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"फूल मुरझा जाता है सुगंध रह जाती है, धूप जल जाती है पर महक रह जाती है। महापुरुषों की कुछ ऐसी होती है दास्तां कि, विभूति तो चली जाती है याद अमिट रह जाती है।"
देते थे।
अलंकरण:
उद्योगशालाएं खुली, शिक्षण संस्थाएं स्थापित हुईं। जोकि 'वल्लभ काव्य सुधा' में संग्रहित हैं। गुरुदेव आपकी सेवा से उपकृत होकर जैन संघ आप समाज के स्वप्नद्रष्टा थे। आपने 'पैसा फण्ड जी ने गीति-नाट्य की रचना की। गुरुदेव ने संवत् 1981 को लाहौर में आपको आचार्य पद योजना' बनाई। इस फण्ड से आज तक रोगियों, जिस-जिस शहर में जाते थे वहाँ पर जो भी से विभूषित किया। आप 'कलिकाल- कल्पतरु', विधवाओं, विद्यार्थियों और अनाश्रितों की मूलनायक परमात्मा होते थे उनका स्तवन बना अज्ञान तिमिर तरणि, 'भारत-दिवाकर', सहायता हो रही है। 'पंजाब केसरी' आदि अनेक अलंकरणों से शिक्षा प्रचार :
देवलोक गमन सम्मानित हुए।
आपने अपने गुरुदेव के मिशन को पूर्ण आचार्य देव जी का जीवन दीपक 22 आध्यात्मिक जीवन :
करने हेतु राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर सितंबर, सन् 1954 विक्रम संवत् 2011 जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि अनेक ____ मंगलवार को रात को 2 बजकर 32 मिनट पर का तपस्वी जीवन था। वे अहिंसा-संयम-तप धर्म प्रदेशों में शिक्षा का प्रचार करते हुए व्यावहारिक पुष्य नक्षत्र में 'अर्हत्' नामोच्चारण करते हुए के साधक के साथ सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चरित्र के ज्ञान एवं विधि ज्ञान प्राप्त करने हेतु कई गुरुकुल, बम्बई में बुझ गया। वे अंतिम समय में आराधक थे। वे दिन भर में गिनती की चीजें ही। बालाश्रम, विद्यालय, महाविद्यालय आदि शिक्षण ज्ञान-ध्यान में लीन प्रशांत मुद्रा में शोभित थे। इस लेते थे। आपका जीवन “सन्त मैत्री, प्रमोद, संस्थाएं भिन्न-भिन्न प्रदेशों में खोली। आपके धरती पर इस दिव्य आत्मा ने असंख्य जीवों का करुणा और माध्यस्थ भाव से युक्त होते हुए जैन शिष्य रत्न आचार्य श्री ललित सूरि जी ने इन उद्धार किया था। अचानक प्रकाश बुझ गया, समाज के लिए ही नहीं अपितु समस्त जनता के विद्यामंदिरों का सिंचन किया।
अंधकार छा गया। आचार्य श्री ने देह-विलय के लिए आंतरिक शक्ति का स्त्रोत था। देश-प्रेम :
समाचार बिजली की गति के समान भारत के विश्व-शान्ति
गुरुदेव जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में कोने-कोने में एवं विदेशों में फैल गये। आपने विश्व-शान्ति के लिए अहिंसा, जन-जागरण हेतु अनेक प्रवचन दिए। स्वयं खादी उनकी महाप्रयाण-यात्रा में लाखों लोगों अपरिग्रह एवं अनेकान्त दर्शन पर जोर दिया। श्री के वस्त्र पहने और जन-जन को खादी वस्त्र ने भाग लिया। अंतिम यात्रा में हिन्दू, मुसलमान, गुरुदेव जी ने अपने प्रवचनों द्वारा विश्वशान्ति के पहनने के लिए प्रेरित किया।
सिक्ख, ईसाई, पारसी, जैन आदि सभी लिए जीवन पर्यन्त प्रचार किया।
"कवि का अन्तःकरण धार कर, धर्म-सम्प्रदायों के लोग शामिल हुए। पूज्य गुरुदेव समाज सेवा :
कई पूजा रच डाली।
जी का अग्नि संस्कार भायखला में हुआ। जहाँ आपने समाज में व्याप्त विषमता
ब्रह्मचर्य की छढ़ नौ बाढ़े,
पर आज श्री आदीश्वर जैन मंदिर एवं गुरुदेव जी असमानता को दूर करने के लिए कहा : 'हमें
तुमने निरतिचार पाली।"
का समाधि मंदिर स्थित है। ऐसी पुण्यात्मा को शोषणहीन समाज की रचना करनी है, जिसमें साहित्य-सर्जना :
बार-बार वंदन, नमस्कार करती हूँ तथा उनके कोई भूखा-प्यासा न रहे।
गुरुदेव जी ने श्री आदिनाथ, श्री द्वारा बताए गये मार्ग पर चलने का संकल्प लेती प्रतिज्ञा
शांतिनाथ, श्री पार्श्वनाथ, श्री महावीर स्वामी, आपने मध्यम एवं निर्धन वर्ग की पीड़ा पंचकल्याणक पूजा, श्री पंच परमेष्ठी पूजा, समझते हुए बम्बई में जब तक उत्कर्ष फण्ड में निन्यानवे प्रकारी पूजा, एकवीस प्रकारी पूजा, पाँच लाख रुपये जमा नहीं होंगे तो मैं दूध और ऋषि मंडल पूजा, चारित्र पूजा, द्वादशव्रत एकादश उससे बनी वस्तुओं का त्याग करूंगा। आपकी गणधर पूजा, चउदराज लोक पूजा आदि कई प्रतिज्ञा से यह राशि शीघ्र ही एकत्रित हो गई। पूजाओं की रचना की। गुरुदेव जी ने 24 ट्रस्टीशिप सिद्धान्त
तीर्थंकरों की भक्ति में अनेक स्तवन रचे तथा आपके उपदेश से प्रेरित होकर अनेक ऋषि मुनियों के सज्झायों की रचना की,
हूँ
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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