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________________ आओ संस्कृत सीखें चाहिए | 16. कोई भी (चीज) स्वभाव से अच्छी होती है, या खराब होती है, (मगर) जो चीज जिसे अच्छी लगती हो, वह (चीज) उसके लिए अच्छी है । 17. जिस देश में सन्मान नहीं, आजीविका नही, भाई नहीं, कोई भी विद्या की प्राप्ति नहीं, उसे उस देश को छोड़ देना चाहिए । 18. समझदार मनुष्य को पीड़ा करनेवाले तीक्ष्ण शत्रु को, तीक्ष्ण शत्रु द्वारा उखाड़ देना चाहिए, जैसे सुख के लिए तीक्ष्ण काँटे से तीक्ष्ण काँटे को निकालते हैं । 165 19. पंडित एक पाँव से चलता है और एक पाँव से खड़ा रहता है, दूसरी जगह देखे बिना पहला स्थान नहीं छोड़ना चाहिए । पाठ-31 हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 1. देवदत्त ! त्वमतो गच्छ मा तिष्ठ । 2. जनाः ! सत्यं वदत, लोभं त्यजत । 3. क्षुधितायान्नं यच्छत, तृषिताय च जलं यच्छत । 4. यदि कीर्तिमिच्छथ तर्हि दीनानामापदं हरत । 5. छात्र र्विद्या लभ्यताम् । 6. अहं देवालयं गच्छानि देवं च पूजयानि । 7. सर्वत्र जनाः शान्तिं लभन्ताम् । 8. अस्माभिः शत्रूणामप्यपराधाः क्षम्यन्ताम् । 9. युष्मानं धर्मस्य लाभो भवतु । 10. हे जनाः ! सत्यं मृगयध्वम् । 11. यूयं धर्ममाचरत, पापं नाचरत । 12. युष्माभिः छात्रेभ्यः पुस्तकान्यर्प्यन्ताम् । 13. अहं संसार कारागृहाद् मुच्यै ।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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