत्सु | संबोधन | नीतवद्, त् | नीतवती नीतवन्ति
स्त्रीलिंग के रूप नीतवती नीतवत्यौ नीतवत्यः नीतवतीम् नीतवत्यौ
नीतवतीः नीतवत्या नीतवतीभ्याम् नीतवतीभिः नीतवत्यै नीतवतीभ्याम् नीतवतीभ्यः नीतवत्याः
नीतवतीभ्याम् नीतवतीभ्यः नीतवत्याः नीतवत्योः
नीतवतीनाम् नीतवत्याम् नीतवत्योः
नीतवतीसु नीतवति नीतवत्योः
नीतवत्यः भवती स्त्रीलिंग के रूप नदी के रूप के अनुसार है ।
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5.
आओ संस्कृत सीखें
2106 :उदा.
1. गोपो धेनूः अरण्यं नीतवान: गोवाल गायों को जंगल में ले गया। 2. बाला वाप्या जलं घटेन गृहं नीतवत्यः ।
बालिकाएँ बावड़ी में से घड़े द्वारा पानी घर ले गईं । 3. मित्रं अश्वं ग्रामं नीतवत् । मित्र घोड़े को गाँव ले गया ।
कृत्य (विध्यर्थ) कृदन्त 3. तव्य, अनीय और य प्रत्यय कृत्य कहलाते हैं | 4. सकर्मक धातु को कर्मणि प्रयोग में और अकर्मक धातु को भावे प्रयोग में कृत्य प्रत्यय
लगने से कृत्य (विध्यर्थ) कृदन्त बनता है । उदा. कथ्यते इति कथनीयः कथनीया, कथनीयम्, स्थीयते इति स्थातव्यम्. कर्ता क्रिया करने में शक्तिशाली हो तब धातु को कृत्य प्रत्यय और विध्यर्थ-सप्तमी विभक्ति के भी प्रत्यय लगते हैं। उदा. 1.त्वया अयं भारो वहनीयः ।
तुम्हारे द्वारा यह भार उठाया जा सकता है । 2. त्वं अमुंभारं वहेथाः ।
तू इस भार को वहन कर | 3. त्वया व्याकरणं पठनीयम् ।
तेरे द्वारा व्याकरण पढ़ने योग्य है । 4. त्वं व्याकरणं पठेः ।
तू व्याकरण पढ़ | आज्ञा, अनुज्ञा और अवसर अर्थ में धातु को कृत्य प्रत्यय लगते हैं | उदा. 1. त्वया अत्र स्थातव्यम् ।
तुझे यहाँ रहना चाहिए। 2. त्वया अत: गन्तव्यम् ।।
तुझे यहाँ से जाना चाहिए। 3. अथ त्वया उद्याने गन्तव्यम् ।
अब तेरे द्वारा उद्यान में जाना चाहिए ।
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आओ संस्कृत सीखें
21073समुदाय में से किसी को सर्वथा अलग किए बिना जाति, गुण आदि को मुख्य कर बुद्धि से अलग किया हो तो पंचमी विभक्ति के बदले षष्ठी या सप्तमी विभक्ति लगती है, इसे निर्धारण षष्ठी या निर्धारण सप्तमी कहते हैं। उदा. 1. क्षत्रियो नराणां नरेषु वा शूरः ।
क्षत्रिय मनुष्यों में शूरवीर है | यहाँ क्षत्रिय और नर सर्वथा भिन्न नहीं है, क्योंकि जो क्षत्रिय है, वह नर ही है।
2. चैत्रात् मैत्रः पटुः ।। चैत्र से मैत्र होशियार है । यहाँ चैत्र और मैत्र सर्वथा भिन्न होने से षष्ठी-सप्तमी विभक्ति नहीं होगी।
शब्दार्थ आदि = प्रारंभ (पुंलिंग)
योग्य = लायक (विशेषण) नायक = स्वामी (पुंलिंग)
श्रेष्ठ = मुख्य (विशेषण) राशि = ढ़ेर, समूह (पुंलिंग) खलु = निश्चय (अव्यय) वारिद = वर्षा (पुंलिंग)
नूनम् = निश्चित (अव्यय) सिद्धसेन = महाकवि आचार्य का नाम (पुं.) कथयितुं = कहने के लिए प्रतिक्रिया = उपाय (स्त्री लिंग) परिहर्तव्य = त्याग करने योग्य विपद् = आपत्ति (स्त्री लिंग) भवत् = आप (सर्वनाम) अंतिम = अंतिम (विशेषण)
अन्य = दूसरा (सर्वनाम) आद्य = पहला (विशेषण)
अवश्यम् = अवश्य, जरुरी (अव्यय) युक्त = योग्य (विशेषण)
धातु दीप = जलाना, प्रकाशना (गण 4 परस्मैपदी) श्लाघ् = प्रशंसा करना (गण 1 आत्मनेपदी) प्र वृत् = प्रवर्तना (गण 1 आत्मनेपदी)
संस्कृत अनुवाद करो 1. आपके द्वारा राज्य का भार उठाया जा सकता है । 2. आप सभी के द्वारा ये ऋषि पूजने योग्य हैं | 3. आपके राज्य में सर्वत्र शांति फैले । 4. हाल में ये ग्रंथ नहीं मिल सकते हैं । 5. तुम कहाँ गए थे ?
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आओ संस्कृत सीखें 1108 6. रतिलाल से शांतिलाल होशियार है । 7. राम रावण को जीत सकता है । 8. ये दो शिष्य योग्य हैं, वे सिद्धांत पढ़ें। 9. हम दासियाँ आपकी आज्ञा कहने के लिए राजा के पास गई थीं। 10. इस राजा के तीन प्रधानों में ये दो प्रधान श्रेष्ठ हैं | 11. कवियों में सिद्धसेन मुख्य है।
_ हिन्दी में अनुवाद करो 1. न धर्मात् परमं मित्रम् । 2. भवतोऽयं प्रासादः, रमणीयदर्शनः खलु । 3. भवद्भ्यः स्वस्ति भवतु ! 4. देवि ! भवत्याः कल्याणं स्तात् । 5. भवति गतवति, अस्माकं मरणमेव शरणम् । 6. बाला उद्यानात्पुष्णाणि देवालयं नीतवत्यः । 7. गुणेन स्पृहणीयः स्यान्न रूपेण दुर्जनः । 8. अ-नायके न वस्तव्यं, न वसेद् बहुनायके । 9. अजात-मृत-मूर्खाणां वरमाद्यौ न चान्तिमः । 10. कन्या ह्यवश्यं दातव्या । 11. यस्मिन्कुले यः पुरुषः प्रधानः, सदैव यत्नेन स रक्षणीयः । 12. यस्योदयः स वन्द्यो, यथा हीन्दुर्यथा रविः । 13. सेव्यस्य सेवावसरः पुण्येनैव हि लभ्यते । 14. पुष्पेषु चम्पा नगरीषु लङ्का, नदीषु गङ्गा, च नृपेषु रामः । 15. चिन्तनीया हि विपदामादावेव प्रतिक्रिया।
न कूप-खननं युक्तं, प्रदीप्ते वह्निना गृहे ।। 16. दुर्जनः परिहर्तव्यो, विद्ययाऽलंकृतोऽपि सन् । ___ मणिना भूषितः सर्पः, किमसौ न भयंकरः ? ।। 17. त्याग एको गुणः श्लाघ्यः, किमन्यैर्गुण-राशिभिः ।
त्यागाज्जगति पूज्यन्ते, नूनं वारिद-पादपाः ।।
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आओ संस्कृत सीखें
4109
पाठ-35
तद्धित 1. समास से भी ज्यादा संक्षेप करने के लिए भिन्न-भिन्न अर्थों में नाम के साथ अण
आदि प्रत्यय लगते हैं, वे प्रत्यय-तद्धित-प्रत्यय कहलाते हैं |
जनानां समूहः- जन + ता (तल्) जनता | 2. प्रकृष्ट अर्थ में नाम से तम (तमप) प्रत्यय लगता है | उदा. सर्वे इमे शुक्लाः अयम् एषां प्रकृष्ट शुक्लः
शुक्ल + तम = शुक्लतमः (अत्यंत सफेद) 3. दो की तुलना में श्रेष्ठ बताना हो तो तर (तरप्) प्रत्यय लगता है |
द्वौ इमौ पटू ! अयं अनयोः प्रकृष्टः पटुः, पटुतरः ।
पटु + तर = पटुतरः ये दो होशियार हैं, इन दोनों में यह ज्यादा होशियार है । उदा. 1. चैत्रात् मैत्रः पटुतरः ।
चैत्र से मैत्र होशियार है | 2. ब्राह्मणेभ्यः क्षत्रियाः शूरतराः ।
ब्राह्मणों से क्षत्रिय ज्यादा शूरवीर हैं । गुणवाचक शब्द द्रव्य का विशेषण हो तो उस शब्द से 'तम' और 'तर' के अर्थ में इष्ठ और ईयस् (ईयसु) प्रत्यय विकल्प से होते हैं ।
उदा. पटु + इष्ठ = पटिष्ठः = खूब होशियार
पटु + ईयस् = पटीयस् = दो में ज्यादा होशियार 4. इष्ठ और ईयस् प्रत्यय पर प्रशस्य का श्र आदेश होता है ।
श्र + इष्ठ = श्रेष्ठः
श्र + इयस् = श्रेयस् 5. ईयस् अंतवाले नामों को घुट् प्रत्यय पर स् के पहले न् जुडता है |
पटीयस् + 0 = पटीयन्स् + 0
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7.
आओ संस्कृत सीखें
4110 6. न्स् अंतवाले नाम और महत् (महत) का स्वर घुट् प्रत्ययों पर दीर्घ होता है, परंतु
संबोधन में दीर्घ नहीं होता है । पटीयन्स + 0 = पटीयान्स् + 0 महत् + 0 = महान् पद के बीच में रहे 'म' और 'न' का शिट् व्यंजन और ह पर अनुस्वार होता है । पटीयान्स् + औ = पटीयांसौ
___ पुंलिंग रूप | 1. पटीयान् । पटीयांसौ | पटीयांसः
पटीयांसम् पटीयांसौ पटीयसः पटीयसा पटीयोभ्याम् पटीयोभिः पटीयसे पटीयोभ्याम् पटीयोभ्यः पटीयसः पटीयोभ्याम् पटीयोभ्यः पटीयसः पटीयसोः पटीयसाम्
पटीयसि । | पटीयसोः पटीयःसु, पटीयस्सु | संबोधन | पटीयन् । पटीयांसौ । पटीयांसः
पटीयस् + भ्याम् यहाँ स् का र् और र् का उ हो गया, फिर अ + उ = ओ हो गया = पटीयोभ्याम्
महत् के रूप | 1. | महान महान्तौ महान्तः ।
| महान्तम् । महान्तौ । महतः
महता महद्भ्याम् | महदभिः महते
महद्भ्याम् | महद्भ्यः महतः महद्भ्याम् । महद्भ्यः 6 महतः महतोः महताम्
महताः | संबोधन | महन् । महान्तौ महान्तः ।
2
महति
महत्सु
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| 2 | 3
पटीयसीनाम्
आओ संस्कृत सीखें
1113 स्त्रीलिंग में पटीयसी पटीयसी पटीयस्यौ
पटीयस्यः पटीयसीम् | पटीयस्यौ । पटीयसीः पटीयस्या पटीयसीभ्याम् पटीयसीभिः पटीयस्यै पटीयसीभ्याम् पटीयसीभ्यः पटीयस्याः पटीयसीभ्याम् पटीयसीभ्यः
पटीयस्याः पटीयस्योः 7 पटीयस्याम् | पटीयस्योः
| पटीयसीसु | संबोधन | पटीयसि । पटीयस्यौ। पटीयस्यः
नपुंसक लिंग | प्र.द्वि. | पटीयः । पटीयसी | पटीयांसि । | संबोधन | पटीयः | पटीयसी | पटीयांसि प्र.द्वि. | महत्-द् । महती
महान्ति | संबोधन | महत्-द् महती
महान्ति स्वामित्व सूचक (धनवाला, पुत्रवाला आदि) अर्थ में प्रथमांत नाम को मत् (मतु) प्रत्यय लगता है।
धेनवः सन्ति अस्य-धेनुमत् (गायवाला) 9. नाम में उपांत्य या अंत में म्या अवर्ण हो अथवा अंत में वर्ग के पाँचवें व्यंजन को छोड़
अन्य कोई व्यंजन हो तो मत् के म् का व् हो जाता है
वृक्षाः सन्ति अस्मिन् = वृक्षवत् 10. मत् अंतवाले के रूप तीनों लिंगों में नीतवत् की तरह होते हैं । 11. 'उसकी तरह किया' के अर्थ में किसी भी विभक्ति के अंतवाले नाम को वत् प्रत्यय
लगता है। उदा. क्षत्रियाः इव = क्षत्रियवत्
देवं इव = देववत् 12. 'वत्' प्रत्ययवाले नाम अव्यय कहलाते हैं ।
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आओ संस्कृत सीखें उदा. क्षत्रियवद् ब्राह्मणाः युध्यन्ते
क्षत्रियों की तरह ब्राह्मण लड़ते हैं । मुनिं देववत् पश्यन्ति ।
मुनि को देव की तरह देखते हैं । 13. भाव अर्थ में त्व और ता (तल्) प्रत्यय लगता है त्व नपुंसक में और ता स्त्रीलिंग में लगता है।
देवस्य भावः देवत्वम् । शुक्लस्य भावः शुक्लता ।
शब्दार्थ दार = पत्नी (पुं.) (बहुवचन) महत् = बड़ा (विशेषण) अरि = दुश्मन (पुंलिंग) कृपालु = कृपावाला (विशेषण) पराभव = हार (पुंलिंग) निवेदित= निवेदन किया हुआ (विशेषण) बन्धु = भाई (पुंलिंग)
पराभूत = हारा हुआ (विशेषण) भार = समूह (पुंलिंग)
प्रशस्य = प्रशंसनीय (विशेषण) वेग = तीव्र गति (पुंलिंग) विहीन = रहित (विशेषण) सुहृद् = मित्र (पुंलिंग)
स्तोक = थोड़ा (विशेषण) संपद् = संपत्ति (स्त्री लिंग) कथंचन = किसी भी प्रकार से (अव्यय) प्रवृत्ति = कार्य (स्त्री लिंग) क्वचित् = कभी (अव्यय) अवस्था = हालत (स्त्री लिंग) सर्वदा = हमेशा (अव्यय) बल = शक्ति, सैन्य (नपुं.लिंग) क्षीण = नष्ट हुआ (भूतकृदंत)
धातु उद् + वि + ईक्ष = देखना (गण 1 आत्मनेपदी) क्षि = क्षय होना, क्षीण होना (गण 1 परस्मैपदी) परि + वृत् = बदलना (गण 1 आत्मनेपदी)
___ संस्कृत अनुवाद करो 1. इस राजा की सेना बड़ी है और ज्यादा बलवान हैं । 2. इन बालिकाओं में ये दो बालिकाएँ खूब होशियार हैं | 3. इन दो बालकों में यह बालक ज्यादा अच्छा है ।
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2113
आओ संस्कृत सीखें 4. आप मुझे पुत्र की तरह देखें। . . . 5. सभी में आप मुझे ज्यादा प्रिय हो । 6. आपको मैं देव की तरह देखता हूँ। 7. ब्राह्मण की अपेक्षा क्षत्रिय ज्यादा शूरवीर होते हैं । 8. बलवानों से बुद्धिशाली ज्यादा बलवान हैं | 9. व्याकरणों में आचार्य श्री हेमचंद्र का व्याकरण सबसे श्रेष्ठ है ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. चक्रवत् परिवर्तन्ते दुःखानि च सुखानि च । 2. पश्यत यूयममी अश्वा वेगवन्तो धावन्ति । 3. कुस्थानस्य प्रवेशेन गुणवानपि पीड्यते । 4. कोपः शाम्यति महतां दीने क्षीणे ह्यरावपि । 5. स्तोकमप्यमृतं श्रेयो भारोऽपि न विषस्य तु । 6. अभिमानवतां श्रेयान् विदेशो हि पराभवे । 7. परेषामुपकाराय महतां हि प्रवृत्तयः । 8. श्रेयांसि बहुविघ्नानि भवन्ति महतामपि । 9. कुरूपता शीलतया विराजते, कुभोजनं चोष्णतया विराजते । 10. अशुभं वापि शुभं वापि सर्वं हि महतां महत् । 11. रिपावपि पराभूते महान्तो हि कृपालवः । 12. परदुःखं कृपावन्तः सन्तो नोद्वीक्षितुं क्षमाः । 13. धनवान् बलवालँलोके सर्वः सर्वत्र सर्वदा । 14. बुद्धिमानयं बालो विनयवतां च श्रेष्ठतमः । 15. मतिमतामपि दरिद्रता दृश्यते । 16. इमे गोपा धेनुमन्तस्तस्मात्तेषां शरीरं बलवत्तरम् । 17. संपदो महतामेव महतामेव चापदः । 18. जीविताशा बलवती, धनाशा दुर्बला मम |
गच्छ वा तिष्ठ वा पान्थ ! स्वावस्था तु निवेदिता ।।
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आओ संस्कृत सीखें
1114319. सर्पः क्रूरः खलः क्रूरः सत्क्रूिरतरः खलः ।
मन्त्रेण सान्त्व्यते सर्पः, खलस्तु न कथंचन ।। 20. त्यजन्ति सर्वेऽपि धनैर्विहीनं, पुत्राश्च दाराश्च सुहृज्जनाश्च । तमर्थवन्तं पुनराश्रयन्ते, वित्तं हि लोके पुरुषस्य बन्धुः ।।
पाठ-36
अन् अंतवाले नाम धुट् प्रत्ययों पर न के पहले का स्वर दीर्घ होता है, परंतु संबोधन एक वचन में दीर्घ नहीं होता है । उदा. राजन् + 0 = राजान्' पद के अंत में रहे नाम के न का लोप होता है | राजान् = राजा राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
राजन् + भ्याम् = राजभ्याम् 3. स्वर से प्रारंभ होने वाले अघुट (घुट् को छोड़कर) प्रत्ययों पर अन् के अ का लोप
होता है। उदा. राजन् + अस्
राजन + अस्
राज् + ञ् + अस् = राज्ञः 4. नपुंसक प्रथमा द्वितीया द्विवचन के ई प्रत्यय पर और सप्तमी के इ प्रत्यय
पर अन् के अ का विकल्प से लोप होता है । राज्ञि, राजनि नपुं. दामन् + ई = दाम्नी, दामनी
दामन् + इ = दाम्नि, दामनि 5. संबोधन में नाम के न का लोप नहीं होता है । हे राजन् ! 6. नपुंसक में संबोधन के न् का विकल्प से लोप होता है |
उदा. हे दाम्, हे दामन् !
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2
.
4.
7.
सीमा
2.
3.
आओ संस्कृत सीखें
115
राजन् के रूप | 1. | राजा राजानौ राजानः
राजानम् राजानौ राज्ञः राज्ञा
राजभ्याम् राजभिः राजे राजभ्याम्
राजभ्यः | 5. राज्ञः
राजभ्याम् राजभ्यः 6. राज्ञः
राज्ञोः राज्ञाम् राज्ञि, राजनि । राज्ञोः राजसु संबोधन |
| हे राजन् | हे राजानौ | हे राजानः
सीमा-स्त्रीलिंग के रूप सीमा सीमानौ सीमानः सीमानम् सीमानौ सीम्नः
सीम्ना | सीमभ्याम् |सीमभिः । 4.
सीमभ्याम्
सीमभ्यः सीम्नः सीमभ्याम् सीमभ्यः
सीम्नः सीम्नोः 7.
सीम्नि,सीमनि | सीम्नोः | संबोधन | हे सीमन् । सीमानौ सीमानः ।
दामन्-नपुंसक लिंग | 1. | दाम
दाम्नी, दामनी दामानि 2. दाम
दाम्नी, दामनी दामानि दाम्ना दामभ्याम्
दामभिः दाम्ने दामभ्याम्
दामभ्यः दाम्नः दामभ्याम्
दामभ्यः दाम्नः दाम्नोः
दाम्नाम् | दाम्नि, दामनि । दाम्नोः
दामसु संबोधन | हे दामन, दाम! | दाम्नी, दामनी दामानि
सीम्ने
5.
6.
सीम्नाम् सीमसु
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.
2
आओ संस्कृत सीखें
1116 7. अन् अंतवाले नामों के अन् के पहले व्या म् अंतवाला संयुक्त व्यंजन हो तो अन् के
अ का लोप नहीं होता है । उदा. आत्मन् + अस् = आत्मनः
कर्मन् + ई = कर्मणी
परंतु मूर्धन् + अस् = मूर्ध्नः यहाँ व्या म् अंतवाला संयुक्त व्यंजन नहीं होने से लोप हो गया।
इन् अंतवाले नाम 8. इन अंतवाले नामों के न के पहले का स्वर, पुंलिंग प्रथमा एक वचन और नपुंसक लिंग में प्रथमा-द्वितीया बहुवचन के इ प्रत्यय पर ही दीर्घ होता है ।
पुंलिंग के रूप शशी शशिनौ शशिनः शशिनम् शशिनौ शशिनः शशिना शशिभ्याम् शशिभिः शशिने शशिभ्याम् शशिभ्यः शशिनः शशिभ्याम् शशिभ्यः शशिनः शशिनोः
शशिनाम् शशिनि | शशिनोः संबोधन हे शशिन् । शशिनौ | शशिनः
नपुंसक के रुप | 1. भावि
भाविनी | भावीनि भावि
भाविनी भावीनि | 3. | भाविना भाविभ्याम् | भाविभिः । | 4.
भाविभ्याम् । भाविभ्यः भाविनः भाविभ्याम् । भाविभ्यः भाविनः | भाविनोः | भाविनाम् भाविनि
भाविनोः भाविषु | संबोधन | हे भावि! भाविन् । भाविनी | भावीनि
5.
6.
1.
| शशिषु
भाविने
| 5.
| 7.
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आओ संस्कृत सीखें
117
9.
न् कारांत नमो को स्त्री लिंग में ई (डी) प्रत्यय लगता है, परंतु मन् अंतवालों को ई (ङी) प्रत्यय नहीं लगता है ।
मायिन् + ई = मायिनी
10. ई (ङी) प्रत्यय लगने पर अन् के अ का लोप होता है ।
राजन् + ई = राज् + न् + ई राज् + ञ् + ई = राज्ञी
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
संबोधन
राज्ञीम्
राज्ञ्या
राज्ञ्यै
राज्ञ्या:
राज्ञ्या:
राज्ञ्याम्
हे राज्ञि !
आत्मन् = आत्मा (पुंलिंग) मूर्धन् = मस्तक (पुंलिंग) राजन् = = राजा (पुंलिंग) कर्मन् = कर्म (नपुं. लिंग) जन्मन् = जन्म (नपुं. लिंग)
राज्ञी - रानी के रूप
राज्ञ्यौ
राज्ञ्यौ
मन्त्रिन् = मंत्री (पुंलिंग) योगिन् = योगी (पुंलिंग)
शशिन् = चंद्र (पुंलिंग) शिखरिन् = पर्वत (पुंलिंग)
राज्ञीभ्याम्
राज्ञभ्याम्
राज्ञीभ्याम्
राज्ञ्योः
राज्ञ्योः
:
हे राज्ञ्यौ
शब्दार्थ
अन् अंत
राज्य:
राज्ञी:
राज्ञीभिः
राज्ञीभ्यः
राज्ञीभ्यः
राज्ञीनाम्
राज्ञीषु
हे राज्ञ्यः
दामन् = माला (नपुं. लिंग) नामन् = नाम (नपुं. लिंग)
पर्वन् = पर्व (नपुं. लिंग) वेश्मन् = घर (नपुं. लिंग) सीमन् = सीमा (स्त्रीलिंग)
इन् अंत
हस्तिन् = हाथी (पुंलिंग) गुणिन् = गुणवान् (विशेषण)
भाविन् = होनेवाला (विशेषण) मायिन् = मायावी (विशेषण)
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आओ संस्कृत सीखें
धातु
= फलना, साकार होना (गण 1 परस्मैपदी)
शब्दार्थ
फल् =
उत्कर = ढेर (पुंलिंग) कण = दाना (पुंलिंग) पराक्रम = पराक्रम (पुंलिंग) नय = नीति (पुंलिंग)
कबरी = वेणी (स्त्रीलिंग)
118
जरा = बुढ़ापा (स्त्रीलिंग) गुहा = गुफा (स्त्रीलिंग) चिरात् = लंबे समय से (अव्यय)
अन्यथा = दूसरी तरह (अव्यय) वक्त्र = मुख (नपुं. लिंग) प्रतिकूल = विपरीत (नपुं. लिंग)
गहन = कठिन (विशेषण)
राजा ! तुम प्रजा का पालन करो ।
अगम्य = प्राप्त न हो ऐसा (विशेषण) भोज्य : = खाना (विशेषण) विषम = कठिन (विशेषण)
संस्कृत में अनुवाद करो
1.
2. इस कन्या की वेणी में फूलों की दो मालाएँ हैं। 3. तुम्हारे भाई का नाम कहो ।
4.
इस राजा में ज्यादा पराक्रम है ।
5.
6.
7.
8.
राजा और रानी रथ में बैठकर उद्यान में गए । बालक द्वारा आकाश में चंद्रमा देखा गया । गुणी गुण को देखता है, दोष को नहीं । होनेवाली बात अन्यथा नहीं होती है ।
9.
योगी पर्वत की गुफाओं में बसते हैं। 10. हाथी के मस्तक में मोती उत्पन्न होते हैं ।
हिन्दी में अनुवाद करो
1. अहो ! अस्य राज्ञः विवेकसीमा ।
2. कणानामिव रत्नानामुत्करास्तस्य वेश्मनि ।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।
3.
4. विद्या राजसु पूजिता न तु धनम् ।
5.
जन्म दुःखं जरा दुःख मृत्यु दुःखं पुनः पुनः । 6. कर्मणां विषमा गतिः ।
7. यथा राजा तथा प्रजाः ।
8. किं स्वादुनाऽपि भोज्येन, रोचते न यदात्मने । 9. पशवोऽपि हि रक्षन्ति पुत्रान्प्राणानिवात्मनः ।
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1193
आओ संस्कृत सीखें 10. कर्माण्यवश्यं सर्वस्य, फलन्त्येव चिरादपि । 11. भावि कार्यमासीत् । 12. सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः । 13. मायिन्यः खलु योषितः । 14. यथा नेत्रं विना वक्त्रं, विनास्तम्भं यथा गृहम् ।
न राजते तथा राज्यं, कदाचिन्मन्त्रिणं विना ।। 15. धीराणां भूषणं विद्या, मन्त्रिणां भूषणं नृपः । भूषणंच नयो राज्ञां, शीलं सर्वस्य भूषणम् ।।
पाठ-37]
अस् अंतवाले नाम . 1. शब्द के अंत में रहे अस् का 'अ' स्वर, पुंलिंग स्त्री लिंग के प्रथमा एक वचन में दीर्घ होता है, परंतु संबोधन में दीर्घ नहीं होता है।
चन्द्रमस के रूप चन्द्रमाः । चन्द्रमसौ
चन्द्रमसः चन्द्रमसम् । चन्द्रमसौ | चन्द्रमसः
चन्द्रमसा चन्द्रमोभ्याम् चन्द्रमोभिः | 4. | चन्द्रमसे | चन्द्रमोभ्याम् | चन्द्रमोभ्यः | 5. | चन्द्रमसः | चन्द्रमोभ्याम् | चन्द्रमोभ्यः
चन्द्रमसः चन्द्रमसोः चन्द्रमसि
| चन्द्रमसोः चन्द्रमस्सु, चन्द्रमासु | संबोधन | हे चन्द्रमः | चन्द्रमसौ चन्द्रमसः
अप्सरस्-स्त्रीलिंग रूप अप्सराः । अप्सरसौ अप्सरसः अप्सरसं अप्सरसौ
अप्सरसः अप्सरसा अप्सरोभ्याम् । अप्सरोभिः अप्सरसे अप्सरोभ्याम् । | अप्सरोभ्यः
चन्द्रमसाम्
-
ला
4
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5
6.
7.
2.
4.
6.
7.
आओ संस्कृत सीखें
120 अप्सरसः । अप्सरोभ्याम् । अप्सरोभ्यः अप्सरसः अप्सरसोः | अप्सरसाम्
अप्सरसि अप्सरसो | अप्सरस्सु, अप्सरःसु संबोधन | हे अप्सरः । अप्सरसौ अप्सरसः
पयस् नपुंसक लिंग के रूप पयः पयसी | पयांसि
। पयः पयसी | पयांसि 3. पयसा पयोभ्याम् पयोभिः
पयसे पयोभ्याम् पयोभ्यः 5. पयसः पयोभ्याम् पयोभ्यः
पयसः पयसोः पयसाम्
पयसि पयसोः पयस्सु, पयःसु संबोधन | पयः पयसी
पयांसि 2. धुट व्यंजनादि प्रत्यय पर तथा पद के अंत में रहे च और ज का क्रमशः क् और ग्
होता है। उदा. मुक्तः, त्यक्तः
वाच के रूप
वाक्, ग वाचौ वाचः 2. । वाचम् । वाचौ वाचः । वाचा
वाग्भ्याम् वाग्भिः वाचे
वाग्भ्याम् वाग्भ्यः 5. | वाचः | वागभ्याम | वाग्भ्यः वाचः
वाचोः वाचाम् 7. । वाचि । वाचोः । वाक्षु । |संबोधन | हे वाक् ! | हे वाचौ! | हे वाचः ! |
वणिज के पुंलिंग के रूप वणिक्, ग वणिजौ । वणिजः वणिजम् । वणिजौ | वणिजः
3.
A.
6.
2.
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+121
3.
4.
6
1.
2.
3.
A.
5
6.
आओ संस्कृत सीखें
वणिजा वणिग्भ्याम् वणिग्भिः
वणिजे वणिग्भ्याम् वणिगभ्यः 5.
वणिजः । वणिग्भ्याम | वणिगभ्यः । वणिजः । वणिजोः । वणिजाम वणिजि . वणिजोः । वणिक्षु
आयुस् नपुं.लिंग के रूप आयुः | आयुषी आयूंषि आयुः आयुषी | आयूंषि आयुषा आयुाम्
| आयुर्भिः आयुषे आयुाम् आयुर्व्यः आयुषः आयुाम् | आयुर्व्यः
आयुषः आयुषोः आयुषाम् | 7. __ आयुषि आयुषोः आयुष्षु, आयुःषु 3. नामी, अंतस्था और क वर्ग के बाद में रहे स् के बीच शिट् व्यंजन या न
का अंतर हो तो भी स् का ष होता है । उदा. 1. आयुडष् + इ |
आयुन्स् + इ
आयुन्ष् + इ = आयुषि 2. आयुस् + सु = आयुर् + सु - आयुः + सु = आयुःषु
आयुस् + सु = आयुर् + षु = आयुषु 4. श तथा 'च' वर्ग के योग में स् का 'श' होता है तथा ष और ट वर्ग के योग में होता है । उदा. आयुस् + सु = आयुष्षु आयुस् + षु
द्विष के रूप द्विट, ड् द्विषौ _ द्विषम् । द्विषौ । द्विषः
द्विषा | द्विड्भ्याम् | द्विभिः ।
--
द्विषः
to
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आओ संस्कृत सीखें -122 :
| 4. द्विषे द्विड्भ्याम् । द्विड्भ्यः । | 5. । द्विषः । द्विड्भ्याम् । द्विड्भ्यः । | 6. | द्विषः । द्विषोः । द्विषाम
| द्विषि | द्विषोः । द्विट्सु 5. पदान्त ट वर्ग के बाद में रहे त वर्ग और स् का ट वर्ग और ष् नहीं होता है।
उदा. द्विट्सु - यहाँ ष् नहीं होगा |
धातु
युज = योग्य होना (गण 4, आत्मनेपदी) लङ्घ = उल्लंघन करना (गण 1, आत्मनेपदी)
शब्दार्थ व्यंजनात नाम चन्द्रमस् = चंद्रमा (पुंलिंग) सर्पिस् = घी (नपुं.लिंग) द्विष् = दुश्मन (पुंलिंग)
क्षुध = क्षुधा (स्त्रीलिंग) भूभुज = राजा (पुंलिंग)
निग्रह = शिक्षा (पुं.लिंग) वणिज् = व्यापारी (पुंलिंग) सार्थवाह = बडा व्यापारी (पुं.लिंग) ककुभ् = दिशा (स्त्रीलिंग)
आस्पद = स्थान (नपुं.लिंग) वाच् = वाणी (स्त्रीलिंग)
पान = पीना वह (नपुं.लिंग) अप्सरस् = अप्सरा (स्त्रीलिंग) भक्षण = खाना (नपुं.लिंग) पयस् = पानी (नपुं.लिंग)
नूनं = निश्चय से (अव्यय) आयुस् = आयुष्य (नपुं. लिंग) मिथ्या = व्यर्थ (अव्यय) । यशस् = यश (न.लिंग)
नाम = वास्तव में (अव्यय) वचस् = वचन (नपुं.लिंग)
सम = समान (विशेषण) सदस् = सभा (नपुं.लिंग) वेदना = पीड़ा, दुःख (स्त्रीलिंग)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. व्यापारी घी को अपने गाँव से पाटण ले जाता है | 2. कवियों की वाणी में मधुरता होती है । 3. घी खाने से आयुष्य बढ़ता है । 4. भूख के समान दुःख नहीं है । 5. हिरण दिशाओं को लांघते हैं ।
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आओ संस्कृत सीखें
1233 6. दुर्योधन पांडवों का दुश्मन था । . 7. स्वर्ग में अप्सराओं के साथ देवता क्रीड़ा करते हैं ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. नहि मिथ्या कुलीनवाक् । 2. पयःपानं भुजङ्गानां विषाय | 3. नसत्यमपि भाषेत परपीडाकरं वचः । 4. भूभुजां युज्यते दुष्टनिग्रहः साधुपालनम् । 5. चन्दनं शीतलं लोके, चन्दनादपि चन्द्रमाः ।
साधुसंगतिरेताभ्यां, नूनं शीततरा स्मृता । 6. तत्र चासीत्सार्थवाहो, धनो नाम यशोधनः । आस्पदं संपदामेकं, सरितामिव सागरः ।।
पाठ-38 ऋकारांत नाम
प्रत्यय आ (डा) |
। औ | 2. । अम् । औ | 3. । आ । भ्याम् | 4. |ए
। भ्याम | 5. | उर् (डुर) । भ्याम् उर् (डुर)
ओस् | 7. इ । ओस् संबोधन | स्
औ , पितृ के रूप | 1. | पिता पितरौ | 2 | पितरम् | पितरौ
पित्रा पितृभ्याम्
अस्
अस्
भिस् भ्यस
।
भ्यस्
नाम्
।
अस्
पितरः पितॄन् | पितृभिः
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| पित्रोः
| पितृषु
1.
आओ संस्कृत सीखें
124 | 4 | पित्रे पितृभ्याम् । पितृभ्यः | 5 | पितुः । पितृभ्याम् | पितृभ्यः ।
| पितुः पित्रोः | पितृणाम् 7 | पितरि
संबोधन | हे पितः । पितरौ पितरः घुट् प्रत्यय तथा सप्तमी एक वचन के इ प्रत्यय पर ऋ का अर् हो जाता है | उदा. पितरौ, पितरः, पितरम, पितरि ।
पितृ + अस् = पि न्
पितृ + उर् (डुर) पितुः 2. नाम् प्रत्यय पर नृ शब्द का ऋ, विकल्प से दीर्घ होता है । उदा. नृणाम्, नृणाम् ।
दुहितृ - स्त्रीलिंग के रूप दुहिता दुहितरौ । दुहितरः दुहितरम् | दुहितरौ । दुहितः दुहित्रा दुहितृभ्याम् | दुहितृभिः दुहित्रे
दुहितृभ्याम् | दुहितृभ्यः | दुहितुः दुहितृभ्याम् | दुहितृभ्यः । दुहितुः दुहित्रोः । दुहितॄणाम्
दुहितरि दुहित्रोः । दुहितृषु | संबोधन | हे दुहितः । हे दुहितरौ । हे दुहितरः 2. तृ (तृच् या तृन्) कृत प्रत्ययांत नाम तथा स्वसृ, नप्तृ, नेष्ट्र, त्वष्ट्र, क्षत्तृ, होतृ, पोतृ, प्रशास्तृ इन नामों के ऋ का घुट् प्रत्यय पर आर् होता है ।
कर्तृ के रूप 1. । कर्ता | कर्तारौ . | कर्तारः
कर्तारम् | कर्तारौ । कर्तृन्
कर्ना कर्तृभ्याम् कर्तृभिः | 4. कर्ने कर्तृभ्याम् । कर्तृभ्यः |
2.
3.
4.
7.
Page #150
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आओ संस्कृत सीखें
5.
6.
7.
संबोधन
1.
2.
संबोधन
कर्तुः
कर्तुः
कर्तर
हे कर्त:
कर्तृ
कर्तृ
हे कर्त:, कर्तृ कर्तृणी
1. सं. नौः
2.
3.
4.
5.
6.
7.
125
कर्तृभ्याम्
कर्त्री:
कर्त्रीः
हे कर्तारौ
कर्तृ-नपुंसकलिंग
नावम
नावा
नावे
नाव:
नाव:
नावि
जामातृ = दामाद (पुंलिंग) देवृ = देवर (पुंलिंग)
4. ऋकारांत विशेषण नामों को स्त्रीलिंग में ई (डी) प्रत्यय लगता है । कर्तृ + ङी = कर्त्री के रूप नदी के अनुसार होते हैं ।
नौ स्त्रीलिंग के रूप
नवौ
नाव
नौभ्याम्
नौभ्याम्
नौभ्याम्
नावोः
नावोः
नृ = नर (पुंलिंग) पितृ = पिता (पुंलिंग)
भ्रातृ = भाई (पुंलिंग) नप्तृ = पौत्र, दौहित्र (पुंलिंग) नेष्टृ = याज्ञिक (पुंलिंग)
कर्तृणी
कर्तृणी
धातु
वि + सृज् = विसर्जन करना, देना (गण ६, परस्मैपदी)
शब्दार्थ
कर्तृभ्यः
क णाम्
कर्तृषु
हे कर्तारः
कर्तृणि
कर्तृणि
कर्तृणि
नाव:
नाव:
नौभिः
नौभ्यः
नौभ्यः
नावाम्
नौ
त्वष्टृ = सुथार (पुंलिंग)
क्षत्तृ = सारथि (पुंलिंग)
पोतृ, होतृ = याज्ञिक (पुंलिंग) प्रशास्तृ = प्रकृष्ट शासक (पुंलिंग) दुहितृ = पुत्री (स्त्रीलिंग)
= माता (स्त्रीलिंग)
मातृ: ननान्दृ = नणंद (स्त्रीलिंग)
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126
.
.
आओ संस्कृत सीखें स्वसृ = बहन (स्त्री लिंग)
आत्मन् = आत्मा (पुंलिंग) नौ = जहाज (स्त्री लिंग)
अधमाधम = अधम से अधम कर्तृ = करनेवाला (विशेषण) ख्यात = प्रसिद्ध (विशेषण) दातृ = दाता (विशेषण)
जयिन् = जयवाला (विशेषण) भर्तृ = मालिक (विशेषण)
पथ्य = हितकारी (नपुं. लिंग) वक्तृ = वक्ता (विशेषण)
मूल = कारण (नपुं. लिंग) श्रोतृ = श्रोता (विशेषण)
श्रेयस् = कल्याण (नपुं.लिंग) हर्तृ = हरनेवाले (विशेषण) ऋण = कर्जा (नपुं. लिंग) अर्थ = पैसा (पुलिंग)
दारित्र्य = दरिद्रता (नपुं. लिंग) पिशाच = भूत - (पुंलिंग)
ननु = निश्चय (अव्यय) मातुल = मामा (पुंलिंग)
लुब्ध = लोभी (भूतकृदंत) ज्ञाति = स्वजन (पुंलिंग)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. सीता अपनी नणंद शांता के पाँव लगी । 2. स्त्रियों को दामाद प्रिय होते हैं। 3. अभिमन्यु की माता का नाम सुभद्रा था | 4. हे देवर ! यह हिरण बहुत सुंदर है | 5. इन वैद्यों के औषध रोगों को हरनेवाले हैं | 6. इस दानेश्वरी राजा की रानियाँ भी दानेश्वरी थीं। 7. मेरे नाथ में एक भी दोष नहीं है । 8. मनुष्य नाव द्वारा समुद्र तैरते हैं | 9. यह मेरी बहन की सास है ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. सत्या वा यदिवा मिथ्या प्रसिद्धिर्जयिनी नृणाम् । 2. श्वश्रूदुःखे दुहितृणां शरणं शरणं पितुः । 3. रे रे चित्त ! कथं भ्रातः, प्रधावसि पिशाचवत् । 4. उत्तमा आत्मनः ख्याताः, पितः ख्याताश्च मध्यमाः ।
अधमा मातुलाख्याताः, श्वशुराच्चाऽधमाधमाः ।।
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आओ संस्कृत सीखें
1273 5. सुहृदो ज्ञातयः पुत्रा, भ्रातरः पितरावपि ।
प्रतिकूलेषु भाग्येषु, त्यजन्ति स्वजनं खलु ।। 6. लुब्धो न विसृजत्यर्थं, नरो दारित्र्यशङ्कया ।
दाता तु विसृजत्यर्थ, तयैव ननु शङ्कया ।। 7. धर्मार्थकाममोक्षाणा-मारोग्यं मूलमुत्तमम् ।
रोगास्तस्याऽपहर्तारः, श्रेयसो जीवितस्य च ।। 8. ऋणकर्ता पिता शत्रुः, पुत्रः शत्रुरपण्डितः ।। अप्रियस्य च पथ्यस्य, वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।।
पाठ-39|
संख्या वाचक नाम एक = एक (सर्वनाम)
विंशति = बीस (स्त्रीलिंग) द्वि = दो (सर्वनाम)
त्रिंशत् = तीस (स्त्रीलिंग) त्रि= तीन (विशेषण)
चत्वारिंशत् = चालीस (स्त्रीलिंग) चतुर् = चार (विशेषण)
पञ्चाशत् = पचास (स्त्रीलिंग) पञ्चन् = पाँच
षष्टि = साठ (स्त्रीलिंग) षष् = छह
सप्तति = सित्तर (स्त्रीलिंग) सप्तन् = सात
अशीति = अस्सी (स्त्रीलिंग) अष्टन् = आठ
नवति = नब्बे (स्त्रीलिंग) नवन = नौ
शत = सौ (पु., नपुं.) दशन् = दश
सहस्र = हजार (नपुं.) एकादशन् = ग्यारह
लक्ष = लाख (स्त्री.नपुं.) नवदशन् = उन्नीस
कोटि = करोड़ (स्त्रीलिंग) 1. एक और द्वि के रूप सर्वनाम के रूप में आ गए हैं । 2. त्रि के रूप इकारांत पुंलिंग-नपुं. लिंग के साथ आ गए हैं । 3. एक द्वि, त्रि और चतुर् के रूप तीनों लिंगों में अलग अलग होते हैं | 4. न अंतवाले संख्यावाचक नाम, षष्, अस्मद् और युष्मद् अलिंग है । अर्थात् तीनों
लिंगों में इनके रूप एक समान हैं |
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आओ संस्कृत सीखें
5.
5.
128
त्रि आदि शब्दों का प्रयोग बहुवचन में ही होता है ।
उदा. त्रयः लोकाः सन्ति-तीन लोक हैं ।
6.
विंशति आदि शब्द विशेषण के रूप में हों तो एकवचन में ही होते हैं । उदा. विंशतिः घटा:- बीस घड़े ।
विंशति आदि शब्द संख्या के रूप में हों तो उनका प्रयोग तीनों लिंगों में होता है ।
उदा. घटानां विंशतिः = घड़ों की एक बीसी
घटानां विंशती = घड़ों की दो बीसी
घटानां विंशतयः = घड़ों की बहुत बीसी
7. स्त्री लिंग में त्रि और चतुर् का तिसृ और चतसृ आदेश होता है ।
प्रत्यय
पुं. लिंग
1. अस्
2. अस
3. भिस्
4. भ्यस्
5. भ्यस्
6. नाम्
7. सु
पु. लिंग
1. चत्वारः
2. चतुरः
3. चतुर्भिः 4. चतुर्भ्यः
5. चतुर्भ्यः
6. चतुर्णाम् 7. चतुर्षु
स्त्रीलिंग
अस्
अस्
भिस्
भ्यस्
भ्यस्
नाम्
सु
नपुंसक लिंग
इ
इ
भिस्
भ्यस्
भ्यस्
नाम्
सु
चतुर् के रूप
स्त्रीलिंग
चतस्रः
चतस्र:
चतसृभिः
चतसृभ्यः
चतसृभ्यः
चतसृणाम्
चतसृषु
नपुंसकलिंग
चत्वारि
चत्वारि
चतुर्भिः
चतुर्भ्यः
चतुर्भ्यः
चतुर्णाम्
चतुर्षु
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प्रथमा
आओ संस्कृत सीखें
11291 8. धुट् प्रत्ययों पर चतुर् के उ का वा होता है . ..
चत्वारः पुंलिंग
चत्वारि नपुं.लिंग प्रथमा द्वितीया 9. शब्द के अंत में मूल से ही र् हो तो सु प्रत्यय पर कुछ भी परिवर्तन नहीं
होता है ।
उदा. चतुषु 10. स्वरादि प्रत्ययों पर तिसृ और चतसृ के ऋ का र होता है ।
उदा. तिस्रः, चतस्रः 11. नाम् प्रत्यय पर तिसृ चतसृ, षकारांत और रकारांत का समान स्वर दीर्घ
नहीं होता है, परंतु नकारांत का समान स्वर दीर्घ होता है । उदा. तिसृणाम्
चतसृणाम्
षण्णाम् पञ्चन् + नाम = पञ्चानाम् - यहाँ न का लोप हुआ है । 12. षकारांत और नकारांत नामो के प्रथमा-द्वितीया का प्रत्यय 0 है | 13. विभक्ति के प्रत्ययों पर अष्टन् का विकल्प से अष्टा होता है । 14. अष्टा के बाद प्रथमा-द्वितीया का प्रत्यय औ है ।
रूप .
पचन
| ) ہم
1. पञ्च 2. पञ्च 3. पञ्चभिः 4. पञ्चभ्यः 5. पञ्चभ्यः 6. पञ्चानाम् | 7. पञ्चसु
षड्भिः
| षष्ट ।
अष्टन् षट्, ड् ।
अष्ट षट्, ड्
अष्ट
अष्टभिः षड्भ्यः अष्टभ्यः षड्भ्यः
अष्टभ्यः षण्णाम् अष्टानाम् षट्सु
अष्टसु षष् + नाम = षड् + नाम = षण्णाम्
अष्टौ अष्टौ अष्टाभिः अष्टाभ्यः
अष्टाभ्यः
अष्टानाम् अष्टासु
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आओ संस्कृत सीखें
1303 15. पदांत ट वर्ग के बाद रहे नाम् नगरी और नवति के न् का ण होता है |
षड् + नाम् = षण्णाम्, षण्णगरी, षण्णवति 16. प्रत्यय का पाँचवाँ अक्षर आने पर, तीसरे अक्षर का नित्य पाँचवाँ अक्षर
होता है।
षड् + णाम् = षण्णाम्
शब्दार्थ
ऋतु = ऋतु (पुंलिंग) मास = महीना (पुंलिंग) वैनतेय = गरुड़ (पुंलिंग) सैनिक = सिपाही (पुंलिंग) गणभृत् = गणधर (विशेषण) त्रितय = तीन का समूह (विशेषण) भगवत् = भगवान (विशेषण)
परोपकारिन् = परोपकारी (विशेषण) विद्यार्थिन् = विद्यार्थी (विशेषण) पत्नी = स्त्री (स्त्रीलिंग) पद = कदम (नपुं.लिंग) महेशान = महेसाणा (नपुं.लिंग) योजन = चार गाउ (नपुं.लिंग) शनैस् = धीरे (अव्यय)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. इस देवालय के चार द्वार हैं | 2. तीस दिन का एक मास होता है । 3. पाटण से चार योजन जाने पर महेसाणा आता है 4. एक वर्ष में छह ऋतुएँ आती हैं । 5. भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थें । 6. हमारी सेना में तीन करोड़, चार लाख और बीस हजार सैनिक हैं | 7. उसकी सेना में पचास लाख साठ हजार पाँच सौ नब्बे सैनिक हैं | 8. आज मैंने सित्तर विद्यार्थियों की परीक्षा ली ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. राज-पत्नी गुरोः पत्नी, भ्रातृ-पत्नी तथैव च ।
पत्नी-माता स्व-माता च, पञ्चैता मातरः स्मृताः ।। 2. रक्तत्वं कमलानां सत्पुरुषाणां परोपकारित्वम् ।
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22131
आओ संस्कृत सीखें
अ-सतां निर्दयत्वं स्वभावसिद्धं त्रिषु त्रितयम् । 3. दानं भोगो नाशस्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य । 4. शतेषु जायते शूरः, सहस्रेषु च पण्डितः ।
वक्ता दश-सहस्रेषु, दाता भवति वा न वा ।। 5. योजनानां सहस्रं वै, शनैर्गच्छेत् पिपीलिका | अ-गच्छन् वैनतयोऽपि पदमेकं न गच्छति ।।
पाठ-40 1. क्रियापद के अर्थ में विशेषता बतानेवाले विशेषण पदों के साथ जो
क्रियापद हो, उसे वाक्य कहते हैं |
उदा. धर्मो युष्मान् रक्षतु । 2. कई बार सिर्फ एक क्रियापद भी वाक्य बन जाता है, वहाँ कर्ता आदि
चालू बात पर से समझ सकते हैं ।
उदा. पिब | पीओ। 3. कई बार क्रियापद स्पष्ट न हो तो भी विशेषण पदों से ही वाक्य बन जाता
उदा. शीलं मम स्वम्
शील मेरा धन है । 4. युष्मद् और अस्मद् के सर्वनाम के द्वितीया, चतुर्थी और षष्ठी विभक्ति के
रूप द्वितीया बहुवचन में क्रमशः
वस् और नस् चतुर्थी द्विवचन में क्रमशः
वाम् और नौ षष्ठी एक वचन में क्रमशः
ते और मे द्वितीया एक वचन में क्रमशः
त्वा और मा ये रूप एक वाक्य में पद के बाद विकल्प से होते हैं उदा. 1. धर्मो वो रक्षतु, धर्मो युष्मान् रक्षतु
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5.
आओ संस्कृत सीखें
2132 2. शीलं मे स्वम् शीलं मम स्वम् । 3. धर्मो मा रक्षतु धर्मो मां रक्षतु | किसी के बारे में कुछ कहने के बाद पुनः उसी के संबंध में कुछ कहना हो तो उसे अन्वादेश कहते हैं । अन्वादेश हो तब वस् नस् आदि नित्य होते हैं । उदा. युवां शीलवन्तौ ।
तद् वां गुरवो मानयन्ति । 6. अन्वादेश में द्वितीया विभक्ति के प्रत्यय तृतीया एक वचन और ओस् प्रत्यय पर एतद् और इदम् का एनद् आदेश होता है ।
द्वितीया विभक्ति पुंलिंग एनम् एनौ एनान् स्त्रीलिंग एनाम् एने एनाः ।
तृतीया विभक्ति पुंलिंग- एनेन स्त्रीलिंग
षष्ठी सप्तमी - द्वि वचन पुंलिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग-एनयोः उदा. सुशीलौ एतौ
तद् एनौ गुरवो मानयन्ति । एक पद धातु और उपसर्ग तथा समास में जहां संधि होती हो, वहाँ अवश्य करनी चाहिए क्योंकि वहाँ विराम लेने का नहीं है। उदा. नयति, अपेक्षते, सज्जनः
शब्दार्थ अधर = होठ (पुंलिंग)
निलय = घर (पुंलिंग) अब्धि = सागर (पुंलिंग)
निसर्ग = स्वभाव (पुंलिंग) उलूक = उल्लू (पुंलिंग) घुग्घू पल्लव = कोंपल (पुंलिंग) कोरक = फूल की कली (पुंलिंग) वारिधि = समुद्र (पुंलिंग) ग्रह = राहु आदि ग्रह (पुंलिंग) विहङ्गम = पक्षी (पुंलिंग) दिवाकर = सूर्य (पुंलिंग)
सह्याद्रि= सह्यपर्वत (पुंलिंग)
एनया
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आओ संस्कृत सीखें
तन्वङ्गी = सुंदर स्त्री (स्त्रीलिंग) मक्खी (स्त्रीलिंग)
मक्षिका = मधुकरी = भ्रमरी (स्त्रीलिंग) शृंखला = बेड़ी (स्त्रीलिंग) केवल = सिर्फ (नपुं. लिंग) क्रव्य = मांस (नपुं.लिंग)
नभस् = आकाश (नपुं. लिंग) पञ्जर = पिंजरा (नपुं.लिंग) पद्म = कमल (नपुं. लिंग) ब्रह्मन् = ब्रह्मा (नपुं. लिंग) यादस् = जलजंतु (नपुं. लिंग)
अवधि = मर्यादा (पुंलिंग)
स्व = धन (नपुं. लिंग) अर्जित = प्राप्त किया हुआ (विशेषण)
133
1.
2.
कृत्स्न = समस्त (विशेषण) गुरु = बड़ा (विशेषण) दम्भिन् = दंभी (विशेषण) दारुण = भयंकर (विशेषण) धीमत् = बुद्धिशाली (विशेषण) निज = अपना (विशेषण)
प्रेष्य = नौकर (विशेषण)
भोक्तव्य = खाने योग्य (विशेषण)
सञ्चित = इकट्ठा किया हुआ (विशेषण) स्वामिन् = स्वामी (पुंलिंग)
नक्तं = रात्रि (अव्यय)
यद् = जो (अव्यय)
अपर =
दूसरा (सर्वनाम)
धातुएँ
अनु + सृ = अनुसरण करना (गण 1, परस्मैपदी)
लोक् = देखना ( गण 1, आत्मनेपदी) ( गण 10, परस्मैपदी)
वि + = विलोकन करना
सद् (सीद्) = दुःखी होना (गण 1, परस्मैपदी)
प्र + = प्रसन्न होना
हस् = हसना (गण 1, परस्मैपदी)
उद् + स्था = खड़ा होना, स्थिर रहना ( गण 1, परस्मैपदी)
उद् + सृज् = त्याग करना (गण 6, परस्मैपदी) = मानना - ( गण 4, आत्मनेपदी)
मन्
मान् = मानना, पूजना ( गण 10, परस्मैपदी)
संस्कृत अनुवाद करो
ये दो नगरियाँ बहुत सुंदर हैं, इस कारण उसमें बहुत से सैनिक रहते हैं ।
'आ, जा खड़ा रह, बैठ जा, बोल, मौन हो जा । इस प्रकार धनिक याचकों द्वारा क्रीड़ा करते हैं ।
3. इन दो वृक्षों पर जो ये पक्षी दिखाई देते हैं, वे इस पिंजरे में थें, हमने उनको पिंजरे में से
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आओ संस्कृत सीखें
मुक्त कर दिया है। 4. यदि मैं प्रजा का पालन करूंगा तो प्रजा मेरा अनुसरण करेगी । 5. धर्म आपको धन दे, मुझे ज्ञान दे ।
हिन्दी में अनुवाद करो 1. यत्प्रेष्य एको भवति, स्वामी भवति चापरः । ... एकः प्रार्थयते भिक्षामपरश्च प्रयच्छति । 2. इत्यादि सम्यगेवेह, धर्माधर्मफलं महत् ।
पश्यन्नपि न मन्येत, यस्तस्मै स्वस्ति धीमते । 3. अस्मिन्नसारे संसारे, निसर्गेणातिदारुणे ।
अवधि न हि दुःखानां, यादसामिव वारिधौ ।। 4. गजभुजङ्गविहङ्गमबन्धनं, शशिदिवाकरयोर्ग्रह-पीडनम् ।
मतिमतां च विलोक्य दरिद्रतां, विधिरहो बलवानिति मे मतिः ।। 5. सह्याद्रेरुत्तरे भागे, यत्र गोदावरी नदी ।
पृथिव्यामिह कृत्स्नायां, स प्रदेशो मनोरमः ।। 6. कः कौ के, कं को कान्हसति हसतो हसन्ति तन्वङ्गयाः ।
दृष्ट्वा पल्लवमधरः पाणी पद्मे च कोरकान्दन्ताः ।। 7. सुखार्थी च त्यजेद्विद्या, विद्यार्थी च त्यजेत्सुखम् ।
सुखार्थिनः कुतो विद्या, कुतो विद्यार्थिनः सुखम् ।। 8. विद्याभ्यासो विचारश्च, समयोरेव शोभते ।
विवाहश्च विवादश्च, समयोरेव शोभते ।। 9. . दिवा पश्यति नोलूकः, काको नक्तं न पश्यति ।
अपूर्वः कोऽपि कामान्धः, दिवा नक्तं न पश्यति ।। 10. अमृतं शिशिरे वह्निरमृतं प्रिय-दर्शनम् ।
अमृतं राज-संमानममृतं क्षीर-भोजनम् ।
सुभाषितानि
1. नरस्याभरणं रूपं, रूपस्याभरणं गुणः ।
गुणस्याभरणं ज्ञानं, ज्ञानस्याभरणं क्षमा ।।
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आओ संस्कृत सीखें 2. नास्ति विद्यासमं नेत्रं, नास्ति सत्यसमंतपः ।
नास्ति लोभसमं दुःखं, नास्ति त्यागसमं सुखम् ।। 3. उद्यमः साहसं, धैर्य, बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः ।
षडेते यत्र वर्तन्ते, तत्र देवः प्रसीदति ।। 4. असती भवति स-लज्जा क्षारं नीरं च शीतलं भवति ।
दम्भी भवति विवेकी प्रिय-वक्ता भवति धूर्तजनः ।। 5. अयं निजः परो वेति, गणना लघुचेतसाम् । ,
उदारचरितानां तु, वसुधैव कुटुम्बकम् ।। 6. दातव्यं भोक्तव्यं सति, विभवे सञ्चयो न कर्तव्यः ।
पश्येह मधुकरीणां, सञ्चितमर्थं हरन्त्यन्ये ।। 7. पिपीलिकार्जितं धान्यं, मक्षिकासञ्चितं मधु ।
लुब्धेन सचितं द्रव्यं, स-मूलं वै विनश्यति ।। 8. रक्षन्ति कृपणाः पाणौ, द्रव्यं क्रव्यमिवात्मनः ।
तदेव सन्तः सततमुत्सृजन्ति यथा मलम् ।। 9. गिरिर्महानगिरेरब्धिर्महानब्धेर्नभो महत् ।
नभसोऽपि महद्ब्रह्म, ततोऽप्याशा गरीयसी ।। 10. आशा नाम मनुष्याणां, काचिदाश्चर्यशृङ्खला ।
यया बद्धाः प्रधावन्ति, मुक्तास्तिष्ठन्ति पॉवत् ।। 11. उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये ।
पयः पानं भुजङ्गानां, केवलं विषवर्धनम् ।। 12. यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः
स एव वक्ता स च दर्शनीयः । स पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः
सर्वे गुणाः काचनमाश्रयन्ते ।। 13. सुमुखेन वदन्ति वल्गुना
प्रहरन्त्येव शितेन चेतसा । मधु तिष्ठति वाचि योषिताम् हृदये हलाहलं महद्विषम् ।।
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आओ संस्कृत सीखें 14. भूमिक्षये राजविनाश एव
भृत्यस्य वा बुद्धिमतो विनाशे । नो युक्तमुक्तं ह्यनयोः समत्वं
नष्टापि भूमिः सुलभा न भृत्याः ।। 15. आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात् । दिनस्य पूर्वार्धपरार्धभिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम् ।। 16. वरं वनं व्याघ्रगजादिसेवितं
जनेन हीनं बहुकण्टकावृतम् । तणानि शय्या परिधानवल्कलं
न बन्धुमध्ये धनहीनजीवितम् ।। 17. विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा
सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः । यशसि चाभिरुचि र्व्यसनं श्रुतौ प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ।।
कथा कस्मिंश्चित्स्थाने कुम्भकारः प्रतिवसति । स कदाचित्प्रमादादर्धभग्नघटखर्परोपरि महता वेगेन धावन्पतितः । ततः खर्परकोट्या पाटितललाट: रुधिरप्लाविततनुः कृच्छ्रादुत्थाय स्वाश्रयं गतः । ततश्चापथ्यसेवनात्स प्रहारस्तस्य करालतां गतः, कृच्छ्रेण नीरोगतां नीतः ।
अथ कदाचिद् दुर्भिक्षपीडिते देशे स कुम्भकार: कैश्चिद्राजसेवकैः सहान्यस्मिन्देशे गतः, कस्यापि राज्ञः सेवकोभूतः । सोऽपि राजा तस्य ललाटे विकरालं प्रहारक्षतं दृष्टवाचिन्तयद् यद् वीरः पुरुषः कश्चिदयम् नूनं तेन ललाटपट्टे प्रहारः' । अतः तं संमानादिभिः सर्वेषां राजपुत्राणां मध्ये विशेषप्रसादेन पश्यति । तेऽपि राजपुत्राः तस्य तां प्रसादविशेषतां पश्यन्तः ईर्ष्याधर्मं वहन्तो राजभयान्न किञ्चिद्वदन्ति ।
अथैकदा संग्रामे समुपस्थिते तेन भूभुजा स कुम्भकारः पृष्टो निर्जने ।
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आओ संस्कृत सीखें
2137 भो राजपुत्र ! किं ते नाम, का च जातिः कस्मिन्संग्रामे प्रहारोऽयं लग्नः । सोऽवदत् - देव ! नायं शस्त्रप्रहारः । युधिष्ठिरनामा कुलालोऽहम् । मम गृहेऽनेकखर्पराण्यासन् । अथ कदाचिन्मद्यपानं कृत्वा निर्गतः प्रधावन्खपरोपरि पतितः । तस्य प्रहारविकारोऽयं मे ललाट एवं विकरालतां गतः । राज्ञाचिन्त्यत- अहो वञ्चितोऽहं कुलालेन' कथितं च कुलालाय, 'भोः कुलाल ! त्वयातो झटिति गम्यताम्' इति ।
आचार्यहेमचन्द्रीयसाङ्गशब्दानुशासनात् । विदुषा शिवलालेन रचितेयं प्रवेशिका ।। बाणव्योमनभोहस्तभिते वैक्रमवत्सरे ।
अणहिलपुरे नाम पत्तने पूर्णतामगात् ।। श्रीमत्गुर्जरदेशेऽणहिलपुरपत्तने श्रीसिद्धराजराज्ये आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वर-विरचितसिद्धहेमचन्द्राभिधानसाङ्गशब्दानुशासनं समाश्रित्याणहिलपुरपत्तनाद् द्वादशगव्यूतिमिते दूरे उत्तरपश्चिमे दिग्विभागे वर्णासनदीतीरस्थ-श्री जामपुरग्रामवास्तव्य-श्राद्धवर्य-श्री नेमचन्द्रवेष्ठि-सुश्राविकाश्रीरतिदेवी-तनुजशिवलालेन महेशाने श्री यशोविजयजैन-संस्कृत-पाठशालायां दशाब्दी यावद् धर्मशास्त्रन्यायव्याकरणालड्वारशास्त्राण्यभ्यस्य, तत्रैव च तानि शास्त्राण्यभ्यासयता सता विक्रमसंवत् 2001 वर्षे इयं प्रमा हैमसंस्कृत-प्रवेशिका रचयितुं प्रारब्धा, ततः 2004 वर्षेऽणहिलपुरपत्तने समागत्य तत्र निवासं कुर्वता 2005 वर्षे समाप्तिं नीता। एतावता यत्र सिद्धहेमव्याकरणसमवतारस्तत्रैव हैमसंस्कृत-प्रवेशिका-समवतारस्संजातः ।
।। इति श्री-हैम-संस्कृत-प्रवेशिका प्रथमा समाप्ता ।।
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आओ संस्कृत सीखें
परिशिष्ट-1
पाठ-2
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. मैं नमस्कार करता हूँ। 16. हम सब रहते हैं। 2. तुम पढ़ते हो ।
17. हम सब रक्षण करते हैं। 3. तुम गिरते हो।
18. हम दोनों जीते हैं। 4. मैं पढ़ता हूँ।
19. तुम त्याग करते हो। 5. वह नमस्कार करता है। 20. वे झरते हैं। 6. वे दोनो गिरते हैं।
21. तुम दोनों बोलते हो। 7. तुम रक्षण करते हो।
22. वे दोनों पूजा करते हैं। 8. वे दोनों पढ़ते हैं।
23. हम सब पढ़ते हैं। 9. वह बोलता है।
24. मैं त्याग करता हूँ। 10. वे दोनों नमस्कार करते हैं। 25. मैं खाता हूँ। 11. हम दोनों पढ़ाई करते हैं। 26. वह चलता हैं। 12. वे चलते हैं।
27. तुम गिरते हो। 13. तुम दोनों भटकते हो। 28. मैं रहता हूँ | 14. हम सब चलते हैं।
29. तुम दोनों भटकते हो। 15. वे सब नमस्कार करते हैं।
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. नमसि 9. रक्षति 17. पतसि 25. अर्चामि 2. पतामि
__ 10. पतथः 18. चलति . 26. जीवति 3. पठति 11.खादामि' 19. खादावः
27. रक्षामि 4. पतसि 12. अर्चन्ति 20. पतावः
28. भणसि 5. पठामि 13. वदन्ति
21. खादथ 29. वसामः 6. वसतः 14. चलामः
22. त्यजन्ति 7. वदसि 15. अटसि 23. अटथः 8. वदावः 16. पठामः 24.पठतः
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आओ संस्कृत सीखें
139 3
पाठ-3
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. अहं-नमामि ।
2. वयं वदामः । 3. यूयम्पठथ ।
4. त्वमर्चसि । 5. युवाञ्जीवथः ।
6. आवां त्यजावः ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. वह नमस्कार करता है । 2. वे रक्षण करते हैं | 3. वे दोनों पढ़ते हैं।
4. तुम गिरते हो। 5. हम जीते हैं ।
6. मैं चलता हूँ |
पाठ-4
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1.ते वर्षन्ति ।
2. आवां जपावः । 3. वयङ्क्रीडामः ।
4. यूयञ्चरेथ । 5. वयं चलामः ।
6. युवां शोचथः । 7. आवाम्भवावः ।
8. स क्षयति । 9. यूयं सरथ ।
10. तो जेमतः ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. वह बरसता है।
2. वे खाना खाते हैं। 3. वे क्रिया करते हैं।
4. तुम दोनों निन्दा करते हो। 5. मैं रक्षण करता हूँ । 6. तुम भटकते हो । 7.मैं जीत रहा हूँ।
8. हम दोनों स्मरण करते हैं । 9. हम तैरते हैं।
10. तुम भागते हो।
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आओ संस्कृत सीखें
1. लुभ्यन्ति ।
3. युवां त्यजथः ।
5. तौ नश्यतः ।
7. तौ मिलतः ।
9. यूयं लिखथ ।
11. जेमामः ।
13. स्फुरति ।
7.
1. वे दोनों पोषण करते हैं ।
3. वह बोलता है ।
5. आप खेद पाते हो ।
. वे मिलते हैं ।
9. आप पढ़ते हो ।
11. वे खिलते हैं ।
13. हम आलोट रहे हैं ।
1. युवां शोचथः ।
3. अहं नृत्यामि ।
5. वयं वर्णयामः ।
7. यूयं चोरयथ ।
9. तोलयथ ।
140
पाठ-5
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 2. आवां मुह्यावः ।
4. यूयङ् कुप्यथ ।
6. वयं नृत्यामः ।
8. अहं जीवामि ।
10. वयं स्पृशामः ।
12. ते क्षुभ्यन्ति ।
14. यूयं निन्दथ ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद
2. वे आलोट रहे हैं ।
4. मैं संतोष पाता हूँ ।
6. तुम दोनों गुस्सा करते हो ।
8. हम दोनों नाचते हैं ।
10. तुम दोनों तैरते हो ।
12. वह रचना करता है । 14. तुम जीत रहे हो ।
पाठ-7
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
2. तौ सान्त्वयतः ।
4. युवां पूजयथः ।
6. युवां लिखथः ।
8. युवां भूषयथः ।
10. अहं तोलयामि ।
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4141
आओ संस्कृत सीखें 11. ते चोरयन्ति ।
12. आवाङ्घोषयावः । 13. त्वं पुष्यसि ।
14. वयं सृजामः । 15. यूयं सरथ ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. हम विचार करते हैं।
2. हम दोनों स्पर्श करते हैं। 3. तुम दंडित होते हो । 4. वे लोभ करते हैं। 5. वे बरसते हैं ।
6. तुम दोनों दुःखी हो रहे हो । 7. वे चोरी करते हैं।
8. मैं घोषणा करता हूँ। 9. हम दोनो तोल रहे हैं।
10. तू शोभा करता है। 11. तुम दोनो चोरी करते हो। 12. तुम सब जाहिर कर रहे हो । 13. हम सांत्वना दे रहे हैं । 14. मैं जीतता हूँ । 15. वे पूजा करते हैं ।
पाठ-8
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. त्वं भक्षयसि ।
2. यूयं ताडयथ । 3. अहं पारयामि ।
4. वयं पालयामः । 5. आवां स्पृहयावः ।
6. अहं तरामि । 7. स सान्त्वयति ।
8. वयं तिष्ठामः । 9. तौ माद्यतः ।
10. ते पश्यन्ति । 11. यूयं पिबथ ।
___ संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. तुम सब भक्षण करते हो ।
2. तुम कहते हो। 3. वे गिनतें हैं।
4. तुम दोनों रचना करते हो। 5. मैं स्पृहा करता हूँ ।
6. हम आलोटते हैं । 7. मैं जाता हूँ।
8. तुम खेद पाते हो। 9. तुम दोनों इच्छा करते हो। 10. हम दोनों पूछते हैं। 11. तुम देते हो ।
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आओ संस्कृत सीखें
21425
पाठ-9
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. वयं वर्धामहे ।
2. युवाम्पचथः । 3. आवां वन्दावहे ।
4. ते तिष्ठन्ति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. तुम हरण करते हो।
2. हम हरण करते हैं। 3. हम दोनों पकाते हैं।
4. मैं पकाता हूँ। पाठ-10
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. यूयं क्व गच्छथ?
2. वयमत्र तिष्ठामः । 3. त्वं चोरयसि ।
4. अहं न चोरयामि । 5. त्वङ्कदा गच्छसि ?
6. अहमिदानीं गच्छामि । 7. ते प्रातः पठन्ति ।
8. सुरेन्द्रः पूजयति । 9. कूर्मी सरतः ।
10. चन्द्रः क्षयति । 11. अहमत्रा-ऽस्मि ।
12. बालाः श्राम्यन्ति । 13. आचार्यों क्व गच्छतः ?
14. नृपाः पालयन्ति । 15. यूयं क्व वसथ ?
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. कहाँ जाते हो ?
2. यहाँ खड़ा हूँ। 3. मैं सुबह में पढ़ता हूँ।
4. वह सुबह में पढ़ता नहीं है । 5. तुम बहुत बार खाते हो। 6. वह कब जाता है ? 7. अभी जाता है ।
8. रतिलाल पूछता है । 9. आचार्य कहते हैं।
10. लडू हैं। 11. हम दोनों यहाँ खड़े है ।
12. वे दोनों बालक पढ़ते नहीं हैं। 13. बालक पढ़ाई करते हैं।
14. दो मोर नाचते हैं। 15. तुम दोनों कहाँ जा रहे हो ?
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आओ संस्कृत सीखें
1. नृपो रक्षति ।
3. कूर्मस्सरति ।
6. बालः श्राम्यति ।
8, चन्द्रो वर्धते ।
10. रतिलालोऽत्रास्ति ।
12. मृगा धावन्ति ।
14. जीवा जीवन्ति ।
16. देवदत्तः पचति ।
18. तौ जनौ क्व गच्छतः ?
20. बाला बहुशः खादन्ति ।
1. धर्म की जय होती है ।
2. बालक भागता है |
3. दो साधु जा रहे हैं ।
4. कहाँ जा रहे हैं ?
5. जहाँ आचार्य खड़े हैं ।
6. वहाँ जा रहे हैं ।
पाठ-12
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
143
7. सुबह मैं स्मरण करता हूँ ।
8. लड्डू है ।
9. राजा शान्त हो रहे हैं ।
10. हिरण चर रहे हैं ।
11. सुबह में बालक पढ़ाई करते हैं । 12. समुद्र में खलबलाहट होती है । 13. धर्म करने वाले जय पाते हैं ।
2. वसन्तलालश्चिन्तयति ।
4. धर्मोरक्षतीति 5. आचार्यः कथयति ।
7. नृपस्तुष्यति ।
9. जनास्तरन्ति ।
11. त्वं प्रातरटसि ।
13. जन इच्छति ।
15. बाला मुह्यन्ति ।
17. नृपा रक्षन्ति ।
19. देवो वन्दते ।
21. अत्र मोदका न सन्ति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद
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144
आओ संस्कृत सीखें
144 14. श्रमण जा रहे हैं। 15. धार्मिक पुरुष आगे बढ़ते हैं । 16. मोर नाच रहे हैं। 17. भोगीलाल हरण करता है। 18. बालक चाहते हैं। 19. तुम राजा हो ? हाँ, मैं राजा हूँ । 20. प्रधान विचार करते हैं । यहाँ कांतिलाल है ? 21. यहाँ कांतिलाल नहीं है। 22. देव जल्दी जाते हैं।
पाठ-14
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. बालश्चन्द्रं पश्यति ।
2. जना देवान् पूजयन्ति । 3. नृपो ग्रामौ रक्षति ।
4. सुरेशचन्द्रो रमेशचन्द्रं स्पृहयति । 5. जनकः पुत्रांश्चिन्तयति । 6. स ब्राह्मणो मोदकौ खादति । 7. त्वं धनमिच्छसि ।
8. त्वं मुखं पश्यसि । 9. वनं दहति ।
10. फलानि पतन्ति । 11. जलं क्षरति ।
12. मित्रं धनं यच्छति । 13. वयमन्नं खादामः ।
14. पुस्तके अत्र स्तः । 15. नृपो नगरं रक्षति ।
16. अहं मित्राणि स्पृहयामि । 17. बाला गृहं गच्छन्ति
18. रतिलालो मित्राणि पृच्छति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. मनुष्य धर्म को चाहते हैं। 2. बालक मोदक खाते हैं। 3. मैं वीर को नमस्कार करता हूँ। 4. शिष्य आचार्य को वंदन करते हैं । 5. पिता पुत्रों को शान्त रखते हैं। 6. वह बिल्लियों को मारता है । 7. अंग स्फुरित होता है । 8. यहाँ जल है ।
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आओ संस्कृत सीखें 9. लकड़ी जल रही है। --- 10. दो फल गिरते हैं। 11. कमल खिलते हैं ।
12. शरीर नष्ट होता है । 13. साधु उद्यान में जाते हैं। 14. मनुष्य धन की इच्छा करते हैं | 15. देवदत्त पुस्तक लिखता है। 16. हम धन का रक्षण करते हैं | 17. वह पेट का स्पर्श करता है। 18. हम मित्रों का त्याग करते हैं ।
पाठ-15
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. श्रमणा वनङ्गच्छन्ति ।
2. जना अन्नं खादन्ति । 3. नृपश्चौरांस्ताडयति । 4. शिष्य आचार्यं वन्दते । 5. ब्राह्मणाः पचन्ति ।
6. अत्र तानि पुस्तकानि न सन्ति । 7. आचार्यः पूज्योऽस्ति । 8. अहमिदानी पुस्तकं लिखामि | 9. आवां जलम्पिबावः ।
10. चौरा धनं हरन्ति । 11. अहन्तानि मित्राणि स्मरामि । 12. तेऽस्मान्न गणयन्ति । 13. रतिलाल आचार्यं पृच्छति। 14. कुशलं जनमहं स्पृहयामि |
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. सफेद घोडा दौडता है । 2. वह देव को पूजता है । 3. मैं उनको नहीं चाहता हूँ | 4. वह उसे कहता है । 5. वह वन जलता है । 6. वह मुझे कहता है । 7. दो कमल यहाँ हैं।
8. हिरण घूमते हैं। 9. कछुआ हटता है ।
10. वह धर्म करता है । 11. बहुत पानी है।
12. अभी हम तुम्हें त्याग रहे हैं। 13. राजा हमें त्याग रहा है। 14. हम दोनों यहाँ नहीं रहते हैं । 15. आप उन दो को चाहते हो । हम दो को नहीं । 16. मैं दो फलों को देखता हूँ। 17. भैंसा काला होता है | 18. वह यहाँ खड़ा नहीं रहता है। 19. वह वहाँ जाता नही है। 20. मैं धर्म को नहीं छोड़ता हूँ। 21. मैं उन दो घरों को देखता हूँ।
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आओ संस्कृत सीखें
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पाठ-17
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. जना अलङ्कारैः शरीरं भूषयन्ति । 2. धर्मेण धनं वर्धते । 3. रथश्चक्राभ्याञ्चलति । 4. जीवा जलेन जीवन्ति । 5. अहं युवाभ्यां सह तरामि । 6. आवां छात्राभ्यां पुस्तके यच्छावः । 7. अहम्पुत्राभ्यां सह तुभ्यं बहुशो नमामि । 8. धर्मः सुखाय भवति न दुःखाय ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. मनुष्य दुःख से मोहित होते हैं। 2. बूढा (आदमी) लकड़ी से चलता है। 3. रतिलाल दोस्त के साथ रहता है । 4. मैं उन दो के साथ नगर में जा रहा हूँ । 5. बालक लड्डु से खुश होते हैं । 6. आप हम दो के साथ, वीर को पूजते हैं | 7. वह तेरे साथ पढता है, मेरे साथ नहीं पढ़ता | 8. श्रीचन्द्र तुम्हारे साथ खाना खाता है | 9. राजा ब्राह्मणों को सुवर्ण देता है। 10. वह उन दो शिष्यों को धर्म कहता है । 11. हम बच्चों को लड्डू देते हैं । 12. धन दान देने के लिए है, मद करने के लिए नहीं । 13. साधुओं का कल्याण हो। 14. आपको नमस्कार करता हूँ ।
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आओ संस्कृत सीखें
पाठ-18
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. श्रीमहावीरोऽङ्गेभ्योऽलङ्कारांस्त्यजति । 2. इदानीं गृहात् क्व गच्छति । 3. धनं विना जना मुह्यन्ति । 4. स युष्मद् धनमिच्छति । 5. नृपश्चौरेभ्योऽस्मान्रक्षति । 6. युष्माकमुद्यानस्यतयोः वृक्षयोर्वानराः फलानि खादन्ति | 7. अहं मम नयनाभ्यां पश्यामि, तस्य नयनाभ्यां न पश्यामि । 8. तेषां पर्वतानां शिखरेषु तृणं दहति । 9. तस्मिन् गृहेऽस्माकञ्जनकस्य धनमस्ति । 10. युष्माकं ग्रामेषु प्रभूतमन्नमस्ति । 11. तस्मिन् मार्गे सो गच्छति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. बच्चा महल ऊपर से गिरता है। 2. धर्म बिना सुख नहीं । 3. झाड़ से पत्ते गिरते हैं। 4. चोर आपके पाससे धन ले लेते हैं । 5. संघ एक नगर से दूसरे नगर में जाता है | 6. वह बंदर उस उद्यान से भागता है | 7. हम दोनों से पाप नष्ट होते हैं । 8. पुण्य बिना सुख नहीं है । 9. मनुष्य धर्म का फल चाहता है, परंतु धर्म को नहीं चाहता है । 10. हाथ का भूषण दान है, कंकण नहीं । 11. देह का भूषण शील है, अलंकार नहीं । 12. श्रमण मेरे घर में रहते हैं ।
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आओ संस्कृत सीखें
13. तुम्हारे में ज्ञान बढता है, मेरे में नहीं बढता है।
14. हमारे में पाप नहीं हैं
।
15. वन-वन मे चंदन नहीं होता है ।
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पाठ-19
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
1. युद्धे योधा युध्यन्ते बाणाँश्च मुञ्चन्ते ।
2. हे नृप ! देवालयान्विना तव ग्रामा न शोभन्ते ।
3. अहं पुष्पैः श्रीमहावीरं पूजयामि ।
4. हे विनोद ! तवोद्याने पुष्पाणि सन्ति न वा ?
5. किङ्करा भारं वहन्तेऽन्नं च लभन्ते ।
6. रमेश ! त्वञ्च रतिलालश्च क्व गच्छथः ?
7. प्रातः विहंगा आकाशे डयन्ते ।
8. रतिलालो वा शान्तिलालो वा वदति ।
9. नृपो याचकेभ्योऽन्नं यच्छति । 10. कासारे कमलानि सन्ति ।
11. याचका धनं याचन्ते ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद
2.
1. हे विनोद ! तू ही संस्कृत अच्छी बोलता है । भोगीलाल ! हम उद्यान में देर तक खेलते हैं । 3. रमेश ! तुम और दिनेश सच नहीं बोलते हो । 4. मैं और रमेश गाँव जा रहे हैं ।
5.
रे मानवो ! आप धर्म का सेवन क्यों नहीं करते हो । 6. यहाँ पर्वत के शिखर पर जल कहाँ से ?
7.
8. लालचन्द्र ! मोहनलाल और कान्तिलाल कहाँ रहते हें ?
9. अरे नौकरो ! तुम वृक्षों का सिंचन कब करते हो ? सींचते हो या नहीं ? इस तरह
अरे दोस्त ! तू मेरे घर से तेरा धन लेकर क्यों नहीं जाता है ?
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आओ संस्कृत सीखें
149 राजा पूछते है। 10. जैसे चन्द्र बिना गगन शोभा नहीं देता, वैसे कमल बिना तालाब शोभा
नहीं देता है। 11. ब्राह्मण लड्डू खाते हैं। 12. आकाश में चन्द्र शोभा देता है ।
पाठ-20
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. वीरस्य भूषणं क्षमा धर्मस्य च भूषणं दया । 2. मम कन्ये क्रीडासु च कलासु च प्रवीणे स्तः । 3. सीता पुष्पाणां शोभना मालाः सृजति । 4. अत्र गङ्गया सह यमुना मिलति । 5. मालाभ्यामहं देवौ पूजयामि । 6. रामोऽयोध्याया नृपोऽस्ति । 7. सर्पस्य जिह्वे स्तः । 8. तस्यां पाठशालायां प्रभूताः कन्याः पठन्ति ।
___ संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. तुम्हारी दो कन्याएँ अयोध्या का मार्ग पूछ रही है। 2. यमुना का पानी काला और गंगा का सफेद है । 3. पूज्य आचार्यों को वे बालिकाएँ नमस्कार कर रही हैं । 4. मथुरा में दो अच्छी पाठशालाएँ हैं । 5. उन दो पाठशालाओं में विद्यार्थी पढ़ते हैं । 6. जैसे लता से (बेल से) वृक्ष झुकता है, वैसे क्षमा से साधु शोभते हैं । 7. वे बालिकाएँ माला के लिए पुष्प लेकर जा रही हैं । 8. गंगा में सरला, मंजुला और सीता खेल रही हैं । 9. हे सीता ! तुम्हारी दो कन्याएँ देव को पूज रही हैं | 10. हे स्त्रियो! आप घर का रक्षण क्यों नहीं करती हैं ?
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आओ संस्कृत सीखें
11. चिंता शरीर को जलाती है, और क्षमा पोषण करती है ।
12. वह बाला यमुना की ओर जाती है ।
13. क्षमा वीरों का भूषण है ।
पाठ - 21
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
150
1. याचका धनिकं प्रार्थयन्ते ।
2. मोहनलालोऽध्ययनात् पराजयते ।
3. चिमनलालो गोधूमेभ्यः प्रति तण्डुलान् प्रयच्छति ।
4. रतिलालः पापाद्विरमति ।
5. अद्य नृपः प्रतिष्ठते ।
6. शिष्या आचार्यमनुरुध्यन्ते ।
7. कारणं विना कार्यं न भवति । 8. देवो विजयते ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद
1. उद्यम से ही कार्य सिद्ध होते हैं, मनोरथ द्वारा नहीं, सचमुच सिंह के मुँह में हिरण प्रवेश नहीं करते हैं ।
2. लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है, लोभ से काम उत्पन्न होता है, लोभ से
मोह और नाश होता है, लोभ पाप का कारण है ।
3. आचार्य सौराष्ट्र में विहार करते हैं ।
4. धर्म से सुख है और पाप से दुःख है ।
5. देवदत्त दुःख का अहसास करता है ।
6. भोगीलाल गाँव से आता है ।
7.
सज्जन पाप का त्याग करते हैं ।
8. विद्या विनय से शोभती है ।
सोये हुए
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आओ संस्कृत सीखें
पाठ-22
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. श्रावकैः श्रद्धया पुष्पैः श्रीमहावीरः पूज्यते । 2. ब्राह्मणै र्मोदकाः खाद्यन्ते । 3. नृपस्य पुरुषैश्चौरास्ताड्यन्ते । 4. युष्माभिरहं कथ्ये । 5. मया पुस्तकं लिख्यते । 6. रसिकेन पापाद्विरम्यते । 7. मया यूयम् पूज्यध्वे । 8. शिष्यैराचार्या वन्द्यन्ते । 9. सूदेन तण्डुलाः पच्यन्ते । । 10. युष्माभिः पापे न पत्यते । 11. अस्माभिर्युवां दृश्येथे। 12. रतिलालो गृहाद्वनं गच्छति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. युद्ध में वीरपुरुषों के द्वारा लड़ा जाता है और बाण छोडे जाते हैं । 2. सरला द्वारा पुष्पों की माला का सर्जन होता है । 3. रात्रि में चन्द्र द्वारा प्रकाश होता है । 4. आचार्य द्वारा धर्म का उपदेश दिया जाता है । 5. तृष्णा द्वारा मानव हराया जाता हैं । 6. देवदत्त द्वारा सुख का अनुभव होता है । 7. न मिल सके ऐसी कोई वस्तु, किसी भी जगह से प्राप्त नहीं कर सकते हैं। 8. राजा द्वारा हुकम किया जाता है । 9. मेरे द्वारा आज गाँव जाना होता है । 10. मित्रों द्वारा आप का त्याग किया जाता है।
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आओ संस्कृत सीखें
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पाठ-23
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. ह्यः छात्राः पाठशालायां आगच्छन् । 2. भोजः पण्डितेभ्यः प्रभूतं धनमयच्छत् । 3. धनपालो धारायामवसत् । 4. तस्य सभायां प्रभूताः पण्डिता आसन् । 5. अहमज्ञानाद् धनस्य लोभेऽपतम् । 6. तेषु दिवसेष्वहं सुखमन्वभवम् । 7. स नृपो धनेन समाऱ्यात् । 8. पुराऽत्र नगरमासीत् । 9. रामस्य पुत्रावास्ताम् । 10. देवदत्त! त्वं ग्राममगच्छः ? 11. आचार्येण धर्म उपादिश्यत । 12. तेनाऽहं नाऽदृश्ये । 13. ह्य आकाशे चन्द्रो न प्राकाशत । 14. फलानां भारेण वृक्षैरनम्यत | 15. मया शत्रुञ्जयस्य मन्दिराण्यदृश्यन्त । 16. प्रातराकाशे विहगा डयन्ते । 17. भिक्षुका नृपमन्नमयाचन्त । 18. देवदत्तेन व्यापारेण धनमलभ्यत । 19. तेन गङ्गाया जलमानीयत् । 20. रामेण जनकस्याज्ञाऽन्वरुध्यत । 21. कृषिवला बलीवान् गृहं नयन्ति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. आचार्य ने शिष्यों को धर्म कहा । 2. सिद्धराज ने सौराष्ट्र को जीता |
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आओ संस्कृत सीखें
21533. यहाँ पहले विद्यार्थी रहते थे। 4. कारागृह में से चोर भाग गये । 5. कल यहाँ मैंने बाघ देखा था । 6. हम अयोध्या में लंबे समय तक रहे थे । 7. युधिष्ठिर ने नगर में प्रवेश किया। . 8. राजाओं ने ब्राह्मणों को बहुत धन दिया । 9. बहुत ब्राह्मण थे। 10. रतिलाल मेरे साथ शत्रुजय पर चढ़ा था । 11. हे अनिलकुमार ! रातको चोरों ने तुम्हारा धन चोर लिया । 12. हे देवदत्त ! तुम कहाँ गये थे ? मैं अयोध्या गया था । 13. हे मंजुला ! सरला अयोध्या से आ गयी ? 14. कुमारपाल राजा ने भी सिद्ध हेमचन्द्र व्याकरण का अभ्यास किया था । 15. तब मैं स्वर्ग के सुख का एहसास करता था और वह नरक के दुःख भोग रहा था | 16. श्री हेमचन्द्र आचार्य द्वारा सिद्ध हेमचन्द्र व्याकरण की रचना हुई। 17. दुर्योधन ने द्यूत द्वारा पांडवों का राज्य हासिल किया । 18. वनमाला द्वारा जंगल में बंदर देखे गए | 19. जिनेश्वर देव द्वारा पानी में असंख्य जीव देखे गए | 20. आम ऊपर मोर खुश हुआ । 21. उस मार्ग द्वारा चोर गये । 22. बालकों ने लड्डू खायें। 23. नारी ने लज्जा को छोड़ा नहीं । 24. बालिकाओं ने साध्वी चंदना को नमस्कार किया । 25. देवदत्त जल्दी आया । 26. बैल द्वारा घास से संतोष हुआ | 27. बाण द्वारा लक्ष्मण गिरा। 28. बालक कुए में गिर गया। 29. सीता ने शील का रक्षण किया ।
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आओ संस्कृत सीखें
1154
पाठ-24
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. दुर्योधनेन युतेन पाण्डवा जिता आसन् । 2. पाण्डवा हस्तिनापुरं परित्यज्य वनं गताः । 3. अद्य निशायामत्र सिंह आगतोऽस्ति । 4. तेन दुग्धमानीयास्मभ्यम् प्रदत्तम् । 5. स जलं पीत्वा रन्तुङ्गतोऽस्ति । 6. भारं गृहं नीत्वा तेन विश्रान्तम् । 7. स देवो भूत्वा स्वर्गे जातः । 8. मयाद्य तत्र न गतम | 9. वने स्थितां सीतां रावणो लङ्कामनयत । 10. कृषिवलाः क्षेत्रेषु बीजं वप्तुं गताः ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. राम के साथ सीता वन में गई थी। 2. बैल, हाथी और घोड़े पानी पीने के लिए तालाब पर गये । 3. मुसाफिर देवालय में रहने की प्रार्थना करते हैं | 4. धनपाल धारा (नगरी) को छोड़कर सांचोर में रहा । 5. वह चोर देवालय में घुसा है। 6. राम ने रावण को जीतकर अयोध्या की ओर प्रयाण किया । 7. दुर्योधन पर क्रोध करके भीमसेन कंपित हुआ । 8. ब्राह्मणों को सोना मोहर देने के लिए राजा द्वारा भंडारी आदेश करवाया। 9. धन चोरी करके उस चोर द्वारा वन में रहा गया । 10. विद्या प्रवास में मित्र (समान) है, पत्नी घर में मित्र है ।
दवाई बीमार की मित्र है, धर्म मरे हुए का मित्र है ।।
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आओ संस्कृत सीखें
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पाठ-25
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. आतपेन क्लान्ता जना वृक्षस्य छायायामाश्रयन्त | 2. लज्जा योषिताम् भूषणमस्ति । .. 3. धर्मो जगतः शरणमस्ति । 4. नृपः प्रधानेभ्यः कुप्यति । 5. बालेभ्यो मोदका रोचन्ते । 6. बालो मोदकाय स्पृहयति । 7. युधि योद्धा युध्यन्ते ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. धर्म आपत्ति में शरण है । 2. गगन में बिजली चमकती है | 3. हवा से समुद्र में खलबलाहट होती है | 4. वीर पुरुषों के लिए युद्ध सचमुच हर्ष का कारण है | 5. कुंभकार द्वारा मिट्टी के बर्तन बनाए गए । 6. कारण के जैसा कार्य जगत् में दिखता है । 7. बादल शरद ऋतु में बरसता नहीं है, और गर्जना करता है । वर्षाऋतु में
गर्जना रहित बरसता है। 8. उदार को धन तृण समान है, शूरवीर को मरण तृण समान है, वैरागी को पत्नी तृण समान है, और स्पृहारहित को जगत् तृण समान है |
पाठ-26
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. एष मम जनक आगच्छति । 2. तानि दुःखानि न स्मराम्यहम् । 3. असौ शोभनः प्रासादो नृपस्यास्ति |
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आओ संस्कृत सीखें
11565 4. रतिलाल ! इदं पुस्तकं कस्यास्ति । ? 5. कुमुदचन्द्र ! एतत्पुस्तकम्ममास्ति । 6. अमूनि दृश्यन्ते तानि गृहाण्यस्माकं सन्ति | 7. मत्रैते द्वे पुस्तके स्तः ते आवयो र्द्वयोः स्तः । 8. मह्यं धर्मो रोचते तुभ्यञ्च धनं रोचते | 9. एतौ द्वौ जनौ कस्माद् ग्रामादागतौ स्तः ? 10. एतेषु ग्रामेषु पुरा प्रभूता जैना अवसन् । 11. मयैकेन इमे सर्वे ग्रामा रक्ष्यन्ते । 12. येषां स्वभाव उदारोऽस्ति ते सर्वेभ्यो रोचन्ते । 13. या कन्याः पठन्ति ताभ्योऽहं पारितोषिकं यच्छामि । 14. एष रतिलालः सर्वासु कलासु प्रवीणोऽस्ति । 15. एते द्वे बाले, के द्वे पुष्पमाले असृजताम् । 16. इयं सरला स्वे द्वे पुस्तके नयति । 17. अमूः कुम्भकारस्याङ्गना मृदो घटान् सृजन्ति । 18. यस्यां मथुरायां कृष्णोऽजायत तां परित्यज्य अस्यां द्वारिकायां सोऽवसत् ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. कौन क्या बोलता है ? 2. किसका मैं और किसका भाई ? 3. जिसके पास धन है वह मनुष्य कुलवान है ।
सभी गुण सुवर्ण के अधीन हैं। 5. कर्तव्य से भ्रष्ट हुए को सभी व्यर्थ है ।
राजा कभी भी अपने नहीं होते हैं। 7. धर्म सभी का भूषण है। 8. जो संकट में खड़ा रहता है, वह भाई है । 9. मैं अकेला हूँ, मेरा कोई नहीं है। 10. ये दो भोगीलाल के पुत्र हैं। इन दोनों का ज्ञान अच्छा है | 11. यह वन रमणीय है, ये आम हैं, आम के पके हुए फल मुझे अच्छे लगते हैं |
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आओ संस्कृत सीखें
12. यह वटवृक्ष है, यह नीम है, वृक्षों पर से गिरे हुए ये फूल हैं ।
13. यह तालाब है, तालाब में ये कमल दिखाई देते हैं । ये हिरण दौड़ते हैं । 14. यह कौन आदमी आ रहा है ?
15. सभी को मान होता है और आत्महित में प्रमाद करते हैं ।
157
16. वह सचमुच दरिद्री है जिसकी तृष्णा अपार है ।
17. जो जिसे प्रिय है, वह उसके हृदय में बसता है ।
18. मैं संपूर्ण जगत् को देखता हूँ, मुझे कोई नहीं देखता है !
19. उपाय से जो संभव है, वह पराक्रम से संभव नहीं है ।
20. जिस पुरुष को श्वसुर का शरण है, वह अधम पुरुष है ।
21. सभी स्त्री को शील श्रेष्ठ भूषण है ।
22. राजा ने किन कन्याओं को मनोहर ये रत्नमालाएँ दीं ? इस मेरी कन्या को !
23. इस अयोध्या में मैं लंबे समय तक रहा ।
24. तुमने इस पाठशाला में किन किन बालिकाओं की परीक्षा ली ?
25. इन दो कन्याओं द्वारा इन दो कलाओं में बहुत प्रयत्न किया गया ।
26. एक यह पुष्पमाला और एक यह, ऐसी दो पुष्पमालाएँ मेरे गले में हैं | 27. विनय से देव को नमस्कार करके सभी साध्वियों द्वारा प्रवेश किया गया। 28. जो यह वहाँ गिरा हुआ वस्त्र दिखाई देता है, वह किसी बालिक का है, अत: वह जिसका है, उसको देने के लिए हमारे द्वारा प्रयत्न है ।
29. इस मिथिला में जिन राम और लक्ष्मण से जिस कन्या की शादी हुई थी उन दोनों मे से एक का नाम सीता और एक का नाम उर्मिला था । उन दो कन्याओं के साथ राम लक्ष्मण द्वारा जिस अयोध्या में प्रवेश किया गया, वह यह है ।
30. यह रत्नमाला मेरी है और यह तेरी है ।
31. ये दो कन्याएँ यमुना की ओर जाती हैं ।
32. जिसका मै निरंतर चिंतन करता हूँ, वह मेरे विषय में राग रहित है ।
उस (स्त्री) को धिक्कार हो, उस (पुरुष) को धिक्कार हो, उस काम को धिक्कार हो, उस स्त्री को और मुझे धिक्कार हो ।
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आओ संस्कृत सीखें
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33. यह कोई स्त्री वन में भटकती है ।
34. यह बालिका मेरे द्वारा पहले देखी गई ।
35. बिल्ली, भैंसा, गैंडा, कौआ और खराब पुरुष विश्वास से प्रभावित होते हैं (सिरपर चढते हैं) इसलिए उनमें विश्वास करना योग्य नहीं ।
पाठ - 27
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
1. अयं सुरभि र्वायुः कुत आगच्छति ?
2. अमुष्मिन् कारागृहे त्रयश्चौराः सन्ति ।
3. एभिस्त्रिभि र्योधै र्नृपेण नगरमरक्ष्यत । 4. उद्यानस्य शीतोऽयं वायुरस्माकं चित्तं हरति । 5. जैना जिनेश्वरं वैष्णवाश्च विष्णुं भजन्ति । 6. अमुना वायुना तरुभ्यः सर्वाणि पुष्पाण्यक्षरन् । 7. मनुष्येषु मानः पशुषु च मायास्ति । 8. नृपतयोऽपि गुरूणां वचनान्यनुरुध्यन्ते । 9. गुरवो नृपतिभ्यो धर्ममुपदिशन्ति । 10. एभ्यः शिशुभ्यः कोऽपि किमपि न यच्छति । 11. अमुनि फलानि एते वानरा अस्वादन् ।
12. मम पाणावेकोऽसिरस्ति ।
13. जना वस्विच्छन्ति ।
14. भ्रमराः कमलेभ्यो मधु पिबन्ति ।
15. अहं जिह्वया तालुं स्पृशामि ।
16. अमुष्य कासारस्य वारि शुच्यस्ति । 17. अस्माद् घटाद्वारि क्षरति ।
18. वारिणा अहम् मम हस्तौ च पादौ चाक्षाल्यन्त
19. अस्योद्यानस्यैषु त्रिषु तरुषु बहूनि फलानि दृश्यन्ते ।
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आओ संस्कृत सीखें
11593 20. भानोरातपेन तडागस्येदं वारि शुष्यति । । 21. अमुष्मिन् ग्रामे मम त्रीणि मित्राण्यासन् । 22. अस्मिन् कासारे बहूनि कमलानि सन्ति । 23. अस्य बालस्य द्वाभ्यां नयनाभ्यामश्रूणि वहन्ति |
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. उन शांतिनाथ भगवान को बारबार नमस्कार हो । 2. लोभ किसकी मौत के लिए नहीं होता है। 3. पर्वत पर वर्षा हो रही है। 4. सूर्य के उदय से मनुष्य खुश होते हैं । 5. मुनि एक जगह स्थिर नहीं रहते हैं । 6. न्याय से राजा शोभता है । 7. यह हवा पुष्प की सुवास को हर लेती है । 8. यह बालक खेलता है, इसलिए मुझे अच्छा लगता है । 9. भोजराजा कवियों को धन देता था । 10. इस बालक को पढ़ाई अच्छी नहीं लगती है | 11. ये बहुत से लोग इस गाँव से आए हैं। 12. उनके पास से उस बात को मैं जानता हूँ | 13. इन तीनों आचार्यों के चरणों में मैं नमा हुआ हूँ | 14. चन्दन की महक अच्छी होती है । 15. कंकु का स्पर्श कोमल होता है । 16. हर पर्वत पर माणिक्य नहीं होता है, हर हाथी में मोती नहीं होता । सब
जगह साधु नहीं होते और हर वन में चंदन नहीं होता | 17. वृक्ष के लिए हवा भय रूप है, शिशिर (ठंडी) ऋतु से कमल को भय है, वज्र से पर्वत
को भय है, दुर्जन से साधुओं को भय है | 18. कोई किसी का मित्र नहीं, कोई किसी का शत्रु नहीं, क्योंकि कारण से ही
मित्र तथा शत्रु होते हैं। 19. मधु से भौंरा मदोन्मत्त बनता है।
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आओ संस्कृत सीखें 20. पानी का स्पर्श ठंडा होता है | 22. बादल पानी बरसाता है। 23. कृष्ण लक्ष्मी को देखता है। 24. शहद में मधुरता है । 25. पानी से जीव जीते हैं। 26. पवित्र कुल का कल्याण हो । 26. ज्ञान से हीन पशु समान है । 27. इस नगर में पहले मैं रहता था | 28. इन कवियों के द्वारा अच्छे काव्यों की रचना होती है । 29. जिह्वा के अग्र भाग पर शहद है, लेकिन दिल में जहर है | 30. जगतमें तीन तत्त्व हैं, देव, गुरु और धर्म | 31. शाम को चन्द्र दीपक है, सुबह में सूर्य दीपक है, तीन लोक में धर्म
दीपक है, कुल में सुपुत्र दीपक है । 32. शरीर अनित्य है, पैसा शाश्वत नहीं है, मृत्यु सदा पास में रहती है, इसलिए धर्म का संग्रह करने योग्य हैं।
पाठ-28
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. कवीनां काव्यानि तेषां कीर्तये भवन्ति । 2. मुनि र्ज्ञानेन क्रियया च मुक्ति लभते। . 3. मुनयो रात्रौ श्रीमहावीरं ध्यायन्ति ।। 4. धर्मो जनं दुर्गते रक्षति | 5. सरला ऋषभदेवं वन्दते । 6. अस्या नद्याः वारि बहु स्वादु अस्ति । 7. वध्वः श्वश्रूविनयेन नमन्ति । 8. सुप्तां दमयन्ती परित्यज्य नलोऽन्यत्रागच्छत् । 9. बहुभिर्देवैर्देवीभिश्च सहेन्द्रा मेरुमागच्छन् ।
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आओ संस्कृत सीखें
10. हे दासि ! महिषी महालयेऽस्ति वा नास्ति ?
11. अमुष्या नद्या इदं प्रवहणं समुद्रे गच्छति ।
12. जलनिधि र्बह्वीनां नदीनां जलस्य निधिरस्ति । 13. अमुष्यां धारायां पुरा बहवः कवयोऽभवन् । 14. एताः पुष्पमाला महिष्यै नयामि ।
15. साधूनां कीर्तिस्त्रिष्वपि लोकेषु प्रसरति ।
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संस्कृत का हिन्दी अनुवाद
1. ग्वाला गायों को लेकर गाँव में जाता है । 2. बहुएँ बावड़ी में से पानी ग्रहण करके ले जा रही हैं । 3. इन औषधियों की बेल को तुम क्यों देख रहे हो ?
4. कृपण की ऋद्धि द्वारा दूसरे सुख का अनुभव करते हैं ।
5. राम ने अपनी बहन शान्ता को बहुत सा धन दिया ।
6. इन रास्तों से राजा का रथ गया ।
7. इस साध्वी चंदना आर्या को बारबार नमस्कार हो ।
8. जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता क्रीडा करते हैं ।
9. इस तरह बाण से मैंने शत्रु को जीता |
10. अयोध्या नगरी सरयू नदी के किनारे पर है ।
11. “आप हम’” और “हम आप” इस तरह हमारी दोनों की बुद्धि थी । अब क्या हुआ ? कि "आप, आप” और “हम, हम” ।
12. समुद्र में वृष्टि व्यर्थ है, पेट भरे हुए को भोजन व्यर्थ है, समर्थ को दान व्यर्थ है और दिन में दीपक व्यर्थ है ।
13. खराब मनुष्य की विद्या वाद के लिए, धन मद के लिए और शक्ति दुःख देने के लिए होती है, अच्छे मनुष्य की विद्या ज्ञान के लिए, धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्षा के लिए होती है । अच्छे मनुष्य और खराब मनुष्य के लक्षण उल्टे होते हैं ।
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पाठ-29
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
1. मेघे वर्षति मयूरा नृत्यन्ति ।
2. दीपे सति कोऽग्निमपेक्षते ?
3. महालये प्रविशती र्महिषीः पश्यन्नृपस्तिष्ठति । 4. काले गच्छति तस्य शोकोऽशाम्यत् ।
5. दिनेषु गच्छत्सु रतिलालः पण्डितोऽभवत् ।
6. लर्षाया मूले नष्टे पर्णानि शुष्यन्ति ।
7. गुरोस्तिष्ठतः शिष्य उपविशति । 8. जीवन् नरो भद्रम् पश्यति । 9. सतां सद्भिस्संग ः पुण्येनैव भवति ।
10. ग्रामं गच्छन्तीं जननीम्पश्यन्ती बाला रटति ।
11. युष्माकं गृहमागच्छतो ममानन्दो भवति ।
12. वने चरन्तीभि र्धेनुभिः कासारे जलं पिबन्त्या वोऽदृश्यत । 13. अमुष्मिन्मार्गे चलतां लोकानां धनञ्चौरा न चोरयन्ति ।
14. धावतोऽश्वात् सोऽपतत् ।
15. चौरैश्चौर्यमाणान्याभूषणान्यस्माभिरलभ्यन्त ।
16. लोकान्पीडयतो जनान् नृपो दण्डयति ताडयति च । संस्कृत का हिन्दी अनुवाद
1. नगर मे प्रवेश करते हुए दो मित्र तुम्हारे हर्ष के लिए क्यों नहीं हुए ? 2. राम ने सती सीता वन में छोड़ दी ।
3.
उपाय होने पर सभी के चित्त का रंजन करना चाहिए ।
4.
पताका से शोभित जिनमंदिर में गाती और खेलती हुई बालिकाएँ पिता द्वारा देखी गयीं ।
5. देवों द्वारा अनुभव कराते हुए सुख की राजा हमेंशा स्पृहा करता |
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ज
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1163 6. इस तालाब में बहुत से कमल पैदा होते हैं। - 7. आपके नाथ होने पर प्रजा का अशुभ कहाँ से? 8. जिसके जीने पर बहुत से जीते हैं, वह यहाँ जीता है | 9. पूज्यों के द्वारा पुजाता हुआ सचमुच किस-किस के द्वारा पुजाता नहीं ? 10. सूर्य का उदय होने पर सचमुच कमल खिलते हैं, चन्द्र के उदय होने पर चन्द्रकान्त
मणि झरता है। 11. सत्पुरुषों का कोप नीच मनुष्य के स्नेह के समान होता है, (जैसे) सत्पुरुषों को कोप
नहीं होता और होता तो लंबे समय तक नहीं टिकता, अगर लंबे समय तक होता है तो
फल के विपरीत होता है। 12. दूर रहने पर भी सत्पुरुषों के गुण सर्वत्र पूजे जाते हैं, केतकी की गंध सूंघने के लिए
भौरे खुद जाते हैं। 13. अग्नि द्वारा जलते हुए एक सूखे झाड़ से सारा जंगल जलता है, उसी तरह खराब पुत्र से पूरा कुल जलता है।
पाठ-30
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. जनास्सत्यं वदेयुः । 2. नृपतिः प्रजां रक्षेत् । 3. शिष्यैर्गुरुर्वन्द्येत । 4. हे छात्रा ! युष्माभिः प्रातः पठ्येत । 5. यदि युष्माभिस्सुखं त्यज्येत तर्हि विद्या लभ्येत । 6. यदि नृपेण प्रजा पाल्येत तर्हि प्रजया नृपस्याज्ञानुरुध्येत । 7. यदि जना धर्ममाचरेयुस्तर्हि सुखं लभेरन् । 8. वयमत्रोद्यान उपविशेम । 9. अरे ! किमहं नृपं सेवेयोतेश्वरं भजेय ? 10. भो जनाः ! शीलं पाल्येत लोभञ्च त्यज्येत । 11. अत्र वृक्षस्य छायायामुपविश्य वयं विश्राम्येम् ।
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1164 - 12. अद्य रात्रौ मेघो वर्षेदपि । 13. यद्यहं सत्यं वदेयं तर्हि नृपेण कारागृहाद् मुच्येयं । 14. अथाहमधर्म नाचरेयमिति स नृपो धर्माचार्याया कथयत् । 15. अथ युष्माभि र्धनस्य लोभस्त्यज्येत । 16. नृपतयो ब्राह्मणेभ्यो धेनूर्यच्छन्ति । 17. चन्द्र आकाशे प्रकाशेत । 18. अपि रामो रावणेन सह युध्येत । 19. अग्निना तप्तं सुवर्णं द्रवति । 20. मृदो घटा भवन्ति सुवर्णस्य चालङ्कारा भवन्ति ।
__ संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. असार में से सार लेना चाहिए | 2. अति का सर्वत्र त्याग करना चाहिए । 3. मैं पाप नहीं करूंगा । - 4. हे देवदत्त ! हम दोनों शत्रुजय जायें । 5. प्राणों के नाश में भी धर्म नहीं छोड़ना चाहिए | 6. देवदत्त की पीड़ा (व्याधि) नष्ट हो, यदि वह पथ्य का सेवन करे तो । 7. मानव सुख का अनुभव करेगा यदि वह अधर्म न करे तो । 8. यहाँ मुनि के निवास स्थान पर हम जाएँ। 9. शक्य है कि देवदत्त व्यापार द्वारा बहुत सा धन कमाए । 10. सचमुच, किया हुआ संग्रह लोक में अवसर आने पर लाभदायक होता
11. सचमुच तीक्ष्ण हथियार होने पर हाथ से कौन प्रहार करेगा ? 12. सचमुच एक भी कला चित्त हर ले तो सभी कलाएँ चित्त का हरण क्यों
न करें ? 13. भोजन बिना जी सकते हैं, लेकिन पानी बिना नहीं जी सकते । 14. जिस पर राजा प्रसन्न है, उसका सेवक कौन नहीं होगा ? 15. पैसे के दुःख में घबराना नहीं चाहिए, और धर्म को छोड़ना नहीं
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चाहिए |
16. कोई भी (चीज) स्वभाव से अच्छी होती है, या खराब होती है, (मगर) जो चीज जिसे अच्छी लगती हो, वह (चीज) उसके लिए अच्छी है । 17. जिस देश में सन्मान नहीं, आजीविका नही, भाई नहीं, कोई भी विद्या की प्राप्ति नहीं, उसे उस देश को छोड़ देना चाहिए ।
18. समझदार मनुष्य को पीड़ा करनेवाले तीक्ष्ण शत्रु को, तीक्ष्ण शत्रु द्वारा उखाड़ देना चाहिए, जैसे सुख के लिए तीक्ष्ण काँटे से तीक्ष्ण काँटे को निकालते हैं ।
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19. पंडित एक पाँव से चलता है और एक पाँव से खड़ा रहता है, दूसरी जगह देखे बिना पहला स्थान नहीं छोड़ना चाहिए ।
पाठ-31
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
1. देवदत्त ! त्वमतो गच्छ मा तिष्ठ ।
2.
जनाः ! सत्यं वदत, लोभं त्यजत ।
3. क्षुधितायान्नं यच्छत, तृषिताय च जलं यच्छत । 4. यदि कीर्तिमिच्छथ तर्हि दीनानामापदं हरत ।
5. छात्र र्विद्या लभ्यताम् ।
6. अहं देवालयं गच्छानि देवं च पूजयानि ।
7. सर्वत्र जनाः शान्तिं लभन्ताम् ।
8. अस्माभिः शत्रूणामप्यपराधाः क्षम्यन्ताम् ।
9. युष्मानं धर्मस्य लाभो भवतु ।
10. हे जनाः ! सत्यं मृगयध्वम् ।
11. यूयं धर्ममाचरत, पापं नाचरत ।
12. युष्माभिः छात्रेभ्यः पुस्तकान्यर्प्यन्ताम् ।
13. अहं संसार कारागृहाद् मुच्यै ।
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आओ संस्कृत सीखें
1166 14. अरे किङ्करा ! यूयं इमान वृक्षान् जलेन सिञ्चत | 15. हे पुत्र ! साधुर्भव प्रभूताच विद्यां लभस्व | 16. अरे ! त्वं नृपस्य समीपे गच्छ, गत्वा च नृपाय कथय यद् अस्मात्पञ्जराद्विहगान मुञ्च । 17. धनस्य लोभादपि मयाऽसत्यं न कथ्यताम् । 18. एतान मृदो घटान गृहं नयध्वम् । 19. गोपोधेनूामं नयतु । 20. आगच्छत, वयमत्रोद्याने उपविशाम | 21. दिनेश ! अथ त्वं पठ, मा रमस्व !
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. वर्धमान स्वामी को नमस्कार हो । 2. सभी जगत् का कल्याण हो । . 3. हे विद्यार्थियो ! व्याकरण पढ़ो । 4. बालिकाएँ देव के आगे नाच करें । 5. रतिलाल ! तू असत्य मत बोल | 6. शत्रु विपरीत मुखवाले हों। 7. हे तृष्णा ! अभी तुम मुझे छोड़ दो । 8. तुम मेरे मित्र हो । 9. पाप शांत हो जाओ। 10. वे जिनेन्द्र जय पाएँ। 11. हे मानवो ! विनय को मत छोड़ो। 12. हे देवदत्त ! आसन पर बैठ और पानी पी । 13. हे देवदत्त ! खूब जीयो और विद्या प्राप्त करो । 14. हे माता ! वापस हम शत्रुजय जाएँ । 15. नौकरो ! वजन उठाओ और जल्दी चलो | 16. अरे ! हम संस्कृत पढ़े या अंग्रेजी ? 17. तुम्हारे द्वारा देव पूजे जाएँ और उनकी आज्ञा मानी जाय ।
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आओ संस्कृत सीखें
2167318. गुण को पूछो, रूप को नहीं, शील और कुल को पूछो, धन को नहीं ! 19. समय पर बहुत पानी द्वारा वर्षा हो । 20. हे युधिष्ठिर ! दरिद्र मनुष्यों का पोषण करो, समर्थ को धन मत दो । 21. रोगी को दवाई हितकर है, नीरोगी को दवाई से क्या ? .
पाठ-32
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. उत्तमजना धर्मं न परित्यजन्ति । 2. नदीतीरे वृक्षाः सन्ति । 3. गृहद्वारे स तिष्ठति । 4. देवगुरू पूज्यौ स्तः । 5. गजाश्वबलीवर्दा जलं पीत्वा अगच्छन् । 6. पण्डितानां सभामध्ये-ऽपण्डिता मौनं भजेयुः । 7. सुखदुःखे आगच्छतो गच्छतश्च ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. विनय में शिष्य की परीक्षा होती है । 2. भगवान का दर्शन निष्फल नहीं है । 3. दूसरों को दुःख देना (वह) पाप के लिए होता है । 4. क्रोध अनर्थ (दुःख) का मूल है, क्रोध संसार का बंधन है । 5. स्वप्न में भी साधु अपने देह का सुख नहीं चाहते हैं | 6. हंस सफेद, बगला सफेद, (तो) बगले और हंस में फर्क क्या ? पानी और दूध को
अलग करने में सचमुच हंस हंस है और बगला-बगला है | 7. विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है,
और सब जगह शील धन है । 8. कौआ कौओं को बुलाता है, पर याचक याचक को नहीं बुलाता, कौआ
और याचक में कौआ अच्छा, मगर याचक नहीं ।
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आओ संस्कृत सीखें
1168 9. जिन दो का धन समान है और जिन दोनों का कुल समान है, उन दोनों
की दोस्ती और शादी होती है, मगर उत्तम और अधम की मैत्री और शादी
नहीं होती। 10. अभ्यास बिना विद्या जहर है, अजीर्ण में भोजन विष है, दरिद्र को सभा विष है
और वृद्ध पुरुष को युवती विष है। .. 11. चन्दन के वृक्ष का मूल सर्पो से, शिखर बंदरों से, शाखा पक्षियों से और
फूल भ्रमरों से हमेशा आश्रित हुए होते हैं, सज्जन मनुष्यों की संपत्ति परोपकार के लिए होती है ।
पाठ-33 1. उपपर्वतं नदी वहति । 2. एषा नदी स्वादुजलाऽस्ति । 3. अभया इमे मार्गाः सन्ति । 4. प्रियदर्शनः सपुत्रः पत्तनमागतोऽस्ति । 5. वीतरागः श्रीमहावीरोऽस्माकं नाथोस्ति । 6. अनुराम सीता गच्छति । 7. एष जनोऽज्ञानोऽस्ति । 8. नलदमयन्त्यौ वने अटताम् । 9. प्रभुमहावीरस्य ज्ञानमनन्तमासीत् । 10. मत्तगजमिदं वनमस्ति । 11. अभयेऽस्मिन् राज्ये जनाः सुखेन वसन्ति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. पृथ्वी बहुत रत्नवाली है । 2. वैराग्य ही भयरहित है । . 3. राम और रावण का युद्ध राम रावण के युद्ध जैसा है | 4. शोकरहित मैं शोकवाली तुम को देखने में समर्थ नहीं हूँ । 5. उदार स्वभाववालों को तो पृथ्वी ही कुटुंब है ।
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आओ संस्कृत सीखें
116956. यह मुहूर्त बहुत विघ्नवाला है। .. --- 7. एकबार जिसका शील नष्ट हो गया ऐसी सती हमेशा असती है (फिर सती नहीं
कहलाती) 8. जो क्षण में रुष्ट, क्षण में तुष्ट और क्षणक्षण में रुष्ट-तुष्ट होते हैं, उनका चित्त
व्यवस्थित नहीं । उनकी मेहरबानी भी बड़ी भयंकर होती है | 9. वृक्ष की शाखा (यह) तत्पुरुष है, सफेद घोड़ा (यह) कर्मधारय है । लाल वस्त्र है जिसका वह (यह) बहुव्रीहि है | चन्द्र और सूर्य (यह) द्वन्द्व है |
पाठ-34
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. भवता राज्यभारो वहनीयोऽस्ति । 2. भवद्भिः सर्वैरेष ऋषिः पूजनीयोऽस्ति । 3. भवतो राज्ये सर्वत्र शान्तिर्भवतु | 4. अधुनैते ग्रन्था न लभ्याः । 5.. यूयं क्व गतवन्तः । 6. रतिलालात्शान्तिलालः पटुः । 7. रामो रावणं जयेत् । 8. एतौ द्वौ शिष्यौ योग्यौ स्तः तौ सिद्धान्तम् पठेताम् । 9. वयं दास्यो भवत्या आज्ञां कथयितुमुपनृपं गतवत्य आसन् । 10. अमुष्य नृपस्य त्रिषु प्रधानेष्विमौ द्वौ प्रधानौ श्रेष्ठौस्तः । 11. कवीनां सिद्धसेनो मुख्योऽस्ति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. धर्म से अच्छा मित्र (दूसरा) नहीं। 2. आपका यह महल सचमुच रम्यदर्शनवाला है । 3. आपका कल्याण हो । 4. हे देवी ! आपका कल्याण हो । 5. आपके जाने पर हमारे लिए मरण ही शरण है ।
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आओ संस्कृत सीखें 6. बालिकाएँ उद्यान में से फूलों को लेकर देवालय में गईं। 7. गुणों से (मनुष्य) प्रेम पात्र होता है, दुर्जन (गुण बिना का मनुष्य) रूप द्वारा प्रेम
पात्र नही होता। 8. नायक बिना का स्थान रहने योग्य नहीं, (वैसे ही) बहुत नायकवाले स्थान में भी
रहना नहीं। 9. नहीं जन्मे हुए, मरे हुए और मूर्ख (पुत्र) में, पहले दो अच्छे परंतु अंतिम
अच्छा नहीं। 10. कन्या सचमुच देने योग्य है | 11. जिस कुल में जो मनुष्य मुख्य है वह हमेशा प्रयत्न से रक्षण करने योग्य
12. जिसका उदय है, वे वन्द्य है, जैसे चन्द्र और सूर्य । 13. सेव्य की सेवा का अवसर सचमुच, पुण्य से ही मिलता है । 14. पुष्पों में चंपा, नगरी में लंका, नदियों में गंगा और राजाओं में राम
(मुख्य) हैं। 15. विपत्ति का इलाज सचमुच प्रारंभ में ही सोचना चाहिए, अग्नि से घर
जलता है, तब कुआ खोदना योग्य नहीं । 16. विद्या से अलंकृत होने पर भी दुर्जन त्याग करने योग्य है, मणि से भूषित सर्प क्या
भयंकर नहीं हैं ? 17. एक त्याग गुण अच्छा है, अन्य गुणों की राशियों से क्या ? मेघ और वृक्ष त्याग से जगत् में पूजनीय हैं।
पाठ-35
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. अस्य नृपस्य सेना महती बलवत्तरा चास्ति । 2. आसु बालासु इमे द्वे बाले पटिष्ठे स्तः । 3. अनयो इँलयोरयं बालः श्रेयानस्ति । 4. भवान् माम् पुत्रवत् पश्यतु |
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आओ संस्कृत सीखें 5. सर्वेषु भवान् मम प्रियतमोऽस्ति । ------ 6. भवन्तमहं देववत्पश्यामि । 7. ब्राह्मणेभ्यः क्षत्रियाः शूरतरा भवन्ति । 8. बलवद्भयो बुद्धिमन्तो बलवत्तराः सन्ति । 9. व्याकरणेषु आचार्यहेमचन्द्रस्य व्याकरणं श्रेष्ठतममस्ति । .
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद . 1. सुख और दुःख चक्र की तरह बदलते रहते हैं । 2. आप देखो, ये वेगवाले घोड़े दौड़ते हैं | 3. कुस्थान के प्रवेश से गुणवान भी दुःखी होता है । 4. सचमुच, शत्रु के दीन क्षीण होने पर महान पुरुषों का कोप शान्त होता
5. अमृत थोड़ा भी अच्छा, विष का समूह भी अच्छा नहीं । 6. पराभव होने पर अभिमानवालों को विदेश अच्छा है | 7. महान पुरुषों की प्रवृत्ति सचमुच दूसरों के उपकार के लिए होती हैं । 8. महान् पुरुषों का भी श्रेयः बहुत विघ्नवाला होता हैं । 9. कुरूपता शील से शोभा देती है, और कुभोजन गर्म होने पर शोभा देता
10. अशुभ या शुभ, वास्तव में बड़े पुरुषों का सब बड़ा होता है । 11. सचमुच हारे हुए शत्रु पर भी महान् पुरुष कृपालु होते है । 12. दयालु संत पुरुष दूसरों के दुःख को देखने में समर्थ नहीं होते है | 13. लोक में सभी जगह हमेशा धनवान बलवान होते हैं । 14. यह बालक बुद्धिमान है और विनयवालों में श्रेष्ठ है । 15. बुद्धिशाली मनुष्यों को भी दरिद्रता दिखती है । 16. ये चरवाहे गायवाले हैं, इसलिए इनका शरीर ज्यादा बलवान है । 17. बड़ों को ही संपत्ति और बड़ों को ही आपत्तियाँ आती हैं । 18. मुझे जीवन की आशा बलवान है, और धनकी आशा कमजोर है ।
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आओ संस्कृत सीखें
21723 हे मुसाफिर, जा या रह (मैंने) खुद की अवस्था सचमुच कहकर बता
दी है। 19. सर्प क्रूर है और दुर्जन क्रूर है, परंतु सर्प से दुर्जन ज्यादा क्रूर है, सर्प
मन्त्र से शान्त किया जाता हैं, मगर दुर्जनको किसी भी तरह शान्त नहीं
कर सकते। 20. पुत्र, स्त्री और मित्रजन सभी धन से रहित को छोड़ देते हैं, पैसेवाले
होने पर फिर से उनका आश्रय करते हैं । लोक में सचमुच, पैसा ही पुरुष का बंधु है।
पाठ-36
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. हे राजन् ! त्वं प्रजां पालय | 2. अस्याः कन्यायाः कबर्यां द्वे दाम्नी स्तः । 3. युष्माकं बन्धो नाम कथय । 4. अस्मिन् राज्ञि प्रभूतः पराक्रमोऽस्ति । 5. राजमहिष्यौ रथ उपविशष्योद्यानं अगच्छतः । 6. बालेनाकाशे शश्यदृश्यत । 7. गुणी गुणं पश्यति न दोषम् । 8. भाव्यन्यथा न भवति । 9. योगिनः शिखरिणां गुहासु वसन्ति । 10. हस्तिनो मूर्धनि मौक्तिकं जायते ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. अहो ! इस राजा के विवेक की सीमा ! 2. उनके घर में अनाज के ढ़ेर की तरह रत्नों के ढ़ेर हैं | 3. स्वयं को प्रतिकूल आचरण दूसरों के साथ न करें । 4. राजाओं में विद्या पूजित है, परंतु धन नहीं ।
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आओ संस्कृत सीखें
21733 5. जन्म का दुःख, जरा का दुःख और मरण का दुःख बार बार आता है। 6. कर्म की गति विचित्र है । 7. जैसा राजा वैसी प्रजा। 8. जो खुद को पसंद नहीं है, उस मधुर भोजन से भी क्या ? 9. सचमुच पशु भी अपने प्राणों की तरह खुद के पुत्र को संभालते हैं | 10. लंबे समय बाद भी कर्म सभी को अवश्य फल देता है । 11. भविष्य का कार्य हुआ। 12. सेवाधर्म कठिन है, योगियों को भी अगम्य है । 13. सचमुच, स्त्रियाँ मायावी होती हैं । 14. जैसे नेत्र ब्लिाना मुख, स्तंभ बिना घर शोभा नहीं देता, उसी प्रकार मंत्री के बिना राज्य
शोभा नहीं देता है। 15. धीर पुरुषों का भूषण विद्या है, मंत्रियों का भूषण राजा है, राजाओं का भूषण न्याय है, शील. सब का भूषण है।
पाठ-37
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. वणिक् स्वग्रामात् सर्पिर्पत्तनं नयति । 2. कवीनां वाक्षु माधुर्यमस्ति । 3. सर्पिषःभक्षणेनायुर्वर्धते । 4. क्षुधा समा न वेदना । 5. हरिणाः ककुभो लङ्घन्ते । 6. दुर्योधनः पाण्डवानां द्विडासीत् । 7. स्वर्गेऽप्सरोभिः सह देवाः क्रीडन्ति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. सर्यों के लिए दूध का पान जहर के लिए होता है । 2. कुलवान की वाणी झूठी नहीं होती । 3. दूसरों को पीड़ा देनेवाला सत्य वचन भी बोलना नहीं चाहिए |
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174 29
4. दुष्टों का निग्रह और साधु का रक्षण करना राजाओं के लिए योग्य है ।
5. लोक में चंदन शीतल है, चन्दन से भी चन्द्रमा शीतल है, इन दोनों से भी साधु की संगत
ज्यादा शीतल मानी गयी है ।
6.
उस गाँव में यश जिसका धन है, ऐसा धन नाम का सार्थवाह था, जैसे सागर नदियों का उसी तरह, वह संपत्तियों का एक स्थान था |
पाठ-38
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
1. सीतात्मनो ननान्दुः शान्तायाः पादयोरपतत् ।
2. योषितां जामाता वल्लभोऽस्ति ।
3. अभिमन्यो र्मातु र्नाम सुभद्राऽऽसीत् ।
हे देवरेष हरिणः शोभनतमोऽस्ति ।
4.
5. एषां वैद्यानामौषधानि रोगस्यापहर्तृणि सन्ति ।
6.
7.
8.
जना नावा समुद्रे तरन्ति ।
9. इयं मम स्वसुः श्वश्रूरस्ति ।
अस्य दातू राज्ञो राज्ञ्योऽपि दात्र्य आसन् ।
मम भर्तर्येकोऽपि दोषो नास्ति ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद
1. सच्ची या झूठी मनुष्य की कीर्ति जयवाली होती है ।
2.
सास के दुःख में बेटी को पिता का घर शरण है ।
3.
रे चित्त ! क्यों भाई ! पिशाच की तरह दौड़ता है ।
4.
स्वयं से प्रसिद्ध हुए उत्तम, पिता से प्रसिद्ध हुए मध्यम, मामा से प्रसिद्ध हुए अधम और श्वसुर से प्रसिद्ध हुए अधम में अधम गिने जाते हैं ।
5. मित्र, स्वजन, पुत्र, भाई, माता-पिता भी, भाग्य प्रतिकूल होने पर स्वजन को छोड़ देते हैं ।
6. लोभी मनुष्य दरिद्रपने की शंका से पैसे को नहीं देता है । और सचमुच दाता उसी शंका से पैसे दे देता है ।
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आओ संस्कृत सीखें
11753 7. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उत्तम कारण आरोग्य है, रोग उनका (आरोग्य)
कल्याण और जीवन का हरण करनेवाला है । 8. ऋण करनेवाला पिता शत्रु है, मूर्ख पुत्र शत्रु है, (ऐसा) अप्रिय और हितकारी कहने
वाला और सुनने वाला दुर्लभ है।
पाठ-39
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. एतस्य देवालयस्य चत्वारि द्वाराणि सन्ति । 2. त्रिंशतो दिनानामेको मासो भवति । 3. पत्तनाच्चतुर्षु योजनेषु गतेषु महेशानमागच्छति । 4. एकस्मिन्वर्षे षड्ऋतव आगच्छन्ति । 5. भगवतो महावीरस्यैकादश गणभृत आसन् । 6. अस्माकं सेनायां तिस्त्रः कोट्यश्चत्वारि लक्षाणि विंशतिश्च सहस्राणि
सैनिकाः सन्ति । 7. तस्य सेनायां पञ्चाशद् लक्षाणि षष्टिः सहस्राणि पञ्च शतानि नवतिश्च
सैनिकाः सन्ति । 8. अद्य मया सप्तति विद्यार्थिनः परीक्षिताः ।
___ संस्कृत का हिन्दी अनुवाद | 1. राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, भाई की पत्नी, पत्नी की माता और खुद की माता ये
पाँच माताएँ मानी हुई हैं। 2. कमल में लालिमा, सत्पुरुषों का परोपकारीपना, दुर्जनों का निर्दयपना इन तीनों में ये
तीन स्वभाव-सिद्ध हैं। 3. दान, भोग और नाश ये तीनों धन की गतियाँ हैं | 4. सौ में एक शूरवीर होता है और हजारों में एक पंडित होता है, दश हजार में एक वक्ता
होता है, परंतु दातार हो या नहीं भी हो । 5. सचमुच, चींटी धीरे-धीरे हजार योजन जाती है, नहीं चलनेवाला गरुड़ एक कदम
भी नहीं जाता है।
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आओ संस्कृत सीखें
पाठ-40
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
1. इमे द्वे नगर्यावतिशोभने स्तः तत एनयोर्बहवो सैनिका वसन्ति ।
2.
आगच्छ गच्छ उत्तिष्ठोपविश वद मौनं भज इति धनिका याचकैः क्रीडन्ति ।
3. एतयोर्द्वयो वृक्षयो र्य एते विहगा दृश्यन्ते तेऽस्मिन् पञ्जर आसन् वयमेनान्
176
पञ्जरादमुञ्चाम |
4. यद्यहं प्रजां पालयेयं तर्हि प्रजा मामनुसरेत् ।
5. धर्मो वो धनं यच्छतु नो ज्ञानम् ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद
1. जिस कारण से एक सेवक होता है और दूसरा स्वामी होता है, एक भिक्षा मांगता है और दूसरा भिक्षा देता है ।
3.
2. इत्यादि अच्छी तरह से यहाँ धर्म अधर्म के बड़े फल को देखकर भी जो न माने उस धीमान् का कल्याण हो ।
स्वभाव से अति भयंकर इस असार संसार में, समुद्र में तरह दुःख की सीमा नहीं है ।
जलजंतुकी
गज, भुजंग और पक्षियों के बंधन को, चन्द्र सूर्य के ग्रहपीड़न को और बुद्धिमान की दरिद्रता को देखकर, अहो ! विधि बलवान है, इस तरह मेरी मति है ।
4.
5. सह्यपर्वत के उत्तर भाग में जहाँ गोदावरी नदी है, वह प्रदेश इस समस्त पृथ्वी में मनोरम है ।
6. कौन किसको हँसता है ? कौन दो किन दो को हँसते हैं ? कौन किसको हँसते हैं ? स्त्री के होठ, पल्लव को देखकर हँसते हैं, दो हाथ दो कमलों को देखकर हँसते हैं, और दाँत कलियों को देखकर हँसते हैं ।
7. सुख का अर्थी विद्या को छोड़ता है, विद्या का अर्थी सुख को छोड़ता है, सुख के अर्थी को विद्या कहाँ से ? और विद्या के अर्थी को सुख कहाँ से ?
8. विद्याभ्यास और विचार समान को शोभते हैं । वैसे विवाह और विवाद समान को ही
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आओ संस्कृत सीखें
11771शोभा देते हैं। 9. दिन में उल्लू नहीं देखता, कौआ रात को नहीं देखता | कामान्ध कोई अपूर्व है, जो
दिन और रात नहीं देखता है। 10. शिशिर ऋतु में अग्नि अमृत है, प्रिय का दर्शन अमृत है, राजा का सन्मान अमृत है, और दूध का भोजन अमृत है।
सुभाषितानि 1. पुरुष का आभरण रूप है, रूप का आभरण गुण है, गुण का आभरण ज्ञान है और ज्ञान
का आभरण क्षमा है। 2. विद्या समान नेत्र नहीं, सत्य समान तप नहीं, लोभ समान दुःख नहीं और त्याग समान
सुख नहीं है। 3. उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम ये छह जिसमें होते हैं, उस पर देव
प्रसन्न होते हैं। 4. असती स्त्री लज्जावाली होती है, खारा पानी शीतल होता है । दंभी,
विवेकी होता है, और धूर्तजन प्रिय बोलनेवाला होता है ।। 5. यह खुद का अथवा पराया है, इस तरह की गिनती तुच्छ मनवालों की
होती है, उदार मनवालों के लिए तो पृथ्वी ही कुटुम्ब है ।। 6. देना चाहिए, भोगना चाहिए, वैभव हो तो संचय नहीं करना चाहिए । देखो, यहाँ भौंरों के
द्वारा एकत्र किये मधु को दूसरे लेकर जाते हैं। 7. चींटियों द्वारा उपार्जित अनाज, मक्खियों के द्वारा इकट्ठा किया मधु, लोभियों के द्वारा
एकत्र किया द्रव्य, जडसहित विनाश पाता है । 8. कृपण मनुष्य खुद के हाथ में रहे मांस की तरह धन का रक्षण करते हैं, और सज्जन
मनुष्य उस द्रव्य का मैल की तरह दान करते हैं। 9. पर्वत बड़ा है, पर्वतसे समुद्र बड़ा है, समुद्रसे आकाश बड़ा है, आकाश से भी ब्रह्म
(ज्ञान) बड़ा है और ब्रह्म से भी आशा बड़ी है । 10. आशा सचमुच मनुष्य की कोई आश्चर्ययुक्त बेड़ी है, जिससे बँधा हुआ
(मनुष्य) दौड़ता है, (और) मुक्त हुए पंगु की तरह खड़े रहते हैं | 11. सचमुच, मूरों को उपदेश कोप के लिए होता है, शान्ति के लिए नहीं
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आओ संस्कृत सीखें
178 होता है । सर्पो को दूध का पान केवल विष बढ़ानेवाला होता हैं। 12. जिसके पास धन है, वह मनुष्य कुलवान है, वही वक्ता है, और वही दर्शनीय है, वही
पंडित है, वही श्रुत (ज्ञान) वाला है और गुण को जाननेवाला है, सब गुण सुवर्ण के
आश्रित रहते हैं। 13. मनोहर अच्छे मुख से बोलता है, और सचमुच तीक्ष्ण चित्त द्वारा प्रहार करता है |
स्त्रियों की वाणी में शहद होता है और हृदय में भयंकर जहर होता है। 14. भूमि के नाश में अथवा बुद्धिशाली नौकर के नाश में राजा का नाश ही है, उन दोनों को
समान कहा गया, (वह) सचमुच बराबर नहीं है, क्योंकि) नष्ट हुई भूमि सुलभ है,
परंतु नष्ट हुए नौकर सुलभ नहीं । 15. दिन के पूर्वार्ध की छाया प्रारंभ में बड़ी और क्रम से क्षयवाली (कम-कम)
होती है, (दिन के दूसरे भाग की छाया) पहले छोटी और फिर वृद्धिवाली होती है । वैसे खल और सज्जन की दोस्ती दिन के पूर्वार्ध और परार्ध की
छाया की तरह भिन्न भिन्न होती है । 16. बाघ, हाथी आदि द्वारा सेवित, मनुष्य से रहित और बहुत काँटों से
युक्त वन अच्छा । (वनमें) घास की शय्या और पहनने के लिए वृक्ष की छाल होती है । (ये सब ठीक) परंतु धनहीन होकर भाइयों के बीच रहकर
जीना अच्छा नहीं है। 17. विपत्ति में धैर्य, अभ्युदय में क्षमा, सभा में वाणी की पटुता, युद्ध में पराक्रम,
यश में अभिरुचि, शास्त्र-श्रवण का व्यसन, सचमुच महात्माओं को ये स्वभाव सिद्ध हैं।
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आओ संस्कृत सीखें
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कथा
किसी स्थान में एक कुंभकार रहता था, वह एक बार प्रमाद से आधे टूटे हुए घड़ों के टुकड़ों पर खूब वेग से भागने से गिर पड़ा । उन ठीकरों से उसका ललाट फट गया । खून से लथपथ शरीरवाला बड़ी मुश्किल से खड़ा होकर अपने घर गया । उसके बाद अपथ्य के सेवन से उसका वह घाव भयंकर हो गया । फिर कठिनाई से नीरोगी हुआ ।
I
अब एक बार दुष्काल से पीड़ित देश में वह कुंभकार कुछ राजसेवकों के साथ दूसरे देश में गया और किसी राजा का सेवक बना । उस राजा ने भी उसके मस्तक में बड़े प्रहार का घाव देखकर सोचा कि यह कोई वीर पुरुष है, निश्चय ही इसके ललाट में प्रहार का चिह्न है, इसलिए सभी राजपुत्रों के बीच उसको सन्मान आदि द्वारा प्रसन्नता से देखता है । वे राजपुत्र भी उसकी उस प्रसन्नता को देख ईर्ष्या रखते हुए राजा के भय से कुछ बोलते नहीं हैं ।
अब एक बार युद्ध का प्रसंग आने पर उस राजा ने उस कुंभकार को एकान्त में पूछा, ‘हे राजपुत्र । तुम्हारा नाम क्या ? और तेरी जाति कौनसी ? कौनसे युद्ध में ये प्रहार लगा है ? वह बोला, ‘देव ! यह शस्त्र का प्रहार नहीं, युधिष्ठिर नाम का मैं कुंभकार हूँ । मेरे घर में बहुत घड़ो के टुकडे पड़े थे । एक बार मैं दारु पीकर निकला, और भागते हुए मिट्टी के टुकड़ों पर गिर पड़ा, उन टुकड़ों के प्रहार से मेरा ललाट ऐसी विकरालता को प्राप्त हुआ ।
राजा ने सोचा, 'अहो ! मैं कुंभकार द्वारा ठगा गया । उसने कुंभकार को कहा, 'हे कुंभकार ! तू यहाँ से जल्दी चला जा ।'
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आओ संस्कृत सीखें
संस्कृत - धातुकोश: ।
करना ।
अभि + क्रोध करना ।
अट् ग 1.प. = घूमना, भटकना अनु-रुध् ग.4 आ. = इच्छा करना, मानना, अधीन होना ।
180
अर्च् ग.1.प. = अर्चा करना, पूजा करना। अर्थ् ग. 10. आ. = प्रार्थना करना । प्र + प्रार्थना करना ।
अप् ग. 10. प. = देना । प्रदान करना अस् ग. 2. प. = होना ।
अव + गम् = जानना । इष् (इच्छ्) ग.6.प. = इच्छना, इच्छा निर् + गम् = निकलना ।
ऋध् ग. 4.प. = बढ़ना | सम् + समृद्ध होना, आबाद होना । कथ् ग. 10.प. = कहना, कथा करना । कम्प् ग.1.आ. = कंपना, धूजना ।
खाद् ग. 1.प. = खाना | गण ग. 10.प. = गिनना, गिनती करना,
कस् ग. 1.प. = खिलना | वि = विकस्वर होना, खिलना । कष् गण. 4.प. = गुस्सा करना काश् ग.1.आ. = प्रकाशित होना । प्र + प्रकाशना । प्रकाशित होना । कुप् ग.4.प. = कोप करना । क्रीड् ग.4.प. = क्रीडा करना, खेलना । क्रुध् - ग.4.प. = क्रोध करना, गुस्सा
गणना करना ।
गम् (गच्छ्) ग.1.प. = गमन करना, जाना।
आ + गम्
करना ।
उद्+गम् ऊँचे = जाना, उगना । गर्ज् ग. 10.प. = गर्जना करना ।
ईक्ष् ग.1.आ. = देखना ।
निर् + निरीक्षण करना, सूक्ष्मता से देखना । गै ( गाय्) ग. 1.प. = गाना |
अप + अपेक्षा रखना ।
सम् + अच्छी तरह देखना । उद्+वि + देखना ।
परि + परीक्षा करना ।
= आना ।
घुष् ग.10.प. =
करना ।
घोषणा करना, आवाज
चर् ग. 1.प. = चरना, आ + आचरण करना
फिरना ।
चल् ग. 1.प. = चलना | चिन्त् ग.10.प. = करना, सोचना ।
चिंतन करना,
चिन्ता
चुर् ग.10.प. = चोरी करना ।
जन् (जा) ग.1.आ. = जन्म होना, होना ।
प्र+जन् (जा) = उत्पन्न होना ।
जप् ग. 1.प. = जपना, जाप करना । जि ग. 1.प. = जय पाना, जीतना । परा+ग.1.आ. = पराजित होना, हार जाना वि + ग. 1.आ. = विजय पाना, जीतना । जिम् ग.1.प. = खाना ।
पैदा
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आओ संस्कृत सीखें
जीव् ग. 1.प. = जीना, आजीविका चलाना । निन्द् - ग. 1.5.
डी. गण. 1. आ. = उड़ना ।
उद्+डी
= उड़ना ।
तड् ग.10.प. = ताड़न करना, मारना ।
तप् ग. 1.प. = तपना ।
181
निंदा करना ।
=
नी. ग. 1. उभय = ले जाना । आ+नी = लाना ।
नृत् ग. 1.प. = नृत्य करना । |पच्-ग.1.उभय = पकाना ।
|
पठ् - ग. 1.प. = पढ़ना |
गिरना ।
नि+पत् नीचे गिरना ।
=
तोलना ।
तुल् ग.10.प. =
तुष् - ग. 4.प. = खुश होना, संतोष पाना । पत्-ग.1.प. =
तृप् ग.4.प. = खुश होना ।
तैरना |
|पल् ग. 1.प. = पालन करना, रक्षण करना । पा (पिब्) ग. 1.प. = पीना ।
=
तृ - ग. 1. प. त्यज् ग.1.प. = त्याग करना, छोड़ देना । परि+त्यज् = त्याग करना, छोड़ना । दण्ड् - ग. 10.प. = दंड़ देना । दह् - ग.1.प. = जलना, जलाना । दा (यच्छ्)-ग.1.प. = देना, दान करना प्र+दा = देना |
दिश् –ग.6.उभ. = बताना, दान देना । आ+दिश् = आदेश देना ।
उप + दिश् = उपदेश देना ।
दीप् - ग. 4. आ = जलाना, प्रकाशना । दृश् (पश्य् ) - ग. 1.प. = देखना । द्युत् - ग. 1.आ. = प्रकाशना । वि+द्युत् = प्रकाशित होना, चमकना । द्रुह् - ग. 4. प. मारने की इच्छा करना । अभि + द्रुह् = द्रोह करना ।
=
अनु+भू = अनुभव करना, जानना । प्र+भू = उत्पन्न होना, समर्थ होना । अभि+भू = तिरस्कार करना । भूष्- ग. 10.प. = शोभा करना । भृ - ग. 1. उभ. = पोषण करना । मद् (माद्) ग. 4.प. = मस्त होना, भूल
द्रु - गण. 1. प = झरना, भीगना । धाव् -ग.1.प. = दौड़ना, भागना । ध्यै (ध्याय्) - ग.1.प. = ध्यान करना । नम् - ग. 1.प. = नमस्कार करना । नश् - ग. 1.प. = नाश होना, भाग जाना । प्र+मद् :
जाना ।
| पीड्-ग.10.प. = दुःख देना, पीड़ना । |पुष्- ग.4.प. = पोषण करना, पोषना 1 पूज्- ग. 10.प. = पूजा करना, पूजना । । पृ.ग. 10. प = पार करना, पूर्ण करना । प्रच्छ् (पृच्छ्) - |फल्- ग. 1.प. = फलना, साकार होना ।
1 - ग. 6. प. = प्रश्न करना ।
भज् ग.1.उभ. = भजना |
भण्- ग. 1.प. = कहना, पढ़ना ।
भक्षू - ग. 10.प. = भक्षण करना, खाना । भाष्- ग. 1.आ. = बोलना, भाषण करना । भू. ग. 1. प = होना ।
= प्रमाद करना ।
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आओ संस्कृत सीखें
2182
मन्-ग.4.आ. = मानना ।
लघु-ग.1.आ. = उल्लंघन करना । मान् ग.10.प. = मानना, पूजना ।। | लभ-ग.1.आ. = प्राप्त करना, पाना । मिल ग.6.प. = मिलना ।
लिख-ग.6.प. = लिखना । मुच् (मुञ्च्)-ग.6.प. = छोड़ना, रखना। लुट्-ग.4.प. = आलोटना । मुद्-ग.1.आ. = खुश होना । लुप्-ग.4.प. = लुप्त होना । मुह-ग.4.प. = मोहित होना । लुभ-ग.4.प. = लोभ करना । मूल-ग.10.प. = मूल डालना, बोना । | लोक्-ग.1.आ.,ग.10.प = देखना । उद्+मूल = उखाड़ देना ।
वि+लोक् = विलोकन करना । मृग-ग.10.आ. = शोध करना, मार्ग वद्-ग.1.प. = बोलना । निकालना ।
वि+सम्+वद् = विपरीत बोलना, निष्फल यत्-ग.1.आ. = यत्न करना । होना । प्र+यत् = प्रयत्न करना ।
वन्द्-ग.1.आ. = वंदन करना । याच-ग.1.उभ. = मांगना ।
वप् ग.1.उभ. = बोना । युज-ग.4.आ. = योग्य होना । वर्ज-ग.10.प. = त्याग करना, छोड़ देना। युध्-ग.4.आ. = युद्ध करना ।
| परि+वर्ज = छोड़ देना । रच-ग.10.प. = रचना करना । | वर्ण-ग.10.प. = वर्णन करना, रंगना । वि+रच् = रचना करना, बनाना । वस्-ग.1.प. = रहना । रट्-ग.1.स. = रोना, पढ़ना । नि+वस् = रहना, निवास करना । रम्-ग.1.आ. = खेलना ।
वह्-ग.1.उभ. = वहन करना, बहना । वि+रम्-ग.1.प.=विराम पाना, रुक | वाञ्छ्-ग.1.प. = इच्छा करना । जाना।
| विद्-ग.4.आ = विद्यमान होना । रक्ष्-ग.1.प. = रक्षण करना, संभालना । | विश्-ग.6.प = प्रवेश करना । राज्-ग.1.उभ. = शोभना, राज्य करना। | प्र+विश् = प्रवेश करना । रुच-ग.ब.आ. = पसंद पड़ना । | उप+विश् = बैठना । रुष्-ग.4.प.= क्रोध करना, गुस्सा करना। | वृत्-ग.1.आ. = होना । अनु+रुध्-ग.4.आ. = इच्छा करना, | प्र+वृत्त = प्रवर्तना ।। मानना ।
परि+वृत् = बदलना । रुह-ग.1.प. = चढ़ना ।
वृध्-ग.1.आ. = बढ़ना । .आ+रुह = चढ़ना ।
वृष-ग.1.आ. = बरसना ।
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आओ संस्कृत सीखें
2183
शम् (शाम्)-ग.4.प. = शांत होना । | स्पृश् - ग.6.प. = स्पर्श करना, छूना । शिक्ष-ग.1.आ. = सीखना । स्पृह-ग.10.५ = स्पृहा करना, चाहना । शुष्-ग.4.प. = सूखना ।
स्फुट-ग.6.प. = खिलना, तूटना । शुच्-ग.1.प. = शोक करना । स्फुर्-ग.6.प. = कंपित होना, फरकना। शुभ-ग.1.आ. = शोभना ।
स्मृ. ग.1.प. = स्मरण करना, याद करना। श्रम् (श्राम्)-ग.4.प. = थक जाना । स्वाद्-ग.1.आ. = चखना, स्वाद लेना, वि+श्रम् = विश्राम करना ।
खाना । श्रि.ग.1.उभ. = आश्रय लेना । हस्-ग.1.प. = हँसना ।
आ+श्रि = आश्रय लेना, सेवा करना । ह्व-ग.1.उभ. = हरण करना, ले लेना । श्लाघ-ग.1.आ. = प्रशंसा करना । वि+ह्व = विहार करना, जाना । सद्(सीद्)-ग.1.प. = दुःखी होना । | परि+ह्व = त्याग करना । प्र+सद् = प्रसन्न होना ।
उद्+ह = निकालना । सान्त्व् ग.10.प. = शांत करना, खुश ढे (वय्)-ग.1.उभ. = बुलाना । करना ।
आ+ढे = आह्वान करना । सिच् (सिञ्च)-ग.6.उभ. = सिंचन क्षम् (क्षाम्)-ग.4.प. = क्षमा करना, करना ।
माफ करना । सिध्-ग.4.प. = सिद्ध होना । क्षर-ग.1.प. = झरना, गिरना, टपकना। सृ -ग.1.प. = जाना, सरकना, हटना । क्षल्-ग.10.प. = धोना । प्र+सृ = फैलना ।
क्षि-ग.1.प = क्षय होना, क्षीण होना। अनु+सृ = अनुसरण करना ।
क्षुभ-ग.4.प. = घबराना, क्षोभ पाना। सृज् - ग.6.प.= सर्जन करना, बनाना । वि+सृज् = विसर्जन करना, देना । उद्+सृज् = त्याग करना । सेव-ग.1.आ. = सेवा करना । स्था (तिष्ठ)-ग.1.प. = खड़ा रहना, स्थिर रहना। प्र+स्था-ग.1.आ. = प्रयाण करना, जाना। उद्+स्था = खड़ा होना ।
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आओ संस्कृत सीखें
अथ (अ.) = अब | अगम्य (वि.) = प्राप्त न हो ऐसा ।
अंग ।
अङ्ग (न.) अङ्गना (स्त्री)
= आग |
अग्नि (पु.) अतस् (अव्य.) = यहाँ से ।
= ज्यादा |
अति (अव्य.) अत्यय (पुं.) = नाश अत्र ( अव्य.) = यहाँ । अदस् (सर्व.)
= यह ।
अद्य (अव्य.)
= आज ।
होठ
अधर (पुं.) अधुना ( अव्य.) = अभी ।
नाशवंत
=
अध्ययन (न.) = पढ़ना | अनित्य ( वि . ) अनुरूप (वि.) = समान । अन्त (पुं. ) = किनारा । अन्तिम (वि.) अंतिम |
=
=
=
=
स्त्री ।
संस्कृत शब्दकोश: अभिधान (न.)
184
अन्न (न.) = अन्न |
अन्य (स.) = दूसरा । अन्यत्र ( अव्य.) = दूसरी जगह । अन्यथा (अ.) = दूसरी तरह । अपर ( सर्व . ) = दूसरा ।
अपराध (पुं.) = गुनाह । अपि (अव्य.) = भी । अप्सरस् (स्त्री) = अप्सरा
अबला (स्त्री) = स्त्री । अब्धि (पु.)
= सागर ।
= नाम |
अभ्यास (पु.) = आदत
अम्बर (न.) = आकाश | अम्बा (स्त्री)
= माता |
अम्बु (न.) = पानी |
अयोध्या (स्त्री) = एक नगरी, अयोध्यानगरी
अरि (पु.) = दुश्मन ।
अर्जित (वि.) अर्थ (पुं.)
अर्थकृच्छ्र (न.) = पैसे का दुःख ।
= प्राप्त किया हुआ।
= पैसा |
अलङ्कार (पु.) = आभूषण । अलङ्कृत (वि.) = शोभा किया हुआ । अलभ्य (वि.) = मिल न सके ऐसा । (न लभ्यम्) अवधि (पु.)
= मर्यादा ।
अवश्यम् (अव्य.) = अवश्य, जरूरी । अवस्था (स्त्री.) = हालत | अशीति (स्त्री.) अशुभ (वि.) ( न शुभम् )
= अस्सी |
=
अश्रु (न.) = अश्रु ।
अश्व (पु.) = घोडा |
अष्टन् = आठ ।
असङख्येय (वि.) = संख्या रहित । असमीक्ष्य (सं. भू. कृ.) = अच्छी तरह से
देखे बिन
असार (वि.) ( न सारम् )
असि (पु.)
= तलवार |
अस्मद् (सर्व . ) = मैं |
अशुभ ।
=
बुरा ।
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आओ संस्कृत सीखें
1185
अज्ञान (न.) = ज्ञान का अभाव । | उदर (न.) = पेट । आकाश (पु.न.) = आकाश | | उदार (वि.) = दानवीर । आघ्रातुम् (हे.कृ.) = सूंघने के लिए । | | उद्गत (वि.) = उगा हुआ । आङ्ग्लभाषा (स्त्री) = अंग्रेजी भाषा । | उद्यम (पु.) = प्रयत्न । आचार्य (पु.) = आचार्य, धर्मगुरू । |
| उद्यान (न.) = बगीचा । आतप (पु.) = धूप ।
उपाय (पु.) = इलाज । आत्मन् (पु.) = आत्मा ।
उलूक (पु.) = उल्लू । आत्मीय (वि.) = अपना । ऋण (न.) = कर्जा । आदि (पु.) = प्रारंभ ।
ऋतु (पु.) = ऋतु । आद्य (वि.) = पहला ।
ऋद्धि (स्त्री) = वैभव । आनन्द (पु.) = आनन्द । ऋषभ (पु.) = ऋषभदेव । आपद् (स्त्री) = आफत ।
एकत्र (अव्य.) = एक जगह । आम्र (पु.) = आम ।
एकदा (अव्य.) = एक बार । आयतन (न.) = स्थान ।
एकादशन् = ग्यारह । आयुस् (न.) = आयुष्य ।
एतत् (सर्व.) = यह । आर्या (स्त्री) = साध्वी।
एव (अव्य.) = अवश्य । आस्पद (न.) = स्थान ।
एवम् (अव्य.) = इस प्रकार । आज्ञा (स्त्री) = आज्ञा ।
ओम् (अव्य.) = हाँ । इति (अव्य.) = इस प्रकार । औषध (न.) = दवाई। इदम् (सर्व.) = यह ।
औषधि (स्त्री) = दवाई । इदानीम् (अव्य.) = अभी । ककुभ् (स्त्री) = दिशा । इव (अ.) = तरह ।
कङ्कण (न.) = कड़ा । इषु (पु.) = बाण ।
कण (पु.) = दाना । इह (अव्य.) = यहाँ ।
कण्टक (पु.न.) = काँटा । उक्त (वि.) = कहा हुआ । कथम् (अव्य.) = कैसे । उचित (वि.) = योग्य ।
कथयितुम्-(कथ्+तुम्) = कहने के लिए। उत (अव्य.) = अथवा ।
कथंचन (अव्य.)= किसी भी प्रकार से। उत्कर (पु.) = ढेर ।
कदा (अव्य.) = कब । उदय (पु.) = उदय ।
कदाचन (अव्य.) = शायद ।।
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आओ संस्कृत सीखें
1863
कन्या (स्त्री) = पुत्री ।
कुल (न.) = कुल । कपि (पु.) = बंदर ।
कुलीन (वि.) = कुलवान । कमल (नं.) = कमल ।
कुशल (वि.) = होशियार । कर्तव्य (वि.) = करने योग्य । कुसुम (न.) = फूल । कर्तृ (वि.) = करनेवाला ।
कूप (पु.) = कुआ । कर्मन् (न.) = कर्म ।
कूर्म (पु.) = कछुआ । कबरी (स्त्री) = वेणी ।
कृत (वि.) = किया हुआ । कला (स्त्री) = कला ।
कृत्स्न (वि.) = समस्त । कवि (पु.) = कवि ।
कृपण (वि.) = कंजूस । काक (पु.) = कौआ ।
कृपालु (वि.) = कृपावाला । काञ्चन (न.) = सोना ।
कृषीवल (पु.) = किसान । कानन (न.) = जंगल ।
कृष्ण (वि.) = काला । कापुरुष (पु.)(कुत्सितः पुरुषः) = । | केतकीगन्ध (पु.) = केतकी की गन्ध ।
खराब व्यक्ति । केवल (न.) = सिर्फ । कारण (न.) = हेतु ।
कोटि (स्त्री) = करोड़ । कारागृह (न.) = कैदखाना । कोरक (पुं.न.) = फूल की कली । कार्य (न.) = काम ।
कोषाध्यक्ष (पु.) = भंडार का अधिकारी काल (पु.) = समय ।
(कोषस्य अध्यक्षः) । काष्ठ (न.) = लकड़ा ।
कौन्तेय (पु.) = कुन्ती का पुत्र । कासार (पु.) = तालाब।
क्रव्य (न.) = मांस । किङ्कर (पु.) = नौकर ।
क्रिया (स्त्री.) = क्रिया । किम् (सर्व.) = कौन, क्या ? क्लान्त-(क्लम्+त) = थका हुआ । किम् (अव्य.) = क्यों
क्व (अव्य.) = कहाँ । कीर्ति (पु.) = प्रसिद्धि ।
क्वचित् (अव्य.) = कहीं, कभी । कुङ्कुम = कुङ्कुम ।
खञ्ज (वि.) = लंगड़ा । कुटुम्बक (न.) = कुटुंब ।
खरु = कठिन । कुत् (अव्य.) = कहाँसे ।
खल (वि.) = दुर्जन । कुमारपाल (पु.) = व्यक्ति का नाम । खलु (अव्य.) = निश्चय । कुम्भकार (पु.) = कुम्हार ।
ख्यात (वि.) = प्रसिद्ध ।
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आओ संस्कृत सीखें
गङ्गा (स्त्री)
= गङगा नदी |
गज (पुं.) = हाथी । गन्तव्य ( गम् + तव्य) जाने योग्य ।
=
गन्ध (पुं.) = गन्ध I गणभृत् (वि.) = गणधर । गरीयस् (वि.) ( गुरु + ईयस)
बड़ा।
गल (न.) = गला | गहन = कठिन (वि.) । गिरि (पं.) पर्वत । गुण (पुं. ) = विशेषता ।
गुणिन् (वि.) = गुणवान । गुहा (स्त्री.) = गुहा, गुफा । गुरु (वि.)
= बड़ा ।
गुरु (पु.) = गुरु । गृह (न.) = घर | गृहीत्वा (सं. भू. कृ.) गोधूम (पुं.) = गेहूँ | गोप = ग्वाला |
=
ग्रह (पुं.) = राहु आदि ग्रह । ग्राम (पुं.)
= गाँव |
च ( अव्य.) = और ।
चक्र (न. ) = चक्र ।
चतुर् (वि.)
= ग्रहण करके |
= चार |
चत्वारिंशत् (स्त्री) = चालीस |
=
चन्दन (न.) = चन्दन |
चन्दना (स्त्री.) चन्द्र (पुं.) = चन्द्रमा ।
चन्द्रकान्त (पुं.) = चन्द्रकांत मणि ।
= बहुत चिन्ता (स्त्री)
चंदनबाला ।
187
चन्द्रमस् (पुं.) = चन्द्रमा | चरित (पुं. ) = वर्तन | = मन ।
चित्त (न.) चित्तरञ्जन (न.) = चित्त का रञ्जन । (चित्तस्य रञ्जनम्)
= चिंता |
चिरम् (अव्य.) = दीर्घकाल तक । चिरात् (अव्य.) = लंबे समय से ।
यदि ।
चेत् (अव्य.) चेतस् (न.) = मन |
चौर (पुं.) = चोर | छात्र (पुं.) = विद्यार्थी । छाया (स्त्री) = छाया
=
जगत् (न.) = जगत् ।
जन (पुं.) = मनुष्य । जनक ( पुं. ) = पिता । जन्मन् (न.) = जन्म | जयिन् (वि.) = जयवाला । जरा (स्त्री.) = बुढ़ापा । जल ( न . ) = पानी । जलनिधि (पुं.) = समुद्र | जात - (जन् + त) = जन्मा हुआ | जामातृ (पुं.) = दामाद | जिन (पुं.) = जिनेश्वर देव । जिनेन्द्र (पुं.) जिनेश्वर देव । जिह्वा (स्त्री) = जीभ ।
=
जिह्वाग्र (न. ) = ( जिह्वाया अग्र भाग )
=
जीभ का अग्र भाग ।
जीर्ण (वि.) = क्षीण हुआ ।
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आओ संस्कृत सीखें
1883
जीव (पुं.) = जीव, आत्मा । त्वष्ट (पु.) = सुथार । जीवनीय (न.) = जीने योग्य ।। त्रि (संख्या (बहुवचन) = तीन । जैन (वि.) = जैन ।
त्रिंशत् (स्त्री) = तीस । झटिति (अव्य.) = जल्दी । त्रितय (वि.) = तीन का समूह । डिम्भ (पुं.) = बालक ।
त्रैलोक्य (न.) = तीन लोक । तण्डुल (पुं.) = चावल ।
दण्ड (पु.) = लकड़ी । ततस् (अव्य.) = वहाँ से ।
दम्भिन् (वि.) = दंभी । तत्त्व (न.) = सारभूत वस्तु । दया (स्त्री.) = दया । तत्र (अव्य.) = वहाँ ।
दरिद्र (वि.) = गरीब । तडाग (पुं.) = तालाब ।
दशन् (संख्या) = दश । तथा (अव्य.) = उस प्रकार । दातृ (वि.) = दाता । तद् (सर्व.) = वह ।
दान (न.) = दान । तद् (अव्य.) = उस कारण से । दामन् (न.) = माला । तदा (अव्य.) = तभी ।
दार (पुं.) (बहुवचन) = पत्नी, स्त्री । तन्वङ्गी (स्त्री) = सुंदर स्त्री । दारिद्र्य (न.) = दरिद्रता । तप्त (भू.कृ.) = तपा हुआ ।
दारुण (वि.) = भयंकर । तरु (पुं.) = वृक्ष ।
दासी (स्त्री) = दासी । तरुणी (स्त्री) = जवान स्त्री ।
दिन (पु.) = दिन । तर्हि (अव्य.) = तो ।
दिवस (पुं.) = दिन । तालु (न.) = तालु ।
दिवा (अव्य.) = दिन । तिल (पुं.) = तिल ।
दिवाकर (पुं.) = सूर्य । तीक्ष्ण (वि.) = तेज, प्रखर, तीव्र । दीन (वि.) = गरीब । तीर (न.) = किनारा ।
दीप (पुं.) = दीया । तु (अव्य.) = और ।
दीपक (पुं.) = दीपक । तुष्ट-(तुष्+त)-भू.कृ.संतोष पाया | दुग्ध (न.) = दूध । हुआ।
दुर्गति (स्त्री.) = खराब गति । तृण (न.) = घास ।
दुर्जन (पु.) = खराब व्यक्ति । तृषित (वि.) = प्यासा ।
दुर्योधन (पुं.) = दुर्योधन । तृष्णा (स्त्री.) = आशा ।.. दुष्पुत्र (पुं.) = खराब पुत्र ।
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आओ संस्कृत सीखें
दुहितृ (स्त्री) = पुत्री | दुःख (न.) = दुःख | दूर (वि.) = दूर |
दृष्ट - (दृश्+त) = देखा हुआ ।
दृष्ट्वा (दृश् + त्वा)
देव (पुं.) = देवता ।
देवता (स्त्री) = देवता ।
=
=
देवालय (पुं.) = मंदिर । देवी (स्त्री) देवी ।
=
देवृ (पुं.) = देवर |
देश (पुं.) = देश । देह (पुं.) शरीर । द्यूत (न.) = जुआ ।
द्रष्टुम् (द्दश् + तुम्) = देखने के लिए।
देख कर 1
दुश्मन ।
द्वार (न.)
= दरवाजा |
=
दो ।
=
= धन |
द्वि (सर्व . ) द्विष् (पुं.) धन (पुं.) धनपाल (पुं.) = कवि । धनिक (वि.) = धनवान | धर्म (पुं.) = धर्म, स्वभाव । धर्मसंग्रह (पुं.) = धर्म का संग्रह | ( धर्मस्य संग्रह : )
धारा (स्त्री) = नगरी |
धार्मिक (पुं.) = धर्म करनेवाला । धीमत् (वि.) = बुद्धिशाली ।
धेनु (स्त्री) = गाय |
न ( अव्य. ) = नहीं ।
नक्तम् (अव्य.) = रात्रि ।
189
नगर (न.)
ननान्दृ (स्त्री)
=
ननु (अव्य.) नप्तृ = पौत्र, दौहित्र ।
नभस् (न.) = आकाश |
नमस् (अव्य.) = नमस्कार |
नय (पुं.) = नीति ।
नयन (न.) = आँख, चक्षु |
नर (पुं.)
मनुष्य ।
= नरक |
नरक (पुं.) नराधम (पुं.) नवति (स्त्री) = नब्बे ।
नवन् (न.) = नौ |
= शहर ।
=
=
नणंद । निश्चय ।
= अधम पुरुष |
नवदशन् = उन्नीस । नल (पुं. ) = नल राजा ।
नष्ट = नाश हुआ ।
नाथ (पुं.) = स्वामी ।
नामन् (न. ) = नाम । नाम ( अत्य ) = वास्तव में। नायक (पुं.) = स्वामी | नारी (स्त्री) = स्त्री । नि:स्पृह (वि.) = इच्छा बगैर का । निःस्वन (वि.) = आवाज बगैर का । निग्रह (पुं.) = रोक, अवरोध, दमन । निज (वि.) = अपना ।
हमेशा ।
=
नित्य (वि.) निधि (पुं.) = भंडार ।
निम्ब (पुं. ) = नीम | नियोग (पुं.) = फर्ज ।
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आओ संस्कृत सीखें
-190
निलय (पुं.) = घर ।
पद्म (न.) = कमल । निवेदित (वि.) = निवेदन किया हुआ । | पयस् (न.) = पानी । निशा (स्त्री) = रात्रि ।
पर (सर्व.) = बाद का, दूसरा ।। निष्क (पु.) = सोनामोहर । परपीडन (न.) = दूसरे को दुःख देना । निसर्ग (पुं.) = स्वभाव ।
परम (वि.) = श्रेष्ठ । नीच (वि.) = तुच्छ, अधम, शूद्र । पराक्रम (पुं.) = बल । नीर (न.) = पानी ।
पराङ्मुख (वि.) = विपरीत मुखवाला । नीरुज (वि.) = रोग रहित । पराभव (पुं.) = हार । नूनम् (अव्य.) = निश्चित ।
पराभूत (वि.) = हारा हुआ । नृ (पुं.) = नर ।
परिणीत (परि+नी+त) = विवाहित । नृप (पुं.) = राजा ।
परिहर्तव्य-(परि+हृ+तव्य) = नृपति (पुं.) = राजा ।
त्याग करने योग्य ।। नेत्र (न.) = आँख ।।
परोपकारिन् (वि.) = परोपकारी । नेष्ट्र = याज्ञिक ।
पर्जन्य (पुं.) = बादल । न्याय (पुं.) = न्याय ।
पर्ण (न.) = पत्ता । नौ (स्त्री) = जहाज ।
पर्वत (पुं.) = पहाड । पक्व (वि.) (पच् + त) = पका हुआ । | पल्लव (पुं.न.) = कों पल । पङ्गु (वि.) = लंगड़ा ।
पशु (पुं.) = पशु । पश्चन् = पाँच ।
पाठशाला (स्त्री) = पाठशाला । पञ्चाशत् (स्त्री) = पचास ।
पाणि (पुं.) = हाथ । पञ्जर (न.) = पिंजरा ।
पाण्डव (पुं.) = पाण्डव । पण्डित (पुं.) = पण्डित ।
पाद (पुं.) = पैर । पतङ्ग (पु.) = सूर्य ।
पादप (पुं.) = वृक्ष । पताका (स्त्री) = ध्वजा ।
पान्थ (पुं.) = मुसाफिर । पतित (भू.कृ.(पत्+त) = गिरा हुआ । पाप (नं.) = पाप । पत्तन (न.) = पाटण ।
पारितोषिक (न.) = इनाम । पत्नी (स्त्री) = पत्नी ।।
पितृ (पुं.) = पिता । पथ्य (वि.) = हितकारक ।
पितरौ (द्वि.व.) = माता और पिता । पद (न.) = कदम ।
(माता च पिता च)
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101
आओ संस्कृत सीखें पिपीलिका (स्त्री) = चींटी । पिशाच = भूत । पुण्डरीक (न.) = कमल । पुण्य (न.) = पुण्य । पुत्र (पुं.) = पुत्र । पुनर् (अव्य.) = वापस । पुरस् (अव्य.) = आगे, अग्रतः, पहले समय में । पुरा (अव्य.) = पहले। पुष्प (न.) = फूल । पुस्तक (न.) = पुस्तक, किताब । पूजित - (पूज्+त) = पूजा हुआ । पूज्य (वि.) = पूजनीय । पूर्व (सर्व.) = पहला । प्रजा (स्त्री) = प्रजा । प्रणत-(प्र+नम्+त) = नमा हुआ । प्रणम्य-(प्र+नम्+य) = प्रणाम करके। प्रतिकूल = विपरीत (नपुं. लिंग)। प्रतिक्रिया (स्त्री) = उपाय । प्रदोष (पु.) = संध्या । प्रधान (पुं.) = मुख्य । प्रभात (न.) = प्रात:काल । प्रभु (वि.) = प्रभु । प्रभूत (वि.) = ज्यादा । प्रवहण (न.) = जहाज । प्रवास (पु.) = यात्रा । प्रवीण (वि.) = होशियार । प्रवृत्ति (स्त्री) = कार्य । प्रशस्य (वि.) = प्रशंसनीय ।
प्रसन्न (वि.) = खुश । प्रसाद (पुं.) = मेहरबानी । प्रशास्तु (पुं.) = प्रकृष्ट शासक । प्रहरण (न.) = हथियार । प्राज्ञ (पुं.) = होशियार । प्रातर् (अव्य.) = प्रातः काल । प्रासाद (पुं.) = महल । प्रिय (वि.) = प्यारा । प्रेष्य (वि.) = नौकर । प्लवङ्ग (पुं.) = बंदर । फल (न.) = फल । फलदायक (वि.) = फल देनेवाला ।
(फलस्य दायक:) बन्धु (पुं.) = भाई। बल (न.) = शक्ति, सैन्य ।। बलीवर्द (पुं.) = बैल । बहु (वि.) = बहुत । बहुशस् (अव्य.) = बहुत बार । बाण (पुं.) = तीर । बान्धव (पु.) = भाई । बाल (पुं.) = बालक । बाला (स्त्री) = कन्या । बाहु (पुं.) = हाथ । बिडाल (पुं.) = बिलाव । बीज (न.) = बीज । ब्रह्मन् (न.) = ब्रह्मा । ब्राह्मण (पुं.) = ब्राह्मण । भगिनी (स्त्री) = बहन । भगवत् (वि.) = भगवान ।
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आओ संस्कृत सीखें
-1925
भद्र (न.) = कल्याण । भर्तृ (पुं.) = मालिक । भवत् (सर्व.) = आप । भक्षण (न.) = खाना । भिक्षुक (पुं.) = भिखारी । भाण्ड (न.) = बर्तन । भानु (पुं.) = सूर्य । भार (पुं.) = वजन । भाविन (वि.) = होनेवाला । भुजङ्ग (पुं.) = सर्प । भूपाल (पुं.) = राजा । भूभुज् (पुं.) = राजा । भूषण (न.) = अलंकार । भूषित (भूष्+त) = सजाया हुआ । भृङ्ग = भौंरा । भृश (वि.) = अत्यंत, ज्यादा । भेद (पुं.) = अलग। भोक्तव्य (वि.) = भोगने योग्य । भोज (पुं.) = भोज राजा । भोस् (अ.) = हे। भोज्य (वि.) = खाना । भ्रमर (पुं.) = भौंरा । भ्रष्ट (भू.कृ.) = गिरा हुआ। भ्रातृ (पुं.) = भाई । मति (स्त्री.) = बुद्धि । मत्त – (मद्+त) = उन्मत्त मथुरा (स्त्री.) = नगरी का नाम ।। मद (पुं.) = अहंकार । मदन (पुं.) = कामदेव ।
मधु (न.) = शहद । मधुकरी (स्त्री.) = भ्रमरी । मध्य (पुं.नं.) = बीच में । मनोरथ (पुं.) = इच्छा । महेशान (न.) = महेसाणा । मन्त्रिन् (पुं.) = मंत्री । मयूर (पु.) = मोर । मरण (न.) = मृत्यु । मरुत् (पु.) = पवन, देव । महत् (वि.) = बड़ा । महिला (स्त्री.) = स्त्री। महिष (पुं.) = पाड़ा । महिषी (स्त्री.) = पटरानी । मनोहर (वि.) = सुंदर । मक्षिका (स्त्री.) = मक्खी । मा (अव्य.) = नहीं, मत । माकन्द (पुं.) = आम । माणिक्य (न.) = माणक । मातुल (पु.) = मामा । मातृ (स्त्री.) = माता । माधुर्य (न.) = मधुरता । मान (पुं.) = अहंकार । . मानव (पुं.) = मनुष्य । माया (स्त्री.) = कपट । मायिन् (वि.) = मायावी मार्ग (पुं.) = रास्ता । मार्जार (पुं.) = बिल्ला ।
माला (स्त्री.) = माला । | माष (पुं.) = उड़द ।
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आओ संस्कृत सीखें
*1933
मास (पुं.न.) = महीना ।। मित्र (न.) = मित्र । मिथिला (स्त्री.) = नाम की नगरी । मिथ्या (अव्य.) = व्यर्थ ।। मुक्ति (स्त्री.) = मोक्ष । मुख (न.) = मुँह । मुद् (स्त्री.) = आनंद, हर्ष । मुनि (पुं.) = मुनि । मूर्धन् (पुं.) = मस्तक । मूल (न.) = कारण । मृग (पुं.) = हिरण । मृत = मरा हुआ । मृत्यु (पुं.) = मरण । मृद् (स्त्री.) = मिट्टी । मृदु (वि.) = कोमल, नरम । मेरु (पुं.) = मेरु पर्वत । मेष (पुं.) = भेड़ । मैत्र (पुं.) = व्यक्ति का नाम । मैत्री (स्त्री.) = मित्रता । मोघ (वि.) = निष्फल । मोदक (पुं.) = लड्डू ।। मौक्तिक (न.) = मोती । मौन. (न.) = मौन । यत्र (अव्य.) = जहाँ । यथा (अव्य.) = जैसे । यद् (सर्व.) = जो । यद् (अव्य.) = यदि । यदि (अव्य.) = अगर । यदिवा (अ.) = अथवा ।
यमुना (स्त्री) = नदी का नाम । यशस् (न.) = यश । याचक (पुं.) = भिखारी । यादस् (न.) = जलजंतु । युक्त (भू.कृ.) = साथ, जुड़ा हुआ । युक्तः (वि.) = योग्य । योजन (न.) = चार गाउ । योध (पुं.) = योद्धा । योषित् (स्त्री.) = स्त्री । युष्मद् (सर्व.) = तुम । योगिन् (पुं.) = योगी । योग्य (वि.) = लायक । युध् (स्त्री) = लडाई, युद्ध । रण (न.) = युद्ध । रतिलाल (पुं.) = उस नाम का व्यक्ति । रत्नमाला (स्त्री.) = रत्नों की माला । रथ (पुं.) = रथ । रथ्या (स्त्री.) = चौक महोल्ला । रमा (स्त्री.) = लक्ष्मी । रवि. (पुं.) = सूर्य । राजन् (पुं.) = राजा । राज्य (न.) = राज्य । रात्रि (स्त्री.) = रात । रामलक्ष्मण (पुं.) = राम और लक्ष्मण । राशि (पुं.) = ढेर, समूह । रासभ (पुं.) = गधा । रिपु. (पुं.) = दुश्मन । रीति (स्त्री.) = रिवाज । रुष्ट (भू.कृ.) = रोषायमान
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आओ संस्कृत सीखें
+1945
रूप (न.) = वर्ण । लक्ष (स्त्री.न.) = लाख । लघु (वि.) = हल्का । लङ्का (स्त्री.) = लड़का नगरी । लज्जा (स्त्री.) = मर्यादा । लता (स्त्री.) = बेल । ललना (स्त्री.) = युवा स्त्री। लक्ष्मण (पु.) = लक्ष्मण । लुप्त (भू.कृ.) = नष्ट हुआ । लोक (पुं.) = जगत् । लुब्ध (भू.कृ.) = लोभी । वक्तृ (वि.) = वक्ता । वक्त्र (न.) = मुख । वचन (न.) = वचन । वचस् (न.) = वचन । वज्र (पुं.न.) = इन्द्र का हथियार । वट (पुं.) = बड़वृक्ष । वणिज् (पुं.) = व्यापारी । वधू (स्त्री.) = पत्नी । वन (न.) = जंगल । वनमाला (स्त्री) = वनमाला । वर (पुं.) = अच्छा । वर्धमान (पुं.) = महावीर स्वामी । वर्षा (स्त्री) = वर्षाऋतु । वेश्मन् (न.) = घर । वसति (स्त्री.) = उपाश्रय । वसु (न.) = धन । वसुधा (स्त्री.) = पृथ्वी । वसुन्धरा (स्त्री.) = पृथ्वी । . वहिन (पुं.) = आग ।
वा (अव्य.) = अथवा वाच् (स्त्री.) = वाणी । वात (पुं.) = पवन । वानर (पुं.) = वानर । वापी (स्त्री) = बावड़ी । वायु (पुं.) = पवन । वारि (न.) = पानी। वारिद (पुं.) = वर्षा । वारिधि (पुं.) = समुद्र । वार्ता (स्त्री.) = बात । विघ्न (पुं.) = अंतराय । वित्त (न.) = धन । विद्या (स्त्री.) = विद्या । विद्यागम (पुं.) = विद्या की प्राप्ति । विद्यार्थिन् (वि.) = विद्यार्थी । विधि (पुं.) = किस्मत । विंशति (स्त्री.) = बीस । विद्युत (स्त्री) = बिजली । विना (अव्य.) = बिना । विपरीत (वि.) = उल्टा । विपद् (स्त्री.) = आपत्ति । विफल (वि.) = निष्फल । विभव (पुं.) = धन । विभाग (पुं.) = अलग करना । विभूति (स्त्री.) = वैभव । वियत् (न.) = आसमान । विरक्त (वि.) = वैरागी, राग रहित । विवाद (पुं.) = झगड़ा । विवेकिन् (वि.) = विवेकी । विशाल (वि.) = बड़ा ।
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आओ संस्कृत सीखें
विश्वास (पुं.) = श्रद्धा | विषम (वि.) = कठिन । विष्णु (पुं.) = विष्णु, कृष्ण । विहग (पुं.) = पक्षी । विहङ्गम (पुं. ) : = पक्षी |
विहीन (वि.) = रहित ।
वीत (वि.) = गया हुआ, बीता हुआ ।
वीर (पुं.) = महावीर । वृत्ति (स्त्री.) वृथा ( अव्य. ) = व्यर्थ | वृष्टि (स्त्री.) = बारिश |
वृक्ष (पुं.) = झाड़, पेड़ ।
वेग (पुं.) = तीव्र गति । वेदना (स्त्री.) = पीड़ा, दुःख । वै. (अ.) = पादपूर्ति के लिए । वैनतेय (पुं.) = गरुड़ |
वैष्णव (पुं. ) = विष्णु को माननेवाला । व्यथाकर (वि.) = पीड़ा करनेवाला | व्यसन (न.) = संकट, आदत । व्याकरण (न.) = व्याकरण | व्याधि (पुं.) = रोग | व्याधित (वि.) रोगी ।
= व्यापार |
व्यापार (पु.) शक्ति (स्त्री.) = बल । शक्य (वि.) = हो सके ऐसा । शत (पुं.) सौ । शत्रु ( पुं.) = शत्रु ।
=
शत्रुंजय ( पुं.) = महातीर्थ ।
शनैस् (अ.) = धीरे ।
शरण (न.) = शरण |
= आजीविका |
=
195
शरद् (स्त्री.) = शरदऋतु । शरीर (न.) = देह | शशिन् (पुं.) = चंद्रमा ।
शान्ता (स्त्री.) = स्त्री का नाम | शान्ति (स्त्री.) शान्ति ।
=
शान्ति (पुं.) = शांतिनाथ भगवान । शाश्वत (वि.) स्थायी ।
= कल्याण |
शिखर (न. ) = शिखर । शिखरिन् (पुं.) पर्वत । शिव (न.) शिशिर (पुं.) = शिशिर ऋतु । शिशु (पुं.) = छोटा बच्चा । शीत (वि.) = ठंडा ।
शील (न.) = सदाचार | शुचि (वि.) = पवित्र । शुष्कवृक्ष (पुं.) = सूखा वृक्ष । शूर (पुं.) = शूरवीर । शृङ्खला (स्त्री) = बेड़ी ।
शैल (पुं.) = पर्वत । शोभन (वि.) श्रद्धा (स्त्री.) = विश्वास ।
=
सुंदर ।
श्रमण (पुं.) = श्रमण, साधु । श्रावक (पुं.)
= श्रावक |
श्री हेमचन्द्राचार्य (पुं. ) = व्यक्ति का नाम ।
=
षष्
= कल्याण |
श्रेयस् (न.) श्रोतृ (वि.)
श्रोता ।
श्वश्रू (स्त्री.)
= सास |
श्वशुर (पुं.) = ससुर ।
श्वेत (वि.) = सफेद ।
= छह ।
=
=
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आओ संस्कृत सीखें
= भ्रमर |
षष्टि (स्त्री.) = साठ | षट्पद (पुं.) सकल (वि.) सङ्ग (पुं.) = साथ |
सञ्चित (वि.) = इकट्ठा किया हुआ ।
सज्जन ।
= समस्त |
सत् (वर्त.कृ.) सतत (वि.)
=
निरंतर |
सत्य (न.) = सच | सत्यपुर (न.) = साचोर |
=
सप्तन् = सात |
सप्तति (स्त्री.) = सत्तर, सभा (स्त्री.) = सभा | सम (वि.) समर (पुं.) = युद्ध |
= समान ।
= समान |
= पास में ।
समान (वि.) समीप (न.) समुद्र (पुं.) सम्यग् (अ.) सरयू (स्त्री) सरला (स्त्री) = इस नामकी लड़की ।
=
नदी का नाम ।
सर्प (पुं.) = साँप ।
सर्पिस् (न.) = घी । सर्व (सर्व . ) = सभी, सब । सर्वजगत् (न.) = संपूर्ण जगत् ।
= समुद्र |
=
सित्तर ।
अच्छी तरह ।
सर्वत्र (अ.) = सब जगह । सर्वदा ( अ ) = हमेशा । सह (अ.) = साथ में | सहस्र (पुं.न. ) सह्याद्रि (पुं.) = सह्यपर्वत ।
= हजार ।
साधु (पुं.)
= साधु |
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साधु (वि.) = श्रेष्ठ, अच्छा । सार (वि.) = श्रेष्ठ । सार्थवाह (पुं.) सिंह (पुं.) = सिंह |
=
= व्याकरण का नाम।
सिद्धराज (पुं. ) = सिद्धराज । सिद्धसेन (पुं.) महाकवि आचार्य नाम । सिद्धहेमचन्द्र (न.) सीमन् (न.) = सीमा । सैनिक ( पुं. ) = सिपाही । सुखार्थ (पुं.) = सुख के लिए । सुन्दर (वि.) = मनपसंद । सुपुत्र (पुं.) = अच्छा पुत्र ।
सुप्त (वि.) = सोया हुआ । सुरभि (वि.) = सुगन्ध, खुशबू । सुवर्ण (न.) = सोना ।
= बड़ा व्यापारी ।
सुष्ठु (अ.) = अच्छा ।
सुहृद् (पुं.) = मित्र । सुद (पुं.) रसोइया । सौराष्ट्र (पुं.) = देश । संकुल ( वि . ) = विभाग । संगति (स्त्री) = संगत ।
=
संनिहित ( वि . ) = निकट रहा हुआ । संपद् (स्त्री.) = संपत्ति । संमान (पुं.) = सन्मान | संस्कृत ( नं. ) = संस्कृत ।
स्तम्भ (पुं.) = खम्भा । स्तेन (पुं.) = चोर | स्तोक (वि.) स्थिर (वि.) = स्थिर । स्पर्श (पुं.) = स्पर्श ।
=
थोड़ा ।
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आओ संस्कृत सीखें
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क्षीण (भू.कृ.) = नष्ट हुआ । क्षीर (न.) = दूध । क्षुध् (स्त्री) = क्षुधा । क्षुधित (वि.) = भूखा । क्षेत्र (न.) = खेत । ज्ञाति (पु.) = स्वजन । ज्ञान (न.) = बोध ।
स्थित = रहा हुआ । स्मृत (भू.कृ.) = याद किया हुआ । स्व (सर्व.) = अपना, खुद । स्वः (न.) = धन । स्वप्न (न.) = सपना । स्वभाव (पुं.) = स्वभाव । स्वयम् (अ) = खुद । स्वर्ग (पुं.) = स्वर्ग । स्वस्ति (अ.) = कल्याण । स्वसृ (स्त्री) = बहन । स्वहित (न.) = अपना हित । स्वादु (वि.) = मधुर, मीठा । स्वामिन् (पुं.) = स्वामी । स्वेच्छा (स्त्री.) = खुद की इच्छा । हत (वि.) = मारा हुआ । हर्तृ (वि.) = हरनेवाला । हरि (पुं.) = विष्णु, इन्द्र । हलाहल (न.) = जहर । हस्त (पुं.) = हाथ । हस्तिनापुर (न.) = हस्तिनापुर । हि (अ.) = निश्चित रूप से । हिमरश्मि (पुं.) = चन्द्र । हिरण्य (न.) = सोना । . हीन (वि.) = कम । हृदय (न.) = हृदय । होतृ (पुं.) = याज्ञिक ह्यस् (अ.) = गतदिन क्षतु (पुं.) = सारथी । क्षम (वि.) = समर्थ । क्षमा (स्त्री.) = माफी ।
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हिन्दी साहित्यकार पू. पंन्यासप्रवर श्री रत्नसेन
प्रतिक्रमण सायोगी संग्रह
श्रावक कतव्य
मोती
प्रवचन
श्रावक कर्तव्य
भाग
sist
प
71
73
74
76
सध्यावर
भावावका
आओ ! पूजा पढाई
प्रभुदर्शन सुखसंगता
संतोगी नर-सदा सुखी
महान ज्योतिधर
83
84
86
DUTIES TOUARDS
PARENTS
राधास्थान
मधुर कहानियाँ
सयोलान
पर्युषण के तीन प्रवचना
GircEDIABAR
95
96
99
ब्रह्मचर्य
भाव सामायिक
सिंग
दिर पयाज
साल कहानियाँ
म्हणजे आया
आलोबलशान पोशाक
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108
109
110
111
शका-समाधान
भाव-चैत्यवंदन
जीवविकार-विवन
श्रीमदमसूरीदारी
नवर्तव-विवेवन
Hetananeeriagaravare
118
119
120
121
122
123
आओ भायात्रा करे
INS
वातिरगाह
भावkिaorton
एंड-विवेचन
4864-वियर
Hatakeut-sur
kwolodhradd
130
132
133
134
135
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विजयजी म.सा.का अनमोल साहित्य वैभव
SHER:
प्रवचन-रत्न
आओ! तन्वज्ञान सीखें
79
80
81
82
अजयकी गौरवागाया
प्रेरक कहानियाँ
वरया
Gidol HII
महासलियों का जीवन-संदेश
पलबिदेवन
89
90
945
खरे फूल
CHEATERSNEHIND अमर-वाणी
प्रवचन के
श्री आदिनाथ शांतिनाथ
कल्पसूत्र के हिन्दी प्रवचन
हान् योगी
USEDOमासपीएनधिमाजीगणिक
104
101
102
103
105
महावीरवाणी
सदगुरुपासना
चिंतनारा
जैन पर्व-प्रवचन
नींव के पत्थर
विखुरलेले प्रवचन मोती
112
113
114
115
116
117
गुणवान बनो
विविध
सिनिध-तपमाना
भाव-आलोचना
महान चरित्र
तीन
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124
125
126
127
128
129
आओ पषण प्रतिकामण करें
Madel
सुखी जीवन की नातियों
गुणानुवाद
Hd-प्रद
राज्झायोको स्वाध्याय
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________________ पू.पंन्यासप्रवर श्रीरत्नसेनविजयजी गणिवर्यका हिन्दी साहित्य 1. वात्सल्य के महासागर 50. मनोहर कहानियाँ 99. पारसप्यारो लागे 2. सामायिक सूत्र विवेचना 51. मृत्यु-महोत्सव 100. बीसवीं सदी के महान् योगी 3. चैत्यवन्दन सूत्र विवेचना 52. Chaitya-Vandan Sootra 101. अमर-वाणी 4. आलोचना सूत्र विवेचना 53. सफलता की सीढ़ियाँ 102. कर्म विज्ञान 5. श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र विवेचना 54. श्रमणाचार विशेषांक 103. प्रवचन के बिखरे फूल 6. कर्मन्की गत न्यारी 55. विविध-देववंदन (चतुर्थ आवृत्ति) 104. कल्पसूत्र के हिन्दी प्रवचन 7. आनन्दघन चौबीसी विवेचना 56. नवपद प्रवचन 105. आदिनाथ-शांतिनाथ चरित्र 8. मानवता तब महक उठेगी 57. ऐतिहासिक कहानियाँ 106. ब्रह्मचर्य 9. मानवता के दीप जलाएं 58. तेजस्वी सितारें 107. भाव सामायिक 10. जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है 59. सन्नारी विशेषांक 108. राग म्हणजे आग (मराठी) 11. चेतन ! मोहनींद अब त्यागो 60. मिच्छामि दुक्कडम 109. आओ! उपधान-पौषध करें! 12. युवानो! जागो 61. PanchPratikraman Sootra 110. प्रभो ! मन-मंदिर पधारो 13. शांत सुधारस-हिन्दी विवेचना भाग-1 62. जीवन ने तुंजीवी जाण (गुजराती) 111. सरस कहानियाँ 14. शांत सुधारस-हिन्दी विवेचना भाग-2 63. आवो! वार्ता कहुं (गुजराती) 112. महावीर वाणी 15. रिमझिम रिमझिम अमृत बरसे 64. अमृत की बुंदे 113. सदगुरु-उपासना 16. मृत्यु की मंगल यात्रा 65. श्रीपाल मयणा 114. चिंतनरत्न 17. जीवन की मंगल यात्रा 66. शंका और समाधान (तृतीय आवृत्ति) 115. जैन पर्व-प्रवचन 18. महाभारत और हमारी संस्कृति-1 67. प्रवचनधारा 116. नींव के पत्थर 19. महाभारत और हमारी संस्कृति-2 68. धरती तीरथ'री 117. विखुरलेले प्रवचन मोती 20. तब चमक उठेगी युवा पीढी 69. क्षमापना 118. शंका-समाधान भाग-2 21. The Light of Humanity 70. भगवान महावीर 119. श्रमण शिल्पी श्रीमद् प्रेमसूरीश्वरजी 22. अंखियाँ प्रभुदर्शन की प्यासी 71: आओ ! पौषध करें 120. भाव-चैत्यवंदन 23. युवा चेतना 72. प्रवचन मोती 121. Youth will shine then 24. तब आंसू भी मोती बन जाते है 73. प्रतिक्रमण उपयोगी संग्रह 122. नव तत्त्व-विवेचन 25. शीतल नहीं छाया रे...(गुजराती) 74. श्रावक कर्तव्य-1 123. जीव विचार विवेचन 26. युवा संदेश 75. श्रावक कर्तव्य-2 124. भव आलोचना 27. रामायण में संस्कृति का अमर सन्देश-1 76. कर्म नचाए नाच 125. विविध-पूजाएँ 28. रामायण में संस्कृति का अमर सन्देश- 277. माता-पिता 126. गुणवान् बनों 129. श्रावक जीवन-दर्शन (तृतीय आवृत्ति) 78. प्रवचन रत्न 127. तीन-भाष्य 30. जीवन निर्माण 79. आओ! तत्वज्ञान सीखें 128. विविध-तपमाला 31. The Message for the Youth 80. क्रोध आबाद तो जीवन बरबाद 129. महान् चरित्र 32. यौवन-सुरक्षा विशेषांक 81. जिनशासन के ज्योतिर्धर 130. आओ! भावयात्रा करें 33. आनन्द की शोध 82. आहार : क्यों और कैसे? 131. मंगल-स्मरण 34. आग और पानी भाग-1 83. महावीर प्रभुका सचित्र जीवन 132. भाव प्रतिक्रमण-1 35. आग और पानी भाग-2 84. प्रभुदर्शन सुख संपदा 133. भाव प्रतिक्रमण-2 36. शत्रुजय यात्रा (द्वितीय आवृत्ति) 85. भाव श्रावक 134. श्रीपाल-रास और जीवन-चरित्र 37. सवाल आपके जवाब हमारे 86. महान ज्योतिर्धर 135. दंडक-विवेचन 38. जैन विज्ञान 87. संतोषी नर-सदा सुखी 136. आओ ! पर्युषण-प्रतिक्रमण करें 39. आहार विज्ञान 88. आओ ! पूजा पढाएँ! 137. सुखी जीवन की चाबियाँ 40. How to live true life? 89. शत्रुजय की गौरव गाथा 138. पांच प्रवचन 41. भक्ति से मुक्ति (पांचवी आवृत्ति) 90. चिंतन-मोती -139. सज्झायों का स्वाध्याय 42. आओ! प्रतिक्रमण करे 91. प्रेरक-कहानियाँ 140. वैराग्यशतक 43. प्रिय कहानियाँ 92. आई वडीलांचे उपकार 141. गुणानुवाद 44. अध्यात्मयोगी पूज्य गुरुदेव 93. महासतियों का जीवन संदेश 142. सरलकहानियाँ 45. आओ! श्रावक बने 94. श्रीमद् आनंदघनजी पद विवेचन 143. सुख की खोज 46. गौतमस्वामी-जंबुस्वामी 95. Duties towards Parents 144. आओ! संस्कृत सीखें! भाग-1 47. जैनाचार विशेषांक 96. चौदह गुणस्थान 145. आओ! संस्कृत सीखें! भाग-2 48. हंस श्राद्ध व्रत दीपिका 97. पर्युषण अष्टाह्निका प्रवचन 146. आध्यात्मिक का पत्र 49. कर्म को नहीं शर्म 98. मधुर कहानियाँ 147. शंका समाधान भाग-III RAJUL 25010056,25010863