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7.
आओ संस्कृत सीखें
उस क्रिया को संबंधक भूत कृदंत का प्रत्यय लगता है । ___ त्वा और तुम् प्रत्ययवाले कृदन्त अव्यय कहलाते हैं | 5. सकर्मक धातु को भूतकाल में कर्मणि प्रयोग में त (क्त) प्रत्यय लगकर
कर्मणि भूत कृदन्त होता है और वह कर्म का विशेषण बनता है । जि + त = जित रामेण रावणो जितः। राम द्वारा रावण जीता गया । अकर्मक धातु को भूतकाल में भावे प्रयोग में त (क्त) प्रत्यय लगकर भावे भूत कृदन्त होता है और उसका नपुंसक लिंग एक वचन में ही प्रयोग होता है | भू + त = भूत दिवसेन भूतम् दिवस हुआ । रामेण जितम् = राम द्वारा जीता गया । गति अर्थवाले धातु और अकर्मक धातुओं को भूतकाल में कर्तरि प्रयोग में त (क्त) प्रत्यय लगकर कर्तरि भूत कृदन्त भी होता है और वह कर्ता का विशेषण बनता है । उदा. सृ + त = सृत
कूर्मः समुद्रं सृतः- कछुआ समुद्र की ओर गया । दिवसो भूतः- दिवस हुआ | रामो जित:- राम जीता गया |
शब्दार्थ कोषाध्यक्ष = भंडार का अधिकारी बीज = बीज (नपुं.) गज = हाथी (पुं.)
सत्यपुर = सांचोर (नपुं.) निष्क = सोना मोहर (पुं.) हस्तिनापुर = हस्तिनापुर (नपुं) पान्थ = मुसाफिर (पुं.) लंका = लंका नगरी (स्त्री) प्रवास = यात्रा (पुं.)
व्याधित = रोगी (विशेषण) औषध = दवाई (नपुं.) मृत = मरा हुआ (भूत कृदंत) दुग्ध = दूध (नपुं.)