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आओ संस्कृत सीखें
दान = दान हिरण्य = सोना
चक्र = चक्र
1. स्पृह धातु का कर्म विकल्प से
उदा. पुष्पाणि स्पृहयति । पुष्पेभ्यः स्पृहयति ।
2.
नपुंसक नाम सुवर्ण = सोना
सुख = सुख
दुःख = दुःख संप्रदान होता है ।
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क्रोध, द्रोह, ईर्ष्या-असूया अर्थवाले धातु के योग में जिसके प्रति क्रोध होता हो, उसे संप्रदान-चतुर्थी विभक्ति होती है ।
उदा. मैत्राय क्रुध्यति । मैत्राय कुप्यति । मैत्राय दुह्यति ।
3. उपसर्ग पूर्वक क्रुध् -द्रुह धातु हो तो जिसके प्रति क्रोध हो उसे संप्रदानचतुर्थी विभक्ति न होकर कर्म - द्वितीया विभक्ति होती है । उदा. मैत्रमभिक्रुध्यति ।
4. रुचि अर्थ वाले धातु के योग में जिसे रुचि हो उसे चतुर्थी विभक्ति होती है । उदा. जिनदत्ताय रोचते धर्मः ।
संस्कृत में अनुवाद करो
1. मनुष्य आभूषण द्वारा शरीर सजाते हैं ।
2.
धर्म से धन बढ़ता है ।
3.
रथ दो पहियों से चलता है ।
4.
जीव पानी द्वारा जीते हैं ।
5. मैं तुम दोनों के साथ तैरता हूँ ।
6.
7.
8.
हम दो, दो विद्यार्थियों को दो पुस्तकें देते हैं ।
मैं दो पुत्रों के साथ तुमको बार बार नमस्कार करता हूँ ।
धर्म सुख के लिए होता है, दुःख के लिए नहीं ।
हिन्दी में अनुवाद करो
1. जना दुःखेन मुह्यन्ति ।
2. वृद्धो दण्डेन चलति । 3. मित्रेण सह रतिलालो वसति । 4. अहं ताभ्यां सह नगरं गच्छामि ।
5. बाला मोदकैस्तुष्यन्ति ।
6. आवाभ्यां सह वीरं पूजयथ । 7. स त्वया सह पठति मया सह न । 8. श्रीचन्द्रो युष्माभिः सह जेमति ।