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आओ संस्कृत सीखें
2132 2. शीलं मे स्वम् शीलं मम स्वम् । 3. धर्मो मा रक्षतु धर्मो मां रक्षतु | किसी के बारे में कुछ कहने के बाद पुनः उसी के संबंध में कुछ कहना हो तो उसे अन्वादेश कहते हैं । अन्वादेश हो तब वस् नस् आदि नित्य होते हैं । उदा. युवां शीलवन्तौ ।
तद् वां गुरवो मानयन्ति । 6. अन्वादेश में द्वितीया विभक्ति के प्रत्यय तृतीया एक वचन और ओस् प्रत्यय पर एतद् और इदम् का एनद् आदेश होता है ।
द्वितीया विभक्ति पुंलिंग एनम् एनौ एनान् स्त्रीलिंग एनाम् एने एनाः ।
तृतीया विभक्ति पुंलिंग- एनेन स्त्रीलिंग
षष्ठी सप्तमी - द्वि वचन पुंलिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग-एनयोः उदा. सुशीलौ एतौ
तद् एनौ गुरवो मानयन्ति । एक पद धातु और उपसर्ग तथा समास में जहां संधि होती हो, वहाँ अवश्य करनी चाहिए क्योंकि वहाँ विराम लेने का नहीं है। उदा. नयति, अपेक्षते, सज्जनः
शब्दार्थ अधर = होठ (पुंलिंग)
निलय = घर (पुंलिंग) अब्धि = सागर (पुंलिंग)
निसर्ग = स्वभाव (पुंलिंग) उलूक = उल्लू (पुंलिंग) घुग्घू पल्लव = कोंपल (पुंलिंग) कोरक = फूल की कली (पुंलिंग) वारिधि = समुद्र (पुंलिंग) ग्रह = राहु आदि ग्रह (पुंलिंग) विहङ्गम = पक्षी (पुंलिंग) दिवाकर = सूर्य (पुंलिंग)
सह्याद्रि= सह्यपर्वत (पुंलिंग)
एनया