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आओ संस्कृत सीखें
3. जिस धातु के दो कर्म होते हैं, वह धातु द्विकर्मक कहलाता है । जिसे लक्ष्य में रखकर क्रिया की जाय उसे मुख्य कर्म और मुख्य कर्म को छोड़ क्रिया का प्रभाव जिस पर पड़ता हो, वह गौण कर्म कहलाता है ।
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फल (नहीं जाना) दोनों चैत्र में हैं, अतः धातु अकर्मक है ।
2. देवदत्तस्तण्डुलान् पचति देवदत्त चावल पकाता है यहाँ पकाने की क्रिया देवदत्त में है और पकने की क्रिया चावल में है, अतः धातु सकर्मक है ।
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उदा.
1. याचका नृपं धनं याचन्तेः याचक राजा के पास धन मांगते हैं । 2. गोपो अजां ग्रामं नयतिः गोवाल बकरी को गाँव ले जाता है ।
4. अर्थ बदलने पर कभी सकर्मक धातु भी अकर्मक हो जाता है और अकर्मक धातु भी सकर्मक बन जाता है ।
उदा. किंकरो भारं वहति नौकर भार को वहन करता है । (सकर्मक धातु) नदी वहति नदी बहती है (अकर्मक धातु)
5. कर्म न रखा जाय तो सकर्मक धातु भी अकर्मक हो जाता है ।
उदा.
चैत्रोऽन्नं पचति (सकर्मक) । चैत्रः पचति (अकर्मक) ।
इन दो वाक्यों में धन और अजा मुख्य कर्म हैं और नृप और ग्राम गौण कर्म हैं ।
धातु सकर्मक हो तो कर्मणि प्रयोग होता है और अकर्मक हो तो भावे प्रयोग होता है ।
7. कर्मणि एवं भावे प्रयोग में धातु को आत्मनेपदी के प्रत्यय लगते हैं ।
8.
कर्मणि एवं भावे प्रयोग में आत्मनेपदी के प्रत्यय लगाते समय 'य' प्रत्यय लगाया जाता है ।
ते खाद्यते ।
=
खाद् + य + क्षुभ् + य + ते = क्षुभ्यते ।
कर्मणि एवं भावे प्रयोग में य प्रत्यय लगाते समय दसवें गण के इ प्रत्यय का लोप होता है, परंतु धातु में हुई गुण या वृद्धि कायम रहती है ।