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आओ संस्कृत सीखें वैष्णव = विष्णु को माननेवाला (पं.) जिह्वाग्र = जीभ का अग्र भाग (नपुं.) शिशिर = शिशिर ऋतु (पुं.)... वचन = वचन (नपुं.) शैल = पर्वत (पुं.)
तत्त्व = सारभूत वस्तु (नपुं.) .. तडाग = तालाब (पु.)
त्रैलोक्य = तीन लोक (नपुं.) दीपक = दीपक (पुं.)
प्रभात = प्रातःकाल (नपुं.) धर्मसंग्रह = धर्म का संग्रह (पुं.) माधुर्य = मधुरता (नपुं.) प्रदोष = संध्या (पुं.)
हलाहल = जहर (नपुं.) भ्रमर = भौंरा (पुं.)
एकत्र = एक जगह (अव्यय) रवि = सूर्य (पुं.)
सर्वत्र = सब जगह (अव्यय) विभव = धन (पुं)
प्रणत = नमा हुआ (प्र+नम्+त) (भू.कृ.) सुपुत्र = अच्छा पुत्र (पुं.)
शीत = ठंडा (विशेषण) स्पर्श = स्पर्श (पुं.)
स्थिर = स्थिर (विशेषण) हरि = विष्णु (पुं.)
अनित्य = नाशवंत (विशेषण) माया = कपट (स्त्री)
कर्तव्य = करनेयोग्य (विशेषण) वार्ता = बात (स्त्री)
खज = लंगडा (विशेषण) रमा = लक्ष्मी (स्त्री)
नित्य = हमेशा (विशेषण) जिह्वा = जीभ (स्त्री)
शाश्वत = स्थायी (विशेषण) कुकुम = कुंकुम (न.)
संनिहित = निकट रहा हुआ (विशेषण) चित्त = मन (नपुं.)
सम = समान (विशेषण) पद्म = कमल (नपुं.)
समान = समान (विशेषण) माणिक्य = माणक (नपुं.) हीन = कम (विशेषण) मौक्तिक = मोती (नपुं.)
धातु अव + गम् = जानना
क्षल् = धोना (गण 10, परस्मैपदी) भज् = भजना (गण 1 उभयपदी) शुष् = सूखना (गण 4, परस्मैपदी)
इकारांत नपुं-वारि के रूप वारि वारिणी | वारीणि वारि | वारिणी | वारीणि