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________________ आओ संस्कृत सीखें 1273 5. सुहृदो ज्ञातयः पुत्रा, भ्रातरः पितरावपि । प्रतिकूलेषु भाग्येषु, त्यजन्ति स्वजनं खलु ।। 6. लुब्धो न विसृजत्यर्थं, नरो दारित्र्यशङ्कया । दाता तु विसृजत्यर्थ, तयैव ननु शङ्कया ।। 7. धर्मार्थकाममोक्षाणा-मारोग्यं मूलमुत्तमम् । रोगास्तस्याऽपहर्तारः, श्रेयसो जीवितस्य च ।। 8. ऋणकर्ता पिता शत्रुः, पुत्रः शत्रुरपण्डितः ।। अप्रियस्य च पथ्यस्य, वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।। पाठ-39| संख्या वाचक नाम एक = एक (सर्वनाम) विंशति = बीस (स्त्रीलिंग) द्वि = दो (सर्वनाम) त्रिंशत् = तीस (स्त्रीलिंग) त्रि= तीन (विशेषण) चत्वारिंशत् = चालीस (स्त्रीलिंग) चतुर् = चार (विशेषण) पञ्चाशत् = पचास (स्त्रीलिंग) पञ्चन् = पाँच षष्टि = साठ (स्त्रीलिंग) षष् = छह सप्तति = सित्तर (स्त्रीलिंग) सप्तन् = सात अशीति = अस्सी (स्त्रीलिंग) अष्टन् = आठ नवति = नब्बे (स्त्रीलिंग) नवन = नौ शत = सौ (पु., नपुं.) दशन् = दश सहस्र = हजार (नपुं.) एकादशन् = ग्यारह लक्ष = लाख (स्त्री.नपुं.) नवदशन् = उन्नीस कोटि = करोड़ (स्त्रीलिंग) 1. एक और द्वि के रूप सर्वनाम के रूप में आ गए हैं । 2. त्रि के रूप इकारांत पुंलिंग-नपुं. लिंग के साथ आ गए हैं । 3. एक द्वि, त्रि और चतुर् के रूप तीनों लिंगों में अलग अलग होते हैं | 4. न अंतवाले संख्यावाचक नाम, षष्, अस्मद् और युष्मद् अलिंग है । अर्थात् तीनों लिंगों में इनके रूप एक समान हैं |
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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