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4. वि.सं. 1932 (ई.सं. 1875 ) में अहमदाबाद में 15 साधुओं के साथ मुनि बुद्धिविजय (बूटेराय) जी से संवेगी दीक्षा । नाम आनन्दविजय। बाल-ब्रह्मचारी ।
5. वि.सं. 1932 में ही अहमदाबाद में शांतिसागर के साथ शास्त्रार्थ, स्थानकवासी हुकुम मुनि की अनर्गल पुस्तक का उत्तर देकर सूरत संघ की सुरक्षा ।
6. वि.सं. 1938 (ई.सं. 1881 ) को अहमदाबाद में गुरु बुद्धिविजय जी का स्वर्गवास । 7. वि.सं. 1943 (ई.सं. 1886) मार्गशीर्ष वदि 2 को सेठ नरसी शिवजी की धर्मशाला पालीताना सौराष्ट्र में 35000 श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में इस युगपुरुष को आचार्य पद्वी से अलंकृत किया गया। नाम आचार्य विजयानन्द सूरि। कई शताब्दियों से रिक्त पड़े इस पद से आप अलंकृत किये गये।
8. वि.सं. 1950 (ई.सं. 1893) में शिकागो (अमरीका) में विश्वधर्म परिषद में अपने प्रतिनिधि के रूप में महुआ (सौराष्ट्र) निवासी वीरचन्द राघवजी गांधी को भेज कर विदेश में जैनधर्म का प्रचार कराया।
9. पंजाब के लगभग 30 गांव - नगरों में 7000 के लगभग श्रावक-श्राविकाओं को शुद्ध धर्म में प्रतिबोधित किया। सैंकड़ों भावुकों को संवेगी दीक्षा देकर जिनशासन का संरक्षण किया। W 29650
में।
10. वि.सं. 1953 (ई.सं. 1896 ) जेठ सुदि 8 को गुजरांवाला (पंजाब) में स्वर्गवास, 59 वर्ष की आयु पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सरीश्वर जी पर विराजित हुए जिनके 50वें स्वर्गारोहण वर्ष के यह स्मारिका श्रद्धांजलि रूप में समर्पित है
श्रीमद् विजय समुद्र सूरि जी महाराज
जीवन रेखाएं : जन्म वि.सं. 1948, पाली (राजस्थान), मार्गशीर्ष सुदि एकादशी (मौन एकादशी), पिता-श्री शोभा चन्द, माता - श्रीमति धारिणी देवी, जन्म नाम- सुखराज । दीक्षा - वि. सं. 1967 सूरत, गुरु-उपाध्याय श्री सोहन विजय जी म. । आचार्य पद्वी - वि.सं. 2009 थाना (मुम्बई) माघ सुदि पंचमी (बसंत पंचमी ) स्वर्गवास - वि. सं. 2035, ज्येष्ठ वदि अष्टमी मुरादाबाद, कुल आयु-86 वर्ष। पदवियां-जिन - शासन - रत्न, राष्ट्रसंत, शांतमूर्ति । आप भगवान महावीर के 75वें पाट पर विराजमान हुए।
आचार्य श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वर जी म. सच्चे अर्थों में साधना के समुद्र, तप की प्रतिमूर्ति और सेवा के साधक थे, इन्होंने अपने दिव्य गुणों से सम्पूर्ण जैन समाज को एक नई जागृति और एक नई चेतना प्रदान की। राष्ट्र के प्रति आपके हृदय में एक अनूठी सेवा भावना थी तभी तो आपको राष्ट्र - संत भी कहा गया है। भारत चीन युद्ध के समय अपना रक्तदान देने की घोषणा की। विश्व-शांति और युद्ध समाप्ति के लिए अनेक विविध तपश्चर्याएं करवाई। आपने गुरुदेव श्री विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की भावनाओं को मूर्त रूप देने के लिए अपने जीवन की बाजी तक लगा दी। आपके नेतृत्व में ही भगवान महावीर स्वामी की 25वीं निर्वाण शताब्दी दिल्ली में चारों सम्प्रदायों ने मिल कर बड़ी शान से मनाई। आप सचमुच गुणों के प्रशान्त समुद्र, धार्मिक कट्टरता से कोसों दूर, बेसहारों के सहारा, शरणागत के सच्चे रक्षक एवं अनन्य गुरुभक् थे। यदि सरस्वती देवी भी आपके दिव्य ' का वर्णन करना चाहे, वह भी अपने आप को असमर्थ अनुभव कर पायेगी।
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विजय वल्लभ
संस्मरण-संकलन स्मारिका
म.सा. 74वें पाट निमित्त
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