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स्वामी के झंडे के नीचे एकत्रित होकर श्री महावीर की जय बोलें तथा जैन शासन की वृद्धि के लिए ऐसी एक “जैन विश्वविद्यालय” नामक संस्था स्थापित होवे, जिसमें प्रत्येक जैन शिक्षित हो; धर्म को बाधा ना पहुंचे, इस प्रकार राज्याधिकार में जैनों की वृद्धि होवे।"
आज हमें व हमारे बाल-युवा वर्ग को एक तुलनात्मक अध्ययन कर समाज में पनप रही कुछ बुराईयों का तथा उनको दूर करने के लिए उपायों का विश्लेषण करना होगा। क्या हम या हमारा वर्तमान समाज एवं उसके सभी अंगों के सदस्य व अधिकारीगण प्रभु महावीर के सिद्धांतों पर ठीक तरह से अमल कर पा रहे हैं ?
आज हम सभी एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं-जहां से प्रारंभिक मार्ग तो बेहद सुखद प्रतीत हो रहा है-परंतु हम आगे बढ़कर हाथ से हाथ मिलाकर किसी एक सुखद मार्ग को अपनाने में क्यूं कठिनाई महसूस कर रहे हैं ?क्या कारण है ? विश्लेषण करना होगा मेरा
विचार है कि इसमें :
प्रतिबंध चालू है। (1) हममें आपसी सोच व समझ के अन्तर (6) पश्चिमी सभ्यता की आड़ में पथभ्रष्ट को कम करना होगा तथा इस काम में आज बालक युवा-वर्ग में फैले कोढ़ को आज के का युवा वर्ग सुसंस्कारी होकर काफी सहायक सुसंस्कारी युवा वर्ग व बालक आगे आकर इस साबित होगा।
को जड़ से समाप्त करने की सौगंध लें, इसी (2) हमारे समाज व देश के कर्णधारों, प्रकार की अनेक बुराईयों का जो वर्तमान में साधु-आचार्यों, अधिकारीगण आदि को अपने प्रभुवीर के शासन के भिन्न-भिन्न वर्गों व ओछे स्वार्थों को त्यागकर सार्वजनिक एकत्व समाज के अंगों में पूर्ण रूप से विकरालता का प्रणाली को कारगर करना होगा। . रूप धारण कर चुकी हैं-उन्हें आज का सुसंस्कारी (3) समाज में फैली आपसी घृणा-द्वेष, ईर्ष्या बाल-युवा वर्ग एकत्रित होकर दूर करें। आदि के कारण समाज व परिवारों का एकत्व आज सभी वर्ग, समाज के सभी अंगों ना होकर विघटन को रोकना होगा। के बाल-युवा वर्ग की तरफ एक आशा की (4) अमीरी-गरीबी की बढ़ती दूरी रूप खाई किरण लेकर टकटकी लगाकर देख रहे हैं। को पाटकर गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त । आशा करता हूं-आज का यह वर्ग आगे शिक्षा-परिवारों को बिना जताए आर्थिक मदद आएगा तथा अपने धार्मिक संस्कारों से तथा नवयुवकों को रोजगार के साधन उपलब्ध सुसज्जित सर्वांगीण विकास के द्वारा इन कराने होंगे।
समस्याओं व चुनौतियों को अंधेरे में से बाहर (5) दहेज प्रथा के दानव रूप को समाप्त निकाल कर अपनी लगन व निष्ठा से कर खर्चों को सीमित करना होगा। आज भी अन्धकार को प्रकाशमय बनाकर एक ज्वलंत जयपूर जैसे शहरों में खाने की आईटमों पर उदाहरण पेश करेगा।
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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