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आओ संस्कृत सीखें
= बाण (पुं.)
इषु:
ऋषभ = ऋषभदेव (पुं.) गोप
= ग्वाला (पुं.)
जलनिधि = समुद्र (पुं.)
नल = नलराजा (पुं.)
निधि = भंडार (पुं.)
मेरु = मेरु पर्वत (पुं.) लोक = लोग, जगत् (पुं.) विवाद शत्रु = दुश्मन (पुं.)
खेद (पुं.) झगडा
कृपण = लोभी (विशेषण)
=
खरु = कठिन (विशेषण) खल = दुर्जन (विशेषण)
क्रिया = क्रिया (स्त्री) देवता = देवता (स्त्री)
रथ्या =
मोहल्ला (स्त्री)
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शब्दार्थ
शांता = स्त्री का नाम (स्त्री)
अंबु = पानी (नपुंसक)
तीर = किनारा ( नपुं.) परिपीडन = दुःख (नपुं.) प्रवहण = जहाज (नपुं.)
अधुना = अभी (अव्यय) अन्यत्र = दूसरी जगह (अव्यय) किम् = क्या (अव्यय)
दिवा = दिन में (अव्यय) वृथा = व्यर्थ (अव्यय)
पाण्डु = पीला (विशेषण)
जात = जन्मा हुआ (जन् + त) भूत कृदंत विपरीत = उल्टा (विशेषण)
पर = दूसरा (सर्वनाम). गृहीत्वा = ग्रहण करके (भूत कृदंत)
धातुएं तृप् = खुश होना - ( गण 4 परस्मैपदी)
ध्यै (ध्याय) = ध्यान करना (गण 1 परस्मैपदी)
प्र + सृ = फैलना (गण 1 परस्मैपदी ) संस्कृत में अनुवाद करो
1. कवियों के काव्य उनकी कीर्ति के लिए होते हैं । 2. ज्ञान और क्रिया द्वारा मुनि मुक्ति प्राप्त करते हैं । 3. मुनि रात्रि में श्री महावीर का ध्यान करते हैं । 4. धर्म मनुष्य को दुर्गति से बचाता है । 5. सरला ऋषभदेव को वंदन करती है ।
6. इस नदी का पानी बहुत मीठा है । 7. बहुएँ सास को विनय से नमन करती हैं ।