Book Title: Vijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Author(s): Pushpadanta Jain, Others
Publisher: Akhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Catalog link: https://jainqq.org/explore/012061/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष 2003-2004 विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका जय वल्लभसी श्री मद् विजया 9वां TATION स्वर्गारोहण वर्ष अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महा समिति Jain Educ & Personal Use Only www.jainelibra og Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ain Edu श्रद्धापुष्प समर्पण फग्गूमल कश्मीरी लाल जैन बरड़ परिवार Vallabhy FOT PRYSIS A Personal Use Private Limited Mfrs: All Kinds of Hosiery Knitted Fabrics Regd. Off.: B-XXIV-353/1, Sunder Nagar, Ludhiana-141 007. Ph.: 2621911, 2621912, 15, 2620855 Fax: 2620689 E-mail: vallabh@satyam.net.in Factory: 1256, Indra Colony, Rahon Road, Ludhiana - 141 007. Ph.: 2630361, 2630554, 2630568, 2633417, 19 Fax: 91-161-2633418. Sandeep Jain Computers inally.org Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊँ अहँ नमः श्रीमद् आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्र-रत्नाकर सूरि सद्गुरुभ्यो नमः नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमों उवज्झायाण नमो लोए सब्बसाहणं एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ़मं हवइ मंगलं ।। "उत्तम जन गुणगान से, उत्तम गुण विकसंत। उत्तम निज संपद मिले, होवे भव का अंत।।" श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव वर्ष 2003-2004 22.09.2003-110-10-2004 Com शुभ सद्प्रेरणा, आशीर्वाद एवं तारक निश्रा वर्तमान गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज शुभाशीष श्रीमद् आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्र-रत्नाकर सूरि पाट परम्परा के आज्ञानुवर्ती आचार्य भगवंत एवं श्रमण-श्रमणी मंडल Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12467 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका प्रकाशन समय श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव वर्ष 2003-2004 Serving Jinshasan 124672 gyanmandir@kobatirth.org सम्पादक मण्डल श्री पुष्पदंत जैन पाटनी श्री सिकन्दर लाल जैन एडवोकेट श्री संजीव जैन दुग्गड़ श्री राजेश जैन लिगा विमोचन समय एवं स्थल श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव वर्ष समापन समारोह 15-16-17 अक्तूबर, 2004 एस.ए. जैन स्कूल, अम्बाला शहर पुस्तक साज-सज्जा मुद्रण Sanjeev 94175-30776 Uath मैगा कम्पयुटर्स 0161-2447848, 3099672 98154-01008 प्रकाशक: अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति लुधियाना Jain Education Interior For Pimls spemonarunconv Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय पुष्पदंत जैन 'पाटनी काल अपने प्रवाह से बिना रुके तथा बिना झुके निरन्तर चलता ही रहता है। भूत, वर्तमान एवं भविष्य की घटनाओं को काल के माध्यम से ही जाना जाता है। जिस प्रकार अनन्त चौबिसियां हो चुकी हैं, अनन्त होने वाली हैं, उसी प्रकार काल भी अनन्त हैं। ज्ञानी भगवन्तों ने काल को जानने के लिए काल चक्र का निर्धारण किया है : (1) उत्सर्पिणी काल :-शक्ति का उत्तरोत्तर विकास। (2) अवसर्पिणी काल :- शक्ति का उत्तरोत्तर हास। इन दोनों के प्रत्येक काल में चौबीस तीर्थंकर भगवंतों का अवतरण होता है। वर्तमान में अवसर्पिणी काल चल रहा है। दोनों कालों को छ: छः भागों में विभक्त किया गया है, इसका रेखाचित्र इसी स्मारिका में दिया गया है। अवसर्पिणी काल के भी छ: भाग हैं, इसके तीसरे और चौथे भाग में चौबीस भगवन्तों का अवतरण हुआ। चौथे काल के अन्तिम दुःखम-सुखम भाग में चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म हुआ। इन्होंने सर्वज्ञता को प्राप्त किया, मानव जाति के कल्याण हेतु तीर्थ की स्थापना की और चौबीसवें तीर्थंकर कहलाए। भगवान के निर्वाण काल के कुछ वर्षों बाद पाँचवां आरा प्रारम्भ हो गया। भगवान् के निर्वाण के पश्चात् इनके शासन को चलाने के लिए श्री सुधर्मा स्वामी पहले पट्टधर हुए। सुधर्मा स्वामी के बाद क्रमशः उनके पट्टधर जम्बू स्वामी, प्रभव सूरि, शयम्भव सूरि, यशोभद्र सूरि, भद्रबाहु सूरि, स्थूलिभद्र आदि पट्टधर हुए इसी प्रकार क्रमांक से 44वें पट्टधर श्री जगच्चन्द्र सूरि हुए, यहाँ से तपागच्छ नाम प्रारम्भ हुआ। यही क्रमांक आगे चलते हुए 62वें पट्टधर गणि श्री सत्य विजय जी हुए, यहां से पीली चादर धारण करने का प्रचलन शुरू हुआ। ____72वें पट्टधर सद्धर्म संरक्षक श्री बुद्धि विजय जी, 73वें न्यायाम्भोनिधि श्री विजयानन्द सूरि (आत्माराम) और 74वें इस ग्रन्थ के चरित्रनायक पंजाब केसरी श्री विजय वल्लभ सूरि जी हुए। इनका जन्म काल वीर निर्वाण से 2396 (ई. सन् 1870), देवलोक गमन काल वीर सम्वत् 2480 (ई. सन् 1954) है। 16 वर्ष की आयु में दीक्षा लेकर 68 वर्ष साधु धर्म का पालन करते हुए 84 वर्ष की आयु भोग कर देवलोक गमन किया। आप एक ऐसे विरले जैन संत हुए हैं, जिन्होंने अपने साधु धर्म का दृढ़ता के साथ पालन करते हुए, मानव जाति के सर्वांगीण विकास की ओर ध्यान दिया। जो समाज के ऊपर उपकार करता है, समाज उन्हीं महापुरुषों को याद करता है। आज इस महापुरुष का निर्वाण हुए 50 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं, इनके उपकारों को पुनः याद करने के लिए इनके बताए हुए आदर्शों को जीवन में अपनाने के लिए और इनका दिव्याशीष प्राप्त करने के लिए चली आ रही अविछिन्न पाट परम्परा के 77वें पट्टधर कोंकण देश दीपक, दृढ़संयमी, महान् तपस्वी, गच्छाधिपति, जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म. ने जैन समाज को विविध मंगलमय कार्यक्रम करने की प्रेरणा दी, इसी प्रेरणा के अन्तर्गत इस स्मारिका ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है। उस जाति को जीवित रहने का अधिकार है, जो अपने आदर्श पूर्वजों के आदर्शों से अपनी अन्तर-आत्मा को प्रकाशित रखती है। जैन समाज में ऐसी अनेक महान विभूतियाँ हो गई हैं, जिनके उपकारों से उऋण होना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव है। उन महान् विभूतियों की असीम कृपा त्याग, संयम, तप एवं कठोर परिश्रम का ही परिणाम है कि आज मेरा लिारी R.३८२००९ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम बड़े गौरव से अपने आपको भगवान महावीर का अनुयायी कहते हैं। ऐसे ही युगवीर श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. के 50वें स्वर्गारोहण वर्ष के सुअवसर पर स्मारिका का प्रकाशन एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। युगपुरुष अपने पार्थिव शरीर से हमारे बीच में नहीं है परन्तु उनके समाज पर किये गये उपकार, उनके आदर्श, उनके अमर संदेश, उनके नाम के साथ अमर ज्योति, निरन्तर हमें ज्ञान के साथ जीवन का मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। प्रस्तुत स्मारिका अज्ञान तिमिर तरणि, कलिकाल कल्पतरु, पंजाब केसरी, युगवीर, जैनाचार्य की महान् सेवाओं के प्रति एक विनम्र श्रद्धांजलि है। महापुरुष कुछ लेने के लिए समाज को नहीं देते, वे तो निःस्वार्थ भाव के साथ “सव्वी जीव करूं जिनशासन रसि" के उद्देश्य को सामने रखकर, समाज के कल्याण के लिए कार्य करते हैं। समाज ऐसे महापुरुषों के उपकारों से कभी भी उऋण नहीं हो सकता है फिर भी इस स्मारिका के माध्यम से इस महापुरुष के श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। यही गुरु ऋण मुक्त होने का छोटा सा प्रयास है। ___स्मारिका में प्रमुख रूप से वर्तमान पट्टधर गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की शुभ सप्रेरणा से “अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति” द्वारा स्वर्गारोहण वर्ष भर में किये गये विविध मंगलमय कार्यक्रमों का विवरण है। इसी के साथ प.पू. गुरुवर के महान् व्यक्तित्व एवं कृतित्व का निरूपण करते विद्वद्जनों के लेख हैं, साथ ही जैन साहित्य और दर्शन के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण शोध पर निबन्ध भी प्रस्तुत हैं। स्मारिका का लक्ष्य प.पू. गुरुदेव के संदेशों को प्रसारित करते हुए उनके आदर्शों के प्रति समाज को जागरूक करना है, उत्तम जन गुणगान से, उत्तम गुण विकसन्त। उत्तम निज सम्पद मिले, होवे भव का अंत। अर्थात् महापुरुषों का गुणगान करने से अपने अन्तरात्मा में उत्तम गुणों का विकास होता है और निज सम्पदा, आत्म सम्पदा उपलब्धि एवं आत्मानुभूति प्राप्त होती है, जिससे भव भ्रमण का अंत होता है और मोक्ष पद की प्राप्ति होती है। पूज्य गुरुदेव का नाम घर-घर में गूंजे “इस नाम में ऐसी बरकत है जो चाहता हूँ सो पाता हूँ" उनके बताए हुए मार्ग के अनुसार हम अपने परम लक्ष्य मोक्ष की ओर अग्रसर बनें, इन्हीं भावनाओं के साथ इस "स्मारिका" का प्रकाशन हो रहा है। स्मारिका प्रकाशन के क्रम में हमारे श्रमण, श्रमणीवृंद एवं सहयोगी लेखक, धर्मप्रेमी बन्धुओं से पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हुई है, बहुत सी सामग्रियां कुछ तो समय के पश्चात् आने के कारण तथा कुछ स्थानाभाव के कारण हम प्रकाशित नहीं कर पाये हैं, अतः उन अप्रकाशित सामग्रियों के लेखकों से क्षमाप्रार्थी हैं। स्मारिका की समस्त सामग्रियां उनके प्रणेताओं के स्वतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति हैं। सम्पादक अथवा प्रकाशक का उन विचारों के प्रति कोई आग्रह नहीं है। हमें इस प्रयास में जिन महानुभावों का सहयोग प्राप्त हुआ है। हम उनके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी Forvale & Penal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० विषय 1. 2. 3. 4. 5. 17. 18. महामंत्र नवकार सम्पादक मंडल सम्पादकीय अनुक्रमणिका 19. 20. 6. 7. मंगल संदेश 8. शुभ कामनाएँ 9. अध्यक्ष की कलम से 10. आभार 11. महासमिति कार्यकारणी के सदस्य 12. श्री वल्लभ गुरूसंक्षिप्त चरित्र स्तुति 13. वयोवृद्ध मुनिराज की दृष्टि में विजय वल्लभ 14. तपागच्छ की उत्पत्ति एवं पट्टावली 15. मेरी दृष्टि में विजय वल्लभ 16. विश्व चेतना के युग पुरुष परमात्मा एवं पाट परम्परा का छाया चित्र स्मारिका चरित्र नायक का छाया चित्र गुरु भक्ति ( कविता ) करूणा सागर विजय वल्लभ श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी .... साधार्मिक भक्ति श्री विजय वल्लभ कर्मठ कार्यकर्ता 21. श्रद्धा पुष्प (कविता ) 22. विश्व चेतना के मनस्वी संत अनुक्रमणिका लेखक 23. उपकारी गुरुदेव 24. वल्लभ तेरे चरणों में (कविता) 25. दीर्घ द्रष्टा 26. क्रान्तिकारी जैनाचार्य गुरु समर्पित जैनाचार्य 27 28. स्मारिका प्रकाशन के सहायक स्तम्भ 29. विविध मंगलमय कार्यक्रमों का शुभारम्भ 30. श्री आत्म वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल स्थापना 31. विजय वल्लभ रथ यात्रा एवं स्पैशल यात्रा ट्रेन 32. स्मारिका प्रकाशन के सहायक स्तम्भ 33. जिन पूजा प्रतिस्पर्धा 34. चलो जिन मन्दिर चलें 35. भाषण प्रतियोगिता 36. निबन्ध प्रतियोगिता 37. संगीत प्रतियोगिता 38. प्रकाशन -'वल्लभ काव्य सुधा' 39. सदस्य स्वागत समिति 40. समापन समारोह 41. गुरु गुणानुवाद प्रेरक गच्छाधिपति जी का छाया चित्र ALLAH! ६० पुष्प दन्त जैन पाटनी, सम्पादक 'सत्य दर्शन' गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि जी आचार्य महाप्रज्ञ कश्मीरी लाल जैन बरड़ सिकन्दर लाल जैन एडवोकेट मुनि श्री पूण्य विजय जी म० प्रवर्तक श्री कान्ती विजय जी म० साभार- सद्धर्म संरक्षक गच्छाधिपति श्री रत्नाकर सूरि जी प. पू. कार्यदक्ष आचार्य जगत् चन्द्र सूरि जी आचार्य श्रीमद् विजय प्रकाश सूरि जी मुनि ऋषभ चन्द्र विजय जी पन्यास प्रवर श्री राज रतन विजय जी साध्वी सुमति श्री जी साध्वी निर्मला श्री जी साध्वी रक्षित प्रज्ञा श्री जी साध्वी अमित गुणा श्री जी साध्वी सौम्य प्रभा श्री जी साध्वी सुविरति श्री जी म. साध्वी पुनीत यशा श्री जी साध्वी पियुष पूर्णा श्री जी विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका पू.सं. 1 2 3-4 5-6 7 8 9-10 11 12-13 14 15 16 17 18-28 29-30 31 32 33-34 35 36-38 39-40 41-45 46 47 48 49-50 51-52 53-62 63-66 67-70 71-118 119-128 129-130 131-133 134-136 137-138 139-140 141-143 144-146 147-149 150 5 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० विषय 42. गुरुदेव विजय वल्लभ सूरि जी का हस्त रचित चित्र 43. परम् पूज्य गुरुदेव के दुर्लभ चित्र 44. धर्म 45. 46. 47. 48. समाजाभिमुख संत 49. विश्व वल्लभ 50. मेरे वल्लभ ( कविता ) 51. लब्धि सम्पन्न विजय वल्लभ 52. धर्म या धर्म का भ्रम आत्मा, कर्म और प्रतिक्रमण युगवीर वल्लभ का राष्ट्र, समाज उन्नति में योगदान श्री वल्लभ निर्वाण कुण्डली गायन 53. मान पत्र 54 55. 56. गुरु वल्लभ का युग हम 57. मरू नगरी एवं पंजाब केसरी 58. आचार्य के 36 गुणों से युक्त गुरु वल्लभ 59. प्रतिज्ञाधारी आचार्य एक अनोखी विभूति आचार्य श्री विजय वल्लभ 60. गुरु वल्लभ के सपनों का जैन समाज 61. युग पुरुष (कविता) 62. युगवीर वल्लभ 63. श्री वल्लभ गुरु गायन (कविता) 64. गुरु वल्लभ एक आदर्श जीवन 65. जग वल्लभ 66. 67. 6 जन वल्लभ काल रेखा चित्र गुरु मन्दिर लुधियाना में भव्य आयोजन 69. गुरुदेव ने कहा था 70. स्मारिका प्रकाशन के सहायक स्तम्भ 71. जैन दर्शन अभिज्ञानम् 72. गुरू वल्लभ प्रशस्तिः 73. Man of A Noble Character 74. 75. साधु की समाचारी 76. गुरूदेव के अविस्मरणीय संस्मरण 77. संक्रान्ति प्रारम्भिक इतिहास 78. त्रिदिवसीय समापन समारोह कार्यक्रम 79. रंगोली 80. 81. 82. 83. An Ideal Character श्रावक और उसका धर्म शुद्धि पत्र प.पू. गुरूदेवों का गुणगान स्मारिका प्रकाशन के सहायक स्तम्भ lucam लेखक गच्छाधिपति जी द्वारा साभार त्रिशष्ठि श्लाघा पुरुष चरित्र आशीष जैन जयपुर पुष्प जैन पाटनी बी.सी. जैन भाभू डॉ. रजनी कान्त एस. शाह जे. एफ. बाफना स्वतन्त्र कुमार बलदेव राज जैन हस्तीमल कोठारी मेम्बरान म्युनिसिपल कमेटी गुजरांवाला कमलेश जैन लिगा बसन्ती लाल लसोड अरविंद जैन आम्बालवी देवेन्द्र कुमार कोचर संकलन पुष्प जैन पाटनी राजेश जैन लिगा अमृत जैन दिल्ली कला कुमार सुधीर जैन मुन्हानी हस्ती मल कोठारी निशा जैन हस्तीमल कोठारी जवाहर चन्द्र पटनी साभार मान चित्रावली विवरण मुख्य सम्पादक संकलित विष्णु दत्त शर्मा शंकर दत्त शास्त्री (हिन्दी अनुवाद सूरज कांत शर्मा ) शंकर दत्त शास्त्री (हिन्दी अनुवाद - सूरज कांत शर्मा ) शिखा जैन लविना जैन साभार त्रिशष्ठि श्लाघा पुरूष चरित्र धनराज जैन, दिल्ली रघुवीर कुमार जैन, जालन्धर विवरण मुख्य सम्पादक गच्छाधिपति श्री जी द्वारा प.पू. कार्यदक्ष आचार्य जगत् चन्द्र सूरि जी पुष्प जैन पाटनी विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका sonal Use Onli पू.सं. 151 152-159 160-162 163-165 166-167 168-169 170-173 174-175 175 176-177 177 178-179 180-181 182-185 186-188 189-190 191-193 194 195-201 202 203-204 204 205-206 207 208-209 210 211-214 215 216-223 224 225 226-227 228-229 230-231 232-233 234-235 236-249 250-251 252-254 254 255 256-264 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो जिणाणं तस्मै श्री गुरूवे नमः DEduonlinternational FC Private Pomonal Use Only sawww.jainelibrary.om Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस स्मारिका के चरित्रनायक कलिकाल कल्पतरु, अज्ञान तिमिर तरणि, युगवीर पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. www.janbrary.org Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल संदेश वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म. श्रीमद् विजय वल्लभ गुरुवर की अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में स्मारिका ग्रन्थ तैयार होने जा रहा है। स्मारिका ग्रन्थ हमारे गुरुवर जी के स्वर्गारोहण हुए 50 साल व्यतीत हुए। वल्लभ गुरु जी के समाज ऊपर, हमारे साधु-संस्था पर क्या उपकार किया है ? उसका लेखा-जोखा देखने का सुनहरी सुअवसर आया है। साधू यदि साधूता में रहकर श्रमण संस्था के लिए या श्रावक के उपयोग के लिए जो भी स्व-पर तारक भावना साधुता में होती है, साध्वाचार में जिनाज्ञा धारक होवे, साध्वाचार में अपने शिष्य-प्रशिष्य में भी आचार-संहिता का यथार्थ पालन करे व करावे। ऐसे हमारे चरित्रनायक की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी का ग्रन्थ में दो शब्द : "2002 का चातुर्मास पंजाब की पुण्यधरा शिरोमणी संघ लुधियाना में मेरा चातुर्मास हुआ। पर्युषण पर्व के पश्चात् दरेसी स्कूल में धार्मिक पाठशाला के आयोजन में पंजाब के गणमान्य प्रसिद्ध उद्योगपति श्री जवाहर लाल जी ओसवाल से बात हुई। आगामी एक वर्ष पूर्व परम पूज्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष आ रहा है। उसकी उजवणी अच्छी तरह से होनी चाहिए। श्री जवाहर लाल जी ओसवाल ने कहा कि गुरुदेव आप जैसे फरमाते हो, वैसे ही स्वर्णशताब्दी का आयोजन बनेगा। बस लुधियाना से ही हमारी विचारधारा चल पड़ी। सन 2003 का चातुर्मास अम्बाला शहर में हुआ। प्रवेश के पश्चात् अर्द्धशताब्दी की रूप रेखा बताते हुए ट्रस्टीगण को सूचित किया। अम्बाला शहर के प्रधान श्रीसंघ श्री कीर्ति प्रसाद जी आदि ट्रस्टी मण्डल बात को स्वीकार करते हुए शिक्षण संस्था से विचार विमर्श करके मेरी जो भावना थी, अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में श्री आत्म-वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना की भावना बात करते ही ट्रस्टीगण ने मूर्त स्वरूप दे दिया। नक्की हो गया कि गुरुदेव जी के आदेशानुसार जैन कॉलेज के अन्दर यह कार्य आरम्भ किया जाए। आसोज वदि ग्यारस के दिन अर्द्धशताब्दी वर्ष की शुरूआत में प्रथम गुरुकुल की स्थापना विधिवत् हो गई। संक्रान्ति महोत्सव पर Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्द्धशताब्दी मनाने हेतु श्री कश्मीरी लाल जी, श्री सिकन्दर लाल जी, श्री राजेन्द्र पाल जी, श्री देवेन्द्र कुमार जी, श्री पुष्पदन्त जी आदि से विचार विमर्श करते हुए अर्द्धशताब्दी की समिति बनाई जाए। अखिल भारतीय गुरु विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति में श्री कश्मीरी लाल जी को प्रधान बनाकर बाकी की समिति का गठन करने के लिए कहा। उत्तरी भारत के प्रत्येक नगर के सदस्य समिति में शामिल किये गये। इस कमेटी ने अखिल भारतीय अर्द्धशताब्दी महासमिति का रूप धारण कर लिया। दूसरे नम्बर में यही अनुसंधान में विजय वल्लभ रथ का भव्यातिभव्य रथ का आयोजन बनाया। जम्मू से कोइम्बट्रर तक रथ का भ्रमण इसी हेतु था। प्रचार-प्रसार अर्द्धशताब्दी की जानकारी के रूप में किया गया। जिसे लोग आज भी याद कर रहे हैं। तत्पश्चात् गुरु वल्लभ जी के द्वारा रचित जिन पूजा, स्तवन, सज्झाए, थुई उसका भी भिन्न-भिन्न शहरों के मण्डलों की व सदस्यों के प्रतियोगिता के रूप में आयोजन सम्पन्न हुआ। वल्लभ गुरु जी के जीवन आधारित भाषण प्रतियोगिता एवं निबन्ध स्पर्धा हुई। गुरुदेव जी 84 वर्ष आयु के उपलक्ष्य में 84 दिन प्रत्येक व्यक्ति जिन पूजा करे। संक्रान्ति एक दिन पूर्व संक्रान्ति भक्त हमारे साथ प्रतिक्रमण एवं सामायिक करते हुए गुरु भक्ति का परिचय दिया और अन्त में तीन या चार दिन का स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी समारोह होने जा रहा है, उसमें जबसे संक्रान्ति श्री वल्लभ गुरु जी द्वारा प्रारम्भ हुई, तब से आज पर्यन्त आते हुए संक्रान्ति गुरु भक्तों का समिति ने सम्मानित करने का निर्णय लिया है। इसके साथ जो कोई भाग्यशाली प्रतियोगिता में सम्मिलित हुआ है, उसका भी योग्य सत्कार किया जाये, ऐसा आयोजन बना है। इसी रूप में 50 वर्ष पूर्व गुरुदेव जी ने हमारे ऊपर जो उपकार किया था, वह आज भक्ति स्वरूप भक्तों का हृदय कमल विकसित हो गया है। यह है अर्द्धशताब्दी की पुर्णाहूति की रूप रेखा। यह सारा कार्य अर्द्धशताब्दी महोत्सव स्मारिका ग्रन्थ तक पहँचते समापन होता है। इस सारे कार्य का अखिल भारतीय स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति को श्रेय जाता है। मेरा आशीर्वाद है, ऐसे ही देव-गुरु-धर्म प्रति निष्ठा रखते हुए आगे बढ़ें, अपना-सबका कल्याण होवे, यही शुभ भावना और मैंने एक वर्ष पूर्व समुदायवर्ती साधु-साध्वी को पत्र से सूचित किया था कि यह हमारा वर्ष वल्लभ गुरु जी की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी चलेगा। अपने सभी को वर्ष भर विभिन्न प्रकार के आयोजनों द्वारा गुरु भक्ति का आयोजन रूप में गुरुदेव जी की संस्थाओं के ट्रस्टी गणों को जागृत कर संस्था में उन्पता होवे, सूचित कर संघ की शक्ति अनुरूप कार्य करवा कर या गुणानुवाद कर-कर भी शताब्दी का कार्य कर सकते हैं। मैंने प्रत्येक संक्रान्ति पर उद्घोषणा की है कि गुरुदेव जी की अर्द्धशताब्दी कहीं भी मनाएंगे, कोई भी मनाएंगे, मैं अनुमोदना ही करूंगा। इसी भाव से भारतवर्ष के अन्दर कहीं भी उजवणी होती होवे, मेरी अनुमोदना ही है। इति शुभम् ली.जाचार्ययिजमरवाकरवरी Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुभकामनाएं । “विजय वल्लभ सूरि उस महान् आत्मा का नाम है, जिसमें वीतरागता का स्पष्ट प्रतिभास था। उन्होंने समता वृत्ति के आधार पर जैन एकता के लिए बहुत प्रयत्न किया। आचार्य तुलसी के प्रति उनके मन में बहुत ही आदर का भाव था। इन दोनों महान आचार्यों ने जैन एकता के लिए जो कार्य शुरू किया था, वह अबाध गति से चलता तो जैन समाज बहुत शक्तिशाली हो जाता। दिल्ली में आचार्य तुलसी, आचार्य देशभूषण जी और आचार्य आनन्द ऋषि जी का जैन एकता के विषय में सहचिन्तन हुआ था। उस समय भी आचार्य वल्लभ सूरि जी की स्मृति सजीव हो गई। एक संयोग की बात है, विजय वल्लभ सूरि का स्वर्गवास मुम्बई में हुआ। उस समय आचार्य तुलसी भी मुम्बई में प्रवास कर रहे थे। जैसे ही उस बात का पता चला, आचार्य तुलसी उनके स्थान पर पधारे। वहां माध्यस्थ भावना और उनके प्रति आदर भावना प्रकट की। - आचार्य वल्लभ सूरि उन वीतरागोन्मुखी आत्माओं में थे, जो विरल होती हैं। उनके स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी की चिर स्मृति बने, जन-जन के मन में वीतरागोन्मुखी चेतना जागृत करे। इस दिशा में होने वाला प्रयत्न बहुत कल्याणकारी होगा।" - आचार्य महाप्रज्ञ Jalin Edication intemattonell Factoriesincareone wandanastiyang Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यक्ष कलम अम्बाला शहर सितम्बर माह 2003 की संक्रान्ति का दिन मेरे लिए बहुत हर्ष देने वाला था, जब गच्छाधिपति जी ने परम पूज्य, परम वन्दनीय, प्रातः स्मरणीय, पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज का 50वां स्वर्गारोहण वर्ष एक महोत्सव के रूप में मनाने के लिए महासमिति के अध्यक्ष पद के लिए मेरा नाम मनोनीत किया। मेरे किसी पुण्य कर्म के उदय से ही प.पू. गुरुदेव का 50वां स्वर्गारोहण दिवस मुझे मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गच्छाधिपति जी के दिशा-निर्देशन में अर्द्धशताब्दी वर्ष को गुरु गुणानुवाद रूप में मनाने के लिए विविध मंगलमय कार्यक्रमों की रूप रेखा तैयार की गई और इन सभी कार्यक्रमों को व्यवस्थित और सुचारू रूप से मनाने के लिए महासमिति का गठन किया गया, जिसका नाम “अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति' रखा गया और विभिन्न पदों पर समाज के विभिन्न श्रेष्ठीवर्य कार्यकर्ताओं को मनोनीत किया गया, जिनमें श्री सिकन्दर लाल जैन एडवोकेट, जो कि एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं और समय-समय पर समाज के विभिन्न कार्यक्रमों में अपना नेतृत्व प्रदान करते रहते हैं, हर प्रकार के सामाजिक एवं धार्मिक कार्य करने में दक्ष हैं, जिन्हें निवर्तमान गच्छाधिपति जी ने 'यात्रावीर' की पदवी से अलंकृत किया है। ऐसे अनथक निःस्वार्थ सेवाभावी श्री सिकन्दर लाल जैन को कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर मनोनीत किया गया और इनका साथ देने के लिए महामंत्री श्री राजेन्द्र पाल जैन एवं कोषाध्यक्ष के रूप में श्री देवेन्द्र कुमार जैन को मनोनीत किया गया। विविध मंगलमय कार्यक्रमों को योजनाबध एवं सुचारू रूप से करने के लिए संरक्षक एवं वशिष्ठ शुभेच्छु महानुभावों के आशीर्वाद से विभिन्न समितियों का गठन किया गया। (1) उत्सव समिति (2) प्रचार-प्रसार एवं प्रकाशन समिति (3) रथ संचालन समिति (4) संयोजक के रूप में कार्यकर्ता (5) मुख्य सहयोगी (6) सदस्य स्वागत समिति (7) वित्त समिति इन सबका का विवरण 'योजना एवं प्रारूप' नामक पुस्तक में प्रकाशित है। भगवान महावीर स्वामी निर्वाण के पश्चात उनकी पाट परम्परा पर अनेक प्रतिभा सम्पन्न आचार्य हुए हैं, जिन्होंने अपने जप-तप-संयममय चरित्र के द्वारा अपनी आत्मा का कल्याण किया और समाज के मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत हुए। जो जीव स्व और पर का कल्याण करते हैं, समाज के कल्याण और उत्थान हेतु कार्य करते हैं, समाज उनके कार्यों को लम्बे समय तक याद रखता है और किये हुए उपकारों के लिए उन महापुरुषों का गुणानुवाद करते हुए गुरु भक्ति के द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। इसी स्व और पर के कल्याण की श्रृंखला में 20वीं सदी में श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने योग्य है। गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज एक ऐसे संत हुए हैं, जो हर दृष्टिकोण से पूर्ण व्यक्तित्व के धनी थे। सर्व विरति योग को अपनाते हुए उन्होंने अपनी आत्मा का कल्याण किया, वहीं दूसरी ओर जन समाज के उत्थान और कल्याण के लिए अपनी आत्मिक शक्ति का प्रयोग करते हुए सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी मार्गदर्शन किया। For Private & Personal use only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव को देखते हुए इन्होंने जैन समाज के उत्थान के लिए अपनी भावना प्रकट करते हुए कहा- "होवे कि न होवे, परन्तु मेरी आत्मा यही चाहती है कि साम्प्रदायिकता दूर होकर जैन समाज, मात्र श्री महावीर स्वामी के झण्डे के नीचे एकत्रित होकर श्री महावीर की जय बोलें तथा जैन शासन की प्रभावना के लिए ऐसी एक “जैन विश्वविद्यालय" नामक संस्था स्थापित होवे। जिससे प्रत्येक जैन शिक्षित हो, धर्म को बाधा न पहुँचे, इस प्रकार राज्याधिकारी में जैनों की वृद्धि होवे। फलस्वरूप सभी जैन शिक्षित होवे और भूख से पीड़ित न रहे। शासन देवता मेरी इन भावनाओं को सफल करें। यही चाहना है।" ____आज भारतवर्ष में जितनी भी जैन शिक्षण संस्थाएँ एवं विद्यालय हैं, वह सब इन्हीं गुरु महाराज की शुभ सद्प्रेरणा एवं आशीर्वाद का परिणाम है। अपने गुरु श्रीमद् विजयानन्द सूरि के वचनों को “मैंने जिन मन्दिरों का निर्माण करवाया है, तुम सरस्वती मन्दिरों का निर्माण करवाना” सार्थक किया। समाज में फैल रही कुरीतियों को रोकने और धर्म प्रचार के लिए कई क्रान्तिकारी परिवर्तन किये। परमात्मा के धर्म संघ रूपी ज्योति को विजयानन्द सूरि जी महाराज ने अपने ज्ञान बल के द्वारा प्रज्वल्लित रखा, वहीं विजय वल्लभ सूरि जी महाराज ने अपने जप-तप-संयम के द्वारा चहुँ दिशाओं से इसे और उज्ज्वल और प्रकाशमान किया। परमात्मा की प्राप्ति के लिए परमात्म भक्ति के रूप में एक भक्ति लहर पैदा की। आज इनके लिखे हुए 2200 से ज्यादा स्तवन, सज्झाए, पूजाएँ, थुईयां आदि प्रकाशित हो चुके हैं, जो समाज के पास उपलब्ध हैं और समाज इससे भक्ति रस का आनन्द ले रहा है। वर्तमान में श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन समाज पूरे भारतवर्ष में विशेषकर पंजाब में सुख-समृद्धि से फल फूल रहा है। वह सब इन्हीं महापुरुष के आशीर्वाद के कारण है। गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की यशोगाथा का गुणगान करने के जिस उद्देश्य को लेकर ‘अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति' का गठन किया गया था, समितियों के कार्यकर्ताओं ने अपने पूरे हर्षोल्लास और अनथक परिश्रम के साथ इन कार्यक्रमों के आयोजनों को सफल बनाया। 'विविध मंगल कार्यक्रमों' की लड़ी में गच्छाधिपति जी की भावना अनुरूप विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका का प्रकाशन किया जा रहा है। जिसके लिए विशेष रूप से श्री पुष्पदंत जैन पाटनी, श्री संजीव जैन दुग्गड़ एवं श्री राजेश जैन लिगा बधाई के पात्र हैं। इस स्मारिका में वर्ष भर में गुरुदेव के गुणानुवाद-स्वरूप किये गये कार्यक्रमों की जानकारी दी गई है और इसी के साथ श्रमण-श्रमणीवृंद के द्वारा भेजे गये लेखों एवं निबन्धों में गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी म.सा. के जीवन चरित्र को विभिन्न दृष्टिकोणों से दर्शाया गया है। इन सभी कार्यक्रमों के आयोजनों को सफलता पूर्वक सम्पन्न करने के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में जिन्होंने भी सहयोग दिया है, मैं अपनी और महासमिति के पदाधिकारियों की ओर से उनका हार्दिक धन्यवाद प्रगट करता हूं। सभी कार्यक्रमों का दिनांक 15-16-17 अक्तूबर 2004 को समापन समारोह मनाया जाएगा। यह मात्र प्रारम्भ किये गये कार्यक्रमों को विराम देने के लिए है। इसे गुरु गुणानुवाद की इति श्री न समझें। आज इस समापन समारोह में गुरु चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए ऐसा संकल्प करें कि इस करुणामय महान् गुरु के दिखाये मार्ग पर चलकर इनके वचनों को पूर्ण करें, इसी में हम सब की व जैन समाज की भलाई और कल्याण है। इसी के साथ कार्यक्रमों के मध्य मेरे से या महासमिति के किसी सदस्य से जानते-अजानते, अवज्ञा, आशातना, अवहेलना हुई हो तो हम मन, वचन, काया से क्षमा प्रार्थी हैं। - कश्मीरी लाल बरड़ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम कोटिशः कोटिशः वन्दन करते हुए, आभार प्रकट करते हैं दृढ़ संयमी, दृढ़ संकल्पी, कोंकण देश दीपक श्रीमद् आत्म-वल्लभ-समुद्र - इन्द्र पाट परम्परा के वर्तमान पट्टधर गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म. का, जिन्होंने वर्तमान में परम पूज्य, परम वन्दनीय, प्रातः स्मरणीय, कलिकाल कल्पतरु, अज्ञान तिमिर तरणि, युगवीर, पंजाब केसरी, जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. का 50वां स्वर्गारोहण वर्ष एक महोत्सव के रूप में मनाने की प्रेरणा दी और “एक सफल योजना कार" की भांति व्यवहार में इन कार्यों को कैसे करना है, उसकी नीति का निर्धारण किया। गुरुदेव ने दिव्य दृष्टि और दूर दृष्टि से कार्यों को क्रियान्वित रूप देने के लिए पूरे भारतवर्ष में 'अखिल Education rational आभार भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति' का गठन करवाया। आज सभी कार्यक्रमों की सफलता के लिए प. पू. गुरुदेवों के दिव्याशीष के साथ-साथ वर्तमान गच्छाधिपति जी का शुभाषीश वरदहस्त पावन व तारक निश्रा की विद्यमानता है। ऐसी परम असीम कृपा वाले, त्यागी, तपस्वी, संयमी का आभार मानते हुए, उनके श्री चरणों में कोटिशः कोटिशः वन्दन। इन्हीं कामनाओं के साथ कि आपका वरदहस्त हम सब पर सदा बना रहे । इसी के साथ-साथ सभी श्रमण एवं श्रमणीवृंद का आभार प्रकट करते हैं, जिन्होने समयानुकूल शुभाशीष के साथ लेख व निबन्ध, कविताएं आदि भेज कर 'स्मारिका' के प्रकाशन में सहयोग देते हुए गुरुचरणों में श्रद्धांजलि अर्पित की। उन श्रावक-श्राविकाओं का भी बहुत-बहुत आभार व धन्यवाद जिन्होंने गुरु चरणों में सुमन अर्पित करने हेतु अपने लेख देकर स्मारिका की शोभा को बढ़ाया। श्रद्धा हम आभार प्रकट करते हैं, उन सभी दानी महानुभावों का जिन्होंने अपनी आय में से दान स्वरूप राशि देकर इस स्मारिका को प्रकाशित करने में सहयोग दिया, उन सभी महानुभावों का जिन्होंने किसी भी तरह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विविध मंगलमय कार्यक्रमों को सफल बनाने में सहयोग दिया। उन सबका आभार मानते हुए धन्यवाद प्रकट करते हैं । अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति wainelibran Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महासमिति के सेवाभावी एवम् सक्रिय पदाधिकारीगण श्री कश्मीरी लाल जैन अध्यक्ष श्री सिकन्दर लाल जैन ‘एडवोकेट' कार्यकारी अध्यक्ष श्री राजेन्द्र पाल जैन महामंत्री श्री देवेन्द्र कुमार जैन 'कसूर वाले' कोषाध्यक्ष श्री संजीव जैन पाटनी मुख्य सलाहकार श्री धर्मपाल जैन 'पट्टी वाले' मुख्य सलाहकार श्री पुष्पदंत जैन पाटनी संयोजक प्रो. राजेन्द्र कुमार जैन संयोजक श्री सुरेश जैन पाटनी संयोजक श्री राजेश जैन 'लिगा' संयोजक श्री संजीव जैन 'दुग्गड़' संयोजक For Private & Personal use only / Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवल्लभगुरुसक्षिप्तचरित्रस्तुतिः बाल्यभावात्तदीक्षाय आबाल्यब्रह्मचारिणे। ब्रह्मतेजोऽलङ्कृताय नमो वल्लभसूरये।। 1 ।। विजयानन्द सूरीन्द्रपादसेवाप्रभावतः। प्राप्तज्ञानादिकौशल्यः जयतात् सूरिवल्लभः।। 2 ।। शान्तो धीरः स्थितप्रज्ञो दीर्घदर्शी जितेन्द्रियः। प्रतिभावानुदारश्च जयताद् गुरुवल्लभः।। 3 ।। ज्ञातं श्रीवीरधर्मस्य रहस्यं येन वास्तवम्। धारितं पालितं चापि जयतात् सूरिवल्लभः।। 4।। श्रीवीरोक्तद्रव्यक्षेत्रकालभावज्ञशेखरः। अतज्ज्ञतन्मार्गदर्शी जयताद् गुरुवल्लभः।। 5 ।। जागरूकः सदा जैनशासनस्योन्नतिकृते। सर्वात्मना प्रयतिता जयतात् सूरिवल्लभः।। 6।। जैनविद्यार्थिसज्ज्ञानवृद्धयै विद्यालयादिकाः। संस्थाः संस्थापिता येन जयताद् गुरुवल्लभः।। 7।। पांचालजैनजनताधारस्तद्धितचिन्तकः । तद्रक्षाकारी प्राणान्ते जयतात् सूरिवल्लभः।। 8।। साधर्मिकोद्धारकृते पंचलक्षीमसूत्रयत्। रूप्याणां मुम्बईसयाद् जयताद् गुरुवल्लभः।। 9।। विजयानन्दसूरीशहृद्गता विश्वकामनाः। प्रोद्राविता यथाशक्ति जयतात् सूरिवल्लभः।। 10।। जीवनं जीवितं चारु चारित्रं चारु पालितम्। कार्यं चारु कृतं येन जयताद् गुरुवल्लभः।। 11।। आगम प्रभाकर मुनि श्री पुण्य विजय जी Jain Education Intemational Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री विजय वल्लभ एक वयोवृद्ध मुनिराज की दृष्टि में प्रवर्तक श्री कांति विजय जी महाराज श्री विजयानन्द सूरि की परम्परा के सर्वाधिक वृद्ध साधु प्रवर्तक श्री कान्ति विजय जी महाराज द्वारा सन् 1940 में, 90 वर्ष की अवस्था में श्री वल्लभ जी के प्रति अपने भाव-सुमन इन शब्दों में अर्पित किए गए थे। आज प्रवर्तक जी हमारे बीच नहीं है, किन्तु उनकी मधुर स्मृति बनी हुई है। ____ “एक बार मैंने गुरुदेव (विजयानन्द सूरि) से निवेदन किया कि, “आपने पंजाब देश को अपने उपदेशामृत से बहुत सींचा है और धर्म के कितने ही महान् कार्य किए है। मेरी तो यह शुभेच्छा है कि आप चिरकाल तक हमारे बीच रहें, मगर आपने जिन-जिन क्षेत्रों को अपने धर्मोपदेश से पावन किया है, उनकी रक्षा करने वाला और धर्म-उन्नति करने वाला हमीं में से कोई तैयार हो जाए, तो अच्छा है।” उसके उत्तर में गुरुदेव ने कहा, “तुम सब साधु गुजराती हो, इसलिए तुम्हें अपने देश का मोह बना रहेगा। तुम्हारा बार-बार पंजाब आना दुर्लभ है। परन्तु फिर भी मेरा ख्याल वल्लभ पर जाता है। यह वल्लभ यहाँ पर धर्म की प्रभावना कर सकेगा।" यह सुन कर मेरे दिल को शान्ति तो हुई, परन्तु मुझे यह आशा बहुत कम थी कि वल्लभ विजय जी गुरुदेव के वचनों को सार्थक सत्य प्रमाणित करेंगे। आज इन बातों को लगभग 44 वर्ष हो गये हैं, अब मैं अपने जीवन के अन्दर ही यह देख रहा हूँ। गुरुदेव के वे सुनहरे वचन देववाणी के समान यथार्थ थे। गुरुदेव के भक्त विजय वल्लभ सूरि जी ने उनके एक-एक शब्द को सत्य प्रमाणित किया है। ये पंजाब पर अपार उपकार करने में संलग्न हैं और गुरुदेव की भावनाओं की पूर्ति कर रहे हैं। मैं उनके किये गये कार्यों को सुनकर बहुत प्रसन्न होता हूँ।" Jan Education International For Private Personal use only www.jainelibrary or Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर स्वामी से चली आ रही अविच्छिन्न गौरवशाली पाट - परम्परा तपागच्छ की उत्पत्ति 18 चरम तीर्थकर प्रभु श्री महावीर के 43 वें पाट पर आचार्य श्री सोमप्रभ सूरि तथा आचार्य श्री मुनि (मणि) रत्न सूरि दो गुरुभाई हुए और 44 वें पाट पर आचार्य श्री जगच्चन्द्र सूरि हुए। आप आचार्य श्री मुनिरत्न सूरि के सगे भाई थे। आपने आघाटपुर नगर (वर्तमान में उदयपुर के निकट आहड़ नामक ग्राम) में आचार्य श्री मणिरत्न सूरि (अपने सगे भाई) से निर्बंध अणगार की दीक्षा ग्रहण की मुनिरत्न सूरि-मणिरत्न सूरि के नाम से प्रसिद्ध थे। इसकी पुष्टि मुनि श्री पं. कल्याण विजय जी ने स्व संपादित तपागच्छ पट्टावली भाग 1 में की है। आचार्य मुनिरत्न सूरि के भाई श्री जगच्चन्द्र का विवाह हुआ था। इनकी पत्नी ने जसदेव नामक पुत्र को जन्म दिया था। इसी जसदेव के पुत्र श्री ईश्वरचन्द्र जी सर्वप्रथम पंजाब में आये थे। पश्चात् श्री जगच्चन्द्र ने पत्नी, परिवार, धन-दौलत आदि सब परिग्रह का त्याग कर अपने भाई श्री मुनिरत्न सूरि से निर्बंध अणगार की दीक्षा आघाटपुर ( आहड़ ) नगर में ली। आचार्य श्री मुनिरत्न सूरि ने आपको अपना शिष्य बनाया। मुनि जगच्चन्द्र जी परम संवेगधारी थे, आपको सुयोग्य जानकर श्री मुनिरत्न सूरि जी के बड़े गुरुभाई आचार्य श्री सोमप्रभ सूरि ने आचार्य पद प्रदान कर अपना पट्टधर स्थापित किया। भगवान महावीर के 35 वें पट्टधर श्री उद्योतन सूरि से बड़गच्छ की स्थापना हुई थी। आप इसी गच्छ में दीक्षित हुए थे और प्रभु श्री महावीर के 44 वें पाट पर सुशोभित हुए थे। आपके समय में श्रमणसंघ में प्रमाद के कारण क्रिया शैथल्य आ गया था। इसलिये आप क्रियोद्धार करने के लिये अत्यन्त उत्सुक थे। इससे पहले आचार्य श्री धनेश्वर सूरि ने 'चैत्रपुर' में भगवान श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी। तब से उनका शिष्य परिवार ‘चैत्रवाल गच्छ' के नाम से ख्याति पा चुका था। विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के चौथे चरण में आचार्य भुवनचन्द्र सूरि तथा उपाध्याय 'देवभद्र गणि 'चैत्रवाल गच्छ' के अधिपति थे। उपाध्याय जी संवेगी शुद्ध चारित्रवान, गुणवान, आगमवेदी तथा शुद्ध सामाचारी के गवेषक थे। आचार्य श्री जगच्चन्द्रसूरि को उनका योग मिला। आचार्य श्री के सात्विक चारित्र ने उपाध्याय जी पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने इस आदर्श मार्ग को अधिक उत्साहित किया और दोनों ने सहयोगी होकर क्रियोद्धार करने का निश्चय किया। साभार- " सद्धर्म संरक्षक” लेखक : हीरा लाल दुग्गड़ शास्त्री आचार्य श्री जगच्चन्द्र सूरि ने वि. सं. 1273 में बड़गच्छ के उपाध्याय देवभद्र गणि तथा स्व- शिष्य देवेन्द्र की सहायता से क्रियोद्धार किया तथा यावज्जीव (जीवन के अन्तिम श्वासों तक) आयंबिल तप करने का अभिग्रह किया। संभव है कि स्व-शिष्य देवेन्द्र को गुरु श्री जगच्चन्द्र ने इसी प्रसंग पर आचार्य पदवी से विभूषित किया होगा ? आचार्य जगत्चन्द्र सूरि विहार करते हुए वि.सं. 1285 में मेवाड़ में आघाट (आहड़ नगर अपने जन्म तथा दीक्षा स्थान में पधारे। मेवाड़ाधिपति राणा जैत्रसिंह आचार्य श्री के दर्शनों के लिये आया । बारह-बारह वर्षों तक आयंबिल के तप से तेजस्वी, शुद्ध चारित्र की प्रभा डालता हुआ देदीप्यमान काँतिपुंज मुखमंडल देखते ही राणा का सिर सूरि जी के चरणों में झुक गया। वह सहसा बोल उठा कि : "अहो ! साक्षात् तपोमूर्ति हैं।" ऐसा कहकर बितौड़ाधीश राणा जैत्रसिंह ने वीर निर्वाण सं. 1755 (वि.सं. 1285, ई.सं. 1228) में आचार्य श्री जगत्चन्द्र सूरि को 'तपा' की पदवी से विभूषित किया। तब से आपका शिष्य परिवार 'तपगण' नाम से प्रसिद्धि पाया। इस सिसोदिया राजवंश ने भी तपागच्छ को अपना गुरु स्वीकार किया पीछे से मेवाड़ के राणाओं की विज्ञप्तियां, नगर सेठ के कुटुम्ब का सम्बंध तथा तपागच्छीय आचार्यों का एवं श्रीपूज्यों का आज तक होता आ रहा सम्मान इस बात की साक्षी दे रहा है। 1 आचार्य श्री जगत्चन्द्र सूरि जैसे त्यागी थे, तपस्वी थे वैसे ही विद्या पारंगत भी थे। आपको बजारी की सरस्वती प्रत्यक्ष थी। आपने आघाट (आहड़ ) में वाद करके 32 दिगम्बर आचार्यों को जीता था। इसलिये राणा जैत्रसिंह ने सूरि जी को हीरा के समान उभेद्य मानकर 'हीरला' का विरुद देकर "हीरला श्री जगत्चन्द्र सूरि" के नाम से संबोधित किया था। आप का नाम आज भी गौरवान्वित है। आचार्य श्री वि. सं. 1287 (ई.सं. 1230) में मेवाड़ के "वीरशाली गांव में स्वर्ग सिधारे। विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 50 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य श्री जगत्चन्द्र सूरि के दो शिष्य थे। 1. आचार्य श्री देवेन्द्र सूरि : आप छोटी आयु में दीक्षित हुए, परम-त्यागी, समर्थ ग्रंथकार थे, आपने विवाह के लिये जाते हुए सजे सजाये वरराजा को विवाह के दिन प्रतिबोधित कर दीक्षित किया। ऐसे समर्थवान अमोघ शक्तिशाली थे। आप अपने गुरु आचार्य श्री जगत्चन्द्र सूरि के क्रियोद्धार के कार्य में अनन्य सहायक बने। आप का वि.सं. 1327 में मालवा में स्वर्गवास आपने पाँच कर्मग्रंथों की रचना भी की थी। आचार्य श्री विद्यानन्द सूरि तथा आचार्य श्री धर्मघोष सूरि (उपाध्याय धर्मकीर्ति जी) आदि आपके शिष्य थे। इन से लघु-पोषाल शाखा निकली है। हुआ। - विक्रम की तेरहवीं सदी में आचार्य श्री जगत्चन्द्र सूरि के शिष्यों से 'तपागच्छ' तथा इनके गुरुभाइयों के शिष्यों से 'बड़गच्छ' का नामांतर भेद हुआ। पर इन दोनों गच्छों में सिद्धातों की एकता, सामाचारी की समानता, क्रिया की अभेदत से तथा प्रत्येक प्रकार से पूर्ववत एक रूप से घनिष्ठ सम्बन्ध ही रहे थे। तपागच्छ मुनियों का दिग्बन्ध इस प्रकार है : इस प्रकार निर्ग्रथ- गच्छ का छठा नाम तपागच्छ हुआ। भगवान महावीर के पांचवें गणधर श्री (1) सुधर्मा स्वामी से निर्ग्रवगच्छ (2) श्री सुधर्मा स्वामी के नवें पट्टधर श्री सुस्थिताचार्य से कौटिक गच्छ (3) पंद्रहवें पट्टधर श्री चन्द्रसूरि से चन्द्रगच्छ (4) सोलहवें पट्टधर श्री समंतभद्र सूरि से वणवासी गच्छ (5) पैंतीसवें पट्टधर श्री उद्योतन सूरि से बड़गच्छ (6) 44वें पट्टधर श्री जगच्चन्द्र सूरि से तपागच्छ निकले। इस प्रकार अनुक्रम से छह गच्छों के प्रवर्तक छह आचार्य हुए। भविष्यवाणी "कोटिक गण, चन्द्रकुल, वज्रीशाखा, तपागच्छ" इत्यादि तपागच्छ के अभ्युदय सूचक भिन्न-भिन्न देवी वचन प्राप्त होते रहे हैं उनमें से मात्र दो यहाँ देते हैं (1) विक्रम की 14वीं शती के प्रारंभ से शासनदेवी ने संग्राम सोने को कहा कि "हे संग्राम ! भारत में उत्तमोत्तम गुरु आचार्य श्री देवेन्द्र सूरि हैं, इनका मुनिवंश विस्तार पावेगा और युगपर्यन्त चालू रहेगा। तुम इस गुरु की सेवा करो।" (2) मणिभद्र वीर ने श्री विजयदान सूरि को स्वप्न में कहा कि "तुम्हारे (तपागच्छ ) की मैं कुशलता करूंगा। तुम अपने पाट पर विजय शाखाको स्थापन करना।" विशेषावश्यक भाष्य के अनुसार वीर निर्वाण संवत 609 (वि.सं. 139, ई.सं. 82-86) में भगवान महावीर के निग्रंथ संघ में से दिगम्बर पथ संप्रदाय की उत्पत्ति हुई। दिगम्बर साधु निर्वस्त्र (एकदम नग्न) रहने लगे और तब से प्राचीन निग्रंथ संघ 'श्वेताम्बर' नाम से प्रसिद्धि पाया । श्वेतांबर-‘श्वेत-अम्बर' इन दो शब्दों के मेल से बना है, इस का अर्थ है 'श्वेत वस्त्रधारी' । श्वेताम्बर श्रमण - श्रमणी ( साधु-साध्वी) ऋषभदेव से लेकर श्वेतवस्त्रों को धारण करते आ रहे हैं इसीलिये ये निर्बंध श्रमण- श्रमणी श्वेताम्बर नाम से प्रसिद्ध हुए प्रभु महावीर के निर्वाण के लगभग एक हज़ार वर्ष बाद अधिकतर श्वेताम्बर साधु शिथिल हो गये थे। ये लोग साधु के पांच महाव्रत तो धारण कर लेते थे और साधु का वेष भी धारण कर लेते थे परन्तु बन बैठे थे चैत्यवासी निग्रंथ श्वेताम्बर देष में इन का आचरण एकदम मुनिचर्या के विपरीत था। ये लोग भट्टारक, श्री पूज्य, यति, गोरजी, गुरौं जी आदि नामों से प्रसिद्ध हो गये परन्तु धारण श्वेत वस्त्र ही करते थे। दिगम्बरों में भी शिथिलाचार बढ़ा। इस संप्रदाय में भी अनेक दिगम्बर मुनि लाल वस्त्र धारण करके चैत्यवासी बन गये। बड़ी-बड़ी जागीरों तथा मठों के मालिक बनकर भट्टारक और यति के नाम से पूजे जाने लगे। श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों जैन संप्रदायों में मुनि के व्रत धारण करने वाले मठचारी बन बैठे, जिनमंदिरों में रहने लगे और इन मंदिरों की आय पर निर्वाह करने लगे। ज्योतिष, चिकित्सा, मंत्र, यंत्र, जादू टोने करके भोले-भोले लोगों को चमत्कार दिखलाकर उनसे दक्षिणा-भेंट आदि लेकर राजसी ठाठ से रहने लगे। कच्चे जल से स्नान करना, सवारी, छत्र, चामर आदि धारण करके राजा-महाराजाओं जैसे ठाट पूर्वक कई जागीरों के मालिक भी बन बैठे सोने की गिन्नियों मोहरों से अपने नी अंगों की पूजा कराना, नगदी सोना चांदी आदि भेंट में लेना। हाथी, रथ, घोड़े, ऊंट की सवारी करना तो साधारण बात थी। - | 50 इस प्रकार शुद्ध चारित्रवान श्वेतांबर संवेगी साधुओं और चैत्यवासी यतियों के वेष में कोई अन्तर न था। वि.सं. 1508 से लोंकामत की उत्पत्ति हुई थी, इस मत के साधु भी श्वेत वस्त्र धारी थे। परन्तु मुंह पर मुंहपत्ती नहीं बाँधते थे। (मुंहपत्ती बांधना वि.सं. 1706, ई.सं. 1652 में विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 19 www.jalnelibrary.org Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लवजी नामक लोंकामती ऋषि ने चालू किया) परन्तु इनके आचार भी जैनागमानुकूल नहीं थे। इसलिये चारित्रवानों से शिथिलाचारियों एवं आगम के प्रतिकूल प्ररूपणा-वालों को अलग पहचानना असंभव हो गया था। बीच-बीच में कई भव-भीरू मुमुक्षु मुनिराजों ने क्रियोद्धार भी किया। फिर भी यह शिथिलाचार कम न हुआ। आगम प्रतिकूल प्ररूपकों का विस्तार भी बढ़ता गया। सम्राट अकबर प्रतिबोधक तपागच्छाधिपति जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरि जी के चौथे पाट पर गणि श्री सत्य विजय जी ने शुद्ध चारित्रधारी श्वेतांबर संवेगी मुनिराजों की पहचान के लिये उन्हें पीले रंग की चादर ग्रहण करने का आदेश दिया। श्री गणि सत्यविजय जी महाराज राजस्थान में लाडनुं गांव है वहां के बीसा ओसवाल दूगड़ गोत्रीय शिवराज ने 14 वर्ष की आयु में वि.सं. 1688 (ई.सं. 1631) में संवेगी तपागच्छीय श्वेताम्बर जैन आचार्य श्री विजयसिंह सूरि से दीक्षा ग्रहण की। गुरु ने आपका नाम 'सत्यविजय' रखा। आपने शास्त्राभ्यास और साधुक्रिया आदि का अभ्यास किया। आपके त्याग, तप, चारित्र, वैराग्य, ज्ञान आदि से प्रभावित होकर गुरु जी ने आपको आचार्य पदवी देने का निश्चय किया। आपने आचार्य पदवी लेने से सर्वथा मना कर दिया। आप नित्य छठ-छठ (बेले-बेले) के तप के साथ विहार करने लगे। क्रमशः आप विहार करते हुए मेड़ता आये। यहाँ आपके गुरु का जन्मस्थान था। यहां पर यति लाभानन्द जी भी रहते थे। लाभानन्द जी सब वस्तुओं का एक दम त्याग कर जंगल में चले गये और योगाभ्यास कर उच्च कोटि के योगी बने। इन्होंने अपना नाम बदल कर आनन्दघन रख लिया। यहां आने पर इनका सत्यविजय जी को समागम हुआ और इनके साथ बनवास में कई वर्ष व्यतीत किये। हम लिख आये हैं कि इस समय जैनों में श्वेताम्बर (श्वेत-वस्त्रधारी) संवेगी, यति और लौंकामती ये तीन प्रकार के साधु थे। (उस समय तक तेरापंथी मत का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था) इन तीनों का वेष प्रायः एक जैसा होने से सर्व परिग्रह त्यागी तथा जैनागमानुकूल शुद्ध चारित्र मार्ग के अनुयायियों की पहचान जनता के लिये असंभव थी। इससे मुमुक्षुओं को आत्मसाधन के लिये सच्चे मार्गदर्शक मुनिराजों की संगत पाना सरल न था। ____ मुनि श्री सत्यविजय जी के गुरु आचार्य विजयसिंह सूरि का वि.सं. 1708 (ई.सं. 1652) आषाढ़ सुदि 2 को अहमदाबाद में स्वर्गवास हो गया। वह आपको अपने उत्तराधिकारी बना गये। सात-आठ सौ साधु आपकी आज्ञा में थे। महोपाध्याय श्री यशोविजय जी महाराज, उपाध्याय श्री विनय विजय जी महाराज, मुनि श्री ज्ञानविजय जी आदि प्रकांड विद्वान तथा अन्य भी आदर्श चारित्र-सम्पन्न मुनिराज आपके तप, त्याग, वैराग्य तथा विद्वता से बहुत प्रभावित हुए थे। आप वि.सं. 1717 (ई.सं. 1660) में राजस्थान के सोजत नगर में पधारे और वहां पर पन्यास पद प्राप्त किया। इस अवसर पर आपने क्रियोद्धार कर के जैनागमानुकूल शुद्ध चारित्रवान त्यागी, संवेगी श्वेताम्बर जैन साधुओं की पहचान के लिये स्वयं पीली चादर का प्रचलन किया और अपने शिष्य परिवार को भी ऐसा करने का आदेश दिया। तपागच्छ-पट्टावली चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु 1. गणधर-श्री सुधर्मा-स्वामी (निग्रंथगच्छ) 9. श्री आर्य सुस्थित सूरि तथा 2. श्री जम्बूस्वामी (अंतिम केवली) श्री सुप्रतिबद्ध सूरि (कोटिक गच्छ) 3. श्री प्रभवस्वामी 10. स्थविर इन्द्रदिन्न सूरि (पंजाब में पेशावर 4. श्री शय्यंभव सूरि _के प्रदेश में प्रश्नवाहनक कुल की स्थापना) 5. श्री यशोभद्र सूरि 11. स्थविर दिन्न सूरि (आपके शिष्य शांति 6. श्री संभूतिविजय तथा श्री भद्रबाहु श्रेणिक से पंजाब में उच्चनागरी शाखा) 7. श्री स्थूलिभद्र 12. श्री आर्य सिंह सूरि (गर्द्धभिल्ल उच्छेदक 8. श्री आर्य महागिरि तथा कालिकाचार्य समकालीन) श्री आर्य सुहस्ति (सम्राट संप्रति प्रतिबोधक) 13. श्री आर्य वज्रस्वामी (वज्रीशाखा) 20 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1507 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14. स्थविर आर्य श्री वज्रसेन सूरि 15. स्थविर श्री चन्द्रसूरि (चन्द्रगच्छ) 16. श्री समन्तभद्र सूरि (वणवासी गच्छ) 17. श्री वृद्धदेव सूरि 18. श्री प्रद्योतन सूरि 19. श्री मानदेव सूरि (प्रथम) (लघु-शाँति स्तव रचयिता) 20. श्री मानतुंग सूरि (भक्तामर रचयिता) 21. श्री वीर सूरि 22. श्री जयदेव सूरि 23. श्री देवानन्द सूरि 24. श्री विक्रम सूरि 25. श्री नृसिंह सूरि 26. श्री समुद्र सूरि 27. श्री मानदेव सूरि (दूसरा) 28. श्री विबुधप्रभ सूरि 29. श्री जयानन्द सूरि 30. श्री रविप्रभ सूरि 31. श्री यशोदेव सूरि 32. श्री प्रद्युम्न सूरि 33. श्री मानदेव सूरि (तीसरा) 34. श्री विमलचन्द्र सूरि 35. श्री उद्योतन सूरि (बड़गच्छ) 36. श्री सर्वदेव सूरि (प्रथम) 37. श्री देव सूरि 38. श्री सर्वदेव सूरि (दूसरा) 39. श्री यशोभद्र सूरि जी 40. श्री मुनि चन्द्र सूरि 41. श्री अजितदेव सूरि (खरतरगच्छ उत्पत्ति) 42. श्री विजयसिंह सूरि 43. श्री सोमप्रभ सूरि (प्रथम) 44. श्री जगच्चन्द्र सूरि हीरला (तपागच्छ) 45. श्री देवेन्द्र सूरि (पाँच कर्मग्रंथ कर्ता) 46. श्री धर्मघोष सूरि 47. श्री सोमप्रभ सूरि (दूसरा) 48. श्री सोमतिलक सूरि 49. श्री देवसुन्दर सूरि 50. श्री सोमसुन्दर सूरि 51. श्री मुनिसुन्दर सूरि 52. श्री रत्नशेखर सूरि (लुंका-मतोत्पत्ति) 53. श्री लक्ष्मीसागर सूरि 54. श्री सुमतिसाधु सूरि 55. श्री हेमविमल सूरि 56. श्री आनंदविमल सूरि 57. श्री विजयदान सूरि 58. जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरि (सम्राट अकबर प्रतिबोधक) 59. श्री विजयसेन सूरि 60. श्री विजयदेव सूरि (देवसूर संघ) 61. श्री विजयसिंह सूरि 62. श्री गणि सत्यविजय (पीली चादर प्रवर्तक) 63. श्री कपूर विजय 64. श्री क्षमाविजय 65. श्री जिनविजय 66. श्री उत्तमविजय 67. श्री पद्मविजय 68. श्री रूपविजय 69. श्री कीर्तिविजय 70. श्री कस्तूरविजय 71. श्री गणि मणिविजय (दादा) 72. सद्धर्म-संरक्षक श्री बुद्धिविजय 73. न्यायाम्भोनिधि श्री विजयानन्द सूरि (आत्माराम) 74. पंजाब केसरी श्री विजय वल्लभ सूरि (स्मारिका के चरित्र नायक) 75. जिनशासन-रत्न श्री विजयसमुद्र सूरि 76. श्री विजयइन्द्रदिन्न सूरि 77. श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 21 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणि श्री मणिविजय जी गुजरात देश में वीरमगांव के पास भोयणी नामक गांव था, इसके नैऋत्य कोण में अघार नामक एक गांव था। इस गांव में श्रीमाल ज्ञातीय सेठ जीवनलाल भाई रहते थे। आपकी गृहणी का नाम गुलाबदेवी था। दोनों पति-पत्नी दृढ़ जैन-धर्मानुयायी थे। सदा देव-गुरु की भक्ति में तत्पर रहते थे। इनके घर वि.सं. 1952 (ई.सं. 1785) भादों मास में एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ। इस बालक का नाम मोतीचन्द रखा। इसका एक बड़ा भाई भी था, जिसका नाम रूपचन्द था और दो छोटे भाई भी थे, उनके नाम नानकचन्द और पानाचन्द थे। यह सारा परिवार व्यापार धन्धे के लिये खेड़ा जिले के पेटली गांव में जाकर बस गया था। एक बार इस गांव में पन्यास श्री कीर्तिविजय जी पधारे। जीवनलाल भाई अपने परिवार के साथ मुनिराज के दर्शन करने के लिये उपाश्रय में आये। गुरु महाराज का व्याख्यान सुनकर जब सब लोग अपने-अपने घरों को चले गये, तब मोतीचन्द भाई गुरु महाराज के चरणों के निकट जा बैठा। नतमस्तक होकर दीक्षा लेने की भावना कही। जब जीवनलाल भाई परिवार के साथ अपने गांव जाने को तैयार हुए, तब गुरु महाराज ने भाई से कहा कि “सेठ जी ! आपके बेटे मोतीचन्द की दीक्षा लेने की भावना है।" जीवनलाल भाई बिना कुछ उत्तर दिये अनसुनी सी कर के परिवार के साथ अपने गांव को लौट गये। मोतीचन्द को भी अपने साथ में लेते गये। एक बार अहमदाबाद का संघ राधनपुर यात्रा करने के लिये आया। संघ के साथ पन्यास कीर्तिविजय जी भी पधारे। समाचार पाते ही मोतीचन्द भाई माता-पिता की आज्ञा लेकर राधनपुर आ पहुँचा और पन्यास जी के पास रहकर विद्याभ्यास शुरू कर दिया। विहार में भी गुरुदेव के साथ ही रहता। तारंगा, आबू, पिंडवाड़ा, सिरोही, नादिया, राणकपुर, सादड़ी, घाणेराव आदि तीर्थों की यात्रा कर के राजस्थान के पाली नगर में आ पहुँचे। पाली के श्रावकों को जब यह पता लगा कि मोतीचन्द भाई वैरागी है और वह पन्यास जी के पास दीक्षा लेना चाहता है। तब यहां के श्रीसंघ ने गुरुदेव से सविनय प्रार्थना की कि यह दीक्षा हमारे नगर में ही होनी चाहिये। गुरुदेव ने स्वीकृति दे दी। अब दीक्षा की तैयारियां होने लगीं। अट्ठाई महोत्सव शुरू हो गया। वि.सं. 1977 (ई.सं. 1920) को 25 वर्ष की आयु में मोतीचन्द भाई दीक्षित हुए। आपका नाम मणिविजय जी रखा गया और तपस्वी श्री कस्तूरविजय जी गणि के शिष्य हुए। मुनि श्री मणिविजय जी ने क्रमशः साधु प्रतिक्रमण, पडिलेहण आदि की आवश्यक क्रियाओं का विधि पूर्वक अभ्यास किया। दशवैकालिक, आचारांग आदि सूत्रों का अध्ययन किया। दिन-रात ज्ञान-ध्यान में रहने लगे। गुरु शिष्य दोनों ज्ञान-ध्यान, तपस्या में तल्लीन रहने लगे। पन्यास कीर्तिविजय की आज्ञा से दोनों गुरु-शिष्य ने वि.सं. 1877 (ई.सं. 1820) का चौमासा मेड़ता में किया। वि.सं. 1878 (ई.सं. 1821) का चौमासा राधनपुर में, वि.सं. 1872 (ई.सं. 1922) का चौमासा अहमदाबाद में किया। मुनि श्री मणिविजय जी एकासना, ठाम चउविहार, उपवास आदि तपस्याएँ करने लगे और आपके गुरु मुनि कस्तूरविजय जी वर्धमान तप की ओली करने लगे। इस वर्ष मुनि गणिविजय जी ने एक साथ 16 उपवास किये। वि.सं. 1880-1881 (ई.सं. 1823-1824) के दो चौमासे भी अहमदाबाद में ही किये। लोहार की पोल के उपाश्रय में ये तीनों चौमासे 12 साधुओं ने साथ में किये, उनके नाम ये थे 1. पं. श्री कीर्तिविजय जी, 2. मुनि श्री लक्ष्मीविजय जी, 3. मुनि श्री नीतिविजय जी, 4. गणि श्री कस्तूरविजय जी, 5. मुनि श्री चतुरविजय जी, 6. मुनि श्री लाभसागर जी, 7. मुनि श्री मणिविजय जी, 8. मुनि श्री मेघविजय जी, 9. मुनि श्री मोतीविजय जी, 10. मुनि श्री मनोहरविजय जी, 11. मुनि श्री वृद्धिविजय जी, 12. मुनि श्री उद्योतविजय जी। आपने वि.सं. 1882 (ई.सं. 1825) का चौमासा गुरु जी के साथ पालीताना में किया। पन्यास कीर्तिविजय जी ने वृद्धावस्था के कारण चौमासा अहमदाबाद में ही किया। 1883 अहमदाबाद, 1884 खंभात, 1885 अहमदाबाद, 1886 राधनपुर, 1887-1888 अजमेर, 1889 राधनपुर, 1890 बनारस चौमासा करके सम्मेतशिखर की यात्रा की। 1891 किशनगढ़, 1892 पोकन-फलोधी, 1893 जामनगर, 1894 अहमदाबाद, 1895 वीर कच्छ, 1896 काजी, 1897 पालीताना, 1898 अज्ञात, 1899 पीरनगर, (पीरमवेट) यह नगर समुद्र में चला गया है। यहाँ की जिनप्रतिमाएं घोघा में हैं। 1900 लींबड़ी, 1901 बीकानेर, 1902 विशालपुर, 1903 में आपके गुरु कीर्ति विजय जी का बड़ौदा में स्वर्गवास हो गया। कई वर्षों से आप अकेले ही विहार करते थे। आपके गुरु जी अस्वस्थ रहने के कारण बड़ौदा में ही रहे। 22 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 4607 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मणि विजय जी ने वि.सं. 1904 पाटण, 1905 अज्ञात, 1906 अहमदाबाद, 1907 अज्ञात, 1908 राधनपुर, 1909 से 1915 तक अहमदाबाद, वि.सं. 1912 में पंजाब से आये हुए ऋषि बूटेराय जी, ऋषि मूलचन्दजी, ऋषि वृद्धिचन्द जी, तीनों स्थानकवासी साधुओं को संवेगी दीक्षा दी। इन तीनों साधुओं के नाम क्रमशः बुद्धिविजय जी, मुक्तिविजय जी, वृद्धिविजय जी रखे। बुद्धिविजय जी मणिविजय जी के शिष्य बने । मुक्तिविजय जी तथा वृद्धिविजय जी श्री बुद्धिविजय जी के ही शिष्य रहे । ये तीनों साधु सेठ की धर्मशाला में रहे। 1916 का चौमासा पालीताना में किया। चौमासे उठे भावनगर में आकर दयाविमल के पास योग वहन कर गणिपद पाया। वि.सं. 1917 (ई.सं. 1860 ) राधनपुर, वि.सं. 1918 अज्ञात, वि.सं. 1919 (ई.स. 1862) वि.सं. 1920 (ई.सं. 1863) भीष्मनगर में चीमासा किया वि.सं. 1921 से 1935 (ई.सं. 1864 से 1878) तक अहमदाबाद में ही रहे और यहीं चौमासे किये। इस बीच में मुनि सौभाग्यविजय जी को पन्यास पट्टी दी। वि.सं. 1935 (ई.सं. 1878) आसोज सुदि 8 को चौबीस उपवास करके श्री मणि विजय जी अहमदाबाद में स्वर्ग सिधारे। आप के सात शिष्य थे। 1. मुनि श्री अमृतविजय जी, 2. मुनि श्री बुद्धिविजय जी, 3. मुनि श्री प्रेमविजय जी, 4. मुनि श्री गुलाबविजय जी, 5. मुनि श्री सोमविजय जी, 6. मुनि श्री सिद्धिविजय जी (सिद्धि सूरि), 7. मुनि श्री हीरविजय जी पूज्य बुद्धिविजय जी के जीवन के मुख्य घटनाएं इसलिये सद्गुरुदेव बूटेराय जी महाराज तथा उनके शिष्यों ने संवेगी दीक्षा लेने के बाद शुद्ध सामाचारी पालन करने वालों की पहचान के लिये गाणि सत्यविजय जी के समय 'गुरु परम्परा से चालू की हुई पीली चादर धारण की पश्चात् सद्गुरुदेव श्री आत्माराम जी ने भी संवेगी दीक्षा लेने के बाद अपने शिष्य परिवार के साथ पीली चादर धारण की। 1. वि.सं. 1863 (ई.सं. 1806 ) में पंजाब के दुलूआ नामक गांव में सिखधर्मानुयायी जाट क्षत्रिय वंश में चौधरी टेकसिंह गिल गोत्रीय की पत्नी कमदेवी की कुक्षी से आपका जन्म हुआ। जन्म नाम माता-पिता द्वारा रखा हुआ टलसिंह । परन्तु आपका नाम दलसिंह प्रसिद्ध हुआ। 2. वि.सं. 1871 (ई.सं. 1814) में पिता टेकसिंह की मृत्यु माता के साथ दूसरे गांव बढ़ाकोट सावरवान में जाकर बस जाना। वहां पर आपका नाम बूटासिंह प्रसिद्ध हुआ। 3. वि.सं. 1878 (ई.सं. 1821) में पंद्रह वर्ष की आयु में संसार से वैराग्य, दस वर्ष तक सद्गुरु की खोज । LEGAR 4. वि.सं. 1888 (ई.सं. 1831 ) में लुंकामती साधु नागरमल्ल जी से स्थानकमार्गी साधु की दीक्षा दिल्ली में नाम ऋषि बूटेराय जी । आयु 25 वर्ष आप बाल ब्रह्मचारी थे। 5. वि.सं. 1888 से 1890 (ई.सं. 1831 से 1833 ) तक गुरुजी के साथ रहे। दिल्ली में तीन चीमासे किये थोकड़ों और आगमों का अभ्यास किया। 6. वि.सं. 1891 (ई.सं. 1834 ) में तेरापंथी मत (स्थानकमार्गियों के उपसंप्रदाय) के आचार विचारों को जानने-समझने के लिये उसकी आचरणा सहित तेरापंथी साधु जीतमलजी के साथ जोधपुर में चौमासा । 7. वि.स. 1892 (ई.सं. 1835 ) में पुनः वापिस अपने दीक्षागुरु स्वामी नागरमल्ल जी के पास आये और वि.सं. 1892 1893 (ई.सं. 1835-36) दो वर्ष दिल्ली में ही गुरुजी के अस्वस्थ रहने के कारण उनकी सेवा - श्रूषा - वैयावच्च में व्यतीत किये । वि.सं. 1893 में दिल्ली में गुरु का स्वर्गवास । 8. वि.सं. 1895 (ई.सं. 1838 ) में अमृतसर निवासी ओसवाल भाबड़े अमरसिंह का दिल्ली में लुंकामती ऋषि रामलाल से स्थानकमार्गी साधु की दीक्षा ग्रहण तथा आपकी ऋषि रामलालसे "मुखपत्ती मुंह पर बांधना शास्त्र सम्मत नहीं" के विषय पर चर्चा विचार में हलचल की शुरूआत। 9. वि.सं. 1897 (ई.सं. 1840) में गुजरांवाला (पंजाब) में शुद्ध सिद्धान्त ( सद्धर्थ) की प्ररूपणा का आरंभ, श्रावक लाला कर्मचन्द जी 50 विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 23 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूगड़ शास्त्री के साथ जिनप्रतिमा तथा मुखपत्ती विषय पर चर्चा करके यहां के सकल संघ को प्रतिबोध देकर शुद्ध सत्य जैनधर्म का अनुयायी बनाया । 10. वि.सं. 1897 से 1907 (ई.सं. 1040 से 1850) तक रामनगर, पपनाखा गोंदलांवाला, किला- दीदारसिंह, किला-सोभासिंह, जम्मू, पिंडदादलखां, रावलपिंडी, पसरूर दिल्ली, अमृतसर, लाहौर, अम्बाला आदि पंजाब के अनेक ग्रामों तथा नगरों में सद्धर्म की प्ररूपणा द्वारा सैंकड़ों परिवार का शुद्ध जैनधर्म को स्वीकार करना। लुंकामतियों के साथ शास्त्रार्थ में विजय विरोधियों का डटकर मुकाबला और विजयपताका फहराना । 11. वि.सं. 1902 (ई.सं. 1845 ) में स्यालकोट निवासी 16 वर्षीय बालब्रह्मचारी युवक मूलचन्द बीसा ओसवाल भावड़े बरड़ गोत्रीय को गुजरांवाला में दीक्षा देकर अपना शिष्य बनाया और ऋषि मूलचन्द नाम की स्थापना की। इनको सुयोग्य विद्वान बनाने के लिये गुजरांवाला में वि. सं. 1907 (ई.सं. 1850) तक छह वर्षों के लिये यहाँ के सच्चरित्र संपन्न, बारह - व्रतधारी सुश्रावक जैनागमों के मर्मज्ञ जानकार लाला कर्मचन्द जी दूगड़ के पास छोड़कर आप अकेले ही सद्धर्म के प्रचार के लिये ग्रामानुग्राम विचरण करते रहे। 1846 ) को गुजरांवाला और रामनगर के रास्ते में आपने और श्री मूलचन्द जी ने मुंहपत्ती का डोरा तोड़कर मुंहपत्ती लेकर मुख के आगे रखकर बोलना शुरू किया। 12. वि.सं. 1903 (ई.सं. व्याख्यान तथा बोलते समय हाथ में 13. वि.सं. 1908 (ई.सं. 1851 ) को पंजाब से गुजरात जाने के लिये विहार किया। जैन तीर्थों की यात्रा, शुद्ध धर्मनुयायी सद्गुरु की खोज, श्री वीतराग केवली भगवन्तों द्वारा प्ररूपित आगमों में प्रतिपादित स्वलिंग मुनि के वेष को धारण करके मोक्ष मार्ग की आराधना और प्रभु महावीर द्वारा प्रतिपादित जैन मुनि के चारित्र को धारण करने के लिये प्रस्थान किया। 14. वि.सं. 1912 (ई.सं. 1855) में आपने अहमदाबाद में तपागच्छीय गणि श्री मणिविजय जी से अपने दो शिष्यों मुनि श्री मूलचन्द जी तथा मुनि श्री वृद्धिचन्द जी के साथ श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनधर्म की संवेगी दीक्षा ग्रहण की आप श्री मणिविजय जी के शिष्य हुए, नाम बुद्धिविजय जी रखा गया तथा अन्य दोनों साधु आप के शिष्य हुए नाम क्रमशः मुनि मुक्तिविजय जी तथा मुनि वृद्धिविजय जी रखा गया 15. वि.सं. 1919 (ई.सं. 1862 ) में पुन: पंजाब में आपका प्रवेश। इस समय आप के साथ आपके दो अन्य शिष्य भी थे। 16. वि.सं. 1920 से 1926 (ई.सं. 1963 से 1869 ) तक अपने उपदेश द्वारा निर्माण कराये हुए आठ जिनमंदिरों की पंजाब में प्रतिष्ठा की, रावलपिंडी, जम्मू से लेकर दिल्ली तक शुद्ध जैनधर्म का प्रचार लुंकामती ऋषि अमरसिंह से शास्त्रार्थ । 17. वि.सं. 1928 (ई.सं. 1871 ) को पुनः गुजरात में पधारे। वि.सं. 1929 (ई.सं. 1872 ) में अहमदाबाद में मुखपत्ती विषयक चर्चा संवेगी साधुओं, श्रीपूज्यों, यतियों (गोरजी) के शिथिलाचार के विरुद्ध जोरदार आन्दोलन की शुरूआत। 18. वि.सं. 1932 (ई.सं. 1875 ) में अहमदाबाद में पंजाब से आये हुए ऋषि आत्माराम जी को उनके 15 शिष्यों प्रशिष्यों के साथ स्थानकमार्गी अवस्था का त्याग कराकर संवेगी दीक्षा का प्रदान करना। श्री आत्माराम जी को अपना शिष्य बनाकर नाम आनन्दविजय रखना । शेष 15 साधुओं को उन्हीं के शिष्यों प्रशिष्यों के रूप स्थापना करना ( आनन्दविजय जी वि.सं. 1943 में पालीताना में आचार्य बने, नाम विजयानन्द सूरि) 19. वि.सं. 1932 (ई.सं. 1875 ) में आपकी निश्रा में मुनि आनन्दविजय ( आत्माराम ) जी तथा शान्तिसागर के शास्त्रार्थ में मुनि श्री आनन्दविजय जी की विजय । 24 20. वि.सं. 1932 से 1937 (ई.सं. 1875 से 1880) तक अहमदाबाद में आत्मध्यान में लीन । 21. आपने अनेक बार सिद्धगिरि आदि अनेक तीर्थों की यात्राएं संघों के साथ तथा अकेले भी की। 22. वि.सं. 1938 (ई.सं. 1881 ) चैत्र वदि 30 को अहमदाबाद में आप का स्वर्गवास । श्री आत्माराम जी महाराज सम्बन्धी मुख्य घटनाएं 1. वि.सं. 1894 (ई.सं. 1837 ) चैत्र सुदि 1 को लहरा गांव (पंजाब) में जन्म कपूर क्षत्रिय कुल में। 2. वि.सं. 1910 (ई.सं. 1853 ) 16 वर्ष की आयु में मालेरकोटला (पंजाब) में स्थानकमार्गी दीक्षा 3. वि.सं. 1921 (ई.सं. 1864) में शुद्ध मार्ग जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक धर्म पर श्रद्धा तथा प्रचार की शुरूआत। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 50 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. वि.सं. 1932 (ई.सं. 1875 ) में अहमदाबाद में 15 साधुओं के साथ मुनि बुद्धिविजय (बूटेराय) जी से संवेगी दीक्षा । नाम आनन्दविजय। बाल-ब्रह्मचारी । 5. वि.सं. 1932 में ही अहमदाबाद में शांतिसागर के साथ शास्त्रार्थ, स्थानकवासी हुकुम मुनि की अनर्गल पुस्तक का उत्तर देकर सूरत संघ की सुरक्षा । 6. वि.सं. 1938 (ई.सं. 1881 ) को अहमदाबाद में गुरु बुद्धिविजय जी का स्वर्गवास । 7. वि.सं. 1943 (ई.सं. 1886) मार्गशीर्ष वदि 2 को सेठ नरसी शिवजी की धर्मशाला पालीताना सौराष्ट्र में 35000 श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में इस युगपुरुष को आचार्य पद्वी से अलंकृत किया गया। नाम आचार्य विजयानन्द सूरि। कई शताब्दियों से रिक्त पड़े इस पद से आप अलंकृत किये गये। 8. वि.सं. 1950 (ई.सं. 1893) में शिकागो (अमरीका) में विश्वधर्म परिषद में अपने प्रतिनिधि के रूप में महुआ (सौराष्ट्र) निवासी वीरचन्द राघवजी गांधी को भेज कर विदेश में जैनधर्म का प्रचार कराया। 9. पंजाब के लगभग 30 गांव - नगरों में 7000 के लगभग श्रावक-श्राविकाओं को शुद्ध धर्म में प्रतिबोधित किया। सैंकड़ों भावुकों को संवेगी दीक्षा देकर जिनशासन का संरक्षण किया। W 29650 में। 10. वि.सं. 1953 (ई.सं. 1896 ) जेठ सुदि 8 को गुजरांवाला (पंजाब) में स्वर्गवास, 59 वर्ष की आयु पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सरीश्वर जी पर विराजित हुए जिनके 50वें स्वर्गारोहण वर्ष के यह स्मारिका श्रद्धांजलि रूप में समर्पित है श्रीमद् विजय समुद्र सूरि जी महाराज जीवन रेखाएं : जन्म वि.सं. 1948, पाली (राजस्थान), मार्गशीर्ष सुदि एकादशी (मौन एकादशी), पिता-श्री शोभा चन्द, माता - श्रीमति धारिणी देवी, जन्म नाम- सुखराज । दीक्षा - वि. सं. 1967 सूरत, गुरु-उपाध्याय श्री सोहन विजय जी म. । आचार्य पद्वी - वि.सं. 2009 थाना (मुम्बई) माघ सुदि पंचमी (बसंत पंचमी ) स्वर्गवास - वि. सं. 2035, ज्येष्ठ वदि अष्टमी मुरादाबाद, कुल आयु-86 वर्ष। पदवियां-जिन - शासन - रत्न, राष्ट्रसंत, शांतमूर्ति । आप भगवान महावीर के 75वें पाट पर विराजमान हुए। आचार्य श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वर जी म. सच्चे अर्थों में साधना के समुद्र, तप की प्रतिमूर्ति और सेवा के साधक थे, इन्होंने अपने दिव्य गुणों से सम्पूर्ण जैन समाज को एक नई जागृति और एक नई चेतना प्रदान की। राष्ट्र के प्रति आपके हृदय में एक अनूठी सेवा भावना थी तभी तो आपको राष्ट्र - संत भी कहा गया है। भारत चीन युद्ध के समय अपना रक्तदान देने की घोषणा की। विश्व-शांति और युद्ध समाप्ति के लिए अनेक विविध तपश्चर्याएं करवाई। आपने गुरुदेव श्री विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की भावनाओं को मूर्त रूप देने के लिए अपने जीवन की बाजी तक लगा दी। आपके नेतृत्व में ही भगवान महावीर स्वामी की 25वीं निर्वाण शताब्दी दिल्ली में चारों सम्प्रदायों ने मिल कर बड़ी शान से मनाई। आप सचमुच गुणों के प्रशान्त समुद्र, धार्मिक कट्टरता से कोसों दूर, बेसहारों के सहारा, शरणागत के सच्चे रक्षक एवं अनन्य गुरुभक् थे। यदि सरस्वती देवी भी आपके दिव्य ' का वर्णन करना चाहे, वह भी अपने आप को असमर्थ अनुभव कर पायेगी। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका म.सा. 74वें पाट निमित्त 25 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी म. जीवन रेखाएं जन्म सालपुरा (गुजरात) वि.सं. 1980, कार्तिक यदि नवमी, (ई. सन् 1923), पिता रणछोड़भाई, माता श्रीमति बालू बेन, जन्म नाम मोहन कुमार, वंश परमार क्षत्रिय, प्रारम्भिक शिक्षा - श्री वर्धमान जैन बालाश्रम, बोडेली। दीक्षा- वि.सं. 1998, फाल्गुण सुदि पंचमी, नरसंडा (गुजरात)। गुरु श्री विनय विजय जी म., नाम- श्री इन्द्र विजय जी महाराज । बड़ी दीक्षा- बिजोबा (राजस्थान) आचार्य श्री विकास चन्द्र सूरि जी द्वारा अध्ययन-आगम, संस्कृत, प्राकृत, ज्योतिष, हिन्दी, गुजराती, भाषा आदि। आचार्यपद - वि.सं. 2027, माघ सुदि पंचमी (बसंत पंचमी), वरली (मुम्बई) पदवी दाता -जिन - शासन- रत्न, राष्ट्र सन्त श्रीमद् विजय समुद्र सूरि जी म., पट्टियां गच्छाधिपति परमार क्षत्रियोद्धारक, जैन- दिवाकर, शासन- शिरोमणि । परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र सूरीश्वर जी महाराज की यशस्वी पट्ट परम्परा पर सुशोभित महान शासन प्रभावक चारित्र - चूड़ामणि, तपस्वी सम्राट आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज वर्तमान युग के दिव्यात्मा ज्योति पुरुष थे। उन से केवल जैन शासन ही नहीं, अपितु समस्त मानव जाति गौरव - मण्डित हुई । उन का महान तपस्वी, पुरुषार्थी, चारित्रशाली एवं अप्रतिम जीवन हम सभी के लिये प्रेरक, दीप शिखा की भाँति है। शासन प्रभावक आचर्य श्री जी, श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र गुरुत्रय की पाट परम्परा के संवाहक थे जब से आप ने यह आचार्य पद सम्भाला तब से इस महती जिम्मेदारी को भली भाँति वहन करते रहे। गुरु वल्लभ ने जो स्वप्न देखे थे और जिन स्वप्नों को पूरा करने के लिए वे जीवन पर्यन्त जूझते रहे और अधूरे रह गये थे उन्हीं स्वप्नों को आचार्य श्री जी ने साकार किया। चाहे वे स्वप्न सधर्मी भाइयों के उत्कर्ष के हों या जैन धर्म के चारों सम्प्रदायों की एकता के यह कहना उचित ही होगा कि गुरु वल्लभ के इन कार्यों को आप ने अनेक गुणा आगे बढ़ाया। स्वास्थ्य की प्रतिकूलता में भी आप बड़े-बड़े तप करते रहे। जैन धर्म की श्रमण परम्परा में और पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य वल्लभ के समुदाय में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी गच्छाधिपति ने बाईपास सर्जरी के पश्चात् वर्षी तप किया हो और उनके साथ-साथ उन के आज्ञानुवर्ती 33 श्रमण एवं श्रमणी वृन्द ने उन का अनुसरण करते हुए वर्षी तप किये हों। कतिपय गौरवमय महान कार्य शासन-नायक श्रमण भगवान महावीर स्वामी की 76वीं पाट परम्परा पर विभूषित श्रमण परम्परा के उज्जवल नक्षत्र आचार्य देवेश श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी म. का व्यक्तित्व और कार्य बहुआयामी एवं बहु क्षेत्रीय हैं। आप के कुशल नेतृत्व में संघ व समाज के विकास में तथा शासन प्रभावना द्वारा अनगिनत कार्य सम्पन्न हो रहे हैं। आत्म-विश्वास और पुरुषार्थ आपकी जीवन साधना के कण-कण में बसा हुआ है आपके त्याग, तपस्या, प्रवचन, विहार, जप आदि धार्मिक अनुष्ठानों में आप जैसा दूसरा सानी नहीं मिल पाता। आप पुरुषार्थ की प्रत्यक्ष | प्रतिमा हैं। इस प्रचण्ड पुरुषार्थ के बल पर ही आप श्री ने शासन सेवा के महान अनूठे कार्य किये हैं; जिन में प्रमुख निम्न प्रकार हैं : (1) गुजरात के बड़ौदा एवं पंचमहाल जिलों में बसे एक लाख परमार क्षत्रियों को व्यसनों का परित्याग करवा कर जैन धर्म का अनुयायी बनाना और उनका उद्धार किया। (2) मध्यम वर्गीय सहधर्मी भाइयों के निवास के लिए दानवीर श्री अभय कुमार जी ओसवाल को प्रेरित कर विजयइन्द्र नगर लुधियाना में 750 परिवारों के आवास कालोनी की समुचित व्यवस्था उसी के अन्तर्गत श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ जैन मन्दिर तथा उपाश्रय का निर्माण एवं सुश्रावक तैयार करने के लिए श्री आत्म-वल्लभ जैन धार्मिक पाठशाला की स्थापना करवाना। ( 3 ) शत्रुंजय महातीर्थ पर श्री दादा जी की ट्रंक में न्यायाम्भोनिधि श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी म. की प्रतिमा की पुनः प्रतिष्ठा तथा प्राचीन देहरी का सुन्दर नवीनीकरण करवाना। (4) श्री विजयानन्द स्वर्गारोहण शताब्दी वर्ष के पावन प्रसंग पर विश्ववंद्य श्री आत्माराम जी महाराज के रचित सम्पूर्ण साहित्य का 26 विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका ०० Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री विजयानन्द सूरि साहित्य प्रकाशन फाऊंडेशन" द्वारा पुनः प्रकाशन। (5) पावागढ़ तीर्थ जो खण्डहर मात्र रह गया था उस का पुनः उद्धार करवा कर उसे आराधना, साधना एवं शिक्षा का केन्द्र बनाया। भव्य और कलात्मक जिन-मन्दिर, धर्मशाला, भोजनशाला, चिकित्सालय, साहित्य प्रकाशनादि की प्रशंसनीय व्यवस्था । (6) बालिकाओं में धार्मिक संस्कार हेतु "पंजाबी साध्वी श्री देव श्री जैन कन्या छात्रालय" का निर्माण । (7) आप श्री ने पचासों शहरों और गांवों में जैन मन्दिरों के निर्माण के साथ-साथ धार्मिक पाठशालाएं आरम्भ करवाई ताकि बालकों को धार्मिक संस्कारों से अलंकृत किया जावे। आपकी यह दृढ़ धारणा है कि युवा पीढ़ी व बच्चों को सुसंस्कारित करने पर ही जैन धर्म टिक सकता है । (8) बावन वीरों में 41वें श्री माणिभद्र जी पूज्य गुरुदेव के सहायक इष्टदेव वीर हैं। आप ने इन की आराधना, साधना करके मध्य रात्रि समय जिस रूप में श्री वीर को प्रत्यक्ष देखा, उसी रूप में इन की प्रतिमा निर्मित करवा कर पावागढ़ में प्रतिष्ठित करवाई। आजकल यह श्रद्धालुओं का केन्द्र बनी हुई है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है। (9) परमाराध्य आचार्य श्री जी ने सन् 1995 तक अपने जीवन काल में 11 छरी पालित संघ, 8 उपधान तप, बीसों जिनालयों की अंजन-शलाका प्रतिष्ठाएं करवाईं। एक लाख किलोमीटर से अधिक भारत वर्ष के विभिन्न प्रांतों में भ्रमण कर जैन शासन के दुंदुभि बजाई। वर्तमान पट्टवर कोंकण देश दीपक, वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज जन्म स्थान जन्म तिथि जन्म जाति सालपुरा भादों सुदि 4, वि.सं. 2002 राजपूत क्षत्रिय राम सिंह श्री पूनम भाई श्रीमति चंचल वहन लफनी मिगसर सुदि 6, 2021 जैनाचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी म.सा. बोडेली (गुजरात) मुनि रत्नाकर विजय पालीताणा, फाल्गुन सुदि दूज संवत् 2040 पूना, माघ सुदि 3, 2043 पालीताणा, वैशाख सुदि दूज संवत् 2048 मेड़ता रोड, फलवृद्धि पार्श्वनाथ दिनांक 14.05.2000, रविवार वैशाख सुदि ग्यारस, संवत् 2057 तिथि · किसी भी समाज का सर्वोत्तम मार्गदर्शन पूज्य सन्तवृन्द ही कर सकते हैं क्योंकि सन्त ही धर्म के वास्तविक रहस्यद्रष्टा एवं समाज के प्रति निःस्वार्थ भाव से अपना सर्वस्व अर्पित करने के लिए तत्पर रहते हैं, ऐसे ही महान् सन्तों में कोंकण देश दीपक श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि जी म.सा. का जन्म गुजरात प्रान्त के बड़ौदा जिले के सालपुरा कस्बे में, भादों सुदि चौथ, सम्वत्सरी महापर्व के ऐतिहासिक दिन वि.सं. 2002 को क्षत्रिय राजपूत परिवार में पिता सुश्रावक श्री पूना भाई की अद्धांगिनी सुश्राविका श्रीमति चंचल बेन की पवित्र कुक्षी से हुआ, आप का नाम राम सिंह रखा गया। लफनी ग्राम आपकी पैतृक भूमि थी। आपके पूर्व जन्मों के शुभ संस्कार तथा पुण्य कर्मों के उदय का ही फल जन्म नाम पिता श्री माता श्री कर्म स्थान दीक्षा तिथि दीक्षा गुरु दीक्षा स्थान दीक्षा नाम गणि पद पन्यास पद आचार्य पद • गच्छाधिपति पद विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 27 . Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HINDI था, कि छोटी आयु में आपका परिचय श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र गुरु के तेजस्वी तथा यशस्वी गणिवर श्री इन्द्र विजय जी से हुआ। गणि जी स्वयं भी परमार क्षत्रिय ही थे तथा उनका जन्म स्थान भी सालपुरा होने के कारण परस्पर आकर्षण का कारण बना, जिसके फलस्वरूप प्रथम भेंट में गुरुदर्शन करते ही आपने अपने आप को आत्म-कल्याण के लिए गुरु चरणों में समर्पित कर दिया। पारस्परिक विचार-विमर्श का राम सिंह के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। स्वयं गणि जी ने भी बालक का खिला मस्तक देखकर तथा उनके शरीर में एक महान आत्मा को पहचान कर विक्रम संवत् 2021 मिगसर सुदि छट्ठ को बोड़ेली में आपको सत्य व अहिंसा की सतत् प्रेरणा देने वाले जैन मुनि का वेष धारण करवा कर आपका नाम रखा गया 'मुनि रत्नाकर विजय'। आप इतनी तीक्ष्ण और निर्मल प्रतिभा के धनी थे कि शीघ्र ही आपने जैन धर्म सम्बन्धी मौलिक शास्त्रों का अध्ययन पूर्ण कर लिया तथा आपकी गिनती राजा और रंक के प्रति समवृत्ति रखने वाले एक अलमस्त फकीर के रूप में की जाने लगी। आप की वाणी में गहरे अध्ययन और अनुभव का दर्शन होता था। आपकी सिद्धि, आपके त्याग में आत्मीयता, मधुर वाणी, शान्त रस तथा प्रभु भक्ति से आंकी जा सकती है। आपका सान्निध्य पाकर प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में आत्म संतुष्टि का अनुभव करता है। आपकी योग्यता को देखते हुए आपको वि.सं. 2040, फाल्गुन सुदि दूज को गणि पद के तीन वर्ष बाद वि.सं. 2043, माघ सुदि तीज को पूना में पन्यास पद तथा पाँच वर्ष उपरान्त वि.सं. 2048, वैशाख सुदि दूज को पालीताणा में आचार्य पद से विभूषित किया गया। ___आपको आचार्य पद अलंकरण के अवसर पर गच्छाधिपति श्रीमद् विजयेन्द्रदिन्न सूरि जी म.सा. ने कहा था- रत्नाकर' ! मैं तुझे बहुत उच्च कोटि का आचार्य देखना चाहता हूँ। आपने भी अपने गुरु के वचन को सार्थक करते हुए खूब शासन प्रभावना के लिए कार्य किए और अपने गुरुओं के नाम को रोशन किया। आपने धर्म को एक नई दिशा व चेतना प्रदान की है जिससे जाति, सम्प्रदाय का भेदभाव मिटा और पारस्परिक सौहार्द भाईचारा बढ़ा। गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी म. आपके आदर्श संयम व चरित्र द्वारा शासन प्रभावना के कार्यों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दिनांक 14.05.2000, रविवार तदनुसार वि.सं. 2057 वैसाख सुदि एकादशी को मेड़ता रोड़, फलवृद्धि पार्श्वनाथ तीर्थ पर संक्रान्ति के पावन अवसर पर आपको अपना पट्टधर घोषित कर सुधर्मा स्वामी पट्ट परम्परा के क्रमिक 77वें पट्ट पर आप श्री जी को प्रतिष्ठित किया। दिनांक 4 जनवरी 2002 को पूज्य गच्छाधिपति जी के अचानक देवलोक गमन हो जाने के कारण सम्पूर्ण समाज के मार्गदर्शन का भार आपके सुदृढ़ कन्धों पर गया तथा आपने वीतराग प्रभु की वाणी के अनुसार कठोरता तथा दृढ़ता से श्रमण जीवन-यापन करने, सम्यक्त्व को निर्मल करने वाले तथा “जैनं जयति शासनम् का जयघोष करने वाले आदर्श संयमी आचार्य के रूप में अपने उत्तरदायित्व को निभाना शुरू किया। ऐसे सद्गुणों के भण्डार, जप-तप-संयम-आराधना-साधना-उपासना के मसीहा, परोपकारी, अद्भुत चमत्कारी, महाविद्वान, गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि जी के चरणों में अभिनन्दन, कोटि-कोटि वन्दन ! अर्द्धशताब्दी आई है। जय वल्लभस श्री मद् विजय TITM स्वारोह नई चेतना लाई है। 28 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1500 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरी दृष्टि में विजय वल्लभ ००० गुरु वल्लभ जी का शैशव काल : बड़ौदा नगरी में गायकवाड़ी राज्य था । वल्लभ गुरु जी का जन्म विक्रम सम्वत् 1927 कार्तिक सुदि दूज श्रीमाली कुल पिता श्री दीप चन्द भाई, माता श्रीमती इच्छा देवी अच्छे जैन धर्म के सुसंस्कारी थे। ऐसे कुटुम्ब परिवार के अन्दर छगन सहित चार भाई थे हीरा चन्द, खीम चन्द, छगन लाल तथा मगन लाल और तीन बहनें थी -महालक्ष्मी, जमुना और रुक्मणि में जन्म हुआ था। परिवार के अन्दर तीन पुत्र थे, चार बहिनें थीं। धर्म के सुसंस्कारों से सन्तानों को परिपूर्ण किया था। हमारे चरित्रनायक छगन लाल के नाम से प्रसिद्ध थे। जब पिता जी का अवसान हुआ, तब माता का सन्तानों प्रति आधार रहा। आखिर माता भी बीमारी वश बिछाने पड़ी थी, परिवार आकर मिल रहे थे, डाक्टर आदि सलाह दे रहे थे अब धर्म आराधना ही करना । उस समय हमारे चरित्रनायक छगन लाल सूझबूझ थी। समझदारी थी, वह भी माता के समीप पहुँचे और माता की यह स्थिति देखकर भवितव्यता के योग से होनहार की स्थिति ही देख ली, माता से कहा गया, “आप इस दुनिया को छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे हो। मुझे किसके सहारे छोड़कर जा रहे हो ?" तब छगन लाल का भावी उज्जवल था, माता के मुख से भी यही शब्द निकला, “वत्स ! तुझे अरिहन्त शरण में छोड़कर जा रही हूँ ।" बस माता जी का आशीर्वाद मिल गया। भव और भवान्तर में की हुई आराधना जागृत होने में एक जादुई चमत्कार ही समझो । माता परलोकवासी होने के बाद छगन लाल जी के विचारों में माता का आशीर्वाद सतत् गुजांयमान हो रहा है। जैसे कि समुद्र के अन्दर सिप्प होती है, उसमें वह ताकत होती है। आकाश मण्डल से एक भी बूंद गिर जावे तो मोती बन विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका जाए। "हमारे चरित्रनायक सिप्प की तरह उर्ध्वमुखी बनकर मेघ की राह देख रहे थे। इतने में पंजाब देशोद्धारक श्रीमद् विजयानन्द सूरि जी म. का बड़ौदा नगर में आगमन हुआ । उपाश्रय में जिनवाणी श्रवण | करने हेतु मानव मेदिनी उमड़ पड़ी थी । मेघ की तरह गर्जन करते गुरुदेव जी का प्रवचन चल रहा था। उसमें छगन लाल भी शामिल हो गये थे। सिप्प की स्थिति में | हृदय कमल विकसित हो गया था। गुरुदेव जी की जिनवाणी रूपी मेघ के एक-एक बूंद हृदय कमल में संगृहित कर रहे थे।" For Private Personal Use Only गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म. हमारे चरित्रनायक सिप्प की तरह उर्ध्वमुखी बनकर मेघ की राह देख रहे थे। इतने में पंजाब देशोद्धारक श्रीमद् विजयानन्द सूरि जी म. का बड़ौदा नगर में आगमन हुआ। उपाश्रय में जिनवाणी श्रवण करने हेतु मानव मेदिनी उमड़ पड़ी थी। मेघ की तरह गर्जन करते गुरुदेव जी का प्रवचन चल रहा था। उसमें छगन लाल भी शामिल हो गये थे। सिप्प की स्थिति में हृदय कमल विकसित हो गया था। गुरुदेव जी की जिनवाणी रूपी मेघ के एक-एक बूंद हृदय कमल में संगृहित कर रहे थे और माता का आशीर्वाद स्मृति पथ पर था। “चारित्र बिन मुक्ति नहीं' जिनवाणी के प्रभाव से अन्तरात्मा बोल रहा था। गुरुदेव जी का प्रवचन पूर्ण होते ही हृदय में से भाव निकलकर करबद्ध हो गया और गुरुदेव जी से विनंती की धर्म ध्यान स्वरूपे संयम की याचना की। आत्म गुरु जी ने याचक को सामने देखा, भाल प्रदेश देखते ही मांगनी योग्य है, “वत्स ! समय तेरी भावना साकार बनेगी । पुरुषार्थ करता रह।" पुरुषार्थ करने में हमारे 29 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0000000000000000000000000000 - चरित्रनायक ने कमी न रखी। बहुत कुछ जी ने आत्मा राम जी म. को जहर देकर भावनगर जैसे स्थानों में श्री आत्मानन्द . विघ्न आया आखिर राधनपुर नगरे छगन मार दिया है। यह बात कोर्ट-कचहरियों में जैन सभा की स्थापना करके आगम सूत्रों • लाल की इच्छा फलीभूत हुई। आत्म गुरुवर भी चली गई। हमारे चरित्रनायक ने को प्रकाशित करने का भी पुरुषार्थ जी ने बड़े भावोल्लास से संयम पथ ऊपर धीरता- गम्भीरता-स्थिरता और सामथ्यता प्रशंसनीय है। अपने जीवन काल के अन्दर आरुढ़ बनाया। अपने प्रशिष्य मुनिराज से निर्विघ्नतया पार उतरे। अब पड़दादा से निर्विघ्नतया पार उतरे। अब पड़दादा सभी क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व जमाया था। श्री हर्ष विजय जी म. के शिष्य की गुरु के भक्त और भूमि निरीक्षण करते हुए वक्तृत्व शक्ति गजब की थी। जैन, जैनेत्तर, उद्घोषणा की। नाम रखा विजय वल्लभ, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि स्थानों मुस्लिम, सिक्ख गुरुदेव जी की वाणी सुनने हम जानते ही हैं कि वल्लभ का अर्थ में ज्ञान की ज्योत जलाई। बम्बई में महावीर में अपना परम सौभाग्य मानते थे, बम्बई सबका प्यारा, और हुआ भी ऐसे। गुरु का जैन विद्यालय, गुजरात में विद्यालय की में उसका ज्वलंत उदाहरण है। चौपाटी प्यारा और पड़दादा गुरु भी खुश। अब शाखा एवं गुरुकुल, राजस्थान में वरकाणा बम्बई में दस-दस हजार की मेदनी में ज्ञान-ध्यान में आगे बढ़ते हुए हमारे आदि स्थानों में गुरुकुलों की स्थापना गुरुदेव जी का व्याख्यान होता था। यह है चरित्रनायक ने कुशाग्र बुद्धि से आगमों का कराई। पंजाब, हरियाणा में स्कूल, कॉलेज हमारे चरित्रनायक की अलौकिक प्रतिभा। अध्ययन- अध्यापन कर लिया। गुरु श्री का उपदेश दिया। गुजरांवाला में श्री आज हम पूरे भारत वर्ष के अन्दर यह हर्ष विजय जी म. का स्वर्गगमन, पड़दादा आत्मानन्द जैन गुरुकुल की स्थापना की। विरल विभूति की अर्द्धशताब्दी मना रहे हैं। गुरु जी की छत्रछाया में गुरु वल्लभ का ऐसे कार्यों में वल्लभ गुरु जी का समय हमारे गुरुदेव जी के कार्यों को याद कर जीवन आगे बढ़ रहा है। आत्म गुरु जी व्यतीत हो रहा था। बीच-बीच में शरारती उनका हमारा हृदय गद्गद् हो जाता है। हम अपने प्रशिष्य की समय सूचकता कार्यशैली तत्त्वों का जिनशासन एवं जिनवाणी का गर्व अनुभव कर रहे हैं लेकिन ऐसे महान् देखते हुए बहुत ही प्रसन्नता के साथ कुछ प्रश्न उठाया जाता था। हमारे चरित्रनायक उपकारी गुरुवर की अर्द्धशताब्दी मनाते हुए मार्गदर्शन भी दे रहे थे। समझो कि भाविका आत्म गुरुवर की प्यारी धरती पर यह मुझे इतना तो कहना ही पड़ेगा हम किस अनुसार ही दे रहे थे। एक दिन का समय, देखते ही राजस्थान हो या गुजरात होवे, जगह पर खड़े हैं ? एकता-संगठन के आत्म गुरुवर जी ने अपने हृदय गत भावना सिंह की तरह गर्जन करते हुए पहुँच जाते सहारे या विभाजन के मार्ग पर खड़े हैं ? वल्लभ गुरु को कहा, “हे वल्लभ ! मेरी थे। कई तो नाम सुनते ही चुप हो जाते थे। यदि हम हमारा अहं-ममत्व पोंछते हुए मन . बात सुन ले। मैंने पंजाब में जिनमन्दिर एवं कभी-कभी राज दरबारों में शास्त्रार्थ होता को मनाते होंगे तब महापुरुष के गुणानुवाद . जिनोपासना के श्रद्धावनत् श्रावक तैयार था। मुंह तोड़ जवाब देकर जिनशासन की क्या हम सफलतया कर रहे है, क्या हम . किए, तुझे यह करने का है कि सरस्वती पताका लहराते थे। जब हिन्दुस्तान निष्फल में जा रहे है ? यह स्वयं को सोचने मन्दिरों की जगह-जगह पर स्थापना पाकिस्तान का विभाजन हुआ, अपनी का है। गुरुदेव जी सदा के लिए मोहमयी करवानी, ताकि उससे समाज के अन्दर कार्यकुशलता से जैन-जैनेतर को सुरक्षित नगरी मुम्बई भायखला में अपना विश्रान्ति • समाज का उत्थान होगा, बस मेरी यही स्थानों में पहुँचाया। तभी समाज ने पंजाब स्थान ले लिया हमारे लिए वह तीर्थ भूमि भावना है।" वल्लभ गुरुवर जी ने अपने केसरी की पदवी से विभूषित किया। तब से बन गई। वहाँ नतमस्तक होना हमारा मन-मस्तिष्क के अन्दर बैठा लिया। जीवन पंजाब केसरी विजय वल्लभ इस रूप में अनिवार्य बन जाता है, क्यूं ? गुरुदेव जी ने नैया आगे बढ़ रही है, आत्मगुरु का छोटी प्रसिद्ध हुए। हमारे ऊपर जो उपकार किया है, यही सी ही आयु ही बीमारी के अन्दर जीवन वल्लभ गुरुवर अपनी मेधावी हमारे नतमस्तक बनने का भाव होता है। दीपक बुझ गया, यानि स्वर्गवासी बने। उस शक्ति से काव्य रचना स्वरूपे स्तवन, यदि उनके बताये राह पर चलेंगे, तब समय वल्लभ गुरुवर जी को बहुत कष्ट सज्झाए, थुई, पूजा आदि बनाकर हिन्दी हमारा और तुम्हारा कल्याण होगा। आया। लांछन लगाया गया। वल्लभ विजय भाषित क्षेत्रों में बहुत भारी उपकार किया। इति शुभम् ०००००००००००००००००००००००० 30 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्तमान में ऐसे तो कितने ही आचार्य हुए हैं कि जिन्होंने जैन मन्दिरों के नवीनीकरण तथा मूर्तियों के नव निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लिया है। यद्यपि वे प्राचीन जैन साहित्य के अनुशीलन, परिशीलन तथा प्रकाशन आदि कार्यों में भी पूर्णरूपेण गतिशील रहे हैं, तथापि समाज को समुन्नत तथा विकासशील बनाने के लिए जो योगदान युगदृष्टा जैनाचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी महाराज ने किया है, वह अद्वितीय है। तत्कालीन शिक्षा क्षेत्र में पिछड़े हुए समाज को समय की गति का बोध कराने के लिए जो क्रांति का शंखनाद दीर्घद्रष्टा आचार्य प्रवर ने किया, सम्भव है कि वह अन्य कोई शायद ही कर पाता। आज से 60 वर्ष पूर्व की ही तो बात है। कि पूज्य गुरुदेव ने समाज की सुषुप्त चेतना को यह कहा कि- “उठो आगे बढ़ो, देखते नहीं कि किस प्रकार समय व्यतीत हो रहा है। आज सारा विश्व चेतना के के युगपुरुष संसार समय की गति के साथ चरण मिला कर उन्नति के शिखर की ओर अभिमुख है तो फिर हमारा यह समाज ही पीछे क्यों रहे।" आज आंखें मूंद कर लकीर पीटने वालों का समय नहीं । आज समय तो उनका है, जो अपने बौद्धिक विकास के आधार पर समय को अपने अनुरूप बना लेते हैं और जिनमें इस कला का अभाव होता है चाहे वह व्यक्ति हो अथवा समाज, वह अवश्य पिछड़ जायेगा । गुरुदेव की अन्तःस्फूर्णा किस प्रकार साकार बनी वह प्रसंग आज भी नया सा ही लगता है। गुरुदेव राजस्थान के तख्तगढ़ से बाली की ओर विहार कर रहे थे। उस समय वे एक ऐसे स्थान पर पधारे जहां वस्ती के नाम पर छोटा सा स्टेशन तथा कुछ कर्मचारियों के घर थे, इसके अतिरिक्त वहां की उजाड़ वनस्थली थी तथा आने-जाने वाले निरीह यात्रियों को लूटने के लिए बदमाशों के गुप्त अड्डे | यह थी फालना स्टेशन की स्थिति जो आज काफी समृद्ध बन विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका है। For Private & Personal Lise Only चुका पू. कार्यदक्ष आचार्य श्री विजय जगत्चन्द्र सूरीश्वर जी म. सहसा गुरुदेव के मुख से निकल पड़ा कि- कितना अच्छा होवे कि यहां पर एक जैन स्कूल अथवा कॉलेज की स्थापना की जाय क्योंकि इस स्थान पर स्थापित संस्था भविष्य में अति उन्नत बनेगी, ऐसा लगता है। सुनने वाले आश्चर्यचकित थे कि चारों ओर फैला हुआ निर्जन जंगल और इस निर्जन प्रान्त में स्कूल की कल्पना । यह कैसे सम्भव हो सकेगा। श्रद्धालु भक्तगण प्रार्थना भरे स्वर में बोले कि गुरुदेव, यदि आपकी इस इच्छा को किसी बड़े शहर में साकार रूप मिले तो अति उत्तम रहेगा तो वे मौन हो गए, इस प्रकार कि जैसे कोई भविष्यवेत्ता गंभीर हो जाया करते हैं। "वे कहा करते थे कि यदि जैन धर्म के महल को सुदृढ़, स्थायी रखना है, जैन संस्कृति को जीवित रखना है, गगनचुम्बी मन्दिर, उपाश्रयों को अक्षुण रखना है तो इनकी नींव को मजबूत करो। इनकी नींव है, हमारा साधर्मिक बन्धु साधर्मिक सक्षम, समर्थ होगा, तो महल टिका रहेगा। सातों क्षेत्रों को सम्भालना है, उनकी सुरक्षा करनी है, उनका सिंचन करना है, उन्हें सदा हरा-भरा रखना है, तो साधर्मिक बन्धु का पोषण करो। " एक दिन बाली में अस्सी हजार का चन्दा एकत्रित हो गया लेकिन फिर भी उससे स्कूल की समस्या तो हल न हो सकी क्योंकि आस-पास के वनस्थली के कुछ ऐतिहासिक क्षेत्रों के संघ अपने-अपने क्षेत्र का महत्व जमा कर इस मंगल कार्य की स्थापना अपने यहां करवाना 31 www.japalibrary.org Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाहते थे। इनमें मुख्य थे- सादड़ी, घाणेराव, राणकपुर आदि स्थलों के श्रद्धालु। परिणामतः कार्य कुछ ढीला हो गया और गुरुदेव चल दिये। उम्मेदपुर में बालाश्रम की स्थापना तो अवश्य हुई किन्तु गुरुदेव की इच्छा तो इसके अतिरिक्त कुछ और ही थी । प्रकृति और नियति दोनों ही प्रलय के रूप में गोड़वाड़ में बरस पड़ी, उम्मेदपुर का बालाश्रम भी स्तब्ध हो गया और आज वही बालाश्रम फालना की पुण्य भूमि पर हाई स्कूल और कॉलेज का रूप लेकर पूज्य गुरुदेव की यशोगाथा, गुणगान के लिये समृद्ध है। गुरुदेव ने साधर्मिक वात्सल्य का यथार्थ अर्थ समझाते हुए कहा- मात्र एक दिन साधर्मिकों को मिष्ठान युक्त भरपेट भोजन करा देना ही 32 सच्चा साधर्मिक वात्सल्य नहीं है। उनके लिए आजीवन आजीविका की व्यवस्था करा देना, उन्हें स्वावालम्भी, स्वाश्रयी बना देना ही वास्तविक साधर्मिक वात्सल्य है। वे कहा करते थे कि यदि जैन धर्म के महल को सुदृढ़, स्थायी रखना है, जैन संस्कृति को जीवित रखना है, गगनचुम्बी मन्दिर, उपाश्रयों को अक्षुण रखना है तो इनकी नींव को मजबूत करो इनकी नींव है, हमारा साधर्मिक बन्धु साधर्मिक सक्षम, समर्थ होगा, तो महल टिका रहेगा। सालों क्षेत्रों को सम्भालना है, उनकी सुरक्षा करनी है, उनका सिंचन करना है, उन्हें सदा हरा-भरा रखना है, तो साधर्मिक बन्धु पोषण करो। साधर्मिक तो कुएं के तुल्य है, यदि उसमें सक्षमता रूपी जल नहीं होगा तो सातों का क्षेत्रों का सिंचन कैसे होगा ? वे पुष्पित पल्लवित कैसे रह सकेंगे ? विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका For Private & Personal Use Orily गुरुदेव ने साधर्मिक उत्थान हेतु रुग्णावस्था में भी कई बार अनेक कठोर अभिग्रह धारण किए। गुरु वल्लभ ने साधार्मिक उत्कर्ष और शिक्षण प्रसार के क्षेत्रों में जितना कार्य किया, उतना किसी अन्य ने नहीं। इसमें किसी की भी कोई अतिश्योक्ति नहीं है। कई लोग कहते हैं कि गुरुवल्लभ ने मात्र शिक्षण संस्थाएं ही खुलवाई हैं। उन्होंने केवल साधर्मिक भक्ति का ही उपदेश दिया है किन्तु ऐसी बात नहीं है। वे लोग ही ऐसा कहते हैं जो उनके जीवन कार्य से अनभिज्ञ हैं यदि वे एक. बार भी गुरुदेव का जीवन पढ़ लें, तो उनकी यह गलत धारणा निर्मूल हो जाएगी। गुरु भक्ति वल्लभ गुरु के श्री चरणों में, हम सब वंदन करते हैं। गुरुसेवा, गुरुभक्ति द्वारा भव सागर से हम तरते हैं। टेक।। इच्छिया माता पिता दीप, शशि कंचन सम निर्मल काया | आत्म गुरु के पाट विराजे, जैन धर्म को चमकाया ।। 1 ।। जैन समाज नहीं भूलेगा, वल्लभ के उपकारों को । सभी मानने लगे तुम्हारे, युग अनुकूल विचारों को ।। 2 ।। जैन एक हों, जैन सुखी हों, अंत समय तक गाते थे। शिक्षण संस्थाओं के द्वारा, जग अज्ञान मिटाते थे ।। 3 ।। जिस पंजाब देश का गुरु ने धर्म बगीचा सींचा है। जनता के हृदयों ने उनका हूबहू फोटो खींचा है। 4।। आप स्वर्ग में चले गये हो, भूले तो नहीं हो हमको ? हम तो अपनी कह देते हैं, नहीं भूलेंगे गुरु तुमको ।। 5 ।। चरण कमल की सेवा का रस, मानस भौंरा पीता है। सेवाव्रती तपस्वी, बनकर, संयम जीवन जीता है ।। 6 ।। अवगुण मेरे दूर हटाकर, नैया पार लगा देना । नित श्री संघ विनय करता है जीवन ज्योति जगा देना ।। 7 ।। आचार्य श्रीमद् विजय प्रकाश सूरि जी www.jaingelibrary.org Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करुणा सागर विजय वल्लभ मुनि ऋषभ चन्द्र विजय पृथ्वी की गहराई में छुपे हुए बीज को देखकर कोई कैसे कहे कि भला कैसे छुपी रह सकती है ? सूर्य का तेज भला प्रकट हुए बिना कैसे रह यह सुविशाल वटवृक्ष की प्रारंभिक अवस्था है ? परन्तु वक्त बीतने के साथ सकता हैं ? पूज्यपाद के गुणों की सुगन्ध, ज्ञान दर्शन-चारित्र का तेज सर्व उचित पोषण मिलने से वही बीज घटादार वटवृक्ष बन जाता है। दिशाओं में प्रसारित हो गया। आजकल टू इन वन, थ्री इन वन की मशीनें कई थके-हारे राहगीरों का विश्राम-स्थल/कई पंखीयों का आश्रय देखी हैं, परन्तु आँल इन वन देखना हो, तो एक यह महापुरुष थे। गुरु स्थल। बीज मिटकर बन गया अनेकों का छाँहदाता बरगद। करीब 134 कृपा के सहारे सफलता के शिखर पर चढ़ते गये और पंजाब केसरी, वर्ष पूर्व बड़ौदा की घड़ियाली पोल में दीपचंद भाई का आँगन, जब नये । युगदृष्टा आचार्यदेव श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. बनकर अनेक शिशु की किलकारियों से गूंज उठा, तब किसे पता था कि ये किलकारियाँ जीवों पर उपकारों की अभिवृष्टि की व हजारों-लाखों दिलों में बस गये। ही आगे चलकर हजारों-लाखों दिलों में वैराग्य की सुर-लहरियाँ बनकर गुरु के प्रति समर्पण भाव, गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा, वफादारी गूंज उठेगी?उस वक्त किसी ने शायद ही कल्पना भी न की होगी कि माता और संयम की सुविशुद्धता ये तत्त्व चारित्र जीवन में प्रगति के लिए मील के इच्छा बाई की गोदी में हंसता-खेलता नन्हा सा राजदुलारा जैन शासन का पत्थर साबित होते हैं। 'गुरु' एक अत्यन्त महान हस्ती है और साधक के एक महान सितारा बनेगा। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि अपनी जीवन में गुरु के बिना कभी सफलता नहीं आती। गुरु के प्रति समर्पण मीठी-मीठी बातों से सबका मन लुभाने वाला छोटा सा बालक भविष्य में भाव हो, तो गुरु कृपा अवश्य मिलती है। साधक में जिस भी सद्गुण का अनेकों का तारक व उद्धारक बनेगा। किसी को स्वप्न में भी यह ख्याल न विकास हो, जो कुछ भी प्रशंसनीय हो, उसके पीछे मुख्य कारण है गुरु आया होगा कि यह 'छगन' आने वाले कल में कईयों के दिल में जबरदस्त कृपा। क्रान्ति लाने वाला महान संत बनेगा। घड़ियाली पोल में बाल क्रीड़ा करने “जल से निर्मलता, चन्दन में शीतलता देखी है, वाला यह छगन भविष्य में ज्ञान की क्रान्ति से त्रिभूवन को प्रकाशित करने सागर में गंभीरता, पर्वत में अटलता देखी है, वाला जगमगाता विजय वल्लभ जिनशासन का अनमोल कोहिनूर हीरा हर एक में कोई न कोई खासियत होती है, बनेगा। सारी विशेषतायें तो हमने, आप में देखी हैं।" हम कल्पना तो करें, कैसी होगी उनकी बुद्धि-प्रतिभा ? अपनी सचमुच इतनी सारी विशेषतायें एक ही व्यक्ति में होना बुद्धि-प्रतिभा के बल पर पैसा तो क्या, उच्च से उच्च पद व प्रतिष्ठा भी वे आश्चर्यकारी ही कहा जाएगा। शायद कुदरत ने चुन-चुनकर सारे के सारे हासिल कर सकते थे। आम इन्सान की महत्त्वकांक्षा होती है अच्छे पैसे गुण पूज्यपाद गुरुदेव में ही भर दिये थे। ऐसे महान् व्यक्ति के साक्षात कमाऊँ, बंगले गाड़ी में ऐश करूं, सर्वत्र कीर्ति व यश पाऊँ। महापुरुषों की अस्तित्त्व का सामीप्य, साहित्य द्वारा जानने को मिला। क्या यह गौरव का महत्त्वकांक्षा कुछ और ही होती है। विषय नहीं है ?महापुरुषों की कृपादृष्टि जिस पर पड़ जाये, उसका आम इन्सान की महत्त्वाकांक्षा, भोग केन्द्रित होती है, कल्याण तो निश्चित ही है। उनके जीवन को आबाद बना देते हैं। हीरा महापुरुषों की महत्त्वाकांक्षा, त्याग केन्द्रित होती है। कभी नहीं कहता कि मेरी कीमत लाख की है या करोड़ की। उसकी चमक न्यायम्भोनिधि, पंजाब देशोद्धारक, परम पूज्य विजयानन्द सूरीश्वर ही उसकी कीमत बता देती है। गुलाब कभी नहीं कहता कि मेरे जैसी जी म.सा. के संपर्क में आते ही महत्त्वकांक्षी छगन को इससे भी ऊँचा व सुन्दरता व सुगन्ध आपको कहीं नहीं मिलेगी। गुलाब के पास जाते ही प्रतिष्ठित पद पाने की ललक जग पड़ी। अन्तर में वैराग्य का सागर हिलोरे उसकी सुन्दरता व सुगन्ध अपना आकर्षण पैदा किए बिना नहीं रहती। लेने लगा। फिर तो छोड़ दिया स्वजन-परिजन का मोह, प्रतिष्ठा का प्रेम.. महापुरुषों के आत्मिक गुणों की चमक, सुगन्ध व सुन्दरता जग जाहिर ...पैसों का प्यार..... | महापुरुषों के जीवन की हर बात निराली होती है। करने की बात नहीं होती, गुण तो स्वतः प्रकट हो ही जाते हैं। महापुरुष जोरदार ज्ञान साधना...तीव्र वैराग्य...उत्कृष्ट त्याग और सबसे बढ़कर दुनिया में रहते हैं, परन्तु उन्हें इससे कुछ लेना-देना नहीं। गुरुदेव के मंगलकारिणी गुरु निश्रा, फिर तो प्रगति में देरी कैसी ? कस्तूरी की सुगंध पवित्र चरित्र, गहन ज्ञान, परमात्म भक्ति, सामाजिक उत्थान के लिए 450 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 33 www.jainellbrary.org Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिव्यदृष्टि, चिन्तन-लेखन व प्रवचन से आकर्षित होकर विशाल भक्त वर्ग उनका दीवाना बना हुआ था। जल में कमल की तरह निर्लिप्त गुरुदेव सबके थे परन्तु किसी के हो कर नहीं रहे थे। नाम व प्रसिद्धि की चाहना में कोई दिलचस्पी नहीं थी। "कोई तुम्हें माता कहें, क्योंकि तुम वात्सल्य की तस्वीर थे, कोई तुम्हें पिता कहें, क्योंकि तुम कईयों की तकदीर थे। न जाने लोग तुम्हें कितने नामों से पुकारते हैं, तुम तो कई हृदयों को बांधने वाली साधर्मिक उत्थान की जंजीर थे।" जब हिन्दुस्तान-पाकिस्तान अलग हुए तब लाहौर में गुरुदेव का संवेदनशील हृदय समाज की छटपटाहट को पहचान सका था। घनघोर अन्धेरे में जब सारी खिड़कियाँ व दरवाजे बन्द हों, उस वक्त हवा के झोंके से थोड़ी सी खिड़की खुल जाये और प्रकाश की किरणें अन्दर प्रवेश करने लगे, तब अन्दर रहा हुआ इन्सान चलते हुए गिरेगा नहीं, लड़खड़ाएगा नहीं। बस चाहिये चंद प्रकाश की किरणें। पूज्यपाद श्री के आत्मविश्वास, जबरदस्त आराधना बल व कृपादृष्टि का कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि जहाँ चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था, वहीं गुरुदेव ऐसी ज्योति बनकर आये कि अंधेरा परास्त हो गया और उजियारा छा गया। निराशा, कुण्ठा व उलझन के स्थान पर चारों ओर आशा, उत्साह, उल्लास का वातावरण बन गया। गुरुदेव ने कैसा उपकार किया था, उसकी सही कीमत तो अब बराबर महसूस हो रही है। ___ "बहुत दिया आपने हमें आपके निधान से, इसलिए तो आज हम जी सकते हैं शान से। वैसे देने वाले तो बहुत मिलेंगे दुनिया में, पर कौन हैं, जो देकर भी दूर रहे हैं अभिमान से ?" स्वयं घिस-घिस कर चंदन जग को शीतलता देता है, स्वयं पिस-पिसकर मेहंदी रंग देती है, स्वयं झुलस-झुलसकर वृक्ष छाँह देता है, स्वयं कष्ट उठाकर भी महापुरुष औरों को प्रसन्नता देते हैं। गुरुदेव की इस चिन्तन की चांदनी में दुनिया को ऐसा शीतल प्रकाश मिला जिसकी सुहानी किरणें आज भी अनेकों के जीवन पथ को आलोकित करती हैं। आश्विन कृष्णा एकादशी, संवत् 2011 भर दुपहर आकाश में प्रचंड तेज से तपते हुए सूर्य को मानों चुनौती देते हुए पृथ्वी तल पर सर्वत्र अंधकार छा गया। सिर्फ दिन में अपने प्रकाश से पृथ्वी को आलोकित करके सांझ होते ही अस्ताचल की ओट में छुपने वाला सूरज निस्तेज बन गया। क्योंकि जगत में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाला तेजस्वी सूर्य सदा-सदा के लिए अस्त हो गया। गाँव-गाँव, नगर-नगर, डगर-डगर में शोक की लहरें छा गयीं। बड़ौदा से शुरू हुई जीवन यात्रा मुंबई में समाप्त कर गुरुदेव ने समाज को गौरव देकर ऋण अदा कर दिया। हर मन में विषाद था, हर जुबान में सवाल था-क्रूर काल को यह क्या सूझा ? हमारे प्राण प्यारे गुरुदेव को कहां लेकर चल दिया? पिता सदा अपनी संतान के सुख की चिन्ता करता है, आपने सदा मुनिवृंद के संयम की व समाज की चिन्ता की। पिता अपने पुत्रों के लिए संपत्ति छोड़ जाता है, आप तो हमारे लिए ज्ञान, संस्कार, सरस्वती मंदिर व सद्गति की संपत्ति छोड़ गए हैं। आपने ऐसी अनमोल विरासत दी है, जो दुनिया में कोई पिता अपनी संतान को नहीं दे सकता। "जाते-जाते भी दे गये अपनी निशानी, इसी दिलासे से ज़िन्दगी है बितानी। उपकार भुला नहीं पाता, वह प्यासा, कि किसी ने मरुभूमि में पिलाया था पानी। पूज्यपाद श्री का अर्द्धशताब्दी स्वर्गारोहण वर्ष हम मना रहे हैं। एक व्यक्ति की याद अर्थात् हृदय के शून्य को भरने का प्रयास । वैसे भी व्यक्ति की अनुपस्थिति हृदय में ज्यादा जगह रोकती है। आपके अस्तित्त्व की सुगन्ध व आपके ज्ञान का प्रकाश सदा-सदा के लिए पृथ्वीतल पर रहेगा। आपकी यादों का दीप जीवन का सहारा बनाने के लिए साथ में रखना ही पड़ेगा, अब मानसिक रूप से आपकी स्मृतियाँ एक-एक करके ताजा हो रही हैं। पूज्यपाद श्री का स्मरण भी हृदय को पावनता से भर देता है, मन को निर्मल बना देता है, अन्तर में प्रेरणा का प्रकाश भर देता है। "उपकारों का ऋण, हम कभी चुका न पायेंगे, जब तक सांस है, आप सदा याद आयेंगे। पुनीत यादों के सहारे, जीवन अब बिताना है, आपने जो दिया, उसे अमल में लाना है। चल-चलकर शायद ये पाँव रुक जायेंगे, बह-बहकर शायद आँसू भी सूख जायेंगे। लिख-लिखकर खत शायद हाथ भी थक जायेंगे, परन्तु विदा हुए गुरुवर वापिस कभी न आयेंगे।" बस गुरुदेव..... आपने वात्सल्य का दरिया भरपूर बहाया। अब भी सदा ऐसी दिव्य कृपा बरसाईयेगा कि आपके वात्सल्य बिना का जीवन सूखा मरुस्थल बन के न रह जाये और जीना दूभर बन जाये। ऐसी कृपा की धार बरसाईये कि चारित्र का निर्मल पालन करके, आपकी दी हुई विरासत की शिक्षा का मार्ग अनुसरण कर सकें। "देख वात्सल्य आपका, दिल है फ़िदा हो गया, आपने समझा कि इतने मात्र से, फर्ज़ अदा हो गया। आज फूल मनाने लगा है मातम, क्योंकि फूल खिलने से पहले ही माली विदा हो गया।" 34 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 151 w Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू. आ. श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. की साधर्मिकों के लिए भावना को ध्यान में रखकर हम भी साधर्मिक भक्ति में सक्रिय हों पू. आ.भ. श्री सूर्योदय सूरीश्वर जी के शिष्यरत्न पू. पन्यास प्रवर श्री राजरत्न विजय जी गणिवर विख्यात हिन्दी कवि निराला जी, जैसे उत्तम कवि थे वैसे ही उत्तम करुणावंत भी थे। अनजान किसी दीन दुखी को देख उनका हृदय द्रवित हो जाता था। एक बार सख्त गर्मी के दिनों में इलाहाबाद के राजमार्ग पर एक वृद्ध व्यक्ति को लकड़ी का गट्ठर ले जाते हुए देखा। निराला जी से देखा न गया वो उनके पास पहुंच गये। वे आग्रह पूर्वक उसको अपने घर ले गये। भरपेट भोजन करवाया और आग्रह करके कपड़े, मोजे, बूट, छतरी आदि दिये। आभार व्यक्त करते हुए उस वृद्ध ने कहा इतनी सारी चीजें आपने मुझे क्यों दी ?आप तो मुझे जानते नहीं निराला जी ने उत्तर दिया, “भाई मैं तो आपको जरूर पहचानता हूं। आप मेरे करोड़ों देश बंधुओं में से एक हैं। मेरे मन की तसल्ली के लिए, खुशी के लिए, आप को यह सारी चीजें लेनी पड़ेंगी।" वृद्ध तो चकित हो गया निराला जी की करुणा हमदर्दी देखकर। करुणाशील व्यक्ति ऐसे होते हैं कि जो दूसरों के दुख देखकर स्वयं उसका अनुभव करें। मुझे लगता है कि दिवंगत पूज्य युगवीर आचार्यदेव श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर महाराज भी ऐसे ही थे। एक करुणाशील व्यक्तित्व के धारक थे, जैन संघ के एक आवश्यक अंगरूप श्रावक-श्राविका वर्ग के कई परिवारों को विषम और विवश परिस्थितियों में से गुजरते अपनी नज़रों से देखकर वात्सल्यनिधि संघनायक की तरह साधर्मिक भक्ति के क्षेत्र में एक मिशन की तरह कार्यरत रहे। ऐसे समय में कई बार ऐसा भी बना होगा कि उनका हृदय और आंखें करुणा से भर गये होंगे। आंखों से आँसुओं की धारा भी बही होगी. वो आंस नहीं, संत के वो मोती थे एक कवि ने कहा भी है "हर आंख यहां यूं तो बहुत रोती है, हर बूंद मगर अश्क नहीं होती है। पर देख के जो रोते है जमाने के गम, उस आंख से आंसू गिरे वो मोती हैं। उनकी जीवन संध्या में एक ऐसा भी प्रसंग बना है, जिसमें उनकी साधर्मिकों के प्रति भक्ति भरी संवेदना अभिव्यक्त होती है। गुरु वल्लभ जब आखिरी वक्त बम्बई पधारे, तब साधर्मिक परिवारों की भक्ति के लिए रु. 11 लाख इकट्ठा करने की घोषणा की थी। सिर्फ उद्घोषणा ही नहीं, उन्होंने इसके लिए अभिग्रह भी लिया था कि जब तक साधर्मिकों के लिए 11 लाख का फंड इकट्ठा न होगा तब तक मैं संपूर्ण रूप से दूध का त्याग करूंगा। जीवन के आठ दशक व्यतीत हो जाने पर भी ऐसी वृद्ध आयु में भी उनके हृदय में ऐसी भावना का उठना प्रकट होना और प्रतिज्ञा का पूरा होना और कुछ नहीं, उनकी साधर्मिक संवेदना की उत्कृष्ट भावना का द्योतक है। इस भावना के बल पर ही जगह-जगह महावीर जैन विद्यालय, औषधालय, साधर्मिक भक्ति के विविध कार्य उनकी प्रेरणा से और भावना से साकार किये गये, ऐसा हम कह सकते हैं। जीवन संध्या के बम्बई चातुर्मास में उन्होंने ऐसा स्वप्न संजोया था कि बम्बई में एक विशाल धर्मशाला बने, दूसरे शहरों से आने वाले मध्यमवर्गीय जैनों के लिए जो संस्था आशीर्वाद रूप बने, यह स्वप्न उनके कालधर्म के बाद पूज्य आचार्यदेव श्री धर्म सूरीश्वर जी महाराज के प्रयत्नों से भूलेश्वर, लाल बाग में बनी, उस जमाने में 21 लाख के खर्च से वह धर्मशाला बनी। साधर्मिक भक्ति के क्षेत्र में इस काल में सीमा चिन्ह जैसे कार्य करने वाले पू. आचार्यदेव विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की स्वर्गारोहण शताब्दी के पुनीत प्रसंग पर हम भी ऐसे जन सेवा के कार्यों में रत रहे, यही इस समय में महत्व का कर्त्तव्य गिना जायेगा। गुजराती लेख का हिन्दी अनुवाद 150 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 35 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ में तपागच्छ रूपी गगन में गुरु वल्लभ रूपी सूर्य का गर्वीली गुजरात की गौरववंती बड़ौदा नगरी में उदय (जन्म) हुआ। पंजाब की प्यारी धरती पर गुरु वल्लभ रूपी सूर्य चमका (ज्ञान-दर्शन-चरित्र का ) । महाराष्ट्र की मोहमयी मुंबई नगरी में गुरु वल्लभ रूपी सूर्य अस्त हुआ (स्वर्गगमन)। स्व. गुरुदेव ने अपनी 84 वर्ष की आयु में 67 साल दीर्घ चरित्र के काल में अनगणित जिन शासन प्रभावना के कार्य किए। प.पू. स्व. गुरु वल्लभ सूरि म. नाम मुताबिक जगत के वल्लभ (प्रिय) बने, स्व. गुरुदेव वल्लभ सूरि म.सा. ने प. पू. न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य आ. विजयानंद सूरीश्वर जी म.सा. (आत्माराम जी म.) से अन्तिम आदेश संदेश को प्राप्त किया : (1) पंजाब को संभालना, अधर्म से रक्षा करके धर्ममय बनाना गुरु वल्लभ दिव्य शक्तिशाली-कर्मठ कार्यकर्त्ता शासन ज्योति, सा. सुमति श्री जी म. (2) पंजाब और पूरे भारत में सरस्वती मंदिरों की स्थापना करना स्व. गुरुदेव विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. ने पूरे पंजाब को अपना प्राणों से अधिक संभाला, हिंदुस्तान-पाकिस्तान की लड़ाई में प्रखर और मुख्य शहर गुजरांवाला श्री संघ को बचाया, भारत में लाए, जिससे पंजाब केसरी विरुद मिला, पूरे भारत में सरस्वती मंदिरों की स्थापना की, इस तरह प.पू. आत्माराम जी म.सा. के आदेशों का आत्मवत् पालन किया। स्व. गुरुदेव वल्लभ सूरि जी म. ने क्या एवं कितना अद्भुत कार्य किये, उनकी नामावली संख्या में बता रही हूँ। पूज्य आ. वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की सद्प्रेरणा से नवनिर्मित मंदिरों की नामावली : 1. सामाना (पंजाब) 2. सढोरा (पंजाब) 3. रोपड़ (पंजाब) 4. उरमरटांडा (पंजाब) 5. मियानी (पंजाब) 6. जालंधर शहर (पंजाब) 7. नारोवाल (पंजाब- पाकिस्तान) 36 परम पूज्य स्व. 1. मेरा तीर्थ (पंजाब-पाकिस्तान) 2. हस्तिनापुर (उत्तर प्रदेश) 3. लाहौर (पंजाब-पाकिस्तान) 8. सुनाम (पंजाब) 9. खानगांडोगरा (पंजाब - पाकिस्तान) गुरुदेव श्री के सदुपदेश से हुए मन्दिरों के जीर्णोद्धार की नामावली : 5. खंभात (गुजरात) : 10. कसूर (पंजाब-पाकिस्तान) 11. रायकोट (पंजाब) 12. सियालकोट (पंजाब- पाकिस्तान) 13. लाहौर (पंजाब-पाकिस्तान) 14. करचलिया (जि. सूरत-गुजरात) 4. नवसारी (गुजरात) प.पू. स्व. गुरुदेव विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. के करकमलों द्वारा हुई अंजनशलाकाएं : 1. जंडियाला गुरु (पंजाब) 5. रायकोट (पंजाब) 2. बिनोली (उत्तर-प्रदेश) 6. सादड़ी (राजस्थान) 3. उमेदपुर (राजस्थान) 4. कसूर (पंजाब-पाकिस्तान) 7. बीजापुर (राजस्थान) 8. मुंबई (महाराष्ट्र) प.पू. स्व. गुरुदेव विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की निश्रा में संपन्न हुईं मन्दिरों की प्रतिष्ठाएं : 1. जंडियाला गुरु (पंजाब) 13. सढोरा (पंजाब) 6. पेन (महाराष्ट्र) 7. वरकाणा तीर्थ (राजस्थान) विजय वल्लभ - संस्मरण संकलन स्मारिका . Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. सूरत (गुजरात) 14. बड़ौत (उत्तर-प्रदेश) 3. सामाना (पंजाब) 15. खानगांडोगरा (पंजाब-पाकिस्तान) 4. लाहौर (पंजाब-पाकिस्तान) 16. कसूर (पंजाब-पाकिस्तान) 5. बिनोली (उत्तर-प्रदेश) 17. रायकोट (पंजाब) 6. अलवर (राजस्थान) 18. फाजिल्का (पंजाब) 7. चारूप (गुजरात) 19. सियालकोट (पंजाब-पाकिस्तान) 8. करचेलिया (गुजरात) 20. सादड़ी (राजस्थान) 9. येवला (महाराष्ट्र) 21. बीजापुर (राजस्थान) 10. आकोला (महाराष्ट्र) 22. बड़ौदा-3 मंदिरों की प्रतिष्ठा करवाई (जन्मभूमि गुजरात) 11. डभोई (गुजरात) 23. मुंबई (महाराष्ट्र) महावीर विद्यालय-गोवालिया टेंक 12. खंभात (गुजरात) परम पूज्य आ. विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. के उपदेश से बनी मुख्य धर्मशालाएं तथा उपाश्रय : 1. श्री अंतरिक्ष जी पार्श्वनाथ जैन धर्मशाला-भोजनशाला (सिरपुर-विदर्भ महाराष्ट्र) 2. श्री स्वयंभू पार्श्वनाथ जैन धर्मशाला (कापरड़ा-राजस्थान) 3. श्री आत्मानंद पंजाबी जैन धर्मशाला (पालीताणा-सौराष्ट्र) 4. श्री आत्म-वल्लभ जैन धर्मशाला (दिल्ली) 5. श्री आत्मानंद जैन उपाश्रय (हस्तिनापुर-उत्तर प्रदेश) 6. श्री आत्मानंद जैन उपाश्रय (जन्मभूमि-बड़ौदा-गुजरात) 7. श्री आत्मानंद जैन उपाश्रय (सीनोर-गुजरात) 8. श्री आत्मानंद जैन भवन (बालापुर-विदर्भ-महाराष्ट्र) 9. श्री आत्म वल्लभ जैन उपाश्रय (जंडियाला गुरु-पंजाब) 10. श्री आत्मानंद जैन उपाश्रय (सियालकोट-पंजाब) 11. श्री आत्मानंद जैन उपाश्रय (रायकोट-पंजाब) इत्यादि नाम हैं और भी पंजाब-महाराष्ट्र-राजस्थान में आपके उपदेश से अनेक धर्मशाला-उपाश्रय-गृहउद्योग स्थापित हुए हैं। प.पू. स्व. आ. विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. के सानिध्य में उपधान तप आराधना : 1. लाल बाग : मुंबई सं. 1950 5. बड़ौदा गुजरात : सं. 1953 2. बाली राजस्थान : सं. 1956 6. थाणा मुंबई : सं. 2009 3. पूना महाराष्ट्र : सं. 1957 7. घाटकोपर मुंबई : सं. 2009 4. पालनपुर गुजरात : सं. 1960 प.पू. स्व. आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की निश्रा में 'छरी' पालित तीर्थयात्रा संघ : 1. गुजरांवाला से रामनगर (पंजाब-पाकिस्तान) 7. घिणोज से गांभू (गुजरात) 2! देहली से हस्तिनापुर (उत्तर प्रदेश) 8. फलोधि से जेसलमेर (राजस्थान) 3. जयपुर से खोगाम (राजस्थान) 9. होशियारपुर से कांगड़ा (2 बार) (पंजाब) 4. राधनपुर से पालीताणा (गुजरात) 10. वेरावल से उना आदि होकर पालीताना (सौराष्ट्र) 5. बड़ौदा से कावीगंधार (गुजरात) 6. शिवगंज से केसरिया जी (राजस्थान) प.पू. स्व. गुरुदेव आ. विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की प्रतिमाएं और चरणपादुकाएं : 1. मुंबई भायखला-महावीर विद्यालय 16. लुधियाना-पंजाब 2. बड़ौदा दादापार्श्वनाथ मंदिर गुरुमंदिर 17. बीकानेर-राजस्थान 1501 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 37. Jain Education tema local FOLPrivale spemommuseonly wwwvhainelibrary.org Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. पाटण-गुजरात 18. होशियारपुर-पंजाब 4.बीजोवा-राजस्थान 19. अम्बाला-हरियाणा 5. नाडोल-राजस्थान 20. पालेज-गुजरात 6. वरकाणा-राजस्थान 21. पालीताणा-पंजाबी धर्मशाला सौराष्ट्र 7. ऊना-सौराष्ट्र पालीताणा-वल्लभ विहार सौराष्ट्र 8. सादड़ी-राजस्थान 22. मालेरकोटला-पंजाब 9. हरजी-राजस्थान 23. जालंधर-पंजाब 10. सोजत-राजस्थान 24. ज़ीरा-पंजाब 11. कोइम्बटूर-साउथ दक्षिण भारत 25. शाहकोट-पंजाब 12. बड़ौत-उत्तर प्रदेश 26. नाभा-पंजाब 13. जण्डियाला गुरु-पंजाब 27. पटियाला-पंजाब 14. अमृतसर 28. सुनाम-पंजाब 15. सामाना-पंजाब बड़ौदा में 1. विजय वल्लभ हॉस्पिटल (अस्पताल) में मूर्ति 2. विजय वल्लभ धर्मशाला में मूर्ति 3. श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर मांजलपुर 4. जैन मंदिर लेस्टर-लंडन में इत्यादि मूर्ति सरस्वती मंदिरों की स्थापना प.पू. स्व. गुरुदेव आ. विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की सप्रेरणा से स्थापित संस्थाएं : 1. श्री महावीर जैन विद्यालय-मुंबई 2. श्री महावीर विद्यालय-मुंबई अंधेरी 2. श्री आत्मानंद जैन सभा-मुंबई 3. श्री महावीर विद्यालय, पूना-महाराष्ट्र 3. श्री जैन कान्फ्रैंस-मुंबई 4. श्री महावीर विद्यालय, बड़ौदा-गुजरात 4. श्री वरकाणा जैन हाई स्कूल-राजस्थान 5. श्री महावीर विद्यालय, विद्यानगर-गुजरात 5. श्री फालना जैन हाई स्कूल-राजस्थान 6. श्री महावीर विद्यालय, अहमदाबाद-गुजरात 6. श्री विजयानंद जैन गुरुकुल झगड़िया-गुजरात 7. श्री महावीर विद्यालय, भावनगर (सौराष्ट्र) 8. श्री विजयानंद जैन कॉलेज-हाई स्कूल-विद्यालय, अम्बाला (हरियाणा) 9. श्री हाई स्कूल, लुधियाना-पंजाब 40 हजार विद्यार्थी विद्यालय में शिक्षण लेकर देश-विदेश में जैन धर्म का पालन, प्रचार एवं प्रसार कर रहे हैं। प.पू. स्व. गुरुदेव विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. ने अपने संयम जीवनकाल में संयम यात्रा (जंगम तीर्थ) और स्थावर तीर्थ यात्रा के समय का पूरा सदूपयोग किया, उनके कार्य से ज्ञात होता है और आश्चर्य होता है कि उन्होंने कितने कार्य किये। गुरुदेव काव्य शास्त्र में बहुत आगे बढ़े। उन्होंने चैत्यवंदन-स्तुति-स्तवन-सज्झाय बनाईं और पंचतीर्थी आदि पूजा की रचना भी की। वह जिस गांव में गये, जहां भी मन्दिर में गये, उसमें जो मूलनायक भगवान थे, उसी का स्तवन बनाया और गाया। कर्मठ कार्य कर मनुष्य रूप में दिव्य शक्ति धारण करने वाले मानो कोई देवता ही थे। गुरुदेव की उपाधियां भी अनेक थीं । गुरुदेव अनेक पदवियों से विभूषित थे: 1. पंजाब केसरी, 2. अज्ञान तिमिर तरणि, 3. कलिकाल कल्पतरु, 4. दीर्घद्रष्टा, 5. युगवीर आचार्य, 6. जैन दिवाकर प.पू. आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. के 50 वर्ष अर्द्धशताब्दी स्वर्ण जयन्ति स्वर्गारोहण दिवस पर भक्तजन श्रद्धांजलि अर्पण करते हैं, अपने अद्भुत, अनुपम, अद्वितीय कार्यों से गुरुदेव अमर हो गये हैं और युग-युग तक अमर रहेंगे। "जब तक सूर्य चांद रहेगा, वल्लभ तेरा नाम रहेगा।" 38 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 4601 For Private & Personal use only Dulainelibrary.orgia Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जबलमा श्रीमद् विजा KUTTA स्वशिक्षक श्रद्धा पुष्प श्री सर्वज्ञ-पदाब्ज का रस पिया, प्रारम्भ में चाव से, आत्माराम पदाब्ज का फिर लिया, आस्वाद सद्भाव से, अर्हत्सक्ति लतावली पर रमा, जो है रसों से भरी,। श्रीमान् वल्लभ सूरि के हृदय ने, क्या मृग लीला धरी।। 1 ।।। कोष व्याकरणादि-चैत्य शिखरोपे, के लिये कजता। श्री जैनागम बाग में रम गुरु, उल्लासों भरा गूंजता, पा के मर्म पयोद नृत्य करता के का रसी, 'श्रीमान् वल्लभ सूरि के हृदय में, क्या मोर लीला बसी।। 2 ।।। वाणी वल्लभ मूर्ति वल्लभ, जिनेंद्रा राथ ना वल्लभा, श्रद्धा वल्लभ भक्ति वल्लभ, तथा है साधना वल्लभा, ऐसे वल्लभता-गुणावली तुम्हीं में भाग्य ने ला भरी, श्रीमान् वल्लभ सूरि वल्लभ तभी संज्ञा धरी है खरी।। 3 ।।। विद्यादान महान जो मुनि किया संसार में आपने, संतानार्थ नहीं कहीं पर, कभी वैसा किया बापने सारे भारत में न केवल अहो द्विपान्तरों में किया 'श्रीमान् वल्लभ सूरिः एक न किया सद्वान सारा दिया।।4।।। छोड़ा है घर आपने पर गुरु प्रासाद में खेलते, तो भी है श्रमणार्थ आप तप में तो श्रान्ति को झेलते. श्रीमद् वल्लभ सूरि साधुवर की क्या क्या प्रशंसा करे, जो थे श्रावक आज थे श्रमण हो सुरीशता भी धरे।। 5 ।।। श्रीमद् वल्लभ सूरि दिल के प्रकर की व्याख्यान की जो छटा, सो था दुग्ध घटानुपान जिस को पीता न कोई हृदा; जी का ध्यान बहा नहीं फिर रहा संदेह सारा घटा, प.पू. साध्वी निर्मला श्री जी विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 39 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मद् विजय वल्लम) THEM ऐसा काल कहा अतीव सुख से "जै जै” सभी ने कहा।।6।।। जाना है सब को समान, तुमने माना उसी धर्म को, । 'मानामान धरा न किन्तु प्रभु के ध्यानार्थ सत्कर्म को; ठाना है गुरुदेव के सुयश का माना अनोखा सदा, आना वल्लभ सूरि का प्रिय लगा जाना नहीं सर्वदा।।7।।। प्राणी मात्र सुखी रहे जगत् में कोई न दुःखी रहे, मेरा ही बस एक चित्त तप की बाधा भले ही सहे; देती है शुभ भावना सुख जिन्हें यो नित्य आनन्दना, ऐसे वल्लभ सूरि को सविधि हो श्री संघ की वंदना।।8।।। कैसी थी वह मार काट, जिसमें ध्याते हिया भी हिले. कैसी लट खसोट थी कि जिस में उत्साह साली पिले । श्रद्धा पुष्प श्रीमान वल्लभ सरि जो न करते सहाय सद् ध्यान से. तो उद्धार कभी न भक्त जन का होता क्षय स्थान से।।9।।। ओ वन्दनीय वरिष्ठ मानव, विश्व वल्लभ वारिधि, दीन वल्लभ बाल वल्लभ, ज्ञान वल्लभ शान्तधि । सत्य वल्लभ शौर्य वल्लभ, दान वल्लभ देवता, दिव्यता में देव वल्लभ, वीर वल्लभ त्याग में। दक्षता में धीर वल्लभ, ज्ञेय वल्लभ ध्यान में, ध्येय वल्लभ धर्म में, और मित्र वल्लभ प्रेम में।। साधुता में पूर्ण वल्लभ, अनूप रहे युग में सदा, । नित्य नैष्ठिक आत्म वल्लभ, स्वावलम्बी नीति में।। हो हमारा नित्य वंदन, विश्व के इतिहास में। 40 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 4500 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्व चेतना के मनस्वी संत 'विजय वल्लभ' "उठ कलम तैयार हो जा गुरु वल्लभ वन्दन करने के लिए, अर्द्धशताब्दी वर्ष पर अभिनन्दन करने के लिए, कौन कहता 'विजय वल्लभ' सूरीश्वर इन्सान हैं, 'विजय वल्लभ' सूरीश्वर तो सचमुच में भगवान हैं, मानव क्या चंदा सूरज आकाश ने भी है मान लिया। धरती और पाताल ने भी अद्भुत शान्ति को जान लिया। अजब रंग है अजब रूप और अजब इसकी मुस्कान है, पंजाब प्रांत के आज भाग्य की चमक रही फिर शान हैं, दर्शन- वंदन करके बन जाओ पावन, गुरु आत्म गुरु वल्लभ का पावन संदेश है। इस युग का अवतार है, मुझको इस पर मान है”। काल की कठोर अवस्थायें किसी न किसी महान् पुरुष को जन्म देती हैं। भारत में जब चारों ओर विषम परिस्थितियां थीं। आधुनिक काल में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, राष्ट्रीय इन सभी क्षेत्रों में परिवर्तन एवं उन्नति के पथ की ओर अग्रसर करने में युगवीर जैनाचार्य वल्लभ सूरि जी महाराज का नाम सुप्रसिद्ध है। पंजाब देशोद्धारक इस नाम से सुप्रसिद्ध आचार्य वल्लभ सूरि ने सिर्फ पंजाब में ही नहीं अपितु राजस्थान-गुजरात-सौराष्ट्र महाराष्ट्र आदि प्रान्तों में भी समाज सुधारक कार्य करने में अनेक प्रयास किये। समाज में भीतर ही भीतर उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग के बीच में एक जबरदस्त संघर्ष चल रहा था, एक ओर से आतंकवाद - उग्रवाद और दूसरी ओर से धनवान समाज के अत्याचार - इसके बीच दीन-दुःखी जनता पिसी जा रही थी । इन्हीं परिस्थितियों के बीच भैया दूज को चमकने वाले हीरे ने बड़ौदा में 1927 में जन्म लिया। माता की मृत्यु ने गुरु वल्लभ के जीवन को एक नया मोड़ दिया। 1944 में राधनपुर में दीक्षा प्रदान की गयी। आप में सर्वोत्तम सद्गुण थे, जिससे समाज के कर्णधार प्रभावित हुए और 1981 में लाहौर में आपश्री आचार्य पद से विभूषित हुए। समाज की जनता को युगानुरूप संदेश दिया। उनकी वाणी युग की वाणी थी। प. पू. साध्वी कमलप्रभा श्री जी महाराज की सुशिष्या साध्वी रक्षितप्रज्ञा श्री जी "गुरुवर तुम्हारे चरणों में, दुनिया क्यों दौड़ी आती है ? कुछ बात अनोखी है आप में, जो औरों में नहीं पाती है।।" आपके ललाट पर दिव्य तेज था, आँखों में अपूर्व आभा थी, हृदय में अनुपम आत्म शान्ति थी, आपकी वाणी में युग की वाणी बोलती थी, आपके चिन्तन में युग का चिंतन था। संपूर्ण भारत वर्ष आपका विशाल कार्यक्षेत्र था। समाज की जनता को युगानुरूप संदेश दिया। युगदृष्य, युग प्रवर्त्तक महान क्रान्तिकारी-पंजाब रक्षक युगवीर गुरु वल्लभ ने जिनागम, जिनमंदिर, जिनमूर्ति, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका आदि को अत्यधिक महत्व दिया। यदि श्रावक-श्राविका शिक्षित एवं सुखी होंगे तो इन सातों क्षेत्रों का उद्धार होगा। भगवान महावीर के शासन में अनेक आचार्य हुए। कई आचार्य भगवंतों ने आगमों का उद्धार किया, कई आचार्य भगवंतों ने तीर्थोद्धार करवाया, विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 41 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कई आचार्य भगवंतों ने संघ निकाले, ऐसे अनेक विविध कार्यों द्वारा सबने जैन शासन की अनुपम सेवा की। गुरु आत्म ने भी अनेक मंदिरों का निर्माण किया। ग्रंथों की रचना की। गुरु वल्लभ ने सरस्वती मंदिरों की स्थापना, समाज को एक नूतन चेतना, नयी दिशा, जागृति, नया मोड़ दिया। श्रीमद् विजय बल्लम सूरि 50 स्वर्गारोहण वर्ष मानव जीवन की बगिया को सजाने के लिये आप सच्चे मानव बने। मानवता के मसीहा वल्लभ ने युगानुरूप संदेश गागर में सागर भरा। आप जब प्रवचन देते, तो गंगा और यमुना छलकती और बोलते तो गागर में सागर भरती । ‘महाभारत' में कहा गया है कि “परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्” पुण्य परोपकार करना है तथा पाप दूसरों को कष्ट देना है।” गुरु वल्लभ ने कहा, “धर्म का स्थान वहीं है जहां पुण्य है तथा अधर्म का स्थान वहाँ है, जहाँ पाप है। युगवीर ने मानव कल्याण तथा जीवों पर दया करने को ही अपना लक्ष्य बनाया। जैन धर्म की नैया को डूबने से बचाया। आज हमें सद्गुरु के पावन संदेशों की आवश्यकता है। विशाखा नक्षत्र में गुरु बल्लभ का जन्म हुआ। भगवान महावीर का आदर्श और सिद्धान्त कहाँ है हमारे जीवन में ? आज युगवीर गुरु वल्लभ अर्द्धशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में प्रभु को साक्षी मान कर पुनः यह संकल्प करें कि हम व्यर्थ के आडम्बर त्याग कर लोक उपकार के मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल बनायेंगे। इसी में मानवता की रक्षा, समाज की उन्नति और विश्वशांति संभव है। गुरु वल्लभ ने जीवन में समाज उद्धार का कार्य तथा विश्वशांति का ही संदेश दिया। भारत देश ऋषि-मुनियों की भूमि है। यहाँ समय-समय पर मानवता के बगीचे को हरा-भरा रखने वाली महान् विभूतियां पैदा होती रहीं हैं। आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज भी एक ऐसी ही विभूति थे। जिन्होंने अपने साधु जीवन को आगम अनुकूल बनाया, जिनका आदर्श जीवन आज भी एक ज्योति स्तम्भ के रूप में समाज को नूतन दिशा प्रदान कर रहा है। आप एक ज्योति पुंज थे। 42 धागों को जोड़ा तो परिधान बन गया, ईंटों को जोड़ा तो मकान बन गया। मानव के बिखरे हुए कणों को जोड़ा तो, एक सच्चा इन्सान बन गया। एक 'क्रान्तिकारक युगदृष्टा' के रूप में जैन संस्कृति के प्रथम जैनाचार्य गुरु वल्लभ थे। गुरुकुल पद्धति पर आधारित मुझे ऐसे विद्यालयों एवं पाठशालाओं का निर्माण करवाना है, जिनमें शिक्षा प्राप्त कर, हर व्यक्ति अपना आध्यात्मिक उत्थान कर सके। इसी प्रयोजन को आत्म केन्द्रित करके, गुरु वल्लभ ने गुरुकुल-कॉलेज-विद्यालय-पाठशालायें खुलवायीं । जिनमें श्री महावीर जैन विद्यालय बम्बई, श्री आत्मानंद जैन कॉलेज-अम्बाला, “विजयानंद कह गये वल्लभ से, हे वल्लभ तुम सुन लेना । मंदिर बन गये नगर-नगर में, गुरुकुल स्थापित कर देना।" विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 50 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विमय बल्ला उल्लम यूरि श्री पार्श्वनाथ जैन विद्यालय वरकाणा, उमेदपुर-फालना-झगड़ीया तीर्थ आदि प्रमुख हैं। हजारों विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करके स्व-जीवन सफल कर रहे। हैं और शासन प्रभावना के कार्य भी संलग्न हैं। आज वर्तमान गच्छ परम्परा के अनेक आचार्य एवं मुनिराज भी आपके मार्ग का ही अनुसरण कर आगे बढ़ रहे हैं। वर्तमान गच्छनायक की सत्प्रेरणा से अम्बाला में गुरुकुल की स्थापना एक ज्वलन्त उदाहरण अर्द्धशताब्दी वर्ष की स्मृति है। गुरु वल्लभ ने। शासन उन्नति के अनेक कार्य किये हैं, उनके मार्ग में बड़ी विघ्न-बाधायें आयीं लेकिन उस समता के सागर ने कोई प्रतिकार न करके प्रभ महावीर के मार्ग पर अविरल आगे बढ़ते रहे। सभी बाधायें अपने आप शांत हो गयीं और आज उन्हीं के पद चिन्हों पर लोग चल रहे हैं और आगे भी चलते रहेंगे।। आज 50 वर्ष के बाद भी लोगों के दिलों में गुरु वल्लभ का वही स्थान है, जो उनकी हयाती में था और आगे भी सदैव के लिये रहेगा, इसका एक ही कारण है, 'विश्व में गुरु वल्लभ' अपने लिये नहीं जीये, दुनिया के दुःख-दर्द को उन्होंने अपना दुःख-दर्द समझा और उसको दूर करने का अंतिम क्षण तक प्रयत्न करते रहे, जैसा उनका नाम था, वैसे ही वे लोक-वल्लभ, विश्व-वल्लभ थे।। भगवान के पास इस प्रकार के सुख की मांग करते थे कि Oh My God ! तुम मुझे इस प्रकार का सुख प्रदान करो कि मैं दूसरों के दीन-हीन के। दुःख के आंसू पौंछ सकूँ । मध्यम वर्गीय समाज के उत्थान में संपूर्ण जीवन की कुर्बानी की, स्व-जीवन का बलिदान दिया। गुरु वल्लभ मध्यम वर्गीय समाज-उत्थान के मसीहा थे। भारत में स्थान-स्थान पर जन जागरण साधर्मिक भक्ति हेतु फंड एकत्रित करवाए।। बम्बई की विशाल मेदनी में, आपने अपने प्रवचन में मध्यम वर्ग के उत्थान के लिये 4 लाख रुपये एकत्रित करने की उद्घोषणा कर, समस्त संघ के समक्ष। प्रतिज्ञा की कि जब तक इस कार्य के लिये पांच लाख की धनराशि एकत्रित नहीं होगी, तब तक मैं दूध और दूध से बनी मिठाई का वस्तुओं का त्याग करूँगा। आपके प्रवचन से प्रभावित होकर, उपस्थित जनसमुदाय में बैठी महिलाओं ने अपने आभूषण प्रदान किये और श्रावकों ने धन की वर्षा की। सर्वोत्तम दान भावना का परिचय दिया। बम्बई में महावीर नगर कांदीवली आवासीय कालौनी इस बात का ज्वलन्त उदाहरण है। साधर्मिक भक्ति गुरु वल्लभ के जीवन का प्राण था, स्थान-स्थान पर धर्मशालाएं और उद्योगशालाएं का नवनिर्माण कराया।। गुरु वल्लभ के अनुसार साध्वी-समाज तीर्थंकर प्रभू द्वारा स्थापित संघ का एक अंग है। नारी शिक्षा प्रचार पर बल दिया। उसे भी ज्ञानार्जन कर। प्रवचन की आज्ञा प्रदान की। ताकि वह भी वीर प्रभु के शासन प्रभावना के कार्य में सहयोगी बन सके। उन्होंने साध्वी उत्थान के लिये भी भगीरथ प्रयत्न किये। आज साध्वी समुदाय का उत्थान हमें अधिक नज़र आ रहा है यह गुरु वल्लभ के ही आशीर्वाद का परिणाम है।। अपने महान गुरुदेव श्रीमद् आत्माराम जी महाराज के स्वर्गवास के पश्चात् आपने उनके मिशन को आगे बढ़ाया। वह मिशन था-प्राणिमैत्री. मानव-कल्याण, समाजोद्धार, राष्ट्रीय एकता और विश्वबंधुता का। आत्माराम जी महाराज ने पंजाब में मंदिरों का निर्माण तो करवा दिया है, परन्तु अब। तुमने सरस्वती मंदिरों की स्थापना करके, पूजारी तैयार करना तथा मैंने जो बगीचा लगाया है उसको सिंचित करके पुष्पित एवं पल्लवित करते रहना।। पंजाब की सुरक्षा का भार तुम्हारे कन्धों पर डालता हूँ। गुजरात की धरा पर जन्म धारण करने पर भी, उद्धार किया पंजाब का एवं सदैव पंजाबी । गुरुभक्तों की रक्षा की। 1507 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका | 43 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मद् विजय बल्लम सूरि । वी भारत-पाक के विभाजन के समय आपका चातुर्मास गुजरांवाला में था। संपूर्ण देश में आतंक का वातावरण था, ऐसे विषम काल में गुजरात, राजस्थान, बम्बई पधारने के लिये समाचार आये, फिर भी युगवीर वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने उद्घोषणा की कि जब तक संपूर्ण जैन समाज पाकिस्तान से निकल कर सकुशल भारत नहीं पहुँचेगा तब तक में पाकिस्तान से भारत नहीं जाऊँगा। महान् आचार्य के पुण्य प्रभाव से कुर्बानी से संपूर्ण जैन-समाज भारत पहुँचा। 50 स्वमरोहण व भारत दिवाकर, युगदृष्टा, पंजाब केसरी श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज 1981 में लाहौर में आचार्य और पट्टविभूषक के रूप में घोषित हुए। आप अहिंसा-रत्नत्रयी के साधक थे। प्रवचन के माध्यम से आप आत्मलक्षी बने। बिना ज्ञान के क्रिया की कोई महत्ता नहीं है। षट्दर्शनों का अध्ययन किया। आपने राष्ट्र और समाज को नयी दृष्टि दी। इस नवीन दृष्टि से आधुनिक युग में नवचेतना का संचार हुआ। समस्त जैन समाज में संगठन हो। हम एकता के सूत्र में रहकर आगे बढ़ते रहे। आपने एक बार जनता को प्रेरणा दी थी और कहा था “मैं चाहता हूँ कि साम्प्रदायिकता दूर हो, समस्त जैन समाज भगवान महावीर के झंडे के नीचे एकत्रित हो, हमारे राष्ट्र का संगठन मजबूत हो भारत में स्वतंत्रता तभी स्थिर रह सकती है, जब कि जैन, बौद्ध, हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी आदि समस्त धर्मावलम्बी एक हों हम सभी एक है अतः हम सच्चे मानव बनकर सत्य अहिंसा के पुजारी बनें। आप अपने जीवन में स्वदेशी वस्त्र और खादी का उपयोग करते थे। आपकी ओजस्वी वाणी से प्रभावित होकर राष्ट्रीय नेता श्री मोती लाल नेहरू ने आजीवन सिगरेट का परित्याग किया था। 1 44 'विष और अमृत, दोनों एक ही समंदर में हैं, शंकर और कंकर, दोनों एक ही कंदरे में हैं। चुनाव का ज़माना है, चुनाव कर लो जी, प्रभु और पशु दोनों तुम्हारे ही अंदर में है।" आप एक महान् क्रान्तिकारी युगदृष्टा के रूप में जाने जाते हैं। आप श्री ने युगानुरूप संदेश दिया। इतिहास इस बात का साक्षी है कि विश्व के विभिन्न देशों में हिंसात्मक क्रान्तियाँ हुई लेकिन विश्वशांति तो अहिंसात्मक क्रान्ति से ही सम्भव है। युगवीर वल्लभ ने अपने विविध प्रवचनों और काव्य-विद्याओं के माध्यम से विश्वशांति का संदेश दिया। “सेवा मार्ग पर चलने के पहले अपने स्वार्थ का त्याग करो। समाज और राष्ट्र की सेवा प्रभु सेवा के समान है, अतः निःस्वार्थ भावना परिवेश पहनकर मंदिर में जाओ। स्व-जीवन सफल बनाओ।" विश्वशांति के अभिलाषी ने अपना जीवन एवं हर करुणा देश को अर्पण की नारी उत्थान का, आपने जो इतिहास रचा वह शाश्वत है। अनेक लोगों को जैन बनाकर शाश्वत सिद्धांत रखे। आपने विभाजन के समय अहिंसा का ध्वज फहराया। हमारे प्रति बच्चों में ज्ञान-प्रकाश की ज्योति जलाई। पंजाबियों के प्राणाधार थे। समाज को सत्य मार्ग दर्शन दिया। जैन धर्म को विश्वव्यापी बनाया। वर्तमान वर्ष को हम अर्द्धशताब्दी वर्ष के रूप में मना रहे हैं। बाल छगन को वल्लभ से विश्व वल्लभ बनाया गया। तुम्हारी यादों का उजाला हमारे साथ है। दीन-हीन के प्रति दया की भावना उनकी एक महानता थी। पीड़ितों के लिये फंड इकठ्ठा करवाना, बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के लिए सहायता देना, हरिजनों के लिये ग्राम विनीली मेरठ में कुआं बनवाना, जैसे अनगिनत कार्य उन्होंने किए, अनेक मंदिरों की प्रतिष्ठा की गुजरांवाला में आतंक, पंजाबियों के जीवन उद्धार के लिये, आपने कमाल दिखा दिया। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 50 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मद् विजय बल्लभ सूरि 50 स्वर्णहर वर्ष गुरु वल्लभ के उपकार अगणित थे। सभी धर्मों के लिए आदरभाव था, एकता देश प्रेम और संयम का पाठ पढ़ाया। मध्यम वर्ग के उत्थान के लिये जीवन पर्यन्त प्रयास किये। “जितना नाम वल्लभ, उतना काम वल्लभ" अगर आप सुखी बनना चाहते हो तो दूसरों को भी सुखी बनाओ। प्रथम अपने जीवन में वल्लभ बनो। "वह कौन-सा फूल है, जिसमें तेरी सुवास न हो, वह कौन सा दीप है, जिसमें तेरा प्रकाश न हो। ज़मीं का मानव गाता है तेरी गौरव गाथा, वह कौन-सा पन्ना है, जिसमें तेरा इतिहास न हो।" हमारे श्रीसंघ के बल्लभ, विश्व के वल्लभ वि.सं. 2011 आश्विन कृष्णा दशमी मंगलवार की रात को स्वर्गवास गुरु समुद्र सोचते ही रह गये कि कल तो कहते थे बिस्तर से उठा नहीं जाता और आज दुनिया से चले जाने की ताकत आ गई। आकाशवाणी से समाचार में यही प्रसारित किया गया कि "आज भारत देश ने जैन समाज का एक प्रमुख संत एवं प्रख्यात शिक्षा शास्त्री खो दिया है।" "गुरु वल्लभ एक ऐसी महान विभूति थे हीरे असंख्य होते रहें, कोहिनूर दुर्लभ एक है, आचार्य साधु अनेक पर युगवीर वल्लभ एक है। आज वर्तमान में रत्नाकर हमारे ताज है, जिस पर हमें नाज़ है। युग युग तक आपका ही शासन चले, यह समस्त संघों की आवाज है।" विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 45 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 थे उपकारी गुरुदेव वल्लभ सूरि सूरि जी "सारी धरती कागज करूं, लेखनी करूं वनराय । सात समुद्र स्याही करूं, गुरु गुण लिखा न जाय।।” मैं कागज कलम लेकर साहस कर रही गुरु के गुणों को लिखने का लेकिन ये कागज़ पर्याप्त नहीं और कलम में भी क्षमता नहीं है। एकमात्र मेरा अपना प्रयास है। गुजरात की बड़ौदा नगरी में दीपचंद भाई के कुल में व इच्छा देवी की रत्न कुक्षि से जन्म लेने वाला रत्न छगन कुमार जो कि जैन शासन का सच्चा रत्न हुआ। न्यायाम्भोनिधि पंजाब देशोद्धारक जैनाचार्य विजयानन्द सूरि जी म.सा. विहार करते हुए बड़ौदा के जानीसेरी उपाश्रय में पधारे। तब यही छगन गुरु चरणों में जाकर आत्म धन की याचना करता है। मां का सपूत मां की अन्तिम आज्ञा का पालन करने के लिए अरिहंत सिद्ध-साहू व धर्म की शरण को स्वीकार करने के लिए गुरु आत्माराम जी के चरणों में समर्पित हो जाता है और आत्मधन के रूप में दर्शन - ज्ञान - चारित्र धन को ग्रहण करता है यानि राधनपुर की धन्यधरा पर भागवती दीक्षा को ग्रहण कर लेता है। दर्शन ज्ञान चारित्र की आराधना निरन्तर गुरुचरणों में बैठ कर करने वाला बालक जब छगन से वल्लभ विजय बनता है तो वही धीरे-धीरे अपने आत्मिक गुणों को विकसित करता हुआ गुरु आत्माराम का प्यारा वल्लभ बन जाता है। जिस वल्लभ की पात्रता को देखते हुए गुरु आत्माराम जी अपने चिन्ता से मुक्त होने के लिए अपने प्यारे वल्लभ को कहते हैं, “हे वल्लभ ! मैं अपने प्राण प्रिय पंजाब की देख रेख का भार तेरे कन्धों पर डालता हूं। तू मेरी इस धरोहर की सुरक्षा करते हुये अभिवृद्धि करना।” आज मुझे लिखते हुये गौरव होता है कि गुरु आत्माराम की धरोहर का गुरु वल्लभ अपने प्राण की परवाह किये बिना जो ख्याल रखा आज पंजाब उसे कैसे भूल सकता है। सन् 1947 में हिन्दुस्तान-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था और देश के विभाग हुए, उस समय पंजाब केसरी गुरुदेव श्री का चातुर्मास विशाल साधु-साध्वी समुदाय के साथ गुजरांवाला में था। उस दृश्य को जब याद करते हैं आज भी हमारा दिल कम्पित होता है, अन्दर से भय लगता हैं। 24 घण्टे गोली की ही बोली सुनाई देती थी। बम के द्वारा आग बरस रही थी, वो दृश्य अति भयानक था । हमारे प्राणों के रक्षक गुरु वल्लभ को कैसे भूलेंगे हम पंजाबी सम्पूर्ण जैन समाज की व आचार्यों और मुनियों की एक ही आवाज़ थी हमारे जैन शासन का सितारा जो गुजरांवाला में फंसा हुआ है, उन्हें भारत में लाया जाये। सरकार के द्वारा व्यवस्था कर दी गई थी। लेकिन गुरु वचन, “हे वल्लभ ! मेरी धरोहर की सुरक्षा करना, संभालना, मैं तुझे सौपता हूँ।” “मैं इन्हें छोड़ कर जाता हूँ तो गुरु आज्ञा का भंग होता है, मुझे अपने प्राणों से भी गुरु आज्ञा प्यारी है।" भारत में आने से इन्कार कर दिया “मैं अकेला नहीं आऊंगा मेरा समाज का एक-एक बच्चे को साथ लेकर आऊंगा।" कैसे भूलेगा जीवनदान देने वाले गुरु के उपकार को और गुरु को । जो हमारे प्राणधार थे। बाह्य शरीर प्राणों का भी अभयदान देने वाले और आत्मिक भाव प्राणों का भी अभय देने वाले परमोपकारी, करुणासागर मेरे प्यारे गुरु आज भी आंखें बंद करके तुम्हारा स्मरण करती हूँ तो मेरे सामने रहते हो। तुम्हारी आत्मिक शक्ति आशीर्वाद से हमारी आत्मा इस संसार के कीचड़ से कमल की भांति अलिप्त बनी है। हे हमारे मन मंदिर में विराजित गुरुदेव हमें ऐसी आशीष देना हमारे जीवन पर अदृश्य कृपा बरसाना, जिससे हमारी आत्मा का कल्याण हो जाये। सा. अमित गुणा श्री जी म. (माता जी) * मुक्तक :- जो साधक अपनी इन्द्रियों को दमता है, वह अध्यात्म की वाटिका में रमता है, होगी अवश्य जीत इस दुनिया में आत्मा की, जिन में संयम साधना की अनुपम क्षमता है, हे मेरी श्रद्धा के केन्द्र गुरुदेव श्री, स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी के पावन अवसर में यही श्रद्धापुष्प अर्पित करती हूं, “युगों तक रहेगा, गुरु तेरा नाम जगत में, चमकते रहेंगे चांद सितारे गगन में।" विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 50 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वल्लभ तेरे चरणों में अर्पण हैं भाव सुमंगल शिशु साध्वी सौम्यप्रभा श्री “हे ! महितल के श्रृंगार, तुम्हें शत-शत वन्दन, हे ! जन-जीवन के तारणहार, तुम्हें शत-शत वन्दन। हे ! भक्तों के करतार, तुम्हें शत-शत वन्दन। हे ! मेरी आस्था के आलोक, तुम्हें शत-शत वन्दन ।। (2) युगों-युगों तक आपका शताब्दी वर्ष हम मनाते रहें 50वें स्वर्गारोहण वर्ष पर गुणगान हम गाते रहें यही कामना है तहे दिल से, हे मेरे गुरु वल्लभ आप हमारी श्रद्धा भक्ति को सदा मजबूत बनाते रहें।। (3) आत्मार्थी बने बिना कल्याण नहीं हो सकता, विद्यार्थी बने बिना विद्वान नहीं हो सकता। सच पूछो तो एक बार बता दूं अब, वल्लभ तेरे आये बिना, समाज का उत्थान नहीं हो सकता।। धार में डूबने से वह बच गया, जिसको नाव का सहारा मिल गया। गर्त में गिरने से वह बच गया, जिसको वृक्ष का सहारा मिल गया। बीहड़ में भटकने से वह बच गया, जिसको गुरु वल्लभ का सहारा मिल गया।। (5) पानी बन तुझे आना होगा, वैर विरोध की आग बुझाने, पिता बन तुझे आना होगा, अपने पुत्रों को समझाने। भावों का गुलदस्ता लिये, हम इन्तजार कर रहे हैं। स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी पर, तुझे आना होगा घर अपना सजाने। SA विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका | 47 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीर्घद्रष्टा-गुरु वल्लभ साध्वी सुमति श्री जी म. की शिष्या साध्वी सुविरति श्री जी गुरुदेव 16 वर्ष की छोटी आयु में राधनपुर के अंदर मोक्षाभिलाषी बन संसार का त्याग कर संयमी बने। 68 वर्ष की संयमी पर्याय में आत्म-कल्याण, समाज में ज्ञान प्रचार, समाज कल्याण कार्यों को करने में अपने जीवन का एक-एक पल, व्यतीत किया। समाज के दुःख में दुःखी होते थे। उनके हृदय में करुणा भरी थी। उनके वचन में शक्ति व चमत्कार भरा था। गुरुदेव हमेशा एकता के चाहक थे। _1. सेवा, 2. संगठन, 3. स्वावलंबन, 4. शिक्षा, 5. साहित्य का निर्माण-ये पांच गुरुदेव के जीवन मंत्र थे। उनकी सूझ-बूझ और दीर्घदृष्टि अलौकिक थी। आज से सौ साल बाद समाज में कैसी स्थिति होगी, उसकी रूपरेखा गुरुदेव ने पहले से ही समाज के सामने अपने मुखारविंद से फ़रमा दी थी। 'अपना जीवन व्यवहार चलाने के लिए व्यावहारिक शिक्षण की अति आवश्यक्ता रहेगी', ऐसा गुरुदेव ने कई साल पहले समाज को संदेश देकर जागृत किया था। इसलिए तो जगह-जगह पर गुरुदेव ने विद्या मंदिर, बोर्डिंग विद्यालय, स्कूल, कॉलेज बनवाकर सैंकड़ों विद्यार्थियों को ज्ञानामृतम् भोजनम् प्राप्त कराया। आज भी हजारों बच्चे देश-विदेश में डिग्रीधारी विद्यार्थी बनकर अपना गुज़ारा सुखशांति से कर रहे हैं और समाज के कार्य भी कर रहे हैं। महावीर विद्यालय जैसी बड़ी-बड़ी सात शाखाएं जगह-जगह पर आज भी विद्यमान हैं, जो यह पूज्य गुरुदेव की देन है। ऐसे दीर्घद्रष्टा पूज्य गुरुदेव थे? गुरुदेव को साधर्मिक भक्ति सबसे प्रिय थी। गुरुदेव ने साध्वी जी महाराजों को समाज में आगे आकर प्रवचन देने की आज्ञा दी थी। तभी गुरुदेव के सामने बहुत कठिनाईयाँ आईं, फिर भी गुरुदेव ने उसका विरोध हँसते मुख से सहन किया। आज उसकी झलक समाज में दिखाई दे रही है। काफी विदुषी साध्वियां जगह-जगह पर विचरण कर उपदेश देकर शासन के अनेक कार्य कर रही हैं, गुरु वल्लभ का नाम चमका रही हैं। _ महाराष्ट्र में आकोला शहर के समीप अंतरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ है, वहां गुरुदेव का आज से 70 साल पहले पदार्पण हुआ था। तभी तीर्थ के विकास के लिए पूज्य गुरुदेव ने ट्रस्टी वर्ग को कहा कि यहां भोजनशाला और बाहरी भाग में नई धर्मशाला बनाने की जरूरत है। ट्रस्टी वर्ग ने गुरुदेव के वचन को वहीं स्वीकार कर लिया और एक भोजनशाला शुरू करवा दी। तभी से यात्रिक लोगों की संख्या बढ़ने लगी। प्रेम से प्रीति-भोजन करने लगे, तीर्थ का विकास बढ़ता रहा। गुरुदेव के कहने के मुताबिक बाहरी भाग में एक नई धर्मशाला भी बनवाई गई। आज से 25 साल पहले उस तीर्थ में दिगंबर, श्वेतांबर का अंदर के भाग में जोरदार झगड़ा हुआ तभी श्वेतांबर भाईयों को खड़े रहने के लिए भी जगह नहीं थी, उस समय भागते आकर बाहर की धर्मशाला में लोगों ने आवास किया और अपने आप को बचाया। कैसी दीर्घदृष्टि थी पूज्य गुरुदेव की। गुरुदेव का कहना था कि हर एक व्यक्ति को हिन्दी भाषा का ज्ञान लेना आवश्यक है। हिन्दी भाषा एक राष्ट्रभाषा होगी। वही गुरुदेव के वचन आज सत्य बन गए। हिन्दी भाषा एक राष्ट्रभाषा बन के रही। दीर्घद्रष्टा गुरु के तो जितने भी गुणगान गाएं उतने ही कम हैं। गुरुदेव दीर्घद्रष्टा थे इसलिए तो आज युगद्रष्टा भी बन चुके हैं। ऐसे गुरुदेव की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष मनाने का मौका हमें प्राप्त हुआ है। हम सभी अपने आप को धन्य मान रहे हैं। ऐसे गुरुदेव को शत्-शत् नमन करके श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं। समन्वय दृष्टि में समभाव बसता है। समभाव में सबके प्रति स्नेह और प्रेम झलकता है। स्नेह भावना पत्थर को भी मोम बना देती है। 48 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 151 Fan Education Intem Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रान्तिकारी जैनाचार्य विजय वल्लभ परम पूज्य साध्वी चन्द्रयशा श्री जी म की सुशिष्या साध्वी पुनीतयशा श्री जी “जग में जीवन श्रेष्ठ वही, जो फूलों सा मुस्काता है, अपने गुण सौरभ से जग में कण-कण को महकाता है। केसरिया बाना धारी तुम, भक्तों के रखवाले तुम, 'रवि सम सा विश्व क्षितिज जैनों के उजियारे तुम।। जिनके गुणों की आभा, सजा गई संसार, स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी गुरु वल्लभ की, देती है प्रेरणा महान्। छोड़ धरा को गुरु आपने, स्वीकार लिया देवों का धाम, 'देवों के भी देव बन गए, चरण कमल में करूं प्रणाम।" मनुष्य के जीवन में गुरु की प्राप्ति होना गुरुदेव के गुणों को शब्दों के माध्यम से कैसे का बिगुल बजाया। एक दृढ़ संकल्प किया और एक महान् उपलब्धि है। गुरु एक ऐसी वर्णन कर सकेगी। ___ उसे पूर्ण करने के लिए जीवन समर्पित कर आध्यात्मिक शक्ति होती है जो मनष्य को नर से धन्यधरा है वह गजरात की, जिन्हें ऐसे दिया। गरु वल्लभ ने आपत्तियों की आंधी की नारायण, आत्मा से परमात्मा बना देती है। गुरु महान् आदर्श संत पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परवाह नहीं की। अरे, विरोधी दलों ने भयंकर एक ऐसे श्रेष्ठ कलाकार होते हैं जो अनगढ़ रूपी उस पावन नगरी बड़ौदा की धरा धन्य है। जो तूफान खड़े किये, लेकिन संकटों के सागरों को। पत्थर को भी प्रतिमा के रूप में परिवर्तित कर ऐसे होनहार प्रतिभाशाली छगन को पाकर साहस व धैर्य रूपी नौका के सहारे पार करते रहे। जनता के लिये पूजनीय बना देते हैं। ऐसे सौभाग्यशाली बनी। स. 1927 कार्तिक शुक्ला और सफलता उनके चरण चूमती रही।। महामना क्रान्तिकारी, युगदृष्टा, गुरु वल्लभ का द्वितीया के शुभ दिन मां इच्छा, पिता दीपचंद के गुरु वल्लभ ने समाज के आत्मोत्थान के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव आज भारत घर जन्म लेकर प्रकाशमान कुल दीपक हुए। साथ-साथ शिक्षा, सेवा, संगठन, साधर्मिक वर्ष के कोने-कोने में मनाया जा रहा है। माता-पिता के आंगन को दिव्य प्रकाश से वात्सल्य व साहित्य प्रचार के क्षेत्र में जो गुरु वल्लभ के प्रत्यक्ष दर्शन का सौभाग्य आलोकित कर दिया। उस छगन का जीवन अनगिनत कार्य किये, उनसे यह जैन समाज तो मुझे प्राप्त नहीं हुआ लेकिन उनके चिंतन द्वितीय के चांद' की तरह माता-पिता के कदापि उऋण नहीं हो पायेगा। गुरु वल्लभ के और उनके गौरवान्वित कार्यों का जब अवलोकन सुसंस्कारों से उत्तरोत्तर सम्पूर्ण कलाओं से हृदय से करुणा का स्रोत प्रतिपल प्रवाहित होता करती हूं तब यह मनवा उनके चरणों में स्वतः ही विकसित होने लगा। मां के द्वारा कहे गये था। जो भी आपकी शरण में दुःख रूपी आंसुओं झुक जाता है। प्रेरणादायी वचनों को पूत्र छगन ने जीवन मंत्र को बहाता हुआ आया, वह खुशियों से झोली। गुरुदेव के बारे में क्या लिखू। उनके बना लिया। अमर धन व सच्ची शान्ति पाने का भरकर लौटा। गुरुदेव की वाणी में चुम्बकीय सहज, सरल, महान जीवन के बारे में जितना एक दृढ़ संकल्प कर लिया और एक दिन संयम आकर्षण था। गुरुदेव का आध्यात्मिक जीवन लिखा जाये उतना कम है, गुरुदेव का जीवन तो पथ के अनुयायी बन गए। उन्नति के शिखर पर पहुंचा हुआ था। किसी भी। स्वयंभू रमण समुद्र से भी विशाल था। गुरुदेव तो गुरु आत्म के विचारों को साक्षात रूप प्रकार के प्रदर्शन व बाह्य आडंबर की कामना एक चिन्तामणी रत्न थे। अरे, जिनका स्मरण देने के लिए गुरु वल्लभ ने समाज रूपी उद्यान नहीं थी। उन्हें पद्वी से नहीं, कार्य से प्रेम था। मात्र ही अनंत लब्धिदायक है। मेरी अल्पबुद्धि को पुष्पित और पल्लवित रखने के लिए क्रान्ति नाम की नहीं काम की चाहना थी। समाज के 1501 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 49 For Private &Personal use only . Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'संगठन के लिए वे आचार्य पद तक को भी । छोड़ने के लिये तैयार थे। इसी कारण वे 'जैनाचार्य ही नहीं अपितु जनाचार्य सिद्ध हुए। गुरुदेव की वाणी नहीं, जीवन बोलता था।। सचमुच, गुरुदेव जैन समाज के लिए ही नहीं। अपितु जन समाज के प्रेरक थे। इसी कारण वे। जन-जन के वल्लभ बन गए। मैं कभी-कभी गुरुदेव के कार्यों पर विचार करती हूं तब मेरे मन में न जाने । अनेकों आश्चर्य प्रवाहित हो उठते हैं कि ऐसी। महान् चमत्कारी, प्रभावशाली विशिष्ट शक्ति उन्हें कैसे प्राप्त हुई तब मनवा स्वतः ही बोल उठता है कि गुरुदेव तो वास्तव में देव पुरुष ही थे। ऐसी विशिष्ट शक्ति हासिल करना। मानव के वश में नहीं। सच, आज के युग में ऐसी विशिष्ट शक्ति के धारक वल्लभ जैसे कोई दूसरे क्रान्तिकारी आचार्य नहीं हुए हैं। तभी तो वे सूरीश्वरों के सिरताज कहलाते थे। जैसे देवों की सभा में इन्द्र, ग्रह गण में चन्द्र, तीर्थो में शत्रुजय, पर्वतों में मेरु पर्वत, मंत्रों में नमस्कार महामंत्र का अद्वितीय स्थान है, वैसे ही गुरु वल्लभ का सूरीश्वरों में अद्वितीय स्थान था। अधिक क्या लिखू। उनका जीवन तो ओरों से भिन्न था, जो कार्य मन में ठान लेते उसे पूर्ण करने के लिए सर्वस्व समर्पित कर देते। थे। न भूख की परवाह करते, न प्यास की। चाहे सर्दी हो या गर्मी। न शरीर की ओर देखा, न उग्र विहार की ओर देखा। बस जो कार्य करने का संकल्प कर लिया उसे पूर्ण करके ही सन्तोष की सांस लेते। गुरु वल्लभ ! आपने प्रान्तियों का निवारण किया तो क्रान्तियों का सृजन भी किया। कुशिक्षाओं का उन्मूलन किया तो सुशिक्षाओं का सृजन भी किया। संप्रदायवाद का मर्दन किया तो संगठन का सर्जन भी किया। गुरुदेव ! धन्य हैं आपके जीवन को ? मैं आपकी गुण गरिमा को किन शब्दों में लिखू। मेरे पास ऐसा कोई शब्द नहीं हैं। सच, गुरुदेव आपके जीवन की थाह पाना अत्यंत ही मुश्किल है। तभी तो संत कबीरदास जी की वाणी चरितार्थ होती है "सब धरती कागद करूं, लेखनी करूं वनराय सात समुद्र की स्याही करूं, गुरु गुण लिखा न जाय" धरती रूपी कागज़ पर कल्पवृक्ष की कलम से समुद्र जितनी स्याही से स्वयं सरस्वती भी। गुरु की महिमा लिखने बैठे तो वह भी गुरु की महिमा लिखने में असमर्थ हैं, तो मैं अज्ञानी अबोध उन महान् गुरु के गुणों का वर्णन करने में कैसे समर्थ हो पाऊंगी। गुरुदेव के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करती हुई मैं गुरुदेव से प्रार्थना करती हूं कि गुरुदेव मुझे भी ऐसी शक्ति देना कि मैं भी आपके पचिन्हों पर चलकर स्वकल्याण के साथ-साथ परकल्याण में तत्पर बनूं। आइये ! गुरुदेव के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी मनाते हुए हम संकल्प करें कि गुणानुवाद के साथ गुणानुसरण करेंगे तभी हम वल्लभ के सच्चे अनुयायी बन पायेंगे। "हे क्रान्तिकारी ! हे युगवीर ! करते हैं तेरा अभिवादन, राह दिखा दो आकर गुरुवर, प्रतीक्षा में हैं हम प्रतिपल । हे द्वितीया के चान्द ! फैल रही अमावस की रात, तड़प रहा समाज तुम्हारा, आ फैलाओ सुनहरा प्रकाश। हे इच्छा के नन्द ! आ जाओ इस धरा पर, अभिनंदन स्वीकृत कर लो, चरणों में शत् शत् वंदन !" 50 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका विजय वल्लभ 450% * For Private & Personal use only www.ja nelibrary.org Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरु समर्पित थे पुरु वल्लभ प.पू. महत्तरा शिशु सा. पीयूषपूर्णा श्री जी म. ध्यान मूलं गुरॊमूर्ति, पूजा मूलं गुरोर्पदम्, मंत्र मूलं गुरुर्वाक्यो, मोक्ष मूलं गुरुकृपा । महाभारत में भील पुत्र एकलव्य की गुरु निष्ठा का प्रेरक प्रसंग आता है, जो आप लोगों ने कई बार पढ़ा होगा और सुना भी होगा। एकलव्य के "मन में धनुर्विद्या सीखने की तमन्ना जगी कि मुझे अपने जीवन में धनर्विद्या की सभी कलाओं को सीखना है। वह बालक अपने हृदय रूपी तिजोरी में। श्रद्धा-समर्पण की सम्पत्ति का संचय कर पाण्डवों और कौरवों के गुरु द्रोण के चरणों में चला जाता है और गुरु चरणों में बैठकर विनम्रता पूर्वक निवेदन करता हुआ, शिक्षा की भिक्षा के लिए याचना करता है। गुरु द्रोण प्रश्न भरी निगाह से उस बालक को देखते हुये पूछते हैं ? "तुम्हारा नाम क्या है और तुम्हारा संबंध किस जाति से है ?” नम्र वाणी में उत्तर देते हुए बालक कहता है “गुरुदेव मेरा नाम एकलव्य है और मेरा संबंध भील जाति से है।" उसी समय आवेश में आकर गुरु द्रोण कहते हैं “मैं निम्न जाति वाले को शिक्षा नहीं देता। शस्त्र और शास्त्र की विद्या नहीं सिखाता, चले जाओ यहां से। गुरु द्रोण ने तिरस्कार भरे शब्दों से अपमान कर उसे निकाल दिया लेकिन उस आदर्श शिष्य ने एक निष्ठा से गुरु की मूर्ति को मन मंदिर में स्थापित कर लिया । और वहीं से गुरु चरणों की धूल को माथे पर चढ़ा कर सीधा जंगल में जाता है और वहां पर एक पर्णकुटीर बनाकर तालाब से गीली मिट्टी लाकर हुबहू * गुरु द्रोण की सूरत का ध्यान कर गुरु मूर्ति बनाता है । उसी गुरुमूर्ति का श्रद्धा से ध्यान करता हुआ। “ध्यान मूलं गुरॊमूर्ति" गुरु चरणों की पूजा करता है।। “पूजा मूलं गुर्गे पदम्” व गुरु के वाक्य को मंत्र स्वरूप मानकर हृदय में धारण करता हुआ भक्ति और समर्पण से अदृश्य में गुरु के आशीर्वाद को प्राप्त । कर धनुष को उठाकर धनुर्विद्या के शरसंधान को करने लगता है। एकलव्य की एकनिष्ठ समर्पण भावना ने उसके जीवन के स्वप्न को साकार कर दिया। वही एकलव्य धनुर्विद्या में इतना पारंगत हो गया कि उसकी धनुर्विद्या के शरसंधान को देखकर पाण्डव पुत्रअर्जुन व गुरुद्रोण स्वयं आश्चर्य में पड़ गये। यह थी मात्र भील पुत्र एकलव्य के दिल की श्रद्धा का चमत्कार। गुरु की कृपा को प्राप्त करने के लिए गुरु की मूरत का ध्यान किया, साक्षात किया। गुरु का । साक्षात्कार किये बिना, उनके पद चरणों की पूजा किये बिना, गुरु के दिल से निकले हुये वाक्यों को मंत्ररूप माने बिना हमारा अपने जीवन में एक कदम तो क्या एक तिल भी आगे बढ़ना संभव नहीं। 'कलिकाल कल्पतरु, अज्ञानतिमिर तरणि, पंजाब केसरी, गुरुदेव श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. | सा. के जीवन के प्रेरक प्रसंग हैं जिन्होंने अपने जीवन की अन्तिम सांस तक गुरु आत्माराम जी का ध्यान । करते हुए साक्षात् मानकर उनके श्रीचरणों की पूजा करते हुये, गुरु के वचनों को मंत्र रूप में धारण किया था। “वल्लभ मेरे प्यारे पंजाब को तू संभालना, हे वल्लभ ! मैंने परमात्मा के मंदिर तो प्रेरणा देकर निर्माण करवा दिये हैं लेकिन तू अब मेरे पीछे परमात्मा के सच्चे पुजारी तैयार करने के लिए सरस्वती मंदिरों की 457 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 51 For Private & Personal use only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बल्लमयी याILD - प्रेरणा देकर निर्माण करवाना। सचमुच में गुरु वल्लभ ने एकनिष्ठ बनकर, गुरु चरणों में समर्पित होकर विरोधियों के विरोध की चिंता किये बिना ही गुरु आत्माराम के स्वप्न को साकार बनाने का पूर्ण प्रयास किया। विरोधियों ने गुरु आत्म की अन्तिम यात्रा के समय आक्षेप लगा दिया था, विषपान का लेकिन । पुलिस भी अचम्भित हो गई, जिसके लिए सब कुछ आत्माराम है ? उस पर कैसी शंका। पुलिस का भी माथा वल्लभ गुरु के सामने झुक गया था। गुरु । वल्लभ अपने जीवनकाल में जो भी काम संघ समाज के लिए किए वे सारे भगवान महावीर व गुरु आत्माराम जी के नाम पर कर उन्हें समर्पित किये। ये। - "गुरु वल्लभ" की सच्ची गुरुभक्ति-समर्पणता का ही वास्तविक नमूना है। जो अपने जीवन में सच्ची प्रेरणा रूप है। अपने परमोपकारी गुरु वल्लभ तो. प्यारे गुरु आत्माराम के प्रति कितने समर्पित थे जिनकी जीवन झांकी आज भी हमें बताती है। ऐसे हमारे हृदय सम्राट, प्राणाधार, गुरु वल्लभ के प्रति एक निष्ठ होकर, श्रद्धा समर्पण के द्वारा उन्हीं गुरु वल्लभ ने जैन समाज में जो साधर्मिक । भक्ति, शिक्षा संस्थान, मानव सेवा मंदिर रूप चिकित्सा आदि के उपवन लगाये हैं। हम सच्ची भक्ति को गुरु के प्रति रखते हुए उनकी लगाई बगिया का श्रद्धा-भक्ति से सिंचन करें। इस स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी के पावन प्रसंग पर श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुये यही शुभ कामना करते हैं कि गुरुदेव हमें ऐसी शक्ति प्रदान करना कि हमें भी आपकी बगिया का सिंचन करते हुये हमारी आत्मा का कल्याण कर सकें। - दीप बुझा प्रकाश अर्पित कर, फूल मुरझाया सुवास प्रदान कर। टूटे तार वीणा के स्वर बहाकर, गुरुदेव चले दुनिया में नूर फैलाकर। चमन में आज बहार क्यों नहीं, मानव मन में आज आनंद क्यों नहीं। इसका कारण समझ में यूं आता है कि, आज इस धरती पर गुरु वल्लभ नहीं।" इसी शुभेच्छा के साथ जय गुरु वल्लभ 52 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका विजय वल्लभ 450 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याज स्तुति (निन्दा के बहाने स्तुति) चोर अपूर्व तू जगनामी, काला विरुद धराया जी। चोर हरे बिन देखे, मुझ मन देखत तुमने चुराया जी।।। -श्री केसरिया नाथ स्तवन उदयपुर (राजस्थान) के समीप धुलेवा ग्राम में श्री केसरियानाथ जी का प्राचीन सुविख्यात तीर्थ है। मूर्ति श्यामवर्णी है, उन्हें भील एवं अन्य लोग कालिया बाबा कहते हैं। केसर चढ़ाकर उनकी मनौती की जाती है, इसलिए उन्हें केसरियानाथ कहते हैं। यह मूर्ति भगवान ऋषभदेव की है। भक्त केसरियानाथ के दर्शन से मुग्ध हो गया है। वह कहते हैं। "हे रवामी ! तुम अपूर्व चोर हो, तुम्हारा काला या कलिया बाबा विरुद सुप्रसिद्ध है। तुम जगत् के नामी चोर हो क्योंकि सामान्य चोर तो बिना देखे चुपके माल चुराता है और तुमने मेरे मन को देखते-देखते चुरा लिया है। दर्शन से प्रभु ने मेरे मन को चुरा लिया। 'विजय वल्लभ सूरि' श्री आत्मानन्द जैन ऐजुकेशन बोर्ड दरेसी रोड लुधियाना । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - “चाहत जैसे चन्द्र चकोरा, जिम चाहे घन घट मन मोरा।। माता जिम चाहे मन छोरा, मन को तिम प्रभु जी से जोरा।।" "जैसे चकोर का चन्द्र में, मोर का मेघ घटा में, माता का पुत्र में मन रमा रहता है,वैसे। ही भक्त का मन प्रभु से जुड़ा रहता है। भक्त की तन्मयता अनुपम है, उसका आनन्द अनुपम है, उसकी मस्ती अनुपम है और अनुपम है उसकी जीवन लीला।" -विजय वल्लभ JAIN UDHAY HOSIERY PVT. LTD. Manufacturers & Exporters of All kinds Hi-Fashion Knitted Fabrics & Garments Regd. Office : 36, Sunder Nagar, Ludhiana-141-007 Ph: 0161-2665222,2665111 Jain Educatioarternational For Privele & Personal use only > www.fainelibrary.org Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “वल्लभ नहीं था आदमी, वह था कोई एक देवता स्वर्ग से आया था बदलने नक्शा जैन समाज का । दुबला पतला था मगर उसमें गजब का जोश था नाडी हमारी देखने में वह बडा बाहोश था" ।। Ideas, Information, Inspiration An exclusive showroom for Bath Fittings, Kitchen & Floorings STYLISH BATH'S Premium Appartments, (Opp. Sant Isher Singh Nagar), Gurudev Nagar, Pakhowal Road, Ludhiana Ph: (0) 2405612,2405498,5001512 Mobile : 98140-23223, 98145-04548, 3215879 E-mail : stylishbaths@sify.com X H&R JOHNSON NITCO JAQUAR HANSGROHE PARRYWARE AMERICAN STANDARD NAHM SAHITARY WAIRE SCAVOLINI MODULAR NOE PERGO WOODEN FLOORS NOVO WOODEN FLOORS KANDEIL WOODEN FLOOR MARBO GRANIT VETRIED TILES KKENZAI PAVINGS & WALLS WOVEN GOLD APOLLO MULTIFUNCTION CUBICLES FABETSPLIANCES ULIKE AQUARAN SOLID SUCACS www.jainellbrary.org. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रद्धांजलि गुरुदेव ने कहा था : “सिर्फ शरीर को सुखाने का नाम ही तप नही है। शरीर के साथ जो अपराध करने वाले रागद्वेष हैं उनको सुखाने की जरूरत है। और तप का सही अर्थ भी यही है।" नेवल चन्द मोहन लाल जैन गाज़ियाबाद-दिल्ली दूरभाष: 23961678, 23931863, 26968269 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रद्धांजलि गुरुदेव ने कहा था : “यथार्थ बात कोई नहीं कहता। तुम्हारा लिहाज़ साधु करते हैं और तुम साधु का, यही कारण है कि सुधार नहीं हो पाता। जहां “तिन्नाणं तारयाणं” था वहां अब “डुब्बाणां डोबियाणं” हो गया। M/s Excel Printer Pvt. Ltd. C-206, Naryana, Industrial Area-A, DELHI Sandeep ain Computers Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रद्धांजलि गुरुदेव ने कहा था । समाज में सुगन्ध फैलाने से पहले अपने में सुगन्ध भरो। दूसरों को सुधारने से पहले स्वयं को सुधारो। DHARAM PAUL NIRMAL DEVI PARIVAR DHARAM DHAWAZ METAL INDUSTRIES IMPORTERS & EXPORTERS MURADABAD Sandeer Ban Computers Jos education Internationell For Private & Personal use only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "महकता था जिससे गुलिस्तां हमारा, वो फूल अपनी महक फैला कर चला गया।" गुरू चरणों में ' चरणों में कोटिशः कोटिश : कोटिशः वन्दन Dyeing p. Sunshine 261-Industrial Area-A, Ludhiana Mobile : 98157-98000 Sang een ain Careline For Private & Personal use only , Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Join Millions of Students Who have shaped their destiny with Pradeep's Books - the only worthwhile books for Medical & Engineering Aspirants savs Brijesh Takkar 1st - AllMS, 1st - CMC-LUDHIANA, 1st - BHU, 2003 It is my good luck that I studied all the books of PRADEEP PUBLICATIONS and can thus firmly say that Pradeep's Books are must for every Medical and Engineering aspirant. For thorough and basic understanding of different subjects, Pradeep's Fundamental Physics (11th & 12th), Pradeep's New Course Chemistry (11th & 12th) and Pradeep's Text Book of Biology (11th & 12th) are the best and the most useful books. For preparation of various Medical Entrance Examinations, Pradeep's Objective Chemistry, Pradeep's Objective Physics and Pradeep's Objective Biology are indispensable. In fact, Pradeep's Objective books are so exhaustive and complete that after going through these books thoroughly, one is fully confident for appearing in any competitive examination. I strongly recommend all Pradeep's books for future medical aspirants and sincerely applaud the efforts of Pradeep Publications in producing such a quality and wonderful books. Brush Takkar (BRIJESH TAKKAR) Pradeeps Pradedes NEW COURSE Pradcopi FUNDAMENTAL Chemistry Pradeepi NUMERICAL BANK GL SAGGI KN SHARMA New Course FUNDAMENTAL Physics Physics Pradee Chemistry Principles of Physics KL GOMBER KL. GOGIA KL GOMBER KL GOGIA SUTO SPESIA CHEMISTRY K.L. GOMBER K.L. GOGIA Rs. Class XI 445/ K.L. GOMBER K.L. GOGIA Class XII 490/ SURINDRA LAL RS S.N. DHAWAN S.C. KHETERPAL P.N. KAPIL Class XI 445/ Rs S.C. KHETERPAL S.N. DHAWAN P.N. KAPIL RS Class XHI 490/ G.L. JAGGI K.N. SHARMA 480/ RS Class XI 418/ AT Boots Pradeepi New Course Mathematics Pradeeps New Course Mathematics Objective Biology Pradeepi COMPETITION TIMES PHYSICS Mathematics A TEXT BOOK OF Biology ROMESH KUMAR PSDHAM N SRIVASTAVA 25 DAMN SRIVASTAMA ROMESH KUMAR G.L.JAGGI P.S. DHAMI H.N. SRIVASTAVA Rs. Class XI 4271 P.S. DHAMI H.N. SRIVASTAVA Rs. Class XII 4271 ROMESH KUMAR Class XI Rs. (A+B+C) 3201 ROMESH KUMAR Class XII (A+B+C) 320/ G.L. JAGGI Rs. 500/ ROMESH KUMAR 5801 Rs. Pradeepi Objective Chemistry Pradeepi Objective BIOLOGY Pradeep Sudjective hysics KL GOMBER KL GOGA Pradeepi Objective PHYSICS K L COWBERKLUOGA Pradeeps Subjective Chemistry Piadesos Subjective BIOLOGY 31 BABA SE DETERMALMENTA S. BISWASABISHAS SX TMA SCHEERLIAMENTA BISWAS A BISWAS K.L. GOMBER K.L. GOGIA 715/ S.N. DHAWAN S.C. KHETERPAL J.R. MEHTA RS RS S. BISWAS A. BISWAS S. BISWAS A. BISWAS RS K.L. GOMBER In K.L. GOGIA Press S.N. DHAWAN S.C. KHETERPAL In J.R. MEHTA Press 7151 715/ Press IN PURS PRADEEP PUBLICATIONS HEAD OFFICE : OPPOSITE SITLA MANDIR, JALANDHAR - 144 008. (Pb.) Phones : 2283736, 2280164 Fax : 0181-2400430 e-mail: ppbooks@jla.vsnl.net.in BRANCH OFFICE: 7/28, MAHAVIR STREET, ANSARI ROAD, DARYAGANJ, NEW DELHI-110 002. Phones : 23273595, 23281566 SINCE 1949 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुदेव ने नवयुवकों से कहा था : “अपना चरित्र बल विकसित करो, राष्ट्र के सुनागरिक बनो। राष्ट्र और समाज तुम्हें आशाभरी दृष्टि से देख रहा है। देशप्रेम, मानवता, प्राणिमात्र के लिये मैत्रीभाव रखते हुए अच्छे कामों की सुगन्ध संसार में फैलाओ।" Ashok Tan Shawls Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज़ीरा में मूलनायक भगवान चिन्तामणि पार्श्वनाथ की गुरु वल्लभ द्वारा स्तुति चिंतामणि महाराज आज तुम सरणी आयो रे।। अंचली विरह प्रभु के अति ही कठिन, काल अनन्ता दुःख सहन। ज्यूं त्यूं प्रभु तुम हाथ लगन, निज मुख से बुलावो रे। 1 साचे देव का चरण गहन, दूर भये सब मदन कदन। जीरे आतम ध्यान धरन, वल्लभ पद दायो रे।। 5 वल्लभ काव्य सुधा पृ. नं. 78 श्रद्धांजलि Chree Vallabh FAN INDUSTRIES Manufacturers of: Celling Fan, Tablefans & Electric Madhani E-124, Focal Point, Ludhiana - 141 010 Ph :(O) 2670201, 2671017 (R) 2665452 Fax : 2671673 MAYA RAM MANAK CHAND JAIN (PATTI WALE) Shree Vallabh Fan Industries Shree Vallabh Overseas Vijay Vallabh Electric Industries Shree Vallabh International Shree Vallabh Exports Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिकाल कल्पतरु, अज्ञार तिमिर तरणि, पंजाब केसरी, जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष में विविध मंगल कार्यक्रम शुभ सप्रेरणा एवम् आशीर्वाद वर्तमान पट्टधर आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज आयोजक : अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरिबल भारतीय विजय बल्लभ स्वर्गारोहण भईशताब्दी महोत्सव महासमिति জন্য ত্র = জ জাল ভিস্র ভাষ্ট্র ভিত্যুি ভাল সিম परम पूजनीय परम वन्दनीय प्रातः स्मरणीय जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. के 50वें स्वर्गारोहण वर्ष को गुरुवर के नाम से मनाने के लिए श्रीमद् आत्म वल्लभ समुद्र इन्द्रदिन्न पाट पर विराजमान वर्तमान पट्टधर कोंकण देश दीपक गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद विजय रत्नाकर सरीश्वर जी म.सा. जी ने जैन समाज को 'विविध मंगलमय कार्यक्रमों' के आयोजन करने की प्रेरणा दी ताकि परम पूज्य गुरुवर का नाम दिग्दिगंत तक फैले और उनके द्वारा समाज पर किए गए उपकारों को याद करते हुए, उनके आदर्शों को जीवन में अपनाएं एवं गुरु का दिव्याशीष प्राप्त करने के लिए इनके श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करें। इससे गुरु भगवन्तों की यशोगाथा के साथ-साथ परमात्मा के शासन की जयजयकार होवे। इन कार्यक्रमों को क्रियान्वित रूप देने के लिए 'अखिल भारतीय विजय वल्लभ' स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति के माध्यम से निम्नलिखित विविध मंगलमय कार्यक्रमों का आयोजन किया गया : __1. अम्बाला शहर में “श्री आत्म-वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल' की स्थापना। 64 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1508 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी की यशोगाथा दशों दिशाओं तक फैलाने के लिए "जम्मू से कन्याकुमारी तक" "विजय वल्लभ रथ यात्रा” का आयोजन। पूज्य गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी की 84 वर्ष की आयु निमित्त "चलो जिन मन्दिर चलें" 84 दिन की प्रतियोगिता। 4. पूज्य गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी द्वारा रचित "जिन पूजा प्रतिस्पर्धा"। पूज्य गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी के जीवन पर आधारित “भाषण प्रतियोगिता"। 6. पूज्य गुरुवर "विजय वल्लभ एक आदर्श जीवन" पर लेख/निबन्ध लिखने की प्रतियोगिता। 7. पूज्य गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी द्वारा रचित स्तवन, सज्झाए आदि का "वल्लभ काव्य सुधा' पुस्तक का पुनः प्रकाशन। 8. “वल्लभ काव्य सुधा पुस्तक में से स्तवन, सज्झाए गायन प्रतियोगिता। 9. पूज्य गुरुवर विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका का प्रकाशन। 10. श्री कश्मीरी लाल अवताश जैन के संघपतित्व के नेतृत्व में मुंबई भायखला गुरु समाधि मन्दिर के दर्शार्थ स्पैशल यात्रा ट्रेन का अयोजन। 11. साधना चैनल पर गुरू वल्लभ सम्बन्धी विविध कार्यक्रमों का प्रसारण वल्लभ काल्यसुधा 65 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ श्री आदिनाथाय नमः श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष 2003-2004 के शुभारम्भ पर श्री भक्तामर महापूजन का आयोजन प.पू. पंजाब केसरी श्रीमद् विजय वल्लभ सुरीश्वर जी म. जी की "स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी के शुभारम्भ वर्ष" 22.9.2003 से 10.10.2004 तक मनाये जाने वाले सभी धार्मिक अनुष्ठान एवं विविध मंगलमय कार्यक्रम विविध रूप से सम्पन्न हो, इसी मंगल भावना से गच्छाधिपति जैनाचार्य प.पू. श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म. की शुभ निश्रा में विजय वल्लभ सेना' उत्तरी भारत के सदस्यों द्वारा श्री भक्तामर महापूजन का विधि विधान श्री सुपार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर अम्बाला शहर में 22.9.03 को प्रातः 11 बजे से सायं 5 बजे तक बहुत सुन्दर ढंग से करवाया गया। प्रत्येक गाथा पर परमात्मा की पूजा कराने हेतु 44 भाग्यशाली परिवारों ने भाग लिया। विजय वल्लभ सेना' उत्तरी भारत के सदस्यों ने जो विधि वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य भगवन् जी से लुधियाना में शिक्षा के रूप में थी, पूरी विधि 'विजय वल्लभ सेना के सदस्यों ने स्वयं विधिकारक बन कर तथा स्तवन आदि बोल कर बड़े ही सुन्दर ढंग से करवाई तथा श्रीसंघ के सभी सदस्यों ने इस सारे अनुष्ठान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस पूजा के पश्चात् प्रभावना का लाभ श्री रत्न चन्द धर्मवीर जैन सर्राफ परिवार वालों ने लिया। 66 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only Alain Education International: Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आत्म-वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना. वर्तमान गच्छाधिपति कोंकण देश दीपक श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म. ने 'गच्छाधिपति' का पद सम्भालने के पश्चात् उदयपुर संक्रान्ति में घोषणा की थी कि मैं आत्म-वल्लभ का समय फिर से लाना चाहता हूँ। इस घोषणा को उन्होंने समय-समय पर कई बार दोहराया। इसी समय को लाने के लिए वर्तमान गच्छाधिपति जी ने विभिन्न मंगलमय कार्यक्रम समाज को करने की प्रेरणा दी। इसमें से लुधियाना चातुर्मास के मध्य, संक्रान्ति पूर्व दिन पर युवा वर्ग के लिए शिविरों का आयोजन किया गया। कुल 5 शिविरों का आयोजन हुआ और उसमें सैंकड़ों नवयुवकों ने भाग लेकर गुरु वचनामृत द्वारा जिनवाणी का रसपान करते हुए, वर्तमान परिस्थितियों में जैन धर्म के विषय में अपनी शंकाओं का समाधान किया। इन्हीं शिविरों की सफलता को देखते हुए प.पू. गच्छाधिपति जी ने उत्तरी भारत में एक गुरुकुल की स्थापना करने की भावना प्रकट की। संयोग से दिनांक 22 सितम्बर 2003 से 10 अक्तूबर 2004 तक का समय पूज्य गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. का स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष मनाने का सुअवसर मिला। इसी वर्ष के मध्य प.पू. गच्छाधिपति जी ने श्री आत्म-वल्लभ जैन श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना करने की भावना प्रकट की, जिसे श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ अम्बाला ने हर तरह से, हर प्रकार से सहायता देने की पेशकश की और दिनांक 22.09.2003 इसकी विधिवत् स्थापना की गई और इसी दिन गुरुवर श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. की पुण्य तिथि के दिन से गुरुवर विजय वल्लभ अर्द्धशताब्दी वर्ष मनाने का शुभारम्भ हआ। देखते ही देखते सभा में गच्छाधिपति जी की निश्रा में गुरुकुल के लिए लाखों की राशि एकत्रित हो गई, कई महानुभावों ने हजार रुपये प्रतिमास पाँच साल तक देने की घोषणा की। प्रथम दिन 15 बच्चों ने प्रवेश लिया। समाज में धार्मिक जागृति के साथ-साथ बच्चों की संख्या बढ़ती जायेगी। इस गुरुकुल में व्यावहारिक ज्ञान वर्तमान शिक्षा के साथ धार्मिक ज्ञान की शिक्षा दी जायेगी। धार्मिक ज्ञान में महामंत्र नमस्कार, गुरुवन्दन, परमात्मा की पूजा-सेवा, सामायिक, पंच प्रतिक्रमण के पाठ, सूत्रों-अर्थों सहित नव तत्त्व विचार आदि विषयों के साथ-साथ जैन धर्म के मौलिक सिद्धांतों की जानकारी दी जायेगी। इस गुरुकुल की स्थापना के लिए प.पू. गच्छाधिपति जी का उद्देश्य नवयुवकों में जैन धर्म के प्रति जागरूकता, जानकारी और क्रियावादी बनाना है। इस गुरुकुल को व्यवस्थित चलाने के लिए एक प्रबन्धक कमेटी बनाई गई जो निम्न प्रकार है: श्री कीर्ति प्रसाद जैन प्रधान श्री अतुल कुमार जैन (सी.ए.) उप प्रधान श्री महेन्द्र पाल जैन बजाज कोषाध्यक्ष श्री अरविन्द कुमार जैन अम्बालवी मन्त्री सदस्य श्री एन.के. जैन श्री नरेश कुमार जैन सर्राफ श्री अरविन्द कुमार जैन (सुपुत्र श्री कीर्ति प्रसाद जैन)। श्री जवाहर लाल जैन मुन्हानी श्री सुशील कुमार जैन मुन्हानी श्री नरेन्द्र कुमार जैन मुन्हानी श्री नितिन कुमार जैन सर्राफ श्री हेमन्त कुमार जैन नारोवाल MARA 67 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प.पू. गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की निर्वाण अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में वर्तमान गच्छाधिपति जी के गुरुकुल के सम्बन्ध में उनके मुखारविंद से निकले कुछ शब्द : आत्म गुरुवर के शिष्य श्री लक्ष्मी सूरीश्वर जी महाराज सा., शिष्य मुनि हर्ष विजय के परम विनयी शिष्य रत्न प.पू. जैनाचार्य पंजाब केसरी श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. ने मुम्बई नगर में कालधर्म प्राप्त किया, अब आगामी वर्ष काल में अर्द्धशताब्दी आ रही है। पचास साल पूर्ण होने की तैयारी हैं। अतः उन परमोपकारी गुरुदेव की निर्वाण अर्द्धशताब्दी मनाना है। उन महापुरुष के महान आदर्शों को लक्ष्य में रख कर सोचने का है। आत्म गुरु दादा गुरुवर की परम हितकारी शिक्षा शिरोधार्य करके जनहित कार्यों में लगें एवं अष्टान्हिका प्रवचन का माध्यम लेकर साधर्मी लक्ष्य में रखते हुए वल्लभ गुरुवर ने शिक्षा माध्यम मुख्य रखा। गुरुदेव दूरद्रष्टा थे। व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक ज्ञान की महत्ता भी उन्होंने रखी। पंजाब, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र आदि स्थानों में ज्ञान की ज्वलन्त ज्योति जला कर आत्म गुरुवर के आदेश को साकार करते हुए गुरुकुल, स्कूल, कॉलेज, महावीर जैन विद्यालय आदि में व्यावहारिक एवं धार्मिक ज्ञान की व्यवस्था रखी गई। इन संस्थानों की व्यवस्था समितियां बदलती रहीं। उसमें उनकी सूझबूझ का प्रभाव पड़ता रहा। धार्मिक ज्ञान विहीन ट्रस्टीगण स्वयं खाली थे तो दूसरों को क्या देते?यही स्थिति चलते हुए कई संस्थाओं में सिर्फ व्यावहारिक ज्ञान ही रहा। अब मेरी भावना है कि उन महापुरुष की भावना को देखते हुए आज की विषम परिस्थितियों में यदि हमारी संतानों को देव-गुरु और धर्म का ज्ञान । नहीं दिया जाएगा, तो आगामी समय कैसा आयेगा? आज के जैनों की परिस्थिति यह है कि नवकार मंत्र ही जानकर रह रहे हैं। धर्म ज्ञान की रूचि दिनों-दिन लुप्त होती जा रही है। आज भी पंजाब में गुजरांवाला गुरुकुल को याद करते वहां से शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों में कुछ धार्मिक ज्ञान की मात्रा दिखाई पड़ रही है। ऐसे तो हरेक गांव में धार्मिक पाठशाला चलाई जा रही है। अनपढ़ माता पिता को धार्मिक ज्ञान की इतनी उपयोगिता समझ में नहीं आती, इसलिए अपनी संतानों को धार्मिक ज्ञान नहीं दे पाते। इन परिस्थितियों में अब समय की मांग है-जागो-जागो ! इधर गुरुकुलों की स्थापना होनी चाहिए। मेरा समाज से अनुरोध है कि यदि अपनी संतानों का भविष्य अच्छा बनाना होवे तो गुरुकुलों की स्थापना करें। उसमें तन-मन-धन से सहयोग देवें।। विशेषकर समाज के उच्च वर्ग इस सुअवसर अर्द्धशताब्दी पर गुरुकुल की स्थापना भी कर देंगे। लेकिन उसमें पढ़ने वाले नहीं आयेंगे तो क्या होगा? समाज के जन-जन को मेरा अनुरोध है कि अपनी संतान को गुरुकुलों में रखकर व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक ज्ञान देकर श्रावक बनाया जाये। यह मेरी आन्तरिक भावना है। यह परमोपकारी गुरुदेव की अर्द्धशताब्दी तो बड़े प्रेम से मनायेंगे। भाषण, गीत-गायन से और भी अन्तरंग अनुष्ठानों से मनाएंगे, यह उपकारी गुरुवर के प्रति हमारी श्रद्धा होगी लेकिन उनके आदर्श कार्यों को तेजी मिले, ऐसी प्रवृत्ति मन में लाओगे तो सही है, अपनी संतानों को जैनत्व के संस्कारों से युक्त बनाओगे, तो स्वर्गीय गुरुओं को भी बड़ी प्रसन्नता होगी और वे आशीर्वाद देंगे। आओ, हम सभी मिलकर आदर्श गुरु के आदर्श कामों को करने के लिए कटिबद्ध होकर कार्य करें और कार्य को साकार रूप प्रदान करें। मेरा पिछला चौमासा लुधियाना में था। उसी वक्त जैन धार्मिक पाठशाला का आयोजन धार्मिक शिक्षा के पदाधिकारियों की ओर से शिक्षा दाता माघीशाह द्वारा किया गया था। उसमें अपने व्याख्यान में संकेत दिया था कि आगामी समय में वल्लभ गुरुवर की अर्द्धशताब्दी आ रही है। प्रमुख उद्योगपति जवाहर लाल ओसवाल भी मौजूद थे। गुरुदेव की अर्द्धशताब्दी शिक्षा के अनुरूप मनानी, श्री आत्म वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना और वल्लभ गुरु की झांकी आदि के निर्देश को स्वीकार करने के सहयोग रूप में सभी ने गुरुदेव की जय जयकार के साथ बधाई दी थी। यही देखते हुए आज अम्बाला नगर में अगस्त की संक्रान्ति पर वल्लभ गुरुदेव की अर्द्धशताब्दी 'क्षमापना-बड़ी संक्रान्ति' से साल भर के लिए शुभारम्भ हो जायेगा। साथ-साथ में अम्बाला नगर में आत्म वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना होगी। पांचवीं एवं छठी कक्षा से गुरुकुल में प्रवेश किया जायेगा। पांच साल के बच्चों को रहने का, पांच साल में उसको व्यावहारिक शिक्षा, सहश्रावक को उचित धार्मिक ज्ञान, पंच प्रतिक्रमण, जीव विचार, नवतत्त्व अंग पूजा, अग्र पूजा, द्रव्य पूजा, भाव पूजा आदि विविध प्रकार की पूजा सम्बन्धी जानकारी दी जायेगी। साथ ही चौमासी संवत्सरी प्रतिक्रमण, पर्युषण, व्याख्यान माला, यहां तक विद्यार्थी को योग्यता दिलाई जाएगी। 68 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुकुल/विद्यालय योजना आपको विदित ही है कि अम्बाला शहर में गच्छाधिपति आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. जी का चातुर्मास सुखसाता पूर्वक चल रहा है। आचार्य श्री जी का चातुर्मास श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ अम्बाला शहर के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। पाकिस्तान बनने के पश्चात् अम्बाला शहर में गुजरांवाला गुरुकुल की तरह श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की 50वीं पुण्य तिथि वर्ष के उपलक्ष्य में गच्छाधिपति आचार्य भगवन ने करवाकर उत्तर भारत के श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय पर जो उपकार किया है, वह भुलाया नहीं जा सकता। गुरु आत्म वल्लभ के मिशन में एक और कड़ी जुड़ने से सुनहरी अवसर प्राप्त हुआ है। वास्तव में भले ही हमने श्रावक कुल में जन्म लिया है परन्तु हमारे में जैनत्व के संस्कार नहीं। हमारे बच्चे सम्यक्त्व ज्ञान पाकर श्रावकाचार युक्त जीवन बिताएं। श्रमणोपासक यानि श्रमण भगवान महावीर स्वामी के उपासक बने, सुसंस्कारी एवं सच्चे श्रावक बने, इसके लिए श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना की गई है। आओ हम तन, मन और धन से अपने आपको इस पर न्यौछावर करें। गुरुकुल योजना श्री आत्म वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल प्रथम तल (प्रथम मंजिल) दान देने वाले का नाम नकरा 11 लाख रुपये द्वितीय तल (द्वितीय मंजिल) नकरा 11 लाख रुपये 20 फुट X30 फुट के नकरा 2 लाख रुपये प्रति कमरा 40 कमरे बनेंगे। तन मन और धन से सहयोग दीजिए धन्यवाद ! विद्यालय योजना श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक विद्यालय प्रथम तल (प्रथम मंजिल) दान देने वाले का नाम नकरा 15 लाख रुपये 20 फुट X 25 फुट के 25 कमरे नकरा 1.5 लाख रुपये प्रति कमरा प्रथम तल पर बनेंगे। आनन्द कुमार जैन मंत्री “उपरोक्त गुरुकुल एवं विद्यालय में कोई भी व्यक्ति, संघ, संस्था, शिक्षण संस्थाएं अपनी अपनी शक्ति के मुताबिक भाग ले सकती हैं। वल्लभ गुरु के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए अम्बाला नगर को यह लाभ मिला है। यह महान् कार्य युगों तक चिरस्मरणीय बनेगा। अपना समाज सुसंस्कारी, वीतराग प्रभु का उपासक, परम श्रावक बनें, इस अपेक्षा से सम्पर्क कर रहे हैं। उत्तर भारत के इस कार्य में अम्बाला श्रीसंघ को सहयोग दें, यह मेरा आदेश है।" आचार्य रत्नाकर सूरि श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक गुरुकुल की नियमावली ध प्रेम से रहेंगे। बड़े छात्र छोटों से स्नेह करेंगे और छोटे छात्र बड़ों का आदर करेंगे। बाहर से आने वाले गुरुकुल पदाधिकारी, माता पिता एवं जैन बन्धु आदि का सत्कार करना। 'जय जिनेश्वर देव' कहना भोजन एवं पानी बैठकर खाना पीना। जूठन नहीं छोड़ना। 'कम खाओ, गम खाओ, नम जाओ' इन तीनों बातों का पालन करना और सुखी रहना। जिन पूजा करने से पहले स्नान कम से कम पानी से करना, अन्यथा नहीं। बिना कारण से किया हुआ स्नान भैंसा स्नान कहलाता है। जिनेश्वर देव ने पानी में अनन्त जीव बताए हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से पानी के एक अणु में 36656 जीव हैं, वह भी अपने जैसे हैं। इसलिए कम पानी का उपयोग करना चाहिए। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 69 www.jainelibrary.ord Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बच्चो, हम गुरुकुल में क्यों आए हैं ? हम जैन हैं, हमें श्रावक बनना है, श्रावक जिनेश्वर देव का उपासक होता है। 'देव-गुरु-धर्म' का आज्ञाकारी सेवक होता है। हमें भी परमात्मा अरिहन्त देव का आज्ञाकारी सेवक एवं सुश्रावक बनना है। श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक गुरुकुल हमारी प्राण प्यारी संस्था है। यह संस्था हमारी माता है। हम इस संस्था के लिए तन, मन और धन न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं। यह हमारा नैतिक कर्त्तव्य है। हम श्रावक बनकर विजय वल्लभ सेनानी बनेंगे। धर्म और धर्मी जनों के रक्षक बनेंगे। आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्रदिन्न-रत्नाकर सूरि पाट परम्परा के आज्ञाकारी बनकर अपने आपको धन्य मानेंगे। जय जिनेश्वर देव ! गुरुकुल के छात्रों के दैनिक कार्य 1. प्रातः उठकर विद्या गुरु को प्रणाम करना। प्रार्थना हाल में सामूहिक प्रार्थना (श्री वल्लभ गुरु के चरणों में) करना। शारीरिक स्वस्थ्यता के लिए 10 मिनट व्यायाम करना। प्रभु दर्शन। प्रतिदिन स्नान करके जिनपूजा करनी (रविवार को पूजा के पश्चात् स्नात्र पूजा पढ़ानी) प्रतिदिन नवकारसी एवं मुट्ठि-सहिअं करना (दायां हाथ भूमि पर स्थापित करके 3 नवकार पढ़ना)। 7. भोजन करके थाली, गिलास, कटोरी धोकर पीना। 8. प्रतिदिन नियमित स्कूल जाना। 9. स्कूल से आकर भोजन करने के पश्चात् स्कूल से मिला स्कूल कार्य करना। 10. सायं के भोजन से पूर्व आधा घण्टा खेलने की अनुमति (छुट्टी)। 11. सूर्यास्त समय में जिन मन्दिर जी में आरती। 12. सायं 7.00 बजे से 8.00 बजे तक धार्मिक सूत्र एवं तत्त्व ज्ञान की पढ़ाई। बाद स्कूल का कार्य व पढ़ाई। 13. रात्रि 9.00 बजे विद्या गुरु को प्रणाम करके 'जय जिनेश्वर देव' कहकर अपने अपने कमरों में जाकर सात नवकार मन्त्र गिनकर सोना। गुरूवल्लभ गुरूकुल कालेज की शान है विद्यालय 70 70 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 150 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | श्रीमद् आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्रदिन्न-रत्नाकर सूरि सद्गुरुभ्योः नमः | श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष में भव्यातिभव्य विजय वल्लभ रथ यात्रा शुभारम्भ : 6 फरवरी 2004 समापन : 23 मार्च 2004 कोकामना शुभ सप्रेरणा एवं आशीर्वाद : वर्तमान गच्छाधिपति कोंकण देश दीपक जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. 150 71 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only n Education Real , Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रथयात्रा प्रयाण के अवसर पर गच्छाधिपति जी का मंगल सन्देश "जन-जन के हितकारी, प्रखर शिक्षा प्रचारक, कलिकाल कल्पतरु, अज्ञान तिमिर तरणी, पंजाब केसरी, जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में लुधियाना से ई.सन् 2004 माघसुदि 15, शुक्रवार दिनांक 6 फरवरी विजय वल्लभ रथ प्रस्थान करेगा। विभिन्न नगरों में भ्रमण करेंगे। जम्मू से कन्याकुमारी तक का सफर रहेगा। आखिरी महामोक्ष नगरी में भायखला समाधि स्थल पर पूर्णाहुति होगी। वल्लभ गुरुवर को काल धर्म पाये पचास वर्ष होने जा रहे हैं। समाज के परहितकारी शासन्नोति करने में भगीरथ प्रयास किया। दादा गुरु विजयानन्द सूरि जी महाराज (आत्माराम जी महाराज) के आदेशानुसार जैन समाज को स्थिरता हेतु धर्म में आस्था बढ़ाने निमित्त जैन बन्धु अशिक्षित न रहें, स्वावलम्बन जीवन जीयें, इसी हेतु को लक्ष्य में लेकर शिक्षा के माध्यम से प्रचार-प्रसार मार्गदर्शन देकर जगह जगह पर गुरुकुल कालेज महावीर जैन विद्यालय जैसी सैकड़ों संस्थाएं स्थापित करवा कर पूरे भारत वर्ष में जैन पताका लहराई। वही संस्था में पढ़े भक्तजन आज पूरे भारत में और विदेशों में भी बसे हुए हैं उन भक्तों को अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में जानकारी हेतु प्रचार-प्रसार का कार्य, ऐसे जन-जन के आधारभूत विश्व वत्सल गुरु रथ का दर्शन करें। पचास वर्ष पूर्व पूज्य गुरुदेव के उपकारों को याद करते हुए हमें भी इसी आशय से 2003 से 2004 तक पूरे वर्ष भर गुणगान गाते रहने का विभिन्न कार्यक्रमों से आए अवसर को सदुपयोग करना है। यह रथ आपको यही सन्देश देगा, आप वल्लभ गुरुवर के परम भक्त हो, कृपापात्र हो। अवसर पाया है, मत चूकिये। गुरु वल्लभ की एक-एक संस्था में तन, मन और धन न्यौछावर कर दो। पचास वर्ष बाद अवसर आया है। यही आपको याद देने हेतु रथ प्रयाण किया है। आप सोते मत रहना, आबाल, वृद्ध सजग बन जाना। रथ को अच्छी तरह से देखो, रथ में रखी गुरु मूर्ति का अच्छी तरह से दर्शन वन्दन कर लो, इस अवतारी महापुरुष को युगों-युगों तक स्मरण में रख लो, सुह गुरु जोगो को बना लो, ऐसे जनहितकारी गुरुवर मिलते रहें। आइये ! इस तरीके से अपने परम उपकारी गुरुवर की अर्द्धशताब्दी मनाएं। गुरु गुण गाकर अपना जीवन सफल बनायें। विशेष अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में अपने संतानों को जैनेत्व का संस्कार देने का संकल्प कर लें। अपने घर में या गुरुकुल में रख कर धार्मिक ज्ञान अवश्य दो ताकि मिला हुआ मनुष्य जीवन सफल हो सके। देवगुरु धर्म का परिचय करके धर्ममयी जीवन बनाएं। औरों के भी रहबर बनें। इन्हीं शुभ संकल्पों के साथ आगे बढ़ो।" 72 ली. आचार्य विजयरत्नाकरसूरी M विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भव्यातिभव्य गुरु वल्लभ रथयात्रा निकालने का प्रयोजन 1. गुरु वल्लभ की यशोगाथा सम्पूर्ण भारत वर्ष में फैले तथा यशोगाथा का सम्पूर्ण भारत वर्ष में गायन हो। 2. गुरु वल्लभ जिन्होंने देशवासियों के महावीरत्व को जगाया, विश्व मानस को अहिंसा और अनेकान्त दर्शन का अमृत पिला कर विश्व शान्ति की चेतना प्रज्जवलित की, ऐसे महामानव के गुणों का गायन सभी करें। 3. गुरु वल्लभ आज 50 वर्ष पश्चात् हमारे बीच फिर से जीवन्त हों, उनकी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार तथा उनके द्वारा रचित स्तवन, सज्झाए, थुई आदि का गायन हो। 4. गुरु वल्लभ द्वारा प्रेरित संस्थापित संस्थाएं फिर से गुरु वल्लभ के उद्देश्यों को प्राप्त हों। 5. गुरु वल्लभ के अनुयायी अपनी यशस्वी पाट परम्परा के झण्डे तले एकत्रित हो। -6. जिन शासन की प्रभावना दशों दिशाओं में फैले। 7. गुरुदेव के उपदेशों, आदर्शों को अपनी आत्मा के उद्धार के लिए अपने जीवन में अपनाने का सुअवसर प्राप्त करें। अपने प्रयोजन को सिद्ध करते हुए भव्यातिभव्य रथयात्रा ने अपना भ्रमण लुधियाना से शुरू करते हुए दिनांक 23 मार्च 2004 को पूज्य गुरुदेव पार्थिव शरीर के संस्कार स्थान, जोकि भायखला (मुम्बई) में स्थित है, वहां पर इसका समापन किया गया इस प्रकार यात्रा 1 महीना 17 दिन तक चली इस भव्य यात्रा ने उत्तरी भारत से दक्षिणी भारत तक सम्पूर्ण भारत वर्ष में भ्रमण किया। जिस भी शहर, कस्बे और गांव में रथ पहुंचा वहां पर इस भव्य रथ का उत्साह पूर्वक स्वागत किया गया। जहां रात्रि विश्राम हुआ वहां पर गुरुदेवों के नाम का गुणगान हुआ। इस प्रकार पूरे भारत वर्ष में गुरु वल्लभ के यश का नारा फिर से गुंजायमान हो उठा। आया समय सुहाना साथी, मंगलमय उद्घोष सगर है। जय जय जयति जयति गुरु वल्लभ, गुंजित स्वर हर गांव नगर है।। श्री गुरु चरणों के वन्दन में, साथी ! कोटि-कोटि सर रख दो। अर्द्धशताब्दी ललकार रही है, गुरु समर्पण का तुम व्रत लो।। विजय वल्लभ रथयात्रा के शुभारम्भ की पूर्व संध्या पर 'पंचम की शाम गुरु वल्लभ के नाम 'भव्य भजन संध्या का आयोजन दिनांक 5 फरवरी 2004 गुरुदेव विजय वल्लभ स्वर्गारोहण मण्डली, श्री मेंहदीरत्ता, श्री ज्ञानचन्द चांदी, श्री सुशील कुमार अर्द्धशताब्दी वर्ष को एक महोत्सव रूप में मनाते हुए भव्य विजय मोही वाले, श्री सुशील कुमार रिन्द, मुम्बई से पधारे केवल भाई वल्लभ रथयात्रा के शुभारम्भ से पूर्व रात्रि में एक भव्य भजन एण्ड पार्टी ने विशेष रूप से भाग लिया। इस अवसर पर श्री संध्या का आयोजन जैन स्कूल दरेसी लुधियाना में किया गया कश्मीरी लाल जी, बाबू श्रीपाल जी, श्री देवेन्द्र कुमार जैन, श्री जिसकी अध्यक्षता श्री सतीश कुमार जैन (मै. जैन अमन हौजरी) सिकन्दर लाल जैन, श्री राजेन्द्र पाल जैन, श्री प्रवीण जैन ने की जिसमें बाहर से पधारे तथा स्थानीय गुरुभक्तों ने अपने पाटनी, श्री पुष्पदंत जैन पाटनी, श्री विनोद जैन अमृतसर, श्री भक्तिमय संगीत के माध्यम से गुरु महिमा का गुणगान किया संजीव जैन पाटनी, श्री अशोक जैन आदि गणमान्य व्यक्ति जिसमें मुख्य रूप से एस.ए.एन. जैन माडल स्कूल की संगीत उपस्थित थे। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 73 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74 पंचम की शाम गुरु वल्लभ के नाम दी महोत्सव वर्ष 2003-2004 महाराज श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण पंचम की छ जेन विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका पंचम की शाम "ति जैनाचार्य श्रीमद् वि विजय रथ bidhe; for Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ‘पंचम की शाम गुरु वल्लभ के नाम' गाम गुरूवर मज गुरू वल्लभ एवआशीर्वा विजय र पंचमका शाम पंचम की शाम गुरू पलभ Fogy विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 75 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jan विजय वल्लभ रथयात्रा का संचालन अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति द्वारा वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की सद्प्रेरणा एवम् शुभ आशीर्वाद से जम्मू से कन्याकुमारी तक विजय वल्लभ रथयात्रा का आयोजन किया गया। महोत्सव महासमिति ने सम्पूर्ण भारतवर्ष में भ्रमण करने वाली इस रथयात्रा को कुशलता पूर्वक संचालन के लिये प.पू. गच्छाधिपति जी के निर्देशानुसार रथयात्रा के सम्पूर्ण संचालन का कार्यभार “विजय वल्लभ सेना उत्तरी भारत" के उत्साही कार्यकर्त्ताओं को सौंपा। विजय वल्लभ सेना ने इस कार्यभार को प्राप्त कर अपने आपको पुण्यशाली माना। “महोत्सव महासमिति” एवम् “विजय वल्लभ सेना" के पदाधिकारियों ने इस वृहतकार्य की पूर्व तैयारी की और रथयात्रा के प्रचार-प्रसार के लिए श्रीसंघों में जाकर इस कार्यक्रम की पूर्व जानकारी तथा विभिन्न प्रकाशित सामग्री उस नगर के श्रीसंघ के पदाधिकारियों को दी। इस भव्य रथयात्रा के लिए एक भव्य रथ का निर्माण व उसकी अनूठी साज-सज्जा श्री शांतिलाल जी जैन लुधियाना वालों ने की। रथ को कलात्मक तथा सुसज्जित करने के लिए, श्री शांति लाल जी जैन ने दिन-रात एक करके कड़ा परिश्रम किया। इस के साथ ही वे लुधियाना से सम्पूर्ण भारत वर्ष में रथयात्रा के साथ ही रहे। श्री नीरज जैन, श्री आशीष जैन सम्पूर्ण रथयात्रा के सक्षम व सजग सारथी रहे। इस भव्य रथ के दर्शन कर, सभी भक्तजन मंत्र-मुग्ध हो गए और रथ-निर्माणकर्त्ता की मुक्तकंठ से सराहना की। विजय वल्लभ सेना के सदस्य तथा समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति रथयात्रा के संचालन के लिए, समय-समय पर विभिन्न नगरों में जाते रहे और रथयात्रा को अपने गंतव्य स्थान की ओर पहुंचाने में पूरा योगदान दिया। रथ निर्माणकर्त्ता एवं यात्रा प्रमुख 76 श्री शांति लाल जैन लुधियाना श्री नीरज जैन लुधियाना श्री आशीष जैन लुधियाना विजय वल्लभ रथ यात्रा के संचालक प्रो. राजेन्द्र जैन संयोजक रथ यात्रा | विजय वल्लभ रथ के सारथी PORAR श्री पद्म जैन लुधियाना श्री उमेश जैन संचालक रथ यात्रा श्री सतीश जैन अम्बाला विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका श्री राजेश जैन वित्त सचिव रथ यात्रा श्री अरविन्द जैन अम्बाला Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजय वल्लभ के सेना के सदस्य जिन्होंने रथ यात्रा के भ्रमण में समय-समय पर अपना सक्रिय योगदान दिया 1. प्रो. राजेन्द्र जैन 2. श्री राजेश जैन 3. श्री शान्ति लाल जैन 4. श्री नीरज जैन 5. श्री पद्म जैन 6. श्री आशीष जैन 7. श्री अरविन्द जैन 8. श्री सतीश जैन 9. श्री रमन जैन 10. श्री लतेश जैन 11. श्री यशपाल जैन 12. श्री संदीप जैन 13. श्री नवनीत जैन 14. श्री राजेश जैन 15. श्री चितरंजन जैन 16. श्री सुरेश जैन 17. श्री मणिक जैन 18. श्री सचिन जैन 19. श्री प्रदीप जैन 20. श्री आशुपाल जैन 21. श्री अरुण जैन 22. श्री यशु जैन 23. श्री सौरभ जैन 24. श्री प्रवीण जैन 25. श्री महिन्द्र जैन 26. श्री कोमल जैन 27. श्री चन्द्र मोहन जैन 28. श्री प्रमोद जैन 29. श्री राजेश जैन 30. श्री उमेश जैन 31. श्री अश्विनी जैन 32. श्री पंकज जैन 33. श्री बोबी जैन 34. श्री विनीत जैन 35. श्री साहिल जैन सुपुत्र श्री दर्शन लाल जैन नकोदर सुपुत्र श्री कीमती लाल जैन लुधियाना सुपुत्र श्री रिखब दास जैन लुधियाना सुपुत्र श्री गुणचन्द्र जैन लुधियाना सुपुत्र श्री किशोरी लाल जैन लुधियाना सुपुत्र श्री विनोद कुमार जैन लुधियाना सुपुत्र श्री विजय कुमार जैन अम्बालवी अम्बाला शहर सुपुत्र श्री तीर्थ दास जैन नारोवाल वाले अम्बाला सुपुत्र श्री सुरिन्द्र कुमार जैन लुधियाना सुपुत्र श्री तरसेम लाल जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री नगीन चन्द जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री चन्द्रकान्त जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री प्रीतम चन्द जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री शान्ति लाल जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री शेखर जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री नगीन चन्द जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री सुशील जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री लाल चन्द जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री किशोरी लाल जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री दर्शन लाल जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री सतपाल जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री सुरेश जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री राकेश जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री तिलक राज जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री प्रकाश चन्द जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री कपूर चन्द जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री शान्ति लाल जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री रोशन लाल जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री शान्ति लाल जैन लुधियाना सुपुत्र श्री दर्शन लाल जैन होशियारपुर सुपुत्र श्री रोशन लाल जैन जालन्धर सुपुत्र श्री सुशील जैन जालन्धर सुपुत्र श्री दर्शन लाल जैन, होशियारपुर सुपुत्र श्री सुरेश कुमार जैन, होशियारपुर सुपुत्र श्री प्रेम जैन, होशियारपुर विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 77 For Private & Personal use Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भब्यातिभव्य रथ का शुभारम्भ दिनांक 6 फरवरी : जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज साहिब के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष को महोत्सव रूप में मनाने हेतु विजय वल्लभ भव्य रथ यात्रा के शुभारम्भ के उपलक्ष्य में वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की निश्रा में जैन स्कूल दरेसी, लुधियाना में प्रातः 10.00 बजे धर्मसभा का आयोजन किया गया। गुरुदेव के साथ मुनिराज श्री लक्ष्मी रत्न विजय, मुनि श्री राजयश विजय, मुनि श्री अशोक रत्न विजय, साध्वी श्री रक्षित प्रज्ञा ठाणा-2 भी मंच पर विराजमान थे। गुरुदेव द्वारा मंगलाचरण के पश्चात् सभा के अध्यक्ष श्री राजकुमार जैन (मै. प्रदीप पब्लिकेशन्स जालन्धर वाले) का बहुमान किया गया। अध्यक्ष महोदय द्वारा गुरु प्रतिमा जी को रथ में विराजमान किया गया। वासक्षेप पूजा, माल्यार्पण, भण्डार में प्रथम चढ़ावा और आरती आदि धार्मिक क्रियाओं के कार्यक्रम सम्पन्न होने के पश्चात् गुरुदेव का प्रवचन हुआ। प्रशासन की ओर से श्री अनुराग वर्मा डिप्टी कमिश्नर लुधियाना द्वारा गुरु प्रतिमा को माल्यार्पण किया गया। श्री नाहर सिंह गिल मेयर लुधियाना, श्री सुरेन्द्र डावर विधायक ने भी प्रतिमा जी को माल्यार्पण किया। समारोह में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में श्री रघुवीर कुमार जी, जालंधर, श्री बलदेव राज जैन 'पूर्व सम्पादक विजयानन्द' श्री प्रद्युम्न कुमार जैन 'वल्लभ फैब्रिक्स', श्री मोहिन्द्र कुमार जैन 'बी.एम. ओसवाल', श्री राम कुमार जैन 'श्रमण शाल', श्री आत्मानन्द जैन सभा मुरादाबाद से श्री मदन लाल जैन, जम्मू श्रीसंघ से श्री सुदर्शन कुमार जैन, अमृतसर श्रीसंघ के प्रधान श्री विनोद जैन, होशियारपुर श्रीसंघ से श्री कमल कुमार, नरेन्द्र कुमार, श्री चंद्रशेखर जैन इत्यादि, अम्बाला से श्री अरविन्द कुमार जैन इत्यादि उत्तर भारत के समस्त श्रीसंघों, जिनमें रायकोट, बटाला, सामाना, सुनाम, मालेरकोटला, मुरादाबाद, गाजियाबाद, मेरठ, बलाचौर इत्यादि श्रीसंघों से भक्तजन भारी संख्या में उपस्थित थे। इस भव्य रथ में गुरु प्रतिमा को विराजमान करने का लाभ धर्म सभा के अध्यक्ष महोदय श्री राजकुमार जैन मै. प्रदीप पब्लिकेशन्स जालन्धर वालों ने लिया। गुरु प्रतिमा की वासक्षेप पूजा का लाभ लाला फग्गूमल कश्मीरी लाल जैन मै. वल्लभ यार्नस लुधियाना वालों ने लिया। गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण का लाभ श्री हरबंस लाल अशोक कुमार ने लिया। गुरु गोलक में प्रथम दान का लाभ श्री श्रीपाल जैन मै. एस. दिनेश एण्ड कम्पनी, जालंधर वालों ने लिया। गुरु प्रतिमा की आरती का लाभ श्री सरदारी लाल शिखर चन्द जैन मुरादाबाद वालों ने लिया। रथयात्रा में जैन ध्वज लेकर हाथी पर बैठने का लाभ श्री कुलदीप कुमार अतुल कुमार एडवोकेट ने तथा श्री चिमन लाल कीमती लाल अम्बाला वालों ने लिया। इसी मध्य विभिन्न समितियों के पदाधिकारियों द्वारा पूज्य गुरुदेव की प्रतिमा को माल्यार्पण करके बहुमान किया गया। जिसमें एस.एस. जैन महासभा की ओर से श्री टी.आर. जैन जी ने गुरुदेव को माल्यार्पण किया। भगवान महावीर 2600वां जन्म कल्याणक समिति की ओर से श्री राम कुमार जैन जी ने पूज्य गुरुदेव की प्रतिमा की माल्यार्पण किया। महावीर जैन युवक मंडल उत्तरी भारत की ओर से श्री राकेश जैन, श्री बलबीर जैन एवं श्री भारत भूषण जैन जी ने गुरुदेव की प्रतिमा को माल्यार्पण किया। तेरापंथी समाज की ओर से श्री बंसी लाल सुराना एवं हेमन्त पारख जी ने अपने साथियों के साथ गुरुदेव की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। शहर की विभिन्न एस.एस. जैन बिरादरियों की ओर से उनके पदाधिकारियों द्वारा गुरुदेव की प्रतिमा को माला पहना कर बहुमान किया गया। इसी मध्य रथ को बनाने एवं सुचारू रूप से उसके साथ शहर-शहर ले जाने के लिए श्री शांतिलाल जी का महासमिति की ओर से बहुमान किया गया। गुरुदेव के आदेशानुसार रथ संचालन की पूर्ण व्यवस्था का कार्यभार श्री विजय वल्लभ सेना उत्तरी भारत के नवयुवकों द्वारा किया गया। विजय वल्लभ सेना के पदाधिकारी श्री उमेश जैन, श्री राजेश जैन, प्रो. राजेन्द्र कुमार जैन, श्री संजीव जैन, श्री नीरज जैन की अगुवाई में नवयुवकों ने दिन-रात कार्य किया । गुरुदेव ने अपने प्रवचन में फरमाया गुरु वल्लभ की प्रतिमा का भव्यातिभव्य रथ जिसका शुभारम्भ आज से हो रहा है। 78 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Fool Jain Ede International . Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसका उद्देश्य गुरु वल्लभ के आदर्शों का यशोगान सम्पूर्ण भारतवर्ष में किया जाए। रथ यात्रा को मेरे से जोड़ना गलत है। 'बुद्धि फलं तत्त्व विचारणा' बुद्धि का कार्य है तत्त्व की विचारणा करना। तत्त्व तीन प्रकार के कहे गए हैं-देव, गुरु और धर्म । देव अर्थात् परमात्मा की पूजा सेवा करना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है। आज के समय के अन्दर परमात्मा की गैरमौजूदगी में 'गुरु' तीर्थंकर तुल्य कहे गए हैं। गुरु के प्रति समर्पण, गुरु के प्रति आज्ञापालन का हमारा भाव होना चाहिए। गुरु वल्लभ का यह भव्य रथ जहाँ-जहाँ जाए इसका भव्य स्वागत करें, गुरु वल्लभ की प्रतिमा को निहारें, उनके गुणों को याद करें, गुरु वल्लभ के आदर्शों को आत्मसात करें, उनके प्रति समर्पण का भाव ही हमारा परम लक्ष्य होना चाहिए। परम पूज्य गुरुदेव के आदेश के पश्चात् विजय मुहूर्त में भव्य रथ का प्रस्थान जैन स्कूल दरेसी से शोभायात्रा के रूप में शुभारम्भ हुआ। रथ के प्रारम्भ में गुरुदेव की 84 वर्ष की आयु के निमित्त 84 स्कूटरों पर जैन ध्वज लिए हुए गुरु भक्तों के पश्चात् हाथी-घोड़े, जैन स्कूलों के छात्र-छात्राएँ जैन पताकाओं को लेकर, पूज्य गुरुदेव के उद्देश्यों को बैनर रूप में उठाए हुए चल रहे थे। तत्पश्चात् ट्रालियों पर झांकियाँ, भजन-मण्डली, गिद्दा, भंगड़ा, गतका पार्टी गुरुदेव का गुणगाण करते हुए चल रहे थे। लुधियाना के समस्त महिला एवं श्राविका मंडलों की ओर से 84 बहनें अपने सिर पर मंगल कलश उठा कर शोभायात्रा की शोभा बढ़ा रही थीं। रथमार्ग को जैन ध्वजों, तोरणद्वारों व रंग-बिरंगी झंडियों से सजाया गया था। रास्ते में गुरु वल्लभ रथ का शानदार स्वागत किया गया। चौक मिश्रा एसोसिएशन, प्रताप बाजार एसोसिएशन, गिरजाघर चौंक में मां भगवती क्लब के प्रधान अविनाश सिक्का, बुक्स मार्किट शापकीपर एसोसिएशन, चौड़ा बाजार शापकीपर एसोसिएशन ने गुरु वल्लभ रथ का शानदार स्वागत किया। इस्कान के श्री जगन्नाथ मंदिर की ओर से हरिनाम संकीर्तन मंडल द्वारा रथयात्रा का स्वागत किया गया। इस दौरान इस्कान मंदिर कमेटी के कोआर्डीनेटर राजेश गर्ग, योगेश गुप्ता, डॉ. एम.एस. चौहान, पवन शर्मा, संजीव सिंगला, सुरिन्दर गुप्ता, पीपांशु, संजीव राज व मंदिर के भक्तों के रथयात्रा पर पुष्प वर्षा की। गुरु वल्लभ के भव्यातिभव्य रथ के आगे बैंड-बाजे, ढोल के साथ हजारों की संख्या में गुरु भक्त गुरुदेव का गुणगान करते हुए इस शोभायात्रा को चिरस्मरणीय बना रहे थे। शहर की विभिन्न संस्थाओं के गणमान्य व्यक्तियों ने स्थान-स्थान पर भव्य रथ का हार्दिक वंदन अभिनन्दन, पुष्प वर्षा की, मिठाईयाँ बांटी, छबीलें लगाईं। शहर वासियों के प्रत्येक के मुख पर था कि जैन समाज द्वारा ऐसी अभूतपूर्व शोभायात्रा पहली बार देखने को मिली है। जिस गुरु की शोभायात्रा इतनी सुन्दर है, वह सन्त कैसा होगा ! उत्सव 2003-2004 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 79 , Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तर ये जन्मदिन अमृत पीचर्मपालनी तेसं.2053 भव्यातिभव्य विजय वल्लभ रथयात्रा का शुभारम्भ 80 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1504 AForerivatesPersoneliuse only w Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यात्रा विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 81 FortivsPesolatureonive Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फगवाड़ा में पर्ण उत्साह से रथयात्रा का स्वागत 6 फरवरी 2004 : सायं 5 बजे फगवाड़ा नगर के आबाल-वृद्ध जैन समुदाय ने पूर्ण उत्साह के साथ रथयात्रा का स्वागत किया, बैंड बाजे के साथ रथयात्रा जी.टी. रोड से महावीर जैन मॉडल स्कूल में पहुंची, वन्दन-अभिनन्दन-पुष्पवृष्टि-माल्यार्पण किया गया। भारी संख्या में नर-नारी उपस्थित थे, अपने आराध्य गुरु वल्लभ को अपलक निहार रहे थे, गगनभेदी जयकारों के साथ अपनी भावांजलि अर्पित कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो आज 50 वर्ष पश्चात् गुरु वल्लभ फिर से साक्षात् हो रहे हैं। जालंधर शहर में रथ यात्रा का गर्मजोशी से 6 फरवरी 2004; सायं 6:15 बजे जालंधर शहर में पटेल चौंक से बैंड-बाजे के साथ सैकड़ों की संख्या में जैन भाई-बहनों ने रथयात्रा का अभिनन्दन किया, सबसे आगे फौजी बैंड था। अभिनंदन विशेषतौर पर बहनों ने सारे रास्ते गुरुदेव के जयकारों से वातावरण धर्म उद्घोष से गुंजित कर दिया 'एक-दो-तीन-चार- जैन धर्म की जय-जयकार', 'इक्कीस, बाईस, तेईस,चौबीस जैन धर्म के तीर्थंकर चौबीस, आदि जयकारों से दर्शनार्थियों का मन मोह लिया। गुरुदेव की प्रतिमा को सम्मानपूर्वक उपाश्रय में ले जाया गया। जालंधर श्रीसंघ द्वारा कीर्तन संध्या का आयोजन किया गया, गुरुभक्तों ने भाव भरे भजनों द्वारा गुरु महिमा को महिमामंडित किया। आरती का लाभ श्री पन्नालाल पूर्णचन्द नाहर सहपरिवार दूध वालों ने लिया। गणमान्य व्यक्तियों में श्री आत्मानंद जैन सभा के प्रधान श्री गिरधारी लाल जैन, श्री राजकुमार मै. प्रदीप पब्लिकेशन्स, श्री अवतार हैनरी मंत्री पंजाब सरकार इत्यादि उपस्थित थे। विजय 82 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 160 Jain Education Intemational Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कपरथला में भव्य स्वागत दिनांक 7 फरवरी 2004; जालंधर शहर में गुरु प्रतिमा को रथ में पुनः विराजित करने के पश्चात् वासक्षेप पूजा की गई और रथ ने कपूरथला के लिए प्रयाण किया। प्रातः 11:05 पर कपूरथला नगर में रथ पहुंचने पर भारी संख्या में लोगों ने भव्य स्वागत किया। कपूरथला के निवासियों द्वारा तथा श्रीसंघ के गणमान्य व्यक्तियों ने गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया, जयकारों, भजनों के साथ नगर में रथयात्रा निकाली गई। नकोदर में अत्यंत उत्साह के साथ स्वागत 7 फरवरी, दोपहर दो बजे : जैन स्कूल के छात्र-छात्राएं, बैंड बाजे के साथ भारी जनसमूह ने रथयात्रा का भव्य स्वागत किया। गुरुवल्लभ के जयकारों द्वारा आकाशमण्डल को गुंजाएमान कर दिया, भजनों द्वारा गुरु महिमा का गुणगान किया गया। बाद दोपहर 2:30 बजे नकोदर से प्रस्थान करने के बाद 3:50 बजे रथयात्रा शाहकोट पहुंची जहां शाहकोट श्रीसंघ की ओर से डॉ. कमल जैन के निवास पर रथ यात्रा का अभिनन्दन किया गया। गुरु वल्लभ के गुरुदेव विजयानंद सरि की जन्म नगरी जीरा में रथयात्रा का भव्य स्वागत 7 फरवरी, सायं 6 बजे : जीरा श्री संघ ने विजय वल्लभ रथ यात्रा का भव्यातिभव्य स्वागत किया। जैन स्कूल के छात्र-छात्राएं श्री आत्म वल्लभ जैन विद्यापीठ पहुंचे। जीरा संघ द्वारा गुरु वल्लभ की प्रतिमा की आरती उतारी गई और प्रतिमा जी को गुरुदेव श्रीमद् विजयानन्द सूरि जी की समाधि पर विराजित किया गया। गुरु आत्म और गुरु वल्लभ दोनों गुरु भगवंतों की प्रतिमाओं का यह अभूतपूर्व दृश्य-दर्शन-वन्दन-अभिनन्दन द्वारा जनसमूह अपलक निहार रहा था। रात्रि में भजन संध्या के पश्चात् आरती करवाई गई। प्रातः श्री आत्मानन्द जैन सभा ज़ीरा के प्रधान श्री कीमती लाल जैन द्वारा प्रतिमा की वासक्षेप पूजा की गई। कोटकपरा में रथ का भव्य प्रवेश 8 फरवरी, प्रातः 10:50 बजे : रथयात्रा कोटकपूरा में पहुंचने पर श्री आत्मानन्द जैन सभा के प्रधान श्री अशोक कुमार जैन ने श्रीसंघ की ओर से रथ का अभिनन्दन किया। बैंड-बाजे, भारी जनसमूह, श्री लाजवन्ती जैन मॉडल स्कूल के बच्चों ने पूरे जोशोखरोश के साथ जयकारे लगाते हुए रथ यात्रा का स्वागत किया, स्थान-स्थान पर प्रभावना बांटी गई। श्री जैन श्वेताम्बर मन्दिर एवं दादावाड़ी पर रथयात्रा का विश्राम हुआ। बाद दोपहर 2:15 बजे कोटकपूरा से ज़ीरा होती हुई रथयात्रा 6:15 बजे पट्टी नगर में पहुंची। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 83 www.jainelibrary.oto Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट्टी नगर में विजय वल्लभ रथयात्रा का इन्द्र देवता द्वारा अभिषेक 8 फरवरी 2004, सायं 6:15 : पर रथयात्रा का पट्टी नगर में आगमन; श्री आत्मानन्द जैन सभा पट्टी के प्रधान श्री सुशील कुमार जैन, एस.एस. जैन सभा, पट्टी के प्रधान श्री धर्मपाल जी आदि गणमान्य व्यक्तियों ने रथ का गर्मजोशी से स्वागत किया, गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। श्री आत्म वल्लभ जैन महिला मण्डल की बहनें मंगल-कलश लिए हुए थीं, श्री महावीर जैन स्कूल एवम् भवन से प्रारम्भ हुई इस रथयात्रा में बैंड बाजे जैन स्कूल के छात्र-छात्राएं, अपार जनसमूह के मध्य आकाश मण्डल से इन्द्र देवता द्वारा गुरु वल्लभ का अभिषेक हुआ। भूमण्डल से श्री आत्मानन्द जैन सभा पट्टी के पूर्व प्रधान श्री सतीश जैन तथा श्री मोहन लाल जैन (लोहे वाले) द्वारा गुरु वल्लभ की इस भव्य रथयात्रा पर सिक्कों की बरसात की गई। श्री महावीर जैन मॉडल स्कूल पट्टी पर रथयात्रा का रात्रि विश्राम हुआ। गुरु वल्लभ की प्रतिमा को श्री कोमल कुमार जैन, श्री यशपाल जैन, श्री अरवीन कुमार, श्री अमित जैन, श्री धर्मपाल जैन आदि गुरुभक्तों द्वारा जैन स्थानक में विराजित किया गया। पट्टी नगर में रात्रि 9:30 बजे भजन संध्या का आयोजन हुआ, प्रधान श्री सुशील कुमार जैन ने ज्योति प्रज्जवलित की। गुरु भक्तों ने गुरु महिमा की सुगन्ध कीर्तन के माध्यम से महकाई। अन्त में आरती लाला पन्नालाल प्रवेश चन्द जी परिवार द्वारा करवाई गई। बड़े वे भक्तवत्सल थे, सकल श्रीसंघ के प्यारे। भरा वाणी में अमृत था, क्षमा के चन्द्रमा न्यारे।। गुरु फरमान था, पंजाब को नहीं भूल सकते थे। बिनौली से कभी गुजरांवाला दौड़ पड़ते थे।। “हितैषी विश्व का हूं मैं, नहीं आसक्ति तन की है"। अर्द्ध शताब्दी आज उनकी है, अर्द्ध शताब्दी आज उनकी है। SSNA 84 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1504 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमृतसर की अमृत सी भूमि पर पावन स्वागत बार-बार जंडियाला नगर में रथयात्रा से पूर्व इन्द्रदेव द्वारा अमूत-वृष्टि दिनांक 9 फरवरी 20043; बाद 2:15 बजे श्री आत्मानंद जैन सभा अमृतसर के प्रधान श्री की अगुवाई में गुरु सोहन लाल समाधि स्थल पर रथ का पवन-पावन स्वागत किया गया। अमृतसर के मेयर श्री सुनील कुमार जत्ती ने श्रद्धापूर्वक गुरु वन्दना की। बैंड बाजे के साथ रथयात्रा सुल्तान विंड रोड स्थित श्री पार्श्वनाथ जैन मन्दिर पर पहुंची, मन्दिर जी के हॉल में गुरु प्रतिमा को विराजित किया गया। रात्रि 9:15 बजे भाव भरी भजन संध्या प्रारम्भ हुई। गुरु महिमा का भजनों द्वारा गुणगान किया गया। दिनांक 9 फरवरी 2004 प्रातःकाल में रिमझिम वर्षा द्वारा नगर में इन्द्रदेव द्वारा रथयात्रा से पूर्व इन्द्रदेवता ने अमृत वृष्टि की, श्री आत्मानन्द जैन सभा जंडियाला के प्रधान श्री देवराज जैन की अगुवाई में पूरे श्रीसंघ ने तरनतारन बाईपास पर विजय वल्लभ रथ का पूर्ण उत्साह से स्वागत किया एस.ए. जैन हाई स्कूल के बच्चों ने बैण्ड की धुनों के साथ तथा महिलाओं द्वारा जयकारों के मध्य रथ की भव्य शोभा यात्रा प्रारम्भ हुई। स्कूल के छात्रों ने डांडिया प्रस्तुत किया। विजय वल्लभ भव बोल उठा सारा संसार हे! महाराजाओ के सरताज दर्शन विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 85 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बटाला नगर में रथ यात्रा का भव्य अभिनन्दन जम्मू शहर में कारों-स्कूटरों के काफिले के साथ रथ का वन्दन-अभिनन्दन PARA श्री आत्मानन्द जैन सभा बटाला द्वारा रथ का भव्य स्वागत किया गया, प्रधान श्री विमल कुमार जैन आदि गणमान्य व्यक्तियों ने गुरु वल्लभ का अभिनन्दन किया, माल्यार्पण किया भव्य शोभायात्रा के साथ रथ नमक मण्डी पहुंचा। दिनांक 10 फरवरी सायं 5 बजे श्री आत्मानन्द जैन सभा जम्मू, एस. एस. जैन सभा जम्मू के असंख्य जैन भाई बहनों ने मिलकर रथ का स्वागत किया। 35 कारें तथा 20 स्कूटर सवारों के भारी काफिले ने महाराजों के महाराजा गुरु वल्लभ के रथ की अगुवाई की। दोनों श्रीसंघों के गणमान्य व्यक्तियों ने गुरु वल्लभ को माल्यार्पण किया बैंड बाजे के साथ पूरे जोशखरोश से भव्य रथयात्रा जैन नगर स्थित उपाश्रय में पहुंची। रात्रि को 8 बजे भजन संध्या में राज्य के उपमुख्यमंत्री श्री भगतराम शर्मा विशेष अतिथि के तौर पर सम्मिलित हुई। अन्य गणमान्य व्यक्तियों में श्री अशोक शर्मा विधायक, श्री प्रमोद जैन कमिश्नर ट्रासपोर्ट, श्री राकेश सागर जैन C.J.M. ने गुरु महिमा के गुणगान को साक्षात् किया, जैन युवक मण्डल द्वारा भावभरे भजन कीर्तन ने समां बांध दिया। 86 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुकेरियां में भव्य स्वागत दिनांक 11 फरवरी 2004; 11:40 बजे श्री आत्मानंद जैन सभा तथा एस.एस. जैन सभा मुकेरियां के गणमान्य व्यक्तियों के साथ श्रीसंघ ने रथयात्रा का भव्य स्वागत किया। रथ को जी.टी. रोड स्थित जैन ऑटोमोबाइल ले जाया गया, माल्यार्पण किया गया, पुष्प अर्पित किए गए। जनसमूह गुरु प्रतिमा की अलौकिकता देखते हुए मंत्रमुग्ध हो रहा था। होशियारपुर में विजय वल्लभ रथ का भव्यातिभव्य स्वागत दिनांक 11 फरवरी 2004 बाद दोपहर 2:40 बजे रथयात्रा का भव्यातिभव्य स्वागत होशियारपुर श्रीसंघ के गणमान्य व्यक्तियों द्वारा किया गया। जैन कॉलौनी से शोभा यात्रा का भव्य शुभारम्भ हुआ जिसने टैगोर पार्क तक विशाल रूप ले लिया। नगर कौंसिल के उपाध्यक्ष श्री मोती लाल सूद, लुधियाना श्रीसंघ के प्रमुख व्यक्तियों में से श्री कश्मीरी लाल जैन, श्री राजेन्द्र पाल जैन, श्री सिकन्दर लाल जैन, श्री राजेश जैन; कांगड़ा कमेटी के प्रधान श्री नरेन्द्र जैन, विजय वल्लभ सेना उत्तरी भारत के प्रधान श्री उमेश जैन इत्यादि ने गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। शोभा यात्रा में सम्मिलित दोनों श्रीसंघों के भाई-बहनों ने अपने आराध्य देव गुरु वल्लभ के अद्भुत रथ का वन्दन-अभिनन्दन जोश व उमंग के साथ किया। युवा वर्ग के ढोल की थाप पर भंगड़ा किया, महिलाओं द्वारा मंगल कलश यात्रा, श्री आत्म वल्लभ जैन डे बोर्डिंग स्कूल के छात्र-छात्राओं द्वारा गगनभेदी जयकारे, होशियारपुर श्रीसंघ द्वारा सिक्कों की वर्षा देखने योग्य थी। श्री वासुपूज्य जैन मन्दिर पर रथयात्रा का विश्राम हुआ। रात्रि 8:15 बजे श्री मन्दिर जी के प्रांगण में आयोजित भव्य भजन संध्या में मुख्य अतिथि श्री तीक्ष्ण सूद विधायक, श्री शिव सूद M.C. ने गुरु प्रतिमा को माल्यार्पण किया। गुरु भक्तों ने अपने मधुर भजनों द्वारा गुरु महिमा गाई। 151 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 87 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलाचौर में भव्य प्रवेश दिनांक 12 फरवरी 2004 प्रातः 9 बजे बलाचौर में मूर्तिपूजक समुदाय तथा स्थानकवासी समुदाय ने रथयात्रा का भव्य स्वागत किया। एस. एस. जैन सभा के प्रधान किशन चन्द जैन, उपप्रधान श्री धर्मवीर जैन, दिनांक 12 फरवरी; बाद दोपहर 3 बजे भव्य रथयात्रा का ज़ोरदार स्वागत किया गया। बैंड बाजे के साथ किसान भवन 35 सैक्टर से 28 सैक्टर तक 40 गाड़ियों के काफिले ने रथयात्रा की अगुवाई करके चण्डीगढ़ वासियों के लिए अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर दिया। गगनभेदी जयकारों के साथ चण्डीगढ़वासी झूमते हुए, नाचते हुए अपने गुरुदेव की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी को चिरस्मरणीय बनाते हुए, अत्यंत उत्साह के साथ भव्यातिभव्य, अद्भुत रथ में विराजित अलौकिक गुरु प्रतिमा पर पुष्प वृष्टि, सिक्कों की वृष्टि साथ अपने को धन्य मान रहे 88 विजय व रथयात्रा महामंत्री श्री चरणजीत जैन, श्री आत्मानंद जैन सभा के प्रधान वासदेव जैन आदि ने गुरु प्रतिमा को माल्यार्पण किया गया। जनसमुदाय ने भव्य प्रतिमा के दर्शन - वन्दन करके अपने को धन्य माना। रूपनगर में पूर्ण उत्साह से दिनांक 12 फरवरी 2004 बाद दोपहर 11:15 बजे रथ यात्रा का रूप नगर में आगमन होने पर श्रीसंघ के प्रधान श्री मंगतराय जैन की अगुवाई में श्री संघ ने रथ का भव्य स्वागत किया। बैंड बाजे के चण्डीगढ़ में जनसमूह झूम उठा - जोरदार स्वागत थे। वर्तमान पट्टधर आचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की निश्रा में भव्य रथ यात्रा श्री भगवान महावीर जैन श्वेताम्बर मन्दिर पहुंची। रथयात्रा का अभिनन्दन साथ भव्य शोभा यात्रा शहर के मध्य निकाली गई। सब के मुख पर था ऐसी भव्य रथयात्रा जीवन में प्रथम बार देखने को मिली है। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंडीगढ़ में संक्रान्ति महोत्सव : किसी भी जैनाचार्य द्वारा चंडीगढ़ में संक्रान्ति महोत्सव प्रथम बार गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. की निश्रा में मनाया गया। असंख्य श्रद्धालुओं की उपस्थिति में आचार्य [ने 11 बजे संक्रान्ति नाम का प्रकाश किया। चंडीगढ़ के संसद भगवन् रायकोट नगर में रथ का अभूतपूर्व स्वागत 13 फरवरी 2004, शाम 5:15 बजे रायकोट में पहुंचा जहां रायकोट श्री संघ ने रथ का अभूतपूर्व स्वागत किया। सर्वप्रथम मिल्ट्री बैंड था, रथयात्रा घोड़ा चौंक से शुरू हुई, स्कूटर, गाड़ियों के काफिले ने रथ की अगवानी की। श्री आत्मानन्द जैन सभा के प्रधान श्री पुरुषोत्तम जैन की अगुवाई में हज़ारों की संख्या में गुरुभक्त अपने प्यारे गुरु वल्लभ के रथ को एक भव्य शोभा यात्रा के रूप में ले जा रहे थे। शासन प्रभाविका साध्वी श्री जसवंत श्री जी महाराज की सुशिष्या साध्वी प्रगुणा श्री जी, दिनांक 14 फरवरी 2004, प्रातः 10:15 बजे रथयात्रा का मालेरकोटला में आगमन हुआ, कार-स्कूटर सवार के काफिले के साथ रथ का भव्य प्रवेश हुआ। मालेरकोटला वासियों ने अपने आराध्य गुरु वल्लभ के रथ सदस्य श्री पवन कुमार बांसल ने एक पुस्तक का विमोचन किया। श्री आत्मानंद जैन सभा मुरादाबाद ने गुरुदेव को मुरादाबाद पधारने की विनती की। संक्रान्ति समारोह पश्चात् गगनभेदी नारों के मध्य गुरुदेव ने ठीक 1 बजे रथ को चलने का आदेश दिया। प्रियधर्मा श्री जी आदि ठाणा-4 ने भी गुरुदेव के प्रति अहोभाव किया। तलवंडी गेट से होती हुई भव्य रथयात्रा का भगवान सुमतिनाथ जैन मन्दिर पर विश्राम हुआ। रात्रि में भव्य भजन संध्या का आयोजन हुआ, जहां बच्चों ने डांडिए का कार्यक्रम प्रस्तुत किया, भक्तजनों ने भाव भरे भजनों से गुरु की महिमा का गुणगान किया। मालेरकोटला वासियों ने भव्य रथ के आगे पलक पांवड़े बिछाए : के स्वागत में अत्यंत उत्साह का परिचय दिया। स्थान-स्थान पर पुष्प - वृष्टि की गई। बैंड-बाजों के साथ रथयात्रा एस.ए. जैन स्कूल पहुंची, जहां पर गणमान्य व्यक्तियों ने प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 89 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ममध्यरथयात्रा रथ यात्रा के पीछे Black Cat Commando का दस्ता चल रहा था। जैन स्कूल में धर्मसभा का आयोजन किया गया। केन्द्रीय मन्त्री श्री सुखदेव सिंह ढींडसा की सुपुत्री परमिन्द्र सिंह ढींडसा धर्मसभा में मुख्य अतिथि थी। श्री नुसरत अली खां भूतपूर्व विधायक ने भी सभा में शिरकत की। तेरापंथ समुदाय की साध्वी महिमा श्री ने गुरु वल्लभ के जीवन पर प्रकाश डाला। परमिन्द्र सिंह ढींडसा एवम् श्री नुसरत अली खां ने गुरुदेव के प्रति अपनी श्रद्धांजली प्रस्तुत की। स्कूली बच्चों ने भांगड़ा, गिद्दा प्रस्तुत करते हुए समारोह में चार चांद लगा दिए। सुनाम में दिनांक 14 फरवरी 2004, प्रातः 10:15 बजे रथयात्रा का मालेरकोटला में आगमन हुआ, कार-स्कूटर सवार के काफिले के साथ रथ का भव्य प्रवेश हुआ। मालेरकोटला वासियों ने अपने आराध्य गुरु वल्लभ के रथ के स्वागत में अत्यंत उत्साह का परिचय दिया। स्थान-स्थान पर पुष्प-वृष्टि की गई। बैंड-बाजों के साथ रथयात्रा एस.ए. जैन स्कूल पहुंची, जहां पर गणमान्य व्यक्तियों ने प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। रथ यात्रा के पीछे Black Cat Commando का दस्ता चल रहा था। जैन स्कूल में धर्मसभा का आयोजन किया गया। केन्द्रीय मन्त्री श्री सुखदेव सिंह ढींडसा की सुपुत्री परमिन्द्र सिंह ढींडसा धर्मसभा में मुख्य अतिथि थी। श्री नुसरत अली खां भूतपूर्व विधायक ने भी सभा में शिरकत की। तेरापंथ समुदाय की साध्वी महिमा श्री ने गुरु वल्लभ के जीवन पर प्रकाश डाला। परमिन्द्र सिंह ढींडसा एवम् श्री नुसरत अली खां ने गुरुदेव के प्रति अपनी श्रद्धांजली प्रस्तुत की। स्कूली बच्चों ने भांगड़ा, गिद्दा प्रस्तुत करते हुए समारोह में चार चांद लगा दिए। सामाना में दिनांक 14 फरवरी 2004 सायं 6:30 पर रथ यात्रा का सामाना में अति आयोजन हुआ। गुरुभक्ति के इस कार्यक्रम में गुरुभक्तों ने अपने भाव भव्य प्रवेश हुआ। श्री आत्मानंद जैन सभा सामाना के प्रधान श्री शान्ति संगीत के माध्यम से प्रस्तुत किए। श्री आत्मानंद जैन सभा के प्रधान श्री कुमार जैन की अगुवाई में श्रीसंघ ने रथयात्रा का स्वागत किया। शान्ति कुमार जैन द्वारा रथ संचालक श्री शान्ति लाल जैन, ट्रस्ट के बैंड-बाजों के साथ सामाना श्रीसंघ ने महामन्त्री श्री प्रवीण कुमार जैन श्री अपने आराध्य गुरु वल्लभ के रथ का ओम प्रकाश जैन द्वारा श्री नीरज जैन भव्य स्वागत किया, श्री मन्दिर जी पर का बहुमान किया गया। आरती के रथ यात्रा का विश्राम हुआ। साथ भजन संध्या का समापन हुआ। रात्रि में भव्य भजन संध्या का 90 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पटियाला में रथ यात्रा का वन्दन अभिनन्दन दिनांक 15 फरवरी 2004 प्रातः 10:30 बजे पटियाला नगर में रथयात्रा का भव्य प्रवेश हुआ। शेरां वाला चौंक पर श्री आत्मानंद जैन सभा के प्रधान श्री नरेन्द्र कुमार जैन की अगुवाई में गणमान्य व्यक्तियों ने गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। बैंड-बाजों के साथ पूरे नगर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई पूरे रास्ते गुरुभक्त गुरु वल्लभ की प्रतिमा को निहारते हुए अपने को धन्य मान रहे थे। एस.ए.एन. जैन उपाश्रय पटियाला पर रथयात्रा का विश्राम हुआ। 'अम्बाला में रथ यात्रा का अपूर्व स्वागत दिनांक 15 फरवरी 2004 ; बाद दोपहर 1 बजे गुरु इन्द्र समाधि मन्दिर से भव्य रथयात्रा का शुभारम्भ हुआ। बैंड-बाजे, घोड़े, श्री आत्मानन्द जैन सीनियर सैकण्डरी स्कूल, श्री आत्मानन्द जैन कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, श्री एस.ए. जैन शिशु निकेतन हाई स्कूल एवम् श्री एस.ए. जैन सीनियर मॉडल हाई स्कूल के छात्र-छात्राओं ने गुरु वल्लभ की आन-बान और शान में नगर के विभिन्न रास्तों से होते हुए गगनभेदी जयकारों से आकाश मण्डल को गुंजाएमान कर दिया। अम्बाला श्रीसंघ के सदस्यों ने गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया, वारने किए। जैन नगर स्थित श्री मन्दिर जी पर रथयात्रा का विश्राम हुआ। रात्रि कीर्तन में भावभरे भजनों से गुरु महिमा का गुणगान किया गया। आरती का लाभ श्री विजय कुमार अरविन्द कुमार जी द्वारा लिया गया। अम्बाला कैंट दिनांक 16 फरवरी 2004 प्रातः 7:15 पर अम्बाला कैंट में बैंड-बाजे के साथ रथयात्रा का भव्य प्रवेश हुआ। नगर के प्रमुख रास्तों से गुजरती हुई रथयात्रा में गुरुभक्त गुरु महिमा के जयकारे लगाते हुए, गुरुगुण गाते हुए अपने गुरु के रथ को ले जा रहे थे। गुरु प्रतिमा पर प्रमुख व्यक्तियों ने माल्यार्पण किया। 151 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 91 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यमुनानगर में रथयात्रा की भावभीनी अगवानी दिनांक 16.02.2004 सायं 4 बजे यमुनानगर (हरियाणा) में विजय वल्लभ रथ यात्रा की श्री शान्तिनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर पर बैंड-बाजे के साथ भावभीनी अगवानी की गई। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के मात्र 6/7 घर होने के बावजूद काफी अच्छी रौनक हो गई। मन्दिरवासी एवम् स्थानकवासी भाई-बहनों ने कन्धे से कन्धा मिलाकर अपने प्यारे पंजाब केसरी गुरु वल्लभ की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। लोगों में बहुत उत्साह था। श्री मन्दिर जी में कीर्तन का भी कार्यक्रम आयोजित किया गया। पानीपत में महाराजाओं के सरताज का हाथी घोड़े के साथ अभूतपूर्व स्वागत दिनांक 16.02.2004 सायं 7 बजे विजय वल्लभ रथ पानीपत के SkyLark Hotel के आगे पहुंचा। मन्दिरवासी, स्थानकवासी एवं दिगम्बर सम्प्रदाय के अपार जनसमूह ने बैंड-बाजे के साथ रथ का स्वागत किया। गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। प्रधान श्री सुबोध कुमार जैन की अगुवाई में हाथी, 5 घोड़े, 2 पालकियां, 31 सदस्यों वाले बैंड तथा स्कूल के छात्र-छात्राओं के साथ शोभा अत्यंत धूमधाम से निकाली गई। पश्चात् 7-8 गाड़ियों के साथ गांधी गेट तक गुरुभक्तों के मुखारबिन्द से भाव पूर्ण शब्द-लहरियां गूंज रही थी। ऐ गुरुवर आओ एक बार, तेरे भक्तों की है यह पुकार, आज तेरे बिना, नहीं कोई यहां, उनके जीवन का कोई आधार। 10 "वल्लभ नहीं था आदमी, वह था कोई एक देवता, स्वर्ग से उतरा था, बदलने नक्शा जैन समाज का। 6 दुबला-पतला था, मगर उसमें गज़ब का जोश था, नाड़ी हमारी देखने में, वह बड़ा बाहोश था।" 92 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरठ में रथयात्रा का भावपूर्ण अभिनन्दन दिनांक 16.02.2004 रात्रि 11:20 पर रथयात्रा के मेरठ में आगमन पर वरिष्ठ पदाधिकारियों के अगुवाई में गुरुभक्तों ने गर्मजोशी के साथ स्वागत • किया। श्री शान्तिनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर में आरती उतारी गई। प्रातः नगर में मेरठ वासियों ने रथयात्रा बैंड बाजे के साथ निकाली। मेरठ नगर से हस्तिनापुर तीर्थ पहुंची, साध्वी गुणरत्ना श्री जी ठाणे-3 सहित गुरुभक्तों ने रथयात्रा के दर्शन - वंदन - अभिनंदन किया। गुरु बल्लभ के पट्टधर गुरु समुद्र की पुण्ण-स्थली मुरादाबाद में रथयात्रा का अभूतपूर्व स्वागत दिनांक 18.02.2004 रथयात्रा गुरु समुद्र के समाधि मन्दिर पर पहुंची। वरिष्ठ पदाधिकारियों ने रथ का अभिनंदन किया। बैंड-बाजों के साथ रथ यात्रा मुरादाबाद के बुद्ध बाजार से प्रारम्भ हुई, टाऊनहाल, गज बाजार आदि क्षेत्रों से होती हुई श्री सुमतिनाथ जैन मन्दिर पहुंची। तीनों सम्प्रदाय स्थानकवासी, मन्दिरवासी तथा तेरापंथी समुदाय के लोगों ने रथ का दर्शन-वंदन अभिनंदन किया, गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। गुरु प्रतिमा पर प्रथम माल्यार्पण की बोली का रहा । गुरुभक्तों ने श्रीमन्दिर जी में भजनों की लड़ियां लगा दीं। " तुम्हारे भक्त कहते हैं हमें दर्शन दिखा जाओ, कि वल्लभ आज आओ, कि वल्लभ आज आओ ।" “छुपे हो तुम कहां गुरुवर ढूँढते नैन है तुमको, बिना देखे तुझे गुरुवर नहीं है चैन अब दिल को ।" विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका लाभ श्री दर्शन लाल विनय कुमार जैन परिवार ने उठाया। गुरु प्रतिमा पर वासक्षेप पूजा का लाभ श्री सरदारी लाल शिखर चन्द परिवार ने लिया। आरती तथा लंगर का लाभ भी श्री सरदारी लाल शिखर चन्द परिवार ने लिया। पूरे कार्यक्रम में सर्वश्री सुरेश जैन उपप्रधान, मोहन लाल जैन उपमंत्री, राजीव जैन संघमंत्री का सक्रिय योगदान 93 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वल्लभ गुरुवर का समुद्र को संदेश समुद्र - “ऐ गुरु ! मुझको बतला कि छोड़ा मुझको किसके सहारे" वल्लभ - “ऐ समुद्र मेरे मत रो, कि तुझको छोड़ा प्रभु के सहारे मेरे ज्ञान-बगीचों की तुम नित संभाल ही करना। जैन मिशन अधूरा पड़ा जो पूरा उसको करना, छोड़ जा रहा भक्तों को अपने, समुद्र तेरे सहारे।" समुद्र - "जाओ गुरुवर परमशांति से तुमको मेरा नमन है. कार्य तुम्हारा पूरा करूंगा जब तक दम में दम है। जैन संघ की उन्नति करना, होगा जीवन प्राण है। गाज़ियाबाद में विजय वल्लभ रथ का अभिनन्दन दिनांक 19.02.2004 रात्रि 8 बजे विजय वल्लभ रथ का अभिनंदन बैंड बाजों के साथ किया गया। प्रधान श्री मोहन लाल जी आदि पदाधिकारियों की अगुवाई में रथयात्रा नेहरु नगर से प्रारम्भ होकर नगर के विभिन्न क्षेत्रों से होती हुई नेहरु नगर में ही समाप्त हुई। रात्रि भजन संध्या में गुरुभक्तों ने अपने भाव-संगीत के माध्यम से अर्पित किए "वल्लभ था संत निराला, आया करने उजियाला, वल्लभ का सारे जग में नाम, गुरु को हमारा है प्रणाम। सारा जग गुण है गाता, चरणों में शीश झुकाता, सचमुच वल्लभ था महान, गुरु को हमारा है प्रणाम।" 94 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1567 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाहदरा में रथयात्रा पर गुरुभक्तों ने अपूर्व पुष्प वृष्टि की दिनांक 19.02.2004 प्रातः 10 बजे रथयात्रा का शाहदरा (दिल्ली) में आगमन हुआ, रथ यात्रा को बैंड बाजों के साथ वंदन-अभिनंदन किया गया, पुल से शुरू होकर शोभा यात्रा श्री आत्मवल्लभ जैन आराधना भवन पहुँची वहां से होती हुई श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन मन्दिर में पहुंची जहां भव्य भजन कीर्तन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। श्री प्रदुमन कुमार जैन ने रथ संचालकों श्री शान्ति लाल, श्री नीरज जैन का स्वागत किया। मंत्री श्री सुरेन्द्र कुमार जैन, विजयानंद जैन हस्पताल (पक्षी विभाग) के प्रधान श्री जिनेश कुमार जैन, सैक्रेटरी श्री निर्मल कुमार जैन, गुड़गाँव से श्री मोती लाल, श्री अनिल कुमार जैन, अहमदाबाद से श्री कैलाशचन्द जैन, श्री अनिल जैन, श्री शुक्लचन्द जैन, श्रीयुत् श्रीपाल जैन आदि पदाधिकारियों के साथ भव्य भजन कार्यक्रम में अच्छी रौनक हुई। गुरुभक्त गुरु प्रतिमा को अपलक निहारते हुई, गुरुभक्तों के मुख से अपने सर्वेसर्वा गुरु वल्लभ के लिए यह स्वर निकल रहे थे दिनांक 19.02.2004 बाद दोपहर 3 बजे रूपनगर में रथयात्रा का रूपनगर (दिल्ली) में आगमन हुआ। पूर्वनिधार्रित कार्यक्रम के अनुसार सायं 7 बजे रथयात्रा बैंड-बाजों के साथ निकाली गई, सभा के पदाधिकारियों की अगुवाई में रथयात्रा का जोरदार स्वागत हुआ और रथयात्रा रूप नगर स्थित उपाश्रय में पहुंची। साहित्य मनीषि आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय वीरेन्द्र सूरि जी, प्रवचन प्रभावक मुनि श्री राजेन्द्र विजय जी आदि ठाणा-4 तथा साध्वी कुसुमप्रभा श्री जी महाराज ठाणा-2 की उपस्थिति में श्रावक-श्राविकाओं ने गुरु महिमा का गुणगान भजन एवम् कविता के माध्यम से किया। विजय वल्लभ स्मारक ट्रस्ट के प्रधान श्री राजकुमार जैन, श्री आत्म वल्लभ भवन के प्रधान श्री वीर चन्द जैन, मंत्री श्री अभय कुमार जी, सहमंत्री श्री शुभकान्त जी तथा अन्य सदस्य सर्वश्री मिलाप भाई, रमेश जैन, धनराज जैन, नरेश जैन, बलदेव राज जैन, सिकन्दर पाल जैन, महिला मण्डल की प्रधाना श्री विभा जैन भी उपस्थित थे। प्रधान जी ने घोषणा की बड़ौदा शहर में जहां गुरु वल्लभ का जन्म हुआ उस मौहल्ले का नाम तथा चौंक का नाम गुरु वल्लभ के नाम से रखा गया है। रूपनगर दिल्ली में चतुर्विध संघ द्वारा रथयात्रा का भावपूर्ण अभिनन्दन 451 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 95 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजय वल्लभ स्मारक दिल्ली में गुरुभक्तों की असीम छटा दिनांक 20.02.2004 प्रातः 10:15 बजे विजय वल्लभ स्मारक दिल्ली में रथयात्रा का आगमन होने पर मुख्य द्वार पर श्रमण मण्डल एवम् वरिष्ठ पदाधिकारियों की अगुवाई में बैंड बाजों के साथ स्वागत किया गया। प्रधान जी एवम् गणमान्य व्यक्तियों द्वारा गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। 11.00 बजे विशाल धर्मसभा का आयोजन विद्यालय के प्रांगण में किया गया। पन्यास प्रवर श्री अरुण विजय जी महाराज द्वारा मंगलाचरण, श्री राज कुमार जैन प्रधान विजय वल्लभ स्मारक ट्रस्ट द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया। विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने अपने विविध कार्यक्रमों द्वारा गुरुभक्ति की असीम छटा बिखेरी। श्री राजकुमार जी ने गुरुवर को भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित की। पन्यास श्री अरुण विजय जी, मुनिप्रवर श्री इन्द्रजीत विजय जी द्वारा धर्मसभा को उद्बोधन दिया गया। विद्यालय के ट्रस्टीगण, स्टाफ तथा विद्यार्थियों द्वारा गुरुदेव को पुष्पांजलि अर्पित की गई दिल्ली के सभी श्रीसंघ कार्यक्रम में सम्मिलित हुए, धर्मसभा का कार्यक्रम अत्यंत सुन्दर रहा। विजय वल्लभ स्मारक में विजय वल्लभ रथ यात्रा के आगमन के ऐतिहासिक अवसर पर गुरुभक्ति के शब्द गुरुभक्तों के कानों में गूंज रहे थे "जैन जाति का वल्लभ एक स्तंभ था, इस युग का वल्लभ महासंत था। वह था कोई अवतारी, जिसने मानव देह धारी, वह तो भक्तों का दुलारा भगवान था। गिरती कौम का सहारा, आत्म का था शिष्य प्यारा, जैन शासन का अनोखा अभिमान था ज्ञान ज्योति को जलाना, अज्ञान तिमिर हटाना, उसके जीवन का यह सबसे बड़ा काम था।" 96 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Earrivate PULORILISED cution n Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोहिणी- दिल्ली में रथयात्रा का अपूर्व अभिनन्दन दिनांक 20.02.2004, सायं 6 बजे रोहिणी सभा के प्रधान श्री निर्मल कुमार जैन आदि वरिष्ठ पदाधिकारियों की अगुवाई में श्रावक एवं श्राविका मण्डल द्वारा वल्लभ विहार गेट पर विजय वल्लभ रथयात्रा का दर्शन-वंदन-अभिनंदन किया गया। श्री मन्दिर जी के तलघर में भव्य भजन संध्या का आयोजन किया गया। प्रधान श्री निर्मल कुमार जी ने गुरुवर को श्रद्धांजलि अर्पित की, अनेक भजन कर्णप्रिय संगीत के माध्यम से गुरुभक्तों ने गाए। पश्चात् आरती की बोली का लाभ श्री राकेश जैन द्वारा लिया गया। "जग में पावन है एक नाम, नाम पे सारा जग कुरबान । Jain Educa दुनिया सारी कहती है, अमर सदा वल्लभ का नाम ।" गुड़गाँव में, विजय वल्लभ रथयात्रा का अत्यत उत्साह से स्वागत दिनांक 21.02.2004 सुबह 11 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा का वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ जनसमूह द्वारा गुड़गांव द्वार पर अत्यंत उत्साह से स्वागत किया गया। प्रधान श्री चमनलाल जैन एवं अन्य पदाधिकारी बैंड-बाजे के साथ रथ को श्रीमन्दिर जी तक पहुँचे। जहां धर्मसभा का आयोजन किया गया। भक्तगण गुरु वल्लभ की अप्रतिम सुन्दरता को निहार रहे है वह सोच रहे थे कि जैसे गुरु वल्लभ पचास वर्ष के पश्चात् फिर से जीवंत हो गए हों। सच में, गुरु वल्लभ अपने कार्यों एवम् काव्य द्वारा आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। "लेता है नाम जिसका सारा संसार, गंगा के जल जैसा पावन है नाम, बड़े उपकारी थे मेरे वल्लभ गुरु कोई अवतारी थे मेरे गुरु वल्लभ।" विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका For Private & Penturar ose Diniy 97 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फरीदाबाद में गुरुभक्ति ने इंद्रधनुषी रंग बिखेरे-अपर्व स्वागत दिनांक 21.02.2004 गुड़गाँव से 2:30 जी एवम् उपाश्रय में सुन्दर सजावट की गई बजे फरीदाबाद रथ को ले जाने के लिए थी। मंत्री श्री सुशील कुमार जैन ने बताया कि फरीदाबाद के उत्साही कार्यकर्ता गुड़गाँव श्री मन्दिर जी में भगवान महावीर स्वामी की पहुँच गए थे। लगभग 4 बजे रथयात्रा 16 प्रतिमा मूलनायक रूप में स्थापित की जाएगी सैक्टर, फरीदाबाद पहुंची जहाँ श्री अभी सुन्दर नक्काशी का काम चल रहा है। आत्मानंद जैन सभा के प्रधान 'श्रावक रत्न' भव्य भजन संध्या में गुरुभक्तों ने गुरुभक्ति के राजकुमार जी एवम् अन्य पदाधिकारियों ने इंद्रधनुषी रंग बिखेर दिए गुरु वल्लभ की रथयात्रा का गर्मजोशी से अभिनन्दन किया। जय-जयकार हो रही थी, ऐसे महान गुरु उपाश्रय में गुरुप्रतिमा को विराजने के वल्लभ जिसने देशवासियों के 'महावीरत्व' को पश्चात् प्रधान जी द्वारा गुरु प्रतिमा पर जगाया ऐसे महामानव का गुणगान सभी कर माल्यार्पण किया गया वंदन-अभिनंदन रहे थे। किया गया। भगवान की आरती के बाद गुरु प्रतिमा को नव निर्माणाधीन मन्दिर जी परिसर में ले जाया गया। जहां भव्य भजन संध्या का आयोजन किया गया। श्री मन्दिर आगरा में विजय वल्लभ रथयात्रा की धूम दिनांक 22.02.2004 पंजाबी मूर्तिपूजक संघ, जैन समाज, श्री सुमेर चन्द लगभग 2:30 बजे आगरा स्थानकवासी संघ, दिगम्बर जैन मोतीकटरा तथा श्री छीपीटोला में विजय वल्लभ संघ तथा गुजराती संघ ने भी आत्मानंद जैन सभा के मंत्री रथयात्रा पहुंची, लगभग हिस्सा लिया। रथयात्रा के महोदय ने गुरुवर को 4:30 बजे रथयात्रा का रास्ते में Shree Vallabh भावभीनी एवम् हृदयस्पर्शी सामैया शुरू हुआ। श्रीसंघ Store तथा श्री जगन्नाथ श्रद्धांजली प्रस्तुत की। श्री के प्रमुख व्यक्तियों ने गुरु दीवान चन्द द्वारा प्रभावना कपूरचन्द जवाहर लाल जैन ने प्रतिमा को माल्यार्पण करके बांटी गई। श्री ज्ञान चन्द जैन आरती का लाभ प्राप्त किया। गुरुप्रतिमा की वासक्षेप पूजा एण्ड सन्स ने रथ पर रुपए श्री जगदीप कुमार अरुण की गई, बालूगंज जैन नगर उछाले। सायं 6 बजे स्थानीय कुमार ने रथयात्रा में आए में पहुंच कर शोभा यात्रा उपाश्रय में गुरुदेव की व्यक्तियों को फल, मिठाई प्रारम्भ हुई बैंड बाजों के गुणगान सभा का आयोजन इत्यादि देकर सम्मानित किया। युवकों का नृत्य अत्यंत किया गया। श्री सुशील कुमार सुन्दर था। शोभा यात्रा में जैन मंत्री श्री स्थानकवासी 98 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 451 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बरखेड़ा तीर्थ पर महत्तरा साध्वी सुमंगला श्री जी की निश्रा में विजय वल्लभ रथयात्रा का अपूर्व स्वागत: दिनांक 23.02.2004 सायं 5 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा का बरखेड़ा तीर्थ पर अपूर्व स्वागत किया गया। तीर्थ के ट्रस्टियों, महत्तरा साध्वी सुमंगला श्री जी द्वारा रथयात्रा का स्वागत किया गया। गुरुवर के आगे गहुंली, चामर, माल्यार्पण, वासक्षेप पूजन, आरती का लाभ बोलियों द्वारा लिया गया। इस अवसर पर देहली, जयपुर से भी भाई बहन पहुंचे हुए थे। पीलीबंगा और सूरतगढ़ में विजय वल्लभ रथयात्रा का गर्मजोशी से स्वागत दिनांक 24.02.2004 सायं 5 बजे eAD विजय वल्लभ रथयात्रा पीली बंगा| पहुंची जहां मूर्तिपूजक संघ, स्थानकवासी तथा तेरापन्थी समुदाय तहेदिल से रथयात्रा का वंदनअभिनंदन किया। शहर में बैंड-बाजे के साथ धूमधाम से रथयात्रा निकाली गई। जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ की ओर से श्री मोती लाल डागा ने गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। दिनांक 24.02.2004 रात्रि 9 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा सूरतगढ़ पहुंची, रथयात्रा का वंदन-अभिनंदन करने, पूरा सूरतगढ़ श्रीसंघ शहर के बाहर स्वागत करने पहुंचा हुआ था। वंदन-अभिनंदन करने, पूरा सूरतगढ़ श्रीसंघ शहर के बाहर स्वागत करने पहुँचा हुआ था श्री दिलात्म प्रकाश जैन सहित गणमान्य व्यक्तियों द्वारा गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। बैंड बाजे के साथ धूमधाम से रथयात्रा शहर के मध्य निकाली गई जो श्री मन्दिर जी जा कर समाप्त हुई। जहां आरती बोली द्वारा करवाई गई। श्री पार्श्वनाथ जैन मूर्तिपूजक संघ के प्रधान श्री केसरी चन्द जी डागा व मंत्री श्री मदन लाल डागा ने पूरा योगदान दिया एक विशेष बात रही कि जैनेत्तर भाइयों द्वारा 30kg. लड्डुओं की प्रभावना बाटी गई। श्री दिलात्म प्रकाश जैन सहित गणमान्य व्यक्तियों द्वारा गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। दिनांक 24.02.2004 रात्रि 9 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा सरतगढ़ पहुंची, रथयात्रा का 1501 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 99 JIn Education international For Private & Personal use only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'वल्लभ नगरी' बीकानेर में ढोल की थाप पर गुलाल और गुलाब बिखरे दिनांक 25.02.2004 विजय वल्लभ रथयात्रा प्रातः 4 बजे बीकानेर पहुंची। श्री गौड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर के प्रांगण से बैंड-बाजों के साथ रथयात्रा का 'वल्लभ नगरी' बीकानेर में शुभारम्भ हुआ। हाथी घोड़े सहित पूरा बीकानेर श्रीसंघ, कलिकाल कल्पतरु गुरु वल्लभ जिनका बीकानेर श्रीसंघ पर विशेष रूप से वरदहस्त रहा था, अपने प्यारे वल्लभ की छवि निहारने, धूमधाम से शोभा यात्रा निकालने पहुँचा हुआ था। श्राविका संघ की महिलाएं अपने भाव पूर्ण भक्ति गीत गा रही थीं, युवक ढोल की थाप पर गुलाल और गुलाब बिखेर रहे थे लगभग दो किलोमीटर रास्ता, गली मौहल्लों से गुजरते हुए रथयात्रा कोचरों का चौंक पर जाकर समाप्त हुई सायं 8 बजे कोचरों का चौंक में भजन संध्या 'एक शाम गुरु वल्लभ के नाम' आयोजित की गई। वल्लभ भक्ति का खूब रंग जमा। कोचर मण्डल, वीर मण्डल तथा अन्य भाई-बहनों ने गुरु भक्ति का आनन्द प्राप्त किया, कोई भी इस सुनहरी-ऐतिहासिक अवसर को खोना नहीं चाहता था। कोचर मण्डल के श्री मगन जी कोचर ने गुरुभक्ति का अपूर्व रंग जमा दिया। कलकत्ता से आए हुए भाई सुनील जी भंडावत ने भी भक्तिरस से भरपूर भजन की स्वर लहरियाँ छोड़ दी "डंको वल्लभ नाम रो दुनियाँ में देखो बाजे रे। घर-घर, गली-गली में जय वल्लभ री गाजे रे। वल्लभ उपकारी हां रे वल्लभ उपकारी। दुखियों रो थो वो हितकारी। सूतोड़ा नर-नारियों ने वल्लभ आय जगाया रे। जीवन खुद से बालने ऐ दीप जलाया रे।" 100 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 150 FPV Pesonate Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान के विभिन्न नगरों में विजय वल्लभ रथयात्रा का वंदन-अभिनंदन दिनांक 26.02.2004 प्रातः 9:30 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा नागौर पहुंची। श्रीसंघ के अग्रगण्य पदाधिकारियों सहित समूचा श्रीसंघ रथयात्रा के दर्शन-वंदन के लिए पहुँचा हुआ था। गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया और गुरुभक्ति के गीत गाए गए। दिनांक 26.02.2004 बाद दोपहर 2 बजे रथयात्रा जोधपुर पहुंची। श्री भैरु बण श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ तथा धार्मिक क्रिया भवन संघ के सदस्यों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया। श्री भैरु बण तीर्थ पर ही आरती बोली द्वारा करवाई गई। दिनांक 26.02.2004 सायं 5:30 बजे रथयात्रा पाली नगर में पहुंची। श्रीसंघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों की अगुवाई में सम्पूर्ण श्रीसंघ ने रथयात्रा का स्वागत किया। गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। तत्पश्चात् वासक्षेप पूजा की गई आरती बोली द्वारा करवाई गई जिसमें समूचे श्रीसंघ ने भाग लिया। दिनांक 27.02.2004 प्रातः 7 बजे गुरु वल्लभ की सद्प्रेरणा से स्थापित वरकाना गुरुकुल के प्रबन्धक एवम् विद्यार्थियों ने अपने सर्वेसर्वा गुरु वल्लभ की रथयात्रा का अभूतपूर्व स्वागत किया, गुरुवंदन किया गया। स्कूल का बैंड गुरुदेव के स्वागत के लिए गुंजाएमान हुआ। दिनांक 27.02.2004 प्रातः 10 बजे रथयात्रा बिजोवा नगरी पहुंची जहाँ श्रीसंघ के सदस्यों ने गुरु प्रतिमा पर माला पहनाई, श्रद्धा के पुष्प अर्पित किए और अपने को धन्य माना। दिनांक 27.02.2004 विजय वल्लभ रथयात्रा बिजोवा से रानी पहुंची जहाँ रानी कन्या विद्यालय में पहुंचे। विद्यावाड़ी के स्कूल बैंड, स्टाफ के सदस्यों एवं छात्र छात्राओं द्वारा रथ का अभूतपूर्व स्वागत किया गया। विद्यावाड़ी की प्रबन्धिका एवम् संस्थापक सदस्या श्रीमती सुभद्रा देवी द्वारा माल्यार्पण किया गया। स्कूल के प्रांगण में ही सामैया का आयोजन किया गया। वहां रानी श्रीसंघ के आगेवान भाई भी पहुंचे हुए, उन्होंने रथ को रानी ले जाने के लिए अनुरोध किया लेकिन समय की अनुकूलता न होने के कारण रथ आगे बढ़ चला। दिनांक 27.02.2004 रानी से फालना पहुंचे जहां श्रीसंघ के सदस्यों द्वारा अपूर्व स्वागत किया गया दर्शन-वंदन किया गया पुष्प वृष्टि, माल्यार्पण द्वारा रथ का स्वागत किया गया। सामैया को स्कूल के प्रांगण में ले जाया गया। फालना से बाली, सादड़ी होते हुए रथयात्रा राणकपुर तीर्थ पहुँची, तीर्थ वंदन के पश्चात् सायं 6 बजे सायरा पहुंचे वहाँ पन्यास न्याय विजय जी पधारे हुए थे। सायरा के भाई-बहनों ने रथयात्रा का स्वागत किया। रथयात्रा उदयपुर, पालनपुर से होती हुई दिनांक 29.02.2004 पाटन पहुँची पंजाबी भाई-बहनों तथा सागर उपाश्रय श्री संघ बालों ने रथयात्रा का स्वागत किया। गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। शहर में सामैया निकाला गया। शोभा यात्रा के दौरान पंजाबी भाईयों द्वारा गुरुभक्ति की गई। सागर उपाश्रय में धर्मसभा हुई जहां विराजित साधु महाराज ने प्रवचन दिया। पंजाबी भाई श्री रामचंद शादी लाल जी द्वारा संघ पूजा की गई। तत्पश्चात् प्रभावना भी बांटी गई। दिनांक 29.02.2004 गुरु वल्लभ की दीक्षा स्थली राधनपुर में विजय वल्लभ रथयात्रा लगभग 4 बजे पहुंची जहां वरिष्ठ पदाधिकारियों सहित श्रीसंघ ने स्वागत किया, गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया, भव्य शोभा यात्रा निकाली गई। जैन मन्दिर के पास वहां विजय वल्लभ सूरि जी की देहरी है वहां पर धर्मसभा हुई जहां गुरु वल्लभ का गुणगान किया गया। शंखेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ वंदन करते हुए वीरमगांव, बढ़वाणा, लीम्बड़ी होते हुए प्रातः 9 बजे पालीताणा पहुंचे। 1507 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 101 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102 राजस्थान के विभिन्न नगरों में विजय वल्लभ रथयात्रा का वंदन - अभिनंदन पाली सादड़ी राधनपुर विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका रानी उदयपुर Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय तीर्थ नगरी पालीताणा में रथयात्रा का भव्य स्वागत दिनांक 02.03.2004 प्रातः 6:30 बजे बैंड-बाजों के साथ विजय वल्लभ रथ यात्रा निकाली गई जिसमें श्रमणवृंद श्री हेमचन्द्र विजय जी, श्री दिव्यरत्न विजय जी एवम् सारा श्रमणीवृंद सम्मिलित हुआ और अच्छी शासन की प्रभावना हुई। गुरु वल्लभ के जयकारों से नभ गुंजाएमान हो रहा था। अहमदाबाद में महावीर विद्यालय की 85 छात्राओं तथा स्टाफ ने गुरुवन्दन किया- 'अभूतपूर्व दृश्य' Sect दिनांक 03.03.2004 प्रातः 9 बजे बैंड बाजे के साथ भव्य रथयात्रा अहमदाबाद के विभिन्न बाजारों से निकाली गई। समूचा नगर विजय वल्लभ की जय-जयकार कर रहा था और गुरु वल्लभ के अप्रतिम सौंदर्य को अपलक निहारता हुआ अपने को धन्य मान रहा था। गुरुभक्ति के स्वर गूँज रहे थे: नित उठ शीश नमाऊं मारा गुरु ने, धर्म री राह बताई जी ओ, खम्मा रे खम्मा मारा वल्लभ गुरु ने ज्ञान री जोत जलाई जी ओ । विजय वल्लभ रथ यात्रा गुरुकुल पहुँची जहां छात्रों और स्टाफ ने माल्यार्पण द्वारा गुरुदेव का अभिनंदन किया। छात्रों ने गुरुवंदन करते हुए गुरु वल्लभ के समक्ष अपनी भावांजली अर्पित की। तत्पश्चात् महावीर विद्यालय की वउमद भवेजमस में रथ यात्रा पहुंची, जहां छात्राओं तथा स्टाफ ने गुरु वन्दन किया, विद्यालय की 85 छात्राओं ने गुरुवन्दन किया, यह अभूतपूर्व दृश्य देखते ही बनता था। रात्रि में भव्य भजन संध्या का कार्यक्रम हुआ। श्री हीरा भाई गांधी ने रथ संचालकों का बहुमान किया। गायकों ने मधुर कंठ से गुरुभक्ति के मधुर स्वर बिखेर दिए विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 10 103 www.jairiellbrary.org Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “ऐ.....दीपचन्द रो तारो, माता इच्छादे रो लाडो, नाम छगन शुभ पायो जी ओ। वल्लभ तो जग रो साँचो ही वल्लभ थी, जिन शासन ने दीपायो जी ओ।" गुरु वल्लभ जन्म स्थली बड़ौदा में रथयात्रा की अनूठी छटा दिनांक 04.03.2004 प्रातः 8 बजे रथयात्रा बड़ौदा के श्री आदिनाथ सोसाइटी, करोली बाग पहुंची जहाँ वर्तमान पट्टधर आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी सुमति श्री जी म., साध्वी सुकृता श्री जी म. विराजमान थी। अग्रगण्य व्यक्तियों ने गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए भाव वंदन किया। रथ संचालकों को चांदी का एक-एक सिक्का देते हुए बहुमान किया गया। बैंड-बाजे के साथ भव्य रथयात्रा नरसी पोल से शुरू हुई रास्ते में भक्तजनों ने माल्यार्पण किए, अभूतपूर्व पुष्पवृष्टि की, गुरुभक्ति के गीत गाते हुए अपने प्यारे, लाडले गुरु वल्लभ के जयकारे लगाए, रथयात्रा घड़ियाली पोल, वल्लभ चौंक पहुंची जहाँ गुरु वल्लभ का जन्म स्थान है, वहां से होते हुए रथयात्रा जानीशेरी पहुंची जहाँ गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया था। वर्तमान पट्टधर आचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि जी महाराज की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी सुमति श्री जी, साध्वी सुकृता श्री जी एवम् श्रमण वृंद में मुनिराज श्री कनक विजय जी की निश्रा में श्रीसंघ के प्रमुख व्यक्तियों ने गुरु वल्लभ के व्यक्तित्व पर विचार व्यक्त किए। दिनांक 05.03.2004 प्रातः 8 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा झगड़िया पहुंची जहां झगड़िया गुरुकुल पहुंचने पर रथयात्रा का भावभीना स्वागत किया गया था वहां से बैंड बाजे के साथ शोभायात्रा प्रारम्भ हुई, झूमते नाचते गाते आबाल-वृद्ध अपनी गुरुभक्ति का दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे श्री आदिनाथ जैन देरासर पर विजय वल्लभ रथयात्रा का विश्राम हुआ, बच्चों ने सामूहिक रूप से गुरुवन्दन किया बहुत ही अद्भुत दृश्य बन रहा था। सूरत : दिनांक 05.03.2004 बाद दोपहर एक बजे विजय वल्लभ रथयात्रा सूरत पहुँची जहां कैलास नगर सोसाइटी के श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ देरासर पहुँचे वहां वरिष्ठ पदाधिकारियों ने रथ का भावभीना अभिनन्दन किया, गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। लगभग दो बजे पूरा श्रीसंघ रथयात्रा के दर्शन वंदन करने पहुंच चुका था, तब वहाँ से बैंड-बाजे के साथ शोभायात्रा शुरू हुई, कैलास नगर के विभिन्न क्षेत्रो, बाजारों से होती हुई विजय वल्लभ चौंक पर जा कर सम्पन्न हुई वहां पर परम पूज्य आचार्य श्रीमद् अभयदेव सूरि जी गुरु प्रतिमा के दर्शन-वंदन करने पहुंचे। 104 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करचलया में पूर्ण उत्साह से श्रीसंघ द्वारा स्वागत दिनांक 05.03.2004 लगभग सायं 5:30 बजे करचलया नगर पहुँचे वहां पूरे का पूरा श्रीसंघ बच्चे-श्रावक-श्राविकाएं एवम् परम पूज्य साध्वी यशकीर्ति श्री जी महाराज रथयात्रा के स्वागत के लिए आई हुईं थीं, सर्वप्रथम साध्वी जी महाराज ने सामूहिक गुरुवन्दन किया। तत्पश्चात् संघ ने माला पहना कर गुरुदेव का अभिनन्दन किया। बैंड-बाजे के साथ शोभायात्रा प्रारम्भ हुई, युवा-वर्ग बैंड बाजे के साथ झूम रहा था, नाच रहा था, गुरुदेव पर अपना सर्वस्व अर्पण कर रहा था, सभी भक्तजन गा रहे थे, "बहुत दिन से पधारे गुरुराज, हमारे मन के फूल खिले, आज जागे हमारे हैं भाग, हमारे मन के फूल खिले वर्षों के बाद गुरु आप यहाँ आए, खुशियों के बादल इस बगिया में छाए।" रथयात्रा ने पूरे गाँव का भ्रमण किया। रास्ते में जितने भी श्रावकों के घर आए सब ने गहुँली कर गुरुदेव का अभिनन्दन किया। जितना उत्साह करचलया के श्रीसंघ में देखा गया इतना उत्साह अभी तक किसी संघ में नहीं देखा गया। श्रीसंघ के अत्यधिक अनुरोध तथा साध्वी महाराज के उपदेश से रात्रि विश्राम यहीं पर करना पड़ा। रात्रि में भावभक्ति का भजन संध्या' कार्यक्रम रखा गया था जिस में पूरे संघ का बच्चा-बच्चा आया हुआ था। बोली द्वारा आरती करवाई गई। यहां के हर एक घर-परिवार ने सहयोग राशि प्रदान की, यह भी एक रिकार्ड है। बोडेली में रथयात्रा का अभूतपूर्व स्वागत दिनांक 06.03.2004 सायं 5 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा बोड़ेली पहुंची यहां पर पूरा श्रीसंघ स्वागत के लिए पहुँचा हुआ था, साध्वी जी महाराज भी थे, माल्यार्पण बोली द्वारा किया गया। शोभायात्रा बैंड-बाजे के साथ प्रारम्भ हुई गुरुकुल के छात्र, लफनी से साध्वी जी महाराज भी लड़कियों के साथ आए हुए थे, रथयात्रा में शामिल हो कर अपनी गुरुभक्ति का परिचय दे रहे थे। वहाँ से रथयात्रा जेतपुर पावी में पहुंची, बोली द्वारा गुरुप्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। रात्रि में भावना कीर्तन किया गया। आरती भी बोली द्वारा करवाई गई। इन्दौर में रथयात्रा का भावभीना स्वागत दिनांक 07.03.2004 सायं 6 बजे रथयात्रा इन्दौर पहुंची जहां पूज्य साध्वी जी महाराज तथा श्रीसंघ ने भावभीना स्वागत किया, गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया, गुरुवन्दन किया गया। उज्जैन नगरी में रथयात्रा की धूम दिनांक 07.03.2004 रात्रि में 8:30 बजे रथयात्रा उज्जैन नगरी में पहुंची यहां श्रीसंघ ने रथ का भावभीना स्वागत किया, साध्वी शीलपूर्णा श्री जी यहां विराजमान थीं। साध्वी जी महाराज, मुख्य ट्रस्टी श्री शंकरलाल लेकोड़ा वाला श्री राकेश जैन अध्यक्ष तपागच्छ मूर्तिपूजक संघ ने अपने मधुर भजनों द्वारा गुरुदेव की महिमा गान करके भावभीने श्रद्धापुष्प अर्पित किए। तपागच्छ संघ फरीगंज उज्जैन के श्रावक-श्राविकाएं अच्छी संख्या में आए, भक्ति भावना का अत्यंत सुन्दर कार्यक्रम हुआ। संघ के श्रावकगण झूम-झूम कर नाचते हुए गुरुवर के प्रति अपनी भक्तिभावना प्रस्तुत कर रहे थे। आरती के पश्चात् प्रभावना भी बांटी गई। 457 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 105 For Private & Personal use only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोपाल में विजय वल्लभ रथयात्रा का अनूठा स्वागत दिनांक 08.03.2004 सायं पांच बजे विजय वल्लभ रथयात्रा भोपाल पहुँची। इस से पूर्व भोपाल से 8 कि.मी. पूर्व श्री भक्तामर स्तोत्र के रचयिता आचार्य श्री मानतुंग सूरि जी की साधना स्थली श्री महावीर गिरि पर भोपाल में रहने वाले एक नारोवाल जैन परिवार ने रथ का दर्शन-वंदन करते हुए रथ संचालकों की सेवा सुश्रुषा की। श्रीमन्दिर जी में दर्शन-वंदन पश्चात् रथयात्रा भोपाल पहुँची। श्री भेल पिपलानी संघ ने गुरुदेव के रथ का भावभीना स्वागत किया। बैंड बाजे के साथ शोभा यात्रा निकाली गई, पिपलानी के महावीर मन्दिर में शोभायात्रा के समापन के पश्चात् उपाश्रय में धर्मसभा का आयोजन किया गया। रात्रि में भव्य भावना कीर्तन का आयोजन रखा गया। आरती के पश्चात् प्रभावना भी वितरित की गई। 106 हैदराबाद में रथयात्रा का अभिनन्दन दिनांक 11.03.2004 प्रातः 9 बजे सभी श्रीसंघों के अध्यक्ष तथा मंत्री महोदय द्वारा रथयात्रा का गर्मजोशी से स्वागत किया गया गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया यहाँ पर मूर्तिपूजक समुदाय के सादड़ी एवम् बीकानेर से सम्बन्धित सात परिवार हैं, वह सभी गुरुवन्दन के लिए आए हुए थे और गुरुदेव के अप्रतिम सौन्दर्य को निहारते अपने को धन्य मान रहे थे और गुरुदेव की याद में गा रहे थे “नैन ये नीर बहाये गुरु वल्लभ तेरी याद में आज, दे दो, दे दो दर्श गुरुवर आज तुम हमें । दर्श बिना तुझ तरफ रहे हैं, जैसे जल बिन मीन गुरु, तुझ बिन जाएं आज कहां, हमें बतला दो ऐ प्यारे गुरु । अपना पता बता दो गुरुवर आज तुम हमें ।” विजयवाड़ा में विजय वल्लभ रथयात्रा का अभूतपूर्व स्वागत दिनांक 12.03.2004 प्रातः 9 बजे विजयवाड़ा में 30 व्यक्तियों के बैंड (जो कि विजयवाड़ा का सबसे अच्छा बैंड था) के साथ Canal Road रथनम सैंटर से रथयात्रा का शुभारम्भ हुआ। पूज्य साध्वी सुव्रता श्री जी आदि ठाणा 3 रथ के अभिनंदन के लिए वहां पहुंची हुई थीं। विजयवाड़ा श्रीसंघ के लगभग सभी सदस्य, युवक मंडल अपनी Uniform Dress Code में रथयात्रा के स्वागत में खड़े थे। बहिनें मंगल कलश के साथ थी, युवती मंडल भी अपनी Dress Code में था। मंगल कलश वाली बहनों ने रथ की प्रदक्षिणा दी। पूज्या साध्वी जी महाराज ने गुरुवन्दन किया उस के पश्चात् शोभा यात्रा शुरू हुई। श्री संभवनाथ मूर्तिपूजक संघ के विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रावक-श्राविकाएं आबाल वृद्ध सभी जन झूमते नाचते हुए रथयात्रा के साथ चल रहे थे, बहुत बड़ी हाज़िरी थी उपाश्रय पहुँच कर वहाँ शोभायात्रा धर्मसभा में परिवर्तित हो गई गुरुदेव की प्रतिमा को हाल में लाया गया। महाराज श्री ने मंगलाचरण उच्चारण करके धर्मसभा का शुभारम्भ किया। मुख्य अतिथि श्री संकल चन्द जी बगरेचा (जो श्री हींकार तीर्थ के ट्रस्टी हैं) दीप प्रज्ज्वलित किया। अध्यक्ष महोदय ने समारोह की अध्यक्षता की। गुरु प्रतिमा की वासक्षेप पूजा तथा माल्यार्पण का चढ़ावा बोला गया जिसमें वासक्षेप पूजा का लाभ शाह नथमल जी यशवन्त राय जी ने तथा माल्यार्पण का लाभ संघवी धनराज कुशल राज जी ने लिया। तत्पश्चात् धर्मसभा का संचालन करने के लिए मंत्री श्री पन्नालाल जी ने बगडोर सम्भाली। सुश्रावक श्री धर्मचन्द जी बिनाकिया, मुख्यातिथि श्री सांकल चन्द जी बगरेचा ने गुरुदेव की यशोगाथा का गुणगान किया। साध्वी जी महाराज ने अपने प्रवचन में गुरुदेव के उपकारों का स्मरण कराया। श्री निर्मल कुमार जी ने हृदयस्पर्शी भजन गाकर श्रोतागणों को मंत्रमुग्ध कर दिया। साध्वी जी महाराज के मंगलपाठ एवम् गुरुदेव के जयकारों के साथ सभा सम्पन्न हुई। चैन्नई में विजय बल्लभ रथयात्रा का का अभूतपूर्व स्वागत दिनांक 13.03.2004 प्रातः 8 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा का चैन्नई में शुभारम्भ बैंड-बाजे के साथ आराधना भवन से शुरू हुआ, श्रावक तथा युवक मण्डल अपनी क्तमे ब्वकम में थे। युवती मंडल, श्राविका मण्डल, सीनियर श्राविका मण्डल अपनी क्तमे ब्वकम में थे, वे बैलगाड़ी में बैठकर गुरु महाराज की महिमा का गान भजन-संगीत के माध्यम से कर रही थीं। "तन में बसा, मन में बसा रंग रंग गूंज रहा वल्लभ नाम । इससे प्यारा कोई न लगा रंग रंग गूंज रहा वल्लभ नाम ।। सब सुख है करने वाला, सब दुःख है हरने वाला | मन के मनोरथ को देखो पूरा यह करने वाला ।” विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका PUSG | इस शोभा यात्रा को वर्तमान पट्टधर आचार्य भगवन् के आज्ञानुवर्ती गणिवर्य श्री सूर्योदय विजय जी आदि ठाणा अपनी निश्रा प्रदान कर रहे थे। आराधना भवन में धर्मसभा का आयोजन किया गया, सर्वप्रथम गुरुवंदन हुआ पश्चात् गणिवर्य श्री सूर्योदय विजय जी के मंगलाचरण के बाद गुणानुवाद सभा शुरू हुई, श्रावकजनों ने अपने वक्तव्यों तथा सुमधुर भजनों के माध्यम से गुरु गुणगान किया। गुरु प्रतिमा की वासक्षेप पूजा एवम् माल्यार्पण का लाभ श्री हजारीमल जी दोसी ने लिया। गुणानुवाद सभा में श्री बाबू लाल जी मेहता भूतपूर्व अध्यक्ष, सुश्रावक श्री हजारीमल जी ने गुरु वल्लभ का गुणगान किया। श्री जूना मन्दिर के ट्रस्टी श्री हिम्मत लाल जी मरड़िया ने गुरुदेव के चमत्कारों और 107 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनकल्याण के कार्यों पर विस्तृत रूप से जानकारी दी। गुरुभक्त श्री गौतम चन्द तारा चन्द जी ने भी गुरुवर का गुणगान किया। गणिवर्य श्री सूर्योदय विजय जी ने गुरुदेव की महानता तथा संघ के प्रति किए गए कार्यों को बताया ; उनका महान उपकार माना। गणिवर्य के मंगलपाठ के बाद सभा विसर्जित हुई। श्री छोटे पुखराज ने सभा का संचालन किया। ईरोड में गुरुभक्ति के अद्भुत नज़ारे दिनांक 14.03.2004 प्रातः 9 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा का बैंड-बाज के साथ स्वगात किया गया, ईरोड के विभिन्न बाज़ारों से गुज़रता हुआ रथ आगे बढ़ रहा था। पूज्य साध्वी सुमिता श्री जी आदि ठाणा-6 तथा पूरा श्रीसंघ रथ के साथ चल रहा था। श्रावक-श्राविकाएं झूमते-नाचते-गाते गुरु वल्लभ की रथयात्रा निकालते अपने को धन्य मान रहे थे। “जगत आज सारा, गुण तेरे गाता गुरु प्यारे वल्लभ, गुरु प्यारे वल्लभ। दिशाओं में फैला गुरु यश तुम्हारा गुरु प्यारे वल्लभ, गुरु प्यारे वल्लभ।। महिमा के सागर गुरु थे हमारे। भक्तों के गुरुवर बड़े थे सहारे। युगों तक रहोगे अमर विश्व में तुम गुरु प्यारे वल्लभ।" रथयात्रा के पश्चात् श्री चन्द्रप्रभु जिन मन्दिर के पास गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। पूज्य साध्वी सुमिता श्री जी, जो पूज्या साध्वी सुमति श्री जी की सुशिष्या हैं, के मंगलाचरण उच्चारण के साथ गुणानुवाद सभा का शुभारम्भ हुआ। अध्यक्ष श्री सन्तोष जी खाटेर, सुश्रावक श्री रमेश चन्द जी बाफना ने गुरुदेव की यशोगाथा का गुणगान किया। श्री नवीन कुमार जी बोथरा ने मधुर भजन के द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति की। श्री पद्म कुमार जी ने अर्द्धशताब्दी महोत्सव के कार्यक्रमों की जानकारी दी। पूज्या साध्वी श्री जी ने गुरु वल्लभ के जीवन पर प्रकाश डाला और अन्त में संक्रान्ति नाम का प्रकाश किया। मंगल पाठ, गुरुदेव के गगनभेदी जयकारों के साथ सभा विसर्जित हुई। गुरु प्रतिमा की वासक्षेप पूजा तथा माल्यार्पण बोली द्वारा करवाया गया। "मैं न जैन हूँ न बौद्ध हूँ, न वैष्णव हूँ, न शैव; न हिन्दू हूँ, न मुसलमान। मैं तो वीतराग परमात्मा को खोजने के मार्ग पर चलने वाला मानव हूँ, यात्री हूँ।" - विजय वल्लभ सूरि 108 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 4SON Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोयम्बटूर में विजय वल्लभ रथयात्रा का भावभीना स्वागत यात्रा दिनांक 14.03.2004 सायं 6 बजे कोयम्बटूर पहुंचने पर पूरे श्रीसंघ द्वारा विजय वल्लभ रथयात्रा का भावभीना स्वागत किया गया। शोभा यात्रा लक्ष्मी मिल से बैंड-बाजे के साथ समैया शुरू हुई। रास्ते में कई परिवारों ने गंहुलियां की। विभिन्न बाजारों से होती हुई, जिन मन्दिरों के दर्शन-वंदन करते हुए रथयात्रा श्री राजस्थान जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में श्री सुपार्श्वनाथ जैन मन्दिर में पहुंची। उपाश्रय में रात्रि में गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया, संचालन श्री महावीर जी ने किया, गुरुवर की. जीवन झांकी पर प्रकाश डाला। सुश्रावक श्री हंसमुख भाई ने गुरुवर की यशोगाथा का गुणगान किया। सुश्रावक श्री चम्पालाल जी बाफना ने सुमधुर भजन गाया"जैन जाति का वल्लभ एक स्तम्भ था, इस युग का वल्लभ महासंत था।" 451 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 109 FO PrivatePaspatus-Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । मैसूर दिनांक 15.03.2004 : रथयात्रा बाद दोपहर 1:30 बजे मैसूर नगर पहुंची, रथयात्रा की अगवानी के लिए मैसूर जैन सभा के महामंत्री आदि गणमान्य व्यक्ति पधारे हुए थे। लगभग 3बजे शोभायात्रा बैंडबाजे के साथ महावीर भवन, लस्कर मौहल्ला से प्रारम्भ हुई। अत्यंत उल्लासपूर्ण भावों के साथ सकल श्री संघ रथ यात्रा में शामिल था। पश्चात् गुरुवर विजय वल्लभ की गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। सायं 5 बजे सभा विसर्जित हुई। रात्रि में भावना कीर्तन का कार्यक्रम हुआ। महिला-मण्डल, युवक मण्डलों ने ऑर्केस्ट्रा के साथ समधुर भजन गाकर गुरुवर को संगीतमय भावांजली प्रस्तुत की। 110 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका o Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बैंगलोर रथयात्रा आगे बढ़ती हुई दिनांक 16.03.2004 को प्रातः 10 बजे भारतवर्ष के सबसे सुन्दर नगर बैंगलोर पहुंची, भगवान धर्मनाथ जैन मन्दिर के प्रांगण में रथ ले जाया गया, जहां श्री भूरचन्द जी चौहान आदि श्रीसंघ के अग्रगण्य नेता उपस्थित थे, लुधियाना से किचलू नगर जिन मन्दिर के संचालक भी उपस्थित थे, गुरुवर की वासक्षेप पूजा करके सभी ने अपने श्रद्धासुमन प्रस्तुत किये। हुबली - दिनांक 17.03.2004 रथयात्रा बैंगलोर से रवाना होकर चित्रदुर्ग होते हुए सायं 4 बजे हुबली पहुँची, हुबली से 3 कि.मी. पहले रथयात्रियों ने श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मन्दिर के दर्शन किए, लगभग 5 बजे हुबली शहर पहुँचे, रथयात्रा के स्वागत के लिए सकल श्रीसंघ आया हुआ था। गणमान्य व्यक्तियों द्वारा माल्यार्पण एवम् पुष्प वृष्टि करते हुए रथयात्रा का अपूर्व स्वागत किया गया। उसके बाद सामैया शुरू हुआ, आगे इन्द्र ध्वजा थी, इस के बाद बैंड उस के बाद कलश उठाए महिलाओं ने रथ की तीन प्रदक्षिणाएं की, हुबली नगर के विभिन्न बाज़ारों से होते हुए सामैया कंचाघर गली में श्री शान्तिनाथ जैन देरासर में पहुँचा, रात्रि में भावना कीर्तन का कार्यक्रम हुआ, श्रीसंघ की महिलाओं ने समधुर भजनों द्वारा गुरुवर विजय वल्लभ को अपनी भावांजली भेंट की, रात्रि 10 बजे आरती हुई। 4500 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 111 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुणे में अनेक स्थानों पर रथयात्रा का अभूतपूर्व स्वागत हुबली से सोलापुर, कोल्हापुर नगरों में पड़ाव करती रथयात्रा दिनांक 19.03.2004 को प्रातः 10 बजे पूना पहुँची, श्री दादावाड़ी जैन ट्रस्ट के पदाधिकारी तथा श्रावकगण सवार गेट पर रथयात्रा की अगवानी के लिए पहँचे हुए थे। गुरु प्रतिमा का दर्शन-वन्दन-अभिनन्दन किया गया, बैंड बाजे के साथ अत्यंत उल्लासित भावों से सामैया निकाला गया। श्री दादावाड़ी जैन टैम्पल ट्रस्ट में गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया, सभा में मारवाड़ ज्योति साध्वी सूर्यप्रभा श्री जी की शिष्याएं भी पधारी, श्रावकगण भी अच्छी संख्या में उपस्थित थे। अध्यक्ष श्री महिन्द्रमान मल जी कोठारी ने रथ का परिचय दिया, श्री पद्म कुमार ने स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी एवम् रथयात्रा के कार्यक्रमों की जानकारी दी। युवा मंच के अध्यक्ष श्री प्रवीण भाई, जुगराज भाई आदि ने गुरुवर विजय वल्लभ का गुणगान किया। साध्वी महाराज ने भी एक मधुर भजन गाते हुए गुरुवर के चरणों में अपनी भावांजली प्रस्तुत की। गुरुवर के जयकारों के साथ सभा विसर्जित हुई। रथयात्रा को भावभीनी विदाई दी गई। रथयात्रा आगे बढ़ते हुए लगभग एक बजे आलन्दी रोड श्री आत्म-वल्लभ हाई स्कूल के लिए रवाना हुई जहां अध्यक्ष श्री रमेश चन्द जी पोरवाल एवं स्टाफ तथा स्कूल के छात्रों ने रथयात्रा का अभूतपूर्व स्वागत किया ; गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण तथा पुष्प वृष्टि की गई। लगभग 1:30 बजे रथयात्रा भोपला चौंक, भवानी पेट टिम्बर मार्किट में श्री विजय वल्लभ हाई स्कूल पहुंची, जहां अध्यक्ष तथा ट्रस्टी गणों ने उल्लासपूर्वक रथयात्रा का स्वागत करते हुए प्रतिमा जी पर माल्यार्पण किया। इस स्कूल की स्थापना के प्रेरणास्रोत शांतमूर्ति जैनाचार्य श्रीमद् विजय समुद्र सूरि जी महाराज थे। रथयात्रा लगभग 3:30 बजे कैम्प एरिया पहुंची, वहां पर भव्य सामैया का आयोजन किया गया। सबसे आगे बैंड, फिर श्रावकगण, महिला मण्डल की सदस्याएं Dress Code में थीं, सजे हुए ऊंट सामैया की शोभा बढ़ा रहे थे। सामैया नगर के विभिन्न बाजारों से होती हुई भगवान श्री शान्तिनाथ जैन मन्दिर सोलापुर बाजार पहुंच कर समाप्त हुई, वहां गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। सभा में श्री राम सूरि गच्छ के आचार्य सरल स्वभावी श्री विमलरत्न सूरि जी, डेहलों वाले उपस्थित हुए उनके साथ मनिराज श्री पुण्योदय विजय जी भी साथ थे। गुरु महाराज के मंगलाचरण से सभा प्रारम्भ हुई, अध्यक्ष महोदय ने रथयात्रा के लिए स्वागती भाषण दिया, श्री पद्म कुमार ने अर्द्धशताब्दी महोत्सव के कार्यक्रमों की जानकारी दी। गुरु महाराज ने गुरु वल्लभ का गुणगान बहुत ही सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया। गुरु वल्लभ की स्तुति स्वरूप संक्रान्ति भजन गाया गया। अध्यक्ष जी द्वारा धन्यवाद के पश्चात् सभा विसर्जित हुई। आचार्य श्री विमल रत्न सूरि जी, मुनिराज पुण्योदय विजय जी ने रथ में वन्दना एवम् वासक्षेप पूजा की। अत्यंत सुन्दर कार्यक्रम रहा। 112 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणा । दिनांक 20.03.2004 प्रातः 10 बजे रथयात्रा का बैंड बाजों के साथ सामैया श्री राजस्थान श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजक संघ के श्री मुनिसुव्रत स्वामी मन्दिर से शुरू होकर विभिन्न बाजारों में से निकाला गया। सबसे आगे बैंड, उस के बाद श्री भुवनभानु सूरि के आज्ञानुवर्ती मुनिराज श्री विश्वानंद विजय जी ठाणा साथ-साथ चल रहे थे, मुनिराजों के साथ सकल श्रीसंघ था। अत्यंत उल्लासित भावों से झूमते-नाचते गाते हुए भाई-बहनों ने अपने प्रिय गुरु वल्लभ का गुणगान किया। सागर गच्छ की साध्वी प्रियधर्मा श्री जी आदि ठाणा ने भी गुरुवर का वन्दन-अभिनन्दन किया। रात्रि 9:30 बजे भावना कीर्तन प्रारम्भ हुआ। भायखला भक्त मण्डल के सदस्य तथा श्राविकाओं ने अपने मधुर कंठ से सुमधुर भजनों द्वारा समां बाँध दिया, रात्रि 11 बजे आरती उतारी गई। अगले दिन नालासर, भायन्दर होते हुए रथयात्रा महावीर विद्यालय अंधेरी पहुंची, जहां ट्रस्टीगण ने गर्मजोशी से रथयात्रा का स्वागत किया, गुरु प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया, पुष्पवृष्टि की गई तथा रथ की प्रदक्षिणाएं लेकर गुरुवर को श्रद्धासुमन प्रस्तुत किए। लुधियाना जागरण वल्लभ रथयात्रा' का लुधियाना से प्रयाण अमराव के स्थानीय संपादक व चीफ जनरल मैनेजर निशिकान्त ताक जनजागरण रथयात्रा में झूम के नाच श्राद्ध शोभायात्रा में सकड़ों ने भाग लिया। मुजारमाबाईला कोरलासी कमल tad गीत पराजयो-यते एक रोमन Lp माया मायाको रथयात्रा जयपुर पहा ANभावारी समककार विजय वल्ल बीकानेर, (संवाद)। श्री विनय इलम मवेशवादी निगमटोलनात बना यशस्थान में २२ फरवरी को मनाया से जयपुर सुनील गाना गुजरेगी यहां पर सी गवस्थाये सुचारू रूप से पानी में पाया गया कि भारत में बहुत ही माटोमा पल मिया इन्तजार कर रहे है। इस काम पूज्य गुरुदेव के सिकायापारी मी बनाओ के जिताय शुरू की गई योनीतील रथयाापना के अनुरूप कि मेने नरनामोगरेको ना कामति के प्रयासों पर चलने माता एका पनि काटकपूरा में भव्य स्वागत र २४ फरवरी मंगल वारसाततया "विजयबलभ रक्षयात्रा का स्वाग rantidiffer o AILEलत किया जनजागरण बोटकपूरा (फरीदकोट कार्य अगर विजयीवरजी मार .मद्धालुओं नेकी रवानावारीबीकान SALोजन पर फूलवर्ण जय मालभ गया* फोगकपूर पहुंचने पर मारो .लाजवंती जैन माडल कलरको महा केले भी हुए शामिल arrEDOR प टेलचा मारायचेगी सर BARर मायामरकोटकपूर आगमन SARSIPीरमरोभागारमा ARRलमा निरि भ कमान जन्म समारोबारा भाग लियाका for margis f a y redit: Rish image दिया। एनजर पदर ameterरगरता हुमेह पोलीबग कसूरतगढ से रखा मुन्न सजार से होते हुए पार्वनार न हि पुराण करतो केहपात्रा बीकानेर रवाना ययात्याचार को बीकानेर में रखपान का बायोगा मुख्य बाते में समापन होगा रानी को मान सम्मान लकलारोगह से रवाना होकरनागीर तोपरयाली पहुंचेगी पारी में शाम को भारती पर जामोक्न से रवाना होकर निजोधा रानी विमेत पालना यता वाली से उदयपुर पहुंचेगी दूसरे दिन गुना पालमपुरको | पर भव्य भोजन की व्यवस्था रहेगी। क मान जम्मु हिमापत हरियाणा दिल्ली जनार-महेश जस्थान के बारे गुजरात सध्यादेश अनादेशमनदार TAगी तपासमापन समारोह व मार्च को चोरी। लामबहत तीनचल्ताप से मनाया जायेगालम अ Sare NA विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 113 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायखला-मुम्बई के लिए स्पैशल ट्रेन का कार्यक्रम अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति की ओर से, भव्यातिभव्य विजय वल्लभ रथ यात्रा का अपने गन्तव्य स्थान भायखला मुम्बई पहुंचने के सुअवसर पर, उत्तरी भारत से एक स्पैशल यात्रा ट्रेन का गुरु भक्तों को समापन समारोह के सुअवसर पर, भायखला मुम्बई ले जाने के लिए प्रबन्ध किया गया। यह 'स्पैशल यात्रा ट्रेन 20 मार्च 2004 को सायं 8 बजे लुधियाना रेलवे स्टेशन पर उत्तरी भारत के विभिन्न नगरों से आये हुए लगभग 550 यात्रियों को लेकर अपने गन्तव्य स्थान भायखला के लिये रवाना हुई। इस 'स्पैशल यात्रा ट्रेन' के संघपतित्व का लाभ स्व. श्री फग्गू मल शांति देवी जैन बरड़ परिवार के वंशज श्रेष्ठीवर्य, सरल स्वभावी श्री कश्मीरी लाल अवताश जैन एवं उनके सुपुत्र सर्वश्री विनोद जैन, विजय जैन, विनय जैन सपरिवार मालिक फर्म वल्लभ यार्नस लुधियाना ने लिया। प्रस्थान पूर्व सम्पूर्ण जैन समाज के विभिन्न परिवारों द्वारा संघपतित्व लेने वाले परिवार का हर्षोल्लास पूर्वक बहुमान किया गया। पूर्ण व्यवस्थित ढंग से 22 मार्च 2004 प्रातः स्पैशल ट्रेन मुम्बई भायखला पहुंच गई। दूसरी तरफ भव्यातिभव्य रथ यात्रा जिसका शुभारम्भ लुधियाना से 6 फरवरी को हुआ था, जम्मू से कन्याकुमारी तक अपना भ्रमण पूरा करके 22 मार्च मुम्बई बालकेश्वर मन्दिर पहुँच गई। ___यह रथ यात्रा 23.3.2004 को बालकेश्वर मन्दिर होते हुए मुम्बई भायखला में गुरु मन्दिर पर आकर सम्पन्न हुई। इसी समापन समारोह में भाग लेने के लिए तथा परम पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए, गुरुभक्तों को ले जाने के लिए, इस स्पैशल यात्रा ट्रेन की व्यवस्था की गई थी। समापन समारोह में भाग लेने के पश्चात् स्पैशल यात्रा ट्रेन के यात्रियों ने पावागढ़, पालीताणा, शंखेश्वर जी, मेहसाना, महुड़ी, बीजापुर आदि तीर्थों की यात्रा करते हुए दिनांक 27 मार्च 2004 रात्रि 1 बजे स्पैशल ट्रेन यात्रियों को लेकर लुधियाना वापिस पहुंच गई। 114 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1504 Jan Education International Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस सारी स्पैशल यात्रा ट्रेन की भोजन व्यवस्था देख-रेख आदि का प्रबन्ध श्री सिकंदर लाल जैन एडवोकेट, जो महासमिति के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं और जिन्हें निवर्तमान गच्छाधिपति श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज जी ने 'यात्रा-वीर' की पद्वी से अलंकृत किया हुआ है। उनके सहयोगियों श्री देवेन्द्र कुमार जी कसूर वाले, श्री सुरेश कुमार जी पाटनी, श्री चन्द्र किरण जी, श्री विपन कुमार जी, श्री राजेश जी लिगा आदि ने बहुत ही कुशलता पूर्वक कार्य किया। श्री सिकंदर लाल जी एवं उनके साथियों का सेवाभावी होना सराहनीय व अनुमोदनीय, परमात्मा की भक्ति और गुरुभक्ति का परिचायक है। यात्रा का विस्तृत विवरण नैन्सी जैन जण्डियाला गुरु ने 'आंखों देखा हाल' का वर्णन इस प्रकार किया है : लुधियाना रेलवे स्टेशन पर स्पैशल यात्रा ट्रेन दिनांक 20.03.2004, सायं 6 बजे को फूलों से सजी हुई तैयार खड़ी थी। यात्री नियत समय पर आने शुरू हो गये। हर कोच के बाहर इन्चार्ज यात्रियों की सुविधा के लिये उन्हें डिब्बा क्रमांक तथा सीट क्रमांक बता रहे थे। भोजन करने के पश्चात् यात्रियों ने संघपति परिवार का बहुमान किया तथा ठीक समय सायं 7:45 पर ट्रेन मुम्बई भायखला के लिए रवाना हो गई। मार्ग में किसी प्रकार की असुविधा नहीं हुई। 22 मार्च 2004 को सुबह 5 बजे हम मुम्बई पहुंच गये। 2 दिन का आवश्यक सामान लेकर बाकी सामान हमने ट्रेन में ही छोड़ दिया। उसके बाद बसों द्वारा हमने सेठ मोती शाह मन्दिर भायखला जाना था। बसों का क्रमांक एवं सीट क्रमांक हमें ट्रेन में ही दे दिया। हम लोग बसों द्वारा भायखला मन्दिर जी पहुंच गये। वहां पहुंच कर स्नान आदि करके पूजा-अर्चना की तथा नाश्ता करके मुम्बई भ्रमण के लिये बसों में बैठ गये। सबसे पहले भारत की मुख्य जगह Gate Way of India देखा उसके ठीक सामने मुम्बई का सबसे बड़ा होटल The Taj Hotel था, यहां पर यात्रियों ने बहुत सी तस्वीरें खींचीं। कई यात्रियों ने Boating भी की, वहां का दृश्य मनमोहक था। हम वहां से बालकेश्वर मन्दिर रवाना हुये, जहां पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा है, वहां पर रथ यात्रा भी पहुंच चुकी थी। सभी ने विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज के दर्शन किये, दोपहर का भोजन किया, फिर से बसों में बैठकर बाद दोपहर 3:30 बजे Hanging Garden गये। वहां से रवाना होकर हरे रामा हरे कृष्णा मन्दिर पहुंचे, मन्दिर जी में दर्शन वन्दन करके बसों द्वारा भायखला के लिए रवाना हुए। लगभग रात्रि 8 बजे हम मन्दिर जी पहुंच गये। भोजन करके भक्ति संगीत हुआ। यात्रियों ने भक्ति संगीत का आनंद उठाया। अगले दिन विजय वल्लभ रथ यात्रा समापन समारोह था जिसकी वजह से सभी यात्री जल्दी ही सो गये। सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि किया। मन्दिर जी में पूजा अर्चना, दर्शन-वन्दन किया। वहां पर समापन समारोह बड़ी धूमधाम से मनाया गया। उस मनमोहक दृश्य को देखकर मन प्रसन्नता से भर गया। हम सभी ने गुरु चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित किए। उसके बाद रेलवे स्टेशन की तरफ रवाना हुये। ट्रेन रेलवे स्टेशन से सायं 5 बजे बड़ौदा के लिये रवाना हुई। बड़ौदा पहुंच कर बसों द्वारा पावागढ़ तीर्थ के लिये रवाना हुये। पावागढ़ तीर्थ लगभग सुबह तीन बजे पहुंचे। सुबह 6 बजे स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा सेवा का यात्रियों ने लाभ उठाया। दर्शन-वंदन करने के बाद पालीताणा तीर्थ के लिए रवाना हुये। सायं 7 बजे पालीताणा तीर्थ की श्री पंजाबी जैन धर्मशाला पहुंचे यहां रात्रि भोजन की व्यवस्था थी। ____दिनांक 24.3.2004 प्रातः 4 बजे स्नान आदि करके पूजा के वस्त्र लेकर पालीताणा तीर्थ की यात्रा आरम्भ कर दी और पालीताणा तीर्थ पहुंच कर मन्दिर जी में पूजा अर्चना की और ठीक 2 बजे वापिस आना प्रारम्भ किया तथा सन्ध्या के भोजन के पश्चात् रात्रि 7:30 बजे पालीताणा तीर्थ को अलविदा कह दिया और फिर से यहां आने की आशा दिल में रखकर शंखेश्वर पार्श्वनाथ जी के विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 115 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिए रवाना हुये। रात्रि 11 बजे अयोध्या पुरम पहुंचे। यह तीर्थ अभी बन रहा है। यहां पर भगवान जी की प्रतिमा है, जो 23 फीट ऊंची है। सारी रात का सफर तय कर हम प्रातः 5 बजे शंखेश्वर पार्श्वनाथ पहुंचे, वहां पहुंच कर कुछ समय विश्राम करने के बाद सुबह 7:15 बजे उठ कर स्नान कर पास के मन्दिर जी में पूजा अर्चना की। वहां से शंखेश्वर पार्श्वनाथ जी थोड़ी सी चढ़ाई पर स्थित है। वहां पहुंच कर 108 भगवान की प्रतिमाओं की पूजा अर्चना करते हुए मूल भगवान की प्रतिमा की पूजा अर्चना करते हुये वापिस धर्मशाला पहुंच गये। वहां से बसों में बैठकर घंटाकरण महावीर स्वामी जी की प्रतिमा के दर्शन वंदन के लिए पहुंचे। वहां का प्रसाद वहीं पर खत्म करने की प्रथा है। वहां दर्शन वन्दन करने के पश्चात् मेहसाणा तीर्थ के लिए रवाना हुये। वहां नियत समय पर पहुँच कर दर्शन वन्दन पूजा आदि का लाभ प्राप्त किया और बसों में बैठकर रेलवे स्टेशन के लिये रवाना हये। 26 मार्च को सारा दिन ट्रेन का सफर तय कर तथा रात्रि 1 बजे लुधियाना रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पहुंच गई। रेल्वे स्टेशन पर पहुंचने पर संघपति जी ने सभी यात्रियों, गुरुभक्तों से क्षमा याचना की, उनकी तरफ से दी हुई सुख सुविधा हमेशा स्मरणीय रहेगी। इस प्रकार हम सभी अपने-अपने घर को रवाना हुये। भायखला मुम्बई में पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. का समाधि मंदिर एवं गुरु प्रतिमा, 116 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरु वर्तमान गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म. की सद्प्रेरणा - शुभ आशीर्वाद - शुभ निश्रा में लुधियाना से 6 फरवरी 2004 को आरम्भ होकर उत्तरी भारत से दक्षिण भारत में विभिन्न नगरों एवं ग्रामों में भ्रमण करते हुए विजय वल्लभ रथयात्रा ने दिनांक 20.03.2004 को मुंबई शहर में प्रवेश किया और दिनांक 23.03.2004 को बालकेश्वर मन्दिर से होते हुए भायखला में गुरु समाधि मन्दिर पर आकर सम्पन्न हुई। मुम्बई जैन सभा के श्री कान्ति भाई, श्री देवेन्द्र भाई एवं प्रमुख व्यक्तियों द्वारा बड़े ही हर्षोल्लास एवं उत्साह के साथ बैण्ड-बाजों के द्वारा भायखला गुरु समाधि मन्दिर में प्रवेश विजय वल्लभ रथयात्रा एवं समापन समारोह निर्विघ्न, सफलतापूर्वक सम्पन्न कराया गया। उसी स्थान पर समापन समारोह का आयोजन रखा हुआ था। ये समारोह रथ पहुँचने के तुरन्त पश्चात् प्रारम्भ हुआ। इस समारोह में सम्मिलित होने के लिए विभिन्न शहरों के प्रतिनिधि गुजरात, राजस्थान एवं पंजाब आदि से पधारे थे। गुरु चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए इसमें विशेष रूप से लुधियाना से स्पैशल ट्रेन द्वारा लगभग 550 व्यक्तियों का समूह संघपति श्री कश्मीरी लाल अवताश जैन के नेतृत्व में इस समारोह में भाग लेने की लिए पहुँचा । , Savd इस समारोह में अपनी निश्रा प्रदान करने के लिये गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. के अन्तिम हस्त दीक्षित मुनि परम पूज्य आचार्य श्री पद्म चन्द्र सूरीश्वर जी महाराज आदि अपने मुनि मण्डल के साथ विराजमान हुए और साध्वी अमितगुणा श्री जी (माता श्री जी), श्री पीयूषपूर्णा श्री जी आदि ने अपनी निश्रा प्रदान की। गुरु गुणानुवाद के साथ-साथ रथ यात्रा प्रारम्भ से लेकर अन्त तक रथ यात्रा को सुचारू रूप से अपने गन्तव्य तक पहुंचाने के लिये विजय वल्लभ सेना के नौजवान कार्यकर्त्ताओं श्री शान्ति लाल जी जैन, श्री नीरज कुमार जी, श्री पद्म कुमार जी, श्री अरविन्द कुमार जी एवं श्री सतीश कुमार जी, श्री आशीष जैन आदि के अथक परिश्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा एवं अनुमोदना की गई। इन नौजवानों ने अपना घर परिवार त्याग कर रथ यात्रा के साथ रहकर इसे अपने गन्तव्य तक पहुंचाया। भायखला गुरु मन्दिर के ट्रस्टियों एवं मुम्बई जैन सभा के पदाधिकारियों द्वारा अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी रथ यात्रा समारोह महासमिति के अध्यक्ष एवं यात्रा संघ के संघपति श्री कश्मीरी लाल जी श्रीमती अवताश जैन एवं परिवार मै. वल्लभ यार्न का हार्दिक बहुमान एवं अभिनंदन किया गया। 'अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी रथ यात्रा विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 117 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समारोह महासमिति' के कार्यकारी अध्यक्ष श्री सिकंदर लाल जी ने यात्रा का पूरा विवरण देते हुये उन तमाम व्यक्तियों एवं संस्थाओं का धन्यवाद किया और आभार माना, जिन्होंने इस यात्रा को सफल बनाने के लिये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहयोग किया। वल्लभ सेना के महामंत्री तथा विजय वल्लभ रथ यात्रा के संयोजक प्रो. श्री राजेन्द्र कुमार जैन का विजय वल्लभ रथ यात्रा के संचालन में सराहनीय योगदान रहा। साध्वी पीयूषपूर्णा श्री जी ने अपने प्रवचन में गुरु विजय वल्लभ की जीवनी पर प्रकाश डाला। गुरु वल्लभ के अन्तिम हस्त दीक्षित मुनि परम पूज्य आचार्य श्री पद्म चन्द्र सूरीश्वर जी महाराज ने अपने सारगर्भित प्रवचन में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुये फरमाया कि श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि जी महाराज ने समय के अनुरूप विजय वल्लभ अर्द्धशताब्दी को महोत्सव रूप में मनाने के लिए गुरुवर के नाम को दशों दिशाओं में फैलाने के लिए उनके उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए विजय वल्लभ रथयात्रा के रूप में एक बहुत ही सुन्दर एक अनुमोदनीय कार्य किया है। रत्नाकर मेरे मित्र जैसे हैं मुझे वडील का सम्मान देते हैं लेकिन चरित्र में मुझ से बहुत-बहुत ऊँचे चले गये हैं, उनका चरित्र उच्चतम कोटि का है। उच्च चरित्र से ही जैन धर्म की जाहो जहाली होगी, उनका पट्टधर बनना एक योग्य व्यक्ति को योग्य वस्तु का दिया जाना है। मेरे साथ उनका भ्रमण भी हुआ है चौमासा भी हमने इकट्ठा किया है। कई लोग कहते है कि वह आवेश में जल्दी आ जाते हैं। उन्हें ध्यान देना चाहिए वे आवेश में क्यों आते है ? जब कोई गलत बात होती है तभी वे आवेश में आते हैं। समाज को मीठी दवाई दी जाती रही इसीलिए समाज की दुर्दशा हो रही है। अब रत्नाकर ने आकर इस दुर्दशा को रोकने के लिए कड़वी दवाई दी लेकिन यह दवाई हितकारी है, जो इसे पीएगा उसका जन्म लेना सार्थक बन जायेगा। जैन समाज के पुण्योदय से ऐसा गुणवान चरित्रवान पट्टधर प्राप्त हुआ है सभी आचार्यों को और सभी समाज को उनका सम्मान करना चाहिए। रत्नाकर सूरि जिस बात को ठान लेते हैं उसको करने से नहीं चूकते। वे कभी गलत कर ही नहीं सकते इसलिए उनका कभी गलत नहीं होगा। रथयात्रा में आज पता चलता है कि गुरु वल्लभ के भक्त हर गली, हर कूचे में विराजमान हैं। आज जरूरत है वल्लभ सूरि के झण्डे तले एक हो जाओ, गुरु वल्लभ के उपदेशों को जीवन में उतारने की आवश्यक्ता है, जैन धर्म में त्यागी का मान-बहुमान होता है भोगिओं का नहीं। त्यागियों का मान-बहुमान परमात्मा का मान-बहुमान है इसलिए भूलकर भी त्यागी का अपमान मत करना।" समारोह समाप्ति पर भक्तगण ढोलकी ताल पर झूमझूम कर नाचने लगे। इस प्रकार गुरुवर का गुणानुवाद करते हुये भव्यातिभव्य रथ यात्रा का समापन समारोह हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ जिनशासन की प्रभावना के लिए और गुरुवर के श्री चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिये ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार प्रथम बार ऐसी भव्यातिभव्य गुरु विजय वल्लभ रथ यात्रा का आयोजन किया गया है और इसकी सफलता का सारा श्रेय श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्रदिन्न के वर्तमान पट्टधर गच्छाधिपति कोंकण देश दीपक जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज को जाता है, जिन्होंने शुभ सद्प्रेरणा आशीर्वाद एवं निश्रा प्रदान करते हुये अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी रथ यात्रा समारोह महासमिति को मार्गदर्शन दिया। 118 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1504 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जालंधर में मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की गुरु वल्लभ द्वारा स्तुति For प्रभु पारस भवजल पार कारी, जिन्हों के दर्श से भवताप टारी।। अंचली नगर बनारस में प्रभु जन्म लीनो, पिता अश्वसेन कुल में जस कीनो।।1 ।। करम आठ दूर कर प्रभु मोक्ष सिधायो, सावन सुदि अष्टमी गिरि शिखर गायो। जालंधर नगर में तुम दरसन आयो, निजातम रूप वल्लभ आज पायो।। प्रभु08 वल्लभ काव्य सुधा पृ. नं. 78 श्रद्धासुमन दर्शना रानी जैन कमलेश रानी जैन महामंत्री बबीता जैन कोषाध्यक्ष प्रथान ___ श्री आत्म-वल्लभ जैन श्राविका संघ पुराना बाजार, लुधियाना Sandeep ain Countaline For Private & Personal use only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0000000 1800000000 धनधन पार्श्वनाथ भगवान, भवोदधि पार लगाने वाले ।। अं० प्रभु जगनायक जगदेव, धारी दिल में तुम सेव I कहुं मैं तुम आगे सत्यमेव, सुनो प्रभु नाग बचाने वाले ।। धन० 1 तुम बिन मेरा नहीं कोय, साथी जगमें लिया जोय । सम्मेद शिखर तीर्थ की गुरु वल्लभ द्वारा स्तुति वाचैा स्वा यात्रा मंगल जयकार, आतम लक्ष्मी दातार । वल्लभ मन हर्ष अपार, करे आतम पद पाने वाले ।। धन0 6 संवत रस मुनि निधि चन्द, कार्तिक यात्रा सुखकन्द। सम्मेतशिखर आनन्द, हुए आतम घर जाने वाले ।। धन० 7 वल्लभ काव्य सुधा पृ. नं. 196 श्रद्धांजलि Culmars CAPTOR Since 1967 BEAUTY Manufacturers & Exporters Gents & Ladies Knitwear made out of Purewool, Lambs wool, Blended wool & Fancy yarn Machine washable 100% pure wool & blended wool inner wear B-XXIV, 2995, Sunder Nagar, Ludhiana-141-007 Ph:(0) 2665014, 15, 2601101, 3946015 (R) 2461222, 2707172, 2730001 Fax: 91-161-2601720 E-mail: gbbeauty@satyam.net.in O. CERTIFICATION TRADE MARK WOOLMARK PURE NEW WOOL Munilal Bal Krishan Jain Ghorewala Parvar Gian Chand Tribhawan Lal Jain Ghorewala Parvar Contact Person Kailash C. Jain Bal Krishan Jain San eev Jain Computers www. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामाना में मुलनायक भगवान शांतिनाथ की गुरु वल्लभ द्वारा स्तुति आहो जी शांतिप्रभु सुखकारी, सुखकारी सुखकारी भवसागर पार उतारी जी।। शांति0 अंचली आहो जी शहर समाना में समाना में समाना में जिनमंदिर बनया भारी जी।। शांति0 1 आहो जी सिद्धगिरि तीरथ से तीरथ से तीरथ से प्रभुमूर्ति मोहनगारी जी।। शांति0 2 वल्लभ काव्य सुधा पृ. नं. 41 गुरु चरणों में कोटि-कोटि नमन् ! Kiran Jain M/S MAHAVIR UDYOG Bahadur Ke Road, Ludhiana Ph : 2826600,2827600 Sandeep Uain Countries Jain Education Internallonal For Private & Personal U nive www.airellbrand Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educatio म जंडियाला में मूलनायक भगवान ऋषभदेव की गुरु वल्लभ द्वारा स्तुति हे प्रभु मोहे तार स्वामी, जगजीवन हितकार, स्वामी हे हो स्वामी ।। अंचली नाभि राजा कुल जनम लियो है, माता मरुदेवी सार स्वामी । 10 1 दर्शन जंडियाले तुम पायो, आलस कियो हम वार ।। स्वामी09 राग-द्वेष को दूर निवारी, मोह से कियो किनार ।। स्वामी0 10 आतमराम रमण निज रूपे, 'वल्लभ' पार उतार ।। स्वामी0 11 वल्लभ काव्य सुधा पृ. नं. 5 पुष्पांजलि श्री धनपत राय विलायती राम वल्लभ दास पाटनी वंशज : सुरेश जैन पाटनी, अभिनव जैन पाटनी M/S Dhanpat Rai Walaiti Ram Oswal Vill. Hussain Pura, G.I Road, Ludhiana Ph: 3209632 Pamo & Personal Lise Only M/S Zorro Fabrics (R) Ltd Beri Road, Civil Lines, Ludhiana Ph:2801555 Sandeep Jain Computers w Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 भगवान पार्श्वनाथ की गुरु वल्लभ द्वारा स्तुति श्रद्धांजलि अश्वसेन सुत वंदन करीये, पाप पडल सब हरीये जी । वामानन्दन पर दुख भंजन, सेवत शिव पग धरीये जी ।। 1 ।। तप गच्छ गगन में दिनमणि सरिसे, विजयानन्द सूरि प्यारे जी । आतम आनन्द कारण वल्लभ, चरण कमल चित्तधारे जी ।। 4 ।। वल्लभ काव्य सुधा पृ. 277 Yash Paul Ashok Kumar Jain Jain Cotton Textiles Mills Dealers of : All Textile & Hosiery Knitted Clothes Head Office: D.S. College Road, Vikram Market Ambala City - 134003 Phone : (O)0171-2510735 (R) 2511527 Sale Office : B-24/3269, Mahavir Jain Colony, Street No. 3, Sunder Nagar, Ludhiana Ph: (0) 0161-2664160, 2652219 Mobile : 98140-89825, 98148-89825 E-mail: jctm@satyam.net.in Sandeer am wwwww.jaihelibrary.org Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं क्या चाहता हूँ ?| "होवे कि न होवे, परन्तु मेरा आत्मा यही चाहता है कि साम्प्रदायिकता दूर होकर जैन समाज मात्र श्री महावीर स्वामी के झण्डे के नीचे एकत्रित होकर श्री महावीर की जय बोले तथा जैन शासन की वृद्धि के लिए ऐसी एक 'जैन विश्व विद्यालय' नामक संस्था स्थापित होवे। जिससे प्रत्येक जैन शिक्षित हो, धर्म को बाधा न पहुंचे, इस प्रकार राज्याधिकार में जैनों की वृद्धि होवे। फलस्वरूप सभी जैन शिक्षित होवें और भूख से पीड़ित न रहें। शासन देवता मेरी इन सब भावनाओं को सफल करें, यही चाहना है। बढ़ते कदम ... Vijayanand Diagnostic Centre Bhagwan Mahavir Jain Sewa Sansthan Viajy Vallabh Samadhi Mandir, Ludhiana. Jah Education into FOR POMEN DEED Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “साधर्मिक वात्सल्य का अर्थ धर्म बन्धुओं को मिष्ठान खिलाना भर ही नहीं है, बल्कि साधर्मिक बन्धुओं को कर्य में जोड़ कर उन्हें आत्म-निर्भर बनाना, यह भी सच्चा धार्मिक वात्सल्य है।.....एक ओर धनिक वर्ग मौज़ उड़ाए और दूसरी ओर हमारे सहधर्मी भाई भूखों मरें, यह सामाजिक न्याय नहीं अन्याय है। श्रद्धा के पुष्प Swastik Enterprises COLLECTION 62, Sunder Nagar, Ludhiana-141 007 Phone (O)2609152,2665153,2653377,2653388 (R) 2662872,2665467M:98140-03388 Sandeep dan Certilivn Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वल्लभ विजय राष्ट्र उत्थान “हमारे राष्ट्र का उत्थान सादे जीवन और उच्च विचार से हुआ था, लेकिन अब अनेक व्यस्नों में फसां जाने के कारण विलासित, आलस्य, दरिद्रता, फैशन और चरित्र - हीनता आदि बुराईयों के जड़ जमाने से पतन हो रहा है। जब तक यह बुराईयाँ दूर नहीं होती तब तक राष्ट्र का उत्थान भी नहीं होगा ।" श्री बाबा गज्जा जैन सभा (रजि.) तिलक नगर, लुधियाना । सुन्दर नगर, लुधियाना । copy large Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तप :: क्षमा सिर्फ शरीर को सुखाने का नाम ही तप नहीं है। शरीर के साथ जो अपराध करने वाले राग द्वेष हैं-उनको सुखाने की जरूरत है और तप का सही अर्थ भी यही है। यथा शक्ति तपस्या तो करनी ही चाहिए। पर तपस्या के साथ क्षमा धारण करना भी अत्यन्त आवश्यक है। सच्ची शान्ति भोग में नहीं त्याग में है। मनुष्य अपने हृदय में ज्यों ज्यों त्याग की ओर बढ़ता जाएगा, त्यों त्यों शान्ति उसके निकट आती जाएगी। EASTEND WOOLLEN MILLS (Industrial Area, Panipat) 2783/2, Sunder Nagar, Ludhiana EASTEND KNITWEARS (Rai Bahadur Road, Ludhiana) Rakesh Oswal Hosiery Mills Lta (2783/2, Sunder Nagar, Ludhiana) Sandeer Uain Conystem Jain Education Intemaliona Free Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में मूलनायक भगवान धर्मनाथ की गुरु वल्लभ द्वारा स्तुति धर्मनाथ जिन तारिये म्हारा व्हाला जी, धर्मधुरंधर देव व्हाला जी। मन-वच-काया से करूँ म्हारा व्हाला जी, रात-दिवस तुम सेव, व्हाला जी।। 1 ।। नगर-निकोदर-मंडनो म्हारा व्हाला जी, धर्मनाथ वडवीर, व्हाला जी। दर्शन करी संतोष हुओ म्हारा व्हाला जी, काटो कर्म-जंजीर, व्हाला जी।। 5 ।। वल्लभ काव्य सुधा पृ. नं. 35 'श्रद्धासुमन Parduman Kumar Jain Bhushan Kumar Jain Mukesh Kumar Jain Vallabh Fabriks Ltd. Manufactures & Exporters of Knitted Cloth Garments & Made ups. Regd. Off.- B-XXIV-4700, Sunder Nagar, Ludhiana- 141 007 | Ph: (O) 91-161-262701, 02, 03, 04 Fax :91-161-2621705 E-mail: vallabhfab@satyam.net.in Sandeep Lain Correlam For Private & Personar use only , Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । जिन पूजा प्रतिस्पर्धा अम्बाला : दिनांक 15 अगस्त पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. की सप्रेरणा एवम् शुभ निश्रा में आयोजित 'विविध मंगलमय कार्यक्रम' की श्रृंखला में दिनांक 15 अगस्त रविवार को अम्बाला में गुरुवर विजय वल्लभ द्वारा रचित 'चारित्र पूजा' पर आधारित जिन पूजा प्रतिस्पर्धा का सफल आयोजन किया गया। उत्तर भारत के विभिन्न नगरों लुधियाना, अम्बाला, जालंधर, होशियारपुर से आए विभिन्न मण्डलों ने इस प्रतियोगिता में उत्साहपूर्वक एवम् भक्ति भाव पूर्वक भाग लिया। प्रत्येक मण्डल को गुरुवर विजय वल्लभ द्वारा रचित पूजा में से दो पूजाएं बोलने का समय दिया गया, जिसमें प्रतिस्पर्धी मण्डल द्वारा गुरु वल्लभ द्वारा रचित 'चारित्र पूजा' के दोहे संगीतमय व लयबद्ध गाये गये। इस तरह की प्रतिस्पर्धा पूरे उत्तर भारत में प्रथम बार आयोजित की गई जिसे देख-सुनकर अपार जनसमूह भक्ति भाव से ओत-प्रोत होकर उल्लासित हो गया। गच्छाधिपति जी की निश्रा में निर्णायक मण्डल में निम्नलिखित महानुभाव सम्मिलित थे : 1. श्रीमति कमलेश जैन लुधियाना, 2. श्री सुरेन्द्र जैन लुधियाना, 3. श्री सुरेश जैन पाटनी लुधियाना कड़ी प्रतिस्पर्धा के पश्चात निर्णायक मण्डल ने इस तरह अपना निर्णय प्रस्तुत किया प्रथम : श्री आत्म-वल्लभ जैन महिला मण्डल अम्बाला द्वितीय : श्री आदिनाथ जैन स्नात्र मण्डल लुधियाना ततीय : श्री आत्म-वल्लभ जैन श्राविका संघ पुराना बाजार, लुधियाना भाग लेने वाले अन्य मण्डल इस प्रकार हैं : अम्बाला से श्री आत्म-वल्लभ जैन श्राविका संघ, जालंधर से श्री आत्म वल्लभ जैन महिला मण्डल तथा होशियारपुर से श्री वासुपूज्य जैन स्नात्र मण्डल। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 129 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजेताओं को दिनांक 15-16-17 अक्तूबर को होने वाले स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव में सम्मान के साथ पुरस्कृत किया जाएगा। इस जिन-पूजा प्रतिस्पर्धा का आयोजन 'अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति के तत्वावधान में श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ अम्बाला ने किया। उपस्थित अग्रगण्य व्यक्तियों में अम्बाला श्रीसंघ के अग्रगण्य व्यक्तियों के साथ लुधियाना से श्री कश्मीरी लाल जैन, श्री सिकन्दर लाल जैन एडवोकेट, श्री देवेन्द्र कुमार जैन, श्री राजेन्द्र पाल जैन, श्री पुष्पदंत जैन पाटनी सम्पादक 'सत्य दर्शन', श्री राजेश जैन लिगा आदि उपस्थित थे। श्री जिन पूजा प्रतिस्पर्धा भाग लेने वाले मण्डल एवं सदस्य 1. श्री आदिनाथ स्नात्र महिला मंडल, लुधियाना __ 'सम्यग् दर्शन पूजा' श्रीमति सुभाष जैन, श्रीमति ऊषा जैन, श्रीमति ज्योति जैन, श्रीमति रेणु जैन, श्रीमति नीना जैन, श्रीमति गुलशन जैन, श्रीमति कविता जैन। 2. श्री आत्म वल्लभ जैन महिला मंडल, जालंधर 'श्री पंच कल्याणक पूजा' श्रीमति सुदेश जैन, श्रीमति प्रवेश जैन, श्रीमति गीता जैन, श्रीमति रीटा जैन, श्रीमति कान्ता जैन, श्रीमति चन्द्र प्रभा जैन, श्रीमति उर्मिल जैन, श्रीमति शशि जैन, श्रीमति मधु जैन। 3. श्री वासुपूज्य जैन स्नात्र मंडल, होशियारपुर 'चारित्र पूजा' श्री चन्द्र मोहन जैन, श्री यशपाल जैन, श्री चितरंजन जैन, श्री संजीव जैन, मुदिता जैन, रचिता जैन, अलका जैन, गीतिका जैन। 4. श्री आत्म वल्लभ जैन श्राविका संघ, पुराना बाजार लुधियाना 'चारित्र पूजा' श्रीमति सोनिया जैन, श्रीमति रूचि जैन, श्रीमति रचना जैन, श्रीमति गीतिका जैन, श्रीमति गुंजन जैन, श्रीमति सोनिया जैन, श्रीमति शिल्पा जैन, श्रीमति सोनिया जैन, श्रीमति रजनी जैन। 5. श्री आत्म वल्लभ जैन महिला मंडल, अम्बाला 'चारित्र पूजा' श्रीमति नीलम रानी, श्रीमति किरण रानी, श्रीमति सुदेश रानी, श्रीमति मधु रानी, श्रीमति मिन्नी रानी, श्रीमति कान्ता रानी, श्रीमति उषा रानी, श्रीमति सुनंदा रानी 6. श्री आत्म वल्लभ जैन श्राविका संघ, अम्बाला चारित्र पूजा श्रीमति माला जैन, श्रीमति सन्तोष जैन ,श्रीमति अलका जैन, श्रीमति रानी जैन, श्रीमति शिमला जैन, श्रीमति इन्दु बाला, श्रीमति शिमला जैन, श्रीमति सुशीला मुन्हानी, श्रीमति सुनीता रानी, श्रीमति अंजु बाला, श्रीमति सुभाष रानी, श्रीमति अरुणा रानी, श्रीमति चान्द रानी, श्रीमति कस्तूर माला, श्रीमति सन्तोष जैन। 130 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'चलो श्री जिन मन्दिर चलें' प्रतियोगिता Imat.निटदिर गुरुंवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. की आयु 84 वर्ष की थी। इन्हीं 84 वर्षों के निमित्त प.पू. गच्छाधिपति जी की सद्प्रेरणा एवं शुभ आशीर्वाद से 84 दिन के लिए वीतराग परमात्मा के मन्दिर में जा कर पूजा सेवा करना था। अवश्यक दिनों के लिए छूट रखी गई थी। इस प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य था कि जैन परिवार परमात्मा की पूजा, सेवा, जागृति की ओर अग्रसर बने और परमात्मा की पूजा क्यों और कैसे करना इस विधि विधान को समझें। श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. ने अपनी एक रचना में वर्णन किया कि "तन, मन, धन, सुख सम्पत्त करनी, प्रभु पूजा है खरी। मिटे जन्म मरण का फेर, प्रभु की पूजा है खरी।" अर्थात् परमात्मा की सेवा पूजा करने से लौकिक और पारलौकिक एवं भौतिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होते हैं और जीव संसार में सभी प्रकार के सुख भोगता हुआ भव भ्रमण का नाश करके मोक्ष पद को प्राप्त कर लेता है। पूजा करने वाला साधक पूज्य के समान ही बन जाता है। इस प्रतियोगिता का दूसरा उद्देश्य था पू.पू. गुरुवर विजय वल्लभ का नाम जब मुख पर आयेगा तो उनके द्वारा किये गये उपकार याद आयेंगे। उनके बताए हुए आदर्श स्मृति में आयेंगे और उन को अपनाने के लिए मार्गदर्शन मिलेगा। इस प्रतियोगिता के द्वारा दोनों ही उद्देश्य सफल हुए मन्दिरों में पूजा सेवा करने वाले भक्तों के आने में बढ़ोत्तरी हुई और नवयुवक वर्ग को गुरुवर विजय वल्लभ के जीवन आदर्शों को जानने की उत्सुकता जागृत गई। ___ इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले महानुभावों के नामों में से लक्की ड्रा द्वारा पुरस्कार प्राप्त करने वाले का नाम निकाला जायेगा और इसका पारितोषिक वितरण समापन समारोह के अवसर पर किया जायेगा। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 131 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड़ी 'चलो श्री जिन मन्दिर चलें प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रतियोगियों के नाम श्रीमति शिमला जैन श्री शिव राम जैन जगाधरी श्रीमति इन्दू जैन श्रीमति सन्तोष जैन सुश्री नेहा जैन श्रीमति किरण जैन श्रीमति मंजू जैन जंडियाला गुरु सुश्री वन्दना जैन गढ़दीवाला सुश्री रीधिका जैन सुश्री नैन्सी जैन श्री पवन कुमार जैन सुश्री नेहा जैन श्री अशोक कुमार जैन श्रीमति अलका जैन श्रीमति रेखा जैन आगरा श्रीमति चंचल जैन श्री सतपाल जैन श्री बलवीर चन्द जैन श्रीमति महिमा वंती जैन श्रीमति निर्मला रानी जैन श्री अरुण कुमार जैन श्री विकास जैन सुश्री प्रगति जैन श्री मोहित जैन श्रीमति अलका जैन श्रीमति जय रानी जैन प्रवीण जैन श्री सुनील जैन श्री सिद्धार्थ जैन | श्री नरेन्द्र कुमार जैन गोट जिला नागौर श्री विनोद कुमार जैन श्री देवराज जैन श्रीमति शुभ जैन श्रीमति पुष्पा देवी जैन श्री मोहित जैन श्री संजीव जैन जम्मू अम्बाला श्रीमति भूषण रानी जैन श्रीमति निर्मला जैन श्रीमति रमेश जैन श्रीमति रीटा जैन श्रीमति दर्शना जैन कपूरथला श्री सुदर्शन जैन होशियारपुर श्रीमति संगीता जैन श्री राजकुमार जैन श्रीमति तरसेम जैन श्री प्रवीण कुमार जैन सामाना श्री अनिल जैन श्रीमति कान्ता रानी जैन श्रीमति प्रेम लता जैन श्री विक्रांत जैन श्री सुव्रत जैन |श्री सुरेन्द्र जैन श्रीमति बिमला रानी जैन श्रीमति संजू जैन श्री प्रमोद जैन श्रीमति मैना सुन्दरी जैन श्री दर्शन लाल जी श्रीमति विपुला जैन श्रीमति अरुणा जैन | श्रीमति कृष्णावन्ती जैन श्री उमेश जैन सुश्री संजना जैन श्री नरेश कुमार जैन | नकोदर श्री राजेश कुमार जैन श्रीमति प्रोमिला जैन श्री मोहित जैन (2) वर्ष का | श्री हरकृष्ण दास जैन श्री राजेश कुमार जैन श्री रमेश जैन जालंधर | श्रीमति पुष्पावंती जैन श्रीमति संजु जैन श्रीमति सुषमा जैन श्री राजेन्द्र जैन | श्री अभय जैन श्री मनिक जैन श्रीमति शाम सुन्दरी जैन श्रीमति प्रोमिला जैन | रायकोट सुश्री रचिता जैन श्री पुनीत जैन सुश्री प्रीति जैन श्रीमति प्रभा जैन सुश्री साक्षी जैन श्रीमति सत्यावंती जैन सुश्री रूचि जैन श्रीमति सीमा जैन श्री अभिषेक जैन श्री चन्द्र शेखर जैन सुश्री सुरभि जैन श्री रविन्द्र कुमार जैन सुश्री सलौनी जैन श्री श्रीपाल जैन सुश्री सुगन्ध जैन श्री संजीव कुमार जैन श्री अमित कुमार जैन श्री दीपक जैन श्री सुशील कुमार जैन श्रीमति प्रोमिला जैन श्रीमति प्रकाशवंती जैन श्रीमति बबीता जैन श्रीमति उर्मिल जैन श्री पवन कुमार जैन श्री राजीव जैन श्री रविन्द्र जैन श्री श्रीपाल जैन जीरा श्रीमति अरुणा जैन मुरादाबाद श्री दीपक जैन श्री प्रवीण जैन श्रीमति संतोष जैन श्रीमति मीना जैन | श्रीमति सुदेश जैन श्रीमति शान्ति देवी श्रीमति सुनीता जैन श्री अभय कुमार जैन श्री दीपक जैन श्रीगंगानगर श्री संदीप जैन श्रीमति राजकुमारी जैन श्रीमति तृप्ता रानी जैन श्री शाम लाल जैन श्री निर्मल जैन | श्रीमति तिलक सुन्दरी जैन श्रीमति सन्तोष तिवाड़ी | श्री सम्पत लाल कोचर श्री आदित्य कुमार जैन विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1500 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमति मंजू जैन श्रीमति अनीता जैन श्रीमति आशा जैन श्री चन्द्रमोहन जैन श्रीमति उषा जैन श्री मोहित जैन श्रीमति अनीता जैन श्री लातेश कुमार जैन श्री तरसेम जैन श्री प्रवीण जैन श्री स्वर्ण कुमार श्रीमति प्रवेश जैन जैन श्री सुव्रत जैन श्री चितरंजन जैन श्री नवल जैन विजय इन्द्र नगर लुधियाना श्रीमति पुष्पावंती जैन श्री संदीप जैन सुश्री रूपाली जैन श्री गौरव जैन श्रीमति किरण जैन श्रीमति कान्ता जैन श्री जनेश जैन श्रीमति कुसुमलता जैन श्री राजेश जैन श्रीमति सुदेश जैन | श्री शीतल कुमार जैन श्री कोमल जैन श्रीमति रेखा जैन श्री शशी जैन श्री अंकुश जैन श्री कोमल जैन श्री दीपक जैन श्रीमति सन्तोष जैन श्री जतिन्द्र जैन श्री सुरेन्द्र कुमार जैन सुश्री हिना जैन लुधियाना शहर श्री देव जैन जैन श्री विनय कुमार श्रीमति चन्द्र लेखा जैन श्री ललित भूषण जैन श्रीमति प्रेम जैन श्रीमति सुनीता जैन श्रीमति कुसुम जैन श्रीमति कमलेश जैन श्रीमति तरसेम जैन श्रीमति सोनिया जैन श्रीमति नरेश जैन श्रीमति सन्तोष जैन श्रीमति साधना जैन श्री पुष्पदंत पाटनी श्री राकेश जैन श्री हरबंस लाल जैन श्री सुधीर जैन श्रीमति पवन जैन श्री धर्मवीर जैन श्रीमति योगेश जैन श्री नरेन्द्र जैन श्रीमति निर्मल जैन सुश्री अमिघा जैन श्री प्रबोध चन्द्र जैन श्री अनन्त जैन श्री सुदर्शन जैन श्री नरेश जैन श्री कीमती लाल जैन श्रीमति कमलेश जैन श्री राजेश जैन वल्लभ नगर लुधियाना श्रीमति प्रेम लता जैन श्रीमति लीलावती श्रीमति पुष्पावती श्री गुलशन कुमार श्रीमति शान्ति देवी श्रीमति गुलशन श्रीमति मीना जैन श्रीमति रेणु जैन श्रीमति कमला जैन रानी श्रीमति सरोज जैन श्रीमति अनु जैन श्रीमति प्रोमिला जैन श्री सुभाष चन्द जैन श्री चन्दू लाल जैन श्रीमति सुनीता रानी श्रीमति निर्मला जैन श्रीमति मुक्ता जैन श्री ललित जैन सुन्दर नगर लुधियाना श्रीमति सुदेश जैन श्रीमति शारदा रानी श्रीमति कमलेश जैन श्रीमति आशु जैन श्रीमति सुदेश जैन श्रीमति कुसुम जैन श्रीमति प्रकाश जैन श्रीमति अमीता जैन श्रीमति निर्मल जैन श्रीमति सुदेश जैन श्रीमति सुनीता जैन श्रीमति कुसुम जैन सिविल लाईन्ज़ लुधियाना श्री विनय जैन श्रीमति सन्तोष रानी जैन किचलू नगर लुधियाना श्री अशोक जैन श्रीमति रक्षिता जैन श्री शिवचन्द जैन रोपड़ श्रीमति ऊषा जैन विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका बीकानेर श्री शैलन्द्र कुमार गोलछा श्री इन्द्र चन्द कोचर श्रीमति बिमला देवी कोचर | श्रीमति शान्ति देवी मूल चन्द श्री अनिता सिरोहिया श्री राज श्री कोचर श्रीमति सरला देवी कोचर श्रीमति श्रेयांस कुमार बेगानी श्रीमति देवेन्द्र कुमार बेगानी श्री राम लाल बेगानी श्री राजेन्द्र कुमार कोचर श्रीमति भँवरी देवी कोचर श्रीमति इन्द्रा देवी |श्रीमति सिरिया देवी श्रीमति भँवरी देवी श्रीमति केशर देवी कोचर श्रीमति मघा देवी कोचर श्री बबीता जैन श्रीमति इचीरज देवी श्रीमति शान्ति देवी डागा श्रीमति संतोष बाली श्री कपूर चन्द कोचर श्रीमति शान्ति देवी कोचर श्री जिनदास कोचर सुश्री राशि बेगानी श्रीमति निर्मला देवी बेगानी श्री देवेन्द्र कुमार कोचर श्री महिन्द्र कुमार कोचर श्रीमति निर्मला देवी कोचर श्रीमति कमला बाली श्री कुन्दन लाल जी बोथरा श्री प्रेम चन्द कोचर श्री ईचरा देवी बाजेड़ श्रीमति पुष्पा देवी जय श्री बेगानी Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लुधियाना से :- भाषण प्रतियोगिता के फाइनल में प्रवेश प्राप्त प्रतियोगी 134 पहला स्थान 10 पहला स्थान O वा गावी जैन वीनू जैन लुधियाना व अम्बाला में भाषण प्रतियोगिता का प्रथम चरण पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव वर्ष में वर्तमान पट्टथर आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की सद्प्रेरणा से 'विविध मंगलमय कार्यक्रम के अन्तर्गत भाषण प्रतियोगिता के प्रथम चरण श्री आदिनाथ जैन मंदिर, सिविल लाइन्स के जैन उपाश्रय लुधियाना में दिनांक 22 अगस्त रविवार को आयोजन किया गया। ऐसा ही एक आयोजन अम्बाला शहर में प. पू. गच्छाधिपति जी की शुभ निश्रा में इसी दिन इसी समय सम्पन्न हुआ। लुधियाना में 29 प्रतियोगी, अम्बाला में 24 प्रतियोगियों ने भाग लिया। वर्तमान पट्टधर आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी सुव्रता श्री जी म. आदि ठाणा-3 की शुभ निश्रा में यह भव्य आयोजन प्रातः 10 बजे लुधियाना में प्रारम्भ हुआ। गुरु वल्लभ के जीवन पर आधारित इस भाषण प्रतियोगिता में पंजाब के अनेक नगरों लुधियाना, होशियारपुर, जालंधर, जडिवाला, पट्टी, रायकोट आदि नगरों से कुल 29 प्रतियोगियों ने अत्यंत उत्साह से भाग लिया। आयु दोनों आयु वर्गों में, प्रथम वर्ग 12 वर्ष से 20 वर्ष तक तथा द्वितीय वर्ग 20 वर्ष से ऊपर की के वर्ग में प्रतियोगिओं ने अपने जोशोखरोश से परिपूर्ण वक्तव्यों से गुरु वल्लभ के गुणों को महिमामंडित किया । 1 पूज्य साध्वी सुव्रता श्री जी ने अपना आशीर्वचन देते हुए कहा कि ऐसी प्रतियोगिताओं से न केवल गुरुदेव के गुणों का गुणगान होगा तथा समाज को उनके व्यक्तित्व के रहस्यों की जानकारी होगी बल्कि समाज को अनेक उभरते हुए वक्ता भी प्राप्त होंगे। पूज्य साध्वी सुव्रता श्री जी अस्वस्थ होते हुए भी मंत्रमुग्ध होकर वक्ताओं के वक्तव्यों का श्रवण करती रहीं । मंच संचालन महासमिति के श्री सुरेश जैन पाटनी ने किया, पूरे कार्यक्रम की व्यवस्था महासमिति की ओर से श्री राजेश जैन लिगा ने करवाई। इस भाषण प्रतियोगिता के निर्णायक मण्डल में तीन महानुभाव थे (1) तत्त्ववेत्ता वयोवृद्ध श्री बलदेव राज जैन (2) प्रो. मुलखराज जैन (3) श्री पुष्पदंत जैन पाटनी संपादक 'सत्यदर्शन' समाज के अग्रगण्य नेतागण तथा सकल श्रीसंघ ने इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर प्रतियोगियों का हौंसला बढ़ाया। अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति द्वारा आयोजित इस भाषण प्रतियोगिता के समारोह में महासमिति के अध्यक्ष लाला कश्मीरी लाल जैन, महामंत्री श्री राजेन्द्र पाल जैन, श्री देवेन्द्र कुमार जैन 'कसूरवाले' भी उपस्थित थे। महासमिति के कार्यकारी अध्यक्ष श्री सिकन्दर लाल जैन अस्वस्थ होते हुए भी कुछ समय के लिए समारोह में उपस्थित हुए। कड़ी प्रतिस्पर्धा के पश्चात् भाषण प्रतियोगिता के प्रथम चरण का परिणाम इस प्रकार रहा : प्रथम वर्ग ( 12 वर्ष से 20 वर्ष) प्रथम सुश्री मनी जैन सुपुत्री श्री संजय जैन जालंधर, द्वितीय : सुश्री मानसी गाबा सुपुत्री श्री राकेश गाबा लुधियाना, तृतीय : सुश्री आरुषी जैन सुपुत्री श्री संदीप जैन होशियारपुर द्वितीय वर्ग (20 वर्ष से ऊपर) प्रथम : श्रीमति वीनू जैन धर्मपत्नी श्री नीरज जैन लुधियाना, द्वितीय : सुश्री शीतल शर्मा सुपुत्री श्री केवल कृष्ण शर्मा लुधियाना, तृतीय श्री संजीव जैन सुपुत्र स्व. श्री वस्तु पाल जैन लुधियाना : विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका ये प्रतियोगी अब अम्बाला में वर्तमान पट्टधर आचार्य श्री की निश्रा में समापन समारोह के अवसर पर भाषण प्रतियोगिता के फाइनल राउंड में भाग लेंगे। भव्य समारोह के पश्चात् महासमिति द्वारा सकल श्रीसंघ के लिए प्रीतिभोज का प्रबन्ध किया गया। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी तरह की प्रतियोगिता इसी दिन इसी समय अम्बाला शहर में परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की निश्रा में सम्पन्न हुई। 24 प्रतियोगियों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया। कड़ी प्रतिस्पर्धा के पश्चात् भाषण प्रतियोगिता के विजेता इस प्रकार प्रथम श्रेणी (12 वर्ष से 20 वर्ष) द्वितीय श्रेणी (20 वर्ष से ऊपर) प्रथम : सुश्री सुचिता जैन सुपुत्री श्री सुनील कुमार बरड़ अम्बाला प्रथम : सुश्री निशा जैन सुपुत्री श्री अरविन्द कुमार अम्बालवी द्वितीय : श्री अक्षत जैन सुपुत्र श्री सुधीर जैन बरड़ अम्बाला द्वितीय : श्रीमति अर्चना जैन धर्मपत्नी श्री सुनील कुमार जैन अम्बाला तृतीय : सुश्री सोफिया जैन सुपुत्री श्री संजीव जैन अम्बाला तृतीय : प्रो. राजेन्द्र कुमार जैन, नकोदर इस प्रतियोगिता के निर्णायक मण्डल में निम्नलिखित महानुभाव थे : 1. प्रो. सुषमा जैन W/o. श्री सुभाष जैन C.A अम्बाला 2. प्रो मोहिन्द्र कुमार जैन S/o. श्री ऋषभदास मुन्हानी अम्बाला भाषण प्रतियोगिता में भाग लेने वाले महानुभाव 12 वर्ष से 20 वर्ष ऊपर आयु वर्ग ...................00000000000000 अम्बाला से :- भाषण प्रतियोगिता के फाइनल में प्रवेश प्राप्त प्रतियोगी नाम सुश्री सुचिता जैन श्री अक्षत जैन सुश्री सोफीया जैन कु. मांशुल जैन कु. अंजली जैन कु. शिल्पी गुप्ता कु. गीतांजलि श्री अभिषेक कुमार श्री आशीष कौशिक श्री आदित्य नारायण वर्मा श्री इन्द्रपाल सिंह सुश्री निधि अग्रवाल सुश्री साक्षी जैन सुश्री शेफाली भसीन सुश्री निति कु. रेखा जैन कु. नीतिका जैन कु. नंदिता जैन कु. मानसी गाबा श्री आशीष जैन कु. आस्था कु. आरूषी जैन कु. लविना जैन श्री आदित्य जैन कु. मणि जैन कु. पायल शर्मा श्री कुणाल वर्मा श्री राहुल जैन श्री अभिनंदन जैन पिता/पति का नाम सुपुत्री श्री सुनील कुमार बरड़ सुपुत्र श्री सुधीर जैन बरड़ सुपुत्री श्री संजीव जैन सुपुत्री श्री मनोज कुमार सुपुत्री श्री वीर भूषण जैन सुपुत्री श्री शिव कुमार गुप्ता सुपुत्री श्री कुलदीप कुमार भसीन C/o. एस.ए.एन. जैन सीनियर सकैण्डरी स्कूल सुपुत्र श्री मदन लाल शर्मा सुपुत्र श्री सत्य नारायण वर्मा सुपुत्र श्री गुरदीप सिंह C/o. श्री आत्मानंद जैन गर्ल्स सीनियर सकैण्डरी स्कूल C/o. श्री आत्मानंद जैन गर्ल्स सीनियर सकैण्डरी स्कूल C/o, श्री आत्मानंद जैन गर्ल्स सीनियर सकैण्डरी स्कूल C/o, श्री आत्मानंद जैन गर्ल्स सीनियर सकैण्डरी स्कूल सुपुत्री श्री हरीश जैन सुपुत्री श्री अनिल जैन सुपुत्री श्री नवीन जैन सुपुत्री श्री राकेश गाबा सुपुत्र श्री महेन्द्र पाल जैन सुपुत्री आशु जैन सुपुत्री संदीप जैन सुपुत्री श्री राजेश जैन सुपुत्र श्री नवनीत जैन सुपुत्री श्री संजय जैन सुपुत्री श्री अश्वनी शर्मा सुपुत्र श्री राकेश कुमार वर्मा सुपुत्र श्री प्रदीप कुमार जैन सुपुत्र श्री अशोक जैन शहर अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला लुधियाना होशियारपुर होशियारपुर लुधियाना लुधियाना लुधियाना होशियारपुर लुधियाना होशियारपुर जालंधर लुधियाना लुधियाना होशियारपुर होशियारपुर विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 135 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम श्री संजीव जैन श्रीमति मीनाक्षी जैन श्री कपूर चन्द जैन श्रीमति संगीता जैन श्रीमति रजनीश जैन श्रीमति वीनू जैन सुश्री शशि जैन कुमारी शीतल शर्मा श्रीमति सोनिया जैन कुमारी दीपिका श्रीमति शैली जैन कुमारी रंजू जैन भाषण प्रतियोगिता में भाग लेने वाले महानुभाव 20 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग पिता/पति का नाम शहर कु. शिखा जैन सुपुत्री श्री सुरेश जैन सुपुत्र श्री वस्तुपाल जैन लुधियाना श्रीमति पूनम जैन धर्मपत्नी श्री हरीश जैन धर्मपत्नी श्री अरविन्द जैन होशियारपुर श्रीमति शशि जैन धर्मपत्नी श्री सुधीर जैन सुपुत्र श्री चुन्नी लाल जैन रायकोट सुश्री निशा जैन सुपुत्री श्री अरविन्द कुमार जैन धर्मपत्नी श्री प्रदीप कुमार होशियारपुर श्रीमति अर्चना जैन धर्मपत्नी सुनील कुमार जैन । धर्मपत्नी श्री राजेश जैन लुधियाना प्रो. राजेन्द्र कुमार जैन सुपुत्र श्री दर्शन लाल जैन धर्मपत्नी श्री नीरज जैन लुधियाना श्री सुरेन्द्र कुमार जैन सुपुत्र श्री राज कुमार जैन सुपुत्री श्रीयुत् श्रीपाल जैन लुधियाना श्रीमति भारती जैन धर्मपत्नी श्री नवीन जैन सुपुत्री श्री केवल कृष्ण शर्मा लुधियाना श्री अरविन्द कुमार जैन सुपुत्र श्री विजय कुमार जैन । धर्मपत्नी श्री नीरज जैन लुधियाना श्री कस्तूरी लाल जैन सुपुत्री श्री सुरेन्द्र कुमार लुधियाना श्री सुभाष कुमार जैन सुपुत्र श्री राज कुमार जैन बरड़, धर्मपत्नी श्री शशि कांत जैन लुधियाना श्री पुरुषोत्तम शर्मा श्री आत्मानन्द जैन सी. स. स्कूल सुपुत्री श्रीमति कीमती लाल जैन लुधियाना लुधियाना लुधियाना लुधियाना अम्बाला अम्बाला नकोदर अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला | 136 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निबन्ध प्रतियोगिता गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष में गच्छाधिपति जी की सद्प्रेरणा एवं शुभ आशीर्वाद से विविध मंगलमय कार्यक्रमों के अन्तर्गत एक कार्यक्रम निबन्ध प्रतियोगिता का था। इसके अन्तर्गत प्रतियोगियों ने गुरु विजय वल्लभ “एक आदर्श जीवन" के ऊपर लेख/निबन्ध लिखना था, जिसमें लिखते समय किसी प्रकार की पुस्तक की सहायता नहीं लेनी थी, स्वयं अपने विचारों से ही निबन्ध लिखना था। __प्रतियोगियों की सुविधा के लिए लेख/निबन्ध लिखने के तीन केन्द्र बनाये गये। दिनांक 29.8.2004 को प्रतियोगिता का दिन निश्चित किया गया। जिसमें अम्बाला से 46, लुधियाना से 32 तथा होशियारपुर से 19 प्रतियोगियों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया। इस प्रकार कुल 97 प्रतियोगियों ने भाग लिया। इन सभी निबन्धों की परीक्षा उत्तर पुस्तकाएं एकत्र कर प.पू. गच्छाधिपति जी की आज्ञा से श्री बलदेव राज जी भूतपूर्व सम्पादक को परीक्षण के लिए दे दी गई। श्री बलदेव राज जी ने परीक्षण करके अपने परिणाम की इस प्रकार घोषणा की प्रथम स्थान : श्रीमति किरण जैन धर्मपत्नी श्री कमल प्रकाश जैन, अम्बाला शहर द्वितीय स्थान : श्रीमति सोनिया जैन धर्मपत्नी श्री नीरज जैन, लुधियाना तृतीय स्थान : (1) सुश्री सोफिया जैन सुपुत्री श्री संजीव जैन, अम्बाला शहर : (2) श्रीमति वीनू जैन धर्मपत्नी श्री सुनील जैन, अम्बाला शहर प्रथम द्वितीय तृतीय तृतीय विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 137 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन नाम श्री अनिल कुमार जैन श्रीमति मिन्नी जैन श्रीमति ऋतु जैन कु. श्रुति जैन श्रीमति रीमा जैन श्रीमति ऋतु जैन श्रीमति मनीषा जैन श्रीमति शैली जैन श्रीमति नीतू जैन श्रीमति सीमा जैन श्रीमति कुसुम जैन कु. रूचि जैन श्रीमति आरती जैन कु. रजिता जैन कु. वन्दना जैन श्रीमति सोनल जैन कु.रंजु जैन श्रीमति सोनिया जैन कु. शिखा जैन श्री विनय जैन कु. नेहा जैन कु. गीतांजलि आहूजा कु. लवीना जैन श्रीमति रूचि जैन श्रीमति पूनम जैन कु. श्रुति जैन श्रीमति ऋतु जैन श्रीमति मीना जैन श्रीमति रजनीश जैन सुश्री शशि जैन कु. रेखा जैन श्रीमति नीलम जैन कु. निशा जैन कु. सोफिया जैन श्रीमति शिमला जैन श्रीमति वीनू जैन श्रीमति सिल्की जैन श्रीमति सुषमा जैन कु. रजनी जैन श्रीमति भारती जैन कु. कनिका जैन श्रीमति पूनम जैन कु. पारूल सिंघला कु. वंदना जैन कु. मोहिनी श्री आशीष कौशिक श्रीमति अर्चना जैन श्रीमति सन्ध्या जैन निबन्ध प्रतियोगिता में भाग लेने वाले 97 प्रतियोगियों के नाम इस प्रकार है :पिता/पति का नाम शहर श्रीमति किरण जैन धर्मपत्नी श्री कमल प्रकाश जैन सुपुत्र श्री शान्ति लाल जैन लुधियाना श्रीमति मधु जैन धर्मपत्नी श्री जवाहर लाल जैन धर्मपत्नी श्री सुधीर जैन लुधियाना श्री आदित्य नारायण वर्मा सुपुत्र श्री सत्य नारायण वर्मा धर्मपत्नी श्री मनोज जैन लुधियाना कु. नेहा मेहता सुपुत्री श्री रमेश कुमार मेहता सुपुत्री श्री नरिन्द्र पाल जैन लुधियाना कु. प्रियंका कंसल सुपुत्री श्री जगदीश चन्द्र कंसल धर्मपत्नी श्री विकास जैन लुधियाना कु. नीरू सुपुत्री श्री अनिल कुमार धर्मपत्नी श्री अतुल जैन जलन्धर कु. रंजना धीमान सुपूत्री श्री आदर्श पाल धीमान धर्मपत्नी श्री आशु जैन लुधियाना कु. नेहा सुपुत्री श्री ऋषि कुमार धर्मपत्नी श्री शशिकान्त जैन लूधियाना कु. ज्योति सुपुत्री श्री पुरुषोत्तम लाल धर्मपत्नी श्री संदीप जैन लुधियाना कु. पूजा सुपुत्री श्री राम केवल मिश्रा धर्मपत्नी श्री अनिल कुमार जैन लुधियाना कु.रीतिका सुपुत्री श्री रमेश कुमार धर्मपत्नी श्री भूपेश कुमार जैन लुधियाना कु. नीति सुपुत्री श्री सुभाष चन्द्र सुपुत्री श्री राजिन्द्र कुमार जैन जालन्धर कु. तमन्ना सुपूत्री श्री राम कुमार धर्मपत्नी श्री संजय कुमार जैन जालन्धर कु. शरणजीत कौर ओबराय सुपुत्री श्री तरलोचन सिंह ओबराय सुपुत्री श्री पवन कुमार जैन लुधियाना कु.खुशबू खन्ना सुपुत्री श्री एस.एस. खन्ना सुपुत्री श्री अश्वनी कुमार जैन जालन्धर श्री वैभव बंसल सुपुत्री श्री राकेश बंसल धर्मपत्नी श्री राजेश जैन लुधियाना कु. अनुराधा वर्मा सुपुत्री श्री सत्य नारायण वर्मा सुपुत्री श्री कीमती लाल जैन लुधियाना कु. अंजली गुप्ता सुपत्री श्री विजय कुमार गुप्ता धर्मपत्नी श्री नीरज जैन लूधियाना कु. सुमंगली वर्मा सुपुत्री श्री अविनाश चन्द्र वर्मा सुपुत्री श्री सुरेश जैन लुधियाना कु. वर्तिका गोयल सुपुत्री श्री सुरेश कुमार गोयल सुपुत्र श्री विनोद जैन लुधियाना कु. मयंका सिंगल सुपुत्री श्री मोहन लाल सिंगल सुपुत्री श्री अश्वनी जैन जालन्धर श्री हितेष शर्मा सुपुत्र श्री नरेन्द्र कुमार शर्मा सुपुत्री श्री हरीश चन्द्र अहूजा लुधियाना श्री हिमांशु सुपुत्र श्री पुरुषोत्तम शास्त्री सुपुत्री श्री राजेश कुमार जैन लुधियाना श्री अभिषेक अग्रवाल सुपुत्र श्री वीर कुमार अग्रवाल धर्मपत्नी श्री जिनेश्वर पाल जैन होशियारपुर श्री रजत सैनी सुपुत्र श्री हरभजन सिंह धर्मपत्नी श्री हरीश जैन लुधियाना श्री दलजीत सिंह सुपुत्र श्री लाल सिंह सुपुत्री श्री राजेन्द्र कुमार जैन लुधियाना श्री सौरभ स्वराज सुपुत्र श्री अशोक कुमार धर्मपत्नी श्री नीरज जैन लुधियाना सुपुत्री श्री यशपाल मसीन धर्मपत्नी श्री मुकेश कुमार जैन लुधियाना श्री विष्णु गर्ग सुपुत्र श्री महेश गर्ग धर्मपत्नी श्री राजेश जैन लुधियाना श्री सौरभ सैनी सुपुत्र श्री सुदेश पाल सैनी श्रीपाल जैन लुधियाना श्रीमति मधु जैन धर्मपत्नी श्री सुभाष चन्द्र जैन सुपुत्री श्री हरीश जैन लुधियाना श्रीमति रजनी जैन धर्मपत्नी श्री अशोक जैन धर्मपत्नी श्री के.के. जैन लुधियाना श्रीमति अलका जैन धर्मपत्नी श्री राजीव जैन सुपुत्री श्री अरविन्द कुमार जैन अम्बाला श्रीमति संगीता जैन धर्मपत्नी श्री प्रदीप जैन सुपुत्री श्री संजीव कुमार जैन अम्बाला कु. सलोनी जैन सुपुत्री श्री यशपाल जैन धर्मपत्नी श्री कुलदीप जैन अम्बाला कु. वनिता जैन सुपुत्री श्री राकेश कुमार जैन धर्मपत्नी श्री सुनील जैन अम्बाला कु. दीपिका जैन सुपुत्री श्री अरुण कुमार जैन धर्मपत्नी श्री अमित कुमार जैन अम्बाला कु. नीरू जैन सुपुत्री श्री लब्धि सागर जैन धर्मपत्नी श्री सुभाष जैन अम्बाला कु. विशाखा जैन सुपुत्री श्री राकेश कुमार जैन सुपुत्री श्री राम नाथ मकल अम्बाला कु. नेहा जैन सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार जैन धर्मपत्नी श्री नवीन जैन अम्बाला श्रीमति वंदना जैन धर्मपत्नी श्री नीरज जैन सुपुत्री श्री अशोक कुमार जैन अम्बाला श्रीमति नरिता जैन धर्मपत्नी श्री गोविन्द गोपाल जैन धर्मपत्नी श्री सुधीर जैन अम्बाला श्रीमति संजु जैन धर्मपत्नी श्री राजेश जैन सुपुत्री श्री राम मूर्ति सिंघला अम्बाला श्रीमति ज्योति जैन धर्मपत्नी श्री नवल जैन सुपुत्री श्री अनिल जैन अम्बाला श्रीमति मीनू जैन धर्मपत्नी श्री अश्वनी जैन सुपुत्री श्री देवी प्रसाद अम्बाला श्रीमति मंजू जैन धर्मपत्नी स्व. श्री सुरेश कुमार जैन सुपुत्र श्री मदन लाल शर्मा अम्बाला श्रीमति किरण जैन धर्मपत्नी श्री प्रदीप कुमार जैन धर्मपत्नी श्री सुनील जैन अम्बाला श्री नवल जैन सुपुत्र श्री कवल किशोर जैन धर्मपत्नी श्री मुकेश कुमार जैन अम्बाला श्रीमति मीनाक्षी जैन धर्मपत्नी श्री अरविंद जैन अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर होशियारपुर 138 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1501 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लुधियाना से :- संगीत प्रतियोगिता के फाइनल में प्रवेश प्राप्त प्रतियोगी। ............................... संगीत प्रतियोगिता प.पू. गच्छाधिपति जी की सद्प्रेरणा से विविध मंगलमय कार्यक्रमों के अन्तर्गत एक कार्यक्रम संगीत प्रतियोगिता का था। गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने अपने जीवनकाल में लगभग 2200 स्तवन, सज्झाए, थुई, पूजाओं की गाथाएं आदि की रचना की। गुरुवर विजय वल्लभ जिस भी नगर, ग्राम में जिन मन्दिर में जाते और वहां पर परमात्मा की स्तुति करते वह स्तवन बन जाता। यह सभी स्तवन व सज्झाए दिल की गहराईओं को छू लेने वाले है। इनका संग्रह करके श्री हीरा लाल शास्त्री दुग्गड़ जी ने 'वल्लभ काव्य सुधा' नामक पुस्तक में प्रकाशित किया है। प.पू. गच्छाधिपति जी की भावना थी कि इन स्तवन सज्झाओं की गूंज फिर से हर घर परिवार में सुनाई दें, बच्चे-बच्चे की जुबान पर इन स्तवनों के माध्यम से प्रभु के नाम का गुणगान किया जावे, इसीलिए गच्छाधिपति जी ने जैन समाज को प्रेरणा देकर संगीत प्रतियोगिता का आयोजन करवाया। संगीत प्रतियोगिता की मुख्य विशेषता यही थी कि बोलने वाले ने वल्लभ काव्य सुधा से ही स्तवन या सज्झाए बोलनी है। इस प्रतियोगिता का आयोजन दिनांक 5.9.2004 दिन रविवार को रखा गया, एक ही समय पर यह प्रतियोगिता दो स्थानों अम्बाला व लुधियाना में होनी निर्धारित हुई और दो वर्गों में बाल वर्ग एवं युवा वर्ग के प्रतियोगियों ने भाग लिया। इसी प्रकार लुधियाना में बाल-वर्ग, युवा-वर्ग प्रतियोगियों ने भाग लिया। पहले चरण में तीन-तीन प्रतियोगियों का चुनाव किया गया और अन्तिम चरण में जोकि समापन समारोह पर होगा प्रथम द्वितीय तृतीय का चुनाव कर उन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा। इस प्रतियोगिता से यहां समाज को गुरुवर विजय वल्लभ जी की रचनाओं की जानकारी मिली वहीं पर समाज को उभरते हुए मधुर कंठ और रागी कलाकारों की भी जानकारी मिली। इस प्रतियोगिता से ही जानकारी प्राप्त हुई कि हमारे समाज में कई ऐसे कलाकार है जिन्हें उचित मंच न मिलने के कारण उनकी कला समाज के सामने नहीं आती। बड़े ही हर्ष और उत्साह के साथ इस प्रतियोगिता का शुभारम्भ हुआ। लुधियाना में निर्णायक मंडल में श्री बलदेव राज जी, श्री सुरेश जैन पाटनी एवं श्रीमति कमलेश जैन लिगा थे। अम्बाला के निर्णायक मंडल में प.पू. गच्छाधिपति जी की निश्रा में श्री भीमसेन जी थे। लुधियाना में यह आयोजन महत्तरा साध्वी श्री मृगावती जी महाराज की सुशिष्या साध्वी सुव्रता श्री जी महाराज आदि ठाणा-3 की निश्रा में हुआ। लुधियाना से संगीत प्रतियोगिता के फाईनल में भाग लेने वाले प्रतियोगियों के नाम :18 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग 18 वर्ष से कम आयु वर्ग प्रथम : कुमारी शिखा जैन सुपुत्री श्री सुरेश जैन प्रथम : श्री पुलकित जैन सुपुत्र श्री भूषण कुमार जैन द्वितीय : (1) श्री सौरभ जैन सुपुत्र श्री सुरेश जैन द्वितीय : श्री अभिनव जैन सुपुत्र श्री सुरेश जैन (2) श्रीमति बिन्दू जैन धर्मपत्नी श्री संजीव जैन तृतीय : श्रीमति सोनिया जैन धर्मपली श्री नीरज जैन अम्बाला से संगीत प्रतियोगिता के फाईनल में भाग लेने वाले प्रतियोगियों के नाम :18 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग 18 वर्ष से कम आयु वर्ग प्रथम : श्री मनदीप जैन सुपुत्र श्री निर्मल कुमार जैन प्रथम : कुमारी सायना जैन सुपुत्री श्री हर्षपाल जैन द्वितीय : श्रीमति माला जैन धर्मपत्नी श्री निर्मल कुमार जैन द्वितीय : श्री सिद्धार्थ जैन पौत्र श्री निर्मल कुमार जैन तृतीय : श्रीमति अलका जैन धर्मपत्नी श्री राजीव जैन तृतीय : कुमारी कुनिका जैन सुपुत्री श्री योगेश जैन 4500 139 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संगीत प्रतियोगिता में भाग लेने वाले महानुभाव 18 वर्ष से कम आयु वर्ग नाम कु. सायना जैन श्री सिदार्थ जैन कु. कुनिका जैन कु. सायना जैन श्री नमन कुमार जैन कु. समीक्षा जैन कु. वर्णिका जैन श्री अभिनव जैन श्री पुलकित जैन नाम श्री सौरभ जैन श्रीमति मोनिका जैन श्रीमति रूचि जैन श्रीमति रीटा जैन श्रीमति पुष्पावती जैन श्रीमति बिंदु जैन श्रीमति तृप्ता जैन श्रीमति सोनिया जैन श्रीमति गीता जैन श्रीमति मीनाक्षी जैन श्रीमति पद्मा जैन श्रीमति सोनिया जैन श्री संजीव जैन कु. गीतिका जैन कु. वन्दना जैन श्रीमति सुदेश जैन श्रीमति कान्ता जैन श्रीमति कुसुम जैन श्रीमति सोनल जैन कु. शिखा जैन 140 पिता/पति का नाम सुपुत्री श्री हर्षपाल जैन पोता श्री निर्मल कुमार बरड़ सुपुत्री श्री योगेश जैन सुपुत्री श्री उज्जवल कुमार जैन सुपुत्र श्री नरेन्द्र कुमार जैन पोती श्री निर्मल कुमार बरड़ पोती श्री निर्मल कुमार बर सुपुत्र श्री सुरेश जैन सुपुत्र श्री भूषण कुमार जैन पिता/पति का नाम सुपुत्र श्री सुरेश जैन धर्मपत्नी श्री संजीव जैन धर्मपत्नी श्री संजीव कुमार जैन धर्मपत्नी श्री अश्विनी जैन संगीत प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रतियोगी 18 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग धर्मपत्नी स्व. श्री नगीन चन्द जैन धर्मपत्नी श्री संजीव जैन शहर अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला लुधियाना लुधियाना जैन शहर लुधियाना लुधियाना लुधियाना जालंधर लुधियाना लुधियाना धर्मपत्नी श्री विजय अशोक जैन लुधियाना धर्मपत्नी श्री नीरज जैन धर्मपत्नी श्री रमेश जैन धर्मपत्नी श्री नरेन्द्र कुमार जैन धर्मपत्नी श्री गिरधारी लाल जैन धर्मपत्नी श्री संजीव जैन सुपुत्र स्व. श्री वस्तु पाल जैन सुपुत्री श्री अशोक जैन सुपुत्री श्री अश्विनी जैन धर्मपत्नी स्व. श्री रमेश कुमार जैन जालंधर धर्मपत्नी श्री श्रीपाल जैन जालंधर धर्मपत्नी श्री भूपेश कुमार धर्मपत्नी श्री राजेश जैन सुपुत्री श्री सुरेश जैन लुधियाना जालंधर लुधियाना जालंधर लुधियाना लुधियाना लुधियाना जालंधर : अम्बाला से संगीत प्रतियोगिता के फाइनल में प्रवेश प्राप्त प्रतियोगी लुधियाना लुधियाना लुधियाना श्री मनदीप जैन श्रीमति माला जैन श्रीमति अल्का जैन श्रीमति सुभाष रानी जैन श्रीमति विमला जैन श्रीमति संध्या जैन कु. सुचेता जैन श्रीमति उषा जैन श्रीमति मिन्नी जैन श्री निर्मल कुमार मुन्हानी श्री सुभाष चन्द कु. निशा जैन श्री नवीन जैन श्रीमति नीलम जैन श्रीमति कान्ता जैन श्रीमति अंजु जैन श्री उज्जवल कुमार श्रीमति सुमन जैन श्रीमति ललिता जैन कु. मुदिता जैन कु. गीतिका जैन विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका सुपुत्र श्री निर्मल कुमार जैन धर्मपत्नी श्री निर्मल कुमार जैन धर्मपत्नी श्री राजीव जैन धर्मपत्नी श्री सुरेन्द्र कुमार जैन धर्मपत्नी श्री विजय कुमार जैन धर्मपत्नी श्री मुकेश जैन सुपुत्री श्री अनिल कुमार जैन धर्मपत्नी श्री सतीश जैन धर्मपत्नी श्री संजीव जैन सुपुत्र श्री देवराज जैन सुपुत्र श्री राजकुमार बरड़ सुपुत्री श्री अरविन्द कुमार जैन सुपुत्र श्री सुरेन्द्र कुमार जैन धर्मपत्नी श्री अशोक कुमार जैन धर्मपत्नी श्री सतपाल जैन धर्मपत्नी श्री तिलक जैन सुपुत्र श्री विजय कुमार जैन धर्मपत्नी श्री विपिन जैन धर्मपत्नी श्री हरीश कुमार जैन सुपुत्री श्री सुशील जैन सुपुत्री श्री सतीश कुमार जैन अम्बाला अम्बाला होशियारपुर अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला कैंट अम्बाला अम्बाला अम्बाला अम्बाला होशियारपुर होशियारपुर 50 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज द्वारा लिखित रचनाओं (स्तवन एंव सज्झाएँ) का संग्रह | वल्लभकाव्यसुधा के द्वितीय संस्करण का विजय वल्लभ अर्द्धशताब्दी स्वर्गारोहण वर्ष में मुद्रित वल्लभ काव्य सुधा रचयिता पंजाब केसरी अनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सुरीश्वर जी महाराज श्री आत्म वल्लभ जैन श्राविका संघ वल्लभ नगर, शिवपुरी रोड, लुधियाना के आर्थिक सहयोग से प्रकाशन किया गया। यह श्राविका संघ पिछले 32 वर्षो से धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजनों में बढ़-चढ़ कर सक्रिय रुप से भाग ले रहा है, श्री आत्मवल्लभ-समुद्र-इन्द्र पाट परम्परा के वर्तमान पट्टधर कोंकण देश दीपक गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की सद्प्रेरणा से पंजाब केसरी जैनाचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष में इस पुस्तक का प्रकाशन करवा कर गुरु चरणों में पुष्पांजलि अर्पित की है। प्रकाशक : विजय वल्लभ अर्द्धशताब्दी स्वर्गारोहण महासमिति मुख्य कार्यालय : लुधियाना विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 141 PreparatoParsonaloseronly Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परम श्रद्धेय, परम वन्दनीय, परम आदरणीय, साधर्मी वत्सलता के परम मसीहा, पंजाब केसरी, अज्ञान तिमिर तरणी, कलिकाल कल्पतरु, ज्योतिर्धर, युगद्रष्टा, युगवीर, दीर्घद्रष्टा ऐसे हमारे चारित्र नायक को कालधर्म प्राप्त हुए आज 50 वर्ष होने जा रहे हैं। फिर भी वल्लभ गुरु की विद्यमानता ही भासित हो रही है। भक्तजन को मौका मिलना चाहिए ऊर्ध्व मुख करके विरल विभूति को, भले वक्ता, गीतकार हो, वल्लभ गुरुवर को न भी देखा हो लेकिन उनके सैंकड़ों जनहित उद्धारक संस्थानों में वल्लभ इसी के अन्तर्गत गुरुवर के द्वारा रचित स्तवन गुरुवर की विधमानता तादस्यता दिखाई दे रही है। उनसे और सज्झाय जो कि परमात्मा की भक्ति में बाल भावों को भी उच्च बना देती है। गीतकार, संगीतकार ओत-प्रोत करने वाले है, बहुत सी सुन्दर, बेजोड़, को कल्पना के पंख अंकुरित हो ही जाते हैं। अपनी कवित्व जैन तत्व से भरे हुए हैं, इनकी स्वर लहरियां शक्ति से हृदय जोड़कर सुन्दर स्वर लहरियां बनने लग . घर-घर में गूंजें। परमात्मा की भक्ति के रूप में जाती हैं। गीतकार आकण्ठ होकर, भाव विभोर होकर गुरु आबालवृद्ध के मुख-कंठ पर आएं इसी भावना को गुण अंकित कर लेता है। बाद में जनसमुदाय में अपनी /अनमोल स्वर लहरियों को मधुर कण्ठ से आलोकित करते सामने रखते हुए 'वल्लभ काव्य सुधा' पुस्तक को हुए उसी वक्त गुरु गुण जन-जन के हृदय में जगा देता है। पुनप्रकाशित करने की समाज को प्रेरणा दी है प्रत्येक व्यक्ति झूमने लग जाता है। उसी वक्त वक्ता और जिसे अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण श्रोता को यही भासित होता है कि अब वल्लभ गुरु के अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति ने सहर्ष चरणों में ही हमारी गुजारिश हो रही है। गुरु वल्लभ स्मित स्वीकार किया है। स्मित मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दे रहे हैं। इस अनुमान से मेरी भावना है कि यह अमूल्य धरोहर अनुभव करते हुए अत्यन्त आनन्द विभोर हो कर भक्त का, प्रत्येक जैन परिवार में होनी चाहिए जिससे हृदय कमल खिल उठता है। बस उसी के सहारे श्रद्धा दीपक वर्तमान और भावी पीढ़ी पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित प्रज्ज्वल्लित करके अपनी जीवन नैया चलाता रहता है। परमात्मा के स्तवनों और सज्झायों को गाते हुए जब भी वल्लभ गुरुवर के कार्यों को देखता, सुनता है, परमात्म भक्ति का लाभ प्राप्त करें इससे पूज्य अपना तन मन एवं धन न्यौछावर करने में अपने को परम सौभाग्यशाली मानता है। गुरुदेव का दिव्याशीष भी हमें प्राप्त होगा और स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष में गुरुदेव के चरणों हमारे पुण्योदय से गुरुवर का स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष एक महोत्सव के रूप में मनाने का सुअवसर प्राप्त हुआ में सच्ची श्रद्धांजली होगी। धर्मलाभ ! है। इसी उपलक्ष्य में मैंने गुरुवर के नाम से विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने की जैन समाज को प्रेरणा दी है विजय रत्नाकर सूरि 142 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 4500 KENEDIRECutional Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय वल्लभ काव्य सुधा श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्रदिन्न पाट परम्परा पर सुशोभित वर्तमान पट्टधर कोंकण देश दीपक जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज ने गुरुवर विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष को एक महोत्सव रूप में मनाने की जैन | समाज को प्रेरणा दी। इस सुकृत कार्य को क्रियान्वित रूप देने के लिए अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति का गठन किया गया जिसमें श्री कश्मीरी लाल जी 'बरड़' को अध्यक्ष पद पर मनोनीत किया गया। अध्यक्ष जी ने कार्य को सुचारू रूप देने के लिए एक कार्यकारिणी का गठन किया और विभिन्न सदस्य मनोनीत किये। जिसमें | कार्यकारी अध्यक्ष का पदभार मुझे सौंपा गया। गुरुवर विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव निमित्त अनेक कार्यक्रमों में एक कार्यक्रम गुरुवर विजय वल्लभ द्वारा रचित परमात्म भक्ति के काव्यों पर आधारित विभिन्न प्रतियोगिताएं सम्पूर्ण उत्तर भारत में आयोजित करने की योजना है। गुरुवर ने अपने जीवनकाल में परमात्मा की भक्ति में अनगिनत स्तवन एवं संज्झाओं की रचना की जिसे पं. हीरा लाल जी दुग्गड़ ने वल्लभ काव्य सुधा नाम पुस्तक में संग्रहित किया है। गुरुवर के द्वारा रचित हर एक भजन में कोई न कोई तत्त्व एवं शास्त्रीय बातों के रहस्य छिपे हुये हैं। इन भजनों के गूंज हर जैन परिवार में सुनाई दें परमात्मा की भक्ति के साथ-साथ गुरुवर की __विजय पताका दिदिगन्त तक फैले। इसी उद्देश्य को लेकर और गुरुदेव वर्तमान पट्टधर आचार्य श्री की भावना को साकार रूप देते हुए हम 'वल्लभ काव्य सुधा' की पुरानी आवृत्ति को अक्षरक्षः पुनः मुद्रित कर रहे हैं। प्रथम आवृत्ति में रचनाओं के संग्राहक एवं सम्पादक प्रसिद्ध विद्वान, व्याख्यान दिवाकर, विद्याभूषण, न्यायतीर्थ, न्यायमनीषी, स्नातक पंडित स्व. श्री हीरालाल जैन दुग्गड़ 'शास्त्री' को स्मरण किए बिना नहीं रह सकते जिनके अनथक प्रयासों से गुरुवर विजय वल्लभ की रचनाओं का रसपान हम आज भी कर रहें हैं, श्री आत्मानंद जैन सभा अम्बाला के सौजन्य से प्रथम संस्करण का प्रकाशन हुआ इसके साथ ही प्रथम आवृत्ति के प्रस्तावना लेखक डॉ. जवाहर चन्द्र पटनी (जिनकी लिखित प्रस्तावना प्रस्तुत संस्करण में पुनः प्रकाशित की जा रही है। इन सब का आभार मानते हुये तथा श्री पुष्पदंत जैन पाटनी सम्पादक ‘सत्यदर्शन' एवम् श्री संजीव जैन 'दुग्गड़' तथा वह महानुभाव जिन्होंने प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में 'वल्लभ काव्य सुधा' के द्वितीय संस्करण प्रकाशन में अपना अमूल्य सहयोग दिया उन सब का आभार प्रकट करते हैं। सिकन्दर लाल जैन 'एडवोकेट' 'कार्यकारी अध्यक्ष 1508 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 143 daine l ional Be Only . Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सरदारी लाल शिखर चंद जैन, मुरादाबाद श्री रामरत्न राम स्वरूप कर्ण सिंह कोचर, बीकानेर श्री हरबंस लाल रविनंदन जैन, कसूर वाले, लुधियाना श्री मायाराम मानकचंद जी, पट्टी वाले, लुधियाना श्री मुनि लाल बाल किशन जी, घोड़ेवाले, लुधियाना श्री मानक चंद सतीश 'कुमार जैन, न्यू दिल्ली श्री देवराज जी जैन प्रधान, जंडियाला गुरु एस.ए.एन. जैन सभा, मुरादाबाद श्री मंहगा मल सुदर्शन कुमार जैन, जम्मू श्री श्रीपाल जी, एस. दिनेश एंड कं. जालन्धर श्री दर्शन लाल राजेन्द्र कुमार जी, जंडियाला वाले श्री खजांची मल प्रीतम देवी जैन घोड़ेवाले, परिवार सदस्य स्वागत समिति श्री स्वतन्त्र कुमार जैन, पानीपत श्री कुन्दन लाल चन्द्रशेखर जैन परिवार, समाना श्री पूनम चंद शतरंज कुमार जैन, न्यू दिल्ली श्री टेक चंद चमन लाल विनोद कुमार परिवार, अमृतसर श्री राज कुमार जैन, कपूरथला श्री आत्मानंद जैन सभा, नकोदर श्री आत्म वल्लभ जैन श्राविका संघ, लुधियाना श्री जैन अखण्ड पाठ मंडल, जालन्धर श्री दीप चंद राजेन्द्र पाल जैन, लुधियाना श्री फग्गूमल कश्मीरी लाल जैन बरड़ परिवार, लुधियाना जैन श्राविका संघ, वल्लभ नगर, लुधियाना श्री किशोरी लाल पद्म कुमार, भूपेश कुमार नौल्लखा, लुधियाना श्री कपूर चंद जैन एण्ड संज, आगरा श्री तरलोक चंद जी ढढ़ा, बीकानेर श्री आत्मानंद जैन सभा, होशियारपुर श्री गिरधारी लाल अश्वनी कुमार जैन, जालन्धर श्री कुमारपाल सुनील कुमार जैन, न्यू दिल्ली श्री बिहारे शाह श्रीपाल जैन कसूरवाले, लुधियाना 144 एस. ए. एन. जैन सभा, चण्डीगढ़ विजय इन्द्र प्लास्टिक, लुधियाना श्री रोशन लाल अश्वनी कुमार जैन, धागे वाले, जालन्धर श्री विपन कुमार संदीप कुमार, जालन्धर भगत सरदारी लाल परिवार, जालन्धर श्री आत्मानंद जैन सभा, रायकोट श्री वैसाखी राम सतीश कुमार जैन रोपड़ वाले, लुधियाना श्री सोहन लाल राज कुमार जैन घाटी वाले, लुधियाना श्री वल्लभ दास सुरेश पाटनी, लुधियाना मैसर्ज़ डी. के. ओसवाल हौजरी परिवार, लुधियाना पुष्प दंत ललित भूषण पाटनी, लुधियाना श्री श्री द्वारका दास प्रवीण कुमार जैन पट्टी वाले, लुधियाना श्रीमति विजय कुमारी w/o श्री लाल चंद जैन, कलकत्ता सामायिक पौषध मंडल, लुधियाना श्री दर्शन लाल रमेश कुमार, जैन परिवार, होशियारपुर एस.ए. जैन कॉलेज, अम्बाला शहर श्रीमति रमेशरानी W/o. श्री सुखचैन लाल पट्टी वाले, अम्बाला श्री टेक चन्द सतीश कुमार जैन सर्राफ परिवार, अम्बाला मैसर्ज़ गुजरांवाला ज्यूलर्ज़, अम्बाला शहर श्री मोतीलाल बिमल प्रकाश जैन सर्राफ परिवार, अम्बाला श्री नेमदास सुभाष कुमार राजेन्द्र कुमार परिवार, अम्बाला ला. पंजु शाह धर्म चन्द परिवार, नारोवाल वाले, अम्बाला श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, अम्बाला समा श्री संतराम कस्तूरी लाल जैन परिवार अम्बाला श्री मुकंदीलाल चरणदास जैन बजाज, अम्बाला श्री विजय कुमार आनन्द कुमार जैन, अम्बालवी, अम्बाला श्री सरदारी लाल कुलदीप कुमार जैन एडवोकेट, अम्बाला श्री आत्मानंद जैन सभा, अमृतसर श्री छोटेलाल रघुवीर कुमार जैन, जालन्धर शहर विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री दौलत राम अशोक कुमार प्रवीण कुमार पाटनी परिवार मैसर्ज एस.डी. जैन हौजरी, लुधियाना | श्री रोशन लाल संजीव कुमार पाटनी परिवार, लुधियाना मैसर्ज हाई फ्लाई निटवियर्स, लुधियाना श्री गंडामल राजकुमार जैन, रायकोट वाले, लुधियाना श्री अमर चंद सुरेन्द्र कुमार, लुधियाना मैसर्ज आर.के. ओसवाल हौजरी परिवार, लुधियाना मैसर्ज चन्दन निटवियर्स, लुधियाना लाला बाबू राम प्रद्युमन कुमार जैन, कोठी वाले, लुधियाना श्री विजय कुमार प्रद्युमन कुमार एवरेस्ट, लुधियाना श्री देवराज राजेश कुमार नारोवाल वाले, लुधियाना मैसर्ज़ आत्म ओसवाल हौजरी, लुधियाना मैसर्ज़ समुद्र गारमैंटस, लुधियाना मैसर्ज़ विजय वल्लभ हौजरी, लुधियाना मैसर्ज़ स्वास्तिक इंटरप्राईजिज़, लुधियाना श्री केवलज्ञान मोहन लाल बगीची वाले, लुधियाना लाला रोशनलाल विनोद कुमार जैन, CHE, लुधियाना मैसर्ज केसरिया हौजरी, लुधियाना लाला रोशनलाल किरण कुमार जैन, महावीर उद्योग, लुधियाना श्री शादीराम शिवचन्द जण्डियाला वाले, लुधियाना लाला रोशनलाल राजेन्द्र कुमार, आर.एस. जैन हौजरी, लुधियाना श्री दीनानाथ प्रेम चन्द जैन कसूरवाले, लुधियाना लाला रोशनलाल नरेश कुमार जैन, कलकत्ता निटवियर्स, लुधियाना श्री सिकत्तर लाल जैन एण्ड सन्ज, लुधियाना श्री आत्मानंद जैन सभा, जालन्धर श्री शादी राम सुरेन्द्र कुमार जैन जंडियाला वाले, लुधियाना श्री आत्मानंद जैन सभा, पट्टी श्री हीरा लाल दीपक कुमार जैन कसूर वाले, लुधियाना श्री वीरेन्द्र कुमार पंकज कुमार, स्टाईलिश बाथ, लुधियाना श्री महिन्द्र कुमार नरेश कुमार जैन कसूर वाले, लुधियाना श्री विजय कुमार मुकेश कुमार जैन, स्टाईलिश सैनीटरी इंजि., लुधि. श्री जुगल किशोर जितेन्द्र कुमार जैन, लुधियाना श्री देवराज मोती लाल सुमित कुमार जैन बरड़, लुधियाना मैसर्ज समुद्र फैब्रिक्स, लुधियाना श्री आत्मानंद जैन सभा, जंडियाला गुरु मैसर्ज जैन उदय हौजरी, लुधियाना मैसर्ज़ वीतराग हौजरी, लुधियाना मैसर्ज शोभन लाल यशपाल जैन (जैन कौटन), लुधियाना मैसर्ज कान्ती हौजरी, लुधियाना मैसर्ज रतन चंद जैन पपनाखा वाले, लुधियाना मैसर्ज़ विजय वल्लभ निटवियर्स, लुधियाना श्री पवन कुमार जैन अंबी निटवियर्स, लुधियाना मैसर्ज़ विजय वल्लभ इंटरप्राईजिज़, लुधियाना मैसर्ज़ शांति प्रकाश कोमल कुमार जैन कसूरवाले, लुधियाना श्री चन्द्र प्रकाश कोमल कुमार जैन सर्राफ, लुधियाना मैसर्ज एस.पी. ओसवाल हौजरी, लुधियाना श्री बाल मुकन्द मदन लाल जैन परिवार, लुधियाना मैसर्ज एस.ए. ओसवाल हौजरी, लुधियाना श्री आत्मानंद जैन सभा जीरा श्री सन्त कुमार सुरेन्द्र मोहन आर.एन. ओसवाल, लुधियाना श्री विजय कुमार तरसेम कुमार जोधावाले, लुधियाना श्री तिलक चंद कोमल कुमार जैन जण्डियाला वाले, लुधियाना श्री अमर नाथ मनोहर लाल बम्ब, लुधियाना श्री लब्भुराम देव राज जैन, नारोवाल वाले श्री अमर नाथ जनक राज बम्ब, लुधियाना श्री बलदेव राज लब्धि कुमार जोगिन्द्र पाल कसूर वाले, लुधियाना मैसर्ज पारसमणि हौजरी, लुधियाना श्री मदन लाल विपन कुमार जैन जंडियाला वाले, लुधियाना | श्री बाबु राम दीप चंद जैन कोठी वाले, लुधियाना श्री सत पाल राजीव कुमार सुविधि विवर्ज़, लुधियाना | मैसर्ज़ नवीन भारत हौजरी, लुधियाना श्री प्रेम सागर अरुण जैन रिमी निटवियर्ज, लुधियाना ला. देस राज त्रिभुवन कुमार जैन जोधां वाले, लुधियाना श्री बनारसी दास तरसेम कुमार जैन खानगाडोगरां वाले, श्री मदन लाल निर्मल कुमार एम.ए.ओ., लुधियाना लुधियाना | श्री शेखर चन्द सुभाष चन्द कोठी वाले, लुधियाना 567 विजय वल्लभ 145 संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अमृत लाल चन्द्र मोहन सी.मोहन, लुधियाना मैसर्ज वल्लभ गारमैंटस, लुधियाना मैसर्ज कस्तूर जैन हौजरी, लुधियाना श्री शादी लाल मदन लाल जैन राम नगर वाले, लुधियाना श्री बद्रीदास लवण कुमार जैन, लुधियाना श्री निरंजन दास आजाद कुमार जैन, लुधियाना श्री शादी लाल प्रफुल चंद्र जैन कसूरवाले, लुधियाना श्री जय कुमार कपिल कुमार जैन, लुधियाना श्री चमन लाल अनिल कुमार जैन ज़ीरा वाले, लुधियाना श्री नेवल चंद मोहन लाल, गाजियाबाद श्री आत्मानंद जैन सभा, गाजियाबाद श्री राज पाल अशोक ओसवाल, लुधियाना श्री सरदारी लाल जोगिन्द्र लाल जंडियाला वाले, लुधियाना मैसर्ज मधु हौजरी, लुधियाना श्री अमर चन्द अशोक कुमार जैन शांति हौजरी, लुधियाना श्रीमति स्वर्ण कान्ता इंडिया गारमैंटस, लुधियाना श्री कीमती लाल संजय कुमार जैन श्रमण फैब्रिक्स, लुधियाना मैसर्ज गलौरी निटवियर्ज, लुधियाना मैसर्ज़ शंखेश्वर कोटैक्स श्रीमति उमरी देवी धर्मपत्नी श्री विसाखी राम जैन, लुधियाना श्री मदन लाल जोगिन्द्र पाल पट्टी वाले, लुधियाना मैसर्ज इन्द्रा हौजरी, लुधियाना श्री शांति दास जगमिन्द्र कुमार जैन ज़ीरा वाले, लुधियाना मैसर्ज शीतल शाईन गारमैंटस, लुधियाना श्री निर्मल कुमार विपन कुमार (राज निर्मल), लुधियाना श्री बलदेव राज कोमल कुमार खानगाडोगरा, लुधियाना श्री फिरोज चंद अनिल कुमार योगी निटवियर्ज, लुधियाना श्री बाबु लाल श्रीपाल जैन डीलक्स, लुधियाना श्री धर्म प्रकाश कोमल कुमार जैन ड्यूक, लुधियाना श्री लाल चंद सुरेन्द्र कुमार जैन, कसूर वाले, लुधियाना मैसर्ज राज जैन फैब्रिक्स, लुधियाना खुशी राम गोवर्धन दास राज पाल जैन, होशियारपुर श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ श्रीसंघ, बीकानेर श्री पार्श्वनाथ जैन मूर्तिपूजक सघ, सूरतगढ़ श्री शादी लाल राम चन्द जैन, पाटण श्री सजय कुमार हंसमुख भाई शाह साबरमती, अहमदाबाद : श्री साबरमती रामनगर जैन संघ, अहमदाबाद श्री आदिनाथ सोसाइटी, बड़ौदा श्री आत्मानन्द जैन उपाश्रय सुहेर संघ, बड़ौदा श्री आत्मानन्द जैन सभा, सूरत श्री चन्द्र प्रभु जैन, नया मन्दिर ट्रस्ट, चैन्नई बाबु लाल जी पुखराज जी मेहता, पूना श्री सतपाल जैन, अम्बाला कैंट श्री वस्तुपाल विनोद कुमार जैन, लुधियाना श्री स्वर्ण जैन धर्मपत्नी श्री दीनानाथ जैन वल्लभ नगर, लुधियाना श्री कपूर चन्द जवाहर लाल जैन, आगरा श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ, जयपुर श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, पीलीबंगा श्री मेघराज नरेन्द्र कुमार सेठिया, सूरतगढ़ श्री भौर मल जी चौहान, बंगलौर श्री बसन्ती भाई धनराज जी मुथा, पूना श्री आत्मानन्द जैन सभा, यमुनानगर श्री तारा चन्द सूरजमल कोचर परिवार, बीकानेर श्री करचलेया जैन संघ, करचलेया " श्री बसंती मल स्वरूप चन्द मांगी लाल ओसतवाल, इन्दौर श्री राम कुमार जैन श्रमण शाल, लुधियाना श्री लाल चन्द कपिल कुमार जैन कसूर वाले, लुधियाना श्री तेल राम सभाष कमार जैन M/S.C.L.Jain wollen MIS श्री लाल चन्द महिन्द्र कुमार जैन कसूर वाले, लुधियाना श्री विजय वल्लभ स्कूल, पूना श्री आत्मानन्द जैन सभा, बटाला विजय वल्लभ गिफ्ट सैंटर, मुकेरियां श्री तरलोक चन्द प्रफुल्ल चन्द जैन, बलाचौर श्री अशोक कुमार सुशीला वंती परिवार, मेरठ श्री पंजु शाह धर्मचन्द जैन परिवार, मेरठ 146 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 500 A c tion International Only www.instratiog Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति द्वारा वर्ष भर में आयोजित किये गये विविध मंगलमय कार्यक्रमों का समापन समारोह कार्यक्रम -दिनांक 15.10.2004, शुक्रवार मंच संचालक : श्री सिकन्दर लाल जैन, एडवोकेट धर्मसभा-प्रातः 9 बजे मंगलाचरण प.पू. गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज दीप प्रज्जवलन श्री कश्मीरी लाल अवताश जैन बरड परिवार गुरु प्रतिमा माल्यार्पण श्री राज कुमार प्रदीप जैन (जालन्धर वाले) गुरु प्रतिमा वासक्षेप पूजा श्री रूप लाल धर्मपाल जैन पट्टी वाले परिवार स्वागत गीत श्री आत्मानन्द जैन सी.सै. मॉडल स्कूल, अम्बाला शहर की छात्राओं द्वारा वल्लभ गुरु-एक अनोखी विभूति ला. रघुवीर कुमार जी जालन्धर भजन श्री सुरिन्द्र जैन, लुधियाना वल्लभ गुरु-परम उपकारी श्री नेमीचन्द जैन जिज्ञासू, मुज़फफरनगर भजन श्रीमति किरण जैन, अम्बाला शहर गुरु वल्लभ-एक अनमोल रत्न श्री उमेश जैन, होशियारपुर भजन श्रीमति माला बहन, अम्बाला शहर प्रवचन साध्वी रक्षित प्रज्ञा श्री जी म.सा. प्रवचन प.पू. गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज भाषण प्रतियोगिता अन्तिम चरण (युवा वर्ग) धर्मसभा - दोपहर 2 बजे मंगलाचरण लक्की ड्रा चलो जिन मंदिर चलें पुरस्कार वितरण जिन पूजा प्रतिस्पर्धा संक्रान्ति भक्त भाषण प्रतियोगिता अन्तिम चरण (बाल वर्ग) पुरस्कार वितरण भाषण प्रतियोगिता भजन एवं प्रवचन रात्रि - 8:30 बजे भजन संध्या मुख्य संगीतकार श्री अशोक ऐ. गेमावत एंड पार्टी, मुम्बई संघ भक्ति लाभ नवकारसी श्री राज कुमार जैन, प्रदीप जैन, कुंवर प्रतीक जैन (मै. प्रदीप पब्लिकेशन, जालन्धर शहर) दोपहर का प्रीतिभोज श्री फग्गूमल कश्मीरी लाल जैन बरड़ परिवार (मै. वल्लभ यार्न, लुधियाना) सांय का प्रीतिभोज श्री माया राम माणक चन्द जैन परिवार (पट्टी वाले) लुधियाना बहुमान 147 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only Jan Education International Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (दिनांक 16.10.2004, शनिवार मंच संचालक : श्री अरविन्द कुमार जैन धर्मसभा-प्रातः 9 बजे मंगलाचरण प.पू. गच्छाधिपति श्री जी स्वागत गीत एस.ए.जैन कॉलेज, पी.जी. की छात्राएं गुरु वल्लभ-साधर्मिक वात्सल्य के मसीहा श्री कस्तूरी लाल जैन, यमुनानगर भजन श्री कमल जैन, होशियारपुर विजय वल्लभ-हमारे सरताज श्री सिकन्दर लाल जैन, एडवोकेट श्रीमति कमलेश जैन, लुधियाना वल्लभ गुरु-हमारे तारणहार श्री आनन्द कुमार जैन, अम्बाला भजन श्री सुशील कुमार जैन मोही वाले, लुधियाना वल्लभ गुरु-शिक्षा के प्रखर प्रणेता श्री अनिल नाहर (दिल्ली) प्रवचन प.पू. गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सरीश्वर जी म.सा. संगीत प्रतियोगिता अन्तिम चरण (स्तवन, सज्झाए) (दोनों आयु वर्ग) धर्मसभा-दोपहर 2 बजे भजन मंगलाचरण श्री राजीव जैन, मुरादाबाद वक्तव्य-स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में महासमिति द्वारा बहूमान-संक्रान्ति पर्व संध्या पर श्री फग्गूमल कश्मीरी लाल जैन बरड परिवार तथा प्रतिक्रमण करने वाले श्री चन्द्र शेखर जैन समाना द्वारा महानुभावों का द्वारा सामायिक पौषध मण्डल, लुधियाना पुरस्कार वितरण 84 सामायिक करने वाले बाल वर्ग चलो जिन मन्दिर जी चलें प्रतियोगिता पुरस्कार वितरण निबन्ध प्रतियोगिता पुरस्कार वितरण संगीत प्रतियोगिता पुरस्कार वितरण रात्रि-8:30 बजे भजन संध्या एक शाम गुरु वल्लभ के नाम मुख्य संगीतकार श्री मगनलाल जी कोचर एंड पार्टी, बीकानेर इसी सभा में सभी सहयोगी कार्यकर्ता मण्डलों का बहुमान -संघ भक्ति लाभ नवकारसी : श्री सरदारी लाल शिखर चन्द जैन परिवार, मुरादाबाद दोपहर का प्रीतिभोज : श्री हरबंस लाल रवि नन्दन जैन कसूर वाले (डी.के. ओसवाल हौज़री) लुधियाना शाम का प्रीतिभोज : श्री मुनि लाल बाल कृष्ण जैन घोड़े वाले परिवार (एलोरा शाल) लुधियाना विजय वल्लभ | 148 संस्मरण-संकलन स्मारिका 4500 Jain Education is For Privale & Personal Use Only wwamro Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिनांक 17-10-2004, रविवार संक्रान्ति, क्षमापना एवं समापन समारोह प्रातः 9 बजे मुख्य अतिथि: श्री वी.सी. जैन भाभू (भूतपूर्व अध्यक्ष श्री आत्मानन्द जैन महासभा, उत्तरी भारत) मंच संचालक : श्री आनन्द कुमार जैन शायरी बहुमान मंगलाचरण : प.पू. गच्छधिपति श्री जी स्वागत गीत : एस. ए. जैन सी. सै. स्कूल की छात्राएं : श्री आज़ाद कुमार जैन, जालन्धर बहुमान : विधिकारक मंडल भजन : श्री सुरेश जैन पाटनी भजन : श्रीमति सविता जैन, मुरादाबाद बहुमान : रथयात्रा के संचालन सहयोगी : अतिथि विशेष प.पू. गच्छाधिपति श्रीमद् विजय बोली द्वारा आदेश रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. को काम्बली बहोराना सामूहिक क्षमापना : मुख्य अतिथि द्वारा धन्यवाद : प्रधान जी महासमिति स्मारिका विमोचन संक्रान्ति भजन : श्री रघुवीर कुमार जी प्रवचन एवं. संक्रान्ति नाम प्रकाश : प. पू. गच्छाधिपति श्री जी द्वारा संघ भक्ति लाभ नवकारसी, दोपहर एवं सांय प्रीतिभोजन श्री बाबू राम मोती लाल बिमल प्रकाश जैन सर्राफ़ परिवार (अम्बाला शहर) विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 149 , For Private & Personal use only www.jainelibres Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज का 50वां स्वर्गारोहण वर्ष गुरू गुणानुवाद स्वरूप मनाने के लिए शुभ सदप्रेरणा, आशीर्वाद, आशीर्वचन एवं शुभ निश्रा प्रदान करने वाले परम पूज्य परम वन्दनीय दृढ़ संकल्पी अप्रमत संयमी कोंकण देश दीपक गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समापन समारोह के शुभ अवसर पर प.पू.गच्छाधिपति द्वारा रंगोली के लिए बनाया गया गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज सा. का रंगीन हस्त रचित चित्र । yo Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Re-Created by: jaimlor lab to come for generations गुरुदेव के दुर्लभ चित्रों की प्रदर्शनी दिनांक : 15,16,17 अक्तूबर, 2004. स्थल : लाइब्रेरी हाल, एस.ए.जैन माडल स्कूल, अम्बाला शहर. वल्लभ दर्शन Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'विजय वल्लभ' के दुर्लभ चित्र सौजन्य : जैन कलर लैब Hog श्री विजयवल्लभम रबर जी वैसाख Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौरवशाली पाट-परम्परा - 22 सौजन्य : जैन कलर लैब आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी म.सा., आचार्य श्रीमद् विजय समुद्र सूरि जी म.सा., आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी म.सा., For Private & Personal use only www.janelburary.org Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युगवीर-वल्लभ SSSSSSSSSSSSSSSS सौजन्य : जैन कलर लैब आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी म.सा., आचार्य श्रीमद् विजय समुद्र सूरि जी म.सा., आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी म.सा., For Private & Personal use only, Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'विजय वल्लभ' के दुर्लभ वित्र सौजन्य : जैन कलर लैब Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौजन्य : जैन कलर लैब Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौजन्य : जैन कलर लैब Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौजन्य : जैन कलर लैब Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म 'दान - शील-तप-भावना' कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य जी “धर्म उत्कृष्ट मंगल है, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाला है और संसाररूपी वन को पार करने में रास्ता दिखाने वाला है। धर्म माता की तरह पोषण करता है, पिता की तरह रक्षण करता है, मित्र की तरह प्रसन्न करता है, बन्धु की तरह स्नेह रखता है, गुरु की तरह उजले गुणों में ऊँची जगह चढ़ाता है और स्वामी की तरह बहुत प्रतिष्ठित बनाता है। धर्म सुखों का बड़ा मह है, शत्रुओं के संकट में कवच है, सर्दी से पैदा हुई जड़ता को मिटाने में धूप है और पाप के मर्म को जानने वाला है। धर्म से जीव राजा बनता है, बलदेव होता है, अर्द्धचक्री (वासुदेव) होता है, चक्रवर्ती होता है, देव और इन्द्र होता है, ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान (नाम के स्वर्गों) में अहमिन्द्र होता है और धर्म ही से तीर्थंकर भी बनता है। धर्म से क्या-क्या नहीं मिलता है ? (सब कुछ मिलता है। 160 “दुर्गतिप्रपतज्जंतुधारणाद्धर्म उच्यते” (दुर्गति में गिरते हुए जीवों को जो धारण करता है ( बचाता है) उसे धर्म कहते हैं।) वह चार तरह का है। (उनके नाम हैं) दान, शील, तप और भावना । दानधर्म तीन तरह का है। उनके नाम हैं ? 1. ज्ञानदान 2. अभयदान 3. धर्मोपग्रहदान । શ્રી હેમચંદ્રાચાર્ય धर्म नहीं जानने वालों को वाचन या उपदेश आदि का दान देना अथवा ज्ञान पाने के साधनों का दान देना ज्ञानदान कहलाता है। ज्ञानदान से प्राणी अपने हिताहित को जानता है और उससे हित-अहित को समझ, जीवादि तत्वों को पहचान विरति (वैराग्य) प्राप्त करता है। ज्ञानदान से प्राणी उज्ज्वल केवलज्ञान पाता है और सर्वलोक पर कृपा कर लोकाग्र भाग पर आरूढ़ होता है। (मोक्ष में जाता है)। अभयदान का अभिप्राय है मन, वचन और काया से जीव को न मारना, न मरवाना और न मारने वाले का अनुमोदन करना (मारने के काम को भला न बताना) । जीव दो तरह के होते हैं-स्थावर और त्रस। उनके भी दो भेद हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त। पर्याप्तियाँ छः तरह की होती है। उनके नाम हैं 1. आहार 2. शरीर 3. इंद्रिय 4. श्वासोश्वास 5. भाषा 6. मन । एकेंद्रिय जीव के (पहली) चार पर्याप्तियाँ, विकलेंद्रिय जीव (दो इंद्रिय, तीन इंद्रिय और चार इंद्रिय जीव) के पहली पाँच पर्याप्तियाँ और पंचेंद्रिय जीव के छहों पर्याप्तियाँ होती हैं। एकेंद्रिय स्थावर जीव पाँच तरह के होते हैं-1. पृथ्वी (जमीन) 2. अप (जल) 3. तेज (अग्नि) 4. वायु (हवा) 5. वनस्पति । इनमें से आरंभ के चार सूक्ष्म और बादर ऐसे दो तरह के होते हैं। वनस्पति के प्रत्येक और साधारण दो भेद हैं। साधारण वनस्पति के भी दो भेद हैं। सूक्ष्म और बादर । बस जीवों के चार भेद हैं-1. दो इंद्रिय, 2. तीन इंद्रिय, 3. चार इंद्रिय, 4. पंचेंद्रिय । पंचेंद्रिय जीव दो तरह के होते हैं-1. संज्ञी, 2. असंज्ञी । विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो मन और प्राण को प्रवृत्त कर शिक्षा, उपदेश और आलाप (बातचीत) को समझते हैं समझ सकते हैं उनको संज्ञी जीव कहते हैं। जो संज्ञी से विपरीत होते हैं वे असंज्ञी कहलाते हैं। इंद्रियाँ पाँच हैं: 1. स्पर्श. 2. रसना (जीभ), 3. प्राण (नासिका), 4. चक्षु (आंख), 5. श्रोत्र (कान)। स्पर्श का काम है छूना, रसना का काम है चखना (स्वाद जानना), घ्राण का काम है सूंघना, चक्षु का काम है देखना और श्रोत्र का काम है सुनना। कीड़े, (शंख), गंड्रपद (केंचुआ), जोंक, कपर्दिका (कौडी) और (सतही नाम का जलजंत) वगैरा अनेक तरह के दोइंद्रिय जीव हैं। यूका (जू) मत्कुण (खटमल), मकोड़ा और लीख वगैरा तीनइंद्रिय जीव है। पतंग (फतंगा), मक्खी, भौंरा, डाँस वगैरा प्राणी चार इंद्रिय हैं। जलचर (मछली, मगर वगैरा जल के जीव), स्थलचर (गाय भैंस वगैरा पशू), खेचर (कबूतर, तीतर, कौवा वगैरा पंखी), नारकी (नरक में पैदा) होने वाले), देव (स्वर्ग में पैदा होने वाले) और मनुष्य ये सभी पंचेन्द्रिय जीव हैं। ऊपर कहे हुए जीवों की (मार कर) आयु समाप्त करना, उनके (शरीर को) दुःख देना और उनके (मन को) क्लेश पहुँचाने का नाम बध करना (हिंसा करना) है और वध नहीं करने का नाम अभयदान है। जो अभयदान देता है वह चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का दान करता है। कारण, बचा हुआ जीव चारों पुरुषार्थ प्राप्त कर सकता है। प्राणियों को राज्य, साम्राज्य और देवराज्य की अपेक्षा भी जीवन अधिक प्रिय होता है। इसी से कीचड़ के कीड़े को और स्वर्ग के इंद्र को प्राण-नाश का भय समान होता है। इसलिए सुबुद्धि पुरुष को चाहिए कि वह सदा सावधान रहकर अभयदान की प्रवृत्ति करे। अभयदान देने से मनुष्य परभव में मनोहर, दीर्घायु, तन्दरुस्त, कांतिवान, सुडोल और बलवान होता है। धर्मोपग्रहदान पाँच तरह का होता है, 1. दायक (दान देने वाला) शुद्ध हो, 2. ग्राहक (दान लेने वाला) शुद्ध हो, 3. देय (दान देने की चीज) शुद्ध हो, 4. काल (समय) शुद्ध अच्छा हो, 5. भाव शुद्ध हो। दान देने वाला वह शुद्ध होता है जिसका धन न्यायोपार्जित हो, जिसकी बुद्धि अच्छी ,हो जो किसी आशा से दान न देता हो, जो ज्ञानी हो (वह दान क्यों दे रहा है इस बात को समझता हो) और देने के बाद पीछे से पछताने वाला न हो। वह यह मानने वाला हो कि ऐसा चित्त (जिसमें दान देने की इच्छा है) ऐसा वित्त (जो न्यायोपार्जित है) और ऐसा पात्र (शुद्ध दान लेने वाला) मुझको मिला इससे मैं कृतार्थ हुआ हूँ। दान लेने वे शुद्ध होते हैं जो सावद्ययोग से विरक्त होते हैं (पापरहित होते हैं), जो तीन गौरव (1. रसगौरव, 2. ऋद्धि गौरव, 3. साता गौरव) रहित होते हैं। तीन गुप्तियाँ धारण करने वाले और पाँच समितियाँ पालने वाले होते हैं। जो राग-द्वेष से मुक्त होते हैं, जो नगर, गाँव, स्थान, उपकरण और शरीर में ममता नहीं रखने वाले होते हैं, जो अठारह हजार शीलांग को धारण करने वाले होते हैं; जो रत्नत्रय (सम्यक्-ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र) के धारण करने वाले होते हैं ,जो धीर और लोहा व सोने में समान दृष्टि वाले होते हैं, धर्मध्यान और शुक्लध्यान में जिनकी स्थिति होती है, जो जितेंद्रिय, कुक्षिसंबल (आवश्यकतानुसार भोजन करने वाले), सदा शक्ति के अनुसार छोटे-छोटे तप करने वाले, सत्रह तरह के संयम को अखंड रूप से पालने वाले और अठारह तरह का ब्रह्मचर्य पालने वाले होते हैं। ऐसे शुद्धदान लेने वालों को दान देना 'ग्राहक शुद्धदान' या 'पात्रदान' कहलाता है। देय शुद्धदान-देने लायक, 42 दोषरहित अशन (भोजन, मिठाई, पूरी वगैरा) पान (दूध-रस वगैरा), खादिम (फल मेवा वगैरा), स्वादिम (लौंग, इलायची वगैरा), वस्त्र और संथारा (सोने लायक पाट वगैरा) का दान, वह देय शुद्ध दान कहलाता है। योग्य समय पर पात्र को दान देना 'पात्रशुद्धदान' है और कामना रहित (कोई इच्छा न रखकर) दान देना 'भाव-शुद्धदान' है। शरीर के बिना धर्म की आराधना नहीं होती और अन्नादि बिना शरीर नहीं टिकता। इसलिए धर्मोपग्रह (जिससे धर्म साधन में सहातय मिले ऐसा) दान देना चाहिए। जो मनुष्य अशनपानादि धर्मोपग्रहदान सुपात्र को देता है, वह तीर्थ को अविच्छेद (स्थिर) करता है और परमपद (मोक्ष) को पाता है। "शीलं सावद्ययोगानां प्रत्याख्यानं निगद्यते।" "जिस प्रवृत्ति से (काम से) प्राणियों को हानि हो ऐसी प्रवृत्ति नहीं करना शील है। उसके दो भेद हैं- 1. देशविरति, 2. सर्वविरति। देशविरति के बारह भेद हैं, पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत।" स्थूल अहिंसा, स्थूल सत्य, स्थूल अस्तेय (अचौर्य), स्थूल ब्रह्मचर्य, और स्थूल अपरिग्रह ये पाँच अणुव्रत जिनेश्वर ने कहे हैं। दिविरति, भोगोपभोगविरति और अनर्थदंडविरति ये तीन गुणव्रत हैं। सामायिक, देशावकाशिक, पौषध और अतिथिसविभाग ये चार शिक्षाव्रत हैं। 1500 161 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका FOOFIVIDEOrgutte JD Edustiatriciternationilo awwvijainelibrary.org Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स इस तरह का देशविरति गुण-शुश्रूषा (धर्म सुनने की और सेवा करने की भावना) आदि गुण वाले, यतिधर्म (साधुधर्म) के अनुरागी, धर्मपथ्य भोजन (ऐसा भोजन जिससे धर्म का पालन हो) को चाहने वाले, शम (निर्विकारत्व शाँति) संवेग (वैराग्य), निर्वेद (निस्पृह), अनुकंपा (दया) और आस्तिक्य (श्रद्धा) इन पाँच लक्षणों वाले, सम्यक्त्वी, मिथ्यात्व से निवृत्त (छूटे हुए) और सानुबंध (अखंड) क्रोध के उदय से रहित-गृहमेधी (गृहस्थी) महात्माओं में, चारित्र-मोहनीय कर्म के नाश होने से, उत्पन्न होता है। स्थावर और त्रस जीवों की हिंसा से सर्वथा दूर रहने को सर्वविरति कहते हैं। यह सर्वविरतिपन सिद्धरूपी महल पर चढ़ने के लिए सीढ़ी के समान है। जो स्वभाव से ही अल्प कषाय वाले, दुनिया के सुखों से उदास और विनयादि गुणों वाले होते हैं ,उन महात्मा -मुनियों को यह सर्वविरतिपन प्राप्त होता है। “यत्तापयति कर्माणि तत्तपः परिकीर्त्तितम् ।” ____जो कर्मों को तपाता है (नाश करता है) उसे तप कहते हैं। उसके दो भेद हैं; 1. बाह्य। 2. अंतर। अनशनादि बाह्य तप है और प्रायश्चित आदि अंतर तप है। बाह्य तप के छः भेद हैं; 1. अनशन (उपवास एकासन आंबिल आदि), 2. ऊनोदरी (कम खाना), 3. वृत्तिसंक्षेप (जरूरतें कम करना), 4. रसत्याग (छ: रसों में हर रोज किसी रस को छोड़ना), 5. कायक्लेश (केशलोंच आदि शरीर के दुख), 6. संलीनता (इंद्रियों और मन को रोकना)। ___ अभ्यंतर तपके छः भेद हैं; 1. प्रायश्चित्त (अतिचार लगे हो, उनकी आलोचना करना और उनके लिए आवश्यक तप करना) 2. वैयावृत्य (त्यागियों की और धर्मात्माओं की सेवा करना), 3. स्वाध्याय (धर्मशास्त्रों का पठन, पाठन, मनन श्रवण), 4. विनय (नम्रता), 5. कायोत्सर्ग (शरीर के सब व्यापारों को छोड़ना), 6. शुभध्यान (धर्मध्यान और शुक्ल ध्यान में मन लगाना)। ___ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूपी रत्नत्रय को धारण करने वालों की भक्ति करना, उनका काम करना, शुभ का विचार और संसार की निन्दा करना भावना है। यह चार तरह का (दान, शील, तप और भावनारूपी धर्म अपार फल (मोक्षफल) पाने का साधन है, इसलिए संसार- भ्रमण से डरे हुए लोगों को सावधान होकर इसकी साधना करनी चाहिए। साभार- 'त्रिषष्टी श्लाका पुरुष चरित्र' गुरुदेव ने कहा था कोई द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देखकर, समाज हित को मद्दे नज़र रखते हुए, सुधार या परिवर्तन किया जाए तो उसे देखकर प्राचीनता के महोवश अथवा ईर्ष्यावश विरोध करना उचित नहीं होता शुद्धाचरण से अपने मन को मन्दिर के समान पवित्र बनाओ। पवित्र मन मन्दिर में ही परम कृपालु परमात्मा विराजमान होगें। मन को पवित्र बनाने के लिए शुद्ध आहार, शुद्ध विचार और शुद्ध विहार की आवश्यकता है। 162 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 151 Autobinbimage Piunnati Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म या आशीष कुमार जैन, जयपुर धर्म का भ्रम संसार परिभ्रमण की सर्वथा समाप्ति के लिए श्री जिनेश्वर भगवन्तों ने जिनशासन की स्थापना की है। मोक्ष जाने का आमन्त्रण इसी का यथार्थ नाम 'धर्मदेशना' है। परमात्मा के वचन का एक भी अनुयोग ऐसा नहीं, जो आत्मा को संसार से विमुख कर संयम का पिपासु न बनाता हो। कर्मक्षय के एकमात्र हेतु से इस लोकोत्तर धर्मशासन की प्रत्येक आराधना विषयों के वमन, कषायों के शमन, इन्द्रिय दमन, आत्मस्वरूप में रमण अंततः मोक्ष गमन के लिए है। मोक्ष के अतिरिक्त जिसे कोई अन्य चाह न हो उसका नाम समकिती। जो आत्मा मोक्षार्थी नहीं वह वीतराग के धर्म का अधिकारी भी नहीं। मोक्ष की इच्छा में इतनी शक्ति है कि कि आत्मा को इच्छारहित बना देती है। संसार अरण्य से निकलकर मोक्ष में जाने का एकाधिकार केवल दुर्लभ मनुष्यगति में है। मानव भव में जीव इतना समर्थ होता है कि जन्म-मरण की बेड़ियां तोड़ सक, पर यह संभव तभी है, जब आत्मा को जिनवाणी का आलम्बन मिले, उस पर श्रद्धा निरन्तर दृढ़तर होती जाए। पुण्योदय से प्राप्त विपुल भोग सामग्री भी उसे बोझ रूप लगे, उससे छूटकर मोक्ष जाने की उत्कृष्ट अभिलाषा जाग्रत हो जाए। मोहनीय कर्म इस इच्छा में सबसे बड़ा बाधक है। इस कर्म के दो भेद हैं (1) दर्शन मोहनीय (मिथ्यात्व) (2) चारित्र मोहनीय (अविरती) मिथ्यात्व के उदय से आत्मा शुद्ध तत्व को समझ नहीं पाता, अविरती के उदय से सम्यकू आराधना नहीं कर सकता। ज्ञानियों की दृष्टि में संसार की प्रत्येक वस्तु दुःखरूप, दुःखफलक और दुःखानुबन्धी है। संसार के सभी सम्बन्ध स्वार्थजनित हैं। खून के रिश्ते मानों खून पीने के लिए बने हैं। सम्पत्ति की खातिर यहां भाई को भय बनते देर नहीं लगती। संसार का सुख सुख नहीं वरन मिथ्या सुखाभास है। यह सुख पराधीन है क्योंकि पर पदार्थों के संयोग से ही उत्पन्न हो सकता है। आत्मा को संसार में रुलते हुए अनन्त पुद्गल परावर्त व्यतीत हो चुके परन्तु संसार के नश्वर सुखों की लालसा, तुच्छ पदार्थों पर अनादिकाल की वासना और ममत्व यथावत् है। पुण्य से मिली भोग सामग्री, उसके प्रति तीव्र राग ने अनंत बार आत्मा को नरकादि में दुःख भोगने को बाध्य किया है परन्तु पौद्गालिक सुखों की आसक्ति, इन्द्रिय सुखों की क्षुधा बढ़ती ही गई है। ॐ विज्ञान प्रभावित इस काल में लोगों की लिप्सा सांसारिक पदार्थों के अधिकाधिक उपभोग की है। भोग विलास की प्रवृति पर नियन्त्रण, संयम की सलाह भी व्यक्ति को चुभती है। भौतिकवाद के वातावरण में मतिभ्रमित लोग उसी व्यक्ति को सफल मानते हैं जिसने प्रचुरमात्रा में भोगोपभोग के साधनों का साम्राज्य खड़ा किया हो । घर, दुकान, फैक्ट्री, बंगले, चमचमाती कारें, धन से तिजोरियां भरी हों। विषमता, विसंगति, विनाश और विकार प्रधानकाल का प्रवाह ही ऐसा विपरीत है कि प्रवाह पतित लोग कर्ज के बोझ तले दबकर भी फिल्मी चकाचौंध जैसा जीवन जीना चाहते हैं। र जिनशासन-जिनाज्ञा के प्रति वफादार जीवात्मा की स्थिति इससे सर्वथा भिन्न होती है। वह संसार में आसक्ति से नहीं वरन् अशक्ति से विवश होकर रहता है। वह प्रभु से नियमित भव निर्वेद (संसार प्रति अरुचि) की मांग दोहराता रहता है। कर्मबन्ध में कायर, कर्मोदय में सत्वशील, कर्म निर्जरा में उत्साही जिनभक्त तो सदैव वैराग्य अर्थात् सुख में अलीनता, समाधि अर्थात् दुःख में अदीनता इन दो तत्वों को आत्मसात् करने का पुरुषार्थ करते हुए मुक्ति मार्ग की ओर आगे बढ़ता जाता है। इस दुषमकाल में विरक्त मन, वास्तविक धर्मी आत्माएँ विरली हैं। आज का कथित धर्म प्रायः लौकिक सुखों की लालसा में किया जा रहा है। 'मोक्ष का उपाय' कहा जाए या 'धर्म' दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। काल की विडम्बना कि इस कलिकाल में धर्म की परिभाषा, धर्म का स्वरूप, धर्म का उद्देश्य, धर्मक्रियाएँ, धर्माराधक, धर्मी की व्याख्या सब बिगड़ गई है। जिनाज्ञा की उपेक्षा, शास्त्र की बेदरकारी करने वाले धर्म के ठेकेदारों की मनमानी बढ़ गई है। जिनशासन के अधिकांश अधिकृत उपदेशक अब मोक्ष की बातों को उतनी तवज्जो नहीं देते बल्कि संसार सुखों का झूठा सब्जबाग दिखाकर विषयाभिलाषा की आग में घी डालने का काम करते हैं। भगवान ने शासन की स्थापना संसार से छुड़ाकर जीव को मोक्ष में पहुंचाने के लिए करी है परन्तु समय की विचित्रता कि सरेआम 1500 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका | 163 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसार सुखों के विज्ञापन देकर त्यागी वर्ग की प्रेरणा और तारक निश्रा में यत्र-तत्र धार्मिक क्रियाकाण्डों की भरमार है। संकट मोचक, सर्वमनोवांछित पूरक, ऋद्धि सिद्धि प्रदायक, कथित महामंगलकारी इन आडम्बरों से अनादि संस्कारों से विषयानुरागी जनमानस में धधकती भौतिक सुख प्राप्ति की ज्वाला को उत्तेजन दिया जाता है। 'स्वाहा' की घंटी के साथ लाल डोरों पर गाठे मारता बेचारा भोला साधक न जाने किन-किन सपनों के सच होने की आस बांधता है। प्रभु वचनों का उपहास कर वैषयिक सुखों का अट्टहास करते इन आयोजनों में कई साधनाएँ सजोड़े (मुख्यतः पति-पत्नी) करवाई जाती हैं। इन के विधान कर्ताओं से पूछा जाए कि जिनधर्म संसार के संबंध तोड़ने के लिए है या उन्हें जन्मोजन्म प्रगाढ़ करने के लिए ?ऐसी धर्मभ्रान्त क्रियाएँ जिनाज्ञा के प्रति वफादारी है या द्रोह ? जिनाज्ञा वर्जित, संसार वृद्धि कारक, धार्मिक क्रियाओं के अपरूप, मिथ्या पाखण्डों से जब लोगों की आकांक्षा पूर्ण नहीं होती तो कुलाचार से प्राप्त धर्म श्रद्धा भी खत्म हो जाती है। ऐसे लोग अन्यमतों की ओर आकर्षित होकर जिनधर्म से भ्रष्ट हो जाते हैं। इसी कारण शास्त्रकारों ने संसार सुखों के लिए किए जाते अनुष्ठानों को गरलानुष्ठान कहा, जो जीव की धर्मश्रद्धा को मारने के लिए जहर का काम करते हैं। आज के भेष वेषविडम्बकों से हमारा यतिवर्ग इस अपेक्षा से बहुत अच्छा था कि उनके पास वास्तविक रूप में यंत्र-मंत्र की सिद्धि होती थी, जिससे वे शासनरक्षा या अमीर गरीब का भेद किए बिना धर्मासक्त श्रावकों को सहायक होते थे। वर्तमान में दुर्दशा ऐसी है कि सिद्धिशून्य सत्वहीन होने पर भी धर्मध्वजधारक लोगों को भरमाने में खासे दक्ष है। अभिमंत्रित वासक्षेप, मूर्तियां, अंगूठियां, डोरा-धागा, निमित्त ज्योतिष से धनलोभियों को मूर्ख बनाकर धन निकलवाया जाता है। आजकल के नए-नए महापूजन विधान सभी संसार को केन्द्र में रखकर करवाए जाते हैं। चमत्कारों-अंधविश्वासों का पंजा इतना सख्त है कि कहीं सांप दिख जाने पर भी विषय लोलुप जीव इतना प्रसन्न होते हैं कि मानों अधिष्ठायक ने साक्षात् होकर कोई वरदान दे दिया हो। देव का दर्शन कदापि निष्कारण ओर निष्फल नहीं होता, पर बुद्धि की बलिहारी कि चवन्नी न मिलने पर भी लोग प्रत्यक्ष दर्शन का ढिंढोरा पीटते फिरते हैं। संसार सुखों की अभिलाषा से की गई धर्मक्रियाएँ धर्म नहीं वरन् अधर्म का रूपान्तर है। 'पुत्र बिना जाके पुत्र करी रे' ऐसी अशोभनीय बातें आज धर्म का खोला ओढ़ चुकी हैं। वीतराग देव, पंचमहाव्रतधारी गुरु भगवन्त क्या कभी मैथुन सेवन में प्रेरक हो सकते हैं ?भगवान या गुरुदेव पर ऐसा आरोप उनकी अक्षम्य आशातना है, भक्ति नहीं। परमात्मा वीतराग हैं, उनके समक्ष संसार की मांग रखना उनके वीतरागत्व का अपमान है। संसारी के संसार की चिन्ता करने वाले साधु स्वयं संसारी के प्रत्येक पाप में भागीदार हो जाते हैं। गुरुभक्ति के फलस्वरूप यदि संसार की पूर्ति का आभास हो, तो यह गुरु की कृपा नहीं बल्कि अवकृपा है जो अंततः संसार बढ़ाकर दुर्गति में धक्का देने वाली है। संसार की वासना से वासित होकर किए गए धर्म से पापानुबन्धी पुण्य का बंध होता है। वर्षों की चारित्र साधना का फल मांगकर संभूति मुनि को चक्रवर्ती (ब्रह्मदत्त) का पद मिला लेकिन मात्र सात सौ वर्ष का सुख और 33 सागरोपम का सातवी नरक का भयंकर दुःख भोगेंगे। इससे विपरीत निष्काम भाव से मुनि को खीर वोहराकर शालिभद्र को अपार वैभव मिला लेकिन वह उन्हें संसार में डुबो नहीं सका, संयम में बाधक नहीं बना। यह है पुण्यानुबंधी पुण्य का सुखद स्वरूप। जैनधर्म में दुःखादि निवारण के लिए यंत्र-मंत्र स्तोत्रों की कमी नहीं है पर वह सभी मोक्षार्थी के लिए है। इनका उपयोग मोक्ष साधना के अवरोधों को टालने के लिए नियत है, न कि क्षुद्र मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए। जिन्हें मोक्ष का स्वरूप पता नहीं, भवनिवृत्ति जिन्हें अभिलाषित नहीं ऐसे मिथ्यादृष्टि को यदि मंत्र यंत्र की साधना करवाई जाए तो 'बालहत्या पदे पदे' एक एक पद के बराबर बालहत्या का वज्रपात लगता है। चतुर्विध श्रीसंघ में सुखशान्ति, ज्ञान, आचार, संयम की वृद्धि के साथ-साथ आत्मोन्नति के लिए धर्म आराधना की जाती है। प्रतिवर्ष धर्माराधनाओं में आश्चर्यकारी वृद्धि हो रही है परन्तु खेदकि पर्वत समान आराधनाओं का जीवन में राई जितना परिणाम भी दृष्टिगोचर नहीं होता। इसका कारण आशय की मलिनता है। जब तक आशय शुद्धि अर्थात् धर्म का ध्येय मात्र मुक्ति का नहीं होगा, तब तक की जाने वाली धर्म-क्रियाएँ पानी को बिलोने की तरह व्यर्थ व्यायाम है। प्रभु दर्शन-पूजा, सामायिक, प्रतिक्रमण, तप-जप आदि स्वयं धर्म नहीं धर्म प्राप्ति के पगथिए हैं। मन के परिणामों में निर्मलता अर्थात् राग की जगह वैराग, द्वेष की जगह उपशम, क्रोध की जगह क्षमा, मान-माया-लोभ की जगह क्रमशः नम्रता, सरलता, संतोष प्राप्ति का पुरुषार्थ होना, यही जिनोक्त भाव धर्म है। वर्तमान के धर्म को एक अपेक्षा से धर्म कहा भी जाए तो वह द्रव्य धर्म है। लोकरूढि से शुभाचार रूप बिना शुद्ध श्रद्धा से की जाने वाली धर्मक्रियाएँ महापुरुषों ने सारहीन बतलाई हैं। महापुरुषों के वचन 164 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1504 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "शुद्ध श्रद्धा बिना सर्व किया करी, छार पर लीपणो तेह जाणो।" योगीराज श्री आनंदघन जी महा. "द्रव्य क्रिया रूचि जीवडा जी, भाव धर्म रूचि हीन। उपदेशक पण तेहवा जी, शंकरे जीव नवीन हो।।” महात्मा श्रीमद् देवचन्द्र जी महा. “विषया रसे गृही माचिया, नाचिया कुगुरुमद पूर रे। धूमधामे धमाधम चाली, ज्ञान मार्ग रह्यो दूर रे।। कलहकारी कदाग्रह भर्या, थापता आपण बोल रे। जिनवचन अन्यथा दाखवे, आज तो बाजते ढोल रे।।" उपा. श्री यशोविजय जी महा.. महापुरुषों की यह अनुभव वाणी बड़ी मार्मिक है परन्तु इसकी कीमत समझने वाले कम, समझ कर छिपाने वाले बहुत अधिक है। आजकल तो जैसे-तैसे लक्की ड्रा, पुरस्कारों का प्रलोभन देकर भीड़ इकट्ठी कर मजमा जमा लेने को शासन की जाहोजलाली समझा जाता है। महान् फल, अनूठा प्रभाव, आपके जीवन में, आपके नगर में पहली बार की चिल्लाहट कर करवाई जाती क्रियाओं की फूंक निकालते हुए महापुरुष कहते हैं 'देवचन्द्र कहे या विध तो हम, बहुत बार कर लीनो' पर समकित अर्थात् मोक्ष की शुद्ध श्रद्धा के बिना मेरा चार गति में भ्रमण खत्म नहीं हुआ। आगमविहित, गीतार्थ अनुमत, पूर्व महापुरुषों द्वारा आराधित मोक्ष की श्रद्धामय धर्म भाव धर्म है। अविचार पूर्ण गाडरिया प्रवाही द्रव्य धर्म और जिनाज्ञा सम्मत भाव धर्म का परिणाम शास्त्रकारों ने स्पष्टतया बतलाया है। जैन जगत् में दादा गुरुदेव नाम से प्रख्यात श्री जिनदत्त सूरि महा. स्वकृत 'संदेहदोहावली' में द्रव्य, धर्म और भावधर्म का स्वरूप पूर्व गाथाओं में बताकर उनका विपाक लिखते हैं :पढमंमि आडबंधो, दुक्करकिरियओ होइ देवेसु।। तत्तो बहुदुख परंपराओ, नरतिरियजाइसु।।2।। बीए विमाणवज्जो आडयबंधो न विज्जाए पायं। सुखित्तकुले नरजम्म, सिवगमो होई अचिरेण।।3।। अर्थ : पहले द्रव्य धर्म के अधिकारी दुष्कर कठोर क्रिया का आचरण करके देव आयुष्य का बंध करके देवता में पैदा होते हैं। बाद में विषय भोग की तल्लीनता के कारण नर-तिर्यंच आदि दुर्गतियों में बहुत दुःख परम्पराओं को भोगते हैं।।2।। दूसरे भाव धर्म के अधिकारी को वैमानिक देवों के सिवाय नीची कक्षा (भवनपति आदि) के देवता तक का आयुष्य प्रायः बंध नहीं होता। भाव धर्माधिकारी जीव वैमानिक देव होकर सुक्षेत्र और सुकुल में मनुष्य जन्म प्राप्त कर झटपट मोक्षगामी होता है।3।। वर्तमान व्यस्त जीवन शैली में व्यक्ति यदि थोड़ा बहुत धर्म करे, तो वह लक्ष्य भ्रष्ट न होकर शास्त्र मुजब होना चाहिए तभी लाभदायी होगा। आजकल चारों ओर धार्मिक ठगों का वर्चस्व है। इन्हें दूर करने की शक्ति हमारे में नहीं ,पर हम इनसे दूर तो रह सकते हैं। धर्म न करने की अपेक्षा धर्म की भ्रान्ति कहीं अधिक खतरनाक है। आत्मिक दृष्टि विकसित किए बिना ज्ञानी भगवन्तों की कोई बात दिमाग में बैठ पाना संभव नहीं है। पानी में नाव तिर जाती है परन्तु नाव में पानी भर जाए तो उसका डूबना निश्चित है। भगवान का श्रावक भले संसार में बैठा हो पर उसके हृदय में संसार नहीं बैठना चाहिए। संसार सुखों का आकर्षण जब तक नहीं मिटेगा तब तक धर्म की बात करना बेमानी है। सच्चा जैन कभी कीचड़ वाले तालाबों के झूठे शंखों पर नहीं रीझता अर्थात् संसार सुखों में लुब्ध नहीं होता। उसे तो जिनशासन रूपी समुद्र के रत्नत्रय सम्यक् दर्शन-ज्ञान और चारित्र ही अभीष्ट है। हम भी निरर्थक क्रियाओं, आडम्बरी साधनाओं में धर्म का भ्रम तड़ाक से तोड़कर शुद्ध धर्म का शुद्ध भाव से आराधन कर सिद्धिगति को हस्तगत करें। यही शुभेच्छा... जिनाज्ञा विपरीत लेखन के लिए अन्तःकरण से मिच्छामि दुक्कडम् । गुरुदेव ने कहा था अन्याय अनीति या हिंसा आदि से जो भी वस्तु पैसा, सत्ता या और कोई चीज प्राप्त की जाती है, असान्ति पूर्वक संचित की जाती है, वह उस व्यक्ति को ही नहीं बल्कि जिस व्यक्ति के पास वह चीज जाती है, उसकी भी बुद्धि बिगाड़ डालती है। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 165 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमा आत्मा-कर्म - और प्रतिक्रमण निर्मल आनंद पुष्पदंत जैन पाटनी जड़ कर्म और चैतन्य भाव का बने ज्ञानी जन भी प्रमाद के अधीन होकर संमिश्रण मात्र संयोग सम्बंध रूप नहीं, क्षण भर में निगोद में चले जाते है। गुण परन्तु कथंचित् तादात्म्य (अभेद) संबंध स्थान के क्रमानुसार अज्ञान दोष चौथे रूप है। क्षीर और नीर तथा लोहा और गुणस्थान पर चला जाता है जब कि प्रमाद अग्नि परस्पर अलग-अलग होते हुए भी दोष की सत्ता छठे गुणस्थान पर्यन्त रहती जिस प्रकार एक दूसरे के साथ परस्पर है। अनुविद्ध होकर मिल जाते हैं, उसी प्रकार कर्म पौद्गलिक पदार्थ और उसके जीव और कर्म भी परस्पर अनुविद्ध प्रभाव रूप है इनका क्षय केवल मानसिक होकर मिले हुए हैं। जब तक यह मिलन विचारणा या केवल मानसिक क्रियाओं से अलग न हो तब तक दोनों पारस्परिक नहीं होता परन्तु जिन-जिन द्वारों से वे प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकते। जीव के पौद्गलिक कर्म आते हैं, उन सभी द्वारों ऊपर कर्म का प्रभाव है और कर्म के को बन्द कर आने वाले नवीन कर्मों को ऊपर जीव का प्रभाव है। जीव के प्रभाव रोकने और प्रथम के कर्मों का क्षय करने से प्रभावित होकर कर्म के पुद्गल में हेतु उद्यम भी आवश्यक है। यह उद्यम जीव को सुख-दुःख देने की शक्ति ज्ञान और क्रिया दोनों के स्वीकार द्वारा उत्पन्न होती है और कर्म के प्रभाव होता है। सम्यग्ज्ञान से मिथ्या भ्रम दूर से जीव विविध प्रकार के सुख-दुःख, होता है और सम्यक् क्रिया से पौद्गलिक अज्ञान और मोह के विपाकों का कर्म के बन्ध शिथिल होते हैं। पाप क्रिया अनुभव करता है। से जैसे कर्म का बंध होता है उसी प्रकार कर्म पुद्गल से प्रभावित जीव संवर और निर्जरा साधक क्रिया से कर्मों कथंचित् जड़स्वरूप बना हुआ है। उसकी का बंध रुकता है और जीर्ण कर्म नष्ट यह जड़ता अज्ञान स्वरूप और प्रमाद होते हैं तथा अन्तिम कर्म क्षय भी योग स्वरूप है। प्रमाद और अज्ञान यह दोनों निरोध रूपी क्रिया से होता है। दोष जीव पर इस प्रकार चढ़ कर बैठे हैं ज्ञानाभ्यास द्वारा जीव और कर्म का कि मानों आत्मा तत्स्वरूप बन गई है यथा स्थित संबंध समझा जाता है। तप तथा इसमें अज्ञान दोष से भी प्रमाद दोष का संयम रूप क्रियाभ्यास द्वारा पूर्व कर्म कटते हैं बल अधिक है इसीलिए अज्ञान से मुक्त तथा आने वाले नवीन कर्म रुकते हैं। "सम्यग्ज्ञान से मिथ्या श्रम दूर होता है और सम्यक् क्रिया से पौदगलिक कर्म के बन्ध शिथिल होते हैं। पाप क्रिया से जैसे कर्म का बंध होता है उसी प्रकार संवर और निर्जरा साथक क्रिया से कमाँ का बंथ रुकता है और नीर्ण कर्म नष्ट होते हैं तथा अन्तिम कर्म क्षय भी योग निरोध रूपी क्रिया से होता है।" 166 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1501 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्यान के बिना कर्म का क्षय नहीं यह बात जितनी सच्ची है। में जीव का कोई रक्षक है तो वह मिथ्यात्व, अविरति और प्रमाद इन उतनी ही सच्ची बात यह है कि प्रमत्त अवस्था दूर न हो तब तक तीनों की प्रतिपक्षी क्रियाएं ही हैं। उपयोग युक्त क्रिया को छोड़कर दूसरा ध्यान भी नहीं। __मिथ्यात्व से प्रतिपक्षभूत सम्यक्त्व है। वह चतुर्थ गुण स्थान इस काल में और इस क्षेत्र में घृति संहनन आदि के अभाव में प्राप्त होता है। उसका रक्षण करने वाली क्रिया देव-गुरु-संघ की में यदि केवलज्ञान और मुक्ति है ही नहीं और उसके कारण रूप भक्ति और शासनोन्नति की क्रिया है। अविरति की प्रतिपक्षी विरति अप्रमत्त आदि गुण स्थानों की विद्यमानता भी नहीं ही है तो अपनी है जिसके दो प्रकार हैं। आंशिक और सर्वथा। आंशिक को देश भूमिका के योग्य आराधना में ही मग्न रहना, दृढ़ रहना और उससे विरति और सर्वथा को सर्व विरति कहते हैं। देश विरति का रक्षण चलित न होना ही वास्तविक मुक्ति का मार्ग है। दोष की प्रतिपक्षी करने वाला गृहस्थ के षट् कर्म और बारह व्रतादि का पालन है। क्रियाएं ही उन दोषों का निग्रह कर सकती हैं। सर्वविरति का रक्षण करने वाली साधु की दैनिक समाचारी और जीव के उत्क्रान्ति मार्ग के सोपान के रूप में शास्त्रों में चौदह प्रतिक्रमणादि क्रिया है। प्रमत के लिए क्रिया ही ध्यान है जहां तक प्रकार के गुणस्थानों का वर्णन है। जहां तक जीव मिथ्यात्व दोष के प्रमाद है वहां तक प्रतिक्रमण की अवश्यकता है। प्रमादवश अपना अधीन है, वहां तक वह प्रथम गुण स्थान से ऊपर नहीं जा सकता। स्थान छोड़कर परस्थान में पहुँचा हुआ जीव स्वस्थान में लौटता है जहाँ तक अविरति दोष के अधीन है वहां तक चौथे गुणस्थान से उसे प्रतिक्रमण कहते है। प्रतिक्रमण चरित्र का प्राण है। इन क्रियाओं ऊपर नहीं चढ़ सकता, जहां तक प्रमाद दोष के अधीन है वहां तक के अवलंबन बिना सम्बन्धित गुणस्थान टिक नहीं सकते। छठे गुणस्थान से ऊपर नहीं बढ़ सकता। जीव का अधिक से अधिक (मोह) वासना का समूल नाश बारहवें गुणस्थानक के काल प्रमत्त नामक छठे गुणस्थान या उससे नीचे के गुणस्थानों में ही सिवाय हो नहीं सकता। दसवें गुणस्थान तक लोभ का अंश रह बीतता है। वर्तमान में काल, क्षेत्र और जीवों की घृति तथा संघयण जाता है। ग्यारहवें गुणस्थान में भी उसकी सत्ता है। मनोनाश केवल के दोष के कारण छठे और सातवें गुणस्थान के ऊपर के गुणस्थान तेरहवें गुणस्थान में हो सकता है और वही जीवन्मुक्ति दशा है। नहीं माने जाते। सातवें गुणस्थान का सम्पूर्ण काल एकत्रित किया विदेह मुक्ति तो उससे भी आगे बढ़ने के बाद चौदहवें गुण स्थान के जाए तो भी वह एक अन्तर्मुहूर्त से अधिक नहीं बनता। इस स्थिति अंत में होती है। सामायिक मंडल (श्रावक) लुधियाना ने आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी की देवलोक गमन अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष में वर्तमान पट्टधर आचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि जी की निश्रा में 84 सामायिक/प्रतिक्रमण करने के लिये 12-25 वर्ष आयु के बच्चों को आहवान दिया था। उसमें बच्चों ने 84 सामायिक-प्रतिक्रमण गुरुदेव की पुण्य तिथि तक पूरे किये हैं। सामायिक मंडल की ओर से अम्बाला में आचार्य रत्नाकर सूरि की निश्रा में सामायिक के वस्त्र एवं नकद राशि देकर पुरस्कृत किया गया। NNY देव जैन आयु 15 वर्ष सुपुत्र श्री ज्ञान चंद विनोद कुमार जैन (जंडियाला वाले) लुधियाना पुलकित जैन आयु 10 वर्ष सुपुत्र श्री ज्ञान चंद भूषण कुमार जैन (जंडियाला वाले) लुधियाना विनय जैन आयु 21 वर्ष सुपुत्र श्री ज्ञान चंद विनोद कुमार जैन (जंडियाला वाले) लुधियाना विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 167 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युगवीर वल्लभ का राष्ट्र, समाज एवं धर्म की उन्नति में योगदान -०-० 11010 हमारा राष्ट्र भारतवर्ष पुरानी रूढ़िवादी धार्मिक, रीतिरिवाजों और अंग्रेजों की मानसिकता की गुलामी से जकड़ा हुआ था। भारतीय संस्कृति को रौंदा जा रहा था। इस सभी से उक्त होने के लिये भारत में कई प्रकार के आंदोलन एवं जाग्रति चेतना लिये प्रयत्न हो रहे थे। ऐसे समय में आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज का प्रादुर्भाव हुआ वे भी इन कुरीतियों, दासता की बेड़ी से मुक्त होना चाहते थे। भगवान महावीर के अहिंसा सिद्धान्त को बढ़ावा देते हुए समाज की रूढ़िवादी प्रथाओं को हटाना चाहते थे, ऐसे विचारों से ओतप्रोत एवं मार्गदर्शन से प्रभावित जैन दीवारों को तोड़ते हुए क्रांतिवीर की तरह से बढ़ते रहे। अपनी लेखनी धर्म के अग्रिम श्रावक श्रीमद् राज चन्द्र का महात्मा गांधी से सम्पर्क हुआ, द्वारा चरित्रता की शिक्षा दी, मानव मूल्यों को समझाया और अज्ञान के आचार्य जी के विचारों का गांधी जी पर बड़ा प्रभाव पड़ा, अहिंसा का अंधकार को दूर करने का प्रयास किया। उनका अपना यह कथन था कि महत्व समझा, जिसको गांधी जी ने अपने जीवन में उतारा और भारत 'न मैं जैन हूँ न बौद्ध , न वैष्णव हूँ न हिन्दू , न ही मुसलमान-न ईसाई हूँ, स्वतंत्रता के आंदोलन को तीव्र गति प्रदान करी। मैं तो वीतराग देव परमात्मा को खोजने के मार्ग पर चलने वाला मानव हूँ, श्री वल्लभ सूरि जी आधुनिक भारत के उन संतों में हैं, जो न यात्री हूँ। इसी भावना के साथ मानव को धर्म की प्रेरणा देते हुए कुरीतियों केवल दार्शनिक व्याख्या करने वाले विचारक थे, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन को दूर करने का प्रयास करते रहे, जिससे हिन्दू, सिक्ख, ईसाई, जैन, में सक्रिय भूमिका निभाई, देश की ज्वलंत समस्याओं को गांधी जी, मदन पारसी आदि सभी अमीं के पालन करने वाले श्री गुरुदेव के चरणों में श्रद्धा मोहन मालवीय, मोती लाल नेहरू और अनन्य देश भक्तों के विचारों से से अपना शीश नमाते थे। अवगत होकर देखा-समझा और कार्य को व्यावहारिक रूप में उपाय किये, श्री वल्लभ गुरु का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि जो भी व्यक्ति स्वयं पैदल पदयात्रा करके पाकिस्तान में स्थित लाहौर, गजरांवाला. एक बार उनके सम्पर्क में आ जाता था, वह उनके प्रेम से अभिभूत हो सियालकोट इत्यादि शहरों गांवों और पंजाब जैसी जगह पर प्रेम की वाणी जाता था। उनमें समन्वय के प्रति प्रखर निष्ठा थी. वे विरोधियों के उत्तर द्वारा चेतना पैदा करी। उन्होंने खादी के उपयोग पर बल दिया, धर्म की भी समन्वय और शांति से दिया करते थे, साथ ही वे कहा करते थे कि रूढ़िवादिता पर प्रहार किया और हिन्दी मातृभाषा सीखने पर जोर दिया सभी धर्मों के मानने वाले सभी भारत की संतान हैं और प्रत्येक भारतवासी स्वयं गुजराती भाषी होते हुए भी हिन्दी भाषा में काव्य एवं लेखों द्वारा का धर्म है कि सेवा ही सच्चा धर्म है, सच्ची नमाज और सच्ची गुरु दक्षिणा पाखंड और अंधविश्वासों पर कठोर प्रहार किया,मजह के भेदभाव की है। तत्कालीन रेलमंत्री श्री गुलजारी लाल नंदा ने अपने उद्गार प्रकट किये थे। जैनाचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी भारतीय संत परम्परा के एक दिव्य रत्न है, जिन्होंने अधिक से अधिक लोगों की भलाई उनको शिक्षित करने और उनको सुखी बनाने के लिये आजीवन प्रयास किये। उन्होंने विद्यालय खुलवाने, हिन्दु-मुस्लिम एकता की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। श्री विजय वल्लभ सूरि जी जैसे महापुरुष विश्व मंगल के लिए इस वसुन्धरा पर अवतरित होते हैं, अपने समस्त जीवन को लोक कल्याण हेतु समर्पित करते हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अहिंसा, सत्य, संयम और तप से प्रभा पुंज के समान था, ऐसे महापुरुष ने राष्ट्र और समाज को नई वी.सी. जैन 'भाभू' दिशा दी, धर्म के मर्म को समझाया और उस पर चलने की प्रेरणा दी। भूतपूर्व प्रधान श्री आत्मानंद जैन महासभा ____पंचामृत : श्री वल्लभ सूरि जी ने मानव विकास के लिये पाँच सूत्री विजय वल्लभ 168 संस्मरण-संकलन स्मारिका DO Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० 0 कार्यक्रम निर्धारित किये थे, जिसे वे पंचामृत कहा करते थे (1) मानव का सर्वांगीण विकास (2) शिक्षा प्रचार (3) समाज सेवा (4) राष्ट्र सेवा (5) साहित्य लेखन। आचार्य जी ने राष्ट्र के निर्माण में सहयोग देते हुए समाज के उत्थान के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझते हुए उन्होंने मानव के नैतिकता और आध्यात्मिक गुणों से सम्पन्न करने के लिये धार्मिक व नैतिक शिक्षा का उपदेश दिया था। उनका कहना था कि राष्ट्र व समाज को सशक्त करना है, तो उसे व्यसनमुक्त होना पड़ेगा। तम्बाकू, मदिरापान, आमिष भोजन हेरोईन आदि नशे में मदहोश युवापीढ़ी को आत्मा में बस रही मनमोहन की मुरली के स्वर की नितान्त आवश्यकता है। इन विचारों को आगे बढ़ाते हुए उन्हीं के क्रमिक पट्टधर आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी महाराज ने लगभग 12 वर्ष तक पैदल चलकर गुजरात के विभिन्न गांवों में 7 लाख परमार क्षत्रियों को जैन बनाकर व्यसनमुक्त करा है। हिंसक से अहिंसक बनाया है, आर्थिक स्थिति से कमजोर प्राणियों के खाने पीने, शिक्षा आदि का प्रबन्ध किया है जो कि हम सभी के लिये अनुकरणीय है। 101101011010 समाज के उत्थान के लिये नारी की उन्नति पर अत्यधिक ज़ोर दिया, उनका कहना था कि नारी को बराबर पुरुष के समान सम्मान मिले और किसी भी सामाजिक कार्य में बराबर का स्थान देने का उद्घोष किया, इसी क्रम में आचार्य श्री ने पहली बार जैन साध्वी महत्तरा श्री मृगावती जी महाराज को जनता को प्रवचन देने की आज्ञा प्रदान की, आज तो सभी साध्वियों को प्रवचन देने का प्रावधान है। गुरुदेव सामान्य व्यक्तित के प्रति अत्यन्त वात्सल्य भाव रखते थे, उनके समक्ष उनके चरण कमलों में राजेश्वर श्रीमंत शांति व आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु आते ही थे, मगर दुःखी पीड़ित व्यक्ति विपुल संख्या में आते थे। आचार्य श्री जन्मजात कवि थे, उनका हृदय करुणा स्त्रोत से समृद्ध था, उनका चरण स्पर्श कर सुख प्राप्त करते थे, साथ ही करणा भाव से उनके दुःखों का निवारण करते थे। उन्होंने एक बार एक सभा में कहा "हमें शोषणहीन समाज की रचना करनी है, जिसमें कोई भूखा-प्यासा नहीं रहने पावे, उन्होंने राजेश्वर समर्थ लोगों से कहा कि तुम्हारी लक्ष्मी ये उनका भी हिस्सा है, फिर भी वे भूखे हैं और भूखा कौन नहीं अपराध करेगा ? चोरी, डकैती, झूठ और असत्य आवरण करेगा। यदि इन्हें इन अपराधों से बचाना चाहते है तो उनके लिये रोजी-रोटी की व्यवस्था करनी होगी। उनके उपदेश से प्रेरित होकर धनवानों ने उदार मन से सहयोग दिया, जिसके फलस्वरूप उद्योगशालाएं खुली, शिक्षालय स्थापित हुए, अकाल के समय भी समर्थ लोगों ने भारत के कोने-कोने में थन से, धान्य से, वस्त्रों व दवाईयों इत्यादि से मदद करी थी। पैसा फंड : गुरुदेव ने समाज की उन्नति के लिये "पैसा फंड योजना" बनाई थी। इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक परिवार को 'एक पैसा' प्रतिदिन उत्कर्ष फंड में देना चाहिए। इसका उद्देश्य यही था कि साधारण है 10. 101 जनता में समाज के प्रति रूचि उत्पन्न हो और बिना किसी भार के समाज की उन्नति में अग्रसर हो। इस फंड में काफी धन एकत्रित हुआ और हो रहा है और इस फंड से आज तक रोगियों, विधवाओं, विद्यार्थियों आदि को सहायता दी जाती है। दहेज प्रथा : गुरु वल्लभ ने समस्त समाज के स्वस्थ निर्माण का प्रयास किया। समाज में दहेज का आदान-प्रदान कैंसर की भांति है-जो समाज को अजगर की भांति निगल रहा है। पराए और बिना मेहनत के धन पर गुलछर्रे उड़ा रहे युवकों के लिए यह बेहद शर्म की बात है। इस बात का पंजाब, राजस्थान और गुजरात के लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा और आज इस प्रथा का पूर्ण रूप से रोक लग गई है, जिसका श्रेय आचार्य गुरु वल्लभ पर है। शिक्षा प्रचार : आचार्य विजय वल्लभ सूरि जी महाराज का मानना था कि बिना शिक्षा के मानव अपनी शक्तियों का विकास नहीं कर सकता है-इसी लक्ष्य को लेकर अपने महान् गुरुदेव श्रीमद् आत्माराम जी महाराज के मिशन को पूर्ण करने के लिये शिक्षा प्रसार के लिये जगह-जगह गुरुकुल, शिक्षालय स्थापित किए बम्बई में महावीर विद्यालय फालना, वरकाना, गुजरांवाला, जगडिया, सूरत, अम्बाला एवं अनन्य स्थानों पर खुलवाये। विजय वल्लभ आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे, उनकी अभिलाषा थी कि "जैन विश्वविद्यालय" की स्थापना हो। जोकि आज तक हम सभी के कानों में गूंज रहे हैं-मगर यह सपना कब पूरा होगा ? आज समाज आचार्य विजय वल्लभ गुरु के उपकारों को नहीं भूल सकता, जिसने राष्ट्र की एकता, शिक्षा प्रसार, दहेज प्रथा उन्मूलन धर्म के प्रति अनेक कार्य किये जिसका ऋण जैन समाज नहीं भूल सकता, ऐसे गुरुदेव- जो जन्मजात ईश्वरीय काव्य प्रतिभा के कवि -सम्राट थे। वे काव्य का निर्माण ही नहीं करते थे बल्कि काव्य स्वतः उनके मन से निकलकर प्रवाहित होता था। उनके हृदय में करुणा स्त्रोत निर्झर की तरह से बहता था, जो भी सम्पर्क में आया वह निर्मल हो गया। ऐसा उनका जीवन भावमय था। सामाजिक-सांस्कृतिक क्रांति के जयघोष को देश के कोने-कोने में फैलाने हेतु इस युगदृष्टा ने हिन्दी भाषा को प्राथमिकता दी और कहा हिन्दी जिनवर वाणी भारती है। समूचे देश की भलाई हिन्दी द्वारा ही हो सकती है। हिन्दी के कवि और मनीषि भारत के पुनर्जागरण एवं सांस्कृतिक क्रांति हेतु जीवनभर प्रयत्नशील रहे। अपनी कविताओं द्वारा व्यसनमुक्त समाज को मुक्त करना, शैक्षिक शिक्षा प्रसार इत्यादि सामाजिक एकता स्थापित करने की मंगल कामना का उद्घोष किया। इन्हीं विचारों पर आज प्रत्येक समाज व देश अग्रसर होकर कार्य करें, निस्संदेह हमारा भारत देश उन्नति कर सकता है, विषमताएं दूर हो सकती हैं। खुशहाली एवं मानसिक शांति प्राप्त हो सकती है। सिर्फ हमें उन्हें अपने जीवन में अपनाना है और उनके बताए मार्ग पर चलें तो हम सभी "विजय वल्लभ" के सच्चे अनुयायी कहलाने योग्य होंगे। विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 169 Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विराट संसार का प्रांगण में आज पर्यत अनेक विचारधाराएं तथा दार्शनिक चिन्तन उदयमान होता रहा और पुनः काल के गर्भ में अदृश्य हो गया। इनमें से कुछ ऐसी विशिष्ट शांतिप्रद एवं विकासशील सत्य विचारधाराएँ समय-समय पर प्रवाहित होती रही हैं, जिन से मानव, सभ्यता एवम् संस्कृति में सुख-शांति, आनंद मंगल, कल्याण एवम् अभ्युदय का विकास हुआ है। पंडित सोहन लाल शास्त्री जी के अनुसार- "सही विचारधाराओं में जैन दर्शन, जैन तत्त्वज्ञान एवम् जैन धर्म की आध्यात्मिक सटीकता अपना गौरवपूर्ण स्थान रखती है। जैन तत्त्वज्ञान ने मानव-धर्म के आचार-क्षेत्र और विचार - क्षेत्र दोनों क्षेत्रों में मौलिक क्रान्ति की है।" ऐसे सर्व-कल्याणकारी जैनाचार्य विजय वल्लभ सूरि जी का समाजोन्मुख होना स्वाभाविक एवम् प्रासांगिक है। युगपुरुष गुरुदेव विजय वल्लभ विश्व कल्याण हेतु अवतरित ऐसे महामानव थे, जिनका उदय मानवता, धर्म तथा समाज विकास की श्रेष्ठतम भावना के विकास के लिए हुआ था। श्री वल्लभ गुरुदेव की जन्मस्थली भले ही बड़ोदरा रही हो लेकिन उनकी कर्मस्थली गुजरात के उपरांत मुम्बई, राजस्थान तथा पंजाब तक फैली हुई है। पू. गुरुदेव उदारमना, उदारचेत्ता एवम् व्यापक 170 समाजाभिमुख संत आचार्य विजय वल्लभ सरीश्वर जी सकारात्मक अभिगम युक्त दृष्टि लिए हुए थे। आप जाति-धर्म से परे आबालवृद्ध, नर-नारी सबके पूजनीय श्रद्धेय संत रहे हैं। महामानव का प्राकट्य लोक कल्याण के लिए ही जमीं पर होता है। श्रद्धेय वल्लभ गुरुदेव ने अपना जीवन समस्त लोक कल्याण की दिशा में समर्पित किया। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अहिंसा, संयम और तप का प्रभापुंज है। इस नयी दृष्टि से समाज में नई चेतना का उदय हुआ। भारतवासियों को स्वराज की आध्यात्मिक परिभाषा का बोध हुआ । अहिंसा की विधेयात्मक भूमि का ज्ञान हुआ। दास्ता की लोह शृंखला को तोड़ने की शक्ति का संचार हुआ। गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी के समतापूर्ण दृष्टिकोण ने जाति एवम् साम्प्रदायिक विद्वेष को समाप्त किया। आपादग्रसित जीवों को दुःखों से मुक्त करने के लिए लोगों के मन में सोई हुई मानवता को जगाया। इस युगवीर संत ने राष्ट्रीय अखण्डता एवम् एकता के लिए सर्वधर्म समभाव तथा सद्भाव का मंत्र साधर्मिकों एवम् अन्य देशवासियों को दिया। उन्होंने भारत को पश्चिम की भोगवादी विलासिता पूर्ण सभ्यता एवम् संस्कारों से मुक्त होने का संदेश अपने व्याख्यानों एवम् साहित्य के द्वारा दिया। उनके मतानुसार 'विश्वमैत्री' ही भारतीय संस्कृति की चेतना है, अहिंसा उसकी प्राणवायु है, समन्वय उसका तन है, शांति उसका जीवन संगीत है । विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका डॉ. रजनीकान्त एस. शाह करजण (गुजरात) अतः पाश्चात्य भौतिक संस्कृति का त्याग कर आध्यात्मिक तथा त्याग पूर्ण भारतीय संस्कृति को अपनाकर ही वह जीवित रह सकती है। अपनी संस्कृति से कटकर राष्ट्र का शिवम् नष्ट हो जाता है तथा वह शव मात्र रह जाता है। इसीलिए वल्लभ गुरुदेव ने राम-रहीम, अल्लाह - ईश्वर, जिनेश्वर और शिवशंकर की एकता का शंखनाद किया। उन्होंने कहा कि प्रभु के नाम अलग-अलग होते हुए भी उसका स्वरूप राग-द्वेष रहित वीतराग है। अतः धर्म के नाम पर लड़ना अधर्मपूर्ण एवम् अनुचित है। गुरु वल्लभ ने धर्म- धर्म, मानव -मानव, संप्रदाय-संप्रदाय तथा राष्ट्र-राष्ट्र के बीच एकता स्थापित करने का संदेश दिया। प्रखर विद्वान जवाहर लाल पटनी के मतानुसार, “गुरु वल्लभ ने राम-रहीम, जिनेश्वर और श्रीकृष्ण, बुद्ध और वीतराग एक ही ईश्वर के विविध नाम बताकर धर्म सद्भाव का प्रचार किया। सप्त व्यसन मुक्ति का संदेश : श्री वल्लभ गुरुदेव ने विश्वशांति, मानव और जीवमात्र के कल्याण तथा सुख-समृद्धि के लिए व्यसन मुक्त समाज की कल्पना की है। उन्होंने अपनी सप्त व्यसन त्याग पदावली में संसार में दुःखों के लिए व्यसनग्रस्त समाज को जिम्मेदार बताया है। प्रबुद्धचेत्ता समाज इस बात को लेकर व्यथित है कि वैभवी होटलों में शराब पान के Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ कैबरे और डिस्कोडांस की मदहोशी में डूबी देश एवम् संसार की पीढ़ी से क्या उम्मीद की जा सकती है ? क्या वह भारत और संसार को आतंकवाद, भ्रष्टाचार, देशद्रोह तथा अमानवीय दुष्कर्मों की नागचूड़ से मुक्त करा सकेगी ? समाज का सम्भ्रात वर्ग भी शराब, जुआ आदि का शिकार है, जिससे समाज अशांत और सौंदर्यहीन हो रहा है। शराब आदि व्यसनों से देश की तेजस्विता विनष्ट हो रही है। आचार्य वल्लभ सूरि जी का काव्य मानववाद की भावना से अनुप्राणित है। आपने स्वस्थ्य समाज निर्माण के लिए व्यसनमुक्त समाज की परिकल्पना की है। उन्होंने सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए भोग को अस्वीकार और त्याग को अपनाने की बात को प्रतिपादित किया है। गुरुदेव विजय वल्लभ जी ने अपने काव्य में त्याग पर आधारित भारतीय संस्कृति का प्रतिपादन किया है। उनका कहना है, “भारतीय संस्कृति का मेरुदण्ड त्याग है, भोग नहीं । परमार्थ उसकी आत्मा है, सेवा उसका शरीर है। हमारी भारतीय संस्कृति समन्वय प्रधान संस्कृति है।” उन्होंने समाज के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए सप्त व्यसन त्याग की बात पर जोर दिया है। व्यसन मुक्त समाज और राष्ट्र ही प्रगति कर सकता दान की महत्ता : पू. गुरुदेव वल्लभ ने लौकिक एवम् 'अलौकिक जीवन को समन्वित करने के लिए दान की महत्ता का प्रकाशन किया है। उनके महाकाव्यों के चरित्रनायक अपने विपुल राजवैभव को छोड़ने से पूर्व वर्षीदान करते हैं तत्पश्चात् मोक्ष के कल्याणकारी पथ पर प्रस्थान करते हैं। दीक्षा अंगीकार करने के 50 पश्चात् जीवों के कल्याण के लिए अपना जीवन दान कर देते हैं। आचार्य देवेश श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने वैष्णव दर्शन के ज्ञान, भक्ति और धर्म का जैन दर्शन की रत्नत्रयी- सम्य-ज्ञान, सम्यग् दर्शन एवं सम्यग् चारित्र में समन्वय किया। उन्होंने विश्व कल्याण हेतु समन्वय दृष्टि ' अनेकान्त दृष्टि' को अपनाने की शिक्षा दी है। गुरुराज विजय वल्लभ सूरि जी की समाजाभिमुखता 'सप्त व्यसन त्याग', बारहमासा भाग-1 और 2', 'श्री द्वादश पूजा', 'श्री चारित्र पूजा', 'श्रावक - करणी' 'स्त्री की पति को प्रार्थना', स्त्री की शील विषयक रक्षा' इत्यादि रचनाओं में नैतिकता, समाज सुधार, मानवोत्कर्ष, राष्ट्र एवं संसार का सुख, समृद्धि एवं शांति आदि विषयों को आलोकित करती है। उदाहरण "दण्ड अनर्थ सदा परिहरिये सात जगए चंदोबा धरियै, पानी, दही खुला नहीं रखियै । ब्रह्मचर्य को धरिये, दिवस वरिम पच्चक्खान करी मनदंभ सदा परिहरियै । षट् आवश्यक संध्या केरे करिये पाप को हरिये । सागारि अनशन कर मन में मंद अनि परिहरिये।" वल्लभ काव्य सुधा से “अनुपम सीख सुनो नारी, निशिदिन मन वच काय करो पति की सेवा उरधारी। सुंदरी स्नेह हृदयवारी, परशय्या पर पाँव न धरना परम हितकारी न पर घर निर्लज्ज हो जाना। घर-घर फिरु नार शरम दिन नित फरमान ।" 'वल्लभ काव्य सुधा'। विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका पू. गुरुवर की रचनाओं में नवजीवन निर्माण के स्वर्णिम सूत्र हैं जिन से व्यक्ति और समाज को नई दिशा, नप्योत्साह एवम् नप्यप्रकाश मिलता है। आरोग्य विषयक आपने सीख देते हुए कहा “जो चाहे शुभ भाव से, निज आतम कल्याण । तीन सुधारे प्रेम से, खान-पान औ' परिधान ।" श्रद्धेय गुरु वल्लभ जी अलंकार मोह को सामाजिक अभिशाप बताते हैं। मध्य वर्गीय गृहस्थ धन के अभाव वश जेवर नहीं बनवा पाता। आभूषणों के मोह के कारण समाज में कलह, अशांति और दहेज जैसी बुराईयां फैलती हैं। जीवन भी विकृत और दूषित होता है। श्रीमद् वल्लभ गुरुदेव ने व्यापारियों को नीतिवान बने रखने की सीख देते हुए कहा है : " कूट लेख लिखिए नहीं, मिथ्या उपदेश तौले तौल-माप कूड़ा नहीं करिए, सत्यश्रुत को पाल" जुआ, मांस भक्षण, मदिरापान, परस्त्री गमन, वेश्या गमन, चोरी आदि दुर्गुणों से बचने तथा पर-स्त्री, पर-पुरुष से दूर रहने की बात मानव समाज को समझाई है। जुआ जुआ बड़े दुःख को बुलाता है, बुद्धि : को खराब करता है, परिवार को शोक संतप्त बनाता है। लोग अथम करते हैं और समाज में बेइज्जती होती है । यह इस लोक का सबसे बड़ा दोष है। "अति आपदा का ऑक है, खेले कुबुद्धि लोक है। मैला करे कुल शोक है, अधम- अधम कराई रे अपकीर्ति होय दोष रे, 171 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इहलोक में यह दोष रे।" मांसाहार : मात्र जिव्हा तृप्ति के लिए मांसाहार करना ठीक नहीं होता। निर्दोष जीव की हिंसा तो पाप है। अन्य के मांस से स्व-पोषण करने वाला अधम होता है। राक्षसवत् निर्दयता आती है। जीव हिंसा करने से जीव को नरक मिलता "हिंसा जीवों की करने से जीव नरक में जा गिरता। पर मांस से अपने मांस का नीच पुरुष पोषण करता। निर्दयी इस सम नहीं, लोक में निधुण नर वह कहलाता। समयमात्र तृप्ति के कारण पर के प्राण हरण करना राक्षस सम तिस के हिये में रहे निरंतर निर्दयता।" मदिरापान : मदिरापान बुरी लत है। मदिरा सेवी को कृत-अकृत का विवेक नहीं रहता, सूअर की तरह गंदा होकर गलियों में घूमता है। बेटी को बहू के रूप में देखता है। अर्थात् वह विवेकहीन हो जाता है। "नहीं बूझता कृत्याकृत्य को मदिरा पाने हार जी, जिम सूअर गंदगी में उठता-फिरता गली मंझार जी, पुत्री को वधू सम देखे, स्त्री समगान निहार जी।" वेश्या गमन : वेश्या गमन शारीरिक, आर्थिक, मानसिक एवं पारिवारिक संकटों को बुलाता है। अन्य बुराइयों को भी साथ लाने वाला, अपयश फैलाने वाले दुर्गुण है। “निर्लज्ज वेश्या के वश होकर निज गुण दे उतार परभव नरक के दुःख सहना, रोवै जारो जार अधिक जबरदस्त हैं। ब्रह्मचर्य आतम गुरु वल्लभ हैं _आचार्य प्रवर वल्लभ गुरुदेव ने व्यसन जग तारणहार।" मुक्त राष्ट्र की परिकल्पना की है। उन्होंने राष्ट्र चोरी : जिसे चोरी की लत लग जाती है, वह एवं समाज को बेड़ियों से मुक्त करने के लिए झूठ, हत्या एवं बदमाशी से कभी नहीं डरता। व्यसन मुक्त पराक्रमी नागरिकों की भूमिका पर चोरी पकड़ी जाने पर दण्ड एवं अपयश मिलता बल दिया था। समाज की स्वस्थ संरचना के लिए सच्चरित्र की महत्ता बताई। गुरु वल्लभ "चोरी करने का व्यसन जिस जीव को ने स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता पश्चात् व्यसन लग जाये, मुक्ति और सच्चरित्र को विशेष महत्त्व दिया झूठ, खून, बदमाशी से खौफ जरा नहीं है। इस प्रकार हमारे गुरु वल्लभ नवयुग खाय, निर्माता राष्ट्र के महान् लोकनायक थे। चोरी से इस लोक में होय राज्य का दण्ड, प.पू. वल्लभ गुरुदेव का जीवन बदनामी अतिपाय के, पराभव नरक मानवता से मंडित था। उनके मंत्रव्यानुसार, प्रचण्ड।" मानववाद सामूहिक सामंजस्य एवं सार्वभौम परनारी सेवन : जो परनारी का संग-सेवन ध्येय का अग्रदूत है। वह मानव को व्यक्तिगत करता है वह मूर्ख है। परनारी विषवेल बराबर संकुचितता से ऊपर उठाकर परस्पर स्नेह, है, परनारी का कभी विश्वास नहीं करना सौहार्द के लिए प्रेरित करता है। पू. गुरुदेव ने चाहिए। सत्संग के सात्विक प्रभाव की प्रतिष्ठा करते “परनारी विषवेल है, हुए कहा है, सत्संग का अच्छा और व्यापक नहीं जिसका विश्वास प्रभाव मानव के जीवन पर पड़ता है। चाहत मूर्ख अधम नर, शिक्षा (ज्ञान) के अनन्य पक्षधर : पू. वल्लभ तिस से सुख की आस" गुरुदेव ने नयी पीढ़ी को संस्कार सज्जित करने परपुरुष सेवन : स्त्री को परपुरुष से बचना के लिए शिक्षक एवं शिक्षा की भूमिका को चाहिए। परपुरुष संगति से स्त्री को हर तरह महत्त्वपूर्ण माना है। सत् साहित्य सृजन का का नुक्सान होता है। लाभ बालकों पर खास रूप से पड़ता है। इसके इस प्रकार गुरुवर विजय वल्लभ ने । अध्ययन से बालक पर अच्छे संस्कार पड़ते 'व्यसन से राष्ट्र को बचाईए' नामक निबंध में हैं। कहा है, सप्त व्यसन राष्ट्र के भयानक शत्रु हैं। पू. गुरुदेव ने शिक्षकों को संदेश देते इन व्यसन शत्रुओं का हमारे राष्ट्र पर चारों हुए कहा कि “आप बालकों को ऐसी शिक्षा तरफ से आक्रमण हो रहा है। सामान्य शत्रु तो दीजिए कि जिससे देश एवम् समाज समृद्ध हो शरीर को खत्म करता है किन्तु ये व्यसन हमारे सके। उन्हें वेतन भोगी मात्र न रहते हुए राष्ट्र के तन-मन-बुद्धि और आत्मा पर घात गुरुपद को सुशोभित करना है। करते हैं और उन्हें गुलाम बना देते हैं। ये पू. गुरुदेव नारी शिक्षा के भी पक्षधर व्यसन इन्सान का सर्वनाश कर देते हैं इसलिए थे। वे मानते थे कि यदि माँ पढ़ी लिखी होगी शत्रु राष्ट्रों की अपेक्षा ये व्यसन रूपी शत्रु तो समाज भी पढ़ा लिखा होगा। पढ़ी-लिखी 172 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Fde Private & Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। वे वृक्ष को प्राणीमात्र का दोस्त समझते थे। सुरक्षित राष्ट्र के लिए वन एवं जीव सृष्टि को सुरक्षित करने की बात पर जोर देते थे। संक्षेप में, गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी की एक महान् मानवतावादी संत होने के नाते सदा काल प्रासांगिकता बनी रहेगी। माँ अपनी संतान को सत्संस्कार देती है। पू. स्वतंत्रता आंदोलन के उपरांत अछूतोद्धार का . गुरुदेव क्रांतिकारी विचारधारा रखते थे। संदेश भी अपने व्याख्यानों में दिया। वे मानते ने प्रत्येक कान तक धर्म को पहुंचाने के थे कि उच्च कुल में जन्म लेने मात्र से कोई लिए ध्वनिवर्धक यंत्र का उपयोग किया तथा महान् नहीं बन जाता। मनुष्य अपने कर्म एवं साध्वी जी भगवंत को वंदना करने का आदेश । संस्कारों से महान बनता है। धर्मप्रेमी को श्रावकों से किया क्योंकि साध्वी जी माता चाहिए कि वह जड़ता, रूढ़ियों, अन्याय आदि समान हैं। पू. गुरुदेव ने साध्वी जी को पाट का विरोध करें। पू. गुरुदेव वर-कन्या विक्रय, पर बैठकर व्याख्यान देने की इज़ाजत एवं अनमेल विवाह, दहेजप्रथा को असहय और आग्रह किया। इन सब बातों का फल यह है अनुचित मानते थे। बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह कि नारी सम्मानित एवं जागृत हुई है। आदि समस्याओं को भी आड़े हाथों उन्होंने पू. गुरुदेव महात्मा गांधी जी के लिया है। विचारों से प्रभावित थे। उन्होंने न सिर्फ खादी । _ पू. वल्लभ गुरु विविध प्रदूषणों से को अपनाया, औरों को भी प्रेरित किया। प्रदूषित पर्यावरण से सख्त नाराज़ थे। उन्होंने उन्होंने खादी में देश सेवा और देश प्रेम देखा। पर्यावरण के लिए वृक्षों की महत्ता को समझाया भक्ति के भाव-तरंग ! आत्मगुरु से रो रो कर संयम का धन माँगने वाले धर्मवीर ! सच बता दो नेत्र-निर्झरों से बड़ौदे की पावन भू को आप्लावित क्यों किया था ? क्या धर्मवाटिका को सींचने का यह प्रथम प्रयास था ? या मानवमात्र को शासनरसिकता के पाश में बाँधने का यह अश्रु निर्मित पुण्य रज्जुबन्धन था ? या गुरुचरण-प्रक्षालनार्थ प्रथम प्रयास था ?या भक्तिमाला के मौक्तिकों का पानिपपूर्ण आभास था ? सशैवला पदिमनी को निर्मला कौन कहेगा। धूम्रोत्पादिका दीपशिखा को निर्धूमा कौन कहेगा ?पर प्रतिबिम्बग्राहिणी रत्नावली को उज्ज्वला कौन कहेगा ?शशांकधारिणी मयंककला को विमला कौन कहेगा ?सद्यः परिम्लानता प्राप्त कुन्दमाला को धवला कौन कहेगा ? परन्तु हे देव ! तुम्हारी चरित्ररूपी चादर पर एक भी धब्बा नहीं। क्या यह आपकी साधना का महाघ नहीं। बाल-ब्रह्मचारी आपकी जय हो। _कितनी वृद्धवय थी और कितनी सेवा की उमंग। नवयुवकों को लजाती थी आपकी आत्मिक वीरता। नाथ ! बम्बई की ओर विहार करते समय वृद्धत्वापन्न चरण-कमलों को पृथ्वी पर कैसे रखा था ? अथवा पद्मोपम मानकर पृथ्वी ने ही उन्हें अतिमृदुता से संभाल लिया था। आत्मगुरु के पैगाम को आसमुद्र फैलाने वाले योगी। अपनी वृद्ध काया पर तो दया करते। अडिग कर्मयोगी ! मध्यम वर्ग को समर्पित कर दिया वह बूढ़ा शरीर भी। दधीचि ! भक्तों की प्रार्थना न मानी। मोहमयी (बम्बई) नगरी पहुँच गए। वहाँ किसने मोह लिया गुरुदेव। मध्यवर्ग की ममता ने ? नर से नारायण बनने के लिए वहीं योगनिद्रा में रम गए। वल्लभ से बढ़कर विश्ववल्लभ बन गए। अमर रहो-भक्त-मन-मानस-विहारी परमहंस । गुरुदेव शिरोमणि ! जय हो ! आपकी जय हो !! तुम्हारा ही "राम" 173 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्व वल्लभ "चाहे हो शूलों की चुभन किंवा हो सुमन-सौरभ किंतु निरंतर जो समता सागर वही तो है-विजय वल्लभ" मन पर जिसने विजय की थी, अपरिग्रहवाद विजेता था इसीलिये उसने उस वल्लभ को, “जैनम् जयति शासनम्" को अपेक्षा की जिसने इतिश्री की थी, परम तत्त्व को संचित कर-कर भू पर ऐसा उद्घोषित करने विदा किया था, प.पू. की झिलमिला-झिलमिला कर जिसने सौभाग्य मनहर उद्यान लगाया था जो ज्ञान-विज्ञान से सुभाशीष पाकर गुरुवर ने भी धरती पर स्वर्ग की सृष्टि की थी, उसी महात्मा की अजर पल्लवित होकर दर्शन से पुष्पित होकर, बिछाने, ज्ञान गरिमा गौरवान्वित करने का अमर गाथा यानि शाश्वत से ही नाता। चारित्रय की समता से सरस सुंदर बना था अनूठा पुरुषार्थ किया था। पी पी कर अमरत्व बना जो जिसने प्राण प्राण हर्षाया था यानि उन्हें वल्लभ मनुष्य नहीं था, वल्लभ देव का अजरामर। घोल घोल सहजानंद अमृत चारित्रयवान बनाया था। संस्करण था। जग पे जगमग ज्योत जगाने वह पिलाया, स्वजन बनाया, ऐसा महंत । प्रभुत्व वल्लभ न केवल जग वल्लभ था बल्कि सर्वदा समुद्यत था। चूंकि तिमिर मिटाने, प्रसार द्वेष दारिद्रय हटाया ऐसा महाभाग। वह अपने परम पूज्य जग हितकारी श्री दारिद्रय हटाने का उसका उपक्रम था इसीलिये मनमोहन मानव बना कर्मण्य शिक्षा प्रसारण में वह सदा युत मानस सजा, किया जिसने 'वल्लभ मनुष्य नहीं था, वल्लभ देव का संस्करण था। जग पे तत्पर था अथवा यूं कहो कि जय जयकार। जगमग ज्योत जगाने वह सर्वदा समघत था। चंकि तिमिर मिटाने, दारिद्रय वह जन-गण को ज्ञानवान हृत्तल जिसका सुधा बनाने में सिद्धहस्त था। इसी हटाने का उसका उपक्रम था इसीलिये शिक्षा प्रसारण में वह सदा तत्पर था। संचित था, किसलय कोमल गुरुमंत्र को उसने पंजाब में सा जो कमनीय था-शांतअथवा यूं कहो कि वह जन-गण को ज्ञानवान बनाने में सिद्धहस्त था। इसी निनादित किया था तो दांत-खांत वह स्वयं ही तो गुरुमंत्र को उसने पंजाब में निनादित किया था तो राजस्थान, गुजरात, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र था। सच्चिदानंद सा वह महाराष्ट्र आदि को भी उसने अछता नहीं छोड़ा था।" आदि को भी उसने अछूता सस्मित था, समष्टि सा वह नहीं छोड़ा था। सारांश यह कि पुलकित था, उत्फुल्ल कमल आत्माराम जी का भी लाडला था, मनभावन वह पुरुष सिंह जहाँ-जहाँ भी सा वह हर्षित था-आनंद कंद, सामथ्यवंत- था। श्री विजयानंद सूरीश्वर जी ने ऐसा गया वहाँ-वहाँ उस धरा को पावन करता शिवरमण वल्लभ ही तो वह था। इसीलिये सुयोग्य शिष्य पाकर उसे स्नेह सिक्त गया। गुरुवर दीर्घदृष्टा था इसलिये उसने उसकी गद्य-पद्य उभय वाणी में स्वरूप दर्शन माधुर्यलसित परमानंद पिलाया था जो करुणाई शिक्षा प्रसारण हेतु जगह-जगह गुरुकुलों का था। इसका कारण था जो स्पष्टतया हार्द्र, दयानिधान बनाने में सम्यक् रूपेण संस्थापन करवाया था। जीवन जन-गण का परिलक्षित था कि उनकी इच्छा माता का सफल हुआ था। परिणामेन वल्लभ ज्ञानवान, दिव्य बने यही वल्लभ का प्रण था। अपने प्रण ममत्व, परमतत्व से अभिसंचित होकर को प्राणवान बनाने, अज्ञान हटाने, वसुंधरा उसके पय पान द्वारा वल्लभ के जीवन में विनय-विवेक, देवत्व-सम्येक से भी संपुटित का समोल्लासित बनाने वह पल-प्रतिपल परसा गया था, सरसा गया था। वल्लभ हुआ था। प्रसन्न होकर आचार्य प्रवर ने समुद्यत था। 174 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Jain Education Intemational Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वल्लभ किसी एक का नहीं था, वह तो सबका था इसीलिये वह चैतन्य स्वरूप था, सरसतम था और सुंदरतम था। उसके हृत्तल में निरंतर विश्व बंधुत्व उमड़ता था, घुमड़ता था। भूख से प्रपीड़ित जन-गण के परिताप से द्रवित होकर उसने जगह-जगह लघु उद्योग गृह खुलवाये थे, आर्थिक संकट मिटाने के लिये उसने कारगार अभियान चलाये थे। विजय वल्लभ योगी तो था ही साथ ही ज्ञानी था, ध्यानी था और त्यागी भी था। कविता कामिनी की संरचना मिष वह जिन भक्ति का कायल भी था। उस महात्मा की भव्यता तो निहारिये: ब्रह्मा विष्णु हरिहर शंकर, राम रहीम खुदाई, खुदा से नहीं है जुदाई, पूज लो तुम भाई। ब्रह्म के सामंजस्य का ऐसा स्वरूप संवार कर गुरुवर ने ऐसी परम रमणिज्जता का दिग्दर्शन करवाया है जो अजर है अमर है और अक्षर है। उनकी कविता से उनके नवनीत से मृदुल व्यक्तित्व का और जीवन के कृतत्व का चित्रांकण, स्पष्ट उभर आया इसीलिये वल्लभ वाणी पठनीय थी, मननीय थी, आदरणीय थी यानि लुभावनी होने से सबको शिरोधार्य थी। वल्लभ वाणी सुधा सिंधु से आप्लावित थी, परमोत्कर्ष संगीत सी झंकृत थी, जीवन के लय ताल से सुसंस्कृत थी इसीलिये वह शिवमस्तु सी लसित थी। विजय वल्लभ एक आदर्श था, श्वासोच्छवास का सौरभ था। उसमें इतना मनोबल था कि अंतिम दम तक भी, चौरासी वर्ष की उम्र में भी युवा हृदय था। इसीलिये वह अक्षर था, अक्षय था, शब्द शब्द उसका प्रारब्ध था। यानि प्रेम प्रदीप ज्ञानेश्वरवल्लभ ही तो था। जे.एफ. बाफना 'शत्रुजय', अंधेरी (पूर्व), मुम्बई वल्लभ ने सम्पूर्ण भारत को अपना प्रांगण बनाया था। नगर-नगर, डगर-डगर पावन कर, शुभ संदेश, हितोपदेश सुनाया था। सबके मनमंदिर को रूणित ध्वनित कर पुरुषार्थ का पाठ पढ़ाया था। रमणिज्जता में रमण कर, उर्ध्व गति गामी बनाया था। मेरे वल्लभ स्वतंत्र कुमार जैन, मालेरकोटला जीवन के थे जीवन, प्राणों के थे प्राण, मानवता के थे अग्रदूत, थे एकनिष्ठ महिमान्। राष्ट्रीयता के उन्नायक, सत्य, अहिंसा के परम पुजारी, जातीय नैय्या के कर्णधार, एकता के थे सबल समर्थक, दीनों के थे सहज हितैषी, भारतीय संस्कृति के अनुमोदक, धर्म के महिमामय अवतार, जैन धर्म के हीरक हार, जन-जन के हियहार, जनार्दन, मेरे वल्लभ ! एक बार फिर-विश्वबन्धुता और, प्रेम की, बंसी मधुर बजाओ ! गूंजे फिर समतामय सन्देश तुम्हारा ऊँच-नीच का भेद न होवे, जाति-पाँति के ज्वाल शान्त हों भाई-भाई में प्रेम परस्पर, घर-घर सुख श्री शान्ति सुहाए पराधीनता मन से भागे, भाषा अपनी, अपने भाव, वेष अपना हो, अपने हाव। भारत का उज्ज्वल अतीव हो, नन्दन वन अभिराम भविष्यत, मानवता चेतनाप्राण बन मानव का शृंगार रचाए सच्चे मानव बनें और हों भारत माँ के सच्चे पूजक होवे "जैन-धर्म विश्व में सर्वोपरि आ जाओ ! प्यारे वल्लभ फिर से प्रेम की बंशी मधुर बजाओ विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 175 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लब्धि सम्पन्नगुरु वल्लभ बलदेव राज जैन पूर्व महामंत्री महासभा अज्ञान तिमिर तरणि, कलिकाल कल्पतरु श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जोकि तत्वज्ञान वक्ता, लेखक, 2200 रचनाओं के रचयिता महान् कवि, नाभा राजदरबार में स्थानकवासी संतों के साथ शास्त्रार्थ करने वाले वादी थे। अपने समुदाय पर नियन्त्रण करने वाले महान् प्रशासक (Administer) थे। चारित्र-चूड़ामणि, युगवीर, समाजसुधारक, शिक्षा प्रचारक, नीतिवान, युगद्रष्टा, पंजाब केसरी, लब्धिसम्पन्न और 36 गुणों के धारक नमो आयरियाणं थे। _ मैं उन भाग्यशाली श्रावकों में एक हूं, जिसने 20 वर्ष की आयु में दर्शन किये और व्याख्यान सुने, उनके साथ प्रतिक्रमण किया। और प्रतिक्रमण में स्तवन, स्तुति, पाठ आदि सुनाकर उनके नज़दीक होने से बहुत कुछ प्राप्त किया। उनकी निश्रा में ज्येष्ठ सुदि अष्टमी के उत्सव में बाल मुनि जनक विजय और मुझे पहली बार मंच पर आने का सौभाग्य मिला। उस समय डाईस नहीं होता था। बोलते समय दोनों की कांपती टांगें सब देख। रहे थे। उस जमाने में बहनें मर्यादित पहरावा पहनती थीं और कम से कम छः इंच लम्बा बूंघट निकालती थीं। फिर भी कथा में भाई और बहनों के बीच में एक परदा होता था। बिरादरी के फैसले अनुसार कथा समाप्त होने पर ही दुकानें खुलती थीं। वासक्षेप आम नहीं की गई। तीन से चार बजे तक आचार्य मिलता था। तीर्थ यात्रा करने वाले ग्रुप यात्री भगवन् का उपाश्रय में खुला दरबार लगता। और तपस्या करने वालों को एक बार वासक्षेप जिसमें जैन-अजैन सभी प्रश्न कर सकते थे। मिलता था या फिर संक्रान्ति के दिन बाल्टी में एक अजैन गौरी शंकर नाम का व्यक्ति कुछ रुपये या रेज़गारी डालकर वासक्षेप लेना प्रतिदिन आकर गुरु महाराज से प्रश्न होता था। यह फंड महासभा को साधनहीन करता? प्रतिदिन की चर्चा देखकर श्रीसंघ के विद्यार्थियों और विधवाओं को बांटने के लिये प्रमुख भाईयों ने कहा-“महाराज ये व्यक्ति दिया जाता था। यह प्रथा आज तक चल रही प्रतिदिन सिरदर्दी करता है। आप आज्ञा दें हम इसको आने के लिये मना कर दें।" आचार्य प्रवेश :- मार्च सन् 1940 को 16 वर्ष के भगवन् ने कहा, “इसको मना नहीं करना। पश्चात् आचार्य भगवन् गुजरांवाला पधारे। यह व्यक्ति नास्तिक है। इसको मुझे आस्तिक बिरादरी ने अपना कर्त्तव्य और शासन बनाना है। नास्तिक किसे कहते हैं ? जो प्रभावना निमित्त बड़े हर्ष उल्लास से भव्य व्यक्ति आत्मा, परमात्मा, पुण्य, पाप को नहीं प्रवेश का आयोजन किया। गर्मियों का मौसम मानता, उसको नास्तिक कहते हैं।" होने से बाजारों में चांदनियां (शामियाना) लब्धि सम्पन्न आचार्य भगवन् :- भैया दूज लगाई गईं। गेट और झण्डियों से बाजारों को के दिन आचार्य भगवन् का जन्म उत्सव सुसज्जित किया गया। पंजाब के प्रसिद्ध श्रीमद् विजयानन्द सूरि जी म. की समाधि के 'सोहनी का बैण्ड' और 'रंगमहलों का बैण्ड' बाहर खुले पण्डाल में मनाया गया। पंजाब लाहौर से मंगवाया गया, जो जुलूस में अद्भुत व्यापार मण्डल के प्रधान लाला बिहारी लाल नज़ारा पेश कर रहे थे। उनकी धुनें सुनने के चानना उस जलसे के प्रधान थे और देश की लिये 'जोक-दर-जोक' हजूम की भीड़ हो गई। आजादी के लिए कई बार जेल यात्रा करने ढोलक के साथ बांसुरी वादन अपना अलग ही वाले लाला तिलक चन्द जी त्रिपंखिया मंच जलवा दिखा रहा था। बाज़ार में मीठे पानी संचालन कर रहे थे। विशेष अतिथि सरदार और दूध की छबीलों के अतिरिक्त बेरी वाला बहादुर सुन्दर सिंह, प्रधान-म्युनिसपल कमेटी चौंक में बादाम, इलाचयी आदि की ठण्डाई थे। जिन्होंने म्युनिसपल कमेटी की ओर से (शरदाई) की छबील किसी धार्मिक जलूस में उर्दू भाषा में अभिनन्दन पत्र पढ़कर आचार्य मैंने पहली और अन्तिम बार देखी। पहली ____ भगवन् के कर-कमलों में भेंट किया। गौरी बार हवाई जहाज द्वारा जुलूस पर पुष्प वर्षा शंकर ने भी समय मांगा, मिल गया उसने 176 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिलक से आप देख सकते हैं कि मैं पक्का आस्तिक और मूर्तिपूजक बन गया हूँ। ऐसे लब्धि-सम्पन्न गुरु भगवंत को शत्-शत् नमन वंदन ! अपनी आप बीती इस प्रकार सुनाई। मैं एक कट्टर नास्तिक था। बड़े-बड़े विद्वानों, संतों महामण्डलेश्वरों आदि की सेवा में गया। मेरे एक भी प्रश्न का उत्तर किसी से भी ठीक न मिला। उनके भक्तों ने मुझे धक्के मार कर निकाल दिया। आचार्य भगवन् की सेवा में प्रश्न करने के लिए मैंने इस तरह पूरी तैयारी की, जैसे बड़ी कक्षा की वार्षिक परीक्षा हो। निर्धारित समय पर पहुँच गया, उनके दर्शन किए, नूरानी चेहरा देखा, उन्होंने भी मुझे भर आंखों से देखा। मुझे सारे प्रश्न भूल गये। उनके चरणों में आधा घण्टा बैठने के पश्चात् मैं घर आ गया। घर आकर सोचा यह कैसे हो गया ? आज तक मेरे प्रश्नों का उत्तर कोई नहीं दे सका। परन्तु यहाँ पर उनके दर्शन मात्र से ही अपने सारे प्रश्न भूल गया। यह कैसे हो गया ? सोचने पर इस नतीजे पर पहुँचा कि हमारे शास्त्रों में जो यह कहा है कि ऋषि-मुनियों, महान् तपस्वियों को ब्रह्म तेज की शक्ति पैदा हो जाती है। वो अपने ब्रह्म तेज की किरणों से जब आंख भरकर सामने वाले व्यक्ति को देखते हैं तो उसकी सारी शक्ति प्रभावित हो जाती है। जिन महात्माओं की तलाश में मैं चिरकाल से था, वो आज मुझे मिल गये और मेरा आधा नास्तिकपना वहीं पर समाप्त हो गया। प्रतिदिन आने से गुरु महाराज के उत्तर मिलने पर मैं पक्का आस्तिक बन गया हूं। मेरे माथे पर लगे हुये श्री वल्लभनिर्वाण कुंडलीगायन 5 3 ds|w-6WXq-4pa 2 I Kkq-k-cq-X 10 ea-jk-4 / 11 तर्ज़-छोड़ गये महावीर, मुझे आज अकेला छोड़ गये। मेरे श्री संघ के सिरताज, अब कहाँ सिधारे राज। मरुधर की आँखों के तारे, पंजाबियों के प्राण। भारत का था कल्पतरुवर, गुजर प्रकटयो भाण। मेरे। - 1 वल्लभ तेरा नाम अनुपम, जग वल्लभ कहलाया। लाखों मनुज का नायक था, यहाँ लाखों का दिल बहलाया। मेरे। - 2 वृद्ध आयु तक देव तेने, जिन धर्म की सेवा कीनी। श्रावक संघ के अभ्युदयहित, संस्थायें स्थापन कीनी। मेरे। - 3 कर्क लगन में चंद्र गुरु संग, गुरुवर स्वर्ग सिधारे। कन्या का रवि त्रीजे भवन में, दिव्य पराक्रम धारे। मेरे। - 4 शुक्र शनैश्चर चौथे भवन में, बुध भी साथ कहावे। मंगल राहु छट्टे भवन में, केतु बार में ठावे। मेरे। - 5 धर्म-भवन का स्वामी सुरगुरु, उच्च लगन में बैठा। चंद्र शुक्र निज घर के स्वामी, शनी उच्च बन बैठा। मेरे। -6 मंगल राहु रवि त्रीजे छट्टे, ये सब शुभ फलकारी। उच्च गति को प्राप्त करावे, ग्रह बल के अनुसारी। मेरे। -7 छोड़ हमें गुरु स्वर्ग के सुख में, तेरा जी ललचाया। आसो वदि दशमी की रात्रि, गुरुवर स्वर्ग सिधाया। मेरे। - 8 मंगलवारे पुष्य ऋषि के, प्रथम चरण में जावे। मुम्बई शहर की लाखों जनता, गुरुवर शोक मनावे। मेरे। -9 भाग्य हुआ कुछ अल्प हमारा, वल्लभ सूर्य गमाया। हस्ती श्री गुरुराज चरण में, सादर सीस झुकाया। मेरे। - 10 हस्तीमल कोठारी सादड़ी (मारवाड़) विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 177 NEducation.interidhornels Focal & Per total US ON wow.lanelibrarieto Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KAYAMAVA मान-पत्र OnOCTE बपेश खिदमत जनाब जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ स्वामी जी ! पेशवाये कौम व रहनमाये मिल्लत ! हम मेम्बरान म्युनिसीपल कमेटी शहर गुजरांवाला जो वाशिंदगान शहर गुजरांवाला की नमायिंदगी करते हैं, अपने तवारीख़ी शहर जो कि शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह साहब की जन्मभूमि है और जिस भूमि ने सरदार हरिसिंह नलवा जैसे बहादुर जर्नेल को जन्म दिया, उस भूमि में आपकी आमद पर आपको खुशआमदेद करते हैं। जनाब के तशरीफ लाने से जो खुशी हम लोग अपने दिलों में महसूस कर रहे हैं। जबान में उसके ब्यान की ताकत नहीं, बल्कि दिल ने भी यह समां इससे पहले कम ही मालूम किया होगा। हम नमायिंदगाने शहर बल्कि हर समझदार इन्सान यकीन करता है कि दुनिया के सारे निज़ाम और ज़िन्दगी के इस चक्र में सबसे बड़ी चीज सिर्फ एक बुलन्द कैरेक्टर है, जिसे दूसरे लफ्ज़ों में बुलन्दे इखलाक और मजहबी नुक्ता निगाह से दयानतदारी कहना चाहिए। यही एक चीज़ है कि जब किसी रहनमाये कौम को मिल जाये और कुदरत के वेबहा खजाने इस नेमत से मालामाल कर दें, तो कौम की नाव, जिन्दगी के मंझधार से पार हो जाती है। महोतरिम बुजुर्ग! आज दुनिया का हर सही उलदमाग शख़स इस हकीकत का कायल है कि इन्सानी जिन्दगी की कामयाबी के लिए अद्मतशदद का सस्ता ही सही व दुरुस्त है। आप अमतशदद के फलसफ़ा के अत्मवरदार हैं और मुल्क के कोने-कोने में इसकी सदा लगाते फिरते हैं। सिर्फ इसी आत्मिक खूबी की वजह से हमारे सर आपके सामने श्रद्धा से झुक जाते हैं। हम मिम्बरान इस निश्चय और यकीन के साथ पूरे अदब और गहरी अकीदत से यह मान-पत्र पेश करने की इज्जत हांसल कर रहे हैं। हम जानते हैं कि आप में वोह खूबियाँ मौजूद हैं जो एक सच्चे रहनमा के लिए जरूरी हैं। रहनमा कौम ! आपने छोटी उमर ही से गृहस्थ और अचालदारी के जंजालों को त्याग दिया। गोया आपने वक्त की आवाज को उस वक्त कबूल किया, जबकि हम जैसे लोग इस आवाज को सुनने के लिए तैयार न थे। जिन्दगी के मजे और गृहस्थ की ऐशपरस्तियाँ कितनी भी सुल्ज कर वर्ती जाएं, वोह कौमी कुर्बानियों की राह में कभी न कभी एक ऐसे पत्थर का काम देती हैं, जिससे रास्ते में रोक और अटक पैदा हो ज। ती... है। यह जानने के बावजूद कि आपकी जेबें मालो दौलत से खाली हैं, हमें यकीन है कि आपको गनी और बेपरवाह दिल KOY बखशा गया है। सच है- “तवंगरी बदिलस्त ना वमाल" इस लिए आप उन ऊँचे लोगों में से हैं, जिन पर दुनिया और दुनियादार कभी काबू नहीं पा सकते। आपकी सादा ज़िन्दगी और सारे हिन्दुस्तान का पैदल सफर करना बता देता है कि आपको 178 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1501 Jan Education International Fat Private Personal use only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुनिया के आराम से न मोहब्बत है और न उसके लिए दिल में ख्वाहश है। आपकी इल्मी खिदमात : विद्यालयों और गुरुकुलों का एक मुनज़म सिलसिला आपकी इल्म दोस्ती का खुला हुआ सबूत है, जो हमें मजबूर करता है किसक अकीदत के फूल आपकी खिदमत में पेश करें और हमें यकीन है कि आज़नाब की बुलन्द पाया नसीहतें हमें और अहले शहर के लिए सच्ची रहनमाई का मजब होंगी। हमें यह मालम है कि जनाब एक खास मजहबी जमायत- यानी जैन महजब से ताल्लुक रखते हैं, जो अपने अमल के लिहाज से हिन्दुस्तान की सबसे बेज़रर जमायत है। दर हकीकत मजहब की रुह भी यही है कि इन्सान को दरिंदगी से दूर रखे और उसके इखलाक को रूहानियत के नुकताए निगाह से रोशन करे “मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना, हिन्दी हैं हमवतन हैं हिन्दोस्तां हमारा।" इसलिए हम पूरा यकीन रखते हैं कि जनाब के तशरीफ लाने से शहर के मुखतलिफ फिरकों में प्रेम की रूह फूंकी जाएगी और सब लोग आपस में भाइयों की तरह रहना सीखेंगे। आप हमारी इज्जत व एहतराम के इस नज़राना को कबूल फर्माइये। हम हैं आपके खिदमतगुजारमेम्बरान म्युनिसीपल कमेटी, गुजरांवाला वास्तविक शिक्षा “वास्तविक शिक्षा वही है जो चरित्र निर्माण की प्रेरणा दे। शिक्षा से विद्यार्थी शुद्ध एवं आदर्श जीवन वाला बने। उससे मानवता करूणा और प्राणिमात्र के लिए मैत्री भावना हो। ऐसे विद्यार्थी ही समाज के हीरे होते हैं।" .. वल्लभ विजय विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 179 Jan Education internallonal Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - गरु वल्लभक अनोखी विभूति कमलेश जैन लिगा प्रकृति का यह अटल नियम है कि जो प्राणी इस संसार में जन्म लेता है, वह एक दिन अवश्य इस संसार से विदा हो जाता है। परन्तु कुछ महान आत्माएं ऐसी भी होती हैं, जो मर कर भी अमर रहती हैं। इस संसार से प्रयाण कर जाने के पश्चात् भी उनकी साधना, उनका व्यक्तित्व, उनके गुणों का सौरभ जन मानस को नई प्रेरणा, नई शक्ति एवं प्रति पल आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। ऐसी महान आत्मा, परम श्रद्धेय, परम वन्दनीय जन-जन के हृदय सम्राट, युगवीर, पंजाब केसरी, अज्ञान तिमिर तरणी, कलिकाल कल्पतरु, युगद्रष्टा आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज थे। श्री आत्म वल्लभ समुद्र इन्द्रदिन्न पाट परम्परा पर सुशोभित वर्तमान पट्टधर कोंकण देश दीपक जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज जी ने गुरुवर विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष को एक महोत्सव के रूप में मनाने की जैन समाज को प्रेरणा दी। जिसके अन्तर्गत विविध मंगल कार्यक्रम घोषित किये गये जो बड़े हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न होते जा रहे हैं। गुरुदेव ने जानकारी देते हुए फरमाया कि “विजय वल्लभ सूरि जी महान् उच्चकोटि के कवि, गीतकार, साहित्यकार, रचनाकार थे। उनके द्वारा स्तवन, सज्झाए एवं स्तुतियों का संग्रह समाज के लिए अनमोल पूंजी है। विविध प्रकारी पूजाओं का संग्रह प्रभु भक्ति की ओर अग्रसर करता है। बड़े पुण्योदय से मुझे चरित्र पूजा एवं वल्लभ काव्य सुधा का अध्ययन करने का और जनसमुदाय के आगे आकण्ठ होकर भाव विभोर होकर गुरु गुणगान करने का अवसर मिला।" ऐसी प्रभु भक्ति से भरी हुई प.पू. गुरुदेव की रचनाओं को गाना, अपने परम उपकारी गुरुदेव को सच्ची श्रद्धांजली अर्पित करना एवं करवाना, जिसका माध्यम प्रतिस्पर्धा बनाया गया एक अद्वितीय कला है। _ मेरे विचार में या यूँ कहिए कि जो मुझे इन प्रोग्रामों के माध्यम से जन मानस की उत्सुकता मिश्रित जागरूकता देखी, ज्ञान मिला, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। उदाहरणतया श्री विजय वल्लभ सूरि जी ने 'श्री ऋषभ जिनस्तवन में बताया कि द्रव्य पूजा का लक्ष्य भगवान की भाव पूजा में लीन होना है। अनादि कर्म मैल को धोने के लिए जलाभिषेक, पाप रज को दूर करने के लिए चन्दन पूजा, काम वासना को दूर करने के लिए कुसुम पूजा, चित उपाधि को जलाने के लिए धूप पूजा, भाव दीपक प्रकट करने के लिए दीप पूजा, अक्षय सुख पाने के लिए अक्षत पूजा, अनाहारी होने के लिए नैवेद्य पूजा तथा मोक्ष फल के लिए फल पूजा का विधान है अर्थात् इस मानव मन को वश में करके प्रभु की अर्चना कीजिए, करूणा जल से प्रभु को स्नान कराइए, शुभ ध्यान के द्वारा केसर चन्दन से उनकी अंगरचना कीजिए, मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान के पांच फूल प्रभु जी को चढ़ाइए तथा उनके सम्मुख गुणकीर्तन का धूप कीजिए तभी ब्रह्मधर की शील सुगंध महकेगी। इस प्रकार प्रभु भक्ति-प्रभु मिलन का गायन करते हुए यकायक मन भटका और सोचने लगी “क्या मैं इस योग्य हूं"? तभी पार्श्वनाथ जिन स्तवन में भक्त की पुकार अभिव्यक्त हुई। 'हे दीन दयाल ! मुझ पर करूणा दृष्टि कीजिए। संसार सागर में मैं तड़प रहा हूं। इस अथाह सागर के जल में मैं भ्रमवश भटक रहा हूँ। इसमें मगरमच्छ आदि रोग शोक मुझे नित्य घेरे हुए है। इस अनंत दुःख युक्त संसार समुद्र में काम वासनाओं की बड़वानल मुझे जला रही है, चारों कषाय मुझे कुतर रहे हैं। इस सागर के अष्टकर्म रूपी पर्वतों से मैं टकरा-टकरा कर चूर हो गया हूं। तृष्णा की ऊंची-ऊंची तरंगें उठ रही हैं, जो मुझे निरन्तर पटक रही है। पाप रूपी जल भार की बौछारों से अत्यन्त व्याकुल हूं। धर्म रूपी जहाज के द्वारा मैं इस विकट भवसागर को पार करना चाहता हूं, परन्तु आठ मद रूपी चोर इस जहाज को तोड़ रहे हैं। इस विकट संसार सागर में डूबते हुए दीन को बचाओ। केवल आपकी ही शरण मेरा उद्धार कर सकती है। हे कृपानिधान ! मैं डूब रहा हूं, दौड़ कर मुझे बाहर खींच लो।' अंत में प्रभु कृपा हुई। अपने वल्लभ से मिलने पर आत्म लक्ष्मी का अनुपम रूप प्रकट हुआ। प्रिया से प्रिय मिल गई, द्वैत भाव मिट गया। आह्, कितना रस ! कितना भाव ! प्रभु मिलन, प्रभु विरह-त्याग-वैराग्य आदि वल्लभ गुरु जी की अनमोल काव्य रचना, जो गज़ल, कव्वाली, लोक संगीत, 180 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1561 Jain Education Interational Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसन्त राग, भैरवी, जयजयवन्ती, कलिंगड़ा एवं मालकोश आदि रागों में रचना की गई। जिन पूजा प्रतिस्पर्धा के अन्तर्गत गुरु वल्लभ द्वारा रचित विविध प्रकारी पूजा, जिसमें तीर्थंकर परमात्मा की पंच कल्याणक पूजा, तीर्थ वन्दना पूजा, ऋषि मण्डल पूजा, गणधर पूजा, चउदराजलोक पूजा, पंच ज्ञान पूजा, चारित्र पूजा आदि । चारित्र पूजा, जिसके विशेष अंक रखे गये थे जिसे पढ़कर विशेष पूजा नाम सार्थक हुआ। चारित्र पूजा में ब्रह्मचर्य को शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक शक्तियों के विकास का साधन माना गया है। ब्रह्मचर्य एक ऐसी साधना है, जिससे शरीर और आत्मा दोनों शक्तिशाली बनते हैं। ब्रह्मचर्य बाह्य जगत में हमारे शरीर को ठीक रखता है, अन्तर्जगत में हमारे मन और विचारों को पवित्र रखता है। यदि शरीर का केन्द्र मजबूत रहेगा तो आत्मा भी अपनी साधना में दृढ़ता के साथ तत्पर रह सकेगी। ब्रह्मचर्य की साधना जितनी उच्च और पवित्र है, उतनी ही उसकी साधना में सावधानी की आवश्यकता है। इसलिए शास्त्रकारों ने ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए नौ वाढ़ (मर्यादाएं) बतलाई हैं। श्री वल्लभ सूरि महाराज जी ने चारित्र पूजा काव्य में बताया है कि ज्ञानवान यदि चारित्रहीन है तो लंगड़ा है। वह अपने इष्ट लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। जिन बहन-भाईयों ने इस पूजा को दिल से सीखा, पढ़ा और सुना है वह तो इतने अचम्भित हुए काव्य संग्रह को अपनी-अपनी कला से लोगों कि प.पू. गुरुदेव विजय वल्लभ सूरि जी ने तक पहुंचाया गया, जिनकी धुनें अब प्रायः कर हमारे पर इतना बड़ा उपकार किया है, मन्दिरों में, प्रतिक्रमणों में यहां तक कि यदि कैसे-कैसे सरल भाषा में दुर्लभ ज्ञान भर दिया, अपने-अपने मण्डल में भी कुछ बोलने का अवसर मिला, तो गुरु वल्लभ के गुणगान ही पूजा का चिन्तन-मनन करते हुए प्रभु पथ के मिला। अर्द्धशताब्दी वर्ष मानो वल्लभमय बना सच्चे राही बनें। हुआ वर्ष मिला। यदि ऐसे ही हम अपने पूर्वज भाषण एवं निबन्ध प्रतिस्पर्धा : परमोपकारी गुरुओं के प्रति जनता को जागृत जिस गुरु ने काव्य रचना द्वारा विविध कराते रहेंगे, तो वह दिन दूर नहीं होगा, जिसे पूजाओं द्वारा अपने प्रवचनों द्वारा, अन्य गुरु वल्लभ ने जन मानस की भलाई के लिए साहित्य द्वारा आत्मा को परमात्मा बनाने का सुन्दर दोहा रचा था :मार्ग दिया है। जिह्वा से ऐसे महान् आचार्य ___“जो चाहो शुभ भाव से निज आत्म राष्ट्रसंत, क्रान्तिकारी, युग प्रधान, भारतीय कल्याण, संस्कृति के महान् ज्योतिर्धर मानवता की ___तीन सुधारें प्रेम से खान-पान-परिहान। साकार प्रतिमा, महान विभूति का गुणगान इस पावन वर्ष को मनाने के प्रेरक करना सूर्य को दीपक दिखाने तुल्य है। ऐसे ___ आचार्य भगवन् श्री रत्नाकर सूरीश्वर जी महान् गुरु का स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष महाराज जी का हार्दिक आभार मानती हूं, महोत्सव पर मैं श्रद्धा सुमन अर्पित करती हुई जिन्होंने हमें जागृत कर गुरुदेव से साक्षात् कोटिशः वन्दन करती हूं। मिलन करवाया। आज स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष को समापन समारोह के रूप में मनाने की तैयारी कर रहे हैं। इस वर्ष भर के समय में समाज को बहुत कुछ सीखने को मिला। जिसने भी प्रतियोगिताओं में भाग लिया। उन्होंने प.पू. गुरुदेव विजय वल्लभ सूरि जी महाराज के जीवन को बार-बार पढ़ा एवं समझा। प्रत्येक व्यक्ति ने सोचा कि मैं जो बोलूं वह ही सबको प्रिय लगे। इसके अतिरिक्त गुरुदेव द्वारा रचित जब तक सूरज चाँद रहेगा। वल्लभ तेरा नाम रहेगा। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 181 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज बसन्ती लाल लसोड, नीमच पंजाब केसरी, कलिकाल कल्पतरु, अज्ञान तिमिर तरणी, युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज वर्तमान युग के महान् दार्शनिक संतों में से एक हैं, जिनका नाम गौरव और आदर के साथ लिया जाता है। जिनकी तपस्विता, मनस्विता, यशस्विता मानवता आदि गुण जिनके व्यक्तित्व, कृतित्व के घुले मिले तत्व थे, ऐसे इन महान् आचार्य का पूरा जीवन पारदर्शी व्यक्तित्व और उम्दा चारित्र से अभिभूत है, जो हर किसी को आकर्षित करता है, अपनत्व के घेरे में बांध लेता है। वे मनीषा के शिखर पुरुष थे, महान् चिन्तक और दार्शनिक थे वे श्रुतधर, बहुश्रुत थे। ज्ञान के अपूर्व भण्डार थे। उनका जीवन बेजोड़ था। साधारण से दिखने वाले इस असाधारण सन्त की वृत्तियों को समझना आसान नहीं था। उन्होंने अपने ज्ञान तथा अद्भुत प्रवचन शैली के माध्यम से जनता जनार्दन के साथ सीधा सम्पर्क स्थापित किया था। वे अपने को किसी जाति विशेष का नहीं मानते थे यही कारण था कि जैनों से भी अधिक जैनेत्तर समाज उन से प्रभावित था। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि प्रत्येक जाति, सम्प्रदाय वर्ग उनके चरणों में श्रद्धावनत् होता था, वे विश्व शांति के अभिलाषी राष्ट्रप्रेमी, श्रीसंघों के कुशल संचालक थे। उन्होंने साधु-साध्वी समाज को उत्कर्ष, साधर्मिक भाई-बहनों को सुदृढ़ आधार दिया। यही कहा जायेगा कि कुछ “गुरुदेव उस समय गुजरांवाला में थे जो पाकिस्तान के भाग में था। वहां । विभूतियां ऐसी भी जन्म लेती हैं, जो अपने समय का गुरुदेव ने यह प्रतिज्ञा की कि जब तक गुजरांवाला और उसके आस-पास के नगरों। इतिहास बनाती हैं व अपने लोकोपकारी में जैन भाई-बहन हैं जब तक वे सुरक्षित नहीं पहुंच जाये मैं यहां से हिलूंगा ही नहीं। कार्यों से स्वयं इतिहास बन जाती हैं, वैसे ही वे थे। भारत सरकार ने बहुत अनुनय किया कि यहां आपकी जान को जबरदस्त खतरा हैजैसा कि पर जब तक गुजरांवाला और आस-पास नगरों के जैन श्वेताम्बर भाई सुरक्षित नहीं ऊपर लिखा है उनके प्रवचन बहुत प्रभावक पहुंचे, वे वहीं रहे और बाद में उनको व सभी को सुरक्षित पहुंचाया गया।" होते थे। वे कहा करते थे कि मानव जीवन साधारण नहीं है, उसमें चेतना का उत्कर्ष एवं विकास की अपूर्व संभावना सन्निहित है। दिव्य जीवन दबा पड़ा है, वह चैतन्य है। जागृत जीवन सचेतन एवं सजीव है। हमें उसका सम्मान करना चाहिए। जिस प्रकार हमें सम्मान, आदर तथा भावनात्मक बोध होता है उसी प्रकार सभी में यही भाव विद्यमान है। जैसे सांस लेने का अधिकार हमें है, वैसा ही अधिकार औरों को भी है, हमने अपना आदर सम्मान तो स्वीकारा, पर औरों के लिए अमान्य कर दिया एवं नकार दिया, यह उचित नहीं है। उन्होंने जो प्रवचन दिये, वे अत्यन्त गम्भीर एवं तत्व से भरे होते थे। वे कहते थे, “संसार में सभी जीवों की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है, वे उसी के अनुसार वस्तु तत्व को ग्रहण करते हैं इसलिए कभी-कभी उनका ग्रहण किया हुआ सत्य भी असत्य हो जाता है और असत्य सत्य बन जाता है। जैसे एक ही तालाब से पिया पानी गाय में दूध हो जाता है और सर्प में विष बन जाता है, इसी प्रकार विचारशील सम्यक् पुरुष तो असत आंशिक सत्य से विद्यमान संदेश को अपनाता हुआ उसे सत्य ठहरा लेता है और मिथ्या दृष्टि विचार से ग्रसित मानस इसे असत्य प्रमाणित करता है। तात्पर्य यह है कि सम्यक् दृष्टि जीव मिथ्याश्रुत को अपने परिणामों के अनुसार ग्रहण कर सम्यक्श्रुत बना लेता है और मिथ्यादृष्टि जीव अपने परिणामों के अनुसार सम्यक्श्रुत को भी मिथ्या बना लेता है अतः अपने परिणाम और दृष्टि सदा पवित्र बनाए रखना, उसी से कल्याण होगा।" उन्होंने अपने प्रवचनों से अवगत कराते हुए कहा कि, “संसार की प्रत्येक वस्तु नाशवान है, यहाँ तक कि 182 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1504 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरीर भी ऐसा मान कर जो बुद्धिमान उनके प्रति आसक्ति नहीं रखता, वह दुःख के विशेष हेतु मोह रूपी कटार से बचा रहता है अन्यथा इसमें आसक्त व्यक्ति इनके क्षीण, क्षय अथवा नाश वियोग से क्षण-क्षण में दुखी होता रहेगा। यदि वह वस्तु उसके देखते नष्ट न भी हो, तब भी उनके नष्ट हो जाने अथवा बिछुड़ जाने की शंका से संतप्त रहता है। संसार की प्रत्येक वस्तु क्षयमान है, ऐसी बुद्धि रखकर जो मनीषी उनमें आत्मिक सम्बन्ध रख व्यावहारिक सम्बन्ध रखता हुआ अनासक्ति का आचरण करता है, संसार की कोई भी हानि उसे दुःखी अथवा, विचलित नहीं कर सकती है। उन्होंने आस्तिकवाद, नास्तिकवाद, ईश्वरवाद, अद्वैतवाद, मुक्तिवाद, अनेकान्तवाद आदि गम्भीर विषयों से सभी को परिचित कराया। साधु वेष का शास्त्रीय विवरण मुख वस्त्रिका का शास्त्रीय स्वरूप और प्रयोजन, मूर्तिवाद का शास्त्रीय निर्णय, ऐसे जिन विषयों को उन्होंने अपने गुरुदेव से प्राप्त किया था, उनका सच्चा विवरण जन साधारण को बता कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया। वे विश्ववन्द्यविभूति, न्यायाम्भोनिधि वर्तमान युग के आद्यआचार्य, नवयुगनिर्माता, महान् ज्योतिर्धर, सत्यावेषी जैन एवं जैनेत्तर शास्त्रों के प्रकाण्ड पंडित, असीम शौर्य एवं साहस के धनी श्री विजयानन्द सूरीश्वर जी महाराज के पट्टधर थे। वे उनके दीक्षा जीवन के नौ वर्ष तक यानि विक्रम संवत् 1944 से विक्रम संवत् 1953 तक उनके स्वर्गवास के समय तक उनकी पावन शीतल छत्र छाया में रहे और अपनी अनन्य सेवा और भक्ति से अधिक से अधिक ग्रहण किया और आचार्य श्री विजयानन्द सूरीश्वर जी ने भी उनके अपूर्वज्ञान एवं विलक्षण प्रतिभा को देख कर कहा, “देख वल्लभ! जिनमंदिरों की स्थापना तो बहुत हो गई, अब आवश्यकता है इनके पुजारियों की, जो जैन भाई-बहनों को इनमें पूजा करने की विधि, ज्ञान-दर्शन- चारित्र और जैन संस्कृति को जानने वालों की, अतः सरस्वती मंदिरों की स्थापना करो। गुरु भगवन्त के स्वर्गगमन के बाद उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर सर्वप्रथम गुजरांवाला में श्री आत्मानंद जैन गुरुकुल की स्थापना की, जिसका मैं स्नातक हूं और श्री रघुवीर कुमार जी जालन्धर वाले भी इसके स्नातक हैं, गुजरांवाला में उन्होंने श्री आत्मानन्द जैन विद्यालय, श्री आत्मानन्द जैन कन्याशाला - श्री आत्मानन्द जैन कॉलेज अम्बाला शहर, यहाँ पर ही श्री आत्मानन्द जैन पाठशाला, श्री आत्मानन्द जैन लायब्रेरी, श्री आत्मानन्द जैन पब्लिक स्कूल, श्री आत्मानन्द जैन हाई स्कूल मालेरकोटला, श्री आत्मानन्द जैन मिडिल स्कूल होशियारपुर एवं कन्या पाठशाला, इसी तरह हाई स्कूल, मिडिल स्कूल, लायब्रेरी, कन्या शालाएं, पाठशालाएं, सभाएं, सेवक मंडल, राष्ट्रीय मंडल आदि पंजाब के विभिन्न नगरों में जंडियालागुरु, लुधियाना, अमृतसर, नारोवाल, लाहौर, जीरा, पट्टी, स्यालकोट, रोपड़ आदि शहरों में स्थापित कराए। जिनमें बहुत से तो पाकिस्तान चले गए हैं और पंजाब के तो प्रायः सभी स्थानों पर अनेक संस्थाएं स्थापित करवाईं। पंजाब से बाहर सादड़ी, लुणावा, खुडाला, पालनपुर, बड़ौदा, बीकानेर, शाजापुर देसूरी, आशपुर, पूना सिटी, वालापुर, भावनगर, बम्बई, बीकानेर, जयपुर, पाली, अहमदाबाद आदि अनेक स्थानों पर अनेक संस्थान स्थापित कराए। इन सब संस्थाओं की स्थापना से शिक्षा जगत में जबरदस्त क्रांति आई और स्वर्गीय विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका गुरुदेव की आत्मा को भी शांति प्राप्त हुई होगी। गुरुदेव पर उनको अपार भक्ति थी, फलस्वरूप उन्होंने अनेक स्थानों पर चरण पादुकाएं भी स्थापित कराईं। श्री सिद्धाचल तीर्थ, श्री गिरनार जी तीर्थ, वल्लभ पट गुजरांवाला, पालनपुर, सूरत, अहमदाबाद, खंभात, ईदरगढ़, पाली, बदनावर, बीकानेर, डभोई, पादस, पावागढ़ तीर्थ, बोड़ेली तीर्थ आदि प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार ज्ञान भंडार, उपाश्रय गुजरांवाला, लाहौर, अमृतसर, जंडियाला, पट्टी, जीरा, होशियारपुर, जालन्धर, रोपड़, लुधियाना, अम्बाला, मालेरकोटला, कसूर, जम्मू, राज नगर आदि अनेक स्थानों पर स्थापित कराए, पंजाब से बाहर भी बड़ौदा, हस्तिनापुर, पालीताणा, दिल्ली, जयपुर आदि अनेक स्थानों पर स्थापित कराईं, जो आज भी विद्यमान हैं। जैसा कि मैं ऊपर वर्णित कर चुका हूं कि मैं श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल का स्नातक हूं। यह गुरुकुल प्राचीन गुरुकुल पद्धति से बहुत कुछ मिला जुला था। इस में वही संस्कार राष्ट्रप्रेम, धर्मप्रेम, समाज प्रेम जनता की सेवा का आदर्श पथ का मार्ग सिखाया जाता था। वैसा ही बहुत कुछ रहन-सहन, 'सादा जीवन उच्च विचार' गहन शिक्षा का ज्ञान प्रायः सभी भाषाओं में अनेक विषयों का कराया जाता था। नियमित, संयमित जीवन पालन करना अनिवार्य था। दिन भर का ऐसा कार्यक्रम बना दिया गया था जो प्रतिदिन पालन करना होता था। पढ़ाने वाले प्रायः सभी अध्यापक अनेक विद्याओं में पारंगत थे। खेलकूद, व्यायाम आदि करना अनिवार्य था, जिन्हें एक रिटाएर्ड आफिसर द्वारा कराया जाता था। व्यायाम करने के लिए कबड्डी, कुश्ती, जिम्नास्टिक, रस्साकशी, हाकी, फुटबाल, 183 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्रमण, दौड़ आदि कराए जाते थे। इन सुरक्षित नहीं पहुंचे, वे वहीं रहे और बाद में हमारे गुरुदेव के प्रवेश पर गाजे-बाजे के सबके अतिरिक्त हमें वही संस्कार दिये जाते उनको व सभी को सुरक्षित पहुंचाया गया। साथ जाने दिया जावे वरना हम अपने प्राण थे, जिन से माता-पिता, गुरु समाज, धर्म कैसा विलक्षण था जैन श्वेताम्बर भाईयों की न्यौछावर करेंगे। इधर बीकानेर नरेश ने राष्ट्र की सेवा का भाव निरन्तर हृदय में रक्षा का उनका प्रण ! धन्य है। दोनों समुदायों के भाईयों का बुलाया, बना रहे। प्राचीन गुरुकुल पद्धति के बीकानेर की एक बहुत रोमांचक तपागच्छ वालों में मैं भी था। उन सब के अनुसार 'मातृदेवो भव-पितृ देवो घटना है, तब मैं बीकानेर में ही था, गुरुदेव सामने वे तार रखे और पूछा कि यह क्या भव-गुरुदेवो भव' आदि प्रमुख थे जिनका का चातुर्मास कराने की आज्ञा बीकानेर वाले मामला है ? खरतरगच्छ वालों ने श्री पूज्य निरन्तर पाठ होता था और वे संस्कार आज लेकर आये। उस वक्त बीकानेर में जी से पुराने पट्टे ले जाकर यह बताया कि भी गुरुकुल के पढ़े स्नातकों में विद्यमान हैं। खरतरगच्छ के भाई गवाड़ में अधिक रहते ऐसा निर्णय पहले से है औ गुरुकुल के श्री बाबू कीर्ति प्रसाद जी बिनौली थे और तपागच्छ वाले 14वीं गवाड़ में आवेगा, वह हमारी गवाड़ की भूमि में बिना वाले अधिष्ठाता थे, श्री बंसीधर जी निवास करते थे, ऐसे वहां गवाड़ों का गाजे-बाजे के ही निकलेगा। उन्होंने इतने प्रिन्सीपल एवं श्री आत्माराम जी गृहपति थे विभाजन था। खरतरगच्छ के श्रीपूज्य जी तार देखकर यह अनुमान लगा लिया था कि जो अपने कर्त्तव्य बखूबी निभाते थे। महाराज जो भारत के यति समुदाय के सभी कोई महान् आचार्य यहां आ रहे हैं और गुरुदेव में यह विशेषता और त्याग यति व श्री पूज्य अपना प्रमुख मानते थे। उनके प्रवेश पर अगर ऐसा होता है तो की भावना थी और जो प्रशंसा से बिल्कुल वहां के श्री पूज्य जी का उपाश्रय रोगड़ी शासन के लिए भी अपमान जनक है। दूर थे उन्होंने सभी संस्थाओं के आगे अपने चौंक में स्थित था। कई सौ वर्षों से पहले के उन्होंने तपागच्छ वालों से पूछा कि क्या गुरुदेव का नाम ही रखा। गुरुदेव श्री जैन श्री पूज्य जी का बहुत प्रभाव था और पहले से ऐसा हो रहा है, तो सबकी स्वीकृति श्वेताम्बर श्रीसंघों की सेवा के लिए सदा बीकानेर के तत्कालीन नरेश भी उनसे देखी। इन सब बातों के होने पर मैंने नरेश तत्पर रहते थे, यहां तक कि अपने प्राण भी प्रभावित थे और श्री पूज्य जी के कई से यह कहा कि श्रीमान् यह सैंकड़ों साल आवश्यकता पर न्यौछावर करने को तत्पर चमत्कारों से वे अभिभूत थे। तत्कालीन श्री पुरानी आज्ञाएं हैं और अब समय बहुत रहते थे। जब भारत का विभाजन 1947 में पूज्य जी महाराज ने उन से खरतरगच्छ का बदल गया है-आप इन भाईयों से यह पूछिए हुआ तो दूसरा देश पाकिस्तान के रूप में विशेष प्रभाव रखने के लिए यह आज्ञा व कि इनकी गवाड़ में मुसलमान गाजे-बाजे के प्रसिद्ध हुआ। उस वक्त भारत के पंजाब फरमान आदि प्राप्त कर लिया था कि 14 साथ और अन्य धर्म वाले भी ऐसी धूमधाम और इधर जो पाकिस्तान बना उनमें रहने गवाड़ वाले उनकी गवाड़ में प्रवेश करने व से आते हैं ? फिर 14 गवाड़ के लिए ही यह वाले हिन्दू, सिक्खों और पाकिस्तान में रहने जब तक पूरा क्षेत्र समाप्त नहीं होने तक रोक क्यों ? नरेश ने खरतरगच्छ वालों से वाले मुसलमानों के बीच भारी मारकाट मची गाजे-बाजे बन्द रखकर उन्हें जाना होगा पूछा कि ऐसा हो रहा है ? तो उन्होंने और एक दूसरे को मारने के लिए खून की और तद्नुसार ही चल रहा था। इधर जब स्वीकृति दी, तो उन्होंने यह फरमान जारी होली खेली जा रही थी। गुरुदेव उस समय इन महान् आचार्य श्री विजय वल्लभ कर दिया कि अब ऐसा नहीं होगा और गुजरांवाला में थे जो पाकिस्तान के भाग में सूरीश्वर जी का प्रवेश बीकानेर में हो और महान् आचार्य का प्रवेश सर्वत्र धूमधाम से था। वहां गुरुदेव ने यह प्रतिज्ञा की कि जब जुलूस चले तो किसी प्रकार यह हो जाये कि होगा। खरतरगच्छ वालों ने श्री पूज्य श्री तक गुजरांवाला और उसके आस-पास के कहीं वह रुकेगा नहीं। उधर पंजाबी भाई महाराज को सारे निर्णय से अवगत कराया। नगरों में जैन भाई-बहन हैं, जब तक वे यह जानकर इस गवाड़ों के निर्णय से बहुत वे आग बबूला हो उठे ऐसा नहीं होगा और सुरक्षित नहीं पहुंच जाये मैं यहां से हिलूंगा आश्चर्य चकित हुए और उन्होंने भी गुरुदेव यदि हुआ तो हमारा समुदाय जुलूस के आगे ही नहीं। भारत सरकार ने बहुत अनुनय के प्रवेश पर गाजे-बाजे बन्द रहने पर उस लेट जावेंगे। उन्होंने नरेश को भी अपने किया कि यहां आपकी जान को जबरदस्त प्रथा को तोड़ने का निश्चय किया और निश्चय से अवगत करा दिया। बीकानेर खतरा है, पर जब तक गुजरांवाला और उन्होंने तत्काली-बीकानेर नरेश श्री सादूला नरेश ने अपनी आज्ञा का पालन कराने को आस-पास नगरों के जैन श्वेताम्बर भाई सिंह जी को प्रत्येक घर से यह तार दिए कि अपने राज कुमार करवीर सिंह जी को कह 184 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 45 . Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिया कि तोप रख देना और कोई आज्ञा का कथन में रहा हुआ त्याग-तप का प्रभाव। लगा। शेर, चीतों की दहाड़ सुनाई दे रही उल्लंघन करे तो उन्हें तोप से उड़ा देना। एक और प्रकरण अंत में गुरुदेव के थी। मैं चिन्तित होकर एक शिला पर बैठ इस आज्ञा से भारी तनाव हो गया। पंजाबी चरणों का चमत्कार यहां लिख रहा हूँ। गया जैसे ही मैं बैठा, मेरे सिर पर एक ठंडे व बीकानेर के भाई तो बहुत प्रसन्न हुए पर गुरुदेव की मुझ पर अपार कृपा और हाथ का स्पर्श हुआ। मैं खड़ा हो गया देखा खरतरगच्छ में सर्वत्र चिन्ता व्याप्त हो गई। विश्वास था और बाहर मिलने-जुलने की सामने आचार्य भगवन्त खड़े हैं। कहने लगे, __इधर गुरुदेव का प्रवेश बहुत आज्ञा मुझे ही देते थे। उन्होंने मुझे आबू "क्यों डर रहे हो, चलों मैं तुम्हें पहुंचाता हूं धूमधाम से हो रहा था। मैंने उनको पहले ही मंदिर से हणादरा जोकि वहां से तीन-चार और उनके साथ मैं निश्चिन्त होकर चलने सारी स्थिति से अवगत करा दिया था। मील दूर था, वहां मुनिराज श्री शान्ति विजय लगा। बीच में कई विषयों पर बातचीत हुई उन्होंने कहा, “शासनदेव सब ठीक करेगा। जी से मिलकर वापिस सादड़ी पहुंचना, एक और हम लोग बस स्टैंड पर पहुंच गये। बसंती लाल ! सुनो जब श्री पूज्य जी पत्र उनको देकर वापिस उन से उत्तर लाना, गुरुदेव कहने लगे, “देखो ! सामने बस उपाश्रय आवे मुझे बता देना और अपने वह काम तो मैंने कर लिया। सायंकाल का खड़ी है।” मैंने मुड़ कर देखा तो वहां कोई दोनों को उसमें प्रवेश करना है।" मैंने श्री समय था और मुझे आबू पर्वत पहुंचना था, भी नहीं था। मैं अपने स्थान पर पहुंचा और पूज्य जी का उपाश्रय आने की गुरुदेव को सो मैं जाने लगा तो हणादरा के श्रावकों ने गुरुदेव को इस घटना का विवरण सुनाया सूचना दी, पूर्व निर्णय के अनुसार हम दोनों मुझे रोक लिया और पूछा कि आपने और सुनकर वे हँसने लगे। कहने लगे, समें प्रवेश किया। श्री पुज्य जी बहत मनिराज से जाने की आज्ञा प्राप्त कर ली है, “अब और किसी के सामने इसका जिक्र चिन्तित मुद्रा में बैठे थे। गुरुदेव ने उनसे यदि नहीं तो वापिस जाकर आज्ञा प्राप्त नहीं करना। यह था गुरुदेव का महान् कहा, मैं विजय वल्लभ हूं और आपके पास करो। इधर मैं वापिस उपाश्रय में पहुंचा तो प्रताप।" आया हूं।" श्री पूज्य जी तो अवाक रह गये वहां गुरुदेव नहीं थे। उनका चमत्कारी देह लेख समाप्ति पर मैं यही लिखूगा कि जब उन्होंने गुरुदेव के दर्शन किये उनके । से कहीं भी प्रयाण करना यह वहां प्रसद्धि गुरुदेव ने स्वदेश प्रेम, राष्ट्रीय चरित्र तेजोमय भव्य ललाट प्रकाशमान मुख, था। अन्त में रात्रि निकट देख मैंने गुरुदेव निर्माण, साम्प्रदायिक समन्वय और जैन तपस्या त्याग से भरा हुआ। आभामण्डल को की आज्ञा अनुसार वहां से प्रस्थान कर एकता आदि विषयों से जिस प्रभावशाली देखा तो वे खड़े होकर गुरुदेव के चरणों में दिया। वहां के श्रावकों ने कहा, “आप बिना जन भावना का निर्माण किया और गिर पड़े और कहने लगे, “मैं धन्य हूं और आज्ञा जा रहे हो और रास्ता जंगल वाला रचनात्मक कार्य किये वे हज़ारों वर्षों के आपके पधारने पर अब मेरे मन में सभी है। आपको शेर, चीते, पेड़ों पर भूत-प्रेत इतिहास में स्वर्ण रेखा के समान सुशोभित मैल धुल गया है और मैं बाहर सब को मिलेंगे और वे आपको खा जायेंगे।" डर तो रहेंगे। उनका आदर्श जीवन ज्योर्तिमय आज्ञा दे रहा हूं कि सभी जुलूस के साथ मैं गया पर मैंने जाने का ही निश्चय किया। जीवन है जिसके प्रकाश में मानवता पथ चलें।" और इस प्रकार सारा प्रकरण आधे रास्ते तक कुछ भी नहीं हुआ और सदा प्रशस्त होता रहेगा। समाप्त हुआ। यह सब प्रताप गुरुदेव के आधे रास्ते में पहुंच कर मुझे डर लगने श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्रदिन्न-रत्नाकर सद्गुरूभ्यो नमः विजय वल्लभ अमर रहे विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका विजय वल्लभ 185 , Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरु वल्लभ का युग हम कैसे ला सकते हैं अरविन्द कुमार जैन अम्बालवी कलिकालकल्पतरु अज्ञानतिमिर तरणी युगवीर भारत दिवाकर पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज साहिब भारत की उन विभूतियों में से एक थे जिन्होंने उसके निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपका जन्म सम्वत् 1927 को बड़ौदा में हुआ व शिक्षा भी बड़ौदा में हुई। श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी म. सा. ने सम्वत् 1944 राधनपुर में आपको दीक्षा दी तथा अपने प्रशिष्य श्री हर्ष विजय जी महाराज का शिष्य बनाया। भारत देश के जैन संघों ने आपकी कार्यशैली व सुकृत कार्यों से प्रेरित होकर आपकी इच्छा न होते हुए भी आपको सम्वत् 1981 लाहौर में आचार्य पदवी व पट्टधर पद से सुशोभित किया। आपने सारे भारत देश में प्रचार-प्रसार किया। सम्वत् 2011 आजोस वदी एकादशी पुष्य नक्षत्र में आपका बम्बई में देवलोक गमन हुआ। ___गुरुदेव जी का मिशन प्राणी मैत्री, मानव कल्याण, समाजोद्धार, राष्ट्रीय एकता और विश्वबधुंता था। इसे आप पंचामृत कहते थे। गुरुदेव अहिंसा-संयम-तप के आराधक व सम्यग ज्ञान-दर्शन-चरित्र के साधक थे। आपका जीवन मैत्री-प्रमोद-करूणा व माध्यस्थ भावना से परिपूर्ण था। आप जब तक श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी महाराज के सानिध्य में रहे, प्रतिदिन उनका प्रवचन सुनकर अपने जीवन को आत्म लक्षी बनाते थे। महात्माओं के चरित्र सुनने का मूल्य तभी होता है, जब उनके बताए हुए पचिन्हों पर चलने का प्रयत्न किया जाए। आप इनमें स्वयं पूर्ण थे तथा अपने शिष्यों को पूर्ण होने की प्रेरणा देते थे। आपका लक्ष्य था, पहले ज्ञान पीछे क्रिया। चतुर्विध संघ को आप प्रेरणा देते थे कि परमात्मा की वाणी अनुसार यदि आप बिना ज्ञान के क्रिया करते हैं, तो वह निष्फल है, उसका कोई महत्व नहीं है। आप स्वयं उच्च कोटि के लेखक, कवि, गायक व संगीत प्रेमी थे। आपने लगभग 2200 स्तवन-सज्झाय- थुई-पूजाएं-छन्द-दोहे आदि लिखकर जैन समाज को नई दिशा दी। आपने शेर की तरह संयम ग्रहण किया व अन्तिम समय तक शेर की तरह संयम का पालन किया। आप अपने गुरुभक्त श्रावकों को कहा करते थे कि आप साधु-सन्तों से जितना दूर रहोगे, उतनी आपकी श्रद्धा-भक्ति उनके प्रति बनी रहेगी। गुरुदेव जी ने अपने समय काल में साधु-सन्तों को, जो उन्होंने पंच महाव्रत अंगीकार कर संयम लिया था, उसका पूर्ण रूप से परिपालन करने का निर्देश देते थे। यदि कोई ऐसा नहीं करता था, तो उसको पूर्ण दण्ड देने में भी संकुचाते नहीं थे। वे किसी भी शहर के उपाश्रय में ठहरते थे, तो ऐसे स्थान पर बैठते थे जहां पर उन्हें सभी साधु क्या कर रहे हैं, उनकी पूर्ण जानकारी प्राप्त होती रहे। कोई भी साधु अलग कमरे में नहीं ठहर सकता था। किसी भी साधु को पोरसी से कम पचक्कखाण नहीं देते थे। यदि कोई साधु नवकारसी का पचक्कखाण लेने जाता था, तो पूछते, "भाई क्या कल आपने उपवास या आयंबिल किया था ?" जो साधु गोचरी लेकर आते थे, बिना गुरुदेव जी को दिखाए नहीं कर सकते थे। कोई श्रावक भी इतना साहस नहीं कर सकता था कि गोचरी उपाश्रय में लाकर वहोरा सके। कोई भी साधु ज्योतिष-तन्त्र -मन्त्र आदि की जानकारी हेतु शिक्षा ग्रहण कर सकता था, लेकिन इसका उपयोग जनता के लिये नहीं कर सकता था। यदि किसी साधु ने ज्योतिष आदि का उपयोग किया तो उस साधु को अपने परिवार से निष्कासित कर देते थे। अतः उसका बाणा श्रावकों द्वारा उतरवा लेते थे। कोई भी साधु बिजली, पंखा, आदि का उपयोग नहीं कर सकता था। स्वयं टेलीफोन न कर सकता था और न ही 186 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1500 Jain Edu n ion torary.org Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने पास रख सकता था। साधुओं के उपाश्रय में बहिनें व साध्वियों के उपाश्रय में भाई प्रवचन समय को छोड़कर अकेले नहीं आ जा सकते थे। सूर्यास्त होने पर तो उसका भी पूर्णरूपेण निषेध था। साधु को प्रतिदिन दोनों समय प्रतिक्रमण व पड़िलेहना करनी आवश्यक थी। कोई भी साधु विहार समय को छोड़कर किसी के घर नहीं ठहर सकता था। किसी के घर जाकर पूजा पाठ नहीं कर सकता था। बिना श्री संघ की रसीद के श्रावकों से पैसा लेकर किसी स्थान पर नहीं भेज सकता था। गुरुदेव जी संयम लेने वाली जीवात्मा को पूर्ण रूप से साधुता में रहना चाहिए, इसका पूर्णतया पालन करवाते थे। वह कहते थे कि यदि साचु स्वयं आचरण युक्त नहीं होगा तो वह ओरों को कैसे आचरण पालन की प्रेरणा देगा ? गुरुदेव श्रावकों को भी समझाते थे कि जो जीवात्मा श्रद्धा-विवेक से ज्ञान युक्त किया करता है, वही श्रावक कहलाने का अधिकारी है। शास्त्रों में श्रावक को साधु-सन्तों के माता पिता की उपमा दी गई है। जैसे माता-पिता अपने बच्चों के जीवन उत्थान के लिए, उसे उन्मार्ग से सन्मार्ग में लाने हेतु प्यार से, क्रोध से डंडे आदि से प्रताड़ित करे तो भी वह दोष के अधिकारी नहीं है। क्योंकि इसके पीछे माता-पिता के मन में बच्चों के जीवन के आत्म-उत्थान के लिए शुभ भावना है। इसी तरह श्रावक का यह परम कर्तव्य है कि साधु-सन्त भी यदि उन्मार्गे चले, तो उनको प्यार से या कड़काई से समझाते हुए, “कि गुरुदेव आपने संयम स्वकल्याण व 50 Jain Lotion International परकल्याण हेतु धारण किया है। यह कार्य साथ के करने योग्य नहीं है, कृप्या अपने जीवन में संशोधन करें।" गुरुदेव जहां साधुओं को पंच महाव्रत का पालन करने के लिए कहते थे, वहाँ श्रावकों को भी श्रावक के 12 व्रत पालन करने के लिए प्रेरणा देते थे । यह भी समझाते थे कि यदि साधु चौथे व्रत से गिर जाता है, तो उसके बाकी के चार व्रतों की भी कोई कीमत नहीं रहती, ऐसा साथ पूर्णरूप से पतन मार्ग की ओर चल पड़ता है। इसी प्रकार जो श्रावक चौथे व्रत से गिर जाता है, तो उसके भी बाकी 11 व्रतों की कोई कीमत नहीं। साधु-साध्वी, श्रावक - श्राविका चतुर्विध संघ कहलाता है। इसके ऊपर आचार्य होते हैं। आचार्य कितने भी हो सकते हैं लेकिन पट्टधर या गच्छाधिपति एक ही होता है, इनका स्थान सर्वोपरी है अतः चतुर्विध संघ को गच्छाधिपति की आज्ञानुरूप ही उनके मार्गदर्शन अनुसार चलना होता है। ऐसे चतुर्विध संघ को शास्त्रों में पच्चीसवें तीर्थंकर की उपमा दी गई है। 1 गुरुदेव जी ने चोर को चोरी करने पर दोषी न ठहराते हुए स्वयं को दोषी ठहराया है। यदि भूखे को व उसके परिवार को भरपेट खाने के योग्य नहीं बना सकते, तो वह गलत क्रियाएं ही करेगा। हमारा कर्त्तव्य है कि कोई भूखा न रहे, कोई अशिक्षित न रहे, यदि इस अनुरूप हम कार्य करते हैं तो हमारे समाज का भविष्य उज्जवल होगा। यही सच्ची साधर्मी भक्ति है। गुरुदेव जी ने इस लक्ष्य को लेकर गुरुकुल, विद्यालय, विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका For Frwale & Personal Lise Only. महाविद्यालय आदि के भारत विभिन्न-विभिन्न प्रदेशों में आरम्भ करवाये। इन शिक्षण संस्थाओं में हमारे बच्चे सुसंस्कारी बने, आज्ञावान बने, समर्पित भाव बने, इसलिए शिक्षण संस्थाओं में व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ विधि ज्ञान भी अनिवार्य दिया जाता था। जो आज लुप्त हो गया है। गुरुदेव जी की भावना श्रावक पूर्णरूपेण बने। इसलिए प्रतिदिन श्री मन्दिर जी में जिन पूजा, ज्ञान युक्त बनने के लिए, परमात्मा की वाणी सुनने के लिए उपाश्रय में प्रवचन, दोनों समय प्रतिक्रमण, पर्व तिथि को पौषच, कन्दमूल का त्याग, रात्रि भोजन का त्याग, अभक्ष्य पदार्थों का त्याग आदि करने के लिए तथा अठारह पापस्थानों से बचने के लिए प्रेरणा देते थे। गुरुदेव जानते थे कि यदि श्रावक पूर्ण रूप से जागृत होगा और सही क्रियाएं करेगा तो साधु भी कभी उन्मार्गे नहीं जा सकता। आज समाज के सामने यह प्रश्न है कि गुरु वल्लभ का युग हम कैसे ला सकते हैं ऐसा सोचने पर हमें क्यों विवश होना पड़ा ? आज हमारे चरित्रनायक गुरु वल्लभ जी की क्या भावना थी और हम कहाँ जा रहे हैं ? आज हम अपनी मंदबुद्धि से कहते हैं कि गुरुदेव जी की भावनानुसार, समय-काल-भाव अनुसार हमें बदलना चाहिए जो हमारे गुरुदेव श्री आत्माराम जी महाराज ने यति-पूजों को समाप्त करने का अभियान चलाया था, क्या उसके द्वारा निर्माण करने के लिए? क्या साधु मोबाईल फोन अपने पास रखकर समय- बेसमय, योग्य व I 187 Banary.org Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अयोग्य भाई-बहिनों से बातचीत करें जाने वाले स्थानों पर जावे ? तथा उसका पांच-छः हजार का बिल समय-काल-भाव का यदि हम यह गुरुभक्तों एवं श्रीसंघों से दिलवाए? क्या भावार्थ करते हैं, यही परिभाषा करते हैं, साधु श्राविकाओं को या साध्वियों को तो सर्वथा अनुचित है। गुरुदेव जी ने अकेले कमरे में बैठकर दरवाजा बन्द जिस उद्देश्य से शिक्षण संस्थाए खोली थीं कर बातचीत करे ? जिससे दोनों का आज हम उन उद्देश्यों से बहुत दूर हो पतन हो सकता है। क्या घर-घर जाकर चुके हैं। भक्तामर स्तोत्र का पाठ करके श्रावकों आओ हम सब (साधु-साध्वी, से पैसा एकत्र करे ? क्या साधु रात्रि को श्रावक-श्राविका) मिल-जुल कर श्री भोजन करें या शाम की गोचरी करते आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्र-रत्नाकर सूरि समय गोचरी छोड़कर गुरुभक्त श्रावकों के झण्डे के नीचे एकत्रित होकर हमारे की बांहों में बांहें डालकर मिलें ?क्या में जो त्रुटियां व कुरीतियां आ गई हैं, साधु श्रावकों को ज्योतिष-तंत्र-मंत्र उनको दूर करें एवं वर्तमान गच्छाधिपति आदि चमत्कार दिखाकर अपने गुरु ___ जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर भक्त बनाए एवं उनसे नाजायज़ लाभ सूरीश्वर जी महाराज साहिब से दिशा प्राप्त करे? क्या साधु गाड़ियों व जहाज़ों निर्देश लेते हुए समस्त चतुर्विध संघ में बैठकर सफर करे? क्या श्रावक चौथे उनकी आज्ञा का पालन करे। जो उन्होंने व्रत को छोड़कर परस्त्री गमन करे ? आज से 10 वर्ष पूर्व बम्बई में क्या श्रावक मन्दिर उपाश्रय न जाकर, न क्षमायाचना संक्रान्ति पर जो आत्म वल्लभ का युग लाने का उद्घोष किया । था, उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर । उनके मार्गानुसार चलें तो वह दिन दूर नहीं है कि हम धीरे-धीरे आत्म-वल्लभ के यग में प्रवेश करेंगे। इसी तरह से वल्लभ गुरु जी की आज्ञानुसार हम साधु-साध्वी, श्रावकश्राविका चलेंगे तो अर्द्धशताब्दी वर्ष मनाने की सार्थकता है अन्यथा वाणी विलास है। जब तक सूरज चाँद रहेगा। वल्लभ तेरा नाम रहेगा। 188 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका womadrary.org Jain EdIR o mal Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मरूनगरी बीकानेर एवं पंजाब केसरी । श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. - देवेन्द्र कुमार कोचर, बीकानेर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. एक प्रखर ज्योति पुँज के समान थे, जिसकी किरणें समस्त भारत के विभिन्न प्रांतों में बिखरी हुई है। उनके असाधारण व्यक्तित्व का प्रभाव, जैन-अजैन समाज पर समान रूप से पड़ा। उन्होंने 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का सिद्धांत कार्य रूप में परिणत करके दिखाया। आचार्य श्री असाधारण व्यक्तित्व एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे एक धर्माचार्य, शास्त्र मर्मज्ञ, श्रेष्ट कवि, साहित्य सृजक एवं समाज सुधारक थे। उनकी वर्तमान में, स्वर्गारोहण की अर्द्धशताब्दी मनायी जा रही है। उन्होंने अपने दादा गुरुदेव 'श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी म.सा. (प्रसिद्ध नाम श्री आत्माराम जी म.सा.) के आदेश का पालन कर, पजाब प्रांत को मुख्य कार्यस्थली बनाया, लेकिन अन्य प्राँतों के निवासियों की विनती पर, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात आदि में विचरण किया एवं उल्लेखनीय कार्य किये। राजस्थान की मरूनगरी बीकानेर वल्लभ नगरी के रूप में जानी जाती है। आचार्य श्री ने इस नगरी को अपनी चरण धूलि से एक से अधिक बार पावन किया। आचार्य श्री ने बीकानेर में तीन चातुर्मास क्रमशः विक्रम संवत् 1978, 2001 व 2005 किये। उनके चातुर्मास के अन्तर्गत कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य एवं घटनाएँ घटी उनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है :प्रथम चातुर्मास (विक्रम संवत् 1978 चैत्र सुदि मार्गशीर्ष वदि 5) 1. भाद्रपद सुदी 11 को जगद्गुरु हीर सूरीश्वर जी म.सा. की जयन्ती समस्त भारत में मनाने की शुरूआत, आपने प्रेरणा करके करवायी। यह जगदगुरु के प्रति अपनी अटूट भावना प्रकट करने का माध्यम बनी। 2. कोचरों में आपस में तनाव के कारण दो धड़े थे। वे आपके उपदेश से एक हो गये। 3. धर्मात्मा सेठ श्री सुमेरमल जी सुराणा की प्रार्थना से आपने दो पूजाएँ बनाई। एक पाँच ज्ञान की एवं दूसरी सम्यग्दर्शन की। 4. चातुर्मास के दौरान, चार मासखमण, पाँच मासखमण, पंद्रह अट्ठाईया, दौ सौ तेले और दो सौ बेले हए थे। आपने केवल बारह द्रव्य खाने की छूट रखी थी। द्वितीय चातुर्मास (विक्रम संवत् 2000 फाल्गुन सुदी 14 विक्रम संवत् 2001 मार्गशीर्ष वदि 6) 1. सेठ श्री मूलचन्द जी डागा की सुपुत्री एवं श्री ऋषभ चंद जी डागा की बहिन ममोल की दीक्षा वैशाख बदी को बड़ी धूमधाम से हुई। उनका नाम मुक्ता श्री जी रखा गया। 2. भगवान् श्री पार्श्वनाथ जी, कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य जगद्गुरु श्री हीर विजय सूरि जी एवं नवयुग निर्माता आचार्य श्री विजयानन्द सूरि जी महाराज की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा, कोचरों की दादावाड़ी में वैशाख सुदि 6 के दिन कराई गई। 3. आचार्य श्री के उपदेश से श्री श्वेताम्बर जैन आयम्बिल शाला का उद्घाटन हुआ। 4. चातुर्मास के दौरान 11 पुरुषों ने मासखमण, 15 ने दस दिन के उपवास व 250 अट्ठाईयाँ हुई। 5. आचार्य श्री के आज्ञानुवर्ती साहित्याचार्य मुनि श्री चतुर विजय जी महाराज का कार्तिक वदी 14 (17.10.44) को स्वर्गवास हो गया। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 189 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 190 5. आचार्य श्री के आज्ञानुवर्ती साहित्याचार्य मुनि श्री चतुर विजय जी महाराज का कार्तिक वदी 14 (17.10.44) को स्वर्गवास हो गया। 6. आचार्य श्री के 65वें वर्ष की पूर्ति पर हीरक महोत्सव कार्तिक वदि 13 से कार्तिक सुदी 2 तक बड़ी धूमधाम से मनाया गया। 7. संवत् 1908 से चले आ रहे 13 व 14 गवाड़ (मोहल्ला) के झगड़ों के कारण, भगवान् की रथयात्रा, सारे शहर में फिर नहीं सकती थी। आचार्य श्री के सद्प्रयत्नों से कार्तिक सुदी 2 के दिन श्री वीतराग प्रभु की रथयात्रा बड़े उत्साह एवं धूमधाम से निकली। शहर के वेदों के चौक में स्थित भगवान् श्री महावीर स्वामी जी के मंदिर से प्रभु की सवारी निकाली गई, जो सिपाणी, बाँठिया, रामपुरिया, राखेचा और गोलछों के चौक से होकर कोटगेट के मार्ग से श्री पार्श्वचन्द्र गच्छ की दादाबाड़ी पहुँची। वापिसी में गोगागेट से प्रवेश करती हुई बागड़ी, डागा, कोचर सेठिया, ओसवाल कोठारियों के मोहल्लों से होती हुई रांगड़ी चौंक से खरतरगच्छ के श्री पूज्य जी के उपाश्रय के आगे से होती हुई, श्री चिन्तामणि जी के मंदिर के मार्ग से सर्राफा बाजार होती हुई समस्त नगर में, पूरे राजकीय ठाठ बाठ से बड़े समारोह पूर्वक भगवान् श्री महावीर स्वामी जी के मंदिर में पधारी। इस रथयात्रा में आचार्य श्री, शिष्य समुदाय के साथ शामिल थे। बीकानेर में यह रथ यात्रा, इसलिये भी स्मरण रहेगी क्योंकि भगवान की सवारी में से भी ली जानी वाली भेंट (टेक्स) हमेशा के लिये बंद हो गई। 8. मार्गशीर्ष वदि को आचार्य श्री के शिष्य एवं तपस्वी मुनि श्री विक्रम विजय जी म.सा. का देवलोक गमन हुआ । तृतीय चातुर्मास (विक्रम संवत् 2005 चैत सुदि 6 शनिवार) मार्गशीर्ष वदी 3 शुक्रवार 1. आचार्य श्री के सउपदेश के फलस्वरूप, पालीताणा में “श्री आत्मानन्द जैन भवन पंजाब" नाम की धर्मशाला का निर्माण करने का निर्णय हुआ। पंजाबी भाईयों ने पूर्ण भी किया। आचार्य श्री के सउपदेश से प्रेरणा लेकर एक उदारमन सज्जन ने मन ही प्रतिज्ञा की कि 'गुरुदेव ने बीकानेर निवासियों को पालीताणा में एक धर्मशाला बनवाने का उपदेश दिया है, उसको मैं पूरा करूँगा और काम करके ही यह बात प्रकट करूँगा। 2. आज तीर्थाधिराज की शीतल छाया में श्री पार्श्व वल्लभ विहार (जिन मंदिर, गुरु मंदिर) और धर्मशाला बीकानेर के सुप्रसिद्ध सेठ श्रीमान् प्रसन्न चन्द्र जी कोचर की मूक भक्ति की यश पताका फहरा रही है। 3. आचार्य श्री के 71वें वर्ष के प्रवेश पर उत्सव बड़ी धूमधाम एवं गुरुभक्ति से सराबोर हो कर मनाया। आचार्य श्री की प्रेरणा से महिलाओं के स्वावलम्बी बनाने हेतु महिला उद्योगशाला स्थापित करने का निर्णय लिया होगा। 4. उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि आचार्य श्री ने बीकानेर के तीन चातुर्मासों में जैन धर्म को उद्योत किया एवं समाज के विभिन्न वर्गों के कल्याण हेतु प्रेरणा देकर ऐसे रचनात्मक कार्य करवाये, जो नगरवासियों के लिये अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद रहेंगे। " समन्वय दृष्टि में समभाव बसता है । समभाव में सबके प्रति स्नेह और प्रेम झलकता है। स्नेह भावना पत्थर को भी मोम बना देती है । " विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका बल्लभ विजय Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य के 36 गुणों से यात 36 गुणों से सम्पन्न जैनाचार्य श्री मद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म सभी प्राणी सुख चाहते हैं। सुख दो प्रकार से प्राप्त होता है। पहला भौतिक साधनों के द्वारा दूसरा आध्यात्मिक साधनों द्वारा, भौतिक साधनों के द्वारा प्राप्त हुआ सुख पराधीन होता है, जब तक वह वस्तु रहती है, तब तक वह सुख रहता है। वस्तु के चले जाने पर सुख भी चला जाता है। इसलिए इसे सुखाभाष कहते हैं। क्योंकि यह सुख दूसरी वस्तु के अधीन है। इसलिए इसे पराधीन कहा गया है। दूसरे प्रकार का सुख है, आध्यात्मिक सुख अर्थात आत्मा की उच्चतम अवस्था द्वारा प्राप्त सुख, यह सुख स्वाधीन होता है। अपनी ही आत्मा के अधीन होता है। यह अपनी ही आत्मा का गुण है। तीर्थंकर परमात्मा इसी सुख को प्राप्त करने का उपदेश देते हैं। इस सुख के सामने सारे ब्रह्मण्ड के सुख क्षीण एवं तुच्छ पड़ जाते हैं। इस सुख में दुख का मिश्रण नहीं होता नही इसका परिणाम दुखमय होता है। ऐसा एकांत और नित्य सुख ही वास्तव में सुख कहलाता है। ऐसा सुख प्राप्त कराने वाले पाँच पदार्थ हैं (1) ज्ञान (2) दर्शन (3) चरित्र (4) तप (5) वीर्य । यह पांच पंचाकार कहलाते हैं। पंचाकार का स्वयं पालन करने वाले तथा दूसरों से पालन करवाने वाले मुनिराज आचार्य कहलाते हैं। लेकिन सच्चा आचार्य वही हो सकता है जिसमें निम्नलिखित 36 गुण हों: आचार्य के 36 गुण: पंचिंदिय-संवरणो, तह नव विह-बंभचेर-गुत्ति-धरो। चउविह-कसाय-मुक्को, इअअट्ठारस गुणेहिं संजुत्तो॥ पंच-महव्वय जुत्तो, पंचबिहायार पालण-समत्थो। पंच-समिओ ति-गुत्तो, छत्तीसगुणो गुरु मज्झ॥ अर्थात पाँच इन्द्रियों को वश में रखने वाले, नव विध-ब्रह्मचर्य की गुप्ति को धारण करने वाले, क्रोधादि चार प्रकार के कषायों से मुक्त, इस प्रकार अठारह गुणों से युक्त, पांच महाव्रतों से युक्त, पाँच प्रकार के आचारों के पालन करने में समर्थ, पाँच समिति और तीन गुप्तियों से युक्त इस प्रकार छत्तीस गुणों से युक्त आचार्य कहलाते हैं। (1) पंचिंदिय संवरणो : इन्द्रियाँ पाँच हैं आचार्य भगवन् स्पर्शनेन्द्रिय (चर्म) रसनेन्द्रिय (जिव्हा), घ्राणेद्रिय (नासिका), चक्षुरिन्द्रिय (नेत्र),और श्रोत्रेन्द्रिय (कर्ण) सदगुरु इन पाँच इन्द्रियों को वश में रखने वाले होते हैं। (1) स्पर्शनेन्द्रिय : स्पर्शनेन्द्रिय के वश में होकर हाथी खाड़े में पड़कर वध-वधन मृत्यु आदि के दुःख पाता है। स्पर्श की प्राप्ति होने पर राग द्वेष उत्पन्न नहीं होना चाहिए। (2) रसनेन्द्रिय : रसना इन्द्रिय में आसक्त होकर मछली अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है। एसा समझकर राग द्वेष उत्पन्न करने वाले रसों के आस्वादन से बचना चाहिए। (3) घ्राणेन्द्रिय : घ्राणेन्द्रिय के विषय में आसक्त भ्रमर फूल में फंसकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। तो मनुष्य का क्या हाल होगा? इस प्रकार राग द्वेष उत्पन्न करने वाले गंध को सूंघने से बचना चाहिए। (2) चक्षुरिन्द्रिय : चक्षु-इन्द्रिय के विषय में आसक्त पतंग दीपक पर गिर कर मर जाता है। तो मनुष्य का क्या हाल होगा? इस प्रकार राग द्वेष उत्पन्न करने वाले रुप का अवलोकन नहीं करना चाहिए और यदि कदाचित दृष्टिगोचर हो जाए तो राग द्वेष उत्पन्न नहीं होना चाहिए। (5) श्रोत्रेन्द्रिय : जिसके द्वारा शब्द सुना जाता है उसे श्रोत्रेन्द्रिय कहते हैं। श्रोत्रेन्द्रिय विषय के आसत्ति के कारण मृग अपने प्राणों से हाथ धो बैठता है। सर्प को बंधन से फँसना पड़ता है। जो श्रोत्रेन्द्रिय को अपने काबू में रखता वह क्रमश: मोक्ष प्राप्त करता है। (2) नव विह-बंभचेर-गुत्ति धरो : नौ प्रकार के नियम पूर्वक ब्रह्मचर्य का शुद्ध पालन करने वाले जैसे: 1) स्त्री, पशु और नपुंसक से रहित स्थान में रहें। 2) स्त्री सम्बन्धी बातें न करें। 3) स्त्री जिस आसन पर बैठी हो, उस आसन पर दो घडी तक न बैठे। 4) स्त्रियों के अंगों पाँगों को आसक्ति पूर्वक न देखें। 5) दीवार की आड़ में स्त्री पुरुष जोड़ा रहता हो ऐसे स्थान पर न 450% विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 191 Jain Education Private & Personal Use Only Sww.janabrary.org Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहें । 6) पूर्वकाल में जो स्त्री के साथ क्रीड़ा की हो, उसका स्मरण न करें । 7) मादक आहार पानी उपयोग में न लें। 8) प्रमाण से अधिक आहार न करें, पुरुष के आहार का प्रमाण 32 ग्रास है। 9) शरीर का श्रृंगार न करें। 1 जैसे किसान खेत की रक्षा के लिए खेत के चारों तरफ काँटों की बाढ़ लगाते हैं उसी प्रकार ब्रह्मचारी पुरुष ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए 9 बाड़ों का पालन करते हैं। उक्त 9 बाड़ों में से किसी एक बाड़ को भंग करने वाले ब्रह्मचारी को शंका उत्पन्न हो जाती है कि मैं ब्रह्मचर्य का पालन करूँ या न करूँ इस प्रकार का संदेह उसके चित्त में उत्पन्न हो जाता है। उसके हृदय में भोग भोगने की इच्छा जाग्रत हो उठती है। इसका अन्तिम फल यह होता है कि ऐसे पुरुष केवली - प्ररूपति धर्म (संयम) से भ्रष्ट हो कर अनन्त काल तक संसार भ्रमण करते हैं, ऐसा जानकर आचार्य महाराज स्वयं तो नव वाड़ युक्त ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। दूसरों से भी इस प्रकार ब्रह्मचर्य का पालन कराते हैं। ( 3 ) चडविह कसाय मुक्को: चार प्रकार के कसाय से मुक्त होने चाहिए। 1) क्रोध न करना । 2) मान न करना। 3) माया (कपट) का सेवन न करना। 4) लोभ लोलुप न होना। : जिसके परिणाम से संसार की वृद्धि होती है और जो कर्म बन्ध का प्रधान कारण है। वह आत्मा का विभाव परिणाम कषाय कहलाता है। कषाय आत्मा का प्रबल वैरी है। जैसे पीतल के पात्र में रखा हुआ दूध, दही कसैला विषाक्त होकर फेंक देने के योग्य हो जाता है। इसी प्रकार कषाय रुपी दुर्गण से आत्मा के संयम आदि गुण नष्ट हो जाते हैं, इसी कारण इन्हें कषाय कहते हैं। कषाय के चार भेद होते हैं। क्रोध को उपशम से जीतना चाहिए, मान को मार्दव (म्रदुता- कोमलता) से जीतना चाहिए, माया को सरलता से जीतना चाहिए और लोभ को संतोष से जीतना चाहिए। : 4) पंच महव्वय - जुत्तो आचार्य पाँच महावृतों का यथार्थ रीति से पालन करने वाले होते हैं। यथा (1) मन, वचन, काया से किसी प्राणी की हिंसा न करें। (2) मन, वचन, काया से असत्य न बोलें । 192 Jain Education Internation (3) मन, वचन, काया से अदत्त न लेवें । (4) मन, वचन, काया से मैथुन सेवन न करें। (5) मन, वचन, काया से परिग्रह न रखें। पंच महाव्रत : अहिंसा: तीन करण करना, कराना, किये की अनुमोदना, तीन योग, मन, वचन, काय, आचार्य भगवन्, तीन करण और तीन योग से किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करते पहला महाव्रत है। प्राण धारण करने वाले को प्राणी कहते हैं। प्राण दस प्रकार के हैं । 1. श्रोत्रोन्द्रिय बल प्राण, 2. चक्षुरिन्द्रिय बल प्राण, 3. घ्राणेन्द्रिय बल प्राण. 4. रसनेन्द्रिय बल प्राण, 5. स्पर्शनेन्द्रिय बलप्राण 6. मन बल प्राण (त्वचा), 7. वचन बल प्राण, 8. काम बल प्राण, 9. श्वासोच्छवास बल प्राण, 10. आयु बल प्राण 1. एक इन्द्रिय को धारण करने वाले मृत्तिका, पानी, वायु, अग्नि और वनस्पति के पाँच प्रकार के जीव स्थावर कहलाते हैं। इनमें चार प्राण पाये जाते हैं जैसे: स्पर्शनेन्द्रिय, काय, श्वासोच्छवास, आयु बल प्राण । 2. द्रीन्द्रिय: स्पर्शनेन्द्रिय और रसेन्द्रिय वाले जीवों में छ: प्राण पाये जाते हैं। इनमें रसेन्द्रिय और वचन बल प्राण अधिक होता है। जैसे शंख सीप आदि जीव 3. त्रीन्द्रिय: स्पर्श रस और घ्राणेन्द्रिय जीवों में सात प्राण पाये जाते हैं। इनमें घ्राण प्राण अधिक होता है जैसे खटमल जूँ चींटी आदि 4. चौइन्द्रिय: स्पर्श, रस, घ्राण, चक्षु, जीवों में आठ प्राण पाये जाते हैं। इनमें चक्षु प्राण अधिक होता है जैसे भौंरा आदि. 5. मन रहित पंचेन्द्रिय जीवों में नौ प्राण पाये जाते हैं। इनमें श्रेत्रेन्द्रिय प्राण अधिक होता है । मन सहित पंचेन्द्रिय जीवों में दस प्राण पाये जाते हैं। इनमें मन बल प्राण अधिक होता है। इन सभी प्राणियों की हिंसा का पूर्ण रूप से आजीवन त्याग करना प्रथम महाव्रत है। दूसरा महाव्रत : क्रोध, लोभ, भय, हास्य आदि के वश में होकर तीन योग से किसी भी प्रकार झूठ न बोलना दूसरा महाव्रत मृषावाद विरमण कहलाता है । विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका dule & Personal Use Only 50 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसरा महाव्रत : सब प्रकार के दान से निवृत होना अर्थात बिना मांगे नहीं लेना। ग्राम नगर या जंगल में से थोड़े या बहुत मुल्य की वस्तु छोटी या बड़ी मनुष्य पशु पक्षी आदि रुचित सजीव वस्तु, वस्त्र, पात्र, आहार स्थान आदि निर्जीव सचित वस्तु स्वामी के द्वारा दिये बिना तीन करण तीन योग से ग्रहण नहीं करना चाहिए। यही अदत्ता दान विरमण व्रत कहलाता है। चौथा महाव्रत : तीन करण एवं तीन योग से मैथुन सेवन का त्याग इस प्रकार सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना ब्रह्मचर्य महावृत कहलाता है। स्त्री के हाव, भाव, विलास, और श्रृंगार की कथा न करना, स्त्री के गुप्त अंगों पाँगों को विकार दृष्टि से न देखना, ग्रहस्थाश्रम में भोगे हुए काम भोगों को याद नहीं करना, मर्यादा से अधिक तथा कामोत्तेजक तक सरस आहार सदैव भोगना, जिस मकान में स्त्री, पशु या पंडक (नपुंसक) रहते हों उसमें न रहना, मैथुन का सेवन घोर अधर्म का मूल, नौ लाख संज्ञी मनुष्यों और असंख्यात असंज्ञी जीवों को घात रुप में महा दोष का स्थान है, इसके सेवन से पाँचों महाव्रतों का भंग हो जाता है। ऐसा समझ कर निर्गन्ध मुनि मैथुन का सर्वथा त्याग कर देते हैं । पाँचवां महाव्रत सब परिग्रह का तीन करण तीन योग में त्याग करना पाँचवा परिग्रह विरमण व्रत कहलाता है। 5) पंच विहायार पालण आचारों का पालन करने में समर्थ जैसे : 1. ज्ञानाचार का पालन करें। 2. दर्शनाचार का पालन करें। 3. चरित्राचार का पालन करें। 4. तपाचार का पालन करें। 5. वीर्यचार का पालन करें। समत्थो : पाँच प्रकार के पंच विहायार पालण | ज्ञानाचार का पालन ज्ञान आराधनीय आचारणीय वस्तु है ज्ञान की स्वयं आराधना करने वाले ज्ञान सम्पन्न आचार्य होते हैं। वे दूसरों को भी ज्ञानी बनाने का प्रयास करते हैं तीर्थंकरों द्वारा उपविष्ट और गणधरों द्वारा रचित द्वादशांगी रूप शास्त्रों को आचार्य महाराज स्वयं पठन करते हैं और दूसरों को भी पढ़ाते हैं । दर्शानाचार का पालन दर्शन दो प्रकार का होता सत्यदर्शन या सम्यक दर्शन दूसरा मिथ्या दर्शन जिस पदार्थ का जैसा स्वरुप है उस पर उसी रुप से श्रद्धा करना सम्यक् दर्शन है। दूसरा मिथ्या दर्शन सत्य को मिथ्या देखना, मिथ्या रुपी प्रतीती या श्रद्धा करना मिथ्या दर्शन है। जैसे:पीलिया रोग के रोगी को श्वेत पदार्थ पीला ही दिखाई देता है। आचार्य जी में मिथया दर्शन नहीं होता वे सम्पक दर्शन से सम्पन्न होते हैं और दूसरों को भी सम्पन्न बनाते हैं। चरित्राचार क्रोध आदि चारों कषायों से अथवा नरकादि चारों गतियों से आत्मा को बचा कर मोक्ष गति में पहुँचावे वह चरित्राचार कहलाता है। आचार्य चरित्र के दोषों से यत्न पूर्वक बच कर चरित्राचार का पालन पालन करते हैं। : तपाचार : तप 12 प्रकार के होते हैं 6 बाहय तप 6 अभ्यंतर तप बाहयतप अनसन, ऊनोचरी, भिक्षाचार्य, रसपरित्याग, काय, क्लेश और प्रति सालीनता इस प्रकार 6 तप हुए एवं प्रायश्चित, विनय वैयाव्रत्य (वैयावच्च), स्वाध्याय, धयान और कायोत्सर्ग यह 6 अभ्यंतर तप है। आचार्य महाराज इस प्रकार के तप को करते हैं और करवाते हैं। वीर्यचार : आचार्य जी पाँचों व्यवहारों के ज्ञाता होते है-आगम व्यवहार, सूत्र व्यवहार, आज्ञा व्यवहार, धारणा व्यवहार और जीत व्यवहार आचार्य इसी के अनुसार प्रव्रत्ति करते हैं, कराते हैं और बोध देकर भव्य जीवों को धर्म के प्रति अग्रसर करते हैं, मोह निद्रा में मस्त मनुष्यों को सावधान और जाग्रत करते हैं तथा संघों को यथा योग्य धर्म सहाय देकर और दूसरों से दिला कर धर्म और संघ का अभ्युदय करते है धर्म कार्य में स्वयं प्रवत्त होते हैं तथा दूसरो को करते हैं। यही वीर्याचार कहलाता है। 6 ) पंच समिओं : पाँच प्रकार की समित का पालन यथा: 1) चलने में सावधानी रखे। 2) बोलने में सावधानी रखें। 3) आहार पानी लेने में सावधानी रखें। 4. वस्त्र, पात्र लेने, रखने में सावधानी रखें। 5) मल, मूत्र आदि परिष्ठापन में सावधानी रखें। 7) ति-गुत्तो : तीन गुणों से युक्त हो यथा:1. मन को पूर्णतयावश में रखें। 2. वचन को पूर्णतया वश में रखें। 3. काया को पूर्णतया वस में रखें। गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. में यह 36 गुण विद्यमान थे। इन्हीं गुणों के कारण चतुर्विध संघ ने उन्हें आचार्य पदवी से विभूषित किया था। विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका ivate & Personal Use Only 193 www.jainelinery.org Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिज्ञाधारी आचार्य राजेश जैन लिगा, लुधियाना जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. का स्वभाव वज्र से भी कठोर, कुसुम से भी कोमल था। आचार्य श्री ने अपने ध्येय की सिद्धि के लिए समय-समय पर प्रतिज्ञायें लीं। इनके प्रभाव से आचार्य श्री का अधिक आत्मविकास हुआ और कार्य सिद्ध हुए। आप समाज का कल्याण साधने के उच्च भावना से प्रेरित हो कर ही अपने शरीर को कष्ट देने, मन को अधिक मननशील बनाने, आस-पास सं. 1977 में बीकानेर में प्रतीज्ञा के वातावरण को पवित्र बनाने और सभी ली थी कि, “जब तक मैं पंजाब न पहुंचूँगा, सुखी हों, इस मंगल भावना के साथ ही तब तक के आठ ही पदार्थों का प्रयोग प्रतिज्ञा लेते थे और उन प्रतिज्ञाओं ने जो करूंगा। इनमें दवाई भी शामिल होगी।" चमत्कार दिखाये हैं, उन्हें हम सबने सुना स्वर्गीय आचार्य श्रीमद् विजय ललित सरि भी है और किताबों में पढ़ा भी है। जी म. और दूसरे मुनियों के आग्रह से आपने आचार्य श्री जी ने बम्बई में जैन आठ के स्थान पर दस पदार्थ रखे, परन्तु यह कांफ्रेंस के स्वर्ण महोत्सव के सुअवसर पर भी नियम लिया कि “यदि एक या दो अधिक कहा था, "तुम खीर पूड़ी खाओ और पदार्थ उपयोग में आ जायेंगे. तो जितने अधिक तुम्हारा भाई भूखा रहे, तुम रेशमी वस्त्र उपयोग में आ जायेंगे तो दुगने पदार्थ दूसरे पहनो और तुम्हारे भाई को तन ढांपने दिन त्याग दूंगा।” इसके सिवा प्रतिदिन के लिए कपड़ा भी न हो, क्या यह बात एकासना करते थे। आपने पंजाब पहुंचने तक तम्हें शोभा देती है ?" गुरुदेव ने कार्तिक इस प्रतिज्ञा का पालन किया। दूसरी प्रतिज्ञा सुदि चौदस को प्रतिज्ञा ली, “यदि श्रावक यह ली कि, “जब तक पंजाब में गुरुकुल न श्राविकाओं के उत्कर्ष फंड में पांच लाख बनेगा तब तक एकासना के साथ-साथ रुपया जमा न हुआ तो मैं दूध का एवं चीनी चौदस पूनम और चौदस अमावस्या का का त्याग कर दूंगा।" हजारों हृदय इस बेला. महीने की बारह तिथियों के दिन प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए कैसे प्रयत्नशील मौनव्रत धारण करूंगा और गांवों या शहरों हुए थे। लखपति-करोड़पति, वृद्ध-युवक- में प्रवेश के समय बाजों की धूमधाम का महिला बच्चे इस प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए त्याग करूंगा” जब तक यह कार्य सिद्ध न कैसे व्यग्र हो उठे थे, ये बात जैन समाज से हए गरुदेव ने इन नियमों की पालना की। छिपी नहीं है। गुरुदेव के पुण्य प्रताप से जब अम्बाला कालेज बना, तब प्रतिज्ञा पूरी हुई और गुरुदेव का जय । आचार्य श्री को मानपत्र देने का विचार होने जयकार हुआ। लगा। आपने कार्यकत्ताओं को सूचित कर दिया कि “जब तक कालेज़ के फंड में डेढ़ लाख रुपया जमा न हो जावेगा, तब तक मैं मानपत्र स्वीकार नहीं करूंगा।" गुजरांवाला में गुरुकुल बनाना था उसके लिए एक लाख रुपयों की जरूरत थी। 68000/- रुपया जमा हो चुका था। आचार्य श्री ने प्रतिज्ञा की कि “जब तक एक लाख पूरे न हो जावें तब मैं मिष्ठान ग्रहण नहीं करूंगा।" गुरुदेव के परम भक्त शिष्य आचार्य श्री विजय ललित सूरि जी उस समय बम्बई में थे। उन्हें इस प्रतिज्ञा की बात मालूम हुई। उन्होंने अपने अजैन से जैन बने हुए एक भक्त श्रावक विठ्ठल दास ठाकुर दास से बात कही, इस उदार दिल श्रावक ने (32000) हजार का चैक गुजरांवाला भेज कर एक लाख की रकम पूरी की और आचार्य श्री प्रतिज्ञा मुक्त हुए। संत ऐसी अनेक प्रतिज्ञायें आचार्य श्री जी ने ली थीं। उन सबका उद्देश्य समाज के कल्याण का काम करना था। ऐसी प्रतिज्ञाओं से नवीन शक्ति का विकास होता है और उस शक्ति में से ही प्रतिज्ञा की पूर्ति के चक्र गतिमान होते हैं। हमने यह भी पढ़ा एवं सुना है कि आचार्य श्री ने प्रतिज्ञा के बल पर अनेक ऐसे कार्य किये हैं, जिनसे समाज और जैन शासन की उन्नति हुई। ऐसे हमारे परमोपकारी, अज्ञान तिमिर तरणि, कलिकाल कल्पतरु, युगवीर, युगद्रष्टा, पंजाब केसरी श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी महाराज जी के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी की पावन वेला पर कोटिशः-कोटिश वन्दन करते हुए श्रद्धांजली-कुसुमांजलि अर्पित करता हूं। 194 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 4501 For Private & Personal use only , Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "गुरु वल्लभ के सपनों का जैन समाज" सामाजिक उत्थान के लिए बाल व युवा वर्ग में धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण अमृत जैन भूमिका : जिस प्रकार पारसमणि के सम्पर्क में मूल मंत्र' में इस बात का खुलासा किया है। के उद्धार का कार्य ढीला-ढीला, अव्यवस्थित आने से जड़पदार्थ लोहा भी सोने का रूप समाज दिव्य बने-तभी समाजोद्धार व कच्चा ही रहेगा :धारण कर लेता है-उसी प्रकार महात्माओं एवं सारे समाज में, धर्म की साधना व 1. धर्म मर्यादा : शुद्ध व व्यापक धर्म, गुरुओं के सम्पर्क में आने से चैतन्य जीव की आराधना से, सज्जन व्यक्ति अपनी आत्मा में समाज का प्राण होता है। उसकी मर्यादाओं का आत्मा में, एक अद्भुत शक्ति उजागर होती दिव्यगुण पैदा करके, समाज का दायित्व व पालन, समाज के हर सदस्य के लिए अनिवार्य है। आवश्यकता है तो इस बात की, कि लोहे उनका निर्वाह अच्छे व सुव्यवस्थित ढंग से कर हो। तभी समाज स्वस्थ, सुखी व व्यवस्थित रह को पारसमणि के सम्पर्क में आना होगा और सकते हैं, जब कि इसके लिए सर्वप्रथम पाएगा। जीवात्मा को गुरुओं की संपर्कता में आना। अधर्म-पापोत्तेजक-अहितकर, विषमता फैलाने 2. परस्पर संप बना रहे : परस्पर संप. होगा। ये विचार गुरु विजय वल्लभ जी ने वाली, समाज की संगठन शक्ति को कमजोर होकर, समाज में संपन्नता व संपत्ति वृद्धि अपने प्रवचनों के द्वारा समाज को दिए। करने वाली इन विषमय भयंकर बातों का करवाने वाला यह मूल मंत्र, समाज से आपसी 1. सामाजिक उत्थान के साथ-साथ आत्मा । उन्मूलन करना, अति आवश्यक होगा। कलह-क्लेश, मनमुटाव, मतभेद आदि जो कि को धार्मिक संस्कारों की आवश्यकता है : समाजोद्धार की नींव कुछ मूल तत्त्वों समाजोन्नति में बड़े बाधक हैं तथा कई भगवान महावीर की अनुभवी वाणी कहती पर आधारित है, जिनके अपनाए बिना समाज महत्त्वपूर्ण कार्यों को ठप्प करवा देते हैं। समाज है-जो धर्माचरण करके आत्मोन्नति की साधना के सदस्यों के लिए अति महत्त्वपूर्ण कहा गया चाहता है उसके लिए पंच-आश्रय अनिवार्य 'बालक देश का भविष्य हैं व बताए हैं- (1) विश्व के षट्काय प्राणी (2) युवा वर्ग समाज के प्राण। यदि 3. वात्सल्य का परस्पर आदान-प्रदान : गण अथवा संघ अथवा समाज (3) शासक समाज एवं राष्ट्र का उत्थान यह वात्सल्य का आपसी आदान-प्रदान, इस (4) गृहस्थ समाज (5) काया अथवा शरीर। करना हो तो निश्चित ही कड़ी का एक महत्त्वपूर्ण मूल मंत्र है-जो कि इसकी जिम्मेवारी बाल एवं अर्थात् साधु, आचार्य वर्ग एकांततः व्यक्तिगत समाज के कमज़ोर-असहाय -निर्धन - अनाथ युवा वर्ग पर डाल दी जाए। साधना में ही अपनी साधना की इति समाप्ति देखिए, देश व समाज के - अपाहिज़ आदि वर्ग के लोगों में, वात्सल्य ना करें। उनका लक्ष्य, उपरोक्त पांचों को साथ कार्य कितने शीघ व भाव के कारण सामाजिक कुप्रथाओं को लेकर साधना करने से होगा, क्योंकि साधु वर्ग उन्नतिदायक हो जाते हैं।" बदलने व सुधारने के लिए सेवा भाव में वृद्धि को, उपरोक्त पांचों का आश्रय भी जरूरी है। करेगा। इस वात्सल्य को साधर्मिक वात्सल्य के आत्मा की साधना से, आत्मोद्धार तो होगा ही, रूप में हम सभी जानते हैं-परंतु केवल भोजन परंतु क्या बिना उपरोक्त पांचों की साधना करा देने-मात्र तक ही उसे सीमित ना पूरी हो पाएगी? इसलिए आत्मा की साधना के रखें-बल्कि इन कमजोर वर्गों में संपन्नता लाने साथ-साथ समाज के उत्थान के कार्य करने के लिए, रोज़गार-धन्धे-नौकरी आदि भी आवश्यक होंगे। आचार्य विजय वल्लभ दिलाकर, उन्हें पूर्ण सहयोग देवें। कभी भी सूरि जी ने वल्लभ प्रवचन के 'समाजोद्धार के आवश्यकता पड़ने पर, यह असहाय वर्ग विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका | 195 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पन्न भाईयों के पास जाता है तो आप अपने व्यवहार को खुद पहचानिए तथा उसे अपने स्नेह वात्सल्यपूर्ण व्यवहार से सम्पन्नता की राह पर डालकर, समाजोद्धार की सीढ़ी पर चढ़ें। 1 4. आपसी सहयोग का आदान-प्रदान समाज में विविध प्रकार की शक्ति वाले लोग हैं। जैसे कुछ श्रम कर सकते हैं-कुछ धन दे सकते हैं, कुछ विद्यावान हैं, कुछ बलशाली है आदि परंतु पारस्परिक सहयोग न होने के कारण, ये सब शक्तियां, अलग-थलग रहकर कुठित हो जाती हैं। अपने ही तुच्छ स्वार्थों में खो जाती हैं। यही सब शक्तियां, एक साथ, एक मत से, आपसी सहयोग द्वारा मिलकर कार्य करें, तो समाज पर परेशानी आने से पहले ही समाज की एकता व सहयोग व एकमत विचार, उसे दूर कर समाजोन्नति में सहयोग बनेगा। 5. योग्य को योग्य काम में लगाना हमारे समाज में सभी प्रकार के योग्य सदस्य, एक से बढ़कर एक बैठे हैं। उनको यदि उनकी योग्यता के अनुसार पदों-योग्य व्यवस्थाओं पर तथा योग्य कार्यों में नियुक्त करें तो सामाजिक व्यवस्था व सुख-शांति, अच्छी तरह से बनी रहेगी। इसी प्रकार हमें नारी की योग्यता को भी प्रयोग में लाना होगा। तभी समाज उन्नति कर पाएगा। 6. देश-काल-परिस्थिति देखकर, हितकर सुधार लाने का शुभ संकल्प लेना समय के साथ-साथ ज़माना बदल रहा है। यदि जमाने के साथ-साथ समाज नहीं बदला तो जमाने की चाल उसे बदल देगी। इसलिए अपनी इच्छा से ही, देश-काल-परिस्थिति देखकर, समाज के हित व उत्थान के लिए सामाजिक रूढ़िगत प्रथाओं में परिवर्तन लाना होगा। एक रोगी भी सोता है तथा एक थका व्यक्ति भी सोता है। रोगी व्यक्ति गूढ़ निद्रा में सो नहीं सकता, परेशानी में लेटा है। जबकि थका व्यक्ति थकावट के कारण गहरी नींद में सोने के बाद जब उठता है तो पूर्णतः ताजगी अनुभव करता है। इसलिए अब समय आ गया है कि समाज के कार्यों में देश-काल-परिस्थिति देखकर ही हम शुभ कार्य करें। 2. सामाजिक उत्थान में बाल- युवा वर्ग का सहयोग एवं उनमें धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण :- गुरु वल्लभ के प्रवचनांशों में बाल एवं युवा वर्ग के लिए, शिक्षात्मक धार्मिक संस्कारों में हास, गलत संस्कारों के कारण चारित्र बल में गिरावट आदि के अंश भी शामिल होते थे, उनके भावों को मैंने एक अष्टक रूप में पुरोया है : वर्तमान में बाल युवा वर्ग की पतन स्थिति :- वर्तमान भौतिकतावादी युग में, समस्त मानव समाज के संस्कारों का हास हुआ है। छल-कपट, प्रपंच-बेईमानी, असत्यवादिता, स्वार्थवश हिंसाएं, आदि कुसंस्कारों ने पूरे मानव समाज को पूर्णतः अपने आगोश में ले लिया है। आपस में मानवीय भावनाएं समाप्ति के कगार पर खड़ी होकर वर्तमान समाज का मज़ाक उड़ा रही हैं। जबकि धर्म आदि की महिमा, उनके नियम संस्कार आदि पुस्तकों में ही लिखे पड़े हैं। फुर्सत किसे है - स्वाध्याय करने का वक्त निकाले ? उन्हें पढ़ कर तो देखे ? हमारे पूर्वजों का दिया गया संदेश भी, “सादा जीवन उच्च विचार" आज के इस भौतिकतावादी युग में खो सा गया है। इस भौतिकतावादी चकाचौंध में प्रत्येक सामाजिक प्राणी, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में है अथकार के गर्त में खोता जा रहा है। स्वार्थ, दुराग्रह, असत्यता, संकीर्णता, भ्रष्टाचार आदि नीच प्रवृत्तियां हमारे अन्दर पूर्णतः हावी हो चुकी हैं। 196 बंद करें अब केवल चर्चाएं, कथनी-करनी को मिल कर करें। कर्म कलश में भर नीर भाव के आओ जिनवर का अभिषेक करें।। 1 ।। हर दिन की तरह आज का दिन भी यूं ही अर्थहीन बातों में ना बेकार करें। प्रभु क्षमा करें- इतनी सी करुणा करें-आत्मशक्ति का मुझ में पूर्ण संचार करें ।। 2 ।। दो दिन के इस जीवन में यदि हो सके कुछ ना कुछ ऐसा करने की शक्ति प्रदान करें। भटके इन बाल-युवा वर्ग में धर्म संस्कारों का पूर्णतः हम संचार करें ।। 3 ।। तभी निखरेगा इस समाज का रूप तभी उद्यान में सुखशांति के फूल खिलेंगे। यही सपना संजोया था बड़ोदा के बालक ने संयम से, अनेक फूल धर्म के खिला डाले।। 4 ।। आज के बाल-युवा वर्ग में सूर्य बन छा गए, ज्ञान की किरणों से स्नान है करा डाला। वल्लभ उनमें जगायी चेतना धार्मिक संस्कारों से, अमृत पान करा डाला।। 5 ।। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Prival 50 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर का संदेश भी 'जीओ और 3. रत्नत्रय की व्याख्या-चारित्र के प्रति विशेष जीने दो' मात्र कहने भर की वस्तु रह गई है। ध्यान। वर्तमान का बालक अथवा युवक भी झूठ, 4. धर्म-अधर्म की पहचान-उसकी कलामय प्रपंच, हिंसादि से भगवान के उपरोक्त संदेश पहचान। को मिट्टी में मिला रहे हैं। क्या हमारा कर्त्तव्य 5. देव दुर्लभ मानवता की पहचान-अंतरात्मा नहीं बनता कि हमें इस तरफ एक बार भी अंतर्मन से सोच-समझ व मनन कर, ध्यान 6. सत्संगति की महिमा। देकर कुछ दायित्व मान कर इस पर कार्य 7. व्यसनों की व्याख्या व उससे बचाव, स्वयं करें? व समाज/राष्ट्र का। बाल व युवा वर्ग के अनैतिकता की तरफ 8. शिक्षा का उद्देश्य व बुद्धि के चमत्कार। बढ़ते कदमों को कैसे रोका जाए ?:- बालक 9. अभिभावक गण की जिम्मेवारी आदि। देश का भविष्य है व युवा वर्ग समाज के प्राण। अनैतिकता की तरफ से युवा/बाल वर्ग को यदि समाज एवं राष्ट्र का उत्थान करना हो तो रोकने के उपाय :निश्चित ही इसकी जिम्मेवारी बाल एवं युवा 1. धर्म संस्कारों का बीजारोपण : यह तो वर्ग पर डाल दी जाए। देखिए, देश व समाज सर्वविदित ही है कि मानव विश्व का एक के कार्य कितने शीघ्र व उन्नतिदायक हो जाते बुद्धिमान, सुन्दर एवं मनोहर आकृति का हैं। यदि यही वर्ग अनैतिकता की तरफ चल प्राणी है। इस मानव का जन्म राष्ट्र में, पड़े-पथभ्रष्ट हो अपना चारित्र हनन कर ले, .. जीवन-यापन समाज में, एवं विकास आत्मा में देश व समाज का स्तर कहां जा कर रूकेगा होता है। जब तक मानव का विकास राष्ट्र व ?उसे रोकना होगा-अन्यथा समाज व देश का समाज से संबंधित रहेगा, उसके जीवन में आ भविष्य रसातल में खो जाएगा। इस वर्ग का रहे उसके दैनिक क्रियाओं पर रहेगा, उसे नशीली वस्तुओं व अखाद्य पदार्थों के सेवन की अपनी आत्मा के विकास के लिए धार्मिक ओर झुकाव, चारित्र की तरफ से अज्ञानतावश तत्त्वों पर निर्भर रहना होगा। जब तक ये दोनों असाध्य रोगों से परेशानी आदि का आमंत्रण, विकास आपसी समन्वय से मानव जीवन को ये सब आकस्मिक धन का अधिक आ जाना, संचालित नहीं करेंगे, बाल-युवा या कोई भी मां-बाप व गार्डियन का व्यवहार, इस वर्ग के वर्ग अपना सर्वांगीण विकास नहीं कर पाएगा। लिए गिरावट का एक मुख्य कारण हो सकता । क्योंकि मानव का पतन (धार्मिक संस्कारों के है। यदि हमें इस वर्ग के स्तर को सुधारना है बगैर) ही समाज व राष्ट्र का पतन का कारण तो कुछ सूत्रों पर अमल होना आवश्यक हो बनेगा। धार्मिक संस्कार ही मानव के हर वर्ग जाता है-जो आचार्य श्री विजय वल्लभ के का सर्वांगीण विकास कर पाएंगे। सापेक्ष रूप प्रवचनों में साफ तौर पर पढ़ा जा सकता है :- से हम अगर इन तथ्यों को कसौटी पर रखकर 1. धर्म संस्कारों का बीजारोपण। सोचे-तो लगेगा कि हम ही स्वयं अति 2.आत्मा-महात्मा-परमात्मा की सही पहचान। बहिर्मुखी हो रहे हैं। हमारी स्वयं की आत्मा पर परिणति के बादल मंडरा रहे हैं-आओ हम सब अपनी-अपनी आत्मा का अंतर्मुखी होकर-अंतर्भावी होकर विश्लेषण करें तो स्वयं ही सब के अन्दर धर्म रूपी गुणों के संस्कार पैदा होने शुरू हो जाएंगे। धर्म संस्कारों का बीज स्वयंमेव रोपित होकर विचारों द्वारा आत्ममंथन करके सर्वांगीण विकास की तरफ आगे बढ़ेगा। यही तो आज के बाल व युवा वर्ग में प्ररूपित कर उन्हें धर्म-अधर्म, आत्मा-महात्मा-परमात्मा का चिंतन कर उन्हें विकास के मार्ग पर ले जाएगा। यहीं से धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण शुरू हो जाएगा। 2. आत्मा-महात्मा-परमात्मा की सही पहचान : हमें इस तथ्य को आयु वर्ग में बांटकर देखना होगा। आज के वातावरण में हमें अपने बाल व युवा वर्ग को बाल्यकाल से ही अहसास करना होगा कि आत्मा से परमात्मा या देव से ईश्वर में क्या अन्तर है। विजय वल्लभ के प्रवचनों के द्वितीय भाग में इन्हीं बातों पर प्रकाश डाला गया है। देवता व ईश्वर का अस्तित्त्व हर बालक व युवा को पता है-चाहे वह किसी भी धर्म, वर्ग का रहा हो। वह राम-सीता, कृष्ण-राधा, शिव-पार्वती आदि मंदिरों में ही ईश्वर मानते हैं जो कि वह देवता योनि के प्राणी ही क्यों न हों। जबकि धर्म निरपेक्ष तत्त्व आत्मा से ही परमात्मा का रूप धारण करने वाला तत्त्व मानते हैं। बाल बुद्धि में यह बात विशेष तौर पर समझनी होगी कि प्रत्येक प्राणी आत्मा के बगैर जीवित ना होकर एक पुद्गल समान तत्त्व है। आत्मा कर्म से आच्छादित है। हर जन्म में कर्मों के आवरण को हल्का करती है तथा नवीन कर्मों का आवरण लेती है तथा अपने विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 197 Jain Education international Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम- गोत्र-भव आदि का बंधन करती है। चारित्रहीनता किसी भी तरह की, व्यसनादि, ये आत्मा के भव भ्रमण को बढ़ाते हैं। इसलिए बाल युवा वर्ग के अन्दर इन संस्कारों का बीजारोपण करने के लिए घर के अन्य सदस्यों को भी धार्मिक व संस्कारी बनना होगा। बाल व युवा वर्ग घर-समाज में ही पलता है। मां-बाप, अभिभावकगण को स्वयं इन धार्मिक संस्कारों से युक्त होना चाहिए। तभी तो बालक व युवा भी उन संस्कारों में पल सकेंगे। यही बात वल्लभ प्रवचन में गुरुदेव ने बार-बार चेताई है। आत्मोद्धार की कुंजी : आत्मा से आत्मा का उद्धार करने के लिए एक सुगम व सुलभ उपाय गुरुदेव बताते हैं-"आत्मा किसी भी प्रवृत्ति को करते समय सर्वव्यापक परमात्मा को ना छोड़ें - उसे अपने चित्त के सामने रखें। जैसे पतिव्रता नारी गृहस्थाश्रम के सभी कार्य करती है परंतु अपने पति की तरफ अपने कर्तव्यों का ध्यान हर पल रखती है। इसी तरह जगत के सभी प्राणी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए परमात्मा को ना भूलें। परमात्मा को ना भूलना ही अपनी शुद्ध आत्मा को ना भूलने की तरफ इंगित करते रहेंगे। परमात्मस्मृति ही आत्म-स्मृति है। जो परमात्मा के आज्ञा के बाहर के कार्य है कम से कम उन्हें स्मरण रखकर कार्य करें। यदि आपकी स्मृति में से आज्ञाबाह्य कार्य भूलते हैं तो फौरन परमात्मा को याद कर उनकी शरण में आ जाओ। परमात्मा (अरिहंत व सिद्ध) आपको सचेत कर देंगे।" 3. रत्नत्रय की व्याख्या चारित्र के प्रति सावधान: गुरुदेव ने फरमाया है कि जिस 198 प्रकार हमारे जीवन में हृदय बुद्धि तथा शरीर तीनों की अपने-अपने स्थान पर अनिवार्यता है, उसी प्रकार आत्मसाधन अथवा धार्मिक संस्कारों के बीजारोपण में इस रत्नत्रय की आवश्यकता है। हृदय के द्वारा साध्य सम्यग्दर्शन, बुद्धि के द्वारा सम्यग्ज्ञान एवं शरीर के सभी अंगोपांगों द्वारा सम्यग्चारित्र की नितान्त आवश्यकता है। एक के अभाव में दूसरा काम नहीं करेगा। तीनों का ज़िन्दगी में होना तथा ठीक रहना जरूरी है। इन तीन शरीरांगों में से एक तकलीफ में आते ही सभी गड़बड़ा जाते हैं उसी प्रकार इन रत्नत्रय में से एक भी खराब हो जाए, तो बाकी दोनों भी गड़बड़ा जाते हैं। इसलिए इन तीनों का जीवन में धार्मिक संस्कारों के लिए होना आवश्यक है । साधना अथवा धार्मिक जीवन में केवल चारित्र हो - ज्ञान दर्शन का अभाव हो तो वहम-अंधविश्वास, अंधे आचरण का योग बन जाता है। ज्ञान के अभाव में धार्मिक प्राणी कल्याण / अकल्याण का ज्ञान नहीं होने के कारण बिना श्रद्धा व उत्साह से चलेगा, तो यथेष्ट फल की प्राप्ति नहीं होगी तथा वैसे ही दर्शन के अभाव में उसके अनुसार आचरण नहीं कर पाएगा। इसलिए चारित्र पालने में भी तीनों के संगम की आवश्यकता रहेगी। 4. धर्म-अधर्म की पहचान पत्थर जब खान से निकलता है-बेडौल, खुरदरा व भद्दा होता है। उस स्थिति में पत्थर का उपयोग नहीं हो पाएगा। परंतु यही पत्थर किसी शिल्पकार के हाथ में आने के बाद अपनी कला से सुन्दर आकृति देकर बहुमूल्य बना देता है यही स्थिति आज के बाल व युवा वर्ग में धार्मिक संस्कारों की है। आपके घर में बालक पैदा 1 विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका होकर आयुष्य के अनुसार बड़ा हो रहा है आप मां-बाप या अभिभावक उसके शिल्पकार हैं आप अपनी धार्मिक शिल्पकला से उस बालक को कलात्मक धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत करें धर्म-अधर्म का अन्तर समझाएं। परंतु अधिकांश लोग धर्मकला से अनभिज्ञ, भ्रान्त, धर्मकला में प्रमादी व निरपेक्ष होते हैं वे धर्म को स्वयं अपनाने में शर्म महसूस करते हैं- धर्म का मजाक उड़ाते हैं। आदि । ऐसे लोगों को बोध देने के लिए धर्म के महान कलाकार भ. महावीर फरमाते हैं: "असंखय जीवियं मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं ।।" 'तेरा जीवन असंस्कृत है, कला से संस्कारी बना हुआ नहीं है इसलिए प्रमाद मत कर। जब बुढ़ापा आ घेरेगा तब ऐसे असंस्कृत व्यक्ति की जीवन की रक्षा करने वाला कोई नहीं होगा जबकि सुसंस्कृत व्यक्ति धर्मकला का अभ्यासी होने से बुढ़ापे को भी सुखमय बना लेगा, मृत्यु भी उसे सुखकर प्रतीत होगी।' 1 : इसलिए धर्म-अधर्म में अन्तर जानकर धर्म को कलामय संस्कार देकर बाल युवा वर्ग में एक धार्मिक शिल्पकार की तरह उनमें कलात्मक धार्मिक संस्कार भरें। 5. देव-दुर्लभ मानवता की पहचान अंतरात्मा से गुरुदेव ने यहां पर भी यही फरमाया है “आप जानते हैं कि दुनियां में जो चीज मुश्किल से मिलती है वह थोड़ी होती है। और थोड़ी होने के कारण महंगी भी होती है ? वह फिर भी कोई ना कोई धन से खरीदने की योग्यता रखते हुए खरीदता है। सर्वज्ञ भगवान महावीर ने पावापुरी में अपने अंतिम प्रवचनों में अपने अनुभवों का निचोड़ जगत् के सामने 50 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तुत कर कहा था चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो। माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ।।" अर्थात्-इस संसार में जीवों को चार वस्तुएं प्राप्त होनी अति दुर्लभ हैं। वे चार ये हैं-मनुष्यत्व, धर्मश्रवण, सच्ची श्रद्धा और संयम मार्ग में पुरुषार्थ ।” ये चारों वस्तुएं भगवान ने अत्यंत दुर्लभ बताई हैं। ये वस्तुएं खरीद भी नहीं सकते। क्योंकि मानव जन्म दुर्लभ है-अनंत पुण्योदय से प्राप्त, अनेक जन्मों तक नरक-तिर्यंच व देवगति में भटकते-भटकते असंख्य योनियों में घूम-घाम कर एकेंद्रिय से पंचेंद्रिय में विकास करते-करते जीवन मानव भव प्राप्त करता है। जिसके लिए देवता भी तरस जाते हैं। क्यूं ? यही वह भव है जहां से जीव अपनी आत्मा को सर्व धर्म संस्कारों से परिपूर्ण कर आत्मा से महात्मा तथा महात्मा से परमात्मा रूप प्राप्त करता है। इसलिए हमें इस जीवन की दुर्लभता का अहसास रखते हुए भी बाल-युवा आदि वर्गों में धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण कर आत्मा को विकास पथ पर डालना होगा। 6. सुसंगति की महिमा : गुरुदेव के प्रवचन में-एक विचारक ने कहा था कि "कौन मनुष्य कैसा है। यह पूछना चाहते हो तो पहले मुझे बताओ कि उसकी संगति कैसी है।" वास्तव में संगति का असर आज के बाल-युवा वर्ग को पथभ्रष्ट करने में एक बड़ा पार्ट अदा करता है। मानव दुनिया का सर्वोत्कृष्ट प्राणी होने के नाते उस पर अच्छी या बुरी संगत का प्रभाव पड़ता है-अच्छे मनुष्यों की संगत में रह कर एक व्यक्ति अच्छी आदतें, अच्छे विचार, अच्छे आचरण, अच्छे वचन, अच्छे कार्य और उसे क्यों छोड़ना आवश्यक है ? जब सीखता है जब कि बुरी संगत में सब कुछ बुरा बाल व युवा वर्ग इसे समझ लेगा-तो उसे सीखता है। यही नहीं मानव के अलावा अन्य अपने अन्तःकरण में स्वयं ही घृणा होकर प्राणियों में भी संगति का असर चढ़ता है। त्यागने की इच्छा जागृत होगी। अधिक दौलत की संगत से अच्छे-बुरे दोनों व्यसन : जो मानव को सर्वसुखों से या प्रभाव देखने को मिलते हैं। स्वर्ग-सुख से दूर कर दे-वह व्यसन कहलाता सत्संगति से लाभ : यदि घर में बीमार के लिए है। इससे शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व डाक्टर की संगति, मुकद्दमें आदि के लिए आध्यात्मिक सभी सुखों से वंचित होकर अच्छे योग्य वकील की संगति इत्यादि से हम भटकने लगता है तथा धीरे-धीरे रोगों से लाभ लेते हैं। अपना जीवन सुखी बनाने के घिरकर मृत्यु की तरफ (आत्महत्या तक) लिए अच्छे साधु, गुरु आदि की संगति का बढ़ना शुरू हो जाता है। धन का नाश तो होता लाभ लेते हैं। हम कभी अयोग्य व्यक्ति की ही है-परिवार वाले भी दुःखी व परेशान होकर संगति नहीं लेना चाहते-तो फिर अपने जीवन जगह -जगह भटकते हैं। के विकास के लिए आप कुसंगति ना लेते हुए व्यसन मुक्ति के लिए सर्वप्रथम योग्य सुसंगति का लाभ लेने की कोशिश करते सपरिवार का दायित्व बनता है। फिर रहिए। क्योंकि सुसंगति बुद्धि की जड़ता दूर गुरु-आचार्य-शिक्षाविद् एवं सरकार द्वारा करती है। वाणी में सत्य का संचार, सम्मान व कानून का सख्त पालन इसके बचाव में विशेष उन्नतिदायक जीवन की प्राप्ति होती है। सहायक हो सकते हैं। व्यसनों पर प्रतिबन्ध इसलिए बाल-यूवा वर्ग में सुसंगति का अच्छे तथा गुरु-आचार्यों की संगति से विशेष गुरुओं की संगत से धार्मिक संस्कारों पर शुभ परिवर्तन आ सकता है। बाल-युवा वर्ग को इन असर पड़े, इस बात का ध्यान आवश्यक है। व्यसनों की बुरी आदत के प्रति सचेत होकर 7. व्यसनों से बचाव : आज के बाल-युवा शिक्षित होना भी इनसे बचाव में मुख्य भूमिका वर्ग में कुछ व्यसन तो ऐसे हैं, जो वे चाहकर निभाएंगे। भी नहीं छोड़ पा रहे हैं-चोरी, जुआ, नशा, 8. शिक्षा का उद्देश्य : मानव जीवन में मांस-अंडा का सेवन, शराब आदि का सेवन, किसी वस्तु की अधिक आवश्यकता है, तो वह परस्त्री गमन (जिसमें बलात्कार भी शामिल है शिक्षा । यह बात स्पष्ट रूप से गुरुदेव अपने है), वेश्यागमन, शिकार-ताश आदि। बड़ी व्याख्यानों में कहा करते थे। शिक्षा से ही मुश्किल से दूर होने वाले ये 10 व्यसन सुसंस्कार आएंगे। जाति-धर्म, समाज, राष्ट्र कामेच्छा से, 8 व्यसन क्रोधाग्नि से तथा कुछ की सर्वांग उन्नति उसके सुसंस्कारों पर निर्भर व्यसन संगति एवं शौक से होने वाले होते हैं। होती है तथा सुसंस्कारों को सुदृढ़ करने में इन सब का समावेश उपरोक्त 8 व्यसनों में ही सबसे अधिक पार्ट लेती है-शिक्षा। यदि शिक्षा होता है। रूपी नींव, मजबूत नहीं होगी तो व्यक्ति में सब व्यसन का वास्तविक अर्थ क्या है। प्रकार के संस्कार आ नहीं पाएंगे तथा 199 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private Per Aww.cainelibrary.org Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरोक्त वर्णित दोषों से मानव का बचाव मुश्किल हो जाएगा। गुरुदेव ने कहा है-बिना शिक्षा के बालक व युवा वर्ग का मानव कच्चे पत्थर के समान है। जो खान से निकला है-टेढ़ा-मेढ़ा, भौंडा-भद्दा व कुरूप होता है। जब उस पर शिक्षक की कला रूपी विद्या का प्रभाव पड़ता है-उसे छील-छाल कर साफ सुथरा बनाकर अपने जौहर दिखाकर उसमें कई रूप भर देता है। अच्छे गुणों से अलंकृत हो विवेकशील, सुसंस्कृति व उन्नत बना देता बुद्धि के चमत्कार : वर्तमान शिक्षा में सदाचार, कष्ट सहिष्णुता, त्याग, संयम, चारित्र, विनय, अनुशासन आदि वस्तुएं भी शामिल हो जाएं तो बाल-युवा वर्ग की बुद्धि में एक चमत्कारिक परिवर्तन महसूस होगा। अन्यथा उद्दण्डता, अक्खड़पन, बात-बात पर मारने-मारने की प्रवृत्ति, बेअदबी, बड़ों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार की कमी आदि से चारित्रिक पतन बढ़ जाएगा। जबकि शिक्षा से बुद्धि स्थिर रह कर सुसंस्कारित हो सत्पथ पर चलने को अग्रसर करेगी। यही बुद्धि का चमत्कारिक होना उसे शुभ पथ पर भेजेगा। 9. मां-बाप व अभिभावक गण की जिम्मेवारी : बालक प्रथम, मां से पैदा होने के बाद, शिक्षा ग्रहण करता है-इसलिए माता को प्रथम सुसंस्कारी होना आवश्यक होता है। फिर पिता के सहयोग से धीरे-धीरे नयी नयी शिक्षात्मक बातें सीखता है। पिता को भी धार्मिक संस्कारों से सुसज्जित होकर सुसंस्कारी होना आवश्यक है। बालक मां-बाप की अनुपस्थिति में उनके किसी मित्र या नज़दीकी रिश्तेदारी में जाकर कुछ नई शिक्षा ग्रहण करने की कोशिश करता है-क्या हमने या बालक के मां बाप ने उस अभिभावक के गुणों आदि को दर्पण में देखा है ?बच्चे का मन बालपन में एक स्वच्छ दर्पण है-यहीं पर मां-बाप आदि को बच्चे को शिक्षित करने या करवाने के लिए स्वयं में भी सुसंस्कारित होने के गुण देखने होंगे। एक बालक या युवा आपसे प्रश्न करता है कि हम मंदिर क्यों जाते हैं ? गुरुओं के पास क्या है-जो हम उनसे पूछने या मिलने जाएं या जैन धर्म क्या है, दूध पीने में हिंसा क्यूं नहीं है, फूल व नैवेद्य आदि मंदिर में क्यूं चढ़ाते हैं ? आदि उसके मन में अनेक प्रश्न हैं-क्या आप इतने शिक्षित हैं कि बच्चों को उनकी जिज्ञासाएं शान्त कर सकें ?बालक या युवक कल्पसूत्र वांचन सुन रहा है-उसमें भी कई शंकाए-जिज्ञासाएं आपको शांत करने की कला आनी चाहिए। मान लो कल्पसूत्र के प्रवचन में "भगवान महावीर के उपसर्गों का वर्णन चल रहा है तथा उसमें, प्रभु के पैरों पर चंडकौशिक ने जहर भरा डंक मारा, उनके पैरों में से लाल खून की बजाए सफेद खून की धारा बहती है, ऐसा वर्णन आता है। आपसे आपका बच्चा चाहे, वह युवक ही क्यूं ना हो, पूछता है-कि सफेद खून तो किसी के शरीर में नहीं होता तो भगवान महावीर के ही सफेद खून क्यूं निकला ?प्रश्न एक साधारण सा ही है-क्या आप मां-बाप, गार्जियन या शिक्षक के नाते उसे उसकी जिज्ञासा अथवा शंका का समाधान दे सकते हैं। इसलिए यहां पर हमारी सुसंस्कारी-शिक्षित होने की आवश्यकता है। उपरोक्त सफेद खून निकलने का वैज्ञानिक जवाब इस प्रकार दिया जा सकता है कि प्रभु महावीर जब चंडकौशिक के बिल के पास ध्यानस्थ खड़े थे-तो उनके मन में उस जीव के प्रति अथाह ममतामयी विचार आ रहे थे-जैसे कि मेरा तेरा पूर्व जन्मों का साथ है। तुमने अपने कर्मों के कारण इस भव में सर्प का भव पाया है और मैं तेरे बुरे कर्मों के बंधन का कारण भी बना हूं-बुज्झ, बुज्झ अभी भी तुम समझो चंडकौशिक-मैं चाहता हूं तुम्हारा उद्धार होकर मुक्ति हो... आदि ममतामयी भावनाओं के कारण माता के समान प्रभु का खून भी दुग्ध समान मीठा निकला।" आदि स्वयं के ज्ञान से आप अपने बाल-युवा वर्ग की जिज्ञासा शांत कर उन्हें एक सुसंस्कारी जीव बना सकेंगे। यदि किसी कारण आप उसकी जिज्ञासा शान्त नहीं कर पा रहे हैं तो वर्तमान में विराजित गुरुदेवों से उनकी शंका समाधान करवाएं तथा कुछ स्वाध्याय करने के लिए पुस्तकों का सहारा भी ले सकते हैं। परंतु कभी उसे मिथ्या ना भटकाएं। जहां तक हो सके उनकी संतुष्टि करें। उपसंहार-बाल व युवा वर्ग को सुसंगठित कर एक मंच पर एकत्रित कर सामाजिक क्रांति लाएं तथा इस विघटित समाज को एक नई दिशा दिखाएं : आज भगवान महावीर के निर्वाण को लगभग 2530 वर्ष हो गए हैं तथा हम गुरुदेव स्व. श्री विजय वल्लभ जी की स्वर्ण-स्वर्गारोहण वर्ष मना रहे हैं। उस आचार्य की स्वर्गारोहण वर्ष मना रहे हैं, जिसने अपने जीवन काल में सभी संप्रदायों को ही मंच पर आमंत्रित कर उद्घोषणा की थी- "होवे कि ना होवे, मेरी आत्मा यही चाहती है कि आज के युग में साम्प्रदायिकता दूर होकर जैन समाज, मात्र श्री महावीर 200 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका al use only 401 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वामी के झंडे के नीचे एकत्रित होकर श्री महावीर की जय बोलें तथा जैन शासन की वृद्धि के लिए ऐसी एक “जैन विश्वविद्यालय” नामक संस्था स्थापित होवे, जिसमें प्रत्येक जैन शिक्षित हो; धर्म को बाधा ना पहुंचे, इस प्रकार राज्याधिकार में जैनों की वृद्धि होवे।" आज हमें व हमारे बाल-युवा वर्ग को एक तुलनात्मक अध्ययन कर समाज में पनप रही कुछ बुराईयों का तथा उनको दूर करने के लिए उपायों का विश्लेषण करना होगा। क्या हम या हमारा वर्तमान समाज एवं उसके सभी अंगों के सदस्य व अधिकारीगण प्रभु महावीर के सिद्धांतों पर ठीक तरह से अमल कर पा रहे हैं ? आज हम सभी एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं-जहां से प्रारंभिक मार्ग तो बेहद सुखद प्रतीत हो रहा है-परंतु हम आगे बढ़कर हाथ से हाथ मिलाकर किसी एक सुखद मार्ग को अपनाने में क्यूं कठिनाई महसूस कर रहे हैं ?क्या कारण है ? विश्लेषण करना होगा मेरा विचार है कि इसमें : प्रतिबंध चालू है। (1) हममें आपसी सोच व समझ के अन्तर (6) पश्चिमी सभ्यता की आड़ में पथभ्रष्ट को कम करना होगा तथा इस काम में आज बालक युवा-वर्ग में फैले कोढ़ को आज के का युवा वर्ग सुसंस्कारी होकर काफी सहायक सुसंस्कारी युवा वर्ग व बालक आगे आकर इस साबित होगा। को जड़ से समाप्त करने की सौगंध लें, इसी (2) हमारे समाज व देश के कर्णधारों, प्रकार की अनेक बुराईयों का जो वर्तमान में साधु-आचार्यों, अधिकारीगण आदि को अपने प्रभुवीर के शासन के भिन्न-भिन्न वर्गों व ओछे स्वार्थों को त्यागकर सार्वजनिक एकत्व समाज के अंगों में पूर्ण रूप से विकरालता का प्रणाली को कारगर करना होगा। . रूप धारण कर चुकी हैं-उन्हें आज का सुसंस्कारी (3) समाज में फैली आपसी घृणा-द्वेष, ईर्ष्या बाल-युवा वर्ग एकत्रित होकर दूर करें। आदि के कारण समाज व परिवारों का एकत्व आज सभी वर्ग, समाज के सभी अंगों ना होकर विघटन को रोकना होगा। के बाल-युवा वर्ग की तरफ एक आशा की (4) अमीरी-गरीबी की बढ़ती दूरी रूप खाई किरण लेकर टकटकी लगाकर देख रहे हैं। को पाटकर गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त । आशा करता हूं-आज का यह वर्ग आगे शिक्षा-परिवारों को बिना जताए आर्थिक मदद आएगा तथा अपने धार्मिक संस्कारों से तथा नवयुवकों को रोजगार के साधन उपलब्ध सुसज्जित सर्वांगीण विकास के द्वारा इन कराने होंगे। समस्याओं व चुनौतियों को अंधेरे में से बाहर (5) दहेज प्रथा के दानव रूप को समाप्त निकाल कर अपनी लगन व निष्ठा से कर खर्चों को सीमित करना होगा। आज भी अन्धकार को प्रकाशमय बनाकर एक ज्वलंत जयपूर जैसे शहरों में खाने की आईटमों पर उदाहरण पेश करेगा। ने क्या गरूदेव Chol कारवा गरक्रिया 457 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 201 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 युगपुरुष तुम्हें शतकोटि नमन ! जब जब भू पर बढ़ी तमिस्त्रा, जब जब हाहाकार मचा। तब तब संत हृदय का समरस, शुचिता में हुँकार उठा। संतपुरुष के दिव्यघोष से स्वर्ग बना भू का आंगन ! ऐसे संत विजय वल्लभ का कोटि-कोटि उर-अभिनंदन !! कोई लड़ता करबालों से, संगीनों से मचल-मचल, सत्य-अहिंसा से लड़ने को, विरले का होता सुपहल। महावीर के उपदेशों पर चलकर जो बनते कुंदन ! वही विजय वल्लभ बनता है, कोटि-कोटि उनको वंदन !! जिसने दलितों को अपनाया, दुखियों को जो दुलराया, जिसने प्रेमसुधा लहराकरजन-जन मन को हुलसाया ! प्रेम पुरुष ! हे दिव्य प्राण ! समता के शुचि अभिव्यंजन ! तेरे पुण्यपंथ पर चलकर, गुरुवर ! तेरा अभिनंदन !! द्रोह - द्वेष का भेद मिटाया, कटता - कल्मष विसराया; माया, मोह, आसक्ति पाश से जिसने दूरतम बगराया ! बन्धुभाव, समता सरसाकर, बने स्वयं भवभयभंजन ! वसुन्धरा के दिव्यपुरुष हे ! तुमको कोटि-कोटि वंदन !! चलें आज हम सब हिलमिलकर, धरणी के आरती थाल में, अंबर के शत दीप सजाकर, भक्ति - ज्योति के मनः ज्वाल में अंतर का तम-तोम मिटाकर, भक्ति-सुधा कर निर्मल तन मन ! 'मानव मानव सम' व्रत लेकर, सफल करें गुरु का अभिनंदन !! श्री गुरुचरणों के शुचितल में कोटि-कोटि जन का अभिनंदन !! विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका कला कुमार Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युगवीर वल्लभ सुधीर जैन मुन्हानी आँखों में है तेज, तेज में सत्य, और सत्य में ऋजुता। वाणी में है ओज, ओज में विनय, विनय में मृदुता।" शास्त्रीय शब्दों में : "अहो वण्णो ! अहो रूवं, अहो अज्जस्स सोमया। अहो खंती | अहो मत्री ! अहो भोगे असंगया। अर्थात्- “अहा, इन आर्य का वर्ण कैसा ! इनका रूप कैसा है ! इनकी सरलता और शीतलता कैसी है ! इनकी क्षमा और निर्लोभता कैसी अद्भुत है ! इनकी भोगों के प्रति निःस्पृहता कैसी अनूठी है !" जैन धर्म (संघ) का महल देव, गुरु, धर्म और संस्कृति इन चारों स्तम्भों पर टिका है। इनमें से एक भी स्तम्भ हिल जाये या एक भी स्तम्भ का अवलम्बन छोड़ दिया जाए तो संघ-प्रासाद नीचे गिर सकता है। जैन धर्म (संघ) को इन चारों स्तम्भों ने बड़ी-बड़ी आंधियों और भूकम्पों से बचाया है। बौद्ध धर्म भारत वर्ष से उखड़ गया और छिन्न-भिन्न हुआ; इनमें मूल कारण इन चारों स्तम्भों का निर्बल होना या चारों स्तम्भों का आश्रय छोड़ देना है। वैदिक धर्म के पतन के कारणों पर गहराई से विचार किया जाए तो परमात्मा प्रभु के बदले नाना देवों और शक्तियों (देवियों) की उपासना, सच्चे त्यागी परिव्राजक गुरुओं (सन्यासियों) के बदले भंगेड़ी, गंजेड़ी पाखण्डियों की पूजा, शुद्ध धर्म के बदले धर्म के नाम पर व्यभिचार, अन्धविश्वास, धनहरण, अनाचार, दम्भ और पाखण्ड का प्रसार ही प्रतीत होगा। सचमुच वैदिक धर्म में शुद्ध देव, गुरु, धर्म और संस्कृति का आश्रय न रहा ; ये चारों तत्त्व निर्बल हो गए; जैन धर्म ने इन चारों स्तम्भों में निर्बलता नहीं आने दी और न इनका अवलम्बन छोड़ा। यही कारण है कि हजारों वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी जैन धर्म की मौलिक परम्पराएं अविच्छिन्न रही हैं; जब कि बौद्ध धर्म की मौलिक परम्पराएं विच्छिन्न हो गईं। बौध धर्म विदेश में जाकर जहाँ-जहाँ फैला, वहां की विकृतियां इसमें प्रविष्ट हो गईं परन्तु भौतिकवाद के झंझावात ने आज जैन धर्म के चारों स्तम्भों को हिला दिया है। पाश्चात्य संस्कृति, सभ्यता और वहां के रहन-सहन और फैशन की आंधी द्वारा जैन धर्मी लोगों ने इन चारों अवलम्बन को शिथिल कर दिया है और इसके कारण कई विकृतियां भी प्रविष्ट हो गईं। युगवीर स्व. जैनाचार्य विजय वल्लभ सूरि जी इस बात से अज्ञात नहीं थे। वे युग की नब्ज को पहचानने वाले कर्मठ और विचारक संत थे :1. केवल जैन मुनि ही नहीं, केवल संन्यासी ही नहीं :- प्राणिमात्र का हितेषी, शान्ति का अग्रदूत, एक सैनिक, प्रभु महावीर के शासन का (अपने युग का) सेनापति, चतुर्विध संघ का नायक। 2. केवल जैन आचार्य नहीं :- गुरुचरण सेवी, शासनपति भगवान महावीर स्वामी के मार्ग का पथिक, राही खोजी। 3. केवल एक बाल ब्रह्मचारी ही नहीं :- एक तपस्वी, तेजस्वी, यूगद्रष्टा, सत्यवादी। 4. केवल एक महात्मा ही नहीं :- एक कर्मयोगी, समाज सुधारक, शिक्षा-शास्त्री, रूढ़िवाद के लिए शाप । 5. केवल एक देवता ही नहीं :- एक मानव कोमल हृदय, सज्जन, पुण्यशाली आत्मा, दीन दुःखियों की आश्रय रूप शरण। 1501 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 203 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. केवल देव मन्दिरों का समर्थक, पुजारी ही नहीं :- शिक्षा प्रचारक और प्रसारक, सरस्वती मन्दिरों का पुजारी, स्कूल-कालिज, गुरुकुलों के . निर्माता। 7. केवल विद्वान ही नहीं :- ग्रन्थों का रचयिता, भक्ति रस के भजनों-पूजाओं का लेखक भी। 8. केवल एक देशभक्त ही नहीं :- स्वदेशी की भावना का अटल कट्टर पुजारी, अहिंसा का अग्रदूत, पंच महाव्रतधारी। हमारा परम सौभाग्य है कि आज हमें स्मरणीय पंजाब केसरी आचार्य विजय वल्लभ जी म.सा. के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी को मनाने का सुअवसर प्राप्त हुआ है और इस वल्लभ अर्द्धशताब्दी वर्ष को मनाने का उद्देश्य तभी सफल होगा जब हम आने वाली पीढ़ियों को बता सकें कि गुरु वल्लभ क्या थे, उनमें क्या गुण थे और उन्होंने देश-समाज (खासकर पंजाब श्रीसंघ) के लिए क्या किया था ? इस अर्द्धशताब्दी वर्ष में प्रत्येक नर-नारी, युवक युवतियां खासकर समाज के अग्रणी नेता आपसी मतभेदों को भूलकर, संघ की एकता कायम रखने के लिए, अहं पद-प्रतिष्ठा त्याग कर गुरु वल्लभ के मिशन को सफल बना कर जैन समाज में फैले असामंजस्य की स्थिति से गुरु वल्लभ के गुण बताकर हमें उन्हें सच्ची श्रद्धांजली अर्पित करनी होगी। श्री वल्लभ गुरु गायन हस्तीमल कोठारी, सादड़ी (राज.) वंदन हो वल्लभ सूरि महाराज गुरुवर जी म्हारा वंदन हो कोटि कोटि आपने गुरुवर जी महारा।। टे0।। दीप चंद जी का लाला इच्छा देवी का बाला जन्म बड़ौदा नगरी माय हो, गुरुवर जी म्हारा।। 1।। सूरि आत्म का प्यारा, दर्शक आनंदकारा। शासन के सरदार हो, गुरुवर जी म्हारा।। 2 ।। शान्त गंभीर मुद्रा, भक्तों को लागे प्यारी, युग में तू कल्पतरु कहलाय, हो गुरुवर जी म्हारा ।। 3 ।। तेरी गजब शक्ति, कीनी है, पूरण भक्ति, भक्तों का बेड़ा करे पार, हो गुरुवर जी म्हारा।। 4।।। वैद्यों का वैद्य जानो, मंत्रों का वादी मानो। कवियों का तू है, सिरमोर हो गुरुवर जी म्हारा।। 5 ।। पंजाब का प्राणधारा, मरुधर आँखों का तारा, शासन में तरणी समान हो, गुरुवर जी म्हारा।। 6।। तेरे पट्ट तरणी सोहे, समुद्र सूरि मन मोहे। तस पट्ट इन्द्रसूरि महाराज, हो गुरुवर जी म्हारा।। 7।। 204 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1502 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरु वल्लभ-एक आदर्श जीवन निशा जैन, अम्बाला गुरुवर स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी पर, - कोटि वन्दन स्वीकारो। एक बार दीदार दिखाकर, अपने भक्तों को तारो।। जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी आधुनिक भारत की उन विभूतियों में से एक थे, जिन्होंने उसके निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने देश की अखण्डता, एकता, विश्वमैत्री, विद्या प्रचार-प्रसार और मानवता के लिए जीवन समर्पित किया। वे एक साथ उपदेशक, कवि एवं संत थे तथा ज्ञान, भक्ति और कर्म की साकार प्रतिमा थे। जैनदर्शन के अनुसार वे सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूपी रत्नत्रयी के आराधक थे। वे धर्मनिरपेक्षता के पोषक थे और साम्प्रदायिक सद्भाव और धर्म-सम्भाव के उद्घोषक थे। उनहोंने यह घोषणा की : "मैं न जैन हूँ, न बौद्ध, न वैष्णव हूँ, न शैव, न हिन्दू हूँ, न मुसलमान। मैं तो वीतरागदेव परमात्मा को खोजने के मार्ग पर चलने वाला मानव हूँ, यात्री हूँ।" "डालियां न होती तो, फूल लटकते ही रहते। आप जैसे संत न होते तो, हम जैसे लोग भटकते ही रहते।" जन्म: पूज्य गुरुदेव जी का जन्म गुजरात प्रांत के बड़ौदा नगर में संवत् 1927 कार्तिक सुदी दूज को पिता श्रेष्टि दीपचन्द भाई व माता इच्छाबाई माली कुल, प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। बालक का नाम छगनलाल रखा गया। धार्मिक संस्कारों की छाप आप पर विशेष रूप से पड़ी। बाल्यावस्था में पिता जी के स्वर्गवास होने से लालन-पालन का भार माता इच्छा बाई पर पड़ा। उनकी भावना मेरा बालक होनहार बने एवं नीति न्याय से मनुष्य भव सफल करें। माता अचानक असाध्य रोग से ग्रस्त हो गई। अंतिम अवस्था देखते हुए छगन को जगत का कल्याण करने में जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया। शिक्षा : गुरुदेव जी की शिक्षा बड़ौदा में हुई। आपकी बुद्धिमत्ता से मुख पर दार्शनिक, गंभीरता झलकती थी। माता अपने सुसंस्कारों से बालक के समस्त विकारों को नष्ट कर देती है। जैसे अग्नि में तपकर सोना शुद्ध बन जाता है। संयोग से संवत् 1940 में मुनि चन्द्र विजय जी महाराज के चातुर्मास में उनके उपदेशों से छगन की 'आत्म-ज्योति' धीरे-धीरे प्रकट होने लगी। 'अमरधन' प्राप्त करने की लग्न जागृत हो गई। वे सोचने लगे मैं शाश्वत, अमर, अक्षय, अखण्ड सुख की खोज में निकलूंगा। संवत् 1942 में श्रीमद् विजयानंद सूरि जी महाराज की वाणी भवसागर से पार उतारने वाली नौका के समान थी। गुरु की वाणी सुनकर छगन उनके प्रति समर्पित हो गए। जो कोई उनकी वाणी को सुनता आत्मलीन हो जाता। गुरु की वाणी से मंत्र-मुग्ध होकर बालक छगन महात्मा जी के पास स्थिर भाव से बैठ गया। गुरुदेव के पूछने पर बालक ने महात्मा जी के दोनों पाँव पकड़ लिए। गुरुदेव ने पूछा : भद्र ! क्या दुःख है ? क्या चाहते हो ? धन चाहते हो? बालक ने कहा - 'हाँ'। महात्मा जी- 'कितना'? बालक - 'गिनती मैं नहीं बता सकता। महात्मा जी- 'अच्छा, किसी को आने दो। बालक - 'नहीं, मैं आपसे ही लेना चाहता हूँ। महात्मा जी ने कहा : 'वत्स ! हम साधु है, पैसा-टका नहीं रखते'। बालक ने शांत भाव से कहा कि मुझे ऐसा धन चाहिए जिससे अनन्त सुख मिले। गुरुदेव इस उत्तर से प्रसन्न हुए तथा कहा 'वत्स ! योग्य समय आने पर तेरी मनोकामना पूरी होगी। दीक्षा : संवत् 1944 के शुभ दिन श्रीमद् विजयानंद सुरि जी महाराज ने राधनपुर में छगन लाल को दीक्षा देकर उनका नाम मुनि वल्लभ विजय रखा। अपने प्रशिष्य श्री हर्षविजय जी का शिष्य बनाया। संवत् 1947 को उनके गुरु जी का दिल्ली में स्वर्गवास हो गया। अब वे श्रीमद् विजयानंद सूरि जी महाराज के निष्कंटक शिव-पथ पर बढ़ने लगे। इस संत के जीवन का अमिट प्रभाव मुनि वल्लभ विजय पर पड़ा। “आत्म गुरु के शिष्य लाडले, तुम्हें भूल सकता है कौन। गुण वर्णन की शक्ति कहाँ है, स्वयं शारदा होती मौन।" विद्याध्ययन: मुनि वल्लभ विजय जी ने ऐसे ज्ञानी-ध्यानी गुरु की छत्रछाया में विद्या पाकर षडदर्शन का अध्ययन किया। जैनदर्शन का चिंतन-मनन एवं परिशीलन किया। संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, पंजाबी, मराठी, राजस्थानी आदि भाषाओं के सौंदर्य से उन्होंने हिन्दी कविता को लोकमंगलकारी रूप प्रदान किया। मिशन : अपने गुरु जी के स्वर्गवास के पश्चात् उनके मिशन प्राणी-मैत्री, मानव-कल्याण, समाजोद्धार, राष्ट्रीय एकता और विश्वबंधुता को आगे बढ़ाया। वे इसे पंचामृत कहते थे। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 205 Jan Education International Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "फूल मुरझा जाता है सुगंध रह जाती है, धूप जल जाती है पर महक रह जाती है। महापुरुषों की कुछ ऐसी होती है दास्तां कि, विभूति तो चली जाती है याद अमिट रह जाती है।" देते थे। अलंकरण: उद्योगशालाएं खुली, शिक्षण संस्थाएं स्थापित हुईं। जोकि 'वल्लभ काव्य सुधा' में संग्रहित हैं। गुरुदेव आपकी सेवा से उपकृत होकर जैन संघ आप समाज के स्वप्नद्रष्टा थे। आपने 'पैसा फण्ड जी ने गीति-नाट्य की रचना की। गुरुदेव ने संवत् 1981 को लाहौर में आपको आचार्य पद योजना' बनाई। इस फण्ड से आज तक रोगियों, जिस-जिस शहर में जाते थे वहाँ पर जो भी से विभूषित किया। आप 'कलिकाल- कल्पतरु', विधवाओं, विद्यार्थियों और अनाश्रितों की मूलनायक परमात्मा होते थे उनका स्तवन बना अज्ञान तिमिर तरणि, 'भारत-दिवाकर', सहायता हो रही है। 'पंजाब केसरी' आदि अनेक अलंकरणों से शिक्षा प्रचार : देवलोक गमन सम्मानित हुए। आपने अपने गुरुदेव के मिशन को पूर्ण आचार्य देव जी का जीवन दीपक 22 आध्यात्मिक जीवन : करने हेतु राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर सितंबर, सन् 1954 विक्रम संवत् 2011 जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि अनेक ____ मंगलवार को रात को 2 बजकर 32 मिनट पर का तपस्वी जीवन था। वे अहिंसा-संयम-तप धर्म प्रदेशों में शिक्षा का प्रचार करते हुए व्यावहारिक पुष्य नक्षत्र में 'अर्हत्' नामोच्चारण करते हुए के साधक के साथ सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चरित्र के ज्ञान एवं विधि ज्ञान प्राप्त करने हेतु कई गुरुकुल, बम्बई में बुझ गया। वे अंतिम समय में आराधक थे। वे दिन भर में गिनती की चीजें ही। बालाश्रम, विद्यालय, महाविद्यालय आदि शिक्षण ज्ञान-ध्यान में लीन प्रशांत मुद्रा में शोभित थे। इस लेते थे। आपका जीवन “सन्त मैत्री, प्रमोद, संस्थाएं भिन्न-भिन्न प्रदेशों में खोली। आपके धरती पर इस दिव्य आत्मा ने असंख्य जीवों का करुणा और माध्यस्थ भाव से युक्त होते हुए जैन शिष्य रत्न आचार्य श्री ललित सूरि जी ने इन उद्धार किया था। अचानक प्रकाश बुझ गया, समाज के लिए ही नहीं अपितु समस्त जनता के विद्यामंदिरों का सिंचन किया। अंधकार छा गया। आचार्य श्री ने देह-विलय के लिए आंतरिक शक्ति का स्त्रोत था। देश-प्रेम : समाचार बिजली की गति के समान भारत के विश्व-शान्ति गुरुदेव जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में कोने-कोने में एवं विदेशों में फैल गये। आपने विश्व-शान्ति के लिए अहिंसा, जन-जागरण हेतु अनेक प्रवचन दिए। स्वयं खादी उनकी महाप्रयाण-यात्रा में लाखों लोगों अपरिग्रह एवं अनेकान्त दर्शन पर जोर दिया। श्री के वस्त्र पहने और जन-जन को खादी वस्त्र ने भाग लिया। अंतिम यात्रा में हिन्दू, मुसलमान, गुरुदेव जी ने अपने प्रवचनों द्वारा विश्वशान्ति के पहनने के लिए प्रेरित किया। सिक्ख, ईसाई, पारसी, जैन आदि सभी लिए जीवन पर्यन्त प्रचार किया। "कवि का अन्तःकरण धार कर, धर्म-सम्प्रदायों के लोग शामिल हुए। पूज्य गुरुदेव समाज सेवा : कई पूजा रच डाली। जी का अग्नि संस्कार भायखला में हुआ। जहाँ आपने समाज में व्याप्त विषमता ब्रह्मचर्य की छढ़ नौ बाढ़े, पर आज श्री आदीश्वर जैन मंदिर एवं गुरुदेव जी असमानता को दूर करने के लिए कहा : 'हमें तुमने निरतिचार पाली।" का समाधि मंदिर स्थित है। ऐसी पुण्यात्मा को शोषणहीन समाज की रचना करनी है, जिसमें साहित्य-सर्जना : बार-बार वंदन, नमस्कार करती हूँ तथा उनके कोई भूखा-प्यासा न रहे। गुरुदेव जी ने श्री आदिनाथ, श्री द्वारा बताए गये मार्ग पर चलने का संकल्प लेती प्रतिज्ञा शांतिनाथ, श्री पार्श्वनाथ, श्री महावीर स्वामी, आपने मध्यम एवं निर्धन वर्ग की पीड़ा पंचकल्याणक पूजा, श्री पंच परमेष्ठी पूजा, समझते हुए बम्बई में जब तक उत्कर्ष फण्ड में निन्यानवे प्रकारी पूजा, एकवीस प्रकारी पूजा, पाँच लाख रुपये जमा नहीं होंगे तो मैं दूध और ऋषि मंडल पूजा, चारित्र पूजा, द्वादशव्रत एकादश उससे बनी वस्तुओं का त्याग करूंगा। आपकी गणधर पूजा, चउदराज लोक पूजा आदि कई प्रतिज्ञा से यह राशि शीघ्र ही एकत्रित हो गई। पूजाओं की रचना की। गुरुदेव जी ने 24 ट्रस्टीशिप सिद्धान्त तीर्थंकरों की भक्ति में अनेक स्तवन रचे तथा आपके उपदेश से प्रेरित होकर अनेक ऋषि मुनियों के सज्झायों की रचना की, हूँ 206 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 4504 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जालमा जग वल्लभ चरणकिंकर हस्तीमल की वंदना वल्लभ तेरा नाम अनुपम, जग वल्लभ कहलाया। लाखों मनुज का नायक था, तू लाखों का दिल सहलाया।। गुजरात देश के बड़ौदा नगर में सेठ दीपचंद भाई के घर माता इच्छा देवी की रत्न कुक्षि में जन्म लिया। ज्येष्ठ बन्धु खीमचंद भाई के सान्निध्य में बड़े हुये। परम पूज्य आचार्य श्री विजयानन्द सूरीश्वर जी (आत्माराम जी) का पदार्पण बड़ौदा नगर में हुआ। संसारी नाम छगन लाल ने व्याख्यान सुना, संसार की असारता का ज्ञान हृदय में प्रकट हुआ, आपने गुरुदेव से दीक्षा लेने का निश्चय किया। बड़े भाई ने रोका परंतु अटल श्रद्धा को देखते हुये हां कह दी। राधनपुर में दीक्षा ग्रहण की। गुरुदेव ने छगन लाल का नाम वल्लभ विजय रखा। वहां से गुरुदेवों के साथ विहार करते हुये पंजाब की ओर पधारे। आप श्री की तीक्ष्ण बुद्धि द्वारा विद्याध्ययन में अग्रसर हुये। सूत्र सिद्धान्त के रसिक बने। पंजाब र्मास परे किये। 'व्याख्यान वाचस्पति' व 'पंजाब केसरी' विरुद के धारक हुये। गुरुदेव श्री आत्माराम जी महाराज के स्वर्गगमन के पहले पंजाब के संघों ने विनती गुरुदेव से की थी कि हमारे को कौन संभालेगा ?गुरुदेव ने फरमाया था कि मेरे पीछे वल्लभ संभालेगा। गुरुदेव का स्वर्गगमन जेठसुद 7 को हुआ, बाद में गुरुदेव वल्लभ को आचार्य पदवी लेने का बहुत आग्रह किया गया, परंतु विनयादि गुणों से विभूषित गुरुदेव ने मना कर दिया कि मेरे वडील कमल विजय जी विराजमान हैं, वह हमारे नायक हैं। रत्न अंधेरे में ही प्रकाश देता है। सम्वत् 1981 में गुजरात के संघों और आचार्य देव नेम सूरीश्वर जी म. आदि की प्रेरणा से लाहौर में आपको पंजाब श्री संघ ने आचार्य पदवी से सुशोभित किया। गुरुदेव श्री विजय वल्लभ ने आचार्य पद पर सुशोभित होने के पश्चात् मूर्ति पूजा विषय में कई शास्त्रार्थ किये। पंजाब में नाभा और राजस्थान में बीकानेर आदि में शास्त्रार्थ करके विजय प्राप्त की। शिष्य-प्रशिष्य समुदाय: उपाध्याय श्री सोहन विजय जी, आचार्य श्री उमंग सूरीश्वर जी, आचार्य श्री विद्या सूरि जी, आचार्य श्री ललित सूरि जी, आचार्य श्री समुद्र सूरि जी, आचार्य श्री पूर्णानंद सूरि जी, आचार्य श्री इन्द्रदिन्न सूरि जी, आचार्य श्री ह्रींकार सूरि जी, वर्तमान आचार्य श्री रत्नाकर सूरि जी, आचार्य श्री नित्यानंद सूरि जी, आचार्यों में बडील जनकचंद्र सूरि जी, आचार्य श्री विजय धर्म धुरंधर सूरि जी, आचार्य श्री वीरेन्द्र सूरि जी, आचार्य श्री बसंत सूरि जी आदि हुये। आप श्री जी भूख व धूप की परवाह न करते हुये शासन की सेवा में हाज़िर रहे। गुरुदेव विजयानंद सूरि का उपदेश था कि 'न धर्मो धार्मिक बिना' इस आशय को लेकर शिक्षा प्रचारक बने, आपने कई स्थानों पर विद्यालय-गुरुकुल आदि पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात आदि में खुलवाये ताकि भावी पीढ़ी धर्म से वंचित न रहे। मौजूदा कार्य सुचारू रूप से चल रहा है। आप श्री का मनोबल : मेरा साधर्मिक भाई भूखा न रहे। श्रीसंघ में शान्ति और सदभाव बना रहे। फालना कॉन्फ्रेन्स के अधिवेशन में गुरुदेव ने संघ एकता के लिये कहा, "मैं आचार्य पदवी छोड़ने को तैयार हूं।" यह वाक्य बोलते ही भारत के संघों ने युगवीर पद प्रदान किया। ऐसे संत महापुरुष को कोटी-कोटी वंदना। गण : निर्मल. चारित्रवान, शान्तमूर्ति, मृदुभाषी, पराक्रमी, भवभीरु. साधर्मीउद्धारक, युगपुरुष, मरुधर की आंखों के तारे, दीर्घदृष्टा, कुसंपदहन, कवियों के सिरमौर, समवारसभंडार व आचार्य के छत्तीस गुणालंकृत थे। उपदेश : प्राणी मात्र पर दया, धर्म के सात क्षेत्र, श्रावकों को संभालना, सातों क्षेत्र साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका-ज्ञान, जिनमंदिर-जिनमूर्ति ये सबको सिंचन करोगे, तो समाज और धर्म हरा भरा रहेगा। पापी को पापी कहना पाप है, पाप से घृणा करो पाप से नहीं। कोई अपने को गाली देवे। उससे कलह मत करो, देने वाला दानी होता है। भूल करने वाला पुरुष और भूल स्वीकार करने वाला महापुरुष है। "गुण अनंत हैं आपके, मुख से कहा न जाय, हजार जीभ से जो कहूं, तो भी पूरा न होय।" 4560 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 207 Jain Education Intemat Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन-वल्लभ आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरिजी की जीवन झाँकी जवाहर चन्द्र पटनी, एम.ए (हिन्दी, अंग्रेजी) "ज्ञानांजन-शलाकया अज्ञान-तिमिरान्धस्य। चतुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवेनमः।” "जो अज्ञान अंधकार के अंधे बने हुए हैं उनके नेत्रों को ज्ञान की अंजनसलाई लगाकर जिसने खोल दिए हैं, उस गुरु को नमस्कार है।" दिवंगत आचार्यदेव श्री वल्लभ सरिजी का जीवन ऐसे संत का जीवन था जिसने जीवन-पर्यन्त समाज सेवा की। उनका जीवन रूपी भवन दो सुदृढ़ स्तंभों पर खड़ा है। एक स्तंभ है शुद्ध जीवन तथा दूसरा है। समाजोत्थान की भावना। उन्होंने सर्वप्रथम अपने जीवन को ज्ञान के प्रकाश से अलोकित किया। उनका दृढ़ विश्वास था कि "ज्ञानमेव बुधाः प्राहुः कर्मणां तपनात्तप" -ज्ञान ही वास्तविक तप है, क्योंकि यह कर्म को जलाता है। गुरुदेव ने अपने पूज्य गुरुदेव श्री वल्लभ) का जन्म हुआ। पिताश्री आत्मारामजी के चरणों में ज्ञानार्जन धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और किया। विद्यादेवी की इन्होंने हृदय से माताश्री धर्म परायणा, सुशील महिला आराधना की और अपने शुद्ध जीवन थीं। माता ने मृत्यु के समय अपने से वे जीवन भर व्यक्ति और समाज के 'लाल' को अपने पास बुलाया और उत्थान में लगे रहे। उनका जीवन अश्रुप्लावित नेत्रों से कहा : दीप-तुल्य था। जहाँ वे जाते प्रकाश ही "प्रिय छगन, मैं इस नश्वर प्रकाश फैलता। प्रकाश के सामने संसार से विदा हो रही हूँ, तू अमर अंधकार कैसे ठहर सकता है? सुख को प्राप्त करने के लिए प्रयास इस प्रकाशतुल्य जीवन के करना। मैं करुणा सागर प्रभु की बाल्यकालरूपी दर्पण में वह स्पष्ट एवं अमर शरण में तुझे छोड़ कर जा रही उज्ज्वल प्रतिबिम्ब दिखाई देता है, हूँ।" ये शब्द प्रिय छगन के प्रेरणा स्रोत जिसे देखकर यह सहज ही अनुमान । बने रहे। भाग्य से मिले करुणा मूर्ति लगाया जा सकता है कि ऐसे जीवन ही गुरुदेव आत्मारामजी महाराज जिन्होंने बाद में समाज के अमूल्य रत्न होते हैं। आचार्य वल्लभ के जीवन का निर्माण कार्तिक शुक्ला द्वितीया (भाई दूज) किया। आचार्य श्री आत्मारामजी वि.सं. 1927 के दिन गुजरात प्रान्त सचमुच सुधारक थे। 'वल्लभ' का के बड़ौदा नगर के श्रीमाली परिवार में जीवन मान सरोवर था, चन्द्र प्रकाश सुप्रसिद्ध श्रेष्ठीवर्य श्री दीपचन्द भाई से मानसरोवर चमक उठा। सरोवर के गृह में पूजनीय माता इच्छाबाई की की लहरें उस शीतल एवं चारु प्रकाश पुनीत कुक्षि से छगनलाल (आचार्य में नाच उठीं। सर्वत्र चन्द्र प्रकाश की "ऐसा आदर्श विश्व विद्यालय स्थापित हो जिसमें जैन दर्शन एवं अन्य दर्शनों का अध्ययन हो तथा मनुष्य अपने जीवन को प्रभु-मन्दिर (Temple ofGod) बना सके। साथ ही साथ वह सुसंस्कारी बन कर देश और समाज की निः स्पृह सेवा भी कर सके। यह विश्वविद्यालय ‘आदर्श कल्पना' (Utopia) नहीं है बल्कि यथार्थविचार का धरातल है। गुरुभक्तों को उनकी इस अभिलाषा की पूर्ति हेतु गम्भीरतापूर्वक योजना बनानी चाहिए। गुरुदेव के शाब्दिक गुणगान करने से कोई गुरुभक्ति सिद्ध नहीं होती। सच्ची गुरुभक्ति तो वही है, जिससे उनके बताये हुए राजपथ पर हम निर्भीक हो कर चल सकें।" 208 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1500 Education international Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस दिव्य घटा निस्संदेह आचार्य वल्लभ की तो उद्यान उजड़ जाएगा।" __शुद्धाचरण द्वारा अपने 'आत्म-वल्लभ' बन गये। पूज्य वास्तव में गुरुदेव समाजोद्यान के मन को मंदिर के समान पवित्र आत्मारामजी के प्रिय शिष्य तो वे बने कुशल बागवान थे। बनाओ। पवित्र मन मंदिर में ही ही, साथ-साथ आत्मसुख के इच्छुक गुरुदेव की अभिलाषा थी, जैन परम कृपाल परमात्मा विराजमान भी। उनका 'आत्म वल्लभ' नाम विश्व विद्यालय की स्थापना करने की। होंगे। मन को पवित्र बनाने के सार्थक हो गया। पूज्य गुरुदेव ने किन्तु वह पूरी न हो सकी और आज लिए शुद्ध आहार, शुद्ध विचार समाजोत्थान पर विशेष महत्त्व दिया। तक उनका यह स्वप्न साकार नहीं हो और और शुद्ध विहार (आचरण) उन्होंने देखा कि समाज की दशा सका है। गुरुदेव विश्वविद्यालय की आवश्यकता है।" बम्बई में श्री अत्यन्त ही दयनीय है। शिक्षा के स्थापित करके क्या चाहते थे ?इस एस.के. पाटिल की अध्यक्षता में मनाई अभाव में समाज के बालक पतनोन्मुख भावना की पृष्ठभूमि में एक ही बात गई पावन जन्म जयन्ती के प्रसंग पर हैं। बिना शिक्षा के व्यक्ति के विचारों में महत्त्वपूर्ण है और वह है उच्च शिक्षा आपने कहा था : परिवर्तन लाना असंभव है। शिक्षा के के द्वारा व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाकर "मैं न जैन हूँ, न बौद्ध न द्वारा व्यक्ति को बदलना होगा, गुरुदेव उसे समाज का उपयोगी अंग बनाना। ने सोचा। इसीलिए उन्होंने समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला है, स्थान-स्थान पर विद्यालय खुलवाये। देशभक्ति की कमी है, अनुशासनहीनता परमात्मा को खोजने के मार्ग पर उन्होंने विद्यालय एवं पुस्तकालय है, ये सब देश के शरीर को क्षय के चलने वाल खुलवाकर जनता के जीवन को कीटाणुओं के समान खा रहे हैं। इस गुरुदेव सही रूप में विश्व मानव प्रकाशित करने का आजीवन प्रयत्न क्षयरोग का निवारण सुनियोजित उच्च थे, विश्व संत थे, विश्व वल्लभ थे। किया उनके यश के स्मारक रूप में शिक्षा के द्वारा ही हो सकता है। ऐसा इस दिव्य संत का जीवन दीप आज भी खड़े हैं महावीर विद्यालय, आदर्श विश्व विद्यालय स्थापित हो आश्विन वदि 10, मंगलवार सं. बम्बई; श्री पार्श्वनाथ उम्मेद जैन जिसमें जैन दर्शन एवं अन्य दर्शनों का ___2011 को रात्रि के दो बजकर बत्तीस महाविद्यालय फालना, श्री आत्मानन्द अध्ययन हो तथा मनुष्य अपने जीवन मिनट पर बम्बई में बुझ गया। ऐसा जैन कॉलेज अम्बाला, श्री पार्श्वनाथ को प्रभु-मन्दिर (Temple of God) लगा जैसे जगत् का सूर्य अस्त हो गया हाई स्कूल वरकाणा; और अनेक बना सके। साथ ही साथ वह हो। जिस सूर्य ने जन मानव को विद्यालय और पुस्तकालय। गुरुदेव ने सुसंस्कारी बन कर देश और समाज आलोकित किया, जिसने समाजोत्थान इन्हें ज्ञान का प्याऊ कहा है। 'शिक्षा के की निःस्पृह सेवा भी कर सके। यह के पुष्प-पौधों को प्रकाश-किरणों से द्वारा समाज का अभ्युदय' उनका नारा विश्वविद्यालय आदर्श कल्पना' प्रस्फुटित किया, जो अज्ञानतिमिर को था। गुरुदेव ने अपने एक व्याख्यान में (Utopia) नहीं है बल्कि यथार्थविचार दूर करने के लिए शिक्षा की समोज्ज्वल समाज के प्रति मार्गदर्शकों के का धरातल है। गुरुभक्तों को उनकी किरणें फैलाता रहा, जिसने व्यक्ति उत्तरदायित्व के संबंध में ये उद्गार इस अभिलाषा की पूर्ति हेतु और समाज को अंधकार से प्रकाश में प्रकट किये थे: गम्भीरतापूर्वक योजना बनानी चाहिए। लाने का जीवनपर्यन्त प्रयास किया, "समाज उद्यान है। गुरुदेव के शाब्दिक गुणगान करने से वह उस दिन पार्थिव रूप में अस्त हो नर-नारी पुष्प-पौधे हैं। इस कोई गुरुभक्ति सिद्ध नहीं होती। सच्ची गया। परन्तु वह सूर्य तो अभी भी समाजोद्यान के बागवान हैं। गुरुभक्ति तो वही है, जिससे उनके जन-मन में चमक रहा है, उसके दिव्य साधु-संत तथा समाज के बताये हुए राजपथ पर हम निर्भीक हो उपदेश विविध किरणों के रूप में नेतागण। यदि इन पुष्पों को कर चल सकें। पूज्य गुरुदेव के उपदेश मानस-कलियों पर शोभित हैं। उन सुजल से नहीं सींचा और सभी लोगों के लिए उपयोगी होते थे। किरणों को मानस-कोष में सदा-सर्वदा आवश्यकता के अनुसार उनकी बम्बई की एक विशाल जनमेदनी में हम सुरक्षित रखें, यही प्रयास होना काँट-छाँट और देख-भाल नहीं उन्होंने कहा थाः चाहिए। जय वल्लभ! 4507 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 209 For Private & Personal use only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालचक्र का मानचित्र स्थिति: 20कोत कोटी सागरोपम ale d112Hhlalaus 'ला सागरोपम HER Hoofd - Lease सुख साथ प्रत्यापित काल सागरोपम तानकोटाकोटी दोका तीनकोटा कोटी चार 2 उरवम् सागरोपम अवसर्पिरागी) उत्सर्पिणी चतकाल परताकात दुःखम सरवम दुरवम 63शलाकापुर अनि सुखम- CTERTELEM सागरोपम सा उत्तम दाखल सवम S//42000वर्षकम 21000 लाकोटी दो कोटाकोटी सागरोपम पुरुषअवतरित रककोटाकोटा विम दुरखम खम्ब र पम वर्ष टा/21000/21000/ उतष अवतरित मसागरोपमा नवम् दुरवम सुरवम म/दखा सागरापम 000/21000 000/42000 वर्ष का राककोटाकाटा वर्ष वर्ष वर्षVAR as व 63शलाका 632लाका पुरुष २4 तीर्थंकर १२ चक्रवर्ती १ बलदेव १ वासुदेव १ प्रतिवासुदेव 63 शलाका पुरुष साकारता 210 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औद्योगिक नगरी लुधियाना में स्थापित गुरु विजय वल्लभ मन्दिर में पुष्पांजलि, दीपांजलि एवं श्रद्धांजलि समारोह का अभूतपूर्व आयोजन शुभ सद्प्रेरणा एवं आशीर्वाद वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य "श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म. सा." पावन निश्रा पूज्य महत्तरा साध्वी मृगावती श्री जी महाराज की सुशिष्या, साध्वी सुव्रता श्री जी म. ठाणा-3 गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए भगवान् महावीर जैन सेवा संस्थान की ओर से विजय वल्लभ गुरु मन्दिर', बसन्त रोड़, सिविल लाईन पर भव्याति-भव्य पुष्पांजलि श्रद्धांजलि एवं दीपांजलि का आयोजन किया गया। दिनांक 10 अक्तूबर 2004 की पूर्व संध्या पर 'गुरु वल्लभ' का गुणगान करने के लिए भजन संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें गुरु भक्तों ने अपनी मधुर ध्वनियों से गुरु भजनों एवं संगीत द्वारा गुरु विजय वल्लभ का गुणानुवादन किया । इस भजन संध्या में विशेष रुप से संजीव जैन एंड पार्टी, श्री ज्ञान चंद जी चांदी, श्री सुरेश जैन जी पाटनी आदि विभिन्न कलाकारों ने भजन संध्या के समय को मध्य रात्रि तक बांधे रखा। श्री सिन दिनांक 10 अक्तूबर 2004 को प्रात: गुरू प्रतिमा का दूध से प्रक्षालन आदिनाथ जैन जुनियर महिला मंडल एवं नन्हें-मुन्हें बच्चों ने बहुत ही करवाया गया। साध्वी सुव्रता श्री जी महाराज की पावन निश्रा में श्री आकर्षक एवं रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए। कुमारी शिखा जैन, ईशा गाना 1, इशा आदिनाथ जैन मन्दिर सिविल लाईन से शोभायात्रा आरम्भ करने से पूर्व जैन ने भी अपने मधुर कंठ से बहुत ही आकर्षक शब्दों से गुरू भक्तों को धर्मसभा का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न गुरूभक्तों ने गुरू भक्ति में बांधे रखा। गुरू चरणों में दीपांजलि स्वरूप पूरे मन्दिर जी, भक्ति के गीत गाए। यहीं से शोभायात्रा का शभारम्भ हुआ।' श्रीमद उसके परिसर एवं विजयानद डायग्नोस्टिक सेंटर को जगमगाती रोशनी विजय वल्लभ सरीश्वर जी महाराज' की विजय वल्लभ रथ यात्रा वाली के साथ सजाया गया। मन्दिर जी की सजावट इतनी कलात्मक, सुन्दर प्रतिमा को शीशे के रत्नों से जडित सन्दर एवं आकर्षक पालकी में एवं दर्शनीय, रमणीय थी कि मन प्रफुल्लित हो कर, गुरु भक्ति से भर निशाना किया गया। उठता था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानों जैसे ज्ञान की रोशनी में से गुरु विजय समद्र इन्द्र जैन सेवा मंडल के नवयुवकों ने पूजा के प्रतिमा स्वयं प्रकट हो रही है। वस्त्रों में गुरूदेव की पालकी के वाहन बनकर अपने कधों पर उठाया तथा शोभायात्रा के साथ रवाना हुए। शोभायात्रा श्री आदिनाथ जैन मन्दिर से चलकर सिविल लाईन के विभिन्न मार्गों से होती हुई बसन्त रोड, सिविल लाईन गुरू मन्दिर स्थान पर पहुँची। यहां पर इस मन्दिर में विराजमान गुरू प्रतिमा जी को 50 पुष्प मालाएँ अर्पित करने का समारोह रखा हुआ था। प्रथम पुष्प माला अर्पण करने का लाभ श्री सरदारी लाल भूषण कुमार रमेश कुमार परिवार वालों ने बोली द्वारा लिया। शेष पुष्पाजंलि लाभार्थी परिवारों के नाम लेख में प्रकाशित हैं । जैन समाज के सभी गणमान्य व्यक्तियों ने इस समारोह में भाग लेकर गुरू चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित किए। सभी ने गुरू चरणों में की गई पुष्पांजलि, दीपांजलि एवं श्रद्धाजंलि के आयोजन की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। 1504 विजय वल्लभ 211 संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private Personal use only mellbrary.org विजय वल्लभअग Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समारोह में ऐसा प्रतीत हो रहा था कि गुरुदेव फिर से हम सभी के बीच को जाता है, जिन्होंने अपने अनथक एवं सक्रिय यत्नों से इस आयोजन में जीवन्त हो उठे हों। 2 की रूपरेखा तैयार कर उसे क्रियान्वित रुप दिया। इसी के साथ ट्रस्ट के दोपहर के गुरू लंगर का लाभ श्री रतन चन्द राजेन्द्र जैन परिवार वालों ने मन्त्री श्री सुरेश जैन, कोषाध्यक्ष देवेन्द्र जैन, श्री चन्द्र किरण जी, विपन लिया। इस सारे आयोजन की सफलता का श्रेय भगवान् महावीर जैन जैन मालकस, सुशील जैन दुग्गड़, विजय समुद्र सूरि युवक मंडल एवं सेवा संस्थान ट्रस्ट' के चेयरमैन 'श्री सिकन्दर लाल जैन, एडवोकेट' सभी आयोजन सहयोगी बधाई के पात्र हैं। संयोजक पुष्प जैन पाटनी momपुष्पांजली लाभार्थी ~~ - प्रथम पुष्पमाला अर्पण करने का लाभ लेने वाला परिवार श्री सरदारी लाल भूषण कुमार रमेश कुमार जैन, मैस. स्वास्तिक इंटरप्राईजिज़ लिमिटेड श्री हरबंस लाल देवेन्द्र कुमार जैन, कसूर वाले श्री शान्ति लाल राकेश कुमार जैन, कसूर वाले श्री खजांची मल प्रीतम देवी जैन परिवार घोड़े वाले श्री विजय कुमार रजनीश कुमार जैन, कसूर वाले श्री वल्लभ दास सुरेश कुमार पाटनी श्री हंस राज पवन कुमार जैन, नारोवाल वाले भगत श्री दौलत राम तरसेम लाल पाटनी परिवार श्री आत्म प्रकाश रमेश कुमार जैन, कसूर वाले श्री सरदारी लाल जोगिन्दर लाल जैन, मालकस श्री हरबंस लाल इन्द्र कुमार जैन, कसूर वाले श्री चैन लाल सुशील कुमार जैन, दुग्गड़ श्री हरबंस लाल आशोक कुमार जैन, कसूर वाले श्री गोवर्धन दास सुरिन्द्र कुमार जैन, कसूर वाले श्री हरबंस लाल रविनन्दन जैन, कसूर वाले श्री फग्गु मल कश्मीरी लाल जैन बरड़ श्री हरबंस लाल सुभाष कुमार जैन, कसूर वाले श्री रोशन लाल त्रिपता जैन पाटनी परिवार श्री सरदारी लाल भूषण कुमार रमेश कुमार जैन श्री हंसराज रोशन लाल जैन, खानगा डोगरा वाले श्री ज्ञान चन्द त्रिभुवन कुमार जैन परिवार, घोड़े वाले श्री गंडा राम राज कुमार जैन, रायकोट वाले श्रीमति गुणमाला जैन (मैस हाई फ्लाई निटवियरज़) श्री दौलत राम कमला वंती जैन पाटनी, परिवार श्री चमन लाल रविन्द्र कुमार जैन (मैस जैन हौज़री) श्री रोशन लाल किरण कुमार जैन, कसूर वाले श्री देव राज राजेश कुमार जैन, नारोवाल वाले श्री गोवर्धन दास शांति प्रकाश जैन, कसूर वाले श्री देव राज अश्विनी कुमार जैन, पट्टी वाले श्री गोवर्धन दास कश्मीरी लाल जैन, कसूर वाले श्री राज कुमार डा राम पाल जैन मुन्हानी श्री गोवर्धन दास पवन कुमार जैन, कसूर वाले श्री चन्द प्रकाश कोमल कुमार सर्राफ जंडियाला वाले श्री मुनि लाल बाल कृष्ण जैन, घोड़े वाले श्री सरदारी लाल तरसेम कुमार, मैस नागेश्वर प्रिंटर्ज श्री राम लाल सुभाष कुमार जैन, घोड़े वाले श्री चन्द प्रकाश संजय कुमार सर्राफ जंडियाला वाले श्री प्रद्युमन कुमार भूषण कुमार जैन बरड़ श्री मुनि लाल श्री पाल अनिल कुमार श्री ज्ञान चन्द अजीत कुमार जैन, फरीदकोट वाले अशोक कुमार जैन, मुन्हानी श्री रतन चन्द राजेन्द्र कुमार पपनाखे वाले श्री महेन्द्र कुमार नरेश कुमार कसूर वाले (बी.एम.) श्री निर्मल कुमार विपन कुमार, कसूर वाले श्री द्वारका दास प्रवीण कुमार जैन, पट्टी वाले श्री बिमल प्रकाश जैन (मैस आदिनाथ डाईंग) श्री शादी राम शिव चन्द जैन, जंडियाला वाले मैस सी. मोहन ट्रेडरज़ म० नत्थू राम सुरेन्द्र कुमार विरेश जैन (नैलसन हौजरी) श्री पंजाब राये सोहन लाल पाटनी परिवार श्री शादी लाल प्रफुल चंद जैन (कसूर वाले) श्री बैसाखी राम सतीश कुमार जैन, रोपड़ वाले गरू लंगर लाभार्थी परिवार : श्री रतन चन्द राजेन्द्र कुमार जैन, पपनाखे वाले, मालिक स्वर्ण हौजरी, लुधियाना। 212 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका w oriy.ory Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समारोह के छायाचित्र 1507 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only 213 Jan Education interior Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औद्योगिक नगरी लुधियाना में निर्मित श्रीमद् विजय वल्लभ गुरु मन्दिर के निर्माण का संक्षिप्त इतिहास गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. का देवलोक गमन आसोज वदि, एकादशी सन् 1954 को मुंबई ' भायखला' में हुआ था। उनके पार्थिव शरीर का अग्नि संस्कार भायखला में किया गया । वह स्थान 'गुरु मन्दिर भायखला' के नाम से प्रसिद्ध है। पार्थिव शरीर के अस्थि पुष्प उठाने के समय विजय समुद्र सूरीश्वर जी म. ने उन अस्थि पुष्पों को अलग-अलग कलशों में रखा था। उक्त रस्म के समय पंजाब के लुधियाना शहर से दो व्यक्ति मौजूद थे जिनके नाम क्रमशः भगत दौलत राम जी 'पाटनी' तथा ला. सरदारी लाल जी 'कोठी वाले' थे । भगत दौलत राम जी के द्वारा आचार्य विजय समुद्र सूरीश्वर जी म. से पंजाब के लिए गुरु देव की निशानी मांगने पर पूज्य गुरु देव ने अस्थि पुष्प का एक कलश उनके सुपुर्द कर दिया ताकि पंजाब में एक गुरु समाधि मन्दिर बन सके। वह अस्थि पुष्प का कलश लेकर वापिस लुधियाना आ गये, अस्थि पुष्प रखने के लिए कोई उचित व्यवस्था उस समय न होने पर संघ की आज्ञा से भगत दौलत राम जी ने अपने निवास स्थान मुहल्ला बन्दया में लाकर अलमारी में यथा स्थान विराजित कर दिये और प्रतिदिन धूप एवं अगरबत्ती से पूजा करते रहे। लम्बे समय तक समाज के द्वारा विभिन्न प्रयत्न करने पर भी पुष्प स्थापित करने के लिए कोई उचित स्थान नही मिला। इसी दौरान भगत दौलत राम जी का स्वर्गवास हो गया और अस्थि पुष्पों के देखभाल की जिम्मेदारी इनके दोनो बेटे श्री तरसेम लाल पाटनी, श्री विमल कुमार पाटनी के कंधो पर आ गयी। अक्तूबर 1993 में श्री तरसेम लाल जी की मौत हो गयी। मृत्यु के एक सप्ताह पूर्व श्री तरसेम कुमार जी ने अपने दोनो बेटों पुष्प दंत पाटनी एवं ललित भूषण पाटनी से कहा कि परमात्मा ने हमको सब कुछ दिया हुआ है। गुरु अस्थि पुष्पों के लिए एक उचित सम्माननीय पवित्र स्थान का प्रयोग कर, गुरु पुष्पों को वहाँ पर स्थापित कर देना और सुबह शाम धूप-बत्ती करते रहना । मृत्यु उपरांत रस्म पगड़ी के समय परिवार की तरफ से अपने अजैन मित्र श्री बसंत लाल धनदेवी परिवार के वंशज श्री राजिन्द्र कुमार जी के सहयोग से स्थान और उचित राशि के साथ गुरु मन्दिर निर्माण की घोषणा की गई और उसी सभा में भगवान् महावीर जैन सेवा संस्थान के चेयरमैन श्री सिकन्दर लाल जैन ने सहर्ष संघ के सहयोग से निर्माण कार्य को पूर्ण करने का विश्वास दिलाया। भगवान् महावीर जैन सेवा संस्थान एक रजिस्टर्ड ट्रस्ट है जिसकी स्थापना कर श्री राजेन्द्र कुमार जी ने सामाजिक कार्यों के लिये भूमि अनुदान देकर फाउन्डर ट्रस्टी होने का सौभाग्य प्राप्त किया । उपरोक्त घोषणा के अनुसार श्री सिकन्दर लाल जी अपने साथियों के साथ उस समय विराजमान गच्छाधिपति श्री मद् विजय 214 Jain Education Internation इन्द्र दिन्न सुरिश्वर जी म. की सेवा में गुरु विजय वल्लभ समाधि मन्दिर बनाने की आज्ञा लेने के लिए उपस्थित हुए। गच्छधिपति जी ने खुशी का इज़हार करते हुए, रविवार दिनांक 5-12-1993 को भूमि खनन करने का और 8-12-1993 को शिलान्यास करने का मुहूर्त दिया। समय बहुत कम था लेकिन जिस कार्य को होना होता है, वो अपने लिए रास्ता स्वयं बना लेता है। कुछ ऐसा ही चमत्कार हुआ। गुरु कृपा से दोनों कार्य महत्तरा साध्वी मृगावती श्री जी महाराज की सुशिष्या साध्वी सुव्रता श्री जी म., साध्वी सुयशा श्री जी म. एवं साध्वी सुप्रज्ञा श्री जी म. की पावन निश्रा में सम्पन्न हुए और निर्माण कार्य तीव्र गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा और गुरु प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा 22-7-1996 को विधि विधान पूवर्क सम्पन हुई। गुरु महाराज जी के अस्थि पुष्प कलश 10-6-1994 को भूमि में स्थापित किया गया एवं 9-7-1995 को प्रतिमा जी की स्थापना हुई । इस प्रकार तत्कालीन गच्छाधिपति श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज के शुभ आशीर्वचन एवं शुभ आशीर्वाद से इस मन्दिर के सभी कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न हुए और यह मन्दिर अस्तित्व में आ गया। गुरु मन्दिर के निचले हिस्से में देवी मां पद्मावती जी की प्रतिमा विराजमान है। इस गुरु मन्दिर में देवी प्रतिमा को विराजमान करने का अपना कारण है। देवी मां ने स्वप्न में इस निर्माण कार्य में आने वाली रुकावटों को दूर करने का वचन दिया था और साक्षात् यहां पर विराजमान होने की भावना प्रकट की थी। इसी कारण यहां देवी प्रतिमा की भी स्थापना की गई है। गुरु अस्थि 'पुष्प इस मन्दिर जी में गुरु चरण पादुका के नीचे रखे हुए हैं, इस कारण इसे गुरु समाधि मन्दिर भी कहते हैं । वर्तमान में यह मन्दिर 'गुरु मन्दिर' के नाम से प्रसिद्ध है। उत्तरी भारत में यह अपनी तरह का एक आलौकिक एवं कलात्मक मन्दिर है। प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में गुरु भक्त, गुरु वंदन एवं गुरु का दिव्याशीष प्राप्त करने के लिए इस मन्दिर जी में आते हैं और साथ में देवी माता का वंदन एवं दर्शन करते हैं। स्वपन में दिए गए वचन के अनुसार देवी माँ पूरे निर्माण कार्य में सहायक रुप बनी रही और जो भी भक्तजन यहाँ पर श्रद्धा से अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, माता उनकी मनोकामना पूरी करती है। प्रतिदिन सुबह-शाम आरती होती है और वर्ष भर में आसाढ़ सुदी पंचमी एवं षट् को 18 अभिषेक, गुरु पूजन और श्री पार्श्व - पदद्मावती महापूजन पूर्ण विधि-विधान के साथ आयोजित किया जाता है। विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने कहा था .. "आज हजारों जैन परिवारों के पास पेट भर खा सके इतना अन्न नहीं है और न पहनने के लिए पूरे कपड़े ही। बिमार की दवा करने या बालकों को शिक्षा देने के लिए पास में पैसा नहीं है। आज हमारे मध्यम श्रेणी के भाई बहन दुःखों की चक्की में पिस रहे हैं। भाईओं के पास थोड़े बहुत ज़ेवर थे, वे बिक गए, अब बर्तन के बेचने की नौबत आ गई है। कुछ तो दुःख और आफत के मारे आत्म हत्या की परिस्थिति तक पहँच गए हैं। वे जो हमारे भाई बहन है उनकी दशा सुधारनी जरूरी है। यदि मध्यम वर्ग मौज करे और अपने साधर्मी भाई भूखों मरे यह समाजिक न्याय नहीं है, किन्तु अन्याय है।" "महा सभा क्या है?" पंजाब श्री संघ का गौरव है। विश्व पूज्य, जग मान्य, स्व नाम धन्य पंजाब देशोद्धारक न्यायम्भोनिधि जैनाचार्य श्री 1008 श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी म० के भक्तों का संगठन है। इस संगठन को यदि मजबूत बनाए रखोगे तो तुम्हारा बोलबाला है। महासभा हरीबरी रहेगी तो पंजाब श्री संघ भी हरा-भरा रहेगा।" "पुराने और नये को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि पुराना ही अच्छा है, नया सब खराब है या नया ही ठीक है पुराना सब खराब है, यह तो मनुष्य के विवेक पर निर्भर है। विवेक की आंखो से वह पुराने और नए को देखे-परखे और तब जो सत्य (प्राणियों के लिए हितकर) जंचे उसे वह अपनाए और असत्य (अहितकर) को छोड़े। जैन धर्म ने किसी भी वस्तु की अच्छाई-बुराई का निर्णय करने के लिए कहा है-'पहले परीक्षा से वह उसे भलीभाँति जाने और हेय अँचे तो फिर प्रत्याख्यान परीक्षा से उसे त्यागे।" यद्यपि मैं एक सम्प्रदाय विशेष का आचार्य हूँ पर यदि हम वास्तव में सारे विश्व में सत्य तथा अहिंसा के द्वारा शांति स्थापित करना चाहते है तो हमें साम्प्रदायिकता को गौण करते हुए मानवता की दृष्टि से सोचना पड़ेगा। विश्व शान्ति के लिए हमें अपने संकीर्ण सम्प्रदायवादी विचारों को तिलाजंलि देनी होगी साथ ही हमें यह सोचना होगा कि विश्व शान्ति किन ठोस उपायों द्वारा स्थापित हो सकती है? उस समय हमें यह नही सोचना है कि हम जैन है बौद्ध है मुस्लमान है, पारसी है अथवा इसाई है। उस समय केवल हमें यह सोचना है कि हम मानव है और मानवता हमारा मूल धर्म है और मानव की शान्ति ही हमारा चरम उद्देश्य है, तभी जाकर चिरस्थाई विश्वशान्ति स्थापित हो सकती लक्ष्मी चंचला है। वह संदूकों में बंद करके रखी जाए या सोने चांदी की ईंटें बनावाकर दीवारों में चुन दी जाए अथवा जमीन में गाड़ कर रख दी जाए, तो भी वह स्थिर नहीं रहती। एक दिन चुपचाप निकल जाती है। वह सदा के लिए न किसी की हुई है, न होने वाली है। पूर्व पुण्य के प्रताप से धन मिला है, उसे केवल सुखोपभोग के लिए ही खर्च न करो, उसका उपयोग, समाज, देश, और धर्म के काम में भी करो। यह नहीं कहा जा सकता कि वह कल चली जाएगी। ऐसे अनेक उदाहरण है जो बताते हैं कि एक आदमी चार रोज पहले करोड़ पति था, वही आज पैसे-पैसे के लिए मोहताज़ है। जो लोग विरोध बढ़ जाने के डर से या अपने सम्प्रदाय की पकड़ी हुई बात को, चाहे वह आज अहितकार हो, छोड़ने में प्रतिष्ठा जाने का खतरा महसूस करके शरमाते हैं या देख-देखी पुरानी धातक परम्पराओं के बदलने में स्वयं संकोच करते हैं अथवा दूसरा कोई हितैषी किसी परम्परा को बढ़ा देता है तो उसे ठीक समझते हुए भी, सच्ची बात कहने में हिचकिचाते हैं, व सत्य के पूजारी नहीं कुरुढीओं के पुजारी हैं। 215 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्यासे तेरे दर्शन को हम, गुरुवर आवो इक बार अखियां हमरी तरस गई है, पाया न दीदार कृपा करो ऐ सतगुरु मेरे, कर दो भव जल पार कर जोड़े वन्दन करता, छोटे लाल परिवार शुरू किया संक्रान्ति उत्सव, किया धर्म प्रचार गुरु कृपा का प्राप्त रहा, छोटे लाल परिवार संक्रान्ति भजन हर माह गाता है, सेवक रघुवीर कुमार कृपा दृष्टि की चाह रखत, छोटे लाल परिवार Lalson Engineering Works L. Chhotey Lal Raghuvir Kumar Jain, Jalandhar Delhi Laison Engineering Works Manufacturers : Gun Metal, Valves & Cocks for Water Oil, Steam, Gas & Air Purpose 1052, Outside Industrial Area, Jalandhar - 144004 (India) Ph : (O) 2294742, 5004879 (R) 2220686 Cell : 3104272, 98151-118781 M/s. Vallabh Engineering Works Deals in : Ferrous & Non Ferrous, Metals E-60, Industrial Area, Jalandhar-144004. Ph : (O) 5002869, Cell : 98151-118781 Stockist & Supplier : "J" Brand Valves & Cocks G.I. Pipe Fittings & Govt. Supply & other Industrial items | M/s. C.L. Raghuvir & Sons M/s. C.L. Raghuvir e sons 3523/24. Balaji Market, Ist Floor, Gali Hakim Baza, Hauz Qazi, Delhi-110006. Ph: [0] 23910646 (R) 27130527 Cel : 98100-66564 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यमुना नगर के श्री जिन मन्दिर में मूलनायक भगवान श्री सुमतिनाथ इस जिन मन्दिर की प्रतिष्ठा वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज के कर-कमलों से हुई। ___“मेरो मन लागो तुमरे चरण में, जैसे भुंग-गण लागो सुमन में।। मेरो० अंचली सुमतिनाथ प्रभु सुमति के दाता, भीज्यो सुमति रंगन में। सुमति रक्षक कुमति नाशक, प्रभु सरणा भव वन में।। मेरो० 1 आतमराम धाम शिवसुख का, निश दिन नाम रटन में। सत चित आनन्द रूप अमीरस वल्लभ वसत नयन में।। मेरो० 5" वल्लभ काव्य सुधा, पृ. नं. 22 एवं 23 श्रीपाल जैन प्रधान कस्तूरी लाल जैन महामंत्री श्री आत्मानंद जैन सभा, यमुनानगर Sanneer Uan Computers Pr o tolerantofull com Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनि श्री जय वि. मुनि श्री बलवंत वि. विश्व की अनुपम विभूति, नवयुग निर्माता, न्यायाम्भोनिधि, दादा प्रभावक जैनाचार्य श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी (आत्माराम जी) महाराज के पट्टधर विश्व वत्सल, अज्ञान तिमिर तरणि, कलिकाल कल्पतरु, भारत दिवाकर, पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज के शिष्य परिवार का वंश-वृक्ष मुनि श्री विनीत वि मुनि श्री मुनि श्री ऊँकार वि कुशल वि. मुनि श्री मुनि श्री हिम्मत वि कुमुद वि मुनि श्री मुनि श्री मुनि श्री दान वि. मुनि श्री चन्द्रोदय इन्द्रवि. गणिवर्य श्री सबोध वि मापं. मुनि श्री विकास विजय रूप वि. मुनि श्री मुनि श्री विक्रम वि जयंत वि मुनि श्री मुनि श्री प्रशांत वि. विशुद्ध वि. मुनि श्री विजय वि. मुनि श्री मुनि श्री श्री हीर वि मुनि श्री नरेन्द्र नि मुनि श्री बसंत वि. मुनि श्री विचार वि. मुनि श्री विचक्षण मुनि श्री मुनि श्री नीति वि समता वि मुनि श्री शांति वि. मुनि श्री न्याय वि. मुनि श्री प्रीति वि विजय विद्या सूरि आचार्य श्री मुनि श्री रत्न वि. मुनि श्री मित्र वि. श्री मुनि श्री मुनि श्री विबुद्ध वि. आचार्य श्री विजय समुद्र सरि पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज सुरेन्द्र मुनि श्री वि. उपाध्याय श्री सोहन विजय वल्लभ त्त वि. मुनि श्री रवि वि मुनि श्री मुनि श्री चरण वि. मुनि श्री देवेन्द्र वि. भनि श्री सुभद्र जा आचार्य मुनि श्री सागर वि. सुधार वि. मुनि श्री नन्दन वि. हरिहर वि पं. श्री उदय विजय आचार्य विजय ललित सूरि मुनि श्री महोदय वि. आचार्य विजय पूर्णानंद सूरि श्री श्री वि. उमंग सूरि, मुनि विवेक वि. मुनि श्री -निरंजन वि. बाल वि. मुनि श्री मुनि श्री चित्त वि. मुनि श्री पद्म वि. मुनि श्री हेम वि. हेम वि. गुरु चरणों में कोटिशः कोटिशः वन्दन यशपाल जैन नीरज जैन अरुण जैन प्रधान महामंत्री कोषाध्यक्ष श्री पार्श्वनाथ जैन युवक मण्डल, होशियारपुर Sandeep Dain Computers Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दविजय वल्लभ ल्लभ सूरि श्री मद् वि. AND गुरु वल्लभ के श्री चरणों में सहस्त्र कोटि वन्दन, सभी जैन भाई-बहनों को पुणे संघ की तरफ से गुरु वल्लभ के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव पर शुभ कामनाएं स्वर्गारोहण वर्ष डॉ. रमेश संचेती, श्री महेन्द्र केरींग, श्री प्रकाश मेहता, श्री राज सोलंकी, श्री किशोर सिंघवी, पुणे कैंप प्रेरणा दाता : वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि जी Sangeev Jain Computers SCE Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हे गुरु ! मुझ सार लेनी, मैनूं छड सुखराशि वसीया हे हो स्वामी।।। सनखतरा से विहार किया सूरि, आनन्द अंग न माय।। गुरु जी।। मैनूं. गुजरांवाल तरफ सूरि चलते, गाम वडाला में आय।। जेठ वदि चौदस की राते, सांस रोग हो जाए।। मन बल से दुःख लव नहीं गिनीया, गुजरांवाल में आय।। रोग संबंधी न कीनी चिकित्सा, सेवक दिये भुलाय।। उज्जवल पक्ष मंगल की राते, सब से लिया खमाय।। अर्हन् अर्हन् मुख से उचरते, सूरि स्वर्ग सिधाय।। द्रव्य भाव से होया अंधेरा, मुख से कहा न जाय।।। नगर नगर के श्रावक आये, पेश कछु नहीं जाय।।। निरानन्द देह संस्कार कीनो, चंदन चिखा में ठाय।। हाहाकार भयो जिनशासन, भरते तरणि छिपाय।। स्मरण करन को सब श्रावक मिल, सुंदर थूभ बनाय।। यह जग सारा धुद पसारा, निज आतम समझाय।। - तीर्थंकर गणधर चक्रवर्ती, वासुदेव कहाय।। वल्लभ काव्य सुधा पृ. सं. 343 FLIXXL111121221111 गुरुवर विजयानंद सूरि जी महाराज का समाधि स्थल - गुजरांवाला गुरु चरणों में कोटिशः कोटिशः वन्दन SHRI SHANTI NATH JAIN TEMPLE TRUST SOLAPUR, PUNE Samdhane Computers Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंजाब केसरी का पंचामृत शिक्षा साहित्य देवराज जैन प्रधान S संगठन शिखरचंद जैन महामंत्री श्री आत्मानंद जैन सभा, जंडियाला गुरू सेवा सतीश कुमार जैन महामंत्री स्वावलम्बन त्रिभुवन जैन मैनेजर एस. ए. जैन हाई स्कूल, जंडियाला गुरू विद्यासागर जैन कोषाध्यक्ष Sandeep am Computers Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरु वल्लभ द्वारा वेरोवाल में भगवान कल्याण पार्श्वनाथ की स्तुति वर्तमान में भगवान कल्याण पार्श्वनाथ की यह प्रतिमा किचलू नगर मन्दिर लुधियाना में विराजमान है पारस जिन तू जगजीवन प्राण।। पारस0 अंचली राग द्वेष मद मोह उपाधि, काम न नाम निशान। अष्टादश दूषण नहीं तुम में, गुण बारह परमान।। 1 कर करुणा करुणानिधि स्वामी, तू करुणारस खान। कल्याण पारस विरुद तिहारो, कर सेवक कल्याण।। 4 रत्न चिंतामणि सम तुम दर्शन, पावे सो पुण्यवान। वेरोवाल दशे तम पायो, आतम वल्लभ मान।। 5 वल्लभ काव्य सुधा पृ. नं. 100 रोशन लाल अश्विनी कुमार दीपक कुमार जैन 'धागे वाले परिवार' वैरोवाल वाले-हाल जालंधर M/s Mahavir Thread Ball Co. (Regd.) E/0-128, Joura Gate, Attari Bazar, Jalandhar City. Ph: 0181-(R) 2284762, (0) 5007787 For Privale & Personal use only www.jairnelibrary.org. Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHREE ATMA NAND JAIN SABHA, JAMMU JAIN ACHARYA SHFEE SHREE 1008 SHREE VIJYA VALL ABH SURESHWAR JI MAHARAJ a: 999 For Private & Personal use only सौजन्य : जैन कलर लैब 1. Chan Khub Chal Munt Art SL , M , L, X LS IN BB 2 Child, Chand, Italia, Suka, Bliday Chad, Chad, S E KS VIAYVALLAH SIR MAHAKAR Motor DSL SMIN SESAT RAY MAE SHIREEM WAY MUN SAREESAMUNDSER VISAMUN SER V YA kul. Mali na SLA.Ch . Chuwid , S S H Sind uns N C पुष्पांजलि Shri Atmanand Jain Sabha, Jammu HONDAGEME Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा परमो धर्मः जैनानां पारमार्थिकः । स्वामिना महावीरेण निर्दिष्टः लोक तारणे ।। 1। जैन दर्शन अभिज्ञानम् संसारार्णव पाराय कैवल्य पथावाप्तये । प्रसारितो जैनधर्मः विश्वमानव क्षेमदः ।। 2 ।। कषायैराक्रान्तः जीवात्मा शक्ति सामर्थ्यधारकः । कृत्स्नकर्म क्षयो मोक्षः जैनानां शास्त्रसंमतः ।। 3 ।। पुद्गलेनाविष्टः जीवः स्वस्वरूपं विस्मरति । तदेव कारणं बन्धः तस्माद् मुक्ति श्रेयः प्रदा ।। 4 ।। सम्यग् ज्ञानादि त्रिरत्नैः अवरोधो निवार्यते। आवरण भंगः मोक्षः सा सदा कैवल्य स्थितिः ।। 5 ।। मिथ्यादृष्टि परिहारः सम्यग् दर्शनमुच्यते । यथार्थरूपं परिगृह्य अविद्या कारणं त्यजेत् ।। 6 ।। सम्यग् ज्ञानेन वर्धते श्रद्धा भावसमुच्चयः । मननाद् धर्म संसिद्धि सा सम्यग् ज्ञान भावना ।। 7 ॥ 224 अहितकर्मणां त्यागः सम्यक् चरित्रमुच्यते । परोपकरणं नित्यम् धर्माचरणमेव वा ।। 8 ।। पर्याय पर पर्यायौ जैन धर्मस्य संगतौ । स्वपर्यायः भावात्मकः परपर्यायो ऽभावात्मकः ।। 9 ॥ चेतनद्रव्यः जीवात्मा जैनागमेषु वर्णितः । जीवः स्वयं प्रकाशश्च अन्यानपि प्रकाशते ।। 10 ।। अनेकान्तवादः स्याद्वादस्तथा स्याद्वादः सापेक्षवादः । स्याद्वादो मुख्य सिद्धान्तः सच सप्तविधः स्मृतः ।। 11 । Jain Education intemational शंकरदत्त शास्त्री साहित्याचार्यः लुधियाना वास्तव्यः हिन्दी अनुवाद : सूरज कांत शर्मा एम.ए. (हिन्दी व संस्कृत ) बी. एड. लुधियाना। अहिंसा एक मात्र श्रेष्ठ धर्म है जोकि जैन मताबलम्बियों का पारमार्थिक तत्त्व है। श्री महावीर स्वामी जी ने लोक कल्याण के निमित्त अहिंसा का उपदेश दिया है ।। 1 ।। संसार रूपी समुद्र से पार जाने के लिए और कैवल्य (मोक्ष) को पाने के लिए जैन धर्म का प्रसार किया जोकि सभी मनुष्यों के लिए कल्याणकारी है ।। 2 ।। * अपार शक्ति सम्पन्न जीवात्मा कषायों के कारण पुद्गल से आक्रान्त हो जाने पर बन्धन में पड़ जाता है। अतः जीव का पुद्गल से मुक्त होना या सम्पूर्ण कर्मों का क्षय हो जाना ही जैन धर्म में मोक्ष है || 3 | *** पुद्गल से घिरा हुआ जीव अपने वास्तविक रूप को भूल जाता है। यही तो बन्धन का कारण है। अतः इसके लिए मुक्ति ही कल्याणकारी है ।। 4 ।। **** सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान, सम्यक् चारित्र इन तीन रत्नों से (साधनों से) अवरोध हट जाता है (तिरोहित हो जाता है) यही तो शाश्वत कैवल्य है ।। 5 ।। * अज्ञान आदि कषायों के कारण जो मिथ्या दृष्टि बन गई है उसको त्यागना और सत्य शाश्वत दृष्टि को अपनाना ही तो सम्यग् दर्शन है। अतः जिन कषायों से मिथ्या दृष्टि बन गई है उन का परित्याग करना चाहिए ।। 6 ।। ****** सम्यग् ज्ञान को अपनाने से साधक के मन में श्रद्धा भाव बनता रहता है। अनेक बार मनन करने से धर्मलाभ होता रहता है यही तो सम्यग् ज्ञान है ।। 7 ।। ******* निन्दित कर्मों का त्याग ही सम्यक् चारित्र कहा जाता है। सदा दूसरों की भलाई करना और धर्म का आचरण सम्यक् चारित्र है ।। 8 ।। जैन दर्शन के अनुसार जीव के पर्याय (परिणाम) स्व-पर भेद से दो प्रकार हैं: स्वपर्याय भावात्मक-सत्ता रूप है और पर पर्याय-असत् रूप हैं ।। 9 ॥ जैन शास्त्रों में (आगमों में) आत्मा को चेतन द्रव्य माना है। वह स्वयं ज्योति होता है और अन्य पार्थिव द्रव्यों को भी प्रकाशित करता है।।10।। ***** जैन दर्शन में अनेकान्तवाद और स्याद्वाद का वर्णन है। स्याद्वाद पर विशेष ध्यान दिया गया है और वह सात प्रकार का है ।। 11 ।। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् भगवतां विजयवल्लभमरिमहाभागानां प्रशस्तिः धन्यास्ते कृत पुण्यास्ते, विजयवल्लभसूरयः । मायामोह विवर्जिताः, जैनवं समुद्भवाः ।।1।। श्रीमद् विजयवल्लभ सूरि जी महाराज धन्यभागी पुण्यात्मा थे। मायामोह से रहित थे, जैन परिवार में जन्मे थे। जातं जन्म तेशां भुशुद्धं, परत्रेह च भामणे। भाोभनीयं सुरूपं नाम, जिनवल्लभसूरयः ।।2।। परलोक और इस लोक में कल्याण करने के हेतु उनका पवित्र जन्म हुआ। अतः विजयवल्लभ यह सुन्दर आकर्शक नाम रखा गया। निग्रहानुग्रहाभ्यां ये, निर्लोभाः समदनिः । समुधरन्ति संसारं, एतेन जिनाः स्मृताः ।।3।। जो निग्रह और अनुग्रह से पूर्ण होते हुए लोभ रहित समद ण होते हैं और संसार का उद्धार करते हैं वही तो श्रेश्ठ जैन मुनि हैं। जयन्ति ते जिनाः सर्वे, कैवल्यज्ञान भालिनः । कुर्वन्ति ज्ञान चर्चाम्, स्वपरोद्धारकारिकाम् ।।4।। केवलीज्ञानवान् वे सारे जिन-आचार्य विजयभागी बनें, होवें, जो सदा अपना और दूसरों का उत्थान करने वाली ज्ञानचर्चा करते हैं। सर्व स्त्रार्थतत्त्वज्ञाः, स्मृतिवन्तः श्रद्धायुताः । सवलोकप्रियाः मान्याः, भावितात्मविचक्षणाः ।।5।। श्री वल्लभ सूरि जी सारे भास्त्रों के अर्थतत्त्व को जानते थे। स्मृति के धनी थे, धार्मिक श्रद्धालु थे। सारे समाज में मान्य और प्रिय थे। भावनाभरित आत्मा वाले अद्भुत विद्वान् थे। भक्ति काव्यप्रणेतारः, नीतितत्ववि पारदाः। जैनागमानां मर्मज्ञाः, कैवल्यपथद किाः ।।6।। श्री विजयसूरि जी भक्ति काव्यों के रचयिता कवि थे। नीति- स्त्रों के ज्ञाता थे। जैन भास्त्रों के रहस्यों को भली भाँति जानते थे। अपि च कैवल्य मार्ग (मुक्ति मार्ग) के दाने वाले थे। आबाल्यतः सुविरक्ताः, ध्यानयोगपरायणाः। रत्नत्रय समर्थकाः, समन्वयप्रचारकाः।।7।। श्री विजय सूरि जी बाल्यकाल से ही संसार से विरक्त थे। सदा ध्यान मग्न रहते थे। सम्यग ज्ञान, द नि, चरित्र तीनों के समर्थक थे। जात-पात–दे [-विदे I ऊँच-नीच में समन्वय चाहते थे। समन्वय वादी जैन मुनि थे। मुखं प्रसन्नतापूर्णम्, सूनृता मधुरा वाणी। करणं परोपकरणम्, एते तेशां महागुणाः। 18 ।। उनका मुख सदा प्रसन्नता युक्त हास्यमय रहता था-उत्तम-सत्य मधुरवाणी बोलते थे। दूसरों की भलाई करना ही उनका मुख्य कार्य था। इस प्रकार के गुणों से सूरि महाराज विराजमान थे। भचित्वं त्यागिता धैर्यम्, सामान्यं सुखदुःखयोः । धर्मो यो नयो न्यायम्, विजयसूरीणां गुणाः ।।9।। पवित्रता, त्याग भावना, धीरज, सुख-दुःख में एक समान रहना, धर्म-कीर्ति-नय-न्याय ये सभी गुण विजय सूरि जी में विद्यमान थे। नवीने राश्ट्रनिर्माणे, जातिभेद विमोचने। क्षिा संस्था प्रसारणे, तेशां वृत्तिः सनातनी।।10।। स्वतंत्रता आन्दोलनों के दिनों में ही नवीन भारत के निर्माण में, जातिगत भेदभाव मिटाने में, अनेक विद्यालयों की स्थापना करके विद्या के प्रचार में उन महापुरुश विजयवल्लभ सूरि जी की सदा सदा रहने वाली मनोवृत्ति थी। हिन्दी अनुवाद : सूरज कान्त शर्मा, एम.ए.(हिन्दी व संस्कृत) बी.एड. भांकरदत्त भास्त्री, साहित्याचार्यः लुधियाना विजय वल्लभ 225 संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private Use Only 1501 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vijay Vallabh Surishwar Ji: Man of a Noble Character Shikha Jain, Ludhiana India has ever been famous in the history of the world, as a land of saints and sages, seers and prophets, thinkers and philosophers. She has produced nummerons spiritual humanaries, who placed before mankind, the highest moral and spiritual values of life-both by practise and percept. Guru Shri Vijay Vallabh Surishwar Ji Maharaj, a renowned jain saint, is one of the greatest of these Apostles. Actually Jainism without Vallabh is just like a body without soul. He because the captain of the ship of Jainism when it was passing through a critical period and it was he who steered it clear wisely. Leaders and Preachers like Vallabh are rarely born. He was born in a respectable family of Baroda. On the second bright day of Kartika of Vikram era-1927 (A.D. 1870). His father Sh. Deep Chand and mother Smt. Iccha Bai were highly relegious. Vijay Vallabh, whose lay name was Chhagan Lal, inherited the spirit of relegions devotion, simplicity, detachment and austerity from them. Co-incidentily he came accross Jain Acharya Shri Vijayanand Surishwar Ji Maharaj. Under his indelible impression, Guru Vallabh strongly determined to renowner the worldly life and become a jain sadhu. Consequently, he was baptismed in 1886, at the early age of 16 and he became a desciple of Shri Harsh Vijay Ji Maharaj. Later on, at the age of 54, he was appeleated with Acharya Padvi at Lahore. He was also been adorned with several other titles, such as Kalikal Kalpataru, Vugvir, Agyaan Timir Tarni, Punjab Kesari etc. for his unmatchable deeds. After Shri Harsh Vijay Ji had expired, Guru Ji came to Ludhiana to the care of Shri Vijayanand Ji who ordained that, with the course of time, he was to shoulder the responsibility of Punjab. The early period of Guru Vallabh's life was spent in reading the important religions books and in the sincere service of his Guru Dev. The seeds of service were sown in the fertile land of his heart in the beginning and later on they flourished and flowered in the shape of the best acts of service for Jainism in particular and mankind in general. Being favourite of Vijayanand Suri Ji, he was deputed the task of accomplishing his unfulfilled tasks and missions. During the last moments of Vijayanand Suri Ji, he told Vallabh that he had opened a lot of temples. He further told him to educate the people and to save them from all the social units. Guru Vallabh was an educationalist of first water. He enlightened the torch of education wherever he went. He himself being a highly learned man, propagated mass education and that is why he opened so many educational institutions in India. Dispite of all the hurdles which came in the way of establishing these institutions, he stood by his firm decision and ultimately, success touched his feet. Mahavir Jain Vidhyalaya in Mumbai is one of the best instance of this determination. He specially emphasised on the education for women and also advocated their cause of equality and freedom from unnatural social bondages. In his words, "Right Belief, Right knowledge and Right-conduct are three jewels, one must possess in equal measures, for the attainment of liberation." He worked hard to help the poor students financially, so as to enable them to get education as much as they could. He wanted his students to have a strong moral character. According to Guru Ji, a student must preserve good character, culture and wisdom. 226 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Jan Education Intematonal Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ No less are his contributions for the growth and upliftment of relegion and society. There were many septic wounds in the society and he proned himself to be an efficient surgon by successfully operating upon all of them. Being a great reformer he brought a harmony in relegion and society. He was very humble and listened to the people of all the sects, who used to come to him. To him, humanity was above everything. Guru Vallabh, with his high intellect and broder vision worked upon all the social and relegions evils prevailing in the contemporary society. He was widely accepted by all the sects due to his indescrimination of colour, caste and creed. Dowry system was eating up the vitals of the society. Guru Ji tried his level best to abolish them from the society. He also worked hard on the plans of collecting money-funds from the people and then utilizing them in the best possible way for the progress of the society. He showed a new phase of relegion to all of us. He also introduced Sankranti Mahotswa in Jain Community for all above and other reasons he was known as Lok Nayak and Yug Parvartak. As a Nationalist, he is hard to match. Being 74th Patdhar of Bhagwan Mahavir, he had a firm-faith in the golden principle of Non-Voilence. The Venerable Mahatma Gandhi Ji also believed in the same principle and used it as one of the main weapons for the liberation of India. Guru Vallabh believed, "The progress of religion, society and Nation is not possible without the independence of the Nation." That is why he actively participated in all the freedom movements, such as-Khilaphat movement, Swadeshi and Khadi compaingns, Satyagreh and Non-Co-operation Movements etc. launched by Gandhi Ji. Simple of habbits, Guru Vallabh used to wear Khadi and propagated his belief that Khadi was the best wear. Although he was a great scholar of Sanskrit and Prakrit, yet he used the common men's languge-Hindi, for speaking and writing. He was a versatile artist. He was a great scholar of theology, history, psychology, metaphysics etc. Apart from this, Guru Vallabh was a brilliant orator, author and poet who apart from many other works in prose, wrote hundreds and hundreds of songs, hymns and poems in hindi. He left no stone unturned to keep the words said by Vijayanand suri ji. Guru Vallabh dedicated major part of his life for the betterment of his Punjabi followers. It is evident from the fact that Guru Ji brought all his followers very safely from the town of Gujranwala to India at the time of partition. He ignored his own security and toiled hard for the security of his followers. This is one of the major reasons that our past, present and coming generations, will all remain indebted to his selfless deeds. Having served humanity for about 70 years, Guru Vallabh breathed his last in Mumbai on September 22, 1954 at the age of 84. His death spread a wave of mourning throughout the country. But lets remember that great saints and prophets like Vallabh do not die with their corporeal death. They remain forever in the high principles and ideals they have preached ; in the celebrated band of their desciples who keep their torch enlightened from generations to generations and in the heart of their devotees and adorers. Today, with all our love, gratitude and reverence we are celebrating his 50th death anniversary. Its nothing but a token of love, high esteem and honour dedicated to our great benefector Shri Vijay Vallabh Surishwar Ji Maharaj. Guru Vallabh was indeed a Man of High character. May we given strength to follow the path shown by him for our bright future. Let us all remember: "Great men die and reminds us, To make our life sublime. And departing leaves behinds us, Foot prints on the sand of time." विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 227 www.ainelibrary.org Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Guru Vallabh : An Ideal Character" Lavina Jain, Ludhiana "Lives of Great men All Remind us, We can make Our life Sublime, And Parting Leave Behind us, Foot Prints on The sand of time" These sterling words are for those heavenly bodies, who indeed meant something for this world. The persons like them are very rare because the qualities occurs at least quantity. Jain Acharya Shri Vijay Vallabh Surishwar Ji Maharaj was one of the spiritual personality who arrived this world and changed the whole meaning of this earth. He sacrifise his whole life to this Samaj. He is one of the most rememberable personality. The persons like them are just for worship and to follow. BIRTH AND SANYASI AT SEVENTEEN: Acharya Shri Ji was born in 1870 at Vadodhra. He was the son of Deep Chand and Iccha Bai. They both were very religious. They were very devout Jain House holders. They gave Guru Ji inspiration of religion. Acharya Ji renounced worldly life at the tender teen age of seventeen and became a Sanyasi. He imbibed learning and practicle wisdom for a decade at the feet of his revered preceptor Jain Acharya Shri Atma Ram Ji Maharaj. He was the great Saint who arouse people from narrow mindness. They both spend their life not only for him even for whole country. A GREAT SCHOLAR: Acharya Shri Ji was a great scholar of Metaphysics, History, Hindi etc. He was indeed not only a man of knowledge infact he was the knowledge of men. He was filled with the knowledge of every field. A PIECE ANGLE OF LORD MAHAVIRA: Acharya Shri was a piece angle of Lord Mahavira. He goes on reduces the illitracy and Super stitiousness from India. Acharya Shri Ji said, "I am neither a Hindu, nor a Sikh, nor a Muslim, nor a Jain, nor a Buddhist. But I am a peace angle of Lord Mahavir." A GREAT EDUCATIONIST: Acharya Shri Ji was a great Educationist. He worked very hard for the eradication of illitracy. He spent his whole life for removing the illitracy by roots. He established large no. of schools- colleges, Acedamic research centres, Libraries and Gurukuls on the different parts of our country. Opening of Mahavira Jain Vidalya is the most gloring example. Because of him many girls and boys goes on studying and make not only their own future but also the future of their country bright. Many professions take place on those centres and many people earn their food there because of him. He emphasised on the education of women. A FREEDOM FIGHTER: Acharya Shri Ji was not only related with Jain Samaj but the whole country and all religions are related to him. He was a great freedom fighter of India. During the disturbed conditions of partition of our country in 1947. He plays a very important role. He aroused people from Slumber and inertia. He goes on awankening people to rose up with their country. He wanted India to be a place of unity, peace and love. He tried his best for all this. 228 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A TRUE SOCIAL WORKER: Acharya Shri Ji was a true social worker. He wanted to change the posture of society. He wanted the people to be bath in the Ganga of Truth. He wanted the children to be grown up like a pleasent religious flower. He walked bare footed for the people to sent them message of peace, love and unity. Many times he walked lacs of kilometers to sent message to the people of different states like Rajasthan, Gujrat, Punjab, Jammu etc. A TRUE JAIN SADHU: Acharya Shri Ji was a true Jain Sadhu. He travelled lacs of kilometres bare footed as is enjoined by Jain Sadhus. He send message of love to the people. He tried his best to make people the true human. He was a person of a true spiritual personality. He goes on working till today on the face of his messages and temples of learning, HIS LOVE FOR RESEARCH: Acharya Shri Ji told people that they will progress only when their country will progress. He asked rich people to sent some part of his money to the sangh for the building of Schools and for the progress of mankind. He had a love for research. He established many Research centres in Mumbai and also in many other parts of the country. MESSAGE OF ALL IN ONE: Acharya Shri Ji sent message of all in one to the whole world. He said that we are not Hindus, we are not muslims, we are not Jains and not Buddhists but we are the children of our mother land India. The people of different religions listened to him and followed him. For him there is no difference b/w people of different castes and religions. DEGREES OR ACHIEVEMENTS: Because of his good deeds he were honoured many times by Jain Samaj. Acharya Shri Ji were honoured with the degrees of Nav Yug Nirmata, Punjab Kesari, Agyaan Timir Tarni etc. These degrees are thrown on the houoner of you. But he said that these degrees are just like the outer but the truth is the heartly feeling for Guruji. A GREAT SOLDIER: Acharya Shri Ji was a great Soldier of Lord Mahavira. He walked on whole life on the foot prints of Lord Mahavira. He sent message of "Live and Let Live to every one". He wanted that like Lord Mahavir's message of live and let live every one apply it on his own life. His main aim is just the peace to whole world. INDIAN LOVE: Acharya Shri Ji loved his country very much. He used pure Khadi the whole life and he said that if you are true Indian then leave all these foriegn thing and apply the things of your own country. Once Acharya Shri Ji said that Our love for our country seems through our own deeds and needs. He asked people to leave all other things of outer world, Just use the things of India because you are an Indian personality. He asked Pandit Moti Lal Nehru to leave the smoking habbit. The Cigar is also of foreign country, HIS MORAL DEEDS: Acharya Shri Ji spent his whole life on the deeds of this world. He played a role in (i) Khilafat Movement. (ii) Hindu-Muslim Unity. (ii) Bengal Relief Fund. (iv) Prohibiting of Meat eating and Drinking, DEATH: Acharya Shri Ji left this world for heavenly Journey on 22nd Sept. in Mumbai recieting the Namokaar Mantra. But he left his foot prints for us to walk on. It depends on us that we follow them or not. But we should have to follow them to make not only Jain Samaj even the whole world true heaven. It will be our true love towards him. "To make the bud a flower of fragnace Let us make him a true regerrence" 50 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 229 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संवेगी दीक्षाधारी साधु की समाचारी चरण सत्तरी-करण सत्तरी दीक्षा धारण करने के पश्चात् जैन मुनि पंच महाव्रतों का दृढ़ता से पालन करते हैं और इसी के साथ-साथ प्रतिदिन की दिनचर्या में चरण सत्तरी और करण सत्तरी अनुसार आचरण करते हैं। चरण सत्तरी नित्य के आचरण को चरण कहते हैं साधु निम्न बातें सदा आचरण में लाते हैं इसके सत्तर भेद हैं जो निम्न प्रकार हैं : 5. महाव्रत-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह। 10. यतिधर्म-क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य। (इसे उत्तमधर्म भी कहते हैं।) 17. संयम-पाँच इन्द्रियों का निग्रह, पाँच अव्रतों का त्याग, चार कषायों का जय और मन-वचन-काय की विरति। 10. वैयावृत्य-आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष (शिक्षण-प्राप्ति का उम्मीदवार-नवदीक्षित), ग्लान (रोगी), गण (एक साथ पढ़ने वाले भिन्न भिन्न आचार्यों के शिष्यों का समूह), कुल (एक ही दीक्षाचार्य का शिष्य-परिवार) संघ, साधु, समनोज्ञ (समानशील)। (इन दस तरह के सेव्यों की सेवा करना)। 9. ब्रह्मचर्य-गुप्ति- 1. उस स्थान में न रहना जहाँ स्त्री, पशु या नपुंसक हों। 2. स्त्री के साथ रागभाव से बातचीत न करना। 3. जिस आसन पर स्त्री बैठी हो उस पर पुरुष और पुरुष बैठा हो उस पर स्त्री दो घड़ी तक न बैठे। 4. रागभाव से पुरुष स्त्री के और स्त्री पुरुष के अंगोपांग न देखें। 5. जहाँ स्त्री-पुरुष सोते हों या कामभोग की बातें करते हों और उसके बीच में एक ही दीवार हो तो साधु वहाँ न ठहरे। 6. पहले भोगे हुए भोगों को याद न करे। 7. पुष्टिकारक भोजन न करे।8. नीरस आहार भी अधिक न ले। 9. शरीर को न सिंगारे। (इनसे शील की रक्षा होती है।) 3. तीनरत्न-ज्ञान, दर्शन और चारित्र। 12. तप- (6 बाह्य तप-अनशन, ऊनोदरी, वृत्तिसंक्षेप, रस त्याग, विविक्तशैया-संलीनता यानी ऐसे एकान्त स्थान में रहना जहाँ कोई बाधा न हो, कायक्लेश।6. अभ्यंतर तप-प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग-अभिमान और ममता का त्याग करना और ध्यान।) 4. कषायजय-क्रोध, मान, माया, लोभ । (कुल 70) करण सत्तरी प्रयोजन के अनुसार व्यवहार में लाना, हर रोज न लाना, करण सत्तरी कहलाता है। इसके सत्तर भेद हैं। ___42 पिंडविशुद्धि साधु नीचे लिखे गये 32 दोष टालकर आहार-पानी लें। 1. धातृपिंड (गृहस्थ के बालकों को खिलाकर आहार लेना), 2. दूतीपिंड (विदेश के समाचार बता कर गोचरी लेना), 3. निमित्तपिंड (ज्योतिष की बातें बताकर गोचरी लेना), 4. आजीवपिंड (अपनी पहली दशा बताकर गोचरी लेना), 5. वनीपकपिंड (जैनेतर के पास से उसका गुरु बनकर गोचरी लेना), 6. चिकित्सा पिंड (चिकित्सा करके गोचरी लेना), 7. क्रोधपिंड (डराकर गोचरी लेना), 8. मानपिंड (अपने को उच्च जाति या कुल का बताकर गोचरी लेना), 9. मायापिंड (वेष बदलकर गोचरी लेना), 10. लोभपिंड (जहाँ स्वादिष्ट भोजन मिलता हो वहाँ बार-बार गोचरी को जाना), 11. पूर्वस्तवपिंड (पुराने सम्बन्ध का परिचय देकर गोचरी लेना), 12. संस्तवपिंड (सम्बन्धी के गुण बखानकर गोचरी लेना), 13. विद्यापिंड (बच्चे पढ़ाकर गोचरी लेना), 14. मन्त्रपिंड (यन्त्र-मन्त्र बताकर गोचरी लेना), 15. चूर्णयोगपिंड (वासक्षेप इत्यादि देकर गोचरी लेना), 16. मूल-कर्मपिंड (गर्भ रहने के उपाय बताकर गोचरी लेना) । (यह सोलह तरह के दोष साधु को अपने कारण से ही लगते हैं) 17. साधु के लिए बना आहार लेना, 18. औद्देशिक (अमुक मुनि के लिए बना आहार लेना), 19. पूतिकर्म (सदोष अन्न में मिला निर्दोष अन्न लेना), 20. मिश्र आहार (साधु तथा गृहस्थ के लिए बना आहार लेना), 230 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका FOTIVete Personal use only 4501 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 21. स्थापना (साधु के लिए रखा हुआ आहार लेना), 22. प्राभृतिक (साधु के निमित्त से, समय से पहले या बाद में, बनाया हुआ आहार लेना), 23. प्रकाशकरण (अँधेरे में से उजेले में लाना), 24.क्रीत (खरीदा हुआ आहार लेना), 25. उद्यतक (उधार लाया हुआ आहार लेना), 26. परिवर्तित (बदले में आया हुआ आहार लेना), 27. अभ्याहृत (सामने लाया हुआ आहार लेना), 28. पदभिन्न (मुहर तोड़कर निकाला हुआ आहार लेना), 29. मालापहृत (ऊपर से लाकर दिया हुआ आहार लेना), 30. अछेदम् (जबरदस्ती दूसरे से छीनकर लाया हुआ आहार लेना), 31. अनिसृष्ट (अनेक आदमियों के लिए बनी हुई रसोई में दूसरों की आज्ञा लिए बगैर एक आदमी आहार दे, वह लेना), 32. अध्यवपूर्वक (साधु को आते जानकर गृहस्थ का उनके लिए अधिक भोजन बनाना और साधु का उसे ग्रहण करना)। म (ये 17 से 32 तक के दोष गृहस्थ की तरफ से होते हैं। इनको उद्गम दोष कहते हैं। _33. शंकित (अशुद्ध होने की शंका होने पर भी आहार लेना), 34. मृक्षित (अशुद्ध वस्तु लगे हुए हाथ से आहार लेना), 35. निक्षिप्त (सचित्त वस्तु में गिरी हुई अचित्त वस्तु निकालकर रखी हो वह लेना), 36. पिहित (सचित्त वस्तु से ढकी हुई अचित्त वस्तु लेना), 37. संहृत (एक से दूसरे बर्तन में डालकर दी हुई वस्तु लेना), 38. दायक (देने वाले का मन देने की तरफ न हो वह वस्तु लेना), 39. मिश्र (सचित्त में मिली हुई अचित्त वस्तु लेना), 40. अपरिणत (अचित्त हुए बगैर वस्तु लेना), 41. लिप्त (थूक वगैरह लगे हाथ से मिलने वाली वस्तु लेना), 42. उज्झित (रस टपकती हुई वस्तु लेना)। (33 से 42 तक के दस दोष देने और लेने वाले दोनों के मिलने से होते हैं।) 5. 'समिति' स्वपरकल्याणकारी प्रवृत्ति को ‘समिति' कहते हैं। इसके पाँच भेद हैं। 1. ईर्यासमिति-इस तरह से चलना कि किसी भी जीव को कोई तकलीफ न हो। 2. भाषासमिति-ऐसे वचन बोलना जिनसे किसी जीव को कोई दुःख न हो। 3. एषणासमिति-दोषों को टालकर निर्वद्य आहारपानी लाने की प्रवृत्ति। 4. आदान-निक्षेप-समिति-पात्र, वस्त्र तथा दूसरी चीजों को सावधानी से प्रमाद रहित होकर उठाने और रखने की प्रवृत्ति । 5. परिष्ठापनिकासमिति-मल, मूत्र और यूँक को सावधानी से त्यागने की प्रवृत्ति। 12 भावना या अनुप्रेक्षा 1. अनित्य (संसार की चीजें अनित्य हैं-इसलिये उनमें मोह नहीं करना चाहिये) 2. अशरण (सिवा धर्म के दूसरा कोई आश्रय मनुष्य के लिए नहीं है) 3. संसार (संसार सुख-दुख का स्थान और कष्टमय है) 4. एकत्व (जीव अकेला ही जन्मता और मरता है) 5. अन्यत्व (परिवार, धनसम्पत्ति और शरीर सभी पर हैं) 6. अशुचि (यह शरीर अशुचि है) 7. आस्त्रव (इन्द्रियासक्ति अनिष्ट है) 8. संवर (उत्तम विचार करना) 9. निर्जरा (उदय में आए हुए कर्मों को समभाव से सहना और तप के द्वारा सत्ता में रहे हुए कर्मों को नाश करने की भावना) 10. लोकानुप्रेक्षा (संसार के स्वरूप का विचार करना) 11. बोधिदुर्लभ (सम्यक्ज्ञान और शुद्ध चारित्र का प्राप्त होना दुर्लभ है) 12. धर्म-स्वाख्यातत्त्व (सबका कल्याण करने वाले धर्म का सत्पुरुषों ने उपदेश दिया है। यह सौभाग्य की बात है)। पाँचों इन्द्रियों का निरोध : (स्पर्श, रसना, प्राण, चक्षु और कर्ण) 1. पडिलेहण या प्रतिलेखन-(हरेक चीज को ध्यानपूर्वक देखना) 3. गुप्ति - (मन-वचन-काय गुप्ति) 1. अभिग्रह या प्रतिज्ञा 1. मुनि प्रतिमा-इस प्रकार कुल 70 हुए। दूसरी तरह से भी करण सत्तरी गिनी जाती है। 4. बयालीस दोष रहित-आहार, उपाश्रय, वस्त्र और पात्र की गवेषणा। 5. समिति, 12 भावना, | 12 मुनि प्रतिमा, 5 इन्द्रिय निरोध, 25 तरह से पडिलेहण, 3 गुप्ति, 4 अभिग्रह (द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से) 451 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 231 Forvene Personal use only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुदेव के अविस्मरणीय संस्मरण साधु का नहीं, साधुत्व का मूल्य है । साधुत्व का पर्याय यदि कोई दूसरा शब्द हो सकता है तो वह है “मनुष्यता”। मनुष्यता ही मुक्ति का द्वार खोल सकती है। संसार के समस्त धर्मों की शिक्षाओं का सारांश यदि किसी एक शब्द में व्यक्त करना हो तो वह है 'मनुष्यता' । इन्सान यदि पहले इन्सानियत सीख ले तभी वह अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है। परम श्रद्धेय गुरुदेव श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी महाराज सरीखे साधु, सदियों में विरले पैदा होते हैं। उनका सारा जीवन सच्चे अर्थों में मनुष्यता की परिभाषा है। उन जैसे प्रतिभा सम्पन्न संत किसी एक धार्मिक फ्रेम लगाकर अगर कोई कौम अपनी संपति मान बैठती है, तो यह उसकी संकीर्णता ही है। वस्तुतः वे सारे भारतीय समाज के लिये आदर्श थे। वे सच्चे अर्थों में राष्ट्र के गौरव थे। आने वाली पीढ़ियां युगों-युगों तक उनके जीवन से मार्ग दर्शन प्राप्त करेंगी । मुझे और मेरे परिवार को उनके दर्शन करने का, उनके चरणों में बैठने का, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का जो सौभाग्य प्राप्त हुआ, हम उसे अपने पूर्व जन्मों के संचित पुण्य कर्मों का ही फल मानते हैं। उनसे जुड़ी हुई असंख्य यादों में से कुछ संस्मरण पाठकों की सेवा में प्रस्तुत हैं। स्यालकोट में गुरुदेव देश के आजाद होने से पहले का जमाना. । ईस्वी सन् 1941-1942 का समय । स्यालकोट जैसा स्थानकवासी धर्मावलंबी परिवारों का गढ़ । जहाँ श्वेताम्बर मूर्तिपूजकों के मात्र 2-3 घर ही थे। समाज में साम्प्रदायिक विद्वेष बुरी तरह फैला हुआ था। वहां गुरुदेव के एक परम भक्त थे लाल कर्मचंद जी। उन्होंने डंके की चोट पर गुरुदेव का स्यालकोट में प्रवेश करवाया जिसे याद करके आज भी रोमांच हो आता है। गुजरांवाला से गुरुभक्तों को लेकर एक स्पैशल स्यालकोट पहुंची। वहां पहुंचने पर उसका भव्य स्वागत किया गया, जो देखते बनता था। अन्य नगरों, नारोवाल, जंडियाला, पट्टी, अम्बाला, ज़ीरा, मालेरकोटला, समाना इत्यादि शहरों से भी गुरुभक्त पधारें। उधर स्यालकोट में साम्प्रदायिक द्वेषवश शहर में रोड़े अटकाने के लिये लाख कोशिशें हुई लेकिन गुरुभक्त लाला कर्मचंद जी ने आनरेरी मैजिस्ट्रेट सरकार से अनुमति लेकर पुलिस का ऐसा बंदोबस्त करवाया कि प्रवेश का सारा कार्यक्रम निर्विघ्न संपन्न हुआ। उपकारी गुरुदेव ने सारे स्यालकोट का दिल जीत लिया। सबको अपना भक्त बनाया। वहीं चातुर्मास के दौरान एक दिन गुरुदेव के साथ समूह फोटो खिंचवाने का प्रसंग आया। हमारे पूज्य पिता जी बाबू दीनानाथ जी भी उस घड़ी वहीं मौजूद थे। फोटो के लिये पूज्य गुरुदेव, समुद्रविजय जी, शिवविजय जी, विशुद्ध विजय जी तथा सतविजय जी महाराज तैयार थे। एक ओर लाला कर्मचंद जी खड़े हो गये। हमारे पिताजी सामने फोटोग्राफर के पास खड़े थे। गुरुदेव ने एकाएक आवाज देकर कहा 'बाबू दीनानाथ आपके दोस्त यहां खड़े हैं और आप वहां हैं, आप भी इधर आएं।' गुरुदेव के आदेश से हमारे पिताजी भी उस फोटो में शामिल हुए और आज वह फोटो एक अमिट व ऐतिहासिक यादगार बन गयी है। फोटो उनके बिना भी खिंच सकती थी लेकिन गुरुदेव की करुणा का प्रसाद पाने से कोई वंचित रह जाये, यह उनकी 'मनुष्यता' को स्वीकार नहीं था। छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, विद्वान-अनपढ़, जैन-अजैन उनकी कृपा सबके लिये एक समान सुलभ थी। 232 विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुकुल-गुजरांवाला सरस्वती मंदिरों की स्थापना गुरुदेव के जीवन का परम लक्ष्य था जैन श्रमण परंपरा में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना के प्रति इतना प्रबल और महान आग्रही संत दूसरा दिखाई नहीं देता। गुजरांवाला का गुरुकुल, विद्या के प्रति उनकी निष्ठा और आस्था का प्रमाण है। एक समय ऐसा था जब उसकी स्थापना के लिये सारा जैन समाज आंदोलित हो उठा था। गुरु भक्त अपने बच्चे गर्व से गुरुकुल में दाखिल कराने लगे। गुरुकुल के सुप्रबंध के लिये योग्य धर्मनिष्ठ गुरुभक्त और कर्त्तव्य पारायण लोगों की आवश्यकता थी। गुरुदेव चाहते थे कि सभी कार्यों के लिये जैन धर्मानुयायी ही गुरुकुल में नियुक्त किये जायें। हमारे पिता बाबू दीनानाथ जी के हृदय में गुरुकुल की सेवा करने की प्रबल भावना थी किन्तु उनके दिल में लोकाचार की एक ऐसी दुविधा थी जिसके वशीभूत वे अंतिम फैसला नहीं कर पा रहे थे। गुरु महाराज को उनकी प्रतिमा व कार्यकुशलता पर पूरा भरोसा था। वे उनके मन की दुविधा भी समझते थे जैसे सूर्य के निकलते ही सारा अंधकार दूर भाग जाता है, ठीक उसी प्रकार एक दिन बाबू दीनानाथ जी को गुरुदेव का पत्र मिला। गुरुदेव ने लिखा था 'सेवा की भावना हो तो फिर दुनिया के तानों मानों से क्या डरना' बाबू जी के मन के सब संशय दूर हो गये। उस समय वे दिल्ली में रहते थे फौरन गुजरांवाला पहुंच कर गुरुकुल का कार्यभार संभाल लिया। दिल से गुरुदेव के आदेश की अनुमोदना की। यहां तक कि अपने बड़े बेटे देवराज को गुरुकुल में दाखिल करवाया मेरी स्वयं की शिक्षा भी गुरुकुल में हुई। गुरुकुल की शिक्षा में दीक्षित होकर हमारे बड़े भाई लाला देवराज जी ने संघ और समाज की जो अभूतपूर्व सेवा की, दुनिया उसे जानती है। रूपनगर श्रीसंघ के वे प्राण थे। इतने दूरदर्शी थे कि उनकी बहुत सी बातें बरसों बाद सत्य प्रमाणित हुईं। आज देशभर में गुरुदेव की 50वीं स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी मनायी जा रही है। सन् 1954 में उनका देवलोक गमन हुआ था। आज इस घटना को बीते 50 वर्ष हो गये हैं वो हम सब को जगा कर सो गए। बीते 50 वर्ष वास्तव में हमारे जागरण के 50 वर्ष के समान हैं। महापुरुषों का जीवन जिस प्रकार प्रेरणादायी होता है उसी प्रकार उनका निर्वाण भी आत्मा को जागृत करने वाला होता है। अनंत कृपालु तीर्थकर परमात्मा महावीर के निर्वाण से ही उनके परम शिष्य गौतम को आत्म जागृति प्राप्त हुई थी अन्यथा वे प्रभु के मोहजाल में ही उलझे हुए थे। हमें आवश्यकता है चिन्तन करने की, स्वाध्याय करने की, स्मरण करने की। क्योंकि स्मरण से ही जागरण फलित होता है और बिना जागे मुक्ति संभव नहीं । धनराज जैन, रूप नगर, दिल्ली पूज्य गुरु वल्लभ की निश्रा में गुरुकुल गुजरांवाला का दृश्य (फोटो सौजन्य जैन कलर लैब) : विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 233 Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन समाज में संक्रान्ति नाम को प्रकाश करने का । प्रारम्भिक इतिहास रघुवीर कुमार जैन ला. रघुवीर जी जालन्धर वाले उन विरले श्रावकों में से एक हैं, जिन्होंने गुरु वल्लभ से लेकर वर्तमान आचार्य भगवन्त गच्छाधिपति जी तक सभी गुरु भगवन्तों के मुखारविंद से लगातार संक्रान्ति नाम श्रवण किया है। सम्पादक महोदय की विनती पर संक्रान्ति नाम कैसे, क्यों और कब प्रारम्भ हुआ, श्री रघुवीर जी ने लेख के द्वारा पूर्ण जानकारी प्रस्तुत की है, जिसे उन्हीं के शब्दों में प्रकाशित किया जा रहा है। पंजाब केसरी, कलिकाल कल्पतरु, अज्ञान तिमिर तरणि जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने अपने दादा गुरु जैनाचार्य श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी महाराज की भावनानुरूप आदेश को शिरोधार्य कर अपनी दिव्य दृष्टि से भांप कर कई समाजोद्धार एवं समाज उत्थान के लिये महत्वपूर्ण उपकार किये। उन उपकारों की श्रृंखला में संक्रान्ति प्रथा को आरम्भ कर, समाज के लिये एक बहुमुखी उपकार किया। संक्रांति प्रथा सन् 1940 में गुजरांवाला (पाकिस्तान) में ला. छोटे लाल जी मालिक फर्म ला. माणेक चन्द छोटे लाल जी की प्रार्थना पर आरम्भ हुई। उस संक्रान्ति दिवस पर ला. छोटे लाल जी (रघुवीर कुमार के पिता श्री जी) अकेले ही गुरुदेव से संक्रान्ति सुनने वाले थे। आज यह संक्रान्ति उत्सव, संक्रान्ति महोत्सव बन गया है, जिसका इंतजार हर महीने रहता है। उस दिन समाज के अधिकांश जन व्याख्यान सभा में न बैठकर संक्रान्ति के दिन (नये महीने के पहले दिन) पण्डितों के पास अपने महीने के भविष्य को जानने के लिये गये हुए थे। 1. पहला लाभ : पंजाब केसरी आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने देखा कि जैन समाज अपने धर्म को भूल कर मिथ्यात्व की तरफ मुड़ रही है, तो गुरुदेव ने समाज को समझाया कि आप पण्डितों के पास क्यों जाते हैं, मैं आपको हर महीने, संक्रान्ति के दिन अपने धार्मिक स्तोत्रों को सुनाकर संक्रान्ति सुनाया करूंगा, जिससे आपको आत्मिक शान्ति मिलेगी और धार्मिक स्तोत्र सुन के आपका सम्यकत्व भी परिपक्व होगा। तब से संक्रान्ति आरम्भ हई। सबसे पहला और बड़ा लाभ समाज को मिथ्यात्व की तरफ मुड़ने से रोका। 2. दूसरा लाभ : पंजाब में अपने समुदाय के श्रमण मण्डल का आगमन बहुत कम था। गुरुदेवों के दर्शन कर पाना, जिनवाणी का श्रवण कर पाना, भाग्य के जागने वाला रहस्य समझा जाता था। जब कोई श्रावक कभी तीर्थ यात्रा पर जाता, रास्ते में गुरु महाराज मिल जाते तो दर्शन कर लेता था। लेकिन इस संक्रान्ति प्रथा आरम्भ होने से, चाह रखने वाला श्रावक हर महीने पट्ट पर सुशोभित गच्छाधिपति जी के दर्शन भी कर सकता है और उनके मुखारविंद से जिनवाणी सुनकर आत्म-कल्याण भी कर सकता 3. तीसरा लाभ : दूसरे भिन्न-भिन्न प्रांतों से पधारने वाले संक्रान्ति भक्तों के साथ मेल मिलाप बढ़ता है, परिचय बढ़ता है, विचारों का आदान-प्रदान होता है और अगर संघों में फैल रही भ्रांतियां हों, तो एक-दूसरे के सुझावों से दूर करने का प्रयास किया जा सकता है, इसके अलावा एक ऐतिहासिक चित्र : प.पू. पंजाब केसरी गुरु वल्लभ की निश्रा में आयोजित भव्य समारोह, संक्रान्ति प्रणेता श्री छोटे लाल जी सबसे आगे बैठे दिखाई दे रहे हैं (फोटो सौजन्य: जैन कलर लैब) 234 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिचय बन जाने से रिश्ते और सम्बन्ध भी बन जाते है। 4. चौथा लाभ : जहां-जहां भी जिस क्षेत्र में गुरुदेव पधारते हैं, चाहे तीर्थ स्थान हो या तीर्थों के आसपास का क्षेत्र हो, तो संक्रान्ति भक्त तीर्थ भूमियों का स्पर्श कर, तीर्थ यात्रा का लाभ लेते हैं। लाभ मिल जाता है। पांचवां लाभ : ऐसे स्थानों पर गरुदेवों का पधारना, जहां उबड़-खाबड़ रास्ता हो, धुल मिट्टी से भरा हो, कंकरों और नकीले पत्थरों से सटा रास्ता हो, जिस रास्ते पर चलना वाहन के लिये दुष्कर हो, जिस क्षेत्र में मूसलाधार वर्षा हो रही हो या आन्धी का प्रहार हो ऐसे कष्टमय समय में, सब कष्टों को सहन करते हुए सहनशीलता और समता की शिक्षा का लाभ मिलता है। 6. छठा लाभ : पर्वाधिराज श्री पर्युषण की आराधना में श्री सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करते चौरासी लाख जीवयोनी से क्षमाया जाता है। उसी प्रतिक्रिया को सफल करने के लिये और पुष्ट करने के लिये दूर-दूर प्रांतों से भक्त जन, क्षमापना संक्रान्ति पर भागे आते हैं और गच्छाधिपति जी महाराज एवं श्रमण-श्रमणी मण्डल से गत वर्ष में की गई भूलों, अविनय या शिष्टाचार का उल्लंघन के लिये सामूहिक रूप से क्षमापना की जाती है और श्रावकजन भी आपस में मिलकर एक-दूसरे से क्षमा याचना करते हैं। यह क्षमापना संक्रान्ति का अवसर ही इसके लिये उपयोगी समझा गया है। गुरुदेव द्वारा संक्रान्ति शुरू करने से पहले क्षमापना की ऐसी प्रथा नहीं थी। संक्रान्ति का यह बड़ा लाभ है, इससे आत्मा शुद्ध और हल्की होती है। 7. सातवां लाभ : संक्रान्ति के मौके परोपकारी संक्रान्ति संचालन पंजाब केसरी गुरुदेव विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज के गुणों अथवा उपकारों का गुणगान, भजनों द्वारा तथा व्यक्तव्यों द्वारा किया जाता है और ये ही कारण हैं कि गुरुदेव की याद हर भक्त के हृदय में चाहे किसी ने उनके दर्शन किये है या नहीं किये, निरंतर बनी हुई है यह भी संक्रान्ति का लाभ है। इस तरह गुरुदेव विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज द्वारा संचालित संक्रान्ति के कई लाभ हैं, जिनका उपयोग पंजाब प्रांत के या दूसरे प्रांतों के भक्तजन आकर गुरुदेव की, गच्छाधिपति जी की निश्रा में बैठकर संक्रान्ति सुन कर जीवन को सार्थक करते हैं। उस संक्रान्ति को जो सन् 1940 में गुजरांवाला में पंजाब केसरी ने चालू की, उनके पट्टधर जिनशासन रत्न, राष्ट्र संत, गच्छाधिपति जैनाचार्य श्री समुद्र सूरीश्वर जी महाराज ने गांव-गांव, शहर-शहर भ्रमण कर इस प्रथा को चालू रखा। उनके बाद उनके पट्टधर परमार क्षत्रियोद्धारक, जैन दिवाकर गच्छाधिपति जैनाचार्य श्री इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज ने अपने चारित्र बल से उबड़-खाबड़ रास्तों पर पावागढ़ के गांवों-गांवों में भ्रमण कर भक्त जनों को आकर्षित कर संक्रान्ति सुनाते रहे। उनके बाद इन्द्रदिन्न सूरि जी महाराज के पट्टधर रत्नाकर सूरि जी गच्छाधिपति पद से सुशोभित होकर 4 जनवरी 2002 को वल्लभ पट्ट को सम्भाला और गच्छाधिपति रूप में पहली संक्रान्ति उदयपुर की धरती पर सुना कर अपने कन्धों पर पड़ी जिम्मेदारी को अपने चारित्र बल से निभाते हुए, संक्रान्ति भक्तों के हृदय में जगह बना ली। उदयपुर के बाद से वर्तमान गच्छाधिपति जी ने पंजाब में जिस क्षेत्र में संक्रान्ति मनाई जाती है, गुरुदेव ने संक्रान्ति का रूप ही बदल दिया। संयम की बद्धता, अनुशासन, शान्त वातावरण और धार्मिक प्रवचनों ने श्रोताओं को बहुत प्रभावित किया जिसके फलस्वरूप हम हर महीने देख रहे हैं। चाहे कितना बड़ा पण्डाल हो, संक्रान्ति भक्तों की और श्रोताओं की संख्या में इतनी अभिवृद्धि हो रही है कि पण्डाल तो खचाखच भर जाता है और श्रोताओं को पण्डाल के बाहर खड़े होना पड़ता है। वाह रे गुरु वल्लभ ! आपने अपनी दिव्य दृष्टि से लाभानुलाभ को जान कर सारे समाज को एकता के सूत्र में बांधने के लिये संक्रान्ति प्रथा, अपने मुखारविंद से महीने का संक्रान्ति नाम प्रकट करने की प्रथा को प्रारम्भ किया। 235 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Prvale & Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुवर विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष समापन समारोह का शुभारम्भ दिनांक 15.10.2004 शुक्रवार प्रातः 9 बजे हजारों की जनमेदिनी में एस.ए. जैन सीनियर सैकण्डरी स्कूल अम्बाला शहर के विशाल प्रांगण में हुआ। श्री सिकन्दर लाल जी ने गच्छाधिपति जी के निर्देशन में बहुत ही सुन्दर ढंग से मंच का संचालन किया। इस समारोह को अपनी शुभ निश्रा प्रदान करने के लिये प.पू. गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज अपने श्रमण एवं श्रमणी मण्डल सहित उपाश्रय से शोभा यात्रा के रूप में बैंड-बाजे के साथ समारोह स्थल पर पधारे। शोभा यात्रा में शीशे के रत्नों से जड़ित पालकी में प.पू. आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज जी की आकर्षित प्रतिमा -दर्शन एवं वंदन हेतु पण्डाल में विराजित की गई। पूर्व निर्धारित समयानुसार वर्तमान गच्छाधिपति जी के मंगलाचरण से समारोह का शुभारम्भ हुआ। सर्वप्रथम श्री आत्मानन्द जैन सीनियर मॉडल स्कूल अम्बाला शहर की छात्राओं द्वारा गुरु भक्ति का सुन्दर स्वागत गीत का गायन किया गया। तत्पश्चात् श्री कश्मीरी लाल अवताश जैन बरड़ परिवार द्वारा दीप प्रज्जवलन किया गया। श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव वर्ष त्रिदिवसीय समापन समारोह हर्षोल्लास के साथ बहुत धूमधाम और अभूतपूर्व जनमेदिनी के मध्य सफलतापूर्वक सम्पन्न प.पू. गुरु वल्लभ की प्रतिमा जी को माल्यार्पण श्री राज कुमार प्रदीप जैन, मै. प्रदीप पब्लिकेशन जालंधर वालों ने किया। गुरु प्रतिमा की वासक्षेप पूजा का लाभ प. पू. गुरुभक्त श्री रूप लाल धर्मपाल जैन (पट्टी वाले) लुधियाना परिवार ने लिया । 236 पूज्य गुरुदेव की निश्रा में सकल चतुर्विध संघ 'गुरु वल्लभ की पालकी' की शोभा यात्रा में स्वागती गीत भव्य शोभायात्रा में 'भांगड़ा' का दृश्य दीप प्रज्जवलन - श्री कश्मीरी लाल जैन बरड़ परिवार विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरु प्रतिमा माल्यार्पण-श्री राज कुमार प्रदीप जैन जालन्धर गुरु प्रतिमा वासक्षेप पूजन-श्री रूप लाल धर्मपाल जैन पट्टी वाले परिवार परम गुरुभक्त श्री रघुवीर जी ने 'गुरु वल्लभ को एक अनोखी विभूति' बताते हुए कहा कि आज अगर जैन समाज शिक्षित है, तो इसका पूर्ण श्रेय पूज्य गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज को जाता है, वह एक अलौकिक संत थे। अपने 15 मिनिट के वक्तव्य में रघुवीर जी ने गुरुवर के जीवन पर प्रकाश डाला और अन्त में कहा कि पूज्य गुरुदेव की अर्द्धशताब्दी समारोह मनाने का तभी महत्व है, जब हम समाज के प्रति उनके उपकारों और सेवाओं को याद करते हुए उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपना सकें। श्री सुरेन्द्र जैन (लाहौर वाले) लुधियाना द्वारा गायन भजन से उपस्थित सभी गुरुभक्त भाव विभोर हो उठे। भजन के बोल थे : "नील गगन में छुपे हो वल्लभ, कैसे तेरा दीदार करें, तड़प रहे हैं तेरे दीवानें, हर दम यही पुकार करें।" श्री लक्ष्मी चन्द जी गंदेवी वालों ने अपने वक्तव्य में पूज्य गुरुदेवों के साथ गुरुवर से सम्बन्ध स्थापित करते हुए कहा कि अभी गुरु वल्लभ की भावना अधूरी है कि जैन बन्धु महावीर के झण्डे तले एक हों। अपने दस मिनट के वक्तव्य में लक्ष्मी चन्द जी ने अन्त में कहा कि हम 'जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ' कहलाते हैं। हमें प्रभु का बताया मार्ग मिला है, मानव जीवन को सार्थक करना है, भव सागर से पार होना है, अम्बाला के अच्छे भाग्य हैं ,यहां इन्द्रपुरी बनने वाली है। रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज के दो चौमासे प्राप्त हुए हैं जो इनकी शरण में आयेगा, वह बडतल से समतल को प्राप्त करेगा नहीं तो खडतल में गिरेगा। श्रीमति किरण जैन अम्बाला ने परम उपकारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धांजलि सुमन अर्पित करते हुए अपने मनमोहक भजन से समस्त गुरुभक्तों को प्रसन्नचित्त करते हुए सम्पूर्ण सभा को गुंजायमान कर दिया। उनके भजन के बोल थे :“गुजरातियों के छगन प्यारे, पंजाब केसरी वल्लभ प्यारे, तुम जिन्दाबाद..........." विजय वल्लभ सेना के प्रधान श्री उमेश जैन जी ने अपने वक्तव्य में “गुरु वल्लभ एक अनमोल रत्न" बताते हुए कहा कि यदि “हम क्रियाशील हो जायें, तो ज्ञान अपने आप प्राप्त हो जायेगा। ज्ञान से चरित्र का निर्माण होगा। चरित्र एक ऐसी रोशनी है जो हमेशा विद्यमान रहती है।" श्रीमति माला बहन द्वारा प्रस्तुत गीत जो प्रो. राम जी की रचना पर आधारित था उसके मुख्य बोल' सुनो-सुनो युगवीर, गुरु वल्लभ की कथा सुनो......' भजन के द्वारा समस्त गुरु भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। साध्वी रक्षित प्रज्ञा श्री जी महाराज ने अपने प्रवचन द्वारा परम उपकारी श्रद्धेय गुरु वल्लभ का गुणानुवाद किया। अपने प्रवचन में साध्वी जी ने उद्बोधन किया कि “धागों को जोड़ा परिधान बन गया, ईंटो को जोड़ा, मकान बन गया, अच्छे भावों को जोड़ा, नेक इन्सान बन गया। जब गुरु वल्लभ का जन्म बड़ौदा नगरी में हुआ उस समय देश में आतंकवाद फैला हुआ था। युगवीर ने देश-समाज को एक नई दिशा दी तथा धर्म का मार्ग बताया।" साध्वी रक्षितप्रज्ञा श्री जी-प्रवचन नवकारसी लाभ प्राप्तकर्ता श्री राज कुमार, प्रदीप जैन, कुंवर प्रतीक जैन 450 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 237 W anyong Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रातः की धर्मसभा में गुरुदेव का प्रवचन : “भाग्यशालियो, एक साल से जिस की प्रतीक्षा कर रहे थे वह पावन घड़ी आ गई है। गुरुवर विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष में सभी ने अपने सामर्थ्य के अनुसार तन-मन-धन से गुरु गुणगान में भाग लिया। भारतवर्ष -आर्य संस्कृति गुणानुरागी बनाती है, गुणानुरागी अवसर आने पर चूकता नहीं है। गुरुवर वल्लभ ने हमको क्या नहीं दिया यह सोचने का है। हर एक गुरु भक्त में, गुरु ऋण चुकाने का भाव था-भाषण द्वारा, कविता द्वारा, भजन द्वारा या फिर विभिन्न कार्यों के द्वारा गुणानुवाद के लिये एक व्रत के रूप में लिया। गुरुवर एक ऐसे संत हैं, जो विश्व के अन्दर प्रसिद्ध हैं। उनकी प्रतिमा लन्दन में भी विराजमान है। छोटे संघों ने अपने-अपने रूप में गुणानुवाद किया। 50वीं स्वर्गारोहण वर्ष की पूर्णाहुति दोपहर प्रीतिभोज लाभ प्राप्तकर्ता-श्री फग्गू मल कश्मीरी लाल जैन बरड़ परिवार के लिये हम एकत्रित हुए हैं। गुरुवर वल्लभ के चरित्र की उनके विरोधियों ने भी प्रशंसा की। पंजाब में राग-रंग का जोर है, गुरुवर पंजाब में विचरे परंतु उनके चरित्र पर कोई अंगुली नहीं उठा सका। चरित्रवान आत्मा का गुणानुवाद सम्यक् ज्ञान और विरति धर्म की ओर ले जाता है। जिसका गुण गाते हैं उसका कार्य भी देखा जाता है। इस महापुरुष ने संयम लेकर 84 वर्ष की आयु पाकर समाजोद्धार एवं आगम उद्धार किया और प्रभु भक्ति में लीन रहे। आखिरी समय के आखिरी दिनों में भी, यहां तक कि बीमारी में भी त्याग की वृत्ति इतनी थी कि 5-6 द्रव्यों का ही प्रयोग करते थे। गुरु वल्लभ के पास दिन को व्याख्यान का समय छोड़ कर बहनें नहीं आ | सकती थी। ज्योतिष और मंत्र साधना का प्रयोग करने वाले को अपनी आज्ञा और आदेश देकर किनारे करते थे। सायं का प्रीतिभोज लाभ प्राप्तकर्ता-श्री माया राम माणक चन्द जैन परिवार आप सबका साथ चरित्र पालन के लिये है। मनुष्य जीवन दुर्लभ है। आप लोगों को मनुष्य नहीं, मानव नहीं, श्रावक बनने का है। सम्यक ज्ञान आयेगा तब देश विरति धर्म आयेगा। गुरुदेव की अर्द्धशताब्दी मनाने का इतना ही अर्थ है कि जीवन में त्याग मार्ग आये, विरति धर्म आये, प्रतिक्रमण करने का भाव जागृत हो, यही गुरु चरणों में सच्ची श्रद्धांजलि होगी। गुरुदेव के प्रवचन के पश्चात् विविध मंगलमय कार्यक्रम के अंतर्गत युवा वर्ग के प्रथम चरण के विजेता छः प्रतियोगियों का भाषण प्रारम्भ हुआ। जिनमें प्रथम स्थान : सुश्री निशा जैन अम्बाला, द्वितीय स्थान : श्रीमति वीनू जैन, लुधियाना तृतीय स्थान : श्री संजीव जैन दुग्गड़' लुधियाना ने प्राप्त किया। इनको महासमिति की तरफ से सम्मान प्रतीक स्मृति चिन्ह के साथ क्रमश: 2100, 1500, 1100 रुपये की राशि भेंट की गई। इसी के साथ शेष तीन प्रतियोगियों में प्रोत्साहन पुरस्कार स्वरूप स्मृति चिन्ह के साथ क्रमश: 500 रुपये की राशि भेंट की गई। प्रोत्साहन पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रतियोगी क्रमशः कुमारी शीतल शर्मा लुधियाना, श्रीमति अर्चना जैन अम्बाला एवं प्रो. राजेन्द्र कुमार जैन नकोदर हैं। (पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रतियोगियों के छाया चित्र पृष्ठ 134-135 पर प्रकाशित हैं।) अन्त में सुरेश जैन पाटनी के भजन के साथ सुबह की सभा का विसर्जन हुआ। भजन के मुख्य अंश थे ? "बस आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है। करते हो तुम ऐ वल्लभ मेरा नाम हो रहा है।" दोपहर 2 बजे प.पू. गच्छाधिपति जी के मंगलाचरण के साथ धर्म सभा का शुभारम्भ हुआ। जिसमें सर्वप्रथम श्री विजय वल्लभ पब्लिक स्कूल की छात्राओं द्वारा सामूहिक गीत प्रस्तुत किया गया। विविध मंगलमय कार्यक्रमों के अन्तर्गत "चलो जिन मन्दिर चलें" प्रतियोगियों का लक्की ड्रा द्वारा विजेताओं के नाम निकाले गये। लक्की ड्रा निकालने वाले श्री आत्म-वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल के विद्यार्थी थे। प्रत्येक शहर में प्रथम, द्वितीय, तृतीय आने वाले प्रतियोगियों को क्रमशः स्मृति चिन्ह के रूप में शील्ड, गुरुवर का फोटो भेंटस्वरूप प्रदान किया गया। 238 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक शहर के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय इस प्रकार हैं : पट्टी से प्रथम : श्रीमति इन्दु जैन, द्वितीय श्री कोमल कुमार जैन एवं तृतीय श्री अशोक कुमार जैन सामाना शहर से प्रथम श्रीमति संजू जैन, द्वितीय श्रीमति प्रोमिला जैन एवं तृतीय श्री रमती रमण जैन। मुरादाबाद से प्रथम श्री अभय कुमार जैन, द्वितीय श्रीमति राज कुमार जैन, तृतीय श्रीमति शिमला जैन। जण्डियाला गुरु से प्रथम श्रीमति अलका जैन, द्वितीय श्री संजीव जैन, तृतीय श्री अरुण कुमार जैन । कपूरथला से प्रथम श्री सुव्रत जैन, द्वितीय श्री राज कुमार जैन, तृतीय श्री मोहित जैन यह मात्र दो वर्ष का बालक है। गढ़दीवाला से 1 ही प्रतियोगी थीं, सुश्री नेहा जैन। जालंधर से प्रथम श्री विकास जैन, द्वितीय श्री श्रीपाल जैन, तृतीय श्रीमति रेखा जैन । जम्मू से श्रीमति कान्ता वंती जैन, द्वितीय कृष्णावंती जैन, तृतीय श्री सुदर्शन जैन। नकोदर से प्रथम श्री अभय कुमार जैन, द्वितीय श्रीमति पुष्पावंती जैन, तृतीय श्री हरकृष्ण दास जैन । श्री गंगानगर से प्रथम श्रीमान् सम्पत लाल जी, द्वितीय श्रीमान् श्याम लाल जी । जगाधरी से प्रथम श्रीमति किरण जैन। बीकानेर से प्रथम श्री जयश्री बेगानी, द्वितीय श्रीमति निर्मला देवी, तृतीय श्रीमति कमला देवी कोचर । आगरा से प्रथम सुश्री प्रगति जैन, द्वितीय श्री प्रवीण जैन, तृतीय श्री श्रीपाल जैन। अम्बाला श्रमणोपासक गुरुकुल के बच्चे, जिसमें प्रथम दिपांशु जैन, द्वितीय संचित जैन, तृतीय राहुल जैन। अम्बाला छावनी से प्रथम श्री सतपाल जैन, द्वितीय श्रीमति कान्ता जैन I अम्बाला शहर से प्रथम श्री कुलदीप कुमार जैन 'एडवोकेट, द्वितीय श्री अनिल जैन रंग वाले, तृतीय श्रीमति किरण जैन । अम्बाला, जैन नगर से प्रथम श्रीमति रीटा जैन । होशियारपुर से प्रथम श्रीमति अमिता जैन द्वितीय श्री निर्मल जैन, तृतीय श्रीमति मंजू जैन। लुधियाना विजय इन्द्र नगर से प्रथम श्री जितेन्द्र जैन, द्वितीय श्री सुदेश जैन, तृतीय सुश्री रूपाली जैन। रायकोट से प्रथम श्री पवन कुमार जैन, द्वितीय श्री संजीव कुमार जैन, तृतीय श्रीमति सीमा जैन। जीरा से प्रथम श्रीमति शांति देवी जैन, द्वितीय श्री प्रवीण जैन । गोट जिला नागौर से श्रीमति पुष्पादेवी जैन लुधियाना शहर से प्रथम श्री राजेश जैन, द्वितीय श्रीमति सोनिया जैन, तृतीय श्री विनय कुमार जैन । लुधियाना -वल्लभ नगर से प्रथम श्रीमति सरोज जैन, द्वितीय श्रीमति लीलावंती जैन, तृतीय श्रीमति रेनू जैन। लुधियाना - सुन्दर नगर से प्रथम श्रीमति आशु जैन, द्वितीय श्रीमति सुदेश जैन, तृतीय श्रीमति अमिता जैन। लुधियाना- सिविल लाईन्ज़ से प्रथम श्री दर्शन कुमार जैन, द्वितीय श्रीमति सुनीता जैन, तृतीय श्रीमति संतोष रानी जैन । लुधियाना -किचलू नगर से प्रथम श्री शिवचंद जैन, द्वितीय श्रीमति रक्षिता जैन, तृतीय श्री अशोक जैन। रोपड़ से प्रथम श्रीमति उषा जैन, द्वितीय श्रीमति पुष्पलता जैन। चलो जिन मन्दिर चले प्रतियोगिता में भाग लेने वाले जिन प्रतियोगियों के नाम 132-133 पर प्रकाशित होने शेष रह गये थे, उन प्रतियोगियों के नाम यहां पर प्रकाशित किये जा रहे हैं : श्री कोमल कुमार जैन, पट्टी श्री अक्षित जैन, पट्टी श्रीमति प्रेम कान्ता जैन, सामाना श्री आदीश जैन, सामाना श्रीमति उषा जैन, सामाना श्री अश्विनी कुमार जैन, सामाना श्रीमति शशि जैन, लुधियाना श्रीमति सत्यावंती जैन, लुधियाना श्री सुरेन्द्र कुमार जैन हकीम, लुधियाना श्रीमति किरण जैन, लुधियाना श्री प्रद्युमन कुमार जैन, लुधियाना श्रीमति सुनीता जैन, सिविल लाईन, लुधियाना विजय वल्लभ संस्मरण - संकलन स्मारिका श्रीमति विनोद जैन, अम्बाला शहर श्रीमति किरण जैन, अम्बाला शहर श्रीमति सुनन्दा जैन, अम्बाला शहर श्री वल्लभ कुमार जैन, अम्बाला शहर श्रीमति सुभाष रानी, अम्बाला शहर श्री प्रेमपाल जैन, अम्बाला शहर 239 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमति स्वर्णकान्ता जैन, सामाना सुश्री पूजा जैन, सामाना श्री रमती रमण जैन, सामाना श्री श्रीपाल जैन, जालन्धर श्रीमति प्रेम जैन, जालन्धर श्रीमति सत्यावन्ती जैन, आगरा श्री श्रीपाल जैन, आगरा श्री तरलोक चन्द जैन, विजय इन्द्र नगर, लुधियाना श्री विनोद कुमार जैन, लुधियाना शहर श्रीमति शिमला रानी जैन, लुधियाना शहर श्रीमति त्रिशला रानी जैन, लुधियाना शहर श्रीमति आशा देवी, लुधियाना श्रीमति कमलेश जैन, सिविल लाईन, लुधियाना श्री दर्शन कुमार जैन, सिविल लाईन, लुधियाना श्रीमति नीना जैन, सिविल लाईन, लुधियाना श्री सुरेश जैन, सिविल लाईन, लुधियाना श्रीमति शैली जैन किचलू नगर, लुधियाना श्री मनीष जैन गुरुकुल अम्बाला श्री दीपांशु जैन, गुरुकुल अम्बाला श्री दीक्षित जैन, गुरुकुल अम्बाला श्री राहुल जैन, गुरुकुल अम्बाला श्री संचित जैन, गुरुकुल अम्बाला श्री सतपाल जैन, अम्बाला छावनी श्रीमति कान्ता जैन, अम्बाला छावनी श्रीमति इन्दुबाला जैन, अम्बाला शहर श्री सतीश कुमार जैन, अम्बाला शहर श्री कुलदीप कुमार जैन, अम्बाला शहर श्रीमति शिमला जैन, अम्बाला शहर श्रीमति माला जैन, अम्बाला शहर श्रीमति नीलम जैन, अम्बाला शहर श्री भविक जैन, अम्बाला शहर श्री हेमन्त जैन, अम्बाला शहर श्री अनिल जैन, अम्बाला शहर श्री अरुण जैन, अम्बाला शहर श्रीमति नीलम जैन, अम्बाला शहर श्रीमति पुष्पलता जैन जिन पूजा प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाले मण्डलों और मण्डल के सभी सदस्यों को स्मृति चिन्ह भेंट किये गये। जिन पूजा प्रतिस्पर्धा में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय आने वाले मण्डलों को स्मृति चिन्ह के साथ क्रमशः 5100/-,3100/- एवं 2100/- रुपये की राशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान की गई। पूर्ण विवरण पृष्ठ 129-130 पर प्रकाशित है। तत्पश्चात् संक्रान्ति श्रवण करने वाले संक्रान्ति भक्तों का बहुमान किया गया। प.पू. गच्छाधिपति जी की शुभ भावना एवं सद्प्रेरणा अनुरूप संक्रान्ति भक्तों का बहुमान-अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी સમાપન 40 સામાદા માપન હર જમાદા amomernama JOF LOR संक्रान्ति भक्तों का बहुमान संक्रान्ति भक्तों का बहुमान महोत्सव महासमिति की तरफ से प.पू.गच्छाधिपति जी की शुभ भावना एवं सद्प्ररेणा को साकार रूप देते हुए संक्रान्ति भक्तों का हार पहना कर एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर बहुमान किया गया। यह ऐसे संक्रान्ति भक्त हैं, जिन्होंने गुरु वल्लभ, गुरु समुद्र, गुरु इन्द्र इन तीनों गुरुदेवों के मुखारविंद से या फिर एक गुरुदेव के मुखारविंद से निरंतर संक्रान्ति नाम का श्रवण किया। इन गुरुभक्तों का बहुमान श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज द्वारा आरम्भ की गई प्रथा का बहुमान है और प.पू. गुरुदेवों के प्रति गुरु भक्ति अनुमोदना स्वरूप है। इन गुरु भक्तों के नामों की सूची इस स्मारिका में प्रकाशित है। विविध मंगलमय कार्यक्रमों के अन्तर्गत बाल वर्ग के 6 प्रतियोगियों के भाषण, जिसमें क्रमशः प्रथम स्थान अक्षत जैन अम्बाला, द्वितीय स्थान आरुषी जैन होशियारपुर एवं तृतीय स्थान मनी जैन जालंधर ने प्राप्त किया। इन्हें पुरस्कार स्वरूप स्मृति चिन्ह के साथ क्रमशः 2100/-, 1500/- एवं 1100/रुपये की राशि भेंट की गई एवं इसी के साथ शेष तीन प्रतियोगियों को भी प्रोत्साहन पुरस्कार स्वरूप स्मृति चिन्ह के साथ क्रमशः 500/- रुपये की राशि भेंट की गई। प्रोत्साहन पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रतियोगी क्रमशः सुश्री मानसी गाबा, सुश्री सुचिता जैन, सुश्री सोफिया जैन है। प.पू. गच्छाधिपति जी द्वारा सर्वमंगल के साथ दोपहर की सभा का विसर्जन हुआ। 240 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only 1500 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रात्रि 8.30 बजे भजन संध्या का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। मुख्य संगीतकार श्री अशोक ए. गेमावत एण्ड पार्टी मुम्बई ने बहुत ही सुन्दर एवं रचनात्मक भजनों के द्वारा श्रोताओं को बांधे रखा। यह भजन संध्या रात्रि 2 बजे तक चलती रही। किसी का भी मन जाने को नहीं था। समय को देखते हुए इस सभा का विसर्जन करना पड़ा। महासमिति की तरफ से पार्टी का बहुमान किया गया। गेमावत जी ने कहा कि मैं पैसे के लिए नहीं गाता हूँ जहां गुरु वल्लभ का नाम आता है, पैसे मिलें या न मिलें वहां पहुंच जाता हूं। इस पर यहां तो गच्छाधिपति भगवन् स्वयं विराजमान हैं। उनका आदेश हुआ और मैं सभी कार्यक्रम छोड़ कर यहां आ गया क्योंकि मुझे भी स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष में गुरुदेव के श्री चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करने हैं। गुरु वल्लभ अकेले ऐसे गुरु हैं, जिनकी प्रतिमा विदेश में भी प्रतिष्ठित है। इस कार्यक्रम मध्य रिदीमा जैन एवं सलौनी जैन का नृत्य प्रस्तुत किया गया। इस कार्यक्रम की सी.डी. प्राप्त की जा सकती N નાપન 00 દામાદીઉં मुख्य संगीतकार-श्री अशोक ए. गेमावत एंड पार्टी मुम्बई आज के दिन के आकर्षण • श्री सुपार्श्वनाथ जैन मन्दिर जी में "श्री आत्म-वल्लभ जैन युवक मण्डल" द्वारा भव्य आंगी रचना। रंगोली चित्र:- गच्छाधिपति जी द्वारा जैन उपाश्रय में गुरु वल्लभ के जीवन से सम्बन्धित रंगोली के द्वारा चित्रण, जिसे देखने के लिये दिनांक 10,10.2004 से 18.10.2004 तक हजारों गुरुभक्त पधारें। • श्री विपिन जैन मै. जैन कलर लैब द्वारा गुरु वल्लभ के जीवन के दुर्लभ चित्रों की प्रदर्शनी श्री आत्मानन्द जैन सीनियर मॉडल स्कूल के लाइब्रेरी हॉल में किया गया। यह प्रदर्शनी समापन समारोह के तीनों दिन लगाई गई। 'वल्लभ दर्शन' - प्रदर्शनी का उद्घाटन गुरुदेव द्वारा प्रदर्शनी का अवलोकन 151 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 241 Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्माननीय संक्रान्ति भक्त श्री रघुवीर जैन, जालंधर श्री धर्मपाल जैन (पट्टी वाले) लुधियाना श्री सतीश कुमार जैन, दिल्ली श्री कुमारपाल सुनील कुमार जैन, दिल्ली श्री प्रकाश चन्द राकेश कुमार, दिल्ली श्री शतरंज कुमार जैन श्री रविनंदन जैन (कसूर वाले) लुधियाना श्री रमेश कुमार जैन, लुधियाना श्री दीपक जैन, लुधियाना श्री राजेन्द्र कुमार मुन्हानी, लुधियाना श्री मदन लाल जैन, मुरादाबाद श्री विजय कुमार कोचर, बीकानेर डॉ. एम.एस. कादरी, बीकानेर श्री दिलात्म प्रकाश जैन, सूरतगढ़ श्री सुनील ढढ्डा श्री शांत कुमार जैन, लुधियाना श्री जनक राज बम्ब, लुधियाना श्री अमृत जैन, सुन्दर नगर, लुधियाना श्री देव राज जैन, जंडियाला गुरु श्री गुलशन कुमार जैन, जंडियाला गुरु श्री कोमल कुमार जैन, जंडियाला गुरु श्री सतीश कुमार जैन, जंडियाला गुरु श्री कीमती लाल जैन, जंडियाला गुरु श्री हेमंत कुमार जैन, जालंधर श्री राकेश कुमार जैन, जालंधर श्री मनोज कुमार जैन, जालंधर श्री राकेश कुमार जैन, जालंधर श्री अशोक कुमार जैन, जालंधर श्री बब्बू जैन, जालंधर श्री राज कुमार जैन, नकोदर श्री अशोक कुमार जैन, जंडियाला गुरु श्री राजीव कुमार जैन, नकोदर श्री दिनेश कुमार जैन, आगरा श्री सतीश कुमार जैन, लुधियाना श्री राज कुमार जैन (रायकोट वाले) श्री संजीव कुमार जैन, लुधियाना श्री संजीव कुमार जैन, होशियारपुर श्री पुष्प राज जैन, लुधियाना श्री अमृत लाल जैन, लुधियाना श्री ज्ञान चंद जैन (जंडियाला वाले) श्री कोमल चंद सराफ, लुधियाना श्री देव राज जैन, लुधियाना श्री चंदू लाल जैन, लुधियाना श्री तिलक चन्द जैन, लुधियाना श्री शान्ति लाल जैन, लुधियाना श्री सुभाष चन्द जैन, जालंधर श्री चानन लाल जैन, अम्बाला श्री प्रद्युमन कुमार जैन, दिल्ली श्री अभय कुमार जैन, दिल्ली श्री निर्मल कुमार जैन, मुरादाबाद श्री सुरेश कुमार जैन, मुरादाबाद श्री ओम प्रकाश जैन, मुरादाबाद श्री दीपक जैन, मुरादाबाद श्री धर्मवीर जैन, अम्बाला श्री महेन्द्र पाल जैन, अम्बाला श्री केसरी चंद जी, दफ्तरी श्री मान मल जी कोठारी श्री मनोज कोचर, बीकानेर श्री नरेन्द्र नागरेचा, बीकानेर श्री मनोहर चन्द कोचर, बीकानेर श्री विजय कुमार कोचर, बीकानेर श्री उत्तम चन्द भण्डारी श्री वी.डी. जैन, पुणे श्री प्रकाश चन्द कोचर, बीकानेर श्री हनुमान दास सिपानी श्री रिषभ चन्द सिरोहिया श्री तिलक चन्द, रवि चन्द जैन, जालंधर श्री धर्मपाल जैन, दिल्ली श्री सुदर्शन कुमार जैन श्री निखिल कुमार जैन, दिल्ली श्री सुदर्शन कुमार जैन 'सन्नी', दिल्ली श्री वी.के. जैन, दिल्ली श्री सुशील कुमार जैन, चण्डीगढ़ श्री सुधीर कुमार अंकुर जैन, दिल्ली श्री वैभव जैन, दिल्ली श्री यशपाल जैन, यमुनानगर श्री कस्तूरी लाल जैन, यमुनानगर श्री रमेश कुमार जैन, दिल्ली श्री ओम प्रकाश जैन, दिल्ली श्री दुर्गा दास सिद्धराज जैन, फरीदाबाद श्री राकेश कुमार, श्री आदीश कुमार जैन, फरीदाबाद श्री अनिल कुमार जैन, गुड़गांव श्री सुरेन्द्र कुमार जैन, गुड़गांव श्री पारश कुमार पद्म चन्द जैन, दिल्ली श्री राज कुमार जैन, मेरठ श्री धर्म चन्द चमन लाल जैन, मेरठ श्री विमल चन्द सुदर्शन जैन, मेरठ श्री वी.सी. जैन 'भाभू' श्री सरवन कुमार जैन, मुम्बई श्री भूषण कुमार जैन, दिल्ली श्री चन्द्र मोहन जैन, दिल्ली श्री धनराज जैन, दिल्ली श्री ईश्वर चन्द जैन भाभू' श्री लाभ चन्द राज कुमार जैन, फरीदाबाद श्री सुरेन्द्र कुमार जैन, पीतमपुरा दिल्ली श्री सुरेन्द्र कुमार जैन, दिल्ली श्री शान्ति लाल अनिल कुमार जैन, दिल्ली श्री रोमी जैन, लुधियाना श्री राकेश जैन, लुधियाना श्री संजीव कुमार जैन, लुधियाना श्री अभिलाष कुमार जैन, लुधियाना श्री सूरज प्रकाश जैन, बटाला श्री धनराज जी, मुम्बई श्री सिद्धार्थ शाह, मुम्बई श्री पारस कोचर, मुम्बई श्री चन्दू ढाडा, मुम्बई श्री श्रीपाल जैन, जालंधर श्री हरीश जैन श्री कुमार पाल जैन (जंडियाला वाले) श्री लक्ष्मी चन्द जी श्री विजय कुमार जैन (आगरा वाले) श्री जय कुमार बरड़, लुधियाना श्री नरेन्द्र पाल, आगरा श्री सुरेन्द्र कुमार जैन, आगरा श्री विपुल जैन, फरीदाबाद श्री आशू जैन, फरीदाबाद श्री चन्द्र मोहन' सी. मोहन' लुधियाना श्री नेमी चन्द जैन, आगरा श्री समुद्र सागर जैन, आगरा 242 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only 1500 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गच्छाधिपति जी की शुभ निश्रा में संक्रान्ति पूर्व संध्या पर सामायिक-प्रतिक्रमण करने वाले सम्माननीय श्रावक-श्राविकाओं की सूची श्री राकेश कुमार जैन, रोहिणी दिल्ली श्री प्रकाश कोचर, बीकानेर श्री ललित भूषण जैन पाटनी, लुधियाना श्री सुभाष चन्द जैन पट्टी निवासी (प्रोफैसर) श्री ओम प्रकाश जैन, लुधियाना श्री पद्म प्रकाश जैन, लुधियाना श्री हरवंश लाल जैन, लुधियाना श्री दर्शन कुमार जैन, लुधियाना श्री जोध मल्ल जी जैन, पाली राजस्थान श्री सुरेन्द्र कुमार जैन (हकीम), लुधियाना श्री चन्द्र शेखर जैन, सामाना श्री सुमति कुमार जी डागा, बीकानेर श्री मयंक जैन पाटनी, लुधियाना श्री जयमल्ल कुमार जैन, लुधियाना श्री चन्द्र मोहन जैन (सी. मोहन), लुधियाना श्री नरेश जैन (पिन्की), लुधियाना श्री महेन्द्र पाल जैन (बजाज), अम्बाला शहर श्री शेखर चन्द जैन, अम्बाला शहर श्री हरीश जैन, जालन्धर शहर श्री सन्दीप जैन, जालन्धर शहर श्री अरविन्द कुमार जैन, अम्बाला शहर श्री नरेन्द्र कुमार जैन, पट्टी वाले-अम्बाला शहर श्री निपुण कुमार जैन, पट्टी वाले-अम्बाला शहर श्री नमन कुमार जैन, पट्टी वाले-अम्बाला शहर श्री राहुल जैन गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री मनीश जैन गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री अरिहन्त जैन गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री संचित जैन गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री दीक्षित जैन गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री पुलकित जैन, गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री प्रणव जैन गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री दीपांशु जैन गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री अंकुर जैन गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री भविक जैन नारोवाल, अम्बाला शहर श्री नमित जैन, अम्बाला शहर श्री यशपाल जैन 'दुग्गड़', अम्बाला शहर श्री श्रीकान्त जैन, अम्बाला शहर श्री सुखचैन लाल जैन, अम्बाला शहर श्री वस्तु पाल जैन, जैन नगर, अम्बाला शहर श्री सतीश कुमार जैन पट्टी वाले, अम्बाला शहर श्री भुवन जैन गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री आशीष जैन, अम्बाला शहर श्री सूरज प्रकाश जैन, अम्बाला शहर श्री पुनीत जैन ‘रंग वाले', अम्बाला शहर श्री अमित जैन, अम्बाला शहर श्री नितिन जैन, अम्बाला शहर पंडित श्री भाव सिंह जी गुरुकुल, अम्बाला शहर श्री सतीश कुमार जैन, अम्बाला शहर श्री सुनील कुमार जैन, अम्बाला शहर श्री निर्मल कुमार जैन मुन्हानी, अम्बाला शहर श्री विकास जैन, जालन्धर शहर श्री पंकज जैन, जालन्धर शहर श्री राकेश जैन, जालन्धर शहर श्री विनय कुमार जैन, लुधियाना श्री देव कुमार जैन, लुधियाना श्री विनोद कुमार जैन, लुधियाना श्री चन्दु लाल जैन, लुधियाना श्री महेन्द्र कुमार जैन भ्राता जी, लुधियाना श्री आनन्द कुमार जैन महामन्त्री, अम्बाला शहर श्री सतीश कुमार जैन नारोवाल, अम्बाला शहर श्री रजत जैन, अम्बाला शहर श्री उमर कुमार जैन, अम्बाला शहर श्री प्रेम पाल जैन, अम्बाला शहर श्री वल्लभ कुमार जैन, अम्बाला शहर श्री शतरंज कुमार जैन, अम्बाला शहर श्री अतुल कुमार जैन सी.ऐ., अम्बाला शहर श्री सुभाष कुमार जैन बरड़, अम्बाला शहर श्री सुरेश कुमार जैन, अम्बाला शहर श्री दीपक जैन, जालन्धर शहर श्री किशोरी लाल जैन, जालन्धर शहर श्री श्रीपाल जैन, जालन्धर शहर श्रीमति सन्तोष रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति उषा रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति पुष्पा रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति माला रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति सुभाष रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति शिमला रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति अलका रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति इन्दु रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति फूल कान्ता जैन, लुधियाना श्रीमति मन्जु रानी जैन, लुधियाना श्रीमति अभिलाष रानी जैन, लुधियाना श्रीमति कविता रानी जैन, लुधियाना श्रीमति पुष्पावन्ती जैन, अम्बाला शहर श्रीमति चान्द रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति कंचन जैन, लुधियाना श्रीमति किरण जैन, अम्बाला शहर श्रीमति मीना जैन, लुधियाना श्रीमति सुमन जैन, लुधियाना श्रीमति सरोज जैन, लुधियाना श्रीमति अनु जैन, लुधियाना श्रीमति पुष्पावन्ती जैन, लुधियाना श्रीमति कमलेश रानी जैन, लुधियाना श्रीमति सन्तोष जैन, लुधियाना श्रीमति प्रेम कान्ता पट्टी वाली, अम्बाला शहर श्रीमति सन्तोष जैन, अम्बाला शहर श्रीमति रेखा जैन, अम्बाला शहर श्रीमति रितु जैन, अम्बाला शहर श्रीमति अचला रानी जैन, अम्बाला शहर श्रीमति स्वर्ण कान्ता जैन, अम्बाला शहर श्रीमति सीमा जैन, अम्बाला शहर ****** 1501 243 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिनांक 16 अक्तूबर 2004 दिन शनिवार अनुशासन प्रिय प.पू. गच्छाधिपति जी ठीक 9 बजे धर्म सभा में पधारे। सामूहिक गुरु वन्दन के पश्चात् गुरुदेव के मंगलाचरण के साथ आज की धर्मसभा का शुभारम्भ किया गया। आज का मंच संचालन श्री अरविन्द जी ने किया। सर्वप्रथम एस.ए. जैन कॉलेज पी.जी. की छात्राओं ने सामूहिक भजन प्रस्तुत किया। श्री कस्तूरी लाल जी ने गुरु वल्लभ को साधर्मिक वात्सल्य के मसीहा बताते हुए अपने विचार प्रकट किये। श्री मनदीप जैन जी ने भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे: "सुनो सुनाता हूं, एक गुरुवर की कहानी, उपस्थित जनसमूह जो कहानी मैंने सुनी है, बड़े बूढ़ों की जुबानी।" इस भजन के द्वारा गुरुवर के सम्पूर्ण जीवन चरित्र को उजागर किया गया। श्री सिकन्दर लाल जैन 'एडवोकेट' ने "विजय वल्लभ हमारे सरताज" विषय पर अपने विचार संक्रान्ति भजन की गाथा के साथ आरम्भ किये। "गुरुराज तपस्वी महामुनि, सरताज हो तुम महाराजों के। मैं एक छोटा सा सेवक हूं, कुछ कहता हुआ शरमाता हूं।।" गुरुवर राजाओं एवं महाराजाओं के सरताज तो थे ही, हमारे संघ-समाज के भी सरताज थे और हैं। देवताओं की सभा में इन्द्र आदि अपने ताज से ही पहचाने जाते हैं, राजे-महाराजे भी अपने ताज से ही पहचाने जाते हैं। किसी संस्था या संगठन या नवकारसी लाभ प्राप्तकर्ता-श्री सरदारी लाल शिखर चन्द जैन परिवार, मुरादाबाद कम्युनिटी का जो प्रतिनिधित्व करता है, उसके सर पर ताज होता है। हम जब यात्रा पर पंजाब से बाहर जाते हैं, तो साधु-संत हमसे पूछते हैं कहां से आए हो? तो हम STAसाद कहते हैं, पंजाब से, तो वे तुरन्त कहते हैं कि पंजाब गुरु वल्लभ के दीवाने हैं, यही हमारी पहचान है। हमारे संघ, समाज की विशेष पहचान गुरु वल्लभ से ही है इसलिये वे हमारे सरताज है। पूज्य गुरुदेव ने समाज के हर क्षेत्र में हमारा नेतृत्व किया। हमें मार्गदर्शन दिया। सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने शिक्षा पर बल दिया इसके लिये स्कूल, कॉलेज का निर्माण करवाया। धार्मिक क्षेत्र में गुरुकुल खुलवाए, जिन मन्दिर बनवाए, जैन समाज को मूर्ति पूजा का विशेष महत्त्व समझाया, राजनीतिक क्षेत्र में गुरुवर चाहते थे कि जैन समाज का प्रत्येक सदस्य पढ़ लिख कर विद्वान बने फलस्वरूप प्रशासन में हमारी हिस्सेदारी हो, जिससे हम अपने धर्म की रक्षा करते हुए धर्म का टोडर कापीतिभोज लामाका भीमलाल विजन और कसा वाले पालन कर सकें। व्यवहार की दृष्टि से समयानुसार केवल गुरू वल्लभ ने जनहित और समाजहित के कार्य प्रारम्भ किये इसलिये वे गुरू श्रृंखला में हमारे सिरताज माने जाते हैं। श्रीमति कमलेश जैन लुधियाना ने 'वल्लभ गुरु की शान को हम और बढ़ायेंगे' भजन प्रस्तुत किया। स्थानकवासी साध्वी सुनीति प्रभा श्री जी महाराज ने अपने प्रभावशाली प्रवचन में कहा कि संघ जयवंत है, नन्दी सूत्र में वर्णन आता है कि वीतराग तीर्थंकर परमात्मा जब समोसरण में विराजमान होते हैं, तो चतुर्विध संघ रूपी तीर्थ को नमन करते हैं। तीर्थंकर ही चतुर्विध संघ की स्थापना धर्म को चलाने के लिए एवं बनाये रखने के लिये करते हैं। इस समय भरत और ऐरावत क्षेत्र में तीर्थंकर परमात्मा नहीं हैं। परमात्मा की गैर हाजिरी में आचार्य श्री जी तीर्थंकर तल्य माने जाते हैं और सायं का प्रीतिभोज लाभ प्राप्तकर्ता-श्री मुनि लाल बाल कृष्ण जैन घोड़े वाले परिवार 1244 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only 1500 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विध संघ को धर्म के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। एक बार गौतम स्वामी ने परमात्मा से प्रश्न किया कि भगवान आपके निर्वाण पश्चात् संघ को कौन चलायेंगे, तब भगवान ने उत्तर दिया कि शासन की व्यवस्था चलाने के लिए प्रथम पट्टधर सुधर्मा स्वामी होंगे और अंतिम आचार्य दुष्पसह सूरि होंगे। सुधर्मा स्वामी से दुप्पसह सूरि तक 2004 आचार्य होंगे जो जिनशासन की व्यवस्था को चलायेंगे। इस प्रकार संघ का प्रतिनिधित्व आचार्य भगवंतों द्वारा होता रहेगा। ऐसे ही एक आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी महाराज हुए हैं, जिनके सान्निध्य में सभी ने ठण्डी छाया प्राप्त की। उनकी स्मृतियां अभी भी तरोताज़ा हैं ऐसे सन्त विजय वल्लभ सूरि जी महाराज के श्री चरणों में अपनी भावांजलि अर्पित करती हूं। आज का युग चकाचौंध से भरा हुआ है। समाज भौतिकवाद में फंसता जा रहा है। इस भौतिकवादी चकाचौंध से बचकर जो आध्यात्मिकता का मार्ग पकड़े हुए हैं, ऐसे महापुरुषों में गुरु विजय वल्लभ सूरि जी महाराज का नाम आता है और वर्तमान में प.पू. विजय रत्नाकर सूरि जी महाराज विराजमान हैं। हवा के अनुकूल सभी चलते हैं, प्रतिकूल चलने वाला ही महान् होता है। ऐसे ही महान् आचार्यों के श्री चरणों में संघ फलता-फूलता रहे, इन्हीं कामनाओं के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूँ।" श्री गुलशन जैन चण्डीगढ़ वालों ने गुरु वल्लभ पर भजन प्रस्तुत किया। पुरस्कृत श्री आनन्द कुमार जैन महामंत्री अम्बाला श्रीसंघ ने "गुरु वल्लभ हमारे तारणहार” विषय पर विशेष वक्तव्य देते हुए कहा कि गुरु वल्लभ संघ तथा हमारे ही प्रतियोगी नहीं बल्कि पूरे संसार के तारणहार है आनन्द जी ने गुरु वल्लभ की अलौकिक शक्ति को गुरु रत्नाकर सूरि जी में बताया। तत्पश्चात् श्री सुशील जैन जी मोही वालों द्वारा प्रस्तुत भजन के बोल “वल्लभ गुरु तेरी शान ओए, तेरी शान तो जग कुर्बान ओए" तथा श्री अनिल नाहर जी ने शिक्षा के प्रखर प्रणेता के रूप में गुरु जी का गुणानुवाद किया। श्री शंका जी सादड़ी हॉल मुम्बई वालों ने भजन प्रस्तुत किया। 9.390? गच्छाधिपति जी का प्रवचन भाग्यशालियो! 50 वर्ष निकल गये, गुरुवर ने कितने उपकार किये, यह समय मिला सोचने का, समझने का है। अपने जीवन के अन्दर झांक कर देखना हमने गुरुवर की कौन सी शिक्षा को जीवन में अपनाया ? गुरु वल्लभ का जीवन अद्वितीय है। गुरुवर ने अपने जीवन में सभी कार्य साधुता में रहकर किये। हमें उनके बताये संयम मार्ग को सुदृढ़ बनाना है। हमने संयम ग्रहण किया, संयम ग्रहण करने का लक्ष्य मोक्ष होना चाहिए। गुरुवर के जीवन में दृढ़ता माता श्री जी के द्वारा दिये गये संस्कारों से आये ईंट पक्की न हो तो मकान डांवाडोल होता है। गुरु वल्लभ का जीवन देखने से 'सुहगुरु जोगो' पहले गुरु, माता पिता को अपनी चमड़ी उतारकर जूता बनाकर पांव में पहना दो, घिस जाये तो भी माता-पिता का ऋण नहीं चुकाया जा सकता। साधु उपदेश देते हैं, आचरण ही साधु का उपदेश होता है। वल्लभ गुरु का जीवन संस्कार से बना यह संस्कार माता-पिता से मिले 100 शिक्षकों की जरूरत एक माता पूर्ण कर देती है। आर्य रक्षित सूरि माता के कहने से तोसली आचार्य के पास दृष्टिवाद पूर्व पढ़ने के लिये गये। इसके लिए उन्हें साधु बनना पडा, साधु बने तो ऐसे बने कि संयम मार्ग पर चलते-चलते आचार्य पदवी को प्राप्त कर लिया। ऐसी आचार्य पदवी जिसका व्याख्यान सुनने के लिए देवता भी आते थे। गुरु वल्लभ का वास्तविक गुणगान तभी पूर्ण होगा, जब हम अपनी सन्तानों को सम्यक् ज्ञान देंगे। पंजाब में भोग विलास ज्यादा है। धन को कमाने में और खर्च में, वितासता में समय व्यतीत करते अपना तो समय निकल गया पर अभी भी संभल सकते हैं अपने बच्चों को सम्यक् ज्ञान देकर मन्दिर जाओ तो परमात्मा का ज्ञान, गुरु के पास जाओ तो गुरु का ज्ञान। 25 वर्ष तक बचपन, 50 वर्ष तक गधा पच्ची, पर धर्म में बताया जाता है कैसे जीवन जीना ? अगर ज्ञान नहीं तो क्या करोगे ? ज्ञान 5 विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 90 विभिन्न प्रतियोगिताओं में पूज्य गुरुदेव एवं श्रमणवृंद होगा तो 50 से ऊपर प्रभु पूजा करना, सामायिक प्रतिक्रमण करना, प्रभु का स्मरण करना यह सभी कार्य ज्ञान की जानकारी से होते हैं। मैंने पहले भी कहा था अब भी कहता हूं मैं आया हूं देने के लिए, अभी कुछ सुधार हुआ। संक्रान्ति पूर्व संध्या पर प्रतिक्रमण करने वालों की संख्या बढ़ी परन्तु बहुत कम है, हम संतुष्ट नहीं हैं। अम्बाला में गुरुकुल की स्थापना की। प्रत्येक बच्चा ज्ञान प्राप्त कर सके परंतु 'दीपक तले अंधेरा' । अम्बाला के विद्यार्थी गुरुकुल में नहीं हैं। आज के दिन संकल्प करें गुरुकुल में रखकर बच्चों को ज्ञान दिया जाये तो कितना लाभ हो । मत-मतान्तर के अन्दर समय व्यर्थ बर्बाद नहीं करना आज महावीर जैन विद्यालय की 10 शाखाएं हैं, जो ज्ञान दे रही हैं। आज सोचना है कि सम्यक ज्ञान कैसे परिया Fabr 245 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्त किया जाये। मैं आया हूं जिम्मेदारी के रूप में। दिल्ली में समारोह हुआ, हम भी कर रहे हैं। प्रत्येक स्थान पर अपने सामर्थ्य के अनुसार यह कार्यक्रम हुए हमारी अनुमोदना है। साधु अपने आप को शुद्ध से शुद्धतर बनाएं, श्रावक अपने धर्म का पालन करें तभी स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी समारोह मनाने की सार्थकता है। प.पू. गच्छाधिपति जी के प्रवचन पश्चात् विविध मंगलमय कार्यक्रमों के अन्तर्गत संगीत प्रतियोगिता के अंतिम चरण के दोनों वर्गों के प्रतियोगियों द्वारा गुरु वल्लभ द्वारा रचित स्तवन-सज्झाए को लयवद्ध गाया गया जिनमें युवा वर्ग में प्रथम स्थान श्री सौरभ जैन, द्वितीय स्थान श्रीमति सोनिया जैन और तृतीय स्थान श्रीमति माला जैन ने प्राप्त किया। बाल वर्ग में प्रथम स्थान श्री अभिनव जैन, द्वितीय स्थान श्री सिद्धार्थ जैन एवं तृतीय स्थान श्री पुलकित जैन ने प्राप्त किया। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय आने वाले प्रतियोगियों को स्मृति चिन्ह के साथ क्रमशः 5100/-, 3100/- एवं 2100/- रुपये की राशि भेंट की गई। शेष प्रतियोगियों को प्रोत्साहन पुरस्कार स्वरूप 1100/- रुपये प्रति की राशि स्मृति चिन्ह के साथ भेंट की गई। प्रोत्साहन पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रतियोगी क्रमशः श्रीमति बिन्दु जैन, सुश्री शिखा जैन, श्री मनदीप जैन, श्रीमति अलका जैन, सुश्री सायना जैन, सुश्री कुनिका जैन विवरण व छाया चित्र पृष्ठ 139-140 पर प्रकाशित है। तत्पश्चात् दोपहर 2 बजे तक के लिये सभा स्थगित की गई। दोपहर 2 बजे प.पू. गच्छाधिपति जी के मंगलाचरण से धर्मसभा का शुभारम्भ हुआ। श्री राजीव जैन 'मुरादाबाद वालों' ने 'गुरु वल्लभ की समाज को महान देन' पर अपने विचार व्यक्त किये। तत्पश्चात् जिन गुरुभक्तों ने संक्रान्ति पूर्व संध्या पर गच्छाधिपति जी की निश्रा में सामायिक -प्रतिक्रमण किया उनका बहुमान किया गया। इन श्रावक-श्राविकाओं का महासमिति की ओर से स्मृति चिन्ह, श्री चन्द्र शेखर जैन सामाना द्वारा चांदी की स्थापना के साथ सामायिक के उपकरण, महासमिति के अध्यक्ष श्री कश्मीरी लाल जैन बरड़ की तरफ से टेबल घड़ी भेंट देकर संक्रान्ति पूर्व संध्या पर सामायिक प्रतिक्रमण करने वालों का बहुमान लाभ प्राप्तकर्ता बहुमान किया गया। बहुमान किये जाने वाले श्रावक-श्राविकाओं की सूची प्रकाशित है। परिवार-श्री कश्मीरी लाल जैन बरड़, श्री चन्द्र शेखर जैन सामाना बाल वर्ग में 84 सामायिक करने वालों का सम्मान सामायिक -पौषध मण्डल, लुधियाना द्वारा किया गया। इन्हें स्मृति चिन्ह के साथ गले में रुपयों के हार पहना कर बहुमान किया गया। छाया चित्र पृष्ठ 167 पर प्रकाशित है। "चलो जिन मन्दिर चलें" प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण किया गया, जिसका विवरण दिनांक 15.10.2004 के समाचार में प्रकाशित है। “निबन्ध प्रतियोगिता” में जिन प्रतियोगियों ने भाग लिया उनमें प्रथम श्रीमति किरण जैन अम्बाला, द्वितीय श्रीमति सोनिया जैन लुधियाना, तृतीय श्रीमति वीनू जैन, अम्बाला एवं सुश्री सोफिया जैन अम्बाला ने प्राप्त किया। इन प्रतियोगियों को स्मृति चिन्ह के साथ क्रमशः 5100/-,3100/-, एवं 2100/- रुपये भेंट स्वरूप प्रदान किये गये। बाहर से पधारे हुए साधर्मी भाईयों के ठहरने की व्यवस्था का प्रबन्ध एवम् भोजन वितरण करने में सहयोग श्री आत्म-वल्लभ जैन युवक मण्डल, अम्बाला शहर के प्रधान एवम् मंत्री को मण्डल के साथ सम्मानित किया गया। श्री आत्म-वल्लभ जैन सेवा मण्डल का भी सम्मान किया गया। विजय वल्लभ सेना अम्बाला के प्रधान एवम् मंत्री जी को सम्मानित किया गया। जैन मिलन अम्बाला के प्रधान एवम् मंत्री को सम्मानित किया गया। महिला मण्डल की उप-प्रधान श्रीमति मधु जैन एवम् मंत्री श्री किरण जी को सम्मानित किया गया। इन सभी मण्डलों ने समारोह के सभी कार्यक्रमों को पूरा करने में सहयोग दिया था। श्री मगन कोचर एण्ड पार्टी बीकानेर वाले आज के महान अवसर पर एक सुन्दर भजन प्रस्तुत किया। भजन का सभी गुरू भक्तों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। 'सभी के लबों पर हम अनुयायी जैन धर्म के वल्लभ की सन्तान है' नामक शब्दों से सभी लोग मंत्र मुग्ध हुए। बीकानेर निवासी श्री महेन्द्र जी ने गुरु चरणों में भजन प्रस्तुत किया। “गुरुवर को जो याद करें, मेरा कोई ना सहारे बिन तेरे गुरुदेव तुम्हीं हो मेरे।" “एक शाम वल्लभ के नाम" रात्रि 8.30 बजे से बीकानेर के प्रसिद्ध गायक श्री मगन जी कोचर एवम् साथियों द्वारा गुरु वल्लभ के जीवन पर आधारित भजनों के द्वारा समापन समारोह प्रस्तुत की गई। कार्यक्रम रात 12.30 बजे तक चला। गगन जी कोचर के साथ महिन्द्र कोचर बीकानेर, शीला नाहटा कोचर मण्डल, एवम् छोटी-छोटी बच्चियाँ अनुराधा और मोना कोचर एण्ड पार्टी ने अपने गायन एवम् परी नृत्य, डांडिया नृत्य, राजस्थानी नृत्य से हजारों का मन मोह लिया। श्री आनन्द कुमार जैन, महामंत्री श्री संघ अम्बाला ने श्री मगन जी कोचर एण्ड पार्टी का धन्यवाद किया और महासमिति के अध्यक्ष श्री कश्मीरी लाल जी एवम् समिति के सदस्यगण, अम्बाला श्री संघ के उपप्रधान श्री महिन्द्र कुमार जी तथा प्रबन्धक समिति को साथ लेकर हार, नारियल, शाल से बहुमान कर धन्यवाद किया। 'एक शाम गुरु वल्लभ के नाम' मुख्य संगीतकार श्री मगनलाल जी कोचर एंड पाटी, बीकानेर werrantiewणी 246 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only 1500 Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HIDIT स्वागती गीत विधिकारक मण्डल का बहुमान 17.10.2004 दिन रविवार गुरुवर विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष के समापन समारोह का आज अन्तिम दिन था। आज सुबह से ही मौसम बड़ा सुहावना था, ठंडी और सुहावनी हवा चल रही थी। दूसरे शहरों एवं राज्यों से गुरु भक्तों का एकत्रित होना शुरू हो चुका था। जनमेदनी इतनी थी कि आश्चर्य के साथ मन को प्रफुल्लित कर रही थी। सभी अम्बाला निवासियों के मुख पर एक ही बात थी कि ऐसा लगता है दिव्यलोक से देवी-देवता भी इस समारोह में हर्षोल्लास के साथ दिव्याशीष प्रदान करने के लिए समूह रूप में पधार रहे हैं। 18 हजार फुट का पण्डाल गुरु भक्तों से खचाखच भरा हो और पण्डाल के बाहर भी गुरुभक्त इस समारोह में भाग लेने के लिए खड़े हों, ऐसा अभूतपूर्व शोभनीय दृश्य जीवन में देखने का पहली बार सुअवसर प्राप्त हुआ। अनुशासन प्रिय प.पू. गच्छाधिपति जी ठीक 9 बजे पाट पर विराजमान हो गये तथा सर्वप्रथम प.पू. गच्छाधिपति जी के मंगलाचरण से समारोह का शुभारम्भ हुआ। संक्रान्ति भक्तों द्वारा इस भजन की प्रस्तुति की गई : "वल्लभ याद आए सवेरे-सवेरे, वल्लभ तुझको ध्यायुं सवेरे-सवेरे..." एस.ए. जैन सी.सै. स्कूल की छात्राओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया, जिसके बोल थे:___"जन-जन को देते ज्ञान, सबसे प्यारा उनका नाम....." श्री आजाद कुमार जैन जी ने गुरु वल्लभ के नाम अपनी शायरी प्रस्तुत की। _ “वो दिन आज आ गया है जिसका था इन्तज़ार, पूज्य गुरु के चरणों में नमस्कार" अपने भीतर बैठे वल्लभ से दो बाते कहने दो आचार्य सूरीश्वर के अन्दर वल्लभ के दर्शन होते हैं।" श्रीमति सविता जैन द्वारा भजन प्रस्तुत किया गया "जवाब नहीं मेरे गुरु दा-2, जिन्ने भक्तों को चरणी लगाया, कि पीछे-पीछे सारे आ गए।। जवाब नहीं मेरे गुरु दा....." इसके पश्चात् श्री सिकन्दर लाल जी ने अपने विचार प्रस्तुत किए तथा आज के समारोह के मुख्य अतिथि श्री वी.सी. जैन भाभू ने अपने वक्तव्य में गुरु वल्लभ के विचारों को प्रस्तुत किया। इसके पश्चात् विधिकारक मण्डल तथा रथयात्रा के संचालन सहयोगी सदस्यों का बहुमान किया गया। गीत "माँ की ममता" माता को जो प्यार करे वो लोग निराले होते है... "उस माँ की न सुनो तो उसकी कौन सुनेगा......" श्री सुशील कुमार जी चण्डीगढ़ ने अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने पूज्य गच्छाधिपति जी से विनंती की कि चातुर्मास के बाद चण्डीगढ़ की ओर पधारें तथा संक्रान्ति का लाभ हमें दें। आचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज ने कहा कार्तिक पूर्णिमा के पश्चात् मेरा लुधियाना की तरफ विहार होगा। चौड़ा बाजार जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा 13 दिसम्बर 2004 को है। लुधियाना जाते हुए चण्डीगढ़ रास्ते में आया तो अवश्य पहुचूंगा। विशेष अतिथि का बहुमान श्री कान्ति भाई मुम्बई का बहुमान विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 247 For Privale & Personal use only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुदेव को काम्बली बहोराने के लाभार्थी परिवार का बहुमान विशेष अतिथि द्वारा सामूहिक क्षमायाचना श्री मगन लाल जी कोचर ने अपने विचार व्यक्त किए तथा पूज्य गरुदेव से जनवरी मास की संक्रान्ति एवम् अगला चातुर्मास बीकानेर में करने की विनती बीकानेर संघ के साथ (जो कि 6 बसों के साथ अम्बाला आया हुआ था) खड़े होकर की। पण्डाल गुरु वल्लभ के जय-जयकार के नारों से गूंज उठा। आचार्य श्री जी ने कहा मैं जब भी पंजाब से गुजरात की तरफ जाऊंगा तो बीकानेर होते हुए जाऊंगा। आप आश्वस्त रहें। बीकानेर के गुरुभक्तों के मधुर भजन : “चिट्ठी आई है गुरु की चिट्ठी आई है, रत्नाकर सूरि के नाम विजय वल्लभ का पैगाम चिट्ठी आई है" के शब्दों से सारा पण्डाल तालियों की आवाज से गूंज उठा। अगला चौमासा बीकानेर में, के नारों से तथा विजय वल्लभ की जय जयकारों से एवं विजय वल्लभ अमर रहे के नारों से सारा पण्डाल गूंज उठा। उन्होंने गुरुदेव से चातुर्मास से पहले संक्रान्ति का मौका देने का आग्रह किया और वल्लभ जी के द्वारा बीकानेर में किए गए कार्यों का वर्णन किया। बीकानेर के लोगों ने पूज्य गुरुदेव से अपने क्षेत्र में परीक्षा लेने के लिए कहा परन्तु गुरुजी ने कहा कि हम परीक्षा लेने नहीं, परीक्षा देने आएंगे जिस क्षेत्र में गुरु वल्लभ ने कार्य किए हैं, वहां अवश्य पधारेंगे। श्री सुरेश जैन पाटनी के द्वारा प्रसिद्ध संगीतकार श्री रविन्द्र जैन की रचना प्रस्तुत की गई। "जय वल्लभ गुरु जय दुःखहरण, हम आएं हैं गुरु तेरी शरण...." संघ-विश्वशान्ति के हेतु , गुरु करें तेरा आवाहून। महासमिति के प्रधान एवम् कार्यकारिणी सदस्यों और श्री संघ अम्बाला की प्रबन्धक समिति के सदस्यों ने तिलक, हार, नारियल, शाल एवम् स्मृति चिन्ह भेंट कर मुख्य अतिथि श्री वी.सी. जैन भाभ को सम्मानित किया। मुख्य अतिथि श्री वी.सी. जैन भाभू ने पांच लाख रुपये गुरु चरणों में उनकी भावना अनुसार जिस कार्य के लिए कहेंगे वहां पर दिए जाएंगे। श्री वी.सी. जैन भाभू के नेतृत्व में बाहर से आए हुए गणमान्य व्यक्तियों ने सामूहिक क्षमा याचना उत्तर भारत के सभी श्री संघों की ओर से गुरु चरणों में की, अपने संदेश में श्री वी.सी. जैन भाभू ने विभिन्न शहरों से आए हुए लोगों को क्षमायाचना का महत्व बताया। भोजन कमेटी के कन्वीनर श्री सुभाष कुमार जैन नारोवाल श्री सुनील कुमार जैन, श्री सुदेश कुमार जैन एवम् श्री संघ के उप-प्रधान श्री महिन्द्र पाल जैन को महोत्सव महासमिति की ओर से तिलक, हार, नारियल एवम् शाल के साथ सम्मानित किया गया। श्री सरदारी लाल शिखर चंद जैन जी मुरादाबाद वालों ने 3 लाख 51 हजार रुपये की बोली देकर गच्छाधिपति विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. को काम्बली बहोराने का लाभ प्राप्त किया। यह काम्बली कार्तिक पूनम वाले दिन समस्त जैन समाज की ओर से बहोराई जायेगी। प.पू. गच्छाधिपति जी ने जानकारी देते हुए फरमाया कि मेरी भावना को स्वीकार कर पूर्ण करते हुए उत्तरी भारत के जैन समाज की तरफ से गुरुवर विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष के समापन पर तपागच्छ के सभी गच्छाधिपति, आचार्य भगवन् एवं श्री मदन लाल जी 'मुरादाबाद वाले' द्वारा स्मारिका विमोचन गुरुदेव को स्मारिका भेंट करते लाभार्थी परिवार [248 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 1507 Jan Education Intematonal Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमणवृंद को काम्बलियां भेट स्वरूप भेजी गई है और प्रत्येक श्रमणी श्री जी को आधा किलो ऊन भेंट स्वरूप भेजी गई है। चौमासे की समाप्ति पर सभी स्थानीय श्रीसंघ अपने-अपने क्षेत्र में विराजमान श्रमण एवं श्रमणीवंद को यह भेंट प्रदान करेंगे। इसके उपरान्त श्री रघुवीर कुमार जी ने गुरुचरणों में संक्रान्ति भजन से पूर्व एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल इस प्रकार थे : “सुना है गुरु जी बीकानेर जा रहे है। खता क्या हुई छोड़कर जा रहे हो....." संक्रान्ति भजन 'श्री वल्लभ गरु जी के चरणों में मैं नित उठ शीश नवाता हूं, मेरे मन की कली खिल जाती है'...... रघुवीर जी द्वारा गाया गया। प्रातः-दोपहर-सायं के प्रीतिभोज के लाभार्थी परिवार श्री बाबू राम मोती लाल इसके पश्चात् प.पू. गच्छाधिपति श्री जी द्वारा प्रवचन दिया गया। विमल प्रकाश जैन सराफ परिवार अम्बाला का बहुमान उन्होंने अपने प्रवचन में कहा "मैं यहां देने के लिए आया हूं लेने वाला चाहिए" अगर हम विचारों की विभिन्नता में रह जाएंगे तो समय हमारी राह नहीं देखेगा। म.सा. ने कहा “दुनिया झुकती है झुकाने वाला चाहिए" अगर कोई सही मार्गदर्शन करने वाला हो, भक्तजन अपने आप पधार जाते हैं। अन्त में गुरुदेव ने कहा कि इस अर्द्धशताब्दी स्वर्गारोहण वर्ष में जिन-जिन भाई-बहिनों ने सहयोग दिया है उन सभी का अभ्युदय हो, अभ्युदय हो, अभ्युदय हो।" संक्रान्ति नाम प्रकाश करने के पश्चात् प.पू. गच्छाधिपति जी ने पुरुषों को और मुनि श्री लक्ष्मी रत्न विजय जी ने महिलाओं को सर्वकार्य सिद्ध मांगलिक वासक्षेप प्रदान किया। संक्रान्ति नाम प्रकाश पश्चात् गुरुदेव द्वारा वासक्षेप-प्रक्षेपण इस प्रकार श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष का त्रिदिवसीय समापन समारोह दिनांक 15-16-17 अक्तूबर को प.पू. गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. की शुभ सद्प्रेरणा एवं पावन व तारक निश्रा में अम्बाला शहर के एस.ए. जैन सी. सै. स्कूल में बड़े हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न हुआ। 18 हजार फुट तक फैले पण्डाल से बाहर तक बैठे हुए देश-विदेश से पधारे हजारों गुरुभक्तों ने समारोह का आनंद लेते हुए गुरु भक्ति में अपनी आस्था को प्रकट किया। भोजन की व्यवस्था इतनी सुचारू रूप से चली कि लगभग दो घंटे में सभी ने भोजन ग्रहण कर लिया। आवास व्यवस्था इतनी सुन्दर थी कि किसी भी गुरुभक्त को कोई असुविधा महसूस नहीं हुई। यह सब परम उपकारी गुरुदेव के आशीर्वाद का ही परिणाम था। मुनि श्री लक्ष्मी रत्न विजय जी द्वारा महिलाओं को वासक्षेप-प्रक्षेपण तत्पश्चात् महामंत्री श्री आनन्द कुमार जैन ने समारोह में पधारे | सभी महानुभावों का आभार व्यक्त किया। समारोह में आवास व्यवस्था के सफल संचालन हेतु श्री आत्म-वल्लभ जैन युवक मण्डल, अम्बाला शहर तथा भोजन व्यवस्था में भोजन कमेटी, युवक मण्डल, वल्लभ सेना, महिला मण्डल, श्राविका संघ तथा जैन मिलन के सदस्यों के सहयोग व प्रबन्ध का धन्यवाद किया गया। इस सारे समारोह के आयोजन में सामूहिक रूप से अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति के साथ-साथ श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ अम्बाला शहर के कार्यकारी सदस्यों एवं इनके सहयोगी मण्डलों तथा संस्थाओं का अमूल्य सहयोग प्राप्त रहा। आज के समारोह के मुख्य अतिथि श्री वी.सी. जैन भाभू ने आयोजन की सफलता के लिए इन सभी संस्थाओं का सम्मान सहित आभार प्रकट किया। 1501 249 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका of Private & Personal use only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रंगोली सदियों से रंगोली बनाने की प्रथा चली आ रही है। रंगों के तालमेल से आकृति एवं कार्यों के अनुरूप चित्र में रंगों को भरा जाये, उसे 'रंगोली' कहते है। व्यक्ति या महापुरुष के द्वारा कर्म क्षेत्र में किये गये महान कार्यों को सजीव रूप देने के लिए तथा मानस पटल पर संस्मरणों को ताजा करने के लिए रंगों के द्वारा विभिन्न आकृति वाले चित्र बनाये जाते हैं। देश, काल, वातावरण में भूतकाल में महापुरुषों द्वारा किये गये अद्वितीय कार्यों को जगत के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए चित्रों में विभिन्न रंगों के माध्यम से जान डाली जाती है, चित्र इस प्रकार के बन जाते हैं कि मूक होकर भी किये गये कार्य एवं घटना का विस्तार के साथ वर्णन कर देते हैं। ये चित्र देखने वाले को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। रंगों के इसी गुण का लाभ लेते हुए, इसके द्वारा आकृतियों का निर्माण किया जाता है ताकि प्रदर्शित घटना का सजीव वर्णन प्रस्तुत हो सके। प.पू. वर्तमान गच्छाधिपति जी ने गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी महाराज के जीवन चरित्र में से समाज के लिए किये गये अनन्य अद्वितीय उपकार आदि महत्त्वपूर्ण घटित घटनाओं को रंगोली के द्वारा प्रदर्शित किया है, जो गुरुदेव के महान कार्यों का वर्णन करते प्रतीत होते हैं। रंगोली के इन चित्रों का निर्माण प.पू. गच्छाधिपति जी ने स्वयं अपने हाथों से किया। चित्रों में इतनी सजीवता एवं आकर्षण है, कि देखते ही अतीत वर्तमान में परिवर्तित हो जाता है, समस्त घटनाएं ताजा बन कर आँखों के सामने आ जाती हैं। रंगोली के द्वारा बनाए गए चित्रों को छाया चित्रों के माध्यम से प्रकाशित किया जा रहा है, ताकि जनसमुदाय, समाज एवं गुरुभक्त परम श्रद्धेय गुरुदेव के अनन्य उपकारों से अवगत हो सकें तथा उन महान आदशों को अपने जीवन में उतार कर मनुष्य जन्म का लक्ष्य प्राप्त कर सकें। 1. बड़ोदरा में आत्म गुरु का आवागमन एवं वल्लभ गुरु का छगन के रुप में मिलन 2. वल्लभ गुरु की राधनपुर में दीक्षा 3. वल्लभ गुरु द्वारा स्थापित संस्था महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई 4. मुम्बई में लाखों की तादाद में श्मशान यात्रा 250 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका SUITEDuratioinintentialional PEEDESIRSCORN Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jan Education International 113308 For Private & Personal use only संस्मरण-संकलन स्मारिका विजय वल्लभ धर्मशाला के बाहर नगर में हिंसा का नग्न तांडव, कत्लेआम का दृश्य। हिन्दुस्तान विभाजन के समय गुरू वल्लभ एवं साध्वी देव श्री जी की निश्रा में जैन, जैनेत्तर जन को एकत्रित करके लाने का गुजरांवाला समाधि स्थल पर मिलट्री अफसर का मिलन। गुजरांवाल (पाकिस्तान) में चर्तुविध संघ की रक्षा हेतू पहरा देते हुए गणमान्य श्रावक। 251 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रावक और उसका धर्म कार्यदक्ष आ. श्रीमद् विजय जगत्चन्द्र सूरि जी म. जैन दर्शन में धर्म को प्राप्त करने के दो प्रकार के मार्ग बताए गये हैं, प्रथम साधु धर्म और द्वितीय गृहस्थ धर्म । दोनों रास्ते अलग-अलग हैं ; परंतु लक्ष्य दोनों का एक ही है और यह भी सत्य है कि साधु हो या गृहस्थ बिना धर्म के आचरण के किसी का कल्याण नहीं होता। साधु सांसारिक प्रपंचों को छोड़ देता है इसलिए न तो उसे द्रव्य की आवश्यकता है, न घर-परिवार की, अतः उसके लिए हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह आदि सर्वथा त्याज्य होते हैं। यह जब कि गृहस्थ के लिए 'सर्वथा' त्याज्य नहीं है। इसीलिए जैन दर्शन ने दो प्रकार के धर्म बताए हैं। जो लोग जैन धर्म का पालन करते हैं, उन्हें जैन परिभाषा में “श्रावक" और "श्राविका" कहा जाता है। इसका अर्थ यह नहीं कि जैन धर्म का पालन केवल बनिये ही कर सकते हैं। इसका पालन किसी भी जाति का या वर्ग का व्यक्ति कर सकता है ,चाहे वह ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो या शुद्र हो। वे भी “श्रावक" और "श्राविका" , कहलाने के अधिकारी हो सकते हैं। भगवान महावीर स्वामी के मुख्य दस श्रावक थे, उनमें कुछ कुंभकार थे, कुछ कणबी (आंखों में अगर मुस्कान है। थे। श्रावक का अर्थ है श्रवण करना, हितकर वचन सुनना अर्थात् कल्याण के मार्ग पर चलने के लिए जो तत्पर रहता तो इंसान तुमसे दूर नहीं | है वह श्रावक है। और वह कोई भी हो सकता है। साधुओं के लिए जैसे पांच महाव्रत हैं ,वैसे ही। पाँवों में अगर उड़ान है श्रावकों के लिए बारह व्रत हैं। यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार आधि (मानसिक कष्ट) -व्याधि (शारीरिक कष्ट)। | तो आसमान तुमसे दूर नहीं और उपाधि (सांसारिक कष्ट) से भरा हुआ है। उसमें फंस कर मनुष्य दुख झेलता है और दुख भूलों का परिणाम है। । शिखर पर बैठकर मनुष्य जब अपने कर्त्तव्य से पतित हो जाता है, तब पाप या भूल करता है और इसीलिए वह दुखी होता है। शास्त्रकारों विहग ने यही गीत गाया ने यम-नियम का विधान इसलिए किया है कि मनुष्य अपने कर्तव्य-पथ पर चलता रहे और लक्ष्य को प्राप्त करे। गृहस्थों | श्रद्धा में अगर जान है के लिए बारह व्रतों का विधान इसलिए है कि उनकी लोभवृत्ति कुछ कम हो, आधि-व्याधि-उपाधि के बीच भी वह तो भगवान तुमसे दूर नहीं/ सुखी जीवन बिता सके। इन व्रतों का यही लक्ष्य है। इन बारह व्रतों में प्रारंभ के पांच व्रतों को “अणुव्रत" कहा जाता है। "अणु" का अर्थ है छोटा। साधुओं की अपेक्षा से गृहस्थों के महाव्रत छोटे और अल्प होते हैं। छह से आठ तक के व्रतों को "गुणव्रत" कहा जाता है क्योंकि वे पांच अणुव्रतों के सहायक होते हैं और अन्तिम चार को शिक्षाव्रत कहा जाता है क्योंकि वे प्रतिदिन अभ्यास करने योग्य होते हैं। बारह व्रत यहाँ बारह व्रतों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। 1. स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत : इसमें स्थूल-प्राण-अतिपात-विरमण-व्रत शब्द हैं। इसका अर्थ यह है कि स्थूल जीवों की हिंसा से दूर रहना। जीवों के दो भेद हैं (1) त्रस और (2) स्थावर। पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय इन पांच एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा से गृहस्थ बच नहीं सकता। इसलिए उसे स्थूल त्रस जीवों की हिंसा से बचना चाहिए। गृहस्थ को संकल्प पूर्वक कोई हिंसा नहीं करनी चाहिए। 2. स्थूलमृषावाद विरमण व्रत : होना तो यह चाहिए कि श्रावक को सूक्ष्म असत्य भी नहीं बोलना चाहिए परंतु व्यवहार जगत में यह संभव नहीं इसलिए गृहस्थ को स्थूल मृषावाद-असत्य का त्याग करना चाहिए। क्रोध, लोभ, भय और हास्य के कारण व्यक्ति झूठ बोलता है और इन चारों को छोड़ना कठिन है। इसीलिए व्यक्ति को सदा जागृत रहना चाहिए। 3. अदत्तादान विरमण व्रतः न दी हुई चीज-वस्तु को ग्रहण करना अदत्तादान है। व्यावहारिक भाषा में इसे “चोरी" कहा जाता है। सूक्ष्म चोरी का त्याग न करने वाले गृहस्थ को कम से कम स्थूल चोरी का त्याग करना चाहिए। रास्ते में पड़ी हुई चीज उठा लेना, जमीन में गड़े हुए धन को निकाल लेना, किसी की रखी हुई वस्तु को बिना पूछे प्रयोग करना, दान-चोरी (कस्टम चोरी) कम लेना, अधिक देना, अधिक लेना-कम देना ये सभी चोरी के स्थूल प्रकार हैं, गृहस्थ को इससे बचना चाहिए। 4. स्थूल मैथुन विरमण व्रतः गृहस्थ को स्वदारा संतोषी होना चाहिए और परस्त्री का सर्वथा त्याग करना चाहिए। अपनी विवाहिता स्त्री को छोड़कर, वेश्या, विधवा या किसी कुमारी से शारीरिक सम्बंध नहीं रखना चाहिए। इन्हें अपनी माता और बहन तथा पुत्री मानना चाहिए। इसी प्रकार श्राविकाओं को भी अपने पति को छोड़कर किसी अन्य पुरुष से सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए। “स्वदारा संतोष" का अर्थ यह है कि अपनी स्त्री से भी मर्यादित ही सम्बन्ध रखना चाहिए। अपनी स्त्री के साथ भी मर्यादा का भंग होता है तो व्यभिचार गिना जाता है। इसलिए गृहस्थ को स्वदारा संतोषी और परस्त्री का त्याग होना चाहिए। 252 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only 1500 Jain Education Internallonal Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15. स्थूल परिग्रह विरमण व्रतः सांसारिक पदार्थों के प्रति जितना ममत्व अधिक होगा, उतना ही असंतोष, अविश्वास और दुःख होगा। अत्यधिक ममत्व ही दुख का कारण है। इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है। इन असीम इच्छाओं को सीमित कर देना, मर्यादित करना ही अपरिग्रह है। गृहस्थ को चाहिए कि वह परिग्रह सीमित करें। इससे समाजवाद को बल मिलता है। जितना परिग्रह कम होगा उतना ही जीवन सुखी और संतोषी होगा। 6. दिग्वत: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण आदि दिशाओं में जाने की मर्यादा रखना अर्थात् एक हजार, पांच हजार आदि मील से अधिक न जाना, दिव्रत है। यह व्रत लोभवृत्ति को भी अंकुश में रखता है और अनेक प्रकार की हिंसा से बचाता है। 17. भोगोपभोग विरमण व्रत : भोगोपभोग में दो शब्द हैं : भोग और उपभोग। जो वस्तु केवल एक ही बार काम में आती है, वह भोग्य वस्तु है और जो अनेक बार काम में आती है उसे उपभोग कहा जाता है, जैसे अन्न, पानी, विलेपन आदि ये चीजें भोग हैं और दूसरी बार काम में नहीं आती। घर, वस्त्र गहने आदि उपभोग है क्योंकि ये बार-बार काम में आती हैं। इन चीजों का परिणाम निश्चित कर लेना चाहिए। इन चीजों का परिमाण हो जाने पर तृष्णा पर अंकुश आता है। इच्छाओं का निरोध होता है, चित्त की चंचलता कम होती है। 18. अनर्थ दंड विरमण व्रत : बिना प्रयोजन के पाप लगने की क्रिया को अनर्थदंड विरमण व्रत कहा जाता है। व्यर्थ ही दूषित विचार करना, दुर्ध्यान करना, पापोपदेश देना, अनीति, अन्याय असत्य की प्रवृत्ति करना, किसी हत्यारे को प्रोत्साहन देना, तमाशा देखना, मजाक उड़ाना ये सब अनर्थ दंड अर्थात् निरर्थक आचरण के कार्य हैं। गृहस्थ को इन से दूर रहना चाहिए। 19. सामायिक व्रतः सामायिक का अर्थ है किसी एकान्त स्थान में अड़तालीस मिनट समतापूर्वक बैठना। इस सामायिक में बैठकर व्यक्ति को आत्मचिंतन करना चाहिए, स्वाध्याय और मनन करना चाहिए, मोह और ममत्व को दूर करना चाहिए, समभाव वृत्ति को धारण करना चाहिए। चाहे कितना ही उपद्रव हो पर उद्विग्न न होना चाहिए। संक्षेप में कहें तो मन, वचन और काया को अशुभ वृत्तियों से हटाकर शुभ ध्यान में लगाना चाहिए। 10. देशावकासिक व्रत : “दिग्वत" में दिशाओं का जो परिणाम किया गया है, वह यावज्जीवन का है। उसमें क्षेत्र की विशालता रहती है। परंतु "देशावकासिक व्रत" में क्षेत्र की सीमितता रहती है। दस मील जाना या पांच मील जाना या दो मील जाना व दस सामायिक के साथ सुबह शाम का प्रतिक्रमण करना "देशावकासिक व्रत" कहा जाता है। 11. पौषधव्रतः धर्म को जो पुष्ट करता है, उसका नाम पौषध है। बारह, चौबीस, या जितनी इच्छा हो उतने घण्टे तक सांसारिक प्रवृत्तियों को छोड़कर धर्मस्थान में धर्म क्रिया करते हुए साधुवृत्ति में रहना पौषध माना जाता है। जितने समय का पौषध हो, उतने समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, स्नानादि श्रृंगार का त्याग करना चाहिए, प्रासुक पानी का प्रयोग करना चाहिए और यथाशक्ति उपवासादि तप करना चाहिए। 12. अतिथि संविभाग व्रत : जिन्होंने लौकिक पर्व-उत्सवादि का त्याग कर दिया है, वे अतिथि हैं अर्थात् जिन्होंने आत्मा की उन्नति के लिए गृहस्थाश्रम का त्याग कर दिया है, स्व -पर कल्याणकारी संन्यास मार्ग जिन्होंने ग्रहण किया है, ऐसे मुमुक्षु महात्माओं का अन्न-पानी और वस्त्रादि आवश्यक चीजों से स्वागत-सत्कार करने का नाम अतिथि संविभाग व्रत है। इस व्रत में ऐसी प्रतिज्ञा की जाती है कि जब तक अतिथि अर्थात् साधु या साधर्मिक भाई खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करेंगे तब तक मैं भी ग्रहण नहीं करूँगा और उतनी ही चीजें खानी चाहिए, जितनी कि साधु महाराज बहोरते हैं। प्रातःकाल उठते ही इस व्रत को धारण कर लेना चाहिए और किसी को बताना नहीं चाहिए। उपर्युक्त पांच अणुव्रतों को चार मास, एक मास, बीस दिन या एक रात के लिए भी ग्रहण किए जा सकते हैं। इन बारह व्रतों के पालन से गृहस्थ अनेक बुरे कार्यों से पापाचरण से बच जाता है। इन बारह व्रतों को अंगीकार करने से पहले सम्यक्त्व प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक होता है। सम्यक्त्व देव, गुरु और धर्म पर पूर्ण और अटल श्रद्धा विश्वास रखने पर ही प्राप्त होता है। चौदह नियम बहुत सी चीजें मनुष्य को प्रतिदिन काम आती हैं। उन सब चीजों को चौदह भागों में विभक्त किया गया है। प्रातःकाल उठते ही मनुष्य को उन चीजों को 253 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका , Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निश्चित कर देना चाहिए कि आज मैं इतनी चीजों का प्रयोग करूँगा, शेष का त्याग। वे चौदह नियम इस प्रकार हैं :1. सचित्त : मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति में जीव हैं। जिसमें जीव होता है उसे सचित्त कहा जाता है। इसीलिए निश्चित करना चाहिए कि आज मैं कितनी मिट्टी का प्रयोग करूँगा। पीने या स्नान करने के लिए कितने पानी का प्रयोग करूँगा। चूल्हा, गैस, हीटर आदि का कितना और कितनी बार प्रयोग करूँगा। पंखे आदि कितने और कितनी बार प्रयोग करूँगा। हरी वनस्पति का सब्जी के लिए एक या दो से अधिक प्रयोग नहीं करूँगा। 2. द्रव्यः खाने पीने की चीजों की संख्या निश्चित करना। 3. विगय: मांस, मदिरा, शहद और मक्खन ये चार महाविगय हैं। इनके सेवन से इन्द्रियों में विकार उत्पन्न होता है। अतः इनका सर्वथा त्याग करना चाहिए। घी, तेल, दूध, दही और गुड़ या शक्कर तथा इनसे बनी चीजें मिष्ठान एवं तली हुई चीजों का एक-दो-तीन या चार यथाशक्ति त्याग करना चाहिए। 4. वानह : चप्पल, जूते, सैंडल, बूट और मोजे की संख्या निश्चित करना। 5. तंबोल: पान, सुपारी, इलायची, मुखवास आदि की संख्या निर्धारित करना। 6. वस्त्र: कपड़े की संख्या निश्चित करना। 7. कुसुमः फूलों की संख्या का परिमाण करना। 8. वाहन :- गडूडी, कार, स्कूटर, तांगा, हवाई जहाज आदि की संख्या निश्चित करना। 9. शयन : पलंग, बिस्तर, कुर्सी, गद्दी, तकिया आदि की संख्या निर्धारित करना ? 10. विलेपन : तेल, अत्तर, क्रीम, चन्दन, साबून आदि की संख्या निश्चित करना। 11. ब्रह्मचर्य : स्वस्त्री और स्वपति के लिए भी मर्यादा निश्चित करना। 12. दिशि: अलग-अलग दिशाओं में जाने के लिए मील की संख्या निश्चित करना। 13. स्नान : दिन में कितनी बार स्नान करेंगे। 14. भत्त: भोजन, पानी, दूध और शरबत आदि कितने प्रमाण में लेंगे। गृहस्थ का दिनकृत्य गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों का आधार है। इसलिए यह जितना संस्कारी, सदाचारी, पवित्र और सुदृढ़ होगा उतना ही व्यक्ति सुखी और संतोषी होगा। सूर्योदय से पहले जगना चाहिए। देवदर्शन, गुरुवंदन, प्रतिक्रमण और सूर्यास्त से पहले भोजन कर लेना चाहिए। रात्रि भोजन कभी नहीं करना चाहिए। अहिंसा की दृष्टि से और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी प्रत्येक व्यक्ति को रात्रि भोजन का सर्वथा त्याग करना चाहिए। गृहस्थ को प्रतिदिन का कार्यक्रम इस प्रकार निर्धारित करना चाहिए कि उसकी व्यावहारिक दुनिया को और आत्मा दोनों का लाभ हो। गृहस्थ के छह कर्तव्य इस प्रकार हैं। इन्हें प्रतिदिन करना चाहिए। 1. देवपूजा 2. गुरुसेवा 3. स्वाध्याय 4. संयम 5. तप 6. दान शुद्धि पत्र पृ.सं. 177, श्री वल्लभ निर्वाण कुण्डली गायन पृ.सं. पंक्ति 20 22 3 22 17 3 के. गु. 4 चं. 2 शु.श.बु.7 अशुद्ध शुद्ध वि.स. 1708 (ई.सन्1652) वि.स. 1709 (ई.सन्1652) वि.स. 1952 (ई.सन्1785) वि.स.1852(ई.सन्1795) वि.स. 1977 (ई.सन्1920) वि.स. 1877 (ई.सन्1820) वि.स. 1872 (ई.सन्1922) वि.स. 1879 (ई.सन्1822) 2021 वि.स. 2021 लुधियाना सुपुत्र श्री सुरिन्द्र कुमार जैन, दिल्ली 12 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग 12 वर्ष से 20 वर्ष आयु वर्ग X म.रा.9 27 20 77 11 135 11 254 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परम पूज्य गुरुदेवी का गुणगान पुष्प जैन पाटनी गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे 1. विजयानंद वल्लभ जय होवे, समुद्र गुरु इन्द्र जय होवे पट्टधर रत्नाकर जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे 2. प्रभु वीर शासन पाया तूं, दुर्लभ संयम अपनाया तूं तेरे संयम की जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे 3. पाँचों इन्द्रियों का स्वामी तूं, नव काम गुप्ति का वामी तूं कषाय चउ जीतने वाले, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे । गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे 4. पंच महाव्रतों को धारे , पंच विर्याचार को पाले लूँ अठ प्रवचन माता के रखवाले, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे 5. परमानंद पूर्ण ज्ञानी , छत्तीस गुणों का स्वामी तूं संसार मार्ग का वामी तूं, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे 6. सर्वविरति योग को पाया है, तूं मोक्ष पथ अपनाया है तेरे मोक्ष मार्ग की जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे 7. तेरे ज्ञान की खुशबू छाई है, 'पुष्प' ने भी सुगन्ध पायी है, इस सम्यक्ज्ञान की जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे, गुरुदेव तुम्हारी जय होवे 4501 255 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पालीताणा साधनपुर विजय वल्लभ जोधपुर अहमदाबाद तथा धमाका रक्षण उमेश जैन प्रधान मुम्बई पुणे बीकानेर बड़ोदरा उज्जैन कार्यिण सेना (उत्तरी होशियारपुर दिल्ली बैंगलो चण्डीगढ़ हैदराबाद हरिद्वार कोयम्बटूर मुरादाबाद विजयवाड़ा गूँज उठा विजय वल्लभ का नाम पूरे भारतवर्ष भर में ‘विजय वल्लभ सेना ने किया धमाल' कलिकाल कल्पतरु, अज्ञान तिमिर तरणि, भारत दिवाकर, पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष 2003-2004 में विजय वल्लभ सेना द्वारा संचालित विभिन्न कार्यक्रम सम्पूर्ण भारतवर्ष में विजय वल्लभ रथयात्रा का कुशल संचालन विजय वल्लभ सेना (उत्तरी भारत) ට0 स्थापना तिथि : प.पू. पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की पुण्य तिथि सन् 2002 स्थापना प्रेरक : प.पू. वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. उद्देश्य : धर्म तथा धर्मी का रक्षण जैन धर्म-दर्शन-साहित्य के शिक्षण हेतु पुस्तकों का प्रकाशन भारतवर्ष के विभिन्न नगरों के जैन स्कूलों में जैन धर्म-दर्शन- साहित्यइतिहास के शिक्षण हेतु एक पीरियड निश्चित किया जा रहा है तथा इस पीरियड में शिक्षण हेतु पुस्तकों का प्रकाशन में सहयोग किया जा रहा है, यह पुस्तकें प.पू. वर्तमान गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. द्वारा लिखित हैं। विजय वल्लभ सेना को सकल जैन समाज का सहयोग निरन्तर मिल रहा है। तथा 'धर्म व धर्मी' के रक्षण हेतु भविष्य में भी सहयोग अपेक्षित है। प्रो. राजेन्द्र कुमार जैन अमृत जैन सचिव कोषाध्यक्ष विधिकारक टीम वर्तमान गच्छाधिपति जी द्वारा प्रशिक्षित विजय प.पू. वल्लभ सेना की विधिकारक टीम ने उत्तर भारत के विभिन्न नगरों लुधियाना, अम्बाला, जालंधर, यमुनानगर, मेरठ, मुरादाबाद, कपूरथला, नकोदर, जीरा आदि नगरों के श्री जिनमन्दिरों में अठारह अभिषेक, श्री भक्तामर महापूजन करवा कर धर्म के नए आयाम स्थापित किए हैं तथा और भी आगे बढ़ने की भावना है। दिनेश जैन उपप्रधान राजेश जैन उपप्रधान संजीव जैन सह-सचिव नीरज जैन सह कोषाध्यक्ष Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TRULY SUCCESS AND DINESH ARE IRREPLACEABLE AS PER NEW I.I.T. SYLLABUS India's No.1 Selling Competitive Books For C.B.S.E. and A.L.E.E.E. main examinations as per new syllabus JUST RELEASED, THE REVISED EDITIONS DRESH SUBJECTIVE MATHEMATICS SUBJECTIVE PHYSICS BIOLOGY Screening Mathematics 1.1.T. ma Screening CHEMISTRY 1.I.T. Screening PHYSICS L.I.T. Bergen ESH SUBJECTIVE CHEMISTRY Part-236Rs. 4417 Rs. 471/ Part-11 310/India's No. 1 Selling Competitive Books Revised Editions as per new syllabus for state medical, state engineering entrance, C.B.S.E. and A.L.E.E.E. screening exams. DINESH Find out for Many, Many...... Unique Features in these books Toppers Choice - YEAR AFTER YEAR 1st C.B.S.E. - 2004 DINES DINE DINESH OBTENE MATHEMATICS OHUECTIVE OBJECTIV CHEMISTRY BIOLOGY Rs. 56814 Rs. 698/ Rs. 731 Rs. 612-1 For Maharashtra MH-C.E.T. Recommended by MH-C.E.T. 2003 and 2005 and 2006 Examinations 2004 toppers Dinesh objective books are par excellent. I studied Dinesh Objective Physics, Chemistry and Biology. They explain all the concepts lucidly and briefly. The selection of questions is up to date. Really. Dinesh Series is the most potent for the preparation of any competitive exam. Shena Aegalwa SHENA AGGARWAL 1st A.I.L.M.S. - 2003 I have studied Dinesh Objective Physics, Chemistry and Biology. I have found Dinesh Biology very knowledgeable and essential for any candidate's success. MH-C.E.T. MH-C.E.T. MH-C.E.T. MH-C.E.T. MAHARASHTRA > MAHARASHTRA MAHARASHTRA Brish Pabra BRIJESH TAKKAR 3rd MH-C.E.T. 1st MH-C.E.T. 2004 2003 d he Paribal Janda Barredor VER 1st P.M.T. (Delhi) - 2003 India's No. 1 Selling Text Books (Strictly as per new C.B.S.E. syllabus for 2005 Examinations) I have studied Dinesh's Objective Physics, Chemistry & Biology. These are excellent books which provide excellent information along with an exhaustive coverage of MCQ's, many of which appear in the entrance exams. Hola ECO KARTAVYA SHARMA New Millennium Fhysics A Z BIOLOGY COMPANION CHEMISTRY MATHEMATICS AND COMMENTS OF MANY TOPPERS OF VARIOUS 2004, 2003, 2002, 2001, 2000 AND PREVIOUS YEAR EXAMS LISTED IN OUR BOOKS Visit us at our website www.s.dineshandco.com Class XI Class XII RS. 4957 Class XI Rs. 495/. ll class XII Rs. 441/- | Class XI Rs. 441/-Il Class XII RS. 471/ Class XI A 253- 45-1046 Rs 4971-Class XI A254-68C63 S. Dinesh & Co. HO Hindi Medium Books BANK OF QUESTIONS SERIES (New Syllabus) Bakiones P. O. Box No. 813 Circular Road, Jalandhar City-144008 (O) 0181-2280208, 5007268, (R) 2250979, 2201176 Fax: 0181-2281980 e-mail: dinesh 97@jla.vsnl.net.in website: www.sdineshandco.com Gateway Brilliant Success in Physics COMPANION CHEMISTRY (2017 ) Saw Ile Butt Sex Gateway Brilliant Success in Economics B.O. Biology Nuwe 4265, Gali No 3, Mohalla Panjabian, Ansari Road, Darya Ganj, New Delhi-110002 011-23290057, 58, 59 F.No. 107, Sai Tirumala Towers, St. Paul's School Lane, Hyderguda, Hyderabad-29 040-55680691, 92 C.P. Physics XII RS. 100 Chemistry XII Rs. 100Physics X Rs. 333- Bology Xil Rs. 80 Physics XII Rs. 171 Chemistry XI Rs. 333- Mathematics Xil Rs. 120 Chemistry XII Rs. 200/- Business Studies Xil Rs. 130 Physics XII In-Press | Physics XI Rs. 189-Bology XII RS. 1101- Economics XI Rs. 207Chemistry XII In-Press | Chemistry XI Rs. 234- Mathematics Xil Rs. 2101 | Accountancy XII Rs. 162/ 41/37B, Mullassery Canal Road, East End, Ernakulam, Cochin-682011 0484-3110134, 3941453 Send Rs. 100 as advance at our Jalandhar office for supply by V.P.P. www.jainelibrarypg Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरु चरणों में कोटि-कोटि वन्दन् ! होशियारपुर के भगवान वासुपूज्य जिन-मंदिर की गुरु वल्लभ द्वारा स्तुति सेवो भवि वासुपूज्य जिन- चंदा, यह तो शिव-सुख फल का है कंदा ।। अंचली वासुपूज्य जिन मूरत सूरत, देखत मन हुलसंदा । बार बार शचीपति जस जननी, पूजत अति हर्षंदा ।। 1 नगर हुशियारपुरे में श्रावक, गुज्जरमल, धनीन्दा । वल्लभ आतमराम सुहंकर, मंदिर हेम जड़ींदा ।। 2 Khushi Ram Raj Pal Jain Kanak Mandi, Hoshiarpur Ph: 01882-222824 Khushi Ram Govardhan Dass Jain New Graim Market, Hoshiarpur Ph: 01882-248112 Lect SanJee Compotess Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभु भक्ति कबीर और वल्लभ सूरि ने ईश्वर-मिलन के लिए प्रेम पर बल दिया। गुरु वल्लभ ने प्रेम की महिमा में कहा : जो मनुष्य प्रभु-भक्ति में मग्न हो जाता है, उसके हृदयाकाश में आनन्ददाता जिनेन्द्रप्रभु चन्द्रमा के समान शोभित हो जाते हैं। उसके भव-फन्द और कर्म-बन्धन टूट जाते हैं। मुख शरद पूनम को चन्दा, भक्त चकोर मन होत अनन्दा। - श्री आदिनाथ जिनस्तवन, वल्लभ काव्य सुधा : पृ. 17 कबीर कहते हैंपिंजर प्रेम प्रकासिया, जाग्या जोग अनन्त। संसा छूटा सुख भया, मिल्या पियारा कन्त।। SARDARI LAL SHIKHAR CHAND JAIN MURADABAD Sandeep Uaina Cannolevn . Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RED® HILL www.cheindia.com OUR RANGE OF PRODUCTS : VESTS - PANTIES - FRENCH STYLES BRIEFS THERMAL INNERWEARS - FLEECE INNERWEARS - T-SHIRTS Lairy WORLD CUP WINTER EASY FLAMES REVOLUTIONARY THERMALS Daisy Soft Inner Wear for Winters THERMAL Ρ Α Ν Τ Ι Ε s HOSIERY ТТА Но, CHE Manufactured & Marketed in India By : CALCUTTA HOSIERY EMPORIUM B-1-1089, Bindraban Road, Civil Lines, Ludhiana - 141001. Tel.: 2440472, 2447199, 2447215 Fax : 91-161-2441370 GROUP Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुदेव ने कहा था : "भारत की आजादी तभी स्थिर रह सकती है, जब हिन्दू , मुस्लमान, सिक्ख आदि एक होकर रहें। हमें बलिदान देकर भी अपनी एकता को कायम रखना होगा। यदि गांव-गांव में एकता हो जाएगी तो भारत का विश्व शान्ति के कार्य में महत्त्वपूर्ण स्थान होगा। जात-पात के संस्कार, जन्म से नहीं अपितु जिस समाज में बच्चा पनपता है, उसी से लेता है। हम सब भारत में उत्पन्न होने के नाते भारतीय हैं, एक हैं। हमें सच्चा मानव एवं भारतीय बनना है।" EXPLORES WITH AN OPEN IMAGINATION GIRNAR INTERNATIONAL Manufacturers of All kinds of Toys, Dolls & Educational Toys, 18, First Floor, Kamal Building Swadeshi Market, Sadar Bazar, Delhi-110006 Ph : (0)23673320-21, (R) 27420468 va10 Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ chiepife arah ! Sanjeev Jain D.C. Fabrics 1111/10, Basant Bagh, Near Shiv puri, post Office, Ludhiana -08, Pho (O) 2740940,2742940,2745840,2748084 (R) 2405251, 2772694 (M) 98140-23340 Manufacturers & Supplers All kind of Knitted Textiles & Hosiery Cloth San leer Uam Compostert monal com www.aneb Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुदेव ने कहा था : “वास्तविक शिक्षा वही है जो चरित्र निर्माण की प्रेरणा दे। शिक्षा से विद्यार्थी शुद्ध एवं आदर्श जीवन वाला बने। उसमें मानवता करूणा और प्राणिमात्र के लिए मैत्री भावना हो। ऐसे विद्यार्थी ही समाज के हीरे होते हैं।' S पुष्पांजलि Ganda Ram Raj Kumar Jain Parveen Kaliwears (Regd.) Mfrs. All kinds of Hosiery & Knitted Cloth 2727, Sunder Nagar, Ludhiana-07 Ph:2607301, 02, 03 E-mail : parveenknit@emmtel.com Paveen Foorles Pvt. Lid. Village Seera, Rahon Road, Ludhiana -07 Ph:2690080,2690180 Saaraaleen Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आध्यात्मिक होली वल्लभ सूरि का भावपूर्ण होली गीत 8 ज्ञान रंग समता पिचकारी, छांटो सुमति नार रे। ज्ञानध्यान तप जप आगी में, अष्ट कर्म को जार रे। दिव्यतेज चिन्मय सिद्ध प्रगटे, आवागमन निवार रे। आतमलक्ष्मी होरी खेले, वल्लभ हर्ष अपार रे॥ मीराबाई ने होली के सुरंग में भक्तजनों को रंग दिया है ! - उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रें। घट के पट सब खोल दिये हैं, लोक लाज सब डार रे। होली खेल पिवर घर आये, सोइ प्यारी पिय प्यार रे। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, चरण कंवल बलिहार रे।। श्रद्धासुमन | It gives us a message "LIVE & LET LIVE" Com ADINATH DYEING AND FINISHING MILLS SPECIALISTS IN : MODERN TECHNOLOGY OF EXPORT ALL FABRIC DYEING DYEING COMPLEX. BAHADUR KE ROAD. LUDHIANA-8 TEL.: (F) 0161-2781523, 5004876 FAX : 0161-2781623 Sanee जैनम् जयति शासनम् Janucation international Farvete Padal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Simply me ORIGINALS Internation Private & Personal Use Only www.SENIO Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं seer (india) A pioneer in Textile Industry for over 3 decades & diversified into home furnishings V.C. Jain Bhabhu Chairman & M.D. Bean Bags Bath Mats Cushion Covers Jute Rugs Wooden Furniture Woollen Dhurries seer (india) Si (A Govt. Recognized Star Export House) 51, Rani Jhansi Road, New Delhi - 110 055 Phone :(91-11) 23527599/ 7735/7567 Fax: (91-11) 23677599, 26849475 E-mail: info@seerindia.com International For Private & Pens latvorg