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आओ संस्कृत सीखें
पाठ-40
हिन्दी का संस्कृत अनुवाद
1. इमे द्वे नगर्यावतिशोभने स्तः तत एनयोर्बहवो सैनिका वसन्ति ।
2.
आगच्छ गच्छ उत्तिष्ठोपविश वद मौनं भज इति धनिका याचकैः क्रीडन्ति ।
3. एतयोर्द्वयो वृक्षयो र्य एते विहगा दृश्यन्ते तेऽस्मिन् पञ्जर आसन् वयमेनान्
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पञ्जरादमुञ्चाम |
4. यद्यहं प्रजां पालयेयं तर्हि प्रजा मामनुसरेत् ।
5. धर्मो वो धनं यच्छतु नो ज्ञानम् ।
संस्कृत का हिन्दी अनुवाद
1. जिस कारण से एक सेवक होता है और दूसरा स्वामी होता है, एक भिक्षा मांगता है और दूसरा भिक्षा देता है ।
3.
2. इत्यादि अच्छी तरह से यहाँ धर्म अधर्म के बड़े फल को देखकर भी जो न माने उस धीमान् का कल्याण हो ।
स्वभाव से अति भयंकर इस असार संसार में, समुद्र में तरह दुःख की सीमा नहीं है ।
जलजंतुकी
गज, भुजंग और पक्षियों के बंधन को, चन्द्र सूर्य के ग्रहपीड़न को और बुद्धिमान की दरिद्रता को देखकर, अहो ! विधि बलवान है, इस तरह मेरी मति है ।
4.
5. सह्यपर्वत के उत्तर भाग में जहाँ गोदावरी नदी है, वह प्रदेश इस समस्त पृथ्वी में मनोरम है ।
6. कौन किसको हँसता है ? कौन दो किन दो को हँसते हैं ? कौन किसको हँसते हैं ? स्त्री के होठ, पल्लव को देखकर हँसते हैं, दो हाथ दो कमलों को देखकर हँसते हैं, और दाँत कलियों को देखकर हँसते हैं ।
7. सुख का अर्थी विद्या को छोड़ता है, विद्या का अर्थी सुख को छोड़ता है, सुख के अर्थी को विद्या कहाँ से ? और विद्या के अर्थी को सुख कहाँ से ?
8. विद्याभ्यास और विचार समान को शोभते हैं । वैसे विवाह और विवाद समान को ही