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श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी म.
जीवन रेखाएं जन्म सालपुरा (गुजरात) वि.सं. 1980, कार्तिक यदि नवमी, (ई. सन् 1923), पिता रणछोड़भाई, माता श्रीमति बालू बेन, जन्म नाम मोहन कुमार, वंश परमार क्षत्रिय, प्रारम्भिक शिक्षा - श्री वर्धमान जैन बालाश्रम, बोडेली। दीक्षा- वि.सं. 1998, फाल्गुण सुदि पंचमी, नरसंडा (गुजरात)। गुरु श्री विनय विजय जी म., नाम- श्री इन्द्र विजय जी महाराज । बड़ी दीक्षा- बिजोबा (राजस्थान) आचार्य श्री विकास चन्द्र सूरि जी द्वारा अध्ययन-आगम, संस्कृत, प्राकृत, ज्योतिष, हिन्दी, गुजराती, भाषा आदि। आचार्यपद - वि.सं. 2027, माघ सुदि पंचमी (बसंत पंचमी), वरली (मुम्बई) पदवी दाता -जिन - शासन- रत्न, राष्ट्र सन्त श्रीमद् विजय समुद्र सूरि जी म., पट्टियां गच्छाधिपति परमार क्षत्रियोद्धारक, जैन- दिवाकर, शासन- शिरोमणि ।
परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र सूरीश्वर जी महाराज की यशस्वी पट्ट परम्परा पर सुशोभित महान शासन प्रभावक चारित्र - चूड़ामणि, तपस्वी सम्राट आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज वर्तमान युग के दिव्यात्मा ज्योति पुरुष थे। उन से केवल जैन शासन ही नहीं, अपितु समस्त मानव जाति गौरव - मण्डित हुई । उन का महान तपस्वी, पुरुषार्थी, चारित्रशाली एवं अप्रतिम जीवन हम सभी के लिये प्रेरक, दीप शिखा की भाँति है।
शासन प्रभावक आचर्य श्री जी, श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र गुरुत्रय की पाट परम्परा के संवाहक थे जब से आप ने यह आचार्य पद सम्भाला तब से इस महती जिम्मेदारी को भली भाँति वहन करते रहे। गुरु वल्लभ ने जो स्वप्न देखे थे और जिन स्वप्नों को पूरा करने के लिए वे जीवन पर्यन्त जूझते रहे और अधूरे रह गये थे उन्हीं स्वप्नों को आचार्य श्री जी ने साकार किया। चाहे वे स्वप्न सधर्मी भाइयों के उत्कर्ष के हों या जैन धर्म के चारों सम्प्रदायों की एकता के यह कहना उचित ही होगा कि गुरु वल्लभ के इन कार्यों को आप ने अनेक गुणा आगे बढ़ाया। स्वास्थ्य की प्रतिकूलता में भी आप बड़े-बड़े तप करते रहे। जैन धर्म की श्रमण परम्परा में और पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य वल्लभ के समुदाय में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी गच्छाधिपति ने बाईपास सर्जरी के पश्चात् वर्षी तप किया हो और उनके साथ-साथ उन के आज्ञानुवर्ती 33 श्रमण एवं श्रमणी वृन्द ने उन का अनुसरण करते हुए वर्षी तप किये हों।
कतिपय गौरवमय महान कार्य
शासन-नायक श्रमण भगवान महावीर स्वामी की 76वीं पाट परम्परा पर विभूषित श्रमण परम्परा के उज्जवल नक्षत्र आचार्य देवेश श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी म. का व्यक्तित्व और कार्य बहुआयामी एवं बहु क्षेत्रीय हैं। आप के कुशल नेतृत्व में संघ व समाज के विकास में तथा शासन प्रभावना द्वारा अनगिनत कार्य सम्पन्न हो रहे हैं। आत्म-विश्वास और पुरुषार्थ आपकी जीवन साधना के कण-कण में बसा हुआ
है आपके त्याग, तपस्या, प्रवचन, विहार, जप आदि धार्मिक अनुष्ठानों में आप जैसा दूसरा सानी नहीं मिल पाता। आप पुरुषार्थ की प्रत्यक्ष
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प्रतिमा हैं। इस प्रचण्ड पुरुषार्थ के बल पर ही आप श्री ने शासन सेवा के महान अनूठे कार्य किये हैं; जिन में प्रमुख निम्न प्रकार हैं :
(1) गुजरात के बड़ौदा एवं पंचमहाल जिलों में बसे एक लाख परमार क्षत्रियों को व्यसनों का परित्याग करवा कर जैन धर्म का अनुयायी बनाना और उनका उद्धार किया।
(2) मध्यम वर्गीय सहधर्मी भाइयों के निवास के लिए दानवीर श्री अभय कुमार जी ओसवाल को प्रेरित कर विजयइन्द्र नगर लुधियाना में 750 परिवारों के आवास कालोनी की समुचित व्यवस्था उसी के अन्तर्गत श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ जैन मन्दिर तथा उपाश्रय का निर्माण एवं सुश्रावक तैयार करने के लिए श्री आत्म-वल्लभ जैन धार्मिक पाठशाला की स्थापना करवाना।
( 3 ) शत्रुंजय महातीर्थ पर श्री दादा जी की ट्रंक में न्यायाम्भोनिधि श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी म. की प्रतिमा की पुनः प्रतिष्ठा तथा प्राचीन देहरी का सुन्दर नवीनीकरण करवाना।
(4) श्री विजयानन्द स्वर्गारोहण शताब्दी वर्ष के पावन प्रसंग पर विश्ववंद्य श्री आत्माराम जी महाराज के रचित सम्पूर्ण साहित्य का
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विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका
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