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________________ दिनांक 16 अक्तूबर 2004 दिन शनिवार अनुशासन प्रिय प.पू. गच्छाधिपति जी ठीक 9 बजे धर्म सभा में पधारे। सामूहिक गुरु वन्दन के पश्चात् गुरुदेव के मंगलाचरण के साथ आज की धर्मसभा का शुभारम्भ किया गया। आज का मंच संचालन श्री अरविन्द जी ने किया। सर्वप्रथम एस.ए. जैन कॉलेज पी.जी. की छात्राओं ने सामूहिक भजन प्रस्तुत किया। श्री कस्तूरी लाल जी ने गुरु वल्लभ को साधर्मिक वात्सल्य के मसीहा बताते हुए अपने विचार प्रकट किये। श्री मनदीप जैन जी ने भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे: "सुनो सुनाता हूं, एक गुरुवर की कहानी, उपस्थित जनसमूह जो कहानी मैंने सुनी है, बड़े बूढ़ों की जुबानी।" इस भजन के द्वारा गुरुवर के सम्पूर्ण जीवन चरित्र को उजागर किया गया। श्री सिकन्दर लाल जैन 'एडवोकेट' ने "विजय वल्लभ हमारे सरताज" विषय पर अपने विचार संक्रान्ति भजन की गाथा के साथ आरम्भ किये। "गुरुराज तपस्वी महामुनि, सरताज हो तुम महाराजों के। मैं एक छोटा सा सेवक हूं, कुछ कहता हुआ शरमाता हूं।।" गुरुवर राजाओं एवं महाराजाओं के सरताज तो थे ही, हमारे संघ-समाज के भी सरताज थे और हैं। देवताओं की सभा में इन्द्र आदि अपने ताज से ही पहचाने जाते हैं, राजे-महाराजे भी अपने ताज से ही पहचाने जाते हैं। किसी संस्था या संगठन या नवकारसी लाभ प्राप्तकर्ता-श्री सरदारी लाल शिखर चन्द जैन परिवार, मुरादाबाद कम्युनिटी का जो प्रतिनिधित्व करता है, उसके सर पर ताज होता है। हम जब यात्रा पर पंजाब से बाहर जाते हैं, तो साधु-संत हमसे पूछते हैं कहां से आए हो? तो हम STAसाद कहते हैं, पंजाब से, तो वे तुरन्त कहते हैं कि पंजाब गुरु वल्लभ के दीवाने हैं, यही हमारी पहचान है। हमारे संघ, समाज की विशेष पहचान गुरु वल्लभ से ही है इसलिये वे हमारे सरताज है। पूज्य गुरुदेव ने समाज के हर क्षेत्र में हमारा नेतृत्व किया। हमें मार्गदर्शन दिया। सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने शिक्षा पर बल दिया इसके लिये स्कूल, कॉलेज का निर्माण करवाया। धार्मिक क्षेत्र में गुरुकुल खुलवाए, जिन मन्दिर बनवाए, जैन समाज को मूर्ति पूजा का विशेष महत्त्व समझाया, राजनीतिक क्षेत्र में गुरुवर चाहते थे कि जैन समाज का प्रत्येक सदस्य पढ़ लिख कर विद्वान बने फलस्वरूप प्रशासन में हमारी हिस्सेदारी हो, जिससे हम अपने धर्म की रक्षा करते हुए धर्म का टोडर कापीतिभोज लामाका भीमलाल विजन और कसा वाले पालन कर सकें। व्यवहार की दृष्टि से समयानुसार केवल गुरू वल्लभ ने जनहित और समाजहित के कार्य प्रारम्भ किये इसलिये वे गुरू श्रृंखला में हमारे सिरताज माने जाते हैं। श्रीमति कमलेश जैन लुधियाना ने 'वल्लभ गुरु की शान को हम और बढ़ायेंगे' भजन प्रस्तुत किया। स्थानकवासी साध्वी सुनीति प्रभा श्री जी महाराज ने अपने प्रभावशाली प्रवचन में कहा कि संघ जयवंत है, नन्दी सूत्र में वर्णन आता है कि वीतराग तीर्थंकर परमात्मा जब समोसरण में विराजमान होते हैं, तो चतुर्विध संघ रूपी तीर्थ को नमन करते हैं। तीर्थंकर ही चतुर्विध संघ की स्थापना धर्म को चलाने के लिए एवं बनाये रखने के लिये करते हैं। इस समय भरत और ऐरावत क्षेत्र में तीर्थंकर परमात्मा नहीं हैं। परमात्मा की गैर हाजिरी में आचार्य श्री जी तीर्थंकर तल्य माने जाते हैं और सायं का प्रीतिभोज लाभ प्राप्तकर्ता-श्री मुनि लाल बाल कृष्ण जैन घोड़े वाले परिवार 1244 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only 1500 Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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