Book Title: Aao Sanskrit Sikhe Part 01
Author(s): Shivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ आओ संस्कृत सीखें 1164 - 12. अद्य रात्रौ मेघो वर्षेदपि । 13. यद्यहं सत्यं वदेयं तर्हि नृपेण कारागृहाद् मुच्येयं । 14. अथाहमधर्म नाचरेयमिति स नृपो धर्माचार्याया कथयत् । 15. अथ युष्माभि र्धनस्य लोभस्त्यज्येत । 16. नृपतयो ब्राह्मणेभ्यो धेनूर्यच्छन्ति । 17. चन्द्र आकाशे प्रकाशेत । 18. अपि रामो रावणेन सह युध्येत । 19. अग्निना तप्तं सुवर्णं द्रवति । 20. मृदो घटा भवन्ति सुवर्णस्य चालङ्कारा भवन्ति । __ संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. असार में से सार लेना चाहिए | 2. अति का सर्वत्र त्याग करना चाहिए । 3. मैं पाप नहीं करूंगा । - 4. हे देवदत्त ! हम दोनों शत्रुजय जायें । 5. प्राणों के नाश में भी धर्म नहीं छोड़ना चाहिए | 6. देवदत्त की पीड़ा (व्याधि) नष्ट हो, यदि वह पथ्य का सेवन करे तो । 7. मानव सुख का अनुभव करेगा यदि वह अधर्म न करे तो । 8. यहाँ मुनि के निवास स्थान पर हम जाएँ। 9. शक्य है कि देवदत्त व्यापार द्वारा बहुत सा धन कमाए । 10. सचमुच, किया हुआ संग्रह लोक में अवसर आने पर लाभदायक होता 11. सचमुच तीक्ष्ण हथियार होने पर हाथ से कौन प्रहार करेगा ? 12. सचमुच एक भी कला चित्त हर ले तो सभी कलाएँ चित्त का हरण क्यों न करें ? 13. भोजन बिना जी सकते हैं, लेकिन पानी बिना नहीं जी सकते । 14. जिस पर राजा प्रसन्न है, उसका सेवक कौन नहीं होगा ? 15. पैसे के दुःख में घबराना नहीं चाहिए, और धर्म को छोड़ना नहीं

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226