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मरूनगरी बीकानेर एवं पंजाब केसरी । श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा.
- देवेन्द्र कुमार कोचर, बीकानेर
आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. एक प्रखर ज्योति पुँज के समान थे, जिसकी किरणें समस्त भारत के विभिन्न प्रांतों में बिखरी हुई है। उनके असाधारण व्यक्तित्व का प्रभाव, जैन-अजैन समाज पर समान रूप से पड़ा। उन्होंने 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का सिद्धांत कार्य रूप में परिणत करके दिखाया।
आचार्य श्री असाधारण व्यक्तित्व एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे एक धर्माचार्य, शास्त्र मर्मज्ञ, श्रेष्ट कवि, साहित्य सृजक एवं समाज सुधारक थे। उनकी वर्तमान में, स्वर्गारोहण की अर्द्धशताब्दी मनायी जा रही है। उन्होंने अपने दादा गुरुदेव 'श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी म.सा. (प्रसिद्ध नाम श्री आत्माराम जी म.सा.) के आदेश का पालन कर, पजाब प्रांत को मुख्य कार्यस्थली बनाया, लेकिन अन्य प्राँतों के निवासियों की विनती पर, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात आदि में विचरण किया एवं उल्लेखनीय कार्य किये।
राजस्थान की मरूनगरी बीकानेर वल्लभ नगरी के रूप में जानी जाती है। आचार्य श्री ने इस नगरी को अपनी चरण धूलि से एक से अधिक बार पावन किया।
आचार्य श्री ने बीकानेर में तीन चातुर्मास क्रमशः विक्रम संवत् 1978, 2001 व 2005 किये। उनके चातुर्मास के अन्तर्गत कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य एवं घटनाएँ घटी उनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है :प्रथम चातुर्मास (विक्रम संवत् 1978 चैत्र सुदि मार्गशीर्ष वदि 5) 1. भाद्रपद सुदी 11 को जगद्गुरु हीर सूरीश्वर जी म.सा.
की जयन्ती समस्त भारत में मनाने की शुरूआत, आपने प्रेरणा करके करवायी। यह जगदगुरु के प्रति अपनी
अटूट भावना प्रकट करने का माध्यम बनी। 2. कोचरों में आपस में तनाव के कारण दो धड़े थे। वे
आपके उपदेश से एक हो गये। 3. धर्मात्मा सेठ श्री सुमेरमल जी सुराणा की प्रार्थना से
आपने दो पूजाएँ बनाई। एक पाँच ज्ञान की एवं दूसरी
सम्यग्दर्शन की। 4. चातुर्मास के दौरान, चार मासखमण, पाँच मासखमण,
पंद्रह अट्ठाईया, दौ सौ तेले और दो सौ बेले हए थे।
आपने केवल बारह द्रव्य खाने की छूट रखी थी। द्वितीय चातुर्मास (विक्रम संवत् 2000 फाल्गुन सुदी 14 विक्रम संवत् 2001 मार्गशीर्ष वदि 6) 1. सेठ श्री मूलचन्द जी डागा की सुपुत्री एवं श्री ऋषभ चंद
जी डागा की बहिन ममोल की दीक्षा वैशाख बदी को बड़ी धूमधाम से हुई। उनका नाम मुक्ता श्री जी रखा
गया। 2. भगवान् श्री पार्श्वनाथ जी, कलिकाल सर्वज्ञ श्री
हेमचन्द्राचार्य जगद्गुरु श्री हीर विजय सूरि जी एवं नवयुग निर्माता आचार्य श्री विजयानन्द सूरि जी महाराज की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा, कोचरों की
दादावाड़ी में वैशाख सुदि 6 के दिन कराई गई। 3. आचार्य श्री के उपदेश से श्री श्वेताम्बर जैन आयम्बिल
शाला का उद्घाटन हुआ। 4. चातुर्मास के दौरान 11 पुरुषों ने मासखमण, 15 ने
दस दिन के उपवास व 250 अट्ठाईयाँ हुई। 5. आचार्य श्री के आज्ञानुवर्ती साहित्याचार्य मुनि श्री चतुर
विजय जी महाराज का कार्तिक वदी 14 (17.10.44) को स्वर्गवास हो गया।
विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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