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अयोग्य भाई-बहिनों से बातचीत करें जाने वाले स्थानों पर जावे ? तथा उसका पांच-छः हजार का बिल समय-काल-भाव का यदि हम यह गुरुभक्तों एवं श्रीसंघों से दिलवाए? क्या भावार्थ करते हैं, यही परिभाषा करते हैं, साधु श्राविकाओं को या साध्वियों को तो सर्वथा अनुचित है। गुरुदेव जी ने अकेले कमरे में बैठकर दरवाजा बन्द जिस उद्देश्य से शिक्षण संस्थाए खोली थीं कर बातचीत करे ? जिससे दोनों का आज हम उन उद्देश्यों से बहुत दूर हो पतन हो सकता है। क्या घर-घर जाकर
चुके हैं। भक्तामर स्तोत्र का पाठ करके श्रावकों आओ हम सब (साधु-साध्वी, से पैसा एकत्र करे ? क्या साधु रात्रि को श्रावक-श्राविका) मिल-जुल कर श्री भोजन करें या शाम की गोचरी करते आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्र-रत्नाकर सूरि समय गोचरी छोड़कर गुरुभक्त श्रावकों के झण्डे के नीचे एकत्रित होकर हमारे की बांहों में बांहें डालकर मिलें ?क्या में जो त्रुटियां व कुरीतियां आ गई हैं, साधु श्रावकों को ज्योतिष-तंत्र-मंत्र उनको दूर करें एवं वर्तमान गच्छाधिपति आदि चमत्कार दिखाकर अपने गुरु ___ जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर भक्त बनाए एवं उनसे नाजायज़ लाभ सूरीश्वर जी महाराज साहिब से दिशा प्राप्त करे? क्या साधु गाड़ियों व जहाज़ों निर्देश लेते हुए समस्त चतुर्विध संघ में बैठकर सफर करे? क्या श्रावक चौथे उनकी आज्ञा का पालन करे। जो उन्होंने व्रत को छोड़कर परस्त्री गमन करे ? आज से 10 वर्ष पूर्व बम्बई में क्या श्रावक मन्दिर उपाश्रय न जाकर, न क्षमायाचना संक्रान्ति पर जो आत्म
वल्लभ का युग लाने का उद्घोष किया । था, उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर । उनके मार्गानुसार चलें तो वह दिन दूर नहीं है कि हम धीरे-धीरे आत्म-वल्लभ के यग में प्रवेश करेंगे।
इसी तरह से वल्लभ गुरु जी की आज्ञानुसार हम साधु-साध्वी, श्रावकश्राविका चलेंगे तो अर्द्धशताब्दी वर्ष मनाने की सार्थकता है अन्यथा वाणी विलास है।
जब तक सूरज चाँद रहेगा। वल्लभ तेरा नाम रहेगा।
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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