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आओ संस्कृत सीखें
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शम् (शाम्)-ग.4.प. = शांत होना । | स्पृश् - ग.6.प. = स्पर्श करना, छूना । शिक्ष-ग.1.आ. = सीखना । स्पृह-ग.10.५ = स्पृहा करना, चाहना । शुष्-ग.4.प. = सूखना ।
स्फुट-ग.6.प. = खिलना, तूटना । शुच्-ग.1.प. = शोक करना । स्फुर्-ग.6.प. = कंपित होना, फरकना। शुभ-ग.1.आ. = शोभना ।
स्मृ. ग.1.प. = स्मरण करना, याद करना। श्रम् (श्राम्)-ग.4.प. = थक जाना । स्वाद्-ग.1.आ. = चखना, स्वाद लेना, वि+श्रम् = विश्राम करना ।
खाना । श्रि.ग.1.उभ. = आश्रय लेना । हस्-ग.1.प. = हँसना ।
आ+श्रि = आश्रय लेना, सेवा करना । ह्व-ग.1.उभ. = हरण करना, ले लेना । श्लाघ-ग.1.आ. = प्रशंसा करना । वि+ह्व = विहार करना, जाना । सद्(सीद्)-ग.1.प. = दुःखी होना । | परि+ह्व = त्याग करना । प्र+सद् = प्रसन्न होना ।
उद्+ह = निकालना । सान्त्व् ग.10.प. = शांत करना, खुश ढे (वय्)-ग.1.उभ. = बुलाना । करना ।
आ+ढे = आह्वान करना । सिच् (सिञ्च)-ग.6.उभ. = सिंचन क्षम् (क्षाम्)-ग.4.प. = क्षमा करना, करना ।
माफ करना । सिध्-ग.4.प. = सिद्ध होना । क्षर-ग.1.प. = झरना, गिरना, टपकना। सृ -ग.1.प. = जाना, सरकना, हटना । क्षल्-ग.10.प. = धोना । प्र+सृ = फैलना ।
क्षि-ग.1.प = क्षय होना, क्षीण होना। अनु+सृ = अनुसरण करना ।
क्षुभ-ग.4.प. = घबराना, क्षोभ पाना। सृज् - ग.6.प.= सर्जन करना, बनाना । वि+सृज् = विसर्जन करना, देना । उद्+सृज् = त्याग करना । सेव-ग.1.आ. = सेवा करना । स्था (तिष्ठ)-ग.1.प. = खड़ा रहना, स्थिर रहना। प्र+स्था-ग.1.आ. = प्रयाण करना, जाना। उद्+स्था = खड़ा होना ।