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कार्यक्रम निर्धारित किये थे, जिसे वे पंचामृत कहा करते थे (1) मानव का सर्वांगीण विकास (2) शिक्षा प्रचार (3) समाज सेवा (4) राष्ट्र सेवा (5) साहित्य लेखन। आचार्य जी ने राष्ट्र के निर्माण में सहयोग देते हुए समाज के उत्थान के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझते हुए उन्होंने मानव के नैतिकता और आध्यात्मिक गुणों से सम्पन्न करने के लिये धार्मिक व नैतिक शिक्षा का उपदेश दिया था। उनका कहना था कि राष्ट्र व समाज को सशक्त करना है, तो उसे व्यसनमुक्त होना पड़ेगा। तम्बाकू, मदिरापान, आमिष भोजन हेरोईन आदि नशे में मदहोश युवापीढ़ी को आत्मा में बस रही मनमोहन की मुरली के स्वर की नितान्त आवश्यकता है। इन विचारों को आगे बढ़ाते हुए उन्हीं के क्रमिक पट्टधर आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी महाराज ने लगभग 12 वर्ष तक पैदल चलकर गुजरात के विभिन्न गांवों में 7 लाख परमार क्षत्रियों को जैन बनाकर व्यसनमुक्त करा है। हिंसक से अहिंसक बनाया है, आर्थिक स्थिति से कमजोर प्राणियों के खाने पीने, शिक्षा आदि का प्रबन्ध किया है जो कि हम सभी के लिये अनुकरणीय है।
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समाज के उत्थान के लिये नारी की उन्नति पर अत्यधिक ज़ोर दिया, उनका कहना था कि नारी को बराबर पुरुष के समान सम्मान मिले और किसी भी सामाजिक कार्य में बराबर का स्थान देने का उद्घोष किया, इसी क्रम में आचार्य श्री ने पहली बार जैन साध्वी महत्तरा श्री मृगावती जी महाराज को जनता को प्रवचन देने की आज्ञा प्रदान की, आज तो सभी साध्वियों को प्रवचन देने का प्रावधान है।
गुरुदेव सामान्य व्यक्तित के प्रति अत्यन्त वात्सल्य भाव रखते थे, उनके समक्ष उनके चरण कमलों में राजेश्वर श्रीमंत शांति व आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु आते ही थे, मगर दुःखी पीड़ित व्यक्ति विपुल संख्या में आते थे। आचार्य श्री जन्मजात कवि थे, उनका हृदय करुणा स्त्रोत से समृद्ध था, उनका चरण स्पर्श कर सुख प्राप्त करते थे, साथ ही करणा भाव से उनके दुःखों का निवारण करते थे। उन्होंने एक बार एक सभा में कहा "हमें शोषणहीन समाज की रचना करनी है, जिसमें कोई भूखा-प्यासा नहीं रहने पावे, उन्होंने राजेश्वर समर्थ लोगों से कहा कि तुम्हारी लक्ष्मी ये उनका भी हिस्सा है, फिर भी वे भूखे हैं और भूखा कौन नहीं अपराध करेगा ? चोरी, डकैती, झूठ और असत्य आवरण करेगा। यदि इन्हें इन अपराधों से बचाना चाहते है तो उनके लिये रोजी-रोटी की व्यवस्था करनी होगी। उनके उपदेश से प्रेरित होकर धनवानों ने उदार मन से सहयोग दिया, जिसके फलस्वरूप उद्योगशालाएं खुली, शिक्षालय स्थापित हुए, अकाल के समय भी समर्थ लोगों ने भारत के कोने-कोने में थन से, धान्य से, वस्त्रों व दवाईयों इत्यादि से मदद करी थी।
पैसा फंड : गुरुदेव ने समाज की उन्नति के लिये "पैसा फंड योजना" बनाई थी। इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक परिवार को 'एक पैसा' प्रतिदिन उत्कर्ष फंड में देना चाहिए। इसका उद्देश्य यही था कि साधारण है
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जनता में समाज के प्रति रूचि उत्पन्न हो और बिना किसी भार के समाज की उन्नति में अग्रसर हो। इस फंड में काफी धन एकत्रित हुआ और हो रहा है और इस फंड से आज तक रोगियों, विधवाओं, विद्यार्थियों आदि को सहायता दी जाती है।
दहेज प्रथा : गुरु वल्लभ ने समस्त समाज के स्वस्थ निर्माण का प्रयास किया। समाज में दहेज का आदान-प्रदान कैंसर की भांति है-जो समाज को अजगर की भांति निगल रहा है। पराए और बिना मेहनत के धन पर गुलछर्रे उड़ा रहे युवकों के लिए यह बेहद शर्म की बात है। इस बात का पंजाब, राजस्थान और गुजरात के लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा और आज इस प्रथा का पूर्ण रूप से रोक लग गई है, जिसका श्रेय आचार्य गुरु वल्लभ पर है।
शिक्षा प्रचार : आचार्य विजय वल्लभ सूरि जी महाराज का मानना था कि बिना शिक्षा के मानव अपनी शक्तियों का विकास नहीं कर सकता है-इसी लक्ष्य को लेकर अपने महान् गुरुदेव श्रीमद् आत्माराम जी महाराज के मिशन को पूर्ण करने के लिये शिक्षा प्रसार के लिये जगह-जगह गुरुकुल, शिक्षालय स्थापित किए बम्बई में महावीर विद्यालय फालना, वरकाना, गुजरांवाला, जगडिया, सूरत, अम्बाला एवं अनन्य स्थानों पर खुलवाये। विजय वल्लभ आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे, उनकी अभिलाषा थी कि "जैन विश्वविद्यालय" की स्थापना हो। जोकि आज तक हम सभी के कानों में गूंज रहे हैं-मगर यह सपना कब पूरा होगा ?
आज समाज आचार्य विजय वल्लभ गुरु के उपकारों को नहीं भूल सकता, जिसने राष्ट्र की एकता, शिक्षा प्रसार, दहेज प्रथा उन्मूलन धर्म के प्रति अनेक कार्य किये जिसका ऋण जैन समाज नहीं भूल सकता, ऐसे गुरुदेव- जो जन्मजात ईश्वरीय काव्य प्रतिभा के कवि -सम्राट थे। वे काव्य का निर्माण ही नहीं करते थे बल्कि काव्य स्वतः उनके मन से निकलकर प्रवाहित होता था। उनके हृदय में करुणा स्त्रोत निर्झर की तरह से बहता था, जो भी सम्पर्क में आया वह निर्मल हो गया। ऐसा उनका जीवन भावमय था। सामाजिक-सांस्कृतिक क्रांति के जयघोष को देश के कोने-कोने में फैलाने हेतु इस युगदृष्टा ने हिन्दी भाषा को प्राथमिकता दी और कहा हिन्दी जिनवर वाणी भारती है। समूचे देश की भलाई हिन्दी द्वारा ही हो सकती है। हिन्दी के कवि और मनीषि भारत के पुनर्जागरण एवं सांस्कृतिक क्रांति हेतु जीवनभर प्रयत्नशील रहे। अपनी कविताओं द्वारा व्यसनमुक्त समाज को मुक्त करना, शैक्षिक शिक्षा प्रसार इत्यादि सामाजिक एकता स्थापित करने की मंगल कामना का उद्घोष किया। इन्हीं विचारों पर आज प्रत्येक समाज व देश अग्रसर होकर कार्य करें, निस्संदेह हमारा भारत देश उन्नति कर सकता है, विषमताएं दूर हो सकती हैं। खुशहाली एवं मानसिक शांति प्राप्त हो सकती है। सिर्फ हमें उन्हें अपने जीवन में अपनाना है और उनके बताए मार्ग पर चलें तो हम सभी "विजय वल्लभ" के सच्चे अनुयायी कहलाने योग्य होंगे।
विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका
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