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आओ संस्कृत सीखें
अ-सतां निर्दयत्वं स्वभावसिद्धं त्रिषु त्रितयम् । 3. दानं भोगो नाशस्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य । 4. शतेषु जायते शूरः, सहस्रेषु च पण्डितः ।
वक्ता दश-सहस्रेषु, दाता भवति वा न वा ।। 5. योजनानां सहस्रं वै, शनैर्गच्छेत् पिपीलिका | अ-गच्छन् वैनतयोऽपि पदमेकं न गच्छति ।।
पाठ-40 1. क्रियापद के अर्थ में विशेषता बतानेवाले विशेषण पदों के साथ जो
क्रियापद हो, उसे वाक्य कहते हैं |
उदा. धर्मो युष्मान् रक्षतु । 2. कई बार सिर्फ एक क्रियापद भी वाक्य बन जाता है, वहाँ कर्ता आदि
चालू बात पर से समझ सकते हैं ।
उदा. पिब | पीओ। 3. कई बार क्रियापद स्पष्ट न हो तो भी विशेषण पदों से ही वाक्य बन जाता
उदा. शीलं मम स्वम्
शील मेरा धन है । 4. युष्मद् और अस्मद् के सर्वनाम के द्वितीया, चतुर्थी और षष्ठी विभक्ति के
रूप द्वितीया बहुवचन में क्रमशः
वस् और नस् चतुर्थी द्विवचन में क्रमशः
वाम् और नौ षष्ठी एक वचन में क्रमशः
ते और मे द्वितीया एक वचन में क्रमशः
त्वा और मा ये रूप एक वाक्य में पद के बाद विकल्प से होते हैं उदा. 1. धर्मो वो रक्षतु, धर्मो युष्मान् रक्षतु