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आओ संस्कृत सीखें 2. एक वाक्य कारण बताता हो और दूसरा वाक्य फल बताता हो तो भविष्यकाल में धातु
को सप्तमी विभक्ति के प्रत्यय विकल्प से लगते हैं । उदा. यदि धर्म आचरे, तर्हि स्वर्गं गच्छेः ।
यदि तू धर्म करेगा तो स्वर्ग में जाएगा । 3. अपनी शक्ति के विषय में संभावना बताते हो तो धातु को सप्तमी विभक्ति के प्रत्यय
लगते हैं। अपि लालचन्द्रो व्याकरणं पठेत् । लालचंद्र व्याकरण पढ़ भी सकता है । अपि समुद्रं बाहुभ्यां तरेत् ।
कदाचित् वह दो भुजाओं के द्वारा समुद्र को तैर सकता है । 4. पदांत में रहे वर्ग के तीसरे व्यंजन के बाद ह आए तो ह के स्थान पर, पूर्व __ के व्यंजन के वर्ग का चौथा व्यंजन विकल्प से होता है । उद् + हरति = उद्धरति - उदहरति
धातुएँ आ + चर् = आचरण करना मूल् = बोना, मूल डालना उद् + ह् = उद्धार करना
(गण 10 परस्मै.) तप = तपना (गण 1 परस्मैपदी) शिक्ष = सीखना (गण 1 आत्मनेपदी) मन् = मानना (गण 4 आत्मनेपदी) सम् + = अच्छी तरह से देखना वर्ज = छोडना (गण 10 परस्मैपदी)
शब्दार्थ कण्टक = कांटा (पुं.लिंग)
आयतन = स्थान (नपुं. लिंग) अत्यय = नाश (पुं.)
अर्थकृच्छ्र = पैसे का दुःक (नपुं. लिंग) देश = देश (पुं.लिंग)
प्रहरण = हथियार (नपुं. लिंग) प्राज्ञ = होशियार (पुं.लिंग) जीवनीय = पानी (नपुं. लिंग) बाहु = हाथ (पुं.लिंग)
अथ = अब (अव्यय) विद्यागम = विद्या की प्राप्ति (पु.लिंग) अपि = भी (अव्यय) व्याधि = रोग (पुं.लिंग)
अति = ज्यादा (अव्यय) सुखार्थ = सुख के लिए (पुं.लिंग) उत = अथवा, या (अव्यय) वसति = रहने का स्थान (स्त्रीलिंग) तर्हि = तो (अव्यय) वृत्ति = आजीविका (स्त्रीलिंग) भोस् = हे (अव्यय)