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________________ आओ संस्कृत सीखें -122 : | 4. द्विषे द्विड्भ्याम् । द्विड्भ्यः । | 5. । द्विषः । द्विड्भ्याम् । द्विड्भ्यः । | 6. | द्विषः । द्विषोः । द्विषाम | द्विषि | द्विषोः । द्विट्सु 5. पदान्त ट वर्ग के बाद में रहे त वर्ग और स् का ट वर्ग और ष् नहीं होता है। उदा. द्विट्सु - यहाँ ष् नहीं होगा | धातु युज = योग्य होना (गण 4, आत्मनेपदी) लङ्घ = उल्लंघन करना (गण 1, आत्मनेपदी) शब्दार्थ व्यंजनात नाम चन्द्रमस् = चंद्रमा (पुंलिंग) सर्पिस् = घी (नपुं.लिंग) द्विष् = दुश्मन (पुंलिंग) क्षुध = क्षुधा (स्त्रीलिंग) भूभुज = राजा (पुंलिंग) निग्रह = शिक्षा (पुं.लिंग) वणिज् = व्यापारी (पुंलिंग) सार्थवाह = बडा व्यापारी (पुं.लिंग) ककुभ् = दिशा (स्त्रीलिंग) आस्पद = स्थान (नपुं.लिंग) वाच् = वाणी (स्त्रीलिंग) पान = पीना वह (नपुं.लिंग) अप्सरस् = अप्सरा (स्त्रीलिंग) भक्षण = खाना (नपुं.लिंग) पयस् = पानी (नपुं.लिंग) नूनं = निश्चय से (अव्यय) आयुस् = आयुष्य (नपुं. लिंग) मिथ्या = व्यर्थ (अव्यय) । यशस् = यश (न.लिंग) नाम = वास्तव में (अव्यय) वचस् = वचन (नपुं.लिंग) सम = समान (विशेषण) सदस् = सभा (नपुं.लिंग) वेदना = पीड़ा, दुःख (स्त्रीलिंग) संस्कृत में अनुवाद करो 1. व्यापारी घी को अपने गाँव से पाटण ले जाता है | 2. कवियों की वाणी में मधुरता होती है । 3. घी खाने से आयुष्य बढ़ता है । 4. भूख के समान दुःख नहीं है । 5. हिरण दिशाओं को लांघते हैं ।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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